Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Wednesday, June 6, 2012

तो विलुप्त हो जाएगी धुरवा जनजाति

तो विलुप्त हो जाएगी धुरवा जनजाति



भूमकाल के नायकों की जाति धुरवा पर विशेष 

एक समय में धुरवा और शौर्य पर्यायवाची थे.लाला जगदलपुरी जिक्र करते हैं कि चीतापुरिया शब्द शासकों के लिये आतंक का समानार्थी समझा जाता था क्योंकि यहाँ के शेर तथा धुरवा दोनों ही नें प्रशासन को हिलाया हुआ था...

 कमल शुक्ल

बस्तर की आदिवासी संस्कृति व सम्मान की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ 1910  में हुए महान भूमकाल क्रांति का प्रणेता गुंडाधूर के अपनी ही जाति को आज अपने अस्तित्व बचने के लिए गुहार लगाना पड रहा है . संवैधानिक संरक्षण की कमी के चलते धुरवा आदिवासियों को अपनी बोली, भाषा, संस्कृति, रहन-सहन पर संक्रमण के खतरे का एहसास होने लगा है.

gundadhur

धुरवा जंगल, जल, जमीन का हक खो चुके हैं.भय, भूख और भ्रष्टाचार के सताए धुरवा बेदखल होकर दिहाड़ी मजदूरी के लिए भी भटक रहें हैं.मई माह की 22 तारीख को इसी चिंता के साथ  सामाजिक दशा-दिशा को लेकर समाज की महासभा ओड़ीशा के केंदुगुड़ा में हुई.समाज के छग-ओड़ीशा के प्रतिनिधियों ने धुरवा आदिवासियो के हालातों पर मनन कर माना की  सोच का अपाहिजपन सामाजिक विकास में रोड़ा बन रहा है.जागरुकता की  कमी ने विकास की अवधारणा में सबसे पिछड़ा छोड़ दिया है.

धुरवा आबादी मूलत: सुकमा के कुछ क्षेत्रों, जगदलपुर के निकट, दरभा, छिंदगढ आदि क्षेत्रों में प्रसारित है.इसके आलावा ओड़ीशा के 88 गांवों धुरवा आबाद है .समाज के सचिव गंगाराम कश्यप के मुताबिक बस्तर से लगे उड़ीसा के इलाको में इनकी संख्या 10 हजार से अधिक है वहां की सरकार ने 2002 मे इन्हें आरक्षण देने तय किया.इस जनजाति की ठोस उपस्थ्ति अब बस्तरिया समाज में नहीं रह गयी है यहाँ तक कि इनपर बहुत कम शोध अथवा लेखन हुआ है.

एक समय में धुरवा और शौर्य पर्यायवाची शब्द थे.लाला जगदलपुरी जिक्र करते हैं कि चीतापुरिया (जगदलपुर के निकट एक गाँव चीतापुर के निवासियों के लिये) शब्द शासकों के लिये आतंक का समानार्थी समझा जाता था क्योंकि यहाँ के शेर तथा धुरवा दोनों ही नें प्रशासन को हिलाया हुआ था.यह जानकारी बताती है कि धुरवा एक जागरूक कौम थी.1910 का महान भूमकाल जिन वीर धुर्वाओं की अगवाई में लडा गया वे थे गुण्डाधुर (निवासी नेतानार) तथा डेबरीधुर (निवासी एलंगनार).

धुरवा  युवक लम्बे-ऊँची कदकाठी के होते हैं मूंगे की माला और रंग बिरंगे गहने उनका शौक है.इनकी अपनी बोली और जातीय परंपराए हैं.बस्तर की कांगेरघाटी के ईर्द-गिर्द बसे धुरवा बेटे-बेटियों के विवाह में जल को साक्षी मानते हैं, अग्नि को नहीं.इनके नृत्य, गीत आपसी संवाद की बोली धुरवी कहलाती है.धुरवी बोली में यह जनजाति संवाद करती है; यह बोली द्रविड भाषा परिवार का हिस्सा है.

होली से पहले एक माह तक चलने वाला पर्व गुरगाल धुरवा समाज का परिचय देती परम्परा है.यह एक नृत्य प्रधान उत्सव है.कुछ सामाजिक समरस्ताओं से सम्बन्धित परम्परायें भी हैं जैसे अबूमाड़िया आदिवासी नेरोम की लड़ी धुरवा जनजाति के युवक-युवतियों को देकर जहां प्रेम का इजहार करते हैं.धुरवा जाति के युवक बांस से बनी खूबसूरत टोकरियों तथा बांस की कंघी भेंटकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं.बदले में युवतियां सुनहरी-चाँदी के रंग की पट्टियों वाली लकड़ी की कुल्हाड़ी देकर प्रेम निमंत्रण का जवाब देती हैं.

धुरवा जनजाति के लोग पानी के फेरे लेकर जिंदगीभर एक दूजे के संग रहने की कसमें खाते हैं.महत्वपूर्ण और रेखांकित करने वाला तथ्य है कि इन फेरों में सिर्फ वर-वधु ही नहीं होते, बल्कि पूरा गांव शामिल होता है.पानी और पेड की पूजा ही धुर्वा जनजाति की हर प्रमुख परम्परा के केन्द्र में होती है.आर्थिक पिछडापन अब धुरवा जनजाति की सबसे बडी समस्या है सम्भवत: इनके सिमटते जाने का यही प्रमुख कारण भी है.धुरवा जनजाति की उपजाति परजा अब विलुप्त हो गयी है.

धुरवा समाज के हाशिये पर जाने का एक कारण 1910 का भूमकाल भी है क्योंकि इस क्रांति के दमन के पश्चात अंग्रेजों से बहुत निर्ममता से इस वीर कौम को कुचला.कोडे मारे गये, अपमानित किया गया, शस्त्र ले कर चलने पर पाबंदी लगा दी गयी.अब समय बदल गया है तथा बिना किसी राजनीति के हमें सहानुभूति पूर्वक उस महान और वीर धुरवा जनजाति के संरक्षण के लिये एक जुट होना चाहिये.

बदलाव के कई तरीके हैं जिसमें से एक कहानी धुरवाओं के गाँव माचकोट की है जिसे आदर्श गाँव में विकसित किया गया है.वस्तुत: आदिम परम्परओं को पूरी गंभीरता और आदर के साथ समझना आवश्यक है उसके बाद बाहुल्य क्षेत्रों की पहचान कर विकासोन्मुखी संरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिये.बिना क्षेत्रविशेष में रोजगार व बेहतर आजीविका के अवसर पैदा किये हुए अब किसी भी क्षेत्र की जनजाति विशेष का संरक्षण संभव नहीं हैं, वे विलुप्त हो जायेंगी.

बस्तर की प्रत्येक जनजाति एक दूसरे के साथ सह-सम्बद्ध है साथ ही साथ उनकी अपनी विशेषतायें भी हैं.प्रत्येक जनजाति की अपनी कलात्मकता है तथा उनकी जीवनशैली के बहुत से पहलू एसे हैं जो उनके अपने कुटीर उद्योग बन सकते हैं.आईये पहल करें, अपने धुरवा भाईयों के लिये.अपने गुण्डाधुरों के लिये.आईये डेबरीधुर की शहादत को याद करें धुरवा जनजाति को लौटा कर दें उनका अपना गौरव.

चमत्कारिक चरित्र  का क्रांतिवीर गुंडाधूर धुरवा gundadhur-dhuravaa

गुंडाधूर की प्रमाणिक  तस्वीर  प्राप्त नहीं है, प्रस्तुत चित्र प्रतीकात्मक रूप हेतु BastarThe Lost Heritage से लिया गया है . भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय अंचल  के अनेक गुमनाम क्रांतिवीरों में बस्तर के गुण्डाधूर, एक चमत्कारिक चरित्र हैं .गुण्डाधूर का जन्म बस्तर के नेतानार ग्राम में हुआ था .धुरवा जाति का यह वीर युवकसन् 1910के आदिवासी विद्रोह का प्रमुख सूत्रधान था .इस समय अंग्रेजों के कुटिल शासन के प्रति जनरोष बस्तर में भूमकाल के रुप में प्रकट हुआ था .1 फरवरी 1910 को समूचे बस्तर  में विद्रोह का भूचाल आ गया .गुण्डाधूर एक महान सेनानी, छापामार युद्ध के जानकार  तथा देशभक्त होने के साथ-साथ आदिवासियों के पारंपरिक हितों के लिए जागरुक थे.जनश्रुतियों तथा गीतों में इनकी वीरता का वर्णन मिलता है .छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहसिक कार्य तथा खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गुण्डाधूर सम्मान स्थापित किया है .

kamal-shuklaकमल शुक्ल छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV