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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, June 6, 2012

अर्थ व्यवस्था ठप, नीति निर्धारण स्थगित क्योंकि वित्त मंत्री को राष्ट्रपति बनाना है!


अर्थ व्यवस्था ठप, नीति निर्धारण स्थगित क्योंकि वित्त मंत्री को राष्ट्रपति बनाना है!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

जैसी दुर्गति कामरेड ज्योति बसु की बंगाल के माकपाइयों ने कर दी, अब बाजार और साउथ ब्लाक के मूड को देखते हुए लगता है कि ममता दीदी अपने कालीघाट के दुर्ग से एढ़ी चोटी का जोर लगाकर भी वैसी फजीहत प्रणव मुखर्जी की शायद ही कर पायें। प्रमव दा अब निश्चिंत हो गये हैं और राष्ट्रपति बवन का ख्वाब देकते हुए चैन की नींद सो रहे हैं। न राजस्व घाटा से उनकी नींद में खलल पड़ रही है और न रुपये के लगातार गिरते जाने ​​से। राष्ट्रपति पद पर कारपोरेट इंडिया और बाजार की पसंद को तरजीह देकर कांग्रेस भी विपक्ष को मात देने की आखिरी कोशिश में लगी है।​​उत्तर प्रदेश से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छोड़ी हुई सीट पर लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव के किलफ प्रत्याशी न देकर कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस से निपटने की तैयारी भी कर ली है। वैसे ममता दीदी पोपुलिस्ट राजनीति में सबसे माहिर खिलाड़ी हैं। प्रणव दादा को विश्वपुत्र कहते ​​हुए राष्ट्रपति पद पर उनकी दावेदारी को नजरअंदाज करते हुए मीरा कुमार का नाम जो उन्होंने उछाला है, उसके पीछे एक साथ महिला और दलित वोट बैंक साधने और प्रणव मुखर्जी से आर्थिक पैकेज की सौदेबाजी का दोहरी रणनीति है। मायावती और ममता बनर्जी दोनों आखिरकार कांग्रेस का ही साथ देंगी, बाजार ने ऐसा सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आदिवासी और मुस्लिम राष्ट्रपति के सवाल पर विपक्ष इस कदर बंटा हुआ​​ है कि कांग्रेस को अपना राष्ट्रपति बनाने से शायद ही कोई रोक सकें। इसी समीकरण के चलते आर्थिक मंत्रालयों में नीति निर्धारण प्रक्रिया रुक सी गयी है और अर्थ व्यवस्था ठप है। फाइलों का अंबार जमने लगा है साउथ ब्लाक में क्योंकि अफसरान कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। प्रणव ​​दादा के राष्ट्रपति भवन में बसेरा डालने की स्थिति में आर्थिक मंत्रालयों में पता नहीं किस तरह का फेरबदल हो जाये, अनिर्णय या यथास्थिति के पीछे असली पेंच यही है। लेकिन मजे की बात तो यह है कि अर्थ व्यवस्था ठप हो जाने से न बाजार को और न कारपोरेट इंडिया को कोई ज्यादा ​​तकलीफ है।उद्योग बंधु विश्वपुत्र प्रणव दादा ने अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी है कि आर्थिक सुधारों के एजंडे को लेकर उद्योग जगत में कोई शक की गुंजाइश रहे।पेट्रोल की दरों में भारी वृद्धि के बाद भारत बंद के असर को नाकाम करते हुए मामूली कटौती से कारपोरेट इंडिया की तबीयत हरी कर दी उन्होंने। सब्सिडी का सफाया होना तय है। गार खत्म। डीटीसी जीएसटी लागू होना तय हो गया है। विनिवेश और निजीकरण अब कोई माई का लाल रोक नहीं सकता और कारपोरेट इंडिया को बेलआउट  जारी रहना है। सारे वित्तीय कानून निर्विरोध पास होने हैं। ऐसे में राष्ट्रपति अगर विश्वपुत्र हों तो खुला बाजार बम बम होना तय है।कारपोरेट नियंत्रत ​​मीडिया भी अर्थ व्यवस्था के ेकदम ठप हो जाने को लेकर कोई बावेला मचाने से परहेज कर रहा है।

देश के गरीब के लिए 28 रुपए रोजाना को पर्याप्त बताने वाले योजना आयोग ने अपने दफ्तर के टॉयलेट पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिए। ये खुलासा एक आरटीआई के जरिए हुआ है।अर्थ व्यवस्था और राजनीति की दिशा दशा समझने के लिए यही एक उदाहरण पर्याप्त होना चाहिए। आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने इस खर्च को जायज और नियमों के मुताबिक करार दिया है।हैरानी तो यह है कि टॉयलेट में दाखिल होने के लिए जो एक्सेस कार्ड सिस्टम लगाया गया है उसकी कीमत 5 लाख रुपए है। इसके अलावा टॉयलेट के बाहर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। टॉयलेट के रेनोवेशन के नाम पर लाखों रुपये पानी की तरह बहाने की खबर आरटीआई एक्टिविस्ट को एक पत्रकार से मिली। पत्रकार से मिली जानकारी के बाद एस.सी. अग्रवाल ने याचिका दायर की। इस विवाद के बाद योजना आयोग ने अपनी सफाई जारी की है। योजना आयोग के स्टेटमेंट में इसे रुटीन खर्चा बताया गया है। योजना आयोग का कहना है कि टॉयलेट की लागत सीपीडब्ल्यूडी ने तय की। उसी ने निर्माण कार्य भी करवाया। सीपीडब्ल्यूडी इस काम को करने के लिए अधिकृत सरकारी संस्था है। टॉयलेट के लिए जितना बजट तय था उसी में काम हुआ है। सभी काम नियमों के तहत हुआ है। ये टॉयलेट सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए बनाए गए हैं। ये बड़े अफसर या फिर सदस्यों के निजी इस्तेमाल के लिए नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मीडिया बिना तथ्यों के जांच के खबर बना रहा है।इस पर तुर्रा यह कि वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने माना है कि मौजूदा हालात साल 2008 के मुकाबले काफी निराशाजनक हैं। उन्होंने कहा कि ग्रोथ को बढ़ाने की तरह महंगाई पर काबू करना भी बड़ा अहम है। प्रणव मुखर्जी के मुताबिक मौजूदा हालात साल 2008 के मुकाबले ज्यादा चिंताजनक हैं। धीमी ग्रोथ, वित्तीय घाटे और बढ़ती महंगाई से चिंता बढ़ी है। साल 2008 में जीडीपी ग्रोथ 9.5 फीसदी पर थी।प्रणव मुखर्जी ने भरोसा दिलाया है कि मौजूदा हालात में घबराने की जरूरत नहीं है। सरकार में चुनौतियों का मुकाबला करने की क्षमता है। वित्तीय घाटे को जीडीपी के 2 फीसदी तक लाने की कोशिश करेंगे।

राष्ट्रपति चुनावों को लेर कांग्रेस और भाजपा नीत गठबंधनों एंव गैर कांग्रेस व गैर भाजपा दलों की ओर से शुरुआती जुमलेबाजी का दौर थमता दिख रहा हैं। अब संभावना है कि तीनों राजनीतिक पक्ष अगले सप्ताह प्रत्याशियों के नामों को लेकर गंभीर मंथन में जुटेंगे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भरोसेमंद और पुराने सहयोगी मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि जुलाई में राष्ट्रपति चुनावों और उसके बाद विधानसभा चुनावों के अगले दौर के बाद सरकार कुछ चुनिंदा सुधारों की शुरुआत कर सकती है। इकॉनमी की मौजूदा हालत से कारोबारी जगत और निवेशकों को हताश होने की जरूरत नहीं है और चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था के फिर पुरानी लय में लौटने की शुरुआत हो सकती है।योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलूवालिया ने कहा कि मौजूदा कारोबारी साल के दूसरे हिस्से में अर्थव्यवस्था का उभार एक बार फिर शुरू होगा। उन्होंने कहा, '2011-12 में दर्ज 6.5 फीसदी ग्रोथ के साथ समस्या यह है कि यह चार तिमाहियों का औसत है। इन चार तिमाहियों में ग्रोथ क्रमश: धीमी पड़ती गई है। तिमाही आधार पर ग्रोथ में टर्नअराउंड आना अभी बाकी है। हमने जो कुछ कदम उठाए हैं, उनका असर जल्द ही तिमाही प्रदर्शन पर दिखने लगेगा। हो सकता है कि 2012-13 में हम 7.5 फीसदी ग्रोथ तक न पहुंचे, लेकिन हम 2011-12 के मुकाबले जरूर बेहतर करेंगे।' पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ 5.3 फीसदी पर पहुंच गई, जिसकी ओर पूरी दुनिया का ध्यान गया है। आम तौर पर इसके लिए सभी पक्षों ने सरकार को जिम्मेदार ठहराया है जो तिमाही दर तिमाही बेहोशी की स्थिति में दिख रही है और कहीं कोई फैसला होता नजर नहीं आ रहा। अहलूवालिया ने ईटी के साथ खास मुलाकात में कहा कि देश को कुछ कठिन फैसले लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'हमें इस समय (राष्ट्रपति चुनाव तक के समय) का इस्तेमाल लोगों को शिक्षित करना चाहिए और जो भी संभव हो, वे कदम उठाने चाहिए।'

4 जून को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के दौरान केंद्र में सत्तारूढ़ यूपीए की ओर से कोई आधिकारिक नाम सामने आ सकता है।कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए पार्टी उम्मीदवार का नाम तय करने के लिए अधिकृत किया है।भारत में राष्ट्रपति चुनाव में लगभग 11 लाख वोट हैं. जीत के लिए लगभग साढ़े पाँच लाख वोट चाहिए. मगर ना तो यूपीए और ना ही एनडीए के पास इतने वोट हैं।भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष नितिन गडकरी सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की। कयास लगाया जा रहा है कि दोनों के बीच आगामी राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में बातचीत हुई होगी। संभावना है कि भाजपा नीत विपक्षी गठबंधन राजग तथा कांग्रेस एवं भाजपा नीत गठबंधनों से अलग रहे दलों का तीसरा राजनीतिक पक्ष इसके बाद ही इस बारे में अपना रुख तय करेंगे।गौरतलब है कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का कार्यकाल खत्म होने में अब 60 दिन से भी कम समय शेष हैं और चुनाव आयोग अब किसी भी दिन इस चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर सकता हैं। चुनावों सुगबुगाहट में मुखर्जी, कलाम तथा संगमा के अलावा उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी का नाम लगभग समगीति से चलता रहा है।चर्चाओं के पहले चरण में सबसे प्रबल तरीके से मुखर्जी का नाम सामने आया और आलम यह था कि संसद के बजट सत्र में 2012-13 के आम बजट तथा विनियोग विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा नेता यशवंत सिंह सहित पक्ष और विपक्ष के कई नेताओं ने उसकी इस संभावित पदोन्नति पर उन्हें अग्रिम बधाई तक दे डाली थी।हालांकि यूपीए में शामिल तृणमूल कांग्रेस मुखर्जी की उम्मीदवारी से सहमत नहीं है। इस पद के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पसंदीदा लोगों की सूची में लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, एपीजे अब्दुल कलाम और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी शामिल हैं।

माना जा रहा है कि आरबीआई जल्द ही प्रमुख ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। सेंसेक्स में शामिल सभी 30 शेयरों में तेजी का रुख रहा। मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संकेत और सरकार द्वारा अहम फैसले लिए जाने की उम्मीद ने बाजार में जोश भर दिया।यूरोजोन पर चिंता बढ़ने से घरेलू बाजार भी ऊपरी स्तरों से फिसले थे। लेकिन, बाजार जल्द संभले और सेंसेक्स-निफ्टी में 2 फीसदी से ज्यादा की तेजी आई।जीडीपी आंकड़ों के झटके से बाजार उबर नहीं पा रहे हैं। कोर सेक्टर की रफ्तार धीमी पड़ने से वित्त वर्ष 2013 में जीडीपी दर और भी कम रहने के आसार लग रहे हैं। उद्योग की मांग है कि अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए कर्ज सस्ता किया जाए। सेंसेक्स 434 अंक चढ़कर 16454 और निफ्टी 138 अंक चढ़कर 4997 पर बंद हुए।एशियाई बाजारों में तेजी की वजह से घरेलू बाजार 0.5 फीसदी की मजबूती पर खुले। शुरुआती कारोबार में ही बाजारों ने रफ्तार पकड़ ली और निफ्टी ने 4900 का अहम स्तर पार कर लिया।इंफ्रास्ट्रक्चर पर प्रधानमंत्री की बैठक से बाजार में सरकार की ओर से ठोस कदम उठाए जाने की उम्मीद जगी है। साथ ही, डीजल कारों पर एक्साइज ड्यूटी मामले पर ऑटो इंडस्ट्री और वित्त मंत्रालय की बैठक होने वाली है।मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संकेत और सरकार द्वारा अहम फैसले लिए जाने की उम्मीद ने बाजार में जोश भर दिया। सेंसेक्स 434 अंक चढ़कर 16454 और निफ्टी 138 अंक चढ़कर 4997 पर बंद हुए।एशियाई बाजारों में तेजी की वजह से घरेलू बाजार 0.5 फीसदी की मजबूती पर खुले। शुरुआती कारोबार में ही बाजारों ने रफ्तार पकड़ ली और निफ्टी ने 4900 का अहम स्तर पार कर लिया।इंफ्रास्ट्रक्चर पर प्रधानमंत्री की बैठक से बाजार में सरकार की ओर से ठोस कदम उठाए जाने की उम्मीद जगी है। साथ ही, डीजल कारों पर एक्साइज ड्यूटी मामले पर ऑटो इंडस्ट्री और वित्त मंत्रालय की बैठक होने वाली है।ऑटो, कैपिटल गुड्स और पावर शेयरों में जोरदार तेजी की वजह से बाजार में मजबूती लगातार बढ़ती नजर आई। यूरोपीय बाजारों के भी मजबूती पर खुलने से सेंसेक्स 300 अंक चढ़ा और निफ्टी 4950 के ऊपर चला गया।ऑटो, कैपिटल गुड्स और पावर शेयरों में जोरदार तेजी की वजह से बाजार में मजबूती लगातार बढ़ती नजर आई। यूरोपीय बाजारों के भी मजबूती पर खुलने से सेंसेक्स 300 अंक चढ़ा और निफ्टी 4950 के ऊपर चला गया।अब बाजार की नजर 18 जून को होने वाली आरबीआई की मिड टर्म क्रेडिट पॉलिसी बैठक पर है। बाजार को उम्मीद है कि आरबीआई रेपो रेट में कटौती कर सकता है। लेकिन, आरबीआई के लिए महंगाई अब भी बड़ा सिरदर्द बनी हुई है।अब बाजार की नजर 18 जून को होने वाली आरबीआई की मिड टर्म क्रेडिट पॉलिसी बैठक पर है। बाजार को उम्मीद है कि आरबीआई रेपो रेट में कटौती कर सकता है। लेकिन, आरबीआई के लिए महंगाई अब भी बड़ा सिरदर्द बनी हुई है।

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर, सुबीर गोकर्ण का कहना है कि विकास में उम्मीद से ज्यादा गिरावट आई है। जीडीपी दर घटने का महंगाई पर कितना असर पड़ता है, ये देखना होगा।

सुबीर गोकर्ण के मुताबिक अप्रैल में महंगाई दर काफी ऊंचे स्तर पर रही थी और मई के आंकड़ों का इंतजार है। साथ ही, वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ी दिक्कतें इतनी जल्द खत्म नहीं होने वाली हैं।

सुबीर गोकर्ण का मानना है कि वित्तीय घाटे को कम करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। रुपये में स्थिरता लाने के लिए आरबीआई पूरी कोशिश कर रहा है।

इस बीच समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार डिम्पल यादव की राह में रोड़ा बनने की भाजपा की चाहत परवान नहीं चढ़ सकी। आनन-फानन में कन्नौज लोकसभा सीट से उपचुनाव में प्रत्याशी घोषित किए गए जगदेव सिंह यादव बुधवार को नामांकन दाखिल करने के अंतिम समय तक अपना नामांकन नहीं भर सके। कांग्रेस और बसपा द्वारा भी डिम्पल यादव के समाने कोई प्रत्याशी नहीं उतारे जाने से उन्हें वाक ऑवर मिलना तय माना जा रहा है। राष्ट्रपति चुनाव की यह मोड़ घुमाव स्थिति है। क्षत्रपों ने कांग्रेस का विरोध जो किया है , वह अपने अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए। इससे कांग्रेस को ज्यादा असर नहीं पड़ा।क्षत्रपों से निपटने की कला प्रणव दाद से बेहतर किसे आती है ममता दीदी को पटाये रखने में ुनकी दक्षता की तो आखिर दाद देनी पड़ेगी।न्यायपपालिका और केंद्रीय एजंसियां लालू यादव, मायावती.करुणानिधि, मायावती, जयललिता, शिबू सोरेन को साधने के लिए काफी है।  पर क्षत्रपों को पटाने में संघ परिवार के पास हिंदुत्व के सिवाय कोई अचूक रामवाण नहीं है। पर प्रधानमंत्रित्व की दावेदारी को लेकर शीर्ष नेताओं के घमासान और नरेंद्र मोदी की बढ़ती दावेदारी से भाजपा और समूचे संघ परिवार में ऐसा घमासान मचा हुआ है कि क्षत्रपों को लगाम कसने की फुरसत कहां है, अपना घर संभालने में ही बेबस हैं हिंदुत्व के थोक कारोबारी। निकट भविष्य में कांग्रेस के लिए कोई बड़ी आफत हिंदुत्व लाबी खड़ी कर पायेगी और बाजार इसकी इजाजत देगा, इसमें शक की गुंजाइश है। डिंपल मामले में भाजपा का खोकलापन उजागर हो ही गया।आखिर कारपोरेट इंडिया को किस बात की तकलीफ हो सकती है कांग्रेस से नीति निर्दारण में तो १९९१ से उसीकी चल रही है। भाजपा को मौका देकर देखा है, अब क्या देखना है? कम से कम आडवाणी से तो प्रणव दादा उसके लिए ज्यादा मुनाफावसूली का सबब बने हुए हैं।मनमोहन से बाजार को तकलीफ ही कब थी?

अब संकटग्रस्त विमानन उद्योग को ही लीजिये। एअर इंडिया को बेचने की पूरी तैयारी है। भूखों मरते कर्मचारियों की जायज मांगों की कोई​ ​ सुनवाई नहीं हो रही है। जीवन बीमा का ऐसी तैसी हो गयी। सारे बंदर बिकने को तैयार हैं। बेंकों को कारपोरेट इंडिया को पूंजी जुटाने का काम सौंपा गया है।एसबीआई टारगेट पर है। तेल कंपनियों को रिलायंस और दूसरी कंपनियों के आगे तरजीह दी जा रही है। कोल इंडिया को निजी बिजली कंपनियों का गुलाम बना दिया गया है।टेलीकीम सेक्टर का हाल तो स्पेक्ट्रम घोटाले से जगजाहिर हो गया है। बाजार में कालाधन घूमाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं है। प्रोमोटरों और बिल्डरों की चांदी है। ऐसे में  एयर इंडिया अगले कुछ महीनों में 100 नए पायलटों की नियुक्ति करेगी। हड़ताली पायलटों के लिए संभावनाओं के करीब-करीब सभी द्वार बंद करते हुए नागर विमानन मंत्री अजित सिंह ने बुधवार को बात कही। बर्खास्त पायलटों से उन्होंने कहा कि वे नए सिरे से आवेदन कर सकते हैं। बर्खास्त किए गए 101 पायलटों की जगह नए पायलटों की नियुक्ति का संकेत देते हुए सिंह ने कहा कि 90 पायलटों का प्रशिक्षण चल रहा है और वे अगस्त में उड़ान कार्य के लिए उपलब्ध होंगे। इंडियन पायलट्स गिल्ड (आईपीजी) के नेतृत्व में चल रही महीने भर लंबी हड़ताल के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं जिन नई उड़ानों के परिचालन की हमने योजना बनाई है उनके लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन - पायलट और इंजिनियर- हों।'

दूसरी ओर भारतीय उपमहाद्वीप पर अमेरिकी हथियार उद्योग का शिकंजा कसता जा रहा है।अमरीकी रक्षा मंत्री लियोन पनेटा ने अपने पहले भारत दौरे के आखिरी दिन बुधवार को भारतीय रक्षा मंत्री एके एंटनी से मुलाकात की। अमरीकी रक्षा मंत्री ने अफगानिस्तान समेत एशिया में सुरक्षा मुहैया कराने में भारत की भूमिका के महत्व पर जोर दिया है। कहा जा रहा है कि  पनेटा के इस भारत दौरे का उद्देश्य एशिया पर केंद्रित अमरीका की नई रणनीति पर चर्चा करना है,लेकिन हकीकत कुछ और है। भारत अमेरिकी परमाणु संधि और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका और इजराइल के साथ पार्टनरशिप की कीनमत भारत को चुकानी है संकटग्रस्त अमेरिकी युद्ध गृहयुद्द व्यवस्था को संकट से उबारकर। चीन और पाकिस्तान के साथ छायायुद्ध और राष्रीय सुरक्षा , माओवाद के बहाने आंतरिक सुरक्षा के नाम अमेरिकी हथियार कंपनियों से रक्षा सौदा करके। पनेटा इसी मकसद को ्ंजाम देने भारत आये हैं। सरकार और नीति निर्धारकों में तो अमेरिकापरस्तों की लंबी कतार है ही।फिर ऐसे सौदों से भारतीय रक्षा उद्योग को तो आखिर चवन्नी अठन्नी मिलनी ही है!जिस फिलीस्तीन मसले पर कभी इंदिरा गांधी के जमाने में सबसे ज्यादा मुखर रहा है  भारत, उस मसले पर गजब की खामोसी ही नहीं है, बल्कि आंतरिक सुऱक्षा तक सीआईए और मोसाद के हवाले हैं।ऐसे में विश्व पुत्र से ज्यादा काबिल राष्ट्रपति कौन हो सकते हैं, जो समाजवादी इंदिरा के वित्तमंत्री रहे हैं और खुला बाजार के मसीहा भी बनकर अवतरित हैं!भारत के दौरे पर पहुंचे अमेरिकी रक्षा मंत्री लियॉन पनेटा ने मंगलवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन से मुलाकात की। माना जा रहा है कि मुलाकात के दौरान सैन्य रिश्तों को मजबूत करने के उपायों और भारतीय उपमहाद्वीप में सुरक्षा के हालात पर बातचीत हुई।अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पनेटा की शुरू हुई भारत यात्रा पर चीन चौकन्ना है और उसने अमेरिका को आगाह किया है कि वह उसके खिलाफ राजनीतिक एवं सैनिक लामबंदी से बाज आए।पनेटा चीन के आसपास के देशों की यात्रा कर नई दिल्ली पहुंचे हैं । अमेरिकी रक्षा सूत्रों के अनुसार पनेटा की यात्रा का मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान में भारत को आर्थिक भागीदारी के लिए राजी करना और रक्षा सौदों को आगे बढ़ाना है। पनेटा फिलीपींस वियतनाम और सिंगापुर की यात्रा के बाद नई दिल्ली पहुंचे हैं। चीन सरकार को पनेटा की भारत यात्रा नागवार गुजरी है सरकारी समाचार पत्र पीपुल्स डेली ने चेतावनी दी है कि अमेरिका की बढ़ती सक्रियता से एशिया की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। समाचार पत्र ने अमेरिका के इस एलान को खारिज किया कि वह चीन को घेरने की कोशिश नहीं कर रहा है। पीपुल्स डेली के अनुसार अमेरिका एशिया और प्रशांत क्षेत्र में जो मंसूबे रखता है। वह सबके सामने हैं। इससे एशिया के देशों में वैमनस्य बढ़ेगा।चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लियु वीमिन ने पनेटा की यात्रा के बारे में कहा क अमेरिका को चीन के क्षेत्रीय हितों को ध्यान में रखना चाहिए। प्रवक्ता ने कहा कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी में बढोतरी उचित नहीं है।

रालोद प्रमुख और नागर विमानन मंत्री अजित सिंह ने कहा कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद के 'योग्य' उम्मीदवार हैं. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अन्य के बारे में भी उनके विचार उतने ही सकारात्मक हैं।सिंह ने गृह मंत्री पी चिदंबरम के साथ बैठक के बाद कहा, 'वित्त मंत्री राष्ट्रपति के लिए योग्य हैं. उनके बारे में मेरे विचार सकारात्मक हैं. लेकिन अन्य के बारे में भी मेरे विचार सकारात्मक हैं।'वह शीर्ष संवैधानिक पद के चुनाव और उसके लिए मुखर्जी की उम्मीदवारी के बारे में पूछे गये सवाल का जवाब दे रहे थे।सिंह ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संप्रग सहयोगियों के साथ विचार विमर्श करके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के बारे में विचार करेंगी।रालोद प्रमुख ने कहा कि उन्होंने आगामी राष्ट्रपति चुनाव और सरकारी नौकरियों में जाट समुदाय को ओबीसी का दर्जा दिलवाने के बारे में गृह मंत्री से बातचीत की।

नागर विमानन मंत्री ने कहा कि वह विमानन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बारे में विचार विमर्श के लिए शीघ्र ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगे।


वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने विदेश व्यापार नीति 2012-13 का ऐलान कर दिया है।आनंद शर्मा के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संकट के चलते ये साल चुनौती भरा साबित होगा। डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी चिंता का विषय बन गया है। मंदी के पहले जैसी निर्यात में बढ़ोतरी आने में वक्त लगेगा।वित्त वर्ष 2012 में निर्यात 20 फीसदी बढ़ा है। इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट्स 6000 करोड़ रुपये से ज्यादा के रहे थे। सरकार ने 2014 तक निर्यात दोगुना करके 50000 करोड़ रुपये करने का लक्ष्य रखा है।

आनंद शर्मा का कहना है कि नई व्यापार नीति के जरिए ट्रांजैक्शन कॉस्ट कम करने पर जोर दिया जाएगा। नीति का उद्देश्य व्यापार घाटा कम करना है।सरकार की व्यापार करार पर यूरोजोन से बातचीत जारी है। साथ ही, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा के साथ ही व्यापार करार करने पर चर्चा की जा रही है।

नई नीति के तहत सरकार ने हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, कारपेट निर्यात के लिए 2 फीसदी ब्याज छूट 1 साल और बढ़ाई है।इसके अलावा रेडीमेड कपड़े, खिलौनों के निर्यात पर भी 2 फीसदी ब्याज छूट की स्कीम लागू होगी। प्रोसेस्ड फार्म प्रोडक्ट्स के एक्सपोर्ट पर भी ब्याज छूट दी जाएगी।सरकार ने कैपिटल गुड्स एक्सपोर्ट पर जीरो ड्यूटी ईपीसीजी स्कीम की मियाद 1 साल बढ़ाकर मार्च 2013 की है। अमेरिका और यूरोजोन देशों को किए जाने वाले कपड़ों के निर्यात पर छूट 31 मार्च तक बढ़ाई गई है।

सरकार का कहना है कि उत्तरपूर्वी राज्यों से निर्यात को बढ़ावा दिया जाएगा। एसईजेड के लिए नई गाइडलाइंस जारी की जाएगी। साथ ही, ईपीसीजी स्कीम में और आइटम जोड़े जाएंगे।

फिक्की का कहना है कि सिर्फ व्यापार नीति के जरिए निर्यात में पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं की जा सकती। दूसरे देशों से मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि भारत के निर्यातकों को जरूरी बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं।

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