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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, February 17, 2013

कंगाली में उड़नखटोला

कंगाली में उड़नखटोला


Sunday, 17 February 2013 11:51

तवलीन सिंह 
जनसत्ता 17 फरवरी, 2013: क्या आप मुझे बता सकते हैं कि वीवीआइपी हेलिकॉप्टर क्या होता है? इस वाहन पर सवार होने का किसे अधिकार होगा? और भारत देश की गरीब जनता को इस वीवीआइपी सवारी पर क्यों छत्तीस सौ करोड़ रुपए खर्च करने की जरूरत है? इन सवालों का मकसद यह न समझें कि मुझे गर्व नहीं महसूस होता इस बात पर कि इस नए रक्षा घोटाले की खबर भारत में पहले 'इंडियन एक्सप्रेस' में छपी। न कहना चाहती हूं कि ऐसे घोटालों को गंभीरता से नहीं लिया जाए, लेकिन क्योंकि दिल्ली में रहती हूं सो आश्चर्य नहीं होता जब इस तरह के घोटाले सामने आते हैं। यह इसलिए कि राजनेताओं और आला अधिकारियों के हथियार व्यापारियों से संबंध मैंने करीब से देखे हैं। देखा है कई बार विदेशी हथियार व्यापारियों का असर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में। 
सो, मेरी नजरों में सबसे दिलचस्प बात इस नए रक्षा घोटाले में यह है कि जिन हेलिकॉप्टरों को भारत खरीदने जा रहा था इटली से, वे खास बनाए गए हैं उन लोगों के लिए, जिन्हें हम इस देश में वीवीआइपी होने का दर्जा देते हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि क्यों इन वीवीआइपी लोगों को जरूरत है इतनी महंगी सवारी की, जब सियाचिन में हमारे जवानों को बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। इतना कठिन है उनका जीवन उस बर्फीले रेगिस्तान में कि वहां लंबा अरसा गुजारने के बाद कइयों की मानसिक हालत बिगड़ जाती है। क्या पहले देश के बहादुर रक्षकों के बारे में नहीं सोचना चाहिए?
एक फौजी पिता की बेटी होने के नाते मुझे तकलीफ होती है कि हमें अपने बहादुर सिपाहियों की याद सिर्फ युद्ध के समय आती है। तब मालूम पड़ता है कि हमारे जवानों के पास न गरम कपड़े हैं, न वे आधुनिक हथियार जो दुश्मन के पास हैं। वीवीआइपी हेलिकॉप्टरों को खरीदने की क्या जरूरत है, जब हम अपने जवानों की बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी कर सकते हैं? 
शायद ताज्जुब होगा आपको यह जान कर कि जिस वीवीआइपी सभ्यता को हम भारत में देखते हैं वह किसी दूसरे लोकतांत्रिक मुल्क में नहीं है। हमने इस वीवीआइपी परंपरा को पूर्व सोवियत संघ और चीन की नकल करके कायम किया था। इन दोनों देशों में मार्क्सवादी क्रांति आने के बाद माओ और स्टालिन जैसे नेताओं ने पूर्व सम्राटों के महलों में रहना शुरू कर दिया था और उनकी शाही आदतें भी डाल ली थीं। जनता चाहे भूखों मरे या बिना आवास के गुजारा करे इन इनकलाबी नेताओं को किसी किस्म की कमी नहीं महसूस होती थी। 

हमारे भारत महान में इतना बुरा हाल तो नहीं है, लेकिन फिर भी बुरा है अगर आप याद में रखें कि जहां इस देश का आदमी रोटी, कपड़ा, मकान की अभी तक मांगें करता है वहां जनता के पैसों से हमारे राजनेता आलीशान बंगलों में रहते हैं और सस्ते दामों पर उन्हें मिलती हैं बिजली, पानी, टेलीफोन जैसी सुविधाएं।
यह परंपरा 1947 से चलती आ रही है और किसी ने चूंकि विरोध नहीं किया है डट कर इसका, सो अपने वीवीआइपी राजनेताओं ने अपनी सुविधाओं में धीरे-धीरे वृद्धि करनी शुरू कर दी। दिल्ली में स्कूलों की इतनी कमी है कि घूस देकर आम माता-पिता अपने बच्चों का दाखिला दिलाते हैं। इस कमी को पूरा करने के बदले हमारे चतुर सरकारी अधिकारियों ने क्या किया? अपने बच्चों के लिए संस्कृति नाम का इतना खास स्कूल बनाया है कि यहां सिर्फ उन बच्चों को दाखिला मिलता है जिनके माता-पिता वीवीआइपी श्रेणी में गिने जाते हैं। रही स्वास्थ्य सेवाओं की बात, तो जहां इस देश के गरीब लोग मजबूर हैं प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को, वहीं सरकारी अस्पतालों में वीवीआइपी लोगों के लिए बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। यह कैसा लोकतंत्र है?
सुरक्षा मामलों में हमारा और वीवीआइपी लोगों में अंतर इतना है कि जहां 761 आम नागरिकों के लिए तैनात है एक पुलिसकर्मी वहां 14,842 लोगों की हिफाजत करते हैं 47,557 पुलिसकर्मी। यानी एक वीवीआइपी के लिए तीन पुलिस वाले। यह कैसा लोकतंत्र है? विनम्रता से मैं अर्ज करती हूं कि यह लोकतंत्र नहीं, लोकतंत्र के भेस में सामंतशाही है। मेरा मानना है कि जितने ताकतवर हमारे वीवीआइपी राजनेता और आला अधिकारी हैं आज, उतने ताकतवर तो राजा-महाराजा भी न हुए होंगे कभी। 
इस बात को वे हमसे अच्छा जानते हैं सो खैरात बांटने में लगे रहते हैं, ताकि जनता में इनकलाब की भावना पैदा न हो। सो, जहां अपने लिए खरीदे जा रहे हैं वीवीआइपी हेलिकॉप्टर वहां जनता के लिए इंतजाम किया जा रहा है सस्ते अनाज का। अनाज भूखी जनता तक पहुंचेगा तो नहीं, क्योंकि उसे बांटने का प्रबंध किया जाएगा उस टूटी वितरण प्रणाली से जो दशकों से नाकाम है, लेकिन हमारे वीवीआइपी शासकों को खैरात बांटने का चैन मिलेगा। इतने बड़े पैमाने पर अनाज बांटने का प्रबंध है खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत कि संभव है कि कंगाल हो जाएगी देश की अर्थव्यवस्था। अच्छा तो नहीं होगा, लेकिन अगर ऐसी नौबत आती है तो कम से कम वीवीआइपी हेलिकॉप्टरों को खरीदने की गलती करने से तो हम बच जाएंगे।

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