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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, February 2, 2013

बयान के पक्ष में आंकड़ा पेश कीजिये नंदी साहब

बयान के पक्ष में आंकड़ा पेश कीजिये नंदी साहब


समझना कठिन है कि आशीष नंदी का बेचैन करने वाला बयान आंकडों की बुनियाद पर है या यह केवल खालिस पूर्वाग्रही नजरिया हैं? अगर उनके पास तथ्यात्मक आंकडें हैं तो उसे देश के सामने रखना चाहिए. अगर नहीं हैं तो बयान समझ पर सवाल खड़ा करने वाला है... 

अरविंद जयतिलक

भ्रष्टाचार के लिए दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को जिम्मेदार बताकर समाजशास्त्री आशीष नंदी ने जयपुर साहित्य सम्मेलन में वितंडा खड़ा कर दिया. तर्क को प्रमाणित करने के लिए कहा पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार सलिए कम है कि वहां पिछले एक सौ साल में दलितों और पिछडों को सत्ता में आने का मौका नहीं मिला. चुभने वाले नंदी के बयान से देश विचलित और हतप्रभ है.

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समझना कठिन है कि उनका बेचैन करने वाला बयान प्रमाणिक आंकडों की बुनियाद पर है या यह केवल खालिस पूर्वाग्रही नजरिया हैं? बेशक अगर उनके पास तथ्यात्मक आंकडें हैं तो उसे देश के सामने रखना चाहिए. अगर नहीं तो उनका बयान देश व समाज को आहत करने के साथ ही उनकी ज्ञान और समझ पर भी सवाल खड़ा करने वाला है. 

निश्चित रुप से एक लोकतांत्रिक समाज में सभी को किसी भी मसले पर अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है. लेकिन उसकी एकांगी व्याख्या नहीं होनी चाहिए. इससे समाज में गलत संदेश जाता है. समाज आहत होता है. नंदी ने भ्रष्टाचार के कारणों की कुछ ऐसी ही व्याख्या की है. उचित तो यह रहा होता कि वे दलितों और पिछडों कोभ्रष्टाचारी बताने से पहले इस तथ्य पर भी फोकस डालते कि वंचित वर्गों की राजसत्ता की निकटता से पहले देश में हुए भ्रष्टाचार और घोटालों के लिए कौन जिम्मेदार रहा है? 

लेकिन उन्होंने इस पर फोकस डालना जरुरी नहीं समझा. जो यह साबित करता है कि उनका दृष्टिकोण पूर्वाग्रह से लैस था. हालांकि अपने अनर्गल बयान से उपजे आक्रोश और आलोचना से विचलित नंदी ने सफाई पेश कर दी है कि उनके कहने का वह मतलब नहीं था, जो अर्थ निकाला जा रहा है. वह यह कहना चाहते थे कि अमीर लोगों के पास अमीर होने के कई तरीके होते हैं. इन तरीकों से किया गया भ्रष्टाचार आसानी से छुप जाता है, जबकि दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग द्वारा की गयी छोटी सी भी गलती बड़ी आसानी से लोगों के सामने आ जाती है. 

नंदी के चतुराई भरी सफाई से दलित-पिछड़ा समाज कितना मुतमईन हुआ होगा यह तो वही जानें लेकिन उनके बयान ने कई और गंभीर सवाल खड़ा कर दिए हैं. मसलन उन्होंने यह तर्क दिया है कि प0 बंगाल में भ्रष्टाचार इसलिए कम है कि क्योंकि दशकों तक पिछड़े और दलितों की सत्ता में भागीदारी नहीं मिली. या यों कह ले कि वे यह समझाना चाहते हैं कि अगर पिछड़े और दलितों की सत्ता में भागीदारी बनी होती तो यह राज्य भी भ्रष्टाचार की चपेट में होता. सवाल यह उठता है कि क्या समाजशास्त्री आशीष नंदी पिछड़े और दलितों को लूटेरा औरभ्रष्टाचारी समझते हैं? 

बहरहाल उनके कहने का मकसद जो कुछ भी हो पर ध्यान देने योग्य बात यह है अगर पश्चिम बंगाल भ्रष्टाचार मुक्त राज्य है तो वह देश के बीमारु राज्यों की कतार में क्यों खड़ा है? राज्य के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय गुजरात, हरियाणा और पंजाब से कम क्यों है? गरीबी व भुखमरी कम क्यों नहीं हो रही है? विकास दर दहाई का आंकड़ा क्यों नहीं छू रहा है? सवाल यह भी कि जब राज्य में इतना ही सु'ाासन रहा है तो फिर नक्सली संगठनों का जन्म क्यों हुआ? कल-कारखाने क्यों उजड़ गए? 

क्या नंदी बताएंगे कि क्या इसके लिए भी पिछड़ा और दलित समाज ही जिम्मेदार रहा है? सच तो यह है कि पश्चिम बंगाल सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा केंद्र रहा है. अगर राज्य सचमुच निरपेक्ष रहा होता तो पिछड़े और दलितों को राजसत्ता से एक लंबे अरसे तक दूर नहीं रखा जाता. उन्हें उनके राजनैतिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाता? लेकिन ऐसा ही हुआ. 

अब नंदी को स्पष्ट करना चाहिए कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? कांग्रेस या वामपंथी? सवाल इन दोनों से ही इसलिए कि यहां सर्वाधिक शासन इन्हीं दोनों दलों ने किया है. क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि सत्ता की मुख्यधारा में पिछड़े और दलितों की भी भागीदारी सुनि'िचत करें? लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक और सामाजिक कर्तव्यों का समुचित निर्वहन नहीं किया. तो फिर यह मानने में क्या हर्ज है कि इन दोनों दलों का रवैया भी आशीष नंदी के बयानों की तरह कम घातक नहीं है? अब उचित यह होगा कि नंदी समेत कांग्रेस और वामपंथी सभी ही अपनी ऐतिहासिक नाकामी पर पश्चाताप करें और माफी मांगे. 

जहां तक राजसत्ता में पिछड़े और दलितों की नुमाइंदगी का सवाल है तो उनका प्रतिनिधित्व मंडल कमीशनके बाद मजबूत हुआ. लेकिन यह मान बैठना कि उनकी नुमाइंदगी के कारण ही भ्रष्टाचार और घोटालों को बढ़ावा मिला है यह एक खतरनाक निष्कर्ष है. सच तो यह है कि देश में उदारीकरण के लागू होने के बाद ही भ्रष्टाचार के पांव में पहिए लगे. राजसत्ता के निकट जो भी रहा, चाहे वह किसी भी समुदाय का हो देश को खोखला करने का काम किया. अब यह जुगाली करना कि भ्रष्टाचार के लिए अमुक वर्ग ज्यादा जिम्मेदार है और अमुक वर्ग कम यह एक खतरनाक खेल है. इस पर विराम लगना चाहिए.

arvind -aiteelakअरविंद जयतिलक राजनीतिक टिप्पणीकार हैं.

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