Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, June 28, 2013

सपना जीएम मुक्त भारत का

सपना जीएम मुक्त भारत का


डॉ. सीमा जावेद 

 

Arvind Kejriwal of AAP part with Sitaram Yechury, Politburo member and leader of CPI (M) at the protest held to launch the campaign at Jantar Mantar was attended by hundreds of people from all walks of life. All of them joined hands in solidarity and vowed to fight this invasion of Genetically Modified (GM) crops and its proponents like Monsanto, the American Multinational seed corporation, into India's food and farming.

Photo courtesy – Greenpeace/ Sudhanshu Malhotra

पिछले संसद सत्र के दौरान 22 अप्रैल 2013 को वाम दलों के कड़े विरोध के बावजूद जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण (बीआरएआई)विधेयक पेश हुआ। हालाँकि बीआरएआई विधेयक का समाज के विभिन्न हिस्‍सों एवम् जनप्रतिनिधियों, सांसदों द्वारा 11वीं लोकसभा में लगातार विरोध किया जा रहा है। बीआरएआई विधेयक इसलिये विवादास्‍पद है क्‍योंकि यह भारत में जीएम फसलों के लिये एक एकल खिड़की तन्त्र और देश में जीएम फसलों के विरोध गुमराह करने के लिये संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा एक प्रयास है। जीएम फसलों के मानव स्वास्थ्य, जैव विविधता और हमारी खेती पर प्रतिकूल प्रभावों के वैज्ञानिक प्रमाण लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हाल ही में बायोटेक्नॉलाजी रेगुलेट्री एथारिटी ऑफ इण्डिया बिल 2013 (बराई बिल) को वापस लेने की माँग को ले कर मजदूर किसान शक्ति संगठन, पर्यावरण संरक्षण के लिये कार्यरत गैर सरकारी संगठन ग्रीन पीस ने मजदूर किसान शक्ति संगठन तथ इण्डिया अगेन्स्ट करप्शन, भारत स्वाभिमान ट्रस्ट सहित विभिन्न सामाजिक और पर्यावरण आन्दोलनों के कार्यकर्ताओं ने जंतर मंतर पर इसके विरोध में एक बार फिर जोरदार प्रदर्शन करके भारत को जीएम मुक्‍त बनाने और देश में आनुवांशिक रूप से संवर्धित फसलों पर रोक लगाने की माँग की गयी।

गौरतलब है कि बीटी कॉटन अकेली ऐसी जीएम फसल है जिसे देश में व्यावसायिक रूप से मँजूरी मिली हुयी है। किसानों पर इसके प्रभाव को लेकर तमाम तरह के विवाद जैसे कुल लाभजैव विविधताखेतिहर मजदूरों का स्वास्थ्यजानवर आदि उठे हैं और जिनका कोई भी संतोषजनक जबाव भारत में मौजूद जीएम रेग्यूलेटरी सिस्टम नहीं दे सका। बीटी बैगन भी मँजूरी के लिये आया लेकिन समाज के हर कोने से उठे चिन्ताजनक सवालों के चलते उसे रोकना पड़ा।

इस समय 56 जीएम फसलों की करीब 238 किस्मों पर देश के विभिन्न निजी और सरकारी संस्थानों में विभिन्न चरणों में परीक्षण चल रहे हैं। इसमें 41 खाद्य फसलों की 169 किस्में भी शामिल हैं। सर्वाधिक चिन्ताजनक तथ्य यह है कि कम से कम दस अलग-अलग फसलों पर स्थलीय परीक्षण पहले ही पूरे हो चुके हैं लेकिन जनता को विश्वास में लेते हुये एक भी ऐसा अध्ययन नहीं किया गया जो इन फसलों से मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव और पर्यावरण की सुरक्षा जैसे मुद्दों को स्थापित करता हो। एक अनुमान के मुताबिक जीएम फसलों की 91 फीसदी पैदावार दुनिया के तीन देशों में होती है-अमेरिकाब्राजील और अर्जेन्टीना। जबकि मोनसेंटो लगातार दुनिया भर के देशों में फैल रहा है। कई देश जीएम खाद्य पदार्थों पर पाबन्दी पहले ही लगा चुके हैं। कई यूरोपियन देश नीतिगत स्तर पर जीएम फसलों पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिये एक संघ में शामिल हो गये हैं। फ्रांस, हंगरी, इटली, ग्रीस, आस्ट्रिया और पोलैण्ड पहले ही मन810 को प्रतिबन्धित कर चुके हैं जो यूरोप में व्यावसायिक रूप में पैदा की जाने वाली मक्के की अकेली किस्म थी। मई, 2008 में फ्रांस की संसद ने उस विधेयक को खारिज कर दिया था जो जीनीय रूप से तैयार की गयी फसलों को पैदा करने की इजाजत से सम्बन्धित था। जीएम मुक्त देश स्विटजरलैंड ने अपने देश में जीएम फसलों पर रोक सन् 2013 तक के लिये बढा दी है। स्विटजरलैंड के सभी 26 कैंटोन्स यानी प्रशासनिक क्षेत्रों ने एकमत से जीई फसलों और जानवरों के खिलाफ वोट दिया।

मैंडोसिनो, कैलीफोर्निया संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला देश है जिसने सन् 2004 में जीएमओ के उत्पादन पर पाबन्दी लगा दी थी। बाद में उसके साथ ट्रीनिटी और मेरीन देशों ने भी हाथ मिलाया।

डॉ. सीमा जावेद, Dr. Seema javed,

डॉ. सीमा जावेद, लेखिका पर्यावरणविद् हैं।

सन् 2003 से आस्ट्रेलिया के कई राज्यों ने जीएम खाद्य फसलों की पैदावार पर रोक लगा दी। वेस्टर्न आस्ट्रेलियन सरकार ने जीएम फसलों (खाद्य और फाइवर खासतौर से मक्‍का और कपास) पर सन् 2008 से अगले चार साल के लिये प्रतिबन्ध और बढा दिया। न केवल विकसित देश जो सावधानी बरत रहे हैं बल्किअपनी जनता के हितों को लेकर चिन्तित थाईलैंड और वियतनाम जो दुनिया के सबसे बडे चावल उत्पादक देश हैंदोनों ने जीनीय रूप से परिष्कृत चावल को खुले में डालने तक पर पाबन्दी लगा दी है।

 

ज्ञात हो कि जेनेटिक बदलाव प्रकृति का काम है और प्राकृतिक ढँग से इसमें कालक्रम के अनुसार परिवर्तन स्वयं होता रहता है पर कृत्रिम ढँग से अगर ऐसा इंसान द्वारा किया जाएगा तो उससे खतरे उत्पन्न होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

आनुवांशिकी इंजीनियरिंग (जीई) की अनिश्चितता और अपरिवर्तनीयता ने इस प्रौद्योगिकी पर बहुत सारे सवाल खड़े कर दिये हैं। इससे भी आगे, विभिन्न अध्ययनों ने यह पाया है कि जीई फसलें पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं और इससे मानव स्वास्थ्य को संकट की आशँका है। इन सबके परिणामस्वरूप, इस खतरनाक प्रौद्योगिकी को अमल में लाने की आवश्यकता पर दुनिया भर में विवाद खड़ा हो गया है। जीई फसलें जिन चीजों का प्रतिनिधित्व करती हैं वे हमारी जैवविविधता के विनाश और हमारे भोजन एवम् खेती पर निगमों के बढ़ते नियन्त्रण को कायम रखती हैं।

यह अभियान हमारे देश में जीएम फसलों के प्रवेश के विरुद्ध एक साहसिक मोर्चा तैयार करने के लिये किसानों, उपभोक्ताओं, व्यापारियों, वैज्ञानिकों एवम् अन्य नागरिक समाज संगठनों को एक साथ लाया है।

कुछ पुराने महत्वपूर्ण आलेख

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV