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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, June 28, 2013

खेलें मसाने में होली दिगंबर.....


  • खेलें मसाने में होली दिगंबर.....

    केदारघाटी भूत भावन हो गई है, गिद्धों के साथ ही मुर्दे से खेलने वाले पिशाच मैदान संभाल चुके हैं । हिन्दुस्तान की फौज ने अपना काम किया और वो जल्दी वापस चली जाएगी और रह जायेंगे श्मशान में नंगा नाच करने वाले जो मानव तो कहीं से भी नहीं हैं, वो या तो महापुरुष संत हैं या महामानव नेता । और भगवान शायद कैलाश को प्रस्थान कर चुके हैं जिनके दर्शन के धर्म धक्के में तमाम लोग लावारिस लाशें बता कर फूँके जा रहे हैं ।

    अभी प्रशासन का काम है की आपदा राहत से ध्यान न हटने पाए पर संत मण्डली माँग कर रही है की प्रधानमंत्री केदारनाथ मंदिर में पूजा शुरू कराने के लिए हस्तक्षेप करें । एक शंकराचार्य अपने चेलों को मंदिर भेज रहे हैं ताकि जा कर पूजा-पाठ की व्यवस्था की योजना बने। वहीं केदारनाथ के मुख्य पुजारी भीमाशंकर लिंग ने कहा की मंदिर अपवित्र हो चुका है और बिना शुद्धिकरण के पूजा शुरू नहीं की जा सकती । ऐसा करने से शिव का अपमान होगा, अनिष्ट होगा। उनका कहना हैं की शंकराचार्य को कोई अधिकार नहीं की मंदिर की पूजा व्यवस्था के बारे में दखल दें, वो अपने मठ में बैठ कर प्रवचन का धंधा चलाते रहें । भीमा लिंग जी ने कहा है की शंकराचार्य और उनके साथ हरिद्वार के संत नहीं मानेंगे तो इसके 'गंभीर परिणाम' हो सकते हैं, मामला अदालत तक जा सकता है । उससे पहले भीमा लिंग जी प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और सोनिया गाँधी से मिलना चाहते हैं । मंदिर समिति पर सत्ता धारी पार्टी का कब्ज़ा होता है और ये वाले शंकराचार्य भी काँग्रेस के शुभचिंतक हैं, खास कर दिग्विजय सिंह तो इनके पुराने चेले हैं पर इस नाते भी समझौते के आसार बनते नहीं दिख रहे हैं ।

    मंदिर के संस्थापक आदि शंकराचार्य की गद्दी पर काबिज वर्तमान शंकराचार्य का कहना है की इन लिंगायत रावलों (पुजारियों) को इतने अधिकार नहीं दिए गए हैं की वो पूजा-विधान में हस्तक्षेप करें, भीमा शंकर लिंग अपनी सीमाओं के बाहर जा रहे हैं इसलिए उनको बर्खास्त किया जाना चाहिए । वो पूजा के लिए अपात्र हो चुके हैं क्योंकि मंदिर के कपाट खुले हैं और वहाँ पूजा नहीं हो रही है ऐसे में बड़ा अनिष्ट होगा और कोई बच नहीं पाएगा । वाह रे शंकराचार्य, शुद्ध देशी घी के सेवन से नंदी जैसी काया लेकर बैठा संत समाज अजीब होता है । ऊपर की वायु के साथ रटे -रटाये वेद मन्त्र निकलते हैं और थोड़ा अपने आसन से हिल डुल जाएँ तो कमरे में नीचे की वायु के साथ भी देशी घी की खुशबू ही फैलती है। हरिद्वार में ये समाज आंदोलित हो रहा है की कपाट खुला है पर पूजा नहीं हो रही है, कपाट तो तब भी खुला था और पूजा हो रही थी जब सैलाब आया था। अनगढ़ पाहन के रूप में शिव, केदारनाथ सुरक्षित रहे और बच गए नंदी लेकिन तबाह हो गए कई परिवार । पीडब्ल्यूडी ने रास्ते में बोर्ड लगाया है कि 'संसार को अपने तीसरे नेत्र से पल भर में भंग कर देने वाले शिव का रूप केदारनाथ है', फिर भी बना दी सड़क और गोद में बच्चों को लिए लोग निकल लेते हैं ऊपर, पुण्य लूटने । पहले गाँव देहात से बुज़ुर्ग जाते थे और यात्रा इतनी दुर्गम होती थी की कई लोग अपनी तेरहवीं कर के निकलते थे । मान लिया जाता था कि अब ये धर्मक्षेत्र में मोक्ष प्राप्त कर लेंगे, पर अब क्या हालत है ?

    सर्दियों में जब बर्फ़बारी के चलते मंदिर बंद रहता है तब पूजा वहीं होती है जहाँ इस समय चल रही है । प्रशासन चाहता था की यात्रा बारहों महीने चले ताकि रेवेन्यू लगातार मिलती रहे, ये कदम भी परम्परा के विरुद्ध था पर इसकी प्लानिंग हो चुकी थी । तब शंकराचार्य और संत समाज मौन था क्योंकि ऐसी स्थिति में उनका भी मुनाफा था। हरिद्वार में उनके होटल बारहों महीने फुल रहते, जिनको धर्मशालाएं कहते हैं। कुछ बाबाओं के यहाँ तो ऐसी व्यवस्था है की आपके कमरे में ही लगे टीवी पर प्रवचन का लाईव टेलीकास्ट होता है, आपको सत्संग में जाने की जरुरत नहीं । बस जब जी करे बाबा जी और ऊब जाएँ तो फैशन टीवी देख लीजिये । पर अब जब सबका फोकस आपदा पीड़ितों को राहत पहुँचाने पर है और मलबे की साफ़ सफाई पर है तो धरम के ठेकेदार चाहते हैं की प्रशासन इनके पचड़े में पड़े । अभी बर्फ गिरने में समय है, पर बारिश शुरू है, सफाई जरुरी है ताकि माहौल में सड़ांध न फैले, महामारी का प्रकोप न हो पर ये बाबाओं की बीमारी पहाड़ चढ़ने लगी है ।

    गाँव जेवार में न जाने कितने पुराने शिवालय उपेक्षित पड़े हुए हैं जहाँ दिन में जुआरियों की टीम जमती है और शाम होते ही कंट्री मेड 'लैला और नूरी' जैसी न जाने कितनी शीशियाँ लेकर भगत जी लोग रात रंगीन करने बैठ जाते हैं । वहाँ तक किसी शंकराचार्य की नज़र नहीं जाती क्योंकि वो मंदिर इनकी फ्रेंचाईजी नहीं है वो तो श्रद्धा से कभी किसी ने बनवा दिया और शिवलोक चला गया और वहाँ धरम का बिजनेस प्लान लागू करने की सम्भावना भी नहीं है । इसलिए वे उपेक्षित ही रहेंगे भले ही संतों के मुख से झड़ता हो की कंकर -कंकर शंकर है ।

    इसी बीच तमाम तबाह इलाकों में केदारनाथ के रस्ते से कुछ हट कर स्थित कविल्ठा गाँव भी है । वही कविल्ठा जिसके बारे में वहाँ जन श्रुति है की कालिदास का जन्म यहीं हुआ था । इसी घाटी में बैठ कर कालिदास ने शिव-पार्वती के प्रणय प्रसंगों की रचना की थी, मेघ से सन्देश पठाने की बात की थी । दस दिन बाद इस गाँव में राहत पहुँची, ध्वस्त हो गया इस गाँव में स्थित कालीमठ । कालीमठ स्थान की कथाएं बिलकुल वैष्णो देवी की कथाओं से मिलती रही हैं लेकिन इधर गुलशन कुमार नहीं पैदा हुआ जो कैसेट बनवा दे न ही पंजाबियों का इधर हुजूम उमड़ा जो 'जय माता दी' बोल कर, छोले -भठूरे की तरह इस मंदिर को भी रिच एण्ड फेमस कर दे । फिर शंकराचार्य को क्या पड़ी है जो केदारनाथ के अगल -बगल भी देखें, सबका फोकस केदारनाथ ही है । अब जब रावल भीमा शंकर लिंग ने अदालत तक जाने की धमकी दे ही दी है तो पहले सोनिया जी को अपने सलाहकार अहमद पटेल साहब से मंदिर की व्यवस्था के बारे कोई प्लान बनाने को कह ही देना चाहिए क्योंकि रावल को उनसे मिलने का समय मिल ही जायेगा पर बात क्या करेंगी । विजय बहुगुणा जी को तो इसीलिए उत्तराखंड में स्थापित किया गया की उनको किसी भी स्थानीय मुद्दे की समझ नहीं है और सत्ता सुंदरी को साधे रखने के लिए ऐसे देव गौड़ा लोगों की ही जरुरत है ।

    हो सकता है कि शंकराचार्य भी दिल्ली दरबार को अपनी बात सुनाना चाहें इसलिए पुजारियों और संतों के बीच का धर्म युद्ध बड़ा रूप ले ले इससे पहले सोनिया जी निर्णय लें । अन्यथा इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी कुछ बोल नहीं पायेंगे और मामला अदालत में चला जाएगा । फिर अठारह सौ अस्सी के मुक़दमे की तरह ये भी लटक जाएगा, जिसमे बनारस में एक कब्रिस्तान को लेकर शिया-सुन्नी भिड़े हुए है की दीवाल किस तरफ बनेगी । वो तो कब्रिस्तान है, यहाँ मंदिर की बात है । पता चला पूजा ही बंद हो गयी तब टूरिस्ट भी नहीं जा पायेंगे क्योंकि चीन वहाँ से बहुत अधिक दूर नहीं बैठा है । साल के चार-पाँच महीने लाखों हिन्दुस्तानी वहाँ तक आते जाते रहते हैं तो अपना कब्ज़ा है वरना ऐसा भी हो जायेगा की मुक़दमे का फैसला आते-आते केदारनाथ के दर्शन के लिए चीन से वीजा बनवाना पड़ जाएगा । सरकार को पता भी नहीं चलेगा क्योंकि वह तो दिल्ली और देहरादून में रहती है । हे भोले नाथ बड़ा मानते है सब तुमको, हो सके तो तुम्हारे नाम पर दाम कमा रहे संतों को थोड़ी समझ आ जाए । वो भी थोड़े से मानवीय हो जाएँ और श्मशान में लंगोटी खोल कर भूतिया नृत्य करना बंद करदें, अभी समय है, कहीं देर न हो जाए ।

    साभार : गपागपडॉटकॉम

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