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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, June 29, 2013

कोल इंडिया के ताबूत पर आखिरी कीलें ठोंकने की तैयारी, कोयला यूनियनों को मनाने की कवायद शुरु!

कोल इंडिया के ताबूत पर आखिरी कीलें ठोंकने की तैयारी, कोयला यूनियनों को मनाने की कवायद शुरु!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कोयला नियामक को हरी झंडी के बाद विनिवेश लक्ष्य हासिल करने और कोलइंडिया को छोटी छोटी कंपनियों में बांटकर कोकिंग कोल घोटाले की तैयारी  है। वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने उन सभी फैसलों को अमल में लाने की प्र्रक्रिया यूनियनों की परवाह किये बिना शुरु कर दी है। अब कोल इंडिया के ताबूत पर आखिरी कीलें ठोंकने की तैयारी में प्रधानमंत्री और कोयला मंत्री चिदंबरम के घोषित कार्यक्रम के तहत यूनियनों से मिलने वाले हैं। उदारीकरण जमाने में यूनियनों के समझौतापरस्त भूमिका में रकोई तब्दीली हुई नहीं है, जाहिर है। मजा तो यह है कि सभी यूनियनें इस मुद्दे पर आम राय रखते हैं कि कोयला क्षेत्र पर निजीकरण का खतरा है। कोल इंडिया का पुनर्गठन, विनिवेश तथा ठेकेदारी प्रथा अप्रत्यक्ष रूप से निजीकरण की ओर कंपनी को ले जा रही है। सभी श्रमिक संगठनों को एकजुट हो संघर्ष करना पड़ेगा। कंपनियां अपनी इच्छानुसार खदानें बंद कर रहीं हैं। यह सब मजदूरों के हक में नहीं है।पर आंदोलन के मामले में सिरे से पिछड़ रही हैं यूनियनें। हालत यह है कि अब ट्रेड यूनियन नेता कारपोरेट के हाथ बिकने लगे हैं। सरकार कारपोरेट सेक्टर के प्रभाव में है ही। इसलिए मजदूर विरोध नीतियों को लागू होने से रोकने के लिए प्रभावी विरोध की आवश्यकता है। मजदूरों की ताकत के बल पर ही निजीकरण को रोका जा सकता है।वित्त मंत्री के मुताबिक जल्द से जल्द मंजूरी के लिए 40 इंफ्रा प्रोजेक्ट्स को शॉर्टलिस्ट कर रहे हैं। इसके अलावा वित्त सचिव की एफडीआई सीमा पर रिपोर्ट अगले हफ्ते आ सकती है। वित्त वर्ष 2014 का विनिवेश लक्ष्य हासिल करने का भरोसा है। कोल इंडिया के विनिवेश पर कोयला मंत्रालय की यूनियन से बात चल रही है।


ज़मीन के गर्भ में धधकती आग के बीच जो हजारों मज़दूर रात दिन कोयला निकालने का काम कर रहे हैं, उनके साथ भारी धोखाधड़ी की तैयारी है।रानीगंज झरिया के कोकिंग कोल बहुल कोयलांचल से जुड़ी ईसीएल और बीसीसीएल को कोलइंडिया से ्लग करके निजी हाथों में सौंपना तय है। विशेषज्ञों की राय लेने की औपचारिकता बाकी है।औपचारिकता बाकी है।कोयला मंत्री कह चुके हैं कि विशेषज्ञों की राय हो तो कोल इंडिया के पुनर्गठन और विभाजन पर उन्हें ऐतराज नहीं है। कोल नियामक बनाने में भी उनकी महती भूमिका के मद्देनजर उनसे ऐसी ही उम्मीद की जा सकती है।काले हीरे के नाम से जाने जाने वाले कोयले को निकलने में लगे मजदूर बदहाली और उपेक्षा का शिकार हैं बावजूद इसके कि यहाँ ट्रेड यूनियन की आड़ में दशकों तक माफिया गिरी का बोल बाला रहा।


कोयलांचल में ये हाल बदले नहीं हैं। कम से कम रानीगंज झरिया कोयलाक्षेत्र में तो यूनिनें माफिया के शिकंजे में अब भी कैद हैं। जिन्हें भरपूर राजनीतिक संरक्षण राष्ट्रीयकरण के समय से निरंतर मिलता रहा है। यूनियनबाजी के नाम पर जान जोखिम में डालकर असुरक्षितखदानों में दिनरात जिंदगी स्याह करते मजदूरों को हमेशा छला ही गया है और इस मंजर में बदलाव के आसार कम ही हैं।


कोल नियामक कोई कोल इंडिया के मुश्किल आसान करने के लिए नहीं बनाया गया है। बिजली और इस्पात कंपनियों के साथ कोयला आपूर्ति गारंटी समझौता करने के लिए उसे मजबूर करने और कोयले का दाम निर्धारण करनेके उसके एकाधिकार तोड़ने के लिए यह कदम उठाया गया है। कोयला ब्लाकों के आबंटन को लेकर कोलगेट सुनामी से भी उबरने में कोयला नियामक का इस्तेमाल होना है। पर इस मामले में कोयला यूनियनें खामोश हैं।कोलकाता कोल इंडिया लिमिटेड के सभी पांचों केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा दिये गये एक महीने के अल्टीमेटम के बाद अब केंद्र सरकार कोयला यूनियनों को मनाने में जुट गयी है।


कोल इंडिया के विनिवेश का विरोध  राजनीतिक हथकंडा ही साबित हुआ और हमेशा कि तरह कोयला यूनियनों ने समझौता कर लिया।विनिवेश का विरोध पहले तो कोयला मंत्रालय ने भी किया और कोल रेगुलेटर के गठन के बावजूद कोयला मूल्य निर्धारण पर एकाधिकार कोल इंडिया का ही बना रहे, यह भी शुरु  से कोयला मंत्रालय का तर्क रहा है। लेकिन जिन राज्यों में कोयला खदानें है, उनकी ओर से कोई विरोध न होने की वजह से प्रधानमंत्री कार्यालय कोयला ब्लाक आबंटन घोटाले में सीबीआई जांच के दायरे में होने के बावजूद विनिवेश के मामले को झटपट निपटाने के मूड में है। गौरतलब है कि जिन राज्यों में सबसे ज्यादा कोयला उत्पादन होता है, मसलन झारखंड, बंगाल और छत्तीसगढ़ में गैर कांग्रेसी सरकारें है। राजनीतिक विरोध हुआ नहीं और यूनियनों का विरोध फर्जी निकला, इसलिए विनिवेश का रास्ता आसानी से साफ हो गया। कोल इंडिया  की कर्मचारी  यूनियनों ने पीएमओ को पत्र लिखा था कि पहले फाइनैंस मिनिस्टर और अब राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कंपनी में और विनिवेश नहीं करने का वादा किया था।


प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह सवाल वित्त मंत्रालय से किया था, जिसका अब जवाब मिल गया है। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि ऐसा कोई आश्वासन लिखित या मौखिक तौर पर नहीं दिया गया था।' प्रधानमंत्री कार्यालय अब ऐडमिनिस्ट्रेटिव मिनिस्ट्री से आगे बढ़कर यूनियनों से निपटने और विनिवेश की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कह सकता है।अभी सरकार की कंपनी में 90 फीसदी हिस्सेदारी है। कोल इंडिया में हिस्सेदारी बेचने से सरकार को लगभग 20,000 करोड़ रुपए मिल सकते हैं। इससे उसे मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 40,000 करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य का 50 फीसदी पूरा करने में मदद मिलेगी।


यूनियनों ने विनिवेश के खिलाफ बेमियादी हड़ताल की धमकी भी दी थी, जो आखिरकार गीदड़ भभकी साबित हो गयी। सरकार ने बागी यूनियनों को परदे के पीछे मैनज कर ही लिया। कारपोरेट चंदे से चलने वाले राजनीतिक दलों से जुड़ी यूनियनों के लिए कारपोरेट लाबिइंग के खिलाफ आंदोलन करना असंभव है, यह एकबार फिर साबित हो गया। इन यूनियनों के चक्कर में क्रांति का झंडा उठाने वले आम मजदूरों को इस वारदात से सबक जरुर लेना चाहिए।


सीटू ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की कोयला उद्योग के निजीकरण के कथित प्रयासों की आलोचना की है। माकपा से संबद्ध सेंटर ऑफ ट्रेड यूनियन (सीटू) ने चेतावनी दी है कि सरकार की किसी गलत मंशा का कोयला मजदूर पुरजोर विरोध करेंगे।सीटू के मुताबिक  कोयला मजदूर पूर्व की सरकारों के निजीकरण के ऐसे प्रयासों का सफलता पूर्वक विरोध कर चुके हैं। सीटू के मुताबिक  निजीकरण के पक्ष में अहलूवालिया की दलीलें झूठे आकलन पर टिकी हैं। अहलूवालिया ने तर्क दिया है कि ऊर्जा प्रतिष्ठानों की जरूरतों और मांगों के अनुरूप कोयला आपूर्ति करने में कोल इंडिया लिमिटेड समर्थ नहीं है।


लेकिन हवाई गोलदांजी के अलावा यूनियनें कम से कम अब तक सरकार के चरणबद्ध सुनियोजित एजंडा को नाकाम करने में बुरी तरह नाकाम रही हैं।अब कहा जा रहा है कि समस्या के समाधान के लिए प्रधानमंत्री व केंद्रीय कोयला मंत्री के साथ कोयला श्रमिक संगठनों के प्रप्रतिनिधि अगले महीने के प्रथम सप्ताह में बैठक करेंगे।


इस संबंध में सीटू सर्मथित ऑल इंडिया कोल वर्कर्स फेडरेशन के महासचिव जीवन राय ने बताया कि पांच जुलाई को दिल्ली में कोयला मंत्री व कोल इंडिया के सभी पांचों श्रमिक संगठनों के प्रप्रतिनिधियों के बीच बैठक होगी।इसके अगले दिन छह जुलाई को श्रमिक संगठन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि सभी कोयला यूनियनों की सबसे पहली मांग यह है कि कोल इंडिया में विनिवेश की प्रक्रिया जल्द से जल्द बंद की जाये।


सभी यूनियनों की ओर से 24 जून को कोलकाता के महाजाति सदन में मांगों की रूपरेखा तैयार की गयी थी और इस दिन तय की गयी मांगों को ही प्रधानमंत्री व कोयला मंत्री के सामने रखा जायेगा।


बहरहाल जीवन राय ने  बताया कि कोयला मंत्री व प्रधानमंत्री से मिलने से पहले तीन जुलाई को सभी कोल यूनियनों के प्रतिनिधि आपस में बैठक करेंगे और फिर से अपनी मांगों पर चर्चा करेंगे। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कंपनी के 10 फीसदी शेयर बेच कर करीब 20 हजार करोड. रुपये उगाहने की योजना बनायी है। साथ ही पुनर्विकास के नाम पर कोल इंडिया की सभी अनुषंगी कंपनियों को अलग-अलग करना चाहती है। केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ कोल इंडिया के अंतर्गत कार्य करनेवाले करीब साढ़े तीन लाख कर्मचारी एकजुट होकर खड़े हो गये हैं।


इस संबंध में एटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेंद्र कुमार ने कहा कि पांचों यूनियनों की ओर से प्रधानमंत्री व कोयला मंत्री को मांगों का ज्ञापन सौंपा जायेगा और इस पर विचार करने के लिए केंद्र को एक महीने का समय दिया जायेगा।



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