Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, July 1, 2013

तबाही के मौसम में सांबा, लाशों के ढेर पर धर्म स्थल की राजनीति

तबाही के मौसम में सांबा, लाशों के ढेर पर धर्म स्थल की राजनीति


पलाश विश्वास


हिमालयी सुनामी के एक पखवाड़े तक तबाह सैकड़ों गांवों की सुधि न लेने का आपराधिक लापरवाही के लिए कारोबारी बचाव और राहत अभियान के जरिये देश के रिसते हुए जख्मों पर मरहम लगाने वाली भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार के िइस्तीफे की मांग किये बिना इस मानवरचित विपर्यय पर कोई भी बात अप्रासंगिक है। हिमालय और हिमालयी जनता के खिलाफ जारी शाश्वत आध्यात्मिक आर्थिक व राजनीतिक, भौगोलिक व ऐतिहासिक अस्पृश्यता समाप्त करने के लिए अगर इस लोक गणराज्य के स्वतंत्र नागरिकों को अपने वजूद के खातिर कोई अभियान शुरु करना चाहिए, उसका प्रस्थानबिंदू कोई दूसा नहीं हो सकता।


शनिवार की रातहुइ भारी वर्षा से जलप्लावित बंगाल में पिर ब्राजील की जयजयकार है। यातायात बाधित, अवकाश का दिन, देर रात रविवार को साढ़े तीन बजे से शुरु शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ मैच बतौर प्रचारित मैच केबल आपरेटरों की हड़ताल के मध्य देखने वाले सौबाग्यशाली हैं,जो देख न सके , उनके लिए आज के खबरिया चैनलों ने सारे समाचारों को हाशिये पर रखकर पूरे बंगाल में सांबा का माहौल बना दिया है। अगर मैदानों में पर्यावरण संकट कहीं सबसे संगीन है तो वह बंगाल है जो उत्तर में हिमालय का हिस्सा  बनता है तो दक्षिण में सुंदरवन वाया समुंदर से गहराई तक जुड़ा हुआ है। दोनों तरफ से संकट के गहराते बादल हैं। सुंदरवन सिमटते सिमटते खत्म हो चला है तो पहाड़ो की याद राजनीति या पर्यटन तक सीमित हैं। कोलकाता महानगर और उपनगरों में नदीपथ गायब है। झीलों पर नगरायन का वृत्त पूरा हो गया है। तालाब पोखर और हरियाली कहीं साबूत नहीं बचा है। सनिवार की बारिश का पानी ्बतक नहीं हटा है। लेकिन बंगाल के प्रगतिशील समाज को इस जलबंदी अवस्था की कोई परवाह नहीं है। सबसे प्राचीन बांध परिोजना बंगाल में ही है, डीवीसी और उत्तर में उफनती नदियों के छंदबद्ध ताल पर उस बांध से हर साल की तरह बाढ़ का आयोजन होने ही वाला है। जबकि दामोदर घाटी के विस्थापितों का अबतक पुनर्वास नहीं हुआ है।


आत्मघाती राजनीतिक हिंसा सेचौतरफा घिरे बंगाल को सर्वोच्च न्यायालय से भी मुक्ति का दरवाजा खोजे नहीं मिल रहा है ौर राजनीति अब धार्मिक ध्रूवीकऱण के रास्ते पर है। इन सबसे बपरवाह बंगाल फिरभी दुर्गोत्सव और फुटबाल को लोकर कुछ ज्यादा ही आंदोलित है। बाकी आंदोलन सिरे से लापता है।


कुल मिलाकर भारत देश की यही तस्वीर है। हिमालयी सुनामी चार धामों की यात्रा के बहाने हम सबको कहीं न कहीं जख्मी लहूलुहान कर गया है। अपने अपने घाव से हम दुःखी है। राहतऔर बचाव अभियान पर तालियां भी खूब बजा चुके। बेहद ईमानदारी से अनेक लोग पीड़ितों के लिए रिलीफ अभियान में लग गये हैं, जो होना ही चाहिए।


लाशों की बेशर्म राजनीति के बेपर्दा उत्सव में खुले बाजार में खडे हम अश्वमेध के घोड़ों की टापें यकीनन सुन नहीं सकते।धर्मोन्माद हमें अतींद्रिय बना चुका है और बाजार में वहीं इंद्रियां सुपर संवेदनशील।


नेपाल की सेना ने कुमायूं में पिथौरागढ़ जिले के भारत नेपाल सीमा पर हुई तबाही की तस्वीरें मानसरोवर यात्रा के बहाने कैमरा वहीं फोकस होने  के हफ्तेभर पहले जारी कर दी थी। त्रासदी ने सीमारेखा मिटा दी। हमने अपने ब्लाग पर वे तस्वीरें लगा भी दी। पर ऩ उत्तराखंड, न भारत और न नेपाल सरकार ने कोई कार्रवाई की। सौ से ज्यादा गांव भारत में ही धारचूला इलाके में तबाह हो गये। नेपाल के बारे में अभी कोई आंकड़ा नहीं मिला है।


पर्यटकों के बचाव और राहत के आंकड़े और उनकी लाशों की गिनती के सिवा स्थानीय हिमालयी जनता पर क्या बीती ,इसकी जानकारी न भारत सरकार के पास है और न उत्तराखंड सरकार के पास। वे नहीं जानते कि कुळ कितने गाव और कहां कहां तबाह हुए। उन्हें इन गांवों में मृतकों और जीवितों के बारे में कोई आंकड़ा नहीं मालूम। हिमालयी सुनामी की खबर पूरे देश को उत्तरकाशी के जिस जोशियाड़े में ढहते मकानों की तस्वीरों से मालूम हुआ, पूरे पखवाड़े भर तबाह उस आधे उत्तरकाशी  तक की खबर नहीं ली गयी।


1978 की बाढ़ के दौरान हमने उत्तरकाशी के आगे सर्वत्र तबाही का मंजर देखा था। इसबार भी गंगोत्री हरसिल क्षेत्र में तबाही बद्री केदार से ज्यादा ह्रदय विदारक होती अगर हरसिल सैनिक अड्डे के बहादुर जवान लगातार लोगों को निकाल कर सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचा न रही होती। पखवाड़े भर उन्होंने इलन लोगों को खिलाया पिलाया। धारचुला के नानकिंग के  केलोग पूछ रहे हैं कि क्या उन्हें चीन चला जाना चाहिए। तो भारत चीन सीमा पर आखिरी भारतीय कस्बा धाराली पूरी तरह तबाह हो गये। वहां करीब चार सौ मंदिर ध्वस्त हो गये। कोई होटल,घर साबूत नहीं बचा। इस कस्बे में रोजाना पांच हजार से दस हजार पर्यटकों श्रद्धालुयों की आवाजाही होती है।अपने चरम संकट के वक्त में भी वहां की हिमालयी जनता ने पखवाड़े भर उन लोगों को हिफाजत से रखा। बद्री केदार के पापों का खुलासा करने वाले मीडिया को हिमालय के दूरदराज इलाकों की आम जनता के इस करतब का भी ख्याल करना चाहिए। वलेकिन इस धाराली की भी पखवाड़े तक खबर नहीं हुई। आदिवासी बहुल जौनसार भाबर और यमुना घाटी टौंस घाटी की खबर तो अब भी नहीं बनी। जबकि यमुना नदी में बाढ़ की वजह से दिल्ली के अस्तित्व संकट को लेकर पूरा देश सनसनाता रहा।


दरमा घाटी, व्यास घाटी,पिंडर घाटी में भी तबाही मंदाकिनी घाटी कीतरह सर्वव्यापी रही। हिमाचल में आकिर क्या हुआ हमें नहीं मालूम। नेपाल के बारे में भी कोई सूचना नही ंआती। टिहरी से लेकर उत्तरकाशी, पौड़ी से लेकर केदार बद्री, गंगोत्री यमुनोत्री, अल्मोड़ा से लेकर पिथौरागढ़ तक तबाह हुए सैकड़ों गांवों के बारे में न मीडिया को खबर थी और न सरकारों को।


उत्तर भारत की नदियां अभी उफन रही हैं। नैनीझील सूख रही है। उत्तरकाशी में 2012 में भी बाढ़ आयी थी। भूकंप और भूस्खलन का सिलसिला जारी है। अब भी पहाड़ों में न वर्षा थमी है और न भूस्खलन रुका है। मौसम विभाग की चेतावनी के बावजूद केदार बद्री की कमाई को प्राथमिकता देने से लाशों की गिनती का केल खेल रहे हैं राजनेता। तो देश भर को दशकों से दंगों की ाग में झोंकन के बावजूद अयोध्या में राममंदिर न बनाने वाले लोग अब नये सिरे से केदार क्षेत्र में शिवमंदिर बनाने लगे हैं। बचाव और राहत अभियान शुरु होने से पहले यह कार्यक्रम शुरु हो गया। फिर प्र्यावरण और आपदा प्रबंधन के तमाम मुद्दों को हाशिये पर धकेलकर धारादेवी मंदिर अभियान भी चला। ध्वस्त केदार क्षेत्र में पूजा के अधिकार को लेकर शंकराचार्य से लेकर रावल तक भिड़े हुए हैं।


लोग भूल गये कि भूस्खलन से मशहूर नृत्यशिल्पी प्रतिमा बेदी समेत मानसरोवर के तीर्थयात्री पिधौरागढ़ में ही मारे गये थे। तमाम मार्ग तबाह है, लेकिन मान सरोवर यात्रा के दौरान भी केदार बद्री यात्रा की तरह एहतियाती उपाय सिरे से गायब है। यात्राओं के ायोजन में निष्णात सरकारों को हिमालय और हिमालयी जनता के वजूद का कोई ख्याल नहीं है। रेशम पथ दुबारा कोलने के प्रयास जारी है, पर हिमालय क्षेत्रों के तमाम देशों के बीच जो अनिवार्य साझा आपदा प्रबंधन प्राणाली विकसित करनेकी फौरी जरुरत है, उसपर बात ही शुरु नहीं हुई है। जल संसाधन समझौते भी नहीं हुए हैं।


ब्राजील में पांच बार विश्वकप जीतने के रिकार्ड के बावजूद एकदम नई टीम के जरिये विश्वविजेता स्पेन को ध्वस्त करके कनफेडरेशन कप जीतने पर जश्न जरुर है, पर प्रतिरोध और आंदोलन है। वहां विवाद तिकिताका और सांबा की प्रासंगिकता को लेकर नहीं ङै, चर्चा है, आंदोलन है और प्रतिरोध है खुले बाजार और भूमंडलीकरण की वजह से चौतरफा सर्वनाशा के विरुद्ध।


हम कहां हैं?


THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST


Published on 1 Jul 2013

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.


http://youtu.be/7IzWUpRECJM


<iframe width="560" height="315" src="//www.youtube.com/embed/7IzWUpRECJM" frameborder="0" allowfullscreen></iframe>


No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV