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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, July 29, 2013

सरासर धोखाधड़ी है मंगल अभियान

सरासर धोखाधड़ी है मंगल अभियान

मंगल- अमंगल अभियान

 राष्ट्रहित और देशभक्ति की आड़ में सबसे ज्यादा घोटाला प्रतिरक्षा और वैज्ञानिकतकनीकी अनुसंधान के क्षेत्र में

पलाश विश्वास

पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं।

पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना ।

जिस देश में लोग अपनी नागरिकता और देश की संप्रभुता के बारे में सजग नहीं हो और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद ने जहाँ नागरिकों की आँखों में पट्टी बाँध लिया हो, वह ऐसे विषय पर गम्भीरता से चर्चा करने की गुंजाइश कम ही है। हम शुरु से अन्तरिक्ष अभियान और सैन्यीकरण जनविरोधी फर्जीवाड़े और घोटालों पर लिखते रहे हैं। मंगल अभियान पर भी लिखा है। हमारे लिखे का उतना महत्व नहीं है। लेकिन अब तो इसरो के पूर्व सरकार्यवाह ने बता दिया है कि मंगल अभियान सरासर धोखाधड़ी है। क्या अब भी हम इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिये तैयार हैं ?

अच्छा होता कि यह आलेख अंग्रेजी में लिखा जाता तो हमें संदर्भ और सबूत पेश करने में थोड़ी सहूलियतें होतीं। जब हिंदी लिखना इतना आसान नहीं था, तब तमाम महत्वपूर्ण विषयों पर हमने निरंतर अंग्रेजी में ही लिखा है क्योंकि इसके सिवाय उपाय ही नहीं था। तब नेट पर हिंदी समाज की इतनी सबल उपस्थिति भी नहीं थी। अभिजनों की गिरफ्त से जनसरोकार के मुद्दों को सोशल मीडिया पर उठाने का यही सही समय है। हमारे प्रतिष्ठित विद्वतजनों को विशेषाधिकार हनन जैसा लगता होगा यह सब। प्रतिष्ठितों के लिये दूसरे माध्यम हैं, जहाँ मात्र वे ही प्रबल रुप में उपस्थित हैं और विचारों से लेकर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर उन्हीं का वर्चस्व है। अब चूँकि हम जैसे अप्रतिष्ठित अछूत लोग भी फटाक से अपनी बात कह रहे हैं और उन्हीं के एकाधिकार वाले प्रसंगों को स्पर्श करने का दुस्साहस भी कर रहे हैं, तो उनके लिये ये परिस्थितियाँ असहज सी हो गयी हैं। उनकी आक्रामक प्रतिक्रिया के बावजूद सच यह है कि सोशल मीडिया के वैकल्पिक स्पेस की वजह से यशवंत जैसी रंगबाजी और अविनाश जैसी शरारतें बखूब चल रही हैं। दो टूक कह रहे हैं फुटेला। अमलेंदु लगातार तमाम मुद्दों को उठा रहे हैं। साहिल अनछुए समाज को आवाज दे रहा है। हम तमाम लोग अपनी अपनी तरह से खण्ड-विखण्ड भारतीय जनसमाज को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैंजिसमें राम पुनियानी से लेकर तमाम दूसरे प्रतिष्ठित लोग भी बहस के लिये लगातार हाजिरी लगा रहे हैं।

खास बात यह है कि नेट पर जो आठ करोड़ लोग हैं, उनमें से बहुसंख्य की जीवन वातानुकूलित नहीं है। उनमें से ज्यादातर लोग हथेली में मोबाइल से नेट सर्च करते हुये जिंदगी की जद्दोजहद में बेतरह उलझे हुये हैं। उनमें बहिष्कृत बहुजनों की तादाद लगातार बढ़ रही है और पूरा तन्त्र उन्हें सूचना वंचित करने में लगा है। हाल के वर्षों तक विशेषाधिकार क्षेत्र मीडिया की खबरों पर अघोषित सेंसर लगा हुआ था। अब भड़ास से लेकर मीडिया मोर्चा तक तमाम मंचों पर मीडिया का अन्तर्महल बेपर्दा हो रहा है। कुछ लोगों के लिये निश्चय ही यह अत्यन्त अवाँछित हैं और वे तिलमिला भी खूब रहे हैं। लेकिन अब तो गाड़ी चल पड़ी है। अभिव्यक्ति के लिये विधाओं का व्याकरण टूट रहा है। आलोचकों की छड़ी और संपादकों प्रकाशकों की महरबानी अब अप्रासंगिक हैं। अब जल्द ही पंद्रह करोड़ लोग नेट पर होंगे, जो देश के हर जनसमुदाय का प्रतिनिधित्व करेंगे।

तो हमें विषयांतर का भी दुस्साहस करना चाहिए। अर्थशास्त्र का तिलिस्म को तोड़ना सबसे ज्यादा जरूरी है क्योंकि लोकतन्त्र, संविधान और न्याय की हत्या, देश को वधस्थल बनाने का आयोजन इसी अभेद्य किले में हो रहा है।

राजनेताओं के बारे में प्रचलित मीडिया में प्रचुर छपता रहता है। उसी के मार्फत बुनियादी मुद्दों को रफा दफा किया जाता है। बेहतर हो कि हम उन्हीं असंबोधित मुद्दों को ज्यादा संबोधित करें। साहित्य और संस्कृति के शिविर सीमाबद्ध बहसों के बजाय हम दमन, उत्पीड़न और जनसंहार, मानवाधिकार व नागरिक अधिकारों के हनन पर फोकस करें।

धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की वजह से प्रतिरक्षा और वैज्ञानिकतकनीकी अनुसंधान पर चर्चा एकदम निषिद्ध है। राष्ट्रहित और देशभक्ति की आड़ में सबसे ज्यादा घोटाला इन्हीं क्षेत्रों में हैं। हम शायद भूल जाते  हैं कि नवउदारवादी जश्न का शुभारंभ भारतीय टेलीविजन पर धार्मिक सीरियलों के प्रसारण और तत्सह दूरद्रशन के विस्तार के साथ ही शुरु हुआ। उच्च तकनीक पर शोध का सिलसिला राजीव गांधी के जमाने में हुआ और आपातकाल के अनुभव से गुजरने के बाद स्वतन्त्र मीडिया के विकल्प बतौर देशव्यापी टीवी नेटवर्क बनाने के काम इंदिरा गांधी ने ही अंजाम दिया। रंगीन टीवी और केबल नेटवर्क के आते- आते इस सूचना महाविस्फोट ने सूचना को धर्म और मनोरंजन में निष्णात कर दिया। जन सरोकारसाहित्य,संस्कृति और जनान्दोलन सिरे से मीडिया के परिदृश्य से बाहर हो गये। धर्म और मनोरंजन के काकटेल के बीच संपन्न हुये तमाम मानवता विरोधी अपराध। बाबरी ध्वंस, सिखों का संहार, आदिवासियों के खिलाफ राष्ट्र की युद्ध घोषणा, देस के भूगोल के वृहत्तर हिस्से को माओवादी या उग्रवादी ब्रांडेड बना देना, भोपाल गैस त्रासदीगुजरात नरसंहार, मुंबई से लेकर मालेगांव तक के तमाम धमाके, रोज रोज के फर्जी मुठभेड़ ..सब कुछ इसी अश्वमेध अभियान के तकनीकी औजार हैं जो लगातार एक्टीवेट किये जाते रहे।

हम भूलते रहे कि तकनीक उच्च तकनीक के धमाकों  में आधुनिकीकरण की आड़ में वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण ने कैसे भारतीय कृषि की हत्या कर दी और भारतीय किसानों के लिये आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नहीं बचा। औद्योगीकरण और शहरीकरण, विशेष आर्थिक क्षेत्र से लेकर परमाणु संयंत्र, बड़े बड़े दैत्याकार बाँध, स्वर्णिम राजमार्ग इसी तकनीकी विकास से संभव हुये और इसी के तहत देश की बहुसंखय जनगण को जल जंगल जमीन से ही नहीं, नागरिकता और नागरिक व मानवअधिकार से भी वंचित किया जाने लगा।


उच्च तकनीक के गर्भ से निकली अवैध संतान आधार कार्ड योजना के तहत नागरिकों की निजता और संप्रभुता की हत्या हो रही है। तकनीक को हमारे खिलाफ तैनात कर दिया गया है।तकनीक का इस्तेमाल, बुनियादी सेवाओं को खुले बाजार के हवाले करने और वंचितों को उसी बाजार से बाहर करके सत्तावर्ग के एकाधिकार बाजार बनाने में की गयी है। यानी वस्तुओं, सेवाओं और सुविधाओं का भोग उपभोग का एकाधिकार सत्ता वर्ग को और उन्हें बेचने का एकाधिकार और मुनाफा कमाने का एकाधिकार भी उसी को। भुखमरी के कगार को पहुँचा दिये गये नागरिकों को मनचाही परिभाषाओं, प्रतिमानों और पैमानों के तहत नयीमनुस्मृति की तरह बहिष्कृत कर दिया गया। अर्थव्यवस्था और साम के हर क्षेत्र से तो हम बेदखल थे ही, इसी वैज्ञानिक व तकनीकी अनुसंधान की अनन्त महिमा से सारी उत्पादक श्रेणियों को उत्पादन प्रणाली से बाहर कर दिया गया। भारत महाशक्ति बन रहा है। अमेरिका और इजराइल के साथ जिस भारत की साझेदारी है, उस भारत में निनानब्वे फीसद कहीं भी नहीं है। धर्म और जाति अस्मिता की राजनीति इसी अर्थव्यवस्था और तकनीक सेवा बाजार प्राधान्य नये भारत का सबसे बड़ा घोटाला है और तमाम घटाले उसीके तहत हैं। क्योंकि निनानब्वे फीसद बंड गया है परस्परविरोधी अस्मिताओं में और परस्पर विरोधी दिखते रहने के बावजूद बाजार और अर्थव्यवस्था पर काबिज तमाम रंग एकाकार है।

आखिर किसके हित में है भारत का सैन्यीकरण?

अमेरिका और इजराइल की निगरानी भारत में आंतरिक सुरक्षा के लिये क्यों?

बायोमैट्रिक डिजिटल आधार नागरिकता पूरे विश्व में खारिज है। नाटो की यह योजनाअमेरिका, ब्रिटेन और दूसरे देशों में भी निषिद्ध है तो इसे बिना संसद में कानून बनाये नागरिकता और तमाम नागरिक सेवाओं के लिये अनिवार्य बनाने से किसके हित सधते हैं?

नागरितों की निजता, उनकी आँखों की पुतलियाँ और उंगलियों की छाप कॉरपोरेट हवाले करने के मकसद क्या हैं?

भारत अमेरिकी परमाणु संधि पर अब क्यों खामोश है राजनीति? रक्षा सौदों में क्यों नहीं है पारदर्शिता?

सूचना के अधिकार के दायरे में से बाहर क्यों होंगे राजनीतिक दल?

जो कॉरपोरेट चंदा राजनीति और अराजनीति के लिये उपलब्ध है, उसमें विदशी निवेशकों और अबाध पूँजी प्रवाह का कितना हिस्सा है?

भारत में कृषि का चरित्र हरित क्रान्ति और दूसरी हरित क्रान्ति के जरिये बदलने से किन्हें फायदा हुआ? भारतीय वित्तमंत्रियों के विदेशी दौरे पर अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोषविश्वबैंक और विदेशी निवेशकोंयुद्ध- गृहयुद्ध के सौदागरों के साथ हुये सौदे का खुलासा कितना होता है?

रक्षा सौदों का कमीशन कहाँ जाता है और इन सौदों से भारतीय प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा कितनी मजबूत होती है? तकनीक के जरिये सब्सिडी खत्म करने की जो नई व्यवस्था बनाकर कुछ लोगों के आगे टुकड़ा फेंककर बाकी अपात्र आबादी को परिभाषाओं, पैमानों, पहचान और भूगोल के आधार पर बाँटकर वंचित करने के क्या कॉरपोरेट प्रयोजन हैं? प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एकाधिकारवादी आक्रमण के नतीजे क्या हैं? क्यों वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान के नाम पर बीज से लेकर जीवन रक्षक दवाइयों के लिये नागरिकों को मोहताज बना दिया गया है?

नाटो और इसरो के भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी विकास के साथ क्या सम्बन्ध हैं? पहले हमें इन प्रश्नों का उत्तर पहले खोजना होगा कि प्रिज्म जासूसी निगरानी के विरुद्ध भारत का सत्ता वर्ग मौन साधा हुआ है और क्यों हमारी नागरिकता नाटो की खारिज योजना से तय होती है, तभी चंद्र और मंगल अभियानों का अमंगल, अन्तरिक्ष अभियान का तन्त्र का खुलासा होगा।

अब इस खबर पर गौर कीजिये और बहस को आगे बढ़ाइये। -

'देशी मार्स ऑर्बिटर मिशन के जरिये सार्थक शोध होगा', इसरो अध्यक्ष के राधाकृष्णन के इस दावे को पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर ने गलत करार दिया है। उन्होंने 450 करोड़ रुपये खर्च वाले मंगल अभियान को एक पब्लिसिटी स्टंट (प्रचार के लिये तमाशा) करार दिया है। नायर को भारत के सफल चंद्र अभियान के लिये जाना जाता है। उन्होंने कहा कि देश संचार ट्रांसपोंडरों की भयंकर कमी का सामना कर रहा है। इसरो को के. कस्तूरीरंगन कमेटीकी संस्तुतियों का पालन करते हुये इस समस्या का समाधान करना चाहिए।

मंगल अभियान के बारे में उन्होंने कहा कि यदि इसका प्रक्षेपण हो भी जाता है तो यह महज एक और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का प्रक्षेपण होगा। मंगल के बारे में इससे कुछ भी पता चले उसके पहले करीब आठ माह इंतजार करना होगा। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में वैज्ञानिक समुदाय को गम्भीरता से समीक्षा करने की जरूरत है। नायर के अनुसार, प्रक्षेपण के लिये भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) को वाहन के रूप में इस वजह से पहचान की गयी थी कि यह 1800 किलो के सेटेलाइट को कक्षा में ले जा सकता था। इससे इसमें दर्जन भर से अधिक उपकरण ले जाया जा सकता था। अन्तरिक्ष यान को मंगल के सार्थक दूर संवेदी अभियान के लिये एक वृत्तीय कक्षा के पास पहुँचाया जा सकता था।

उन्होंने आगे कहा कि लेकिन इसरो जो मार्स ऑर्बिटर मिशन को मंगल अभियान कह रहा है, उसके इस बहुप्रचारित अभियान का भविष्य क्या है? जीएसएलवी की समस्याओं को सुलझाने में विलम्ब हो रहा है इसलिये यह अध्ययन किया गया कि पीएसएलवी के साथ क्या किया जा सकता है? करीब 1500 किलो का सेटेलाइट मंगल पर ले जाया जा सकता है लेकिन इंधन की कम क्षमता के कारण यह दीर्घवृत्ताकार कक्षा में चक्कर लगायेगा जो धरती से कम कम 380 किलोमीटर और अधिक से अधिक 80 हजार किलोमीटर की दूरी वाली होगी। इसकी ऊँचाई में इतना अन्तर पर कोई भी रिसोर्स सर्वे की कोशिश नहीं करेगा। ज्ञातव्य है कि इसरो के अध्यक्ष ने हाल ही में कहा था कि मंगल अभियान के जरिये सार्थक शोध शुरू होगा।


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