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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, May 27, 2013

इस पागल दुनिया में सच्‍चा सरल आदमी ही पागल लगता है!गायक-अभिनेता किशोर कुमार से पत्रकार प्रीतीश नंदी की बातचीत

इस पागल दुनिया में सच्‍चा सरल आदमी ही पागल लगता है

27 MAY 2013 ONE COMMENT

गायक-अभिनेता किशोर कुमार से पत्रकार प्रीतीश नंदी की बातचीत

Kishore Kumar

यह एक दिलचस्‍प बातचीत है। अपनी तरह के अकेले और बेमिसाल गायक-अभिनेता किशोर कुमार से यह बातचीत पत्रकार प्रीतीश नंदी ने की थी। प्रीतीश के औपचारिक-पेशेवर सवालों का जवाब जितनी खिलंदड़ सहजता के साथ किशोर कुमार दे रहे हैं, उससे पता चलता है कि अपनी चरम लोकप्रियता का कोई बोझ वह अपने साथ लेकर नहीं चलते। इस बातचीत से यह भी पता चलता है कि एक महान रचनात्‍मक आदमी दुनियावी अर्थों में सफल होने के बाद भी अपना असल व्‍यक्तित्‍व नहीं खोता। यह इंटरव्यू पहली बार इलेस्‍ट्रेटेड वीकली के अप्रैल 1985 अंक में छपा था। इसका अनुवाद करके हिंदी में उपलब्‍ध कराने का श्रेय रंगनाथ सिंह को जाता है और सुना है कि ये अहा जिंदगी के जून अंक में प्रकाशित भी हुआ है: मॉडरेटर

मैंने सुना है कि आप बंबई छोड़ कर खंडवा जा रहे हैं…

इस अहमक, मित्रविहीन शहर में कौन रह सकता है, जहां हर आदमी हर वक्त आपका शोषण करना चाहता है? क्या तुम यहां किसी का भरोसा कर सकते हो? क्या कोई भरोसेमंद है यहां? क्या ऐसा कोई दोस्त है यहां जिस पर तुम भरोसा कर सकते हो? मैंने तय कर लिया है कि मैं इस तुच्छ चूहादौड़ से बाहर निकलूंगा और वैसे ही जीऊंगा जैसे मैं जीना चाहता था। अपने पैतृक निवास खंडवा में। अपने पुरखों की जमीन पर। इस बदसूरत शहर में कौन मरना चाहता है!!

आप यहां आये ही क्यों?

मैं अपने भाई अशोक कुमार से मिलने आया था। उन दिनों वो बहुत बड़े स्टार थे। मुझे लगा कि वो मुझे केएल सहगल से मिलवा सकते हैं, जो मेरे सबसे बड़े आदर्श थे। लोग कहते हैं कि वो नाक से गाते थे… लेकिन क्या हुआ? वो एक महान गायक थे। सबसे महान।

ऐसी खबर है कि आप सहगल के प्रसिद्ध गानों का एक एलबम तैयार करने की योजना बना रहे हैं…

मुझसे कहा गया था, मैंने मना कर दिया। उन्हें अप्रचलित करने की कोशिश मुझे क्यों करनी चाहिए? उन्हें हमारी स्मृति में बसे रहने दीजिए। उनके गीतों को उनके गीत ही रहने दीजिए। एक भी व्यक्ति को यह कहने का मौका मत दीजिए कि किशोर कुमार उनसे अच्छा गाता है।

यदि आपको बांबे पसंद नहीं था, तो आप यहां रुके क्यों? प्रसिद्धि के लिए? पैसे के लिए?

मैं यहां फंस गया था। मैं सिर्फ गाना चाहता था। कभी भी अभिनय करना नहीं चाहता था। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों की कृपा से मुझे अभिनय करने को कहा गया। मुझे हर क्षण इससे नफरत थी और मैंने इससे बचने का हर संभव तरीका आजमाया।

मैं सिरफिरा दिखने के लिए अपनी लाइनें गड़बड़ कर देता था, अपना सिर मुंड़वा दिया, मुसीबत पैदा की, दुखद दृश्यों के बीच मैं बलबलाने लगता था, जो मुझे किसी फिल्म में बीना राय को कहना था वो मैंने एक दूसरी फिल्म में मीना कुमारी को कह दिया – लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे जाने नहीं दिया। मैं चीखा, चिल्लाया, बौड़म बन गया। लेकिन किसे परवाह थी? उन्होंने तो बस तय कर लिया था कि मुझे स्टार बनाना है।

क्यों?

क्योंकि मैं दादामुनि का भाई था। और वह महान हीरो थे।

लेकिन आप सफल हुए…

बेशक मैं हुआ। दिलीप कुमार के बाद मैं सबसे ज्यादा कमाई कराने वाला हीरो था। उन दिनों मैं इतनी फिल्में कर रहा था कि मुझे एक सेट से दूसरे सेट पर जाने के बीच ही कपड़ने बदलने होते थे। जरा कल्पना कीजिए। एक सेट से दूसरे सेट तक जाते हुए मेरी शर्ट उड़ रही है, मेरी पैंट गिर रही है, मेरा विग बाहर निकल रहा है। बहुत बार मैं अपनी लाइनें मिला देता था और रुमानियत वाले दृश्य में गुस्सा दिखता था या तेज लड़ाई के बीच रुमानियत। यह बहुत बुरा था और मुझे इससे नफरत थी। इसने स्कूल के दिनों के दुस्वप्न जगा दिये। निर्देशक स्कूल टीचर जैसे ही थे। यह करो। वह करो। यह मत करो। वह मत करो। मुझे इससे डर लगता था। इसीलिए मैं अक्सर भाग जाता था।

खैर, आप अपने निर्देशकों और निर्माताओं को परेशान करने के लिए बदनाम थे। ऐसा क्यों?

बकवास। वे मुझे परेशान करते थे। आप सोचते हैं कि वो मेरी परवाह करते थे? वो मेरी परवाह इसलिए करते थे कि मैं बिकता था। मेरे बुरे दिनों में किसने मेरी परवाह की? इस धंधे में कौन किसी की परवाह करता है?

इसीलिए आप एकांतजीवी हो गये?

देखिए, मैं सिगरेट नहीं पीता, शराब नहीं पीता, घूमता-फिरता नहीं। पार्टियों में नहीं जाता। अगर ये सब मुझे एकांतजीवी बनाता है, तो ठीक है। मैं इसी तरह खुश हूं। मैं काम पर जाता हूं और सीधे घर आता हूं। अपनी भुतहा फिल्में देखने, अपने भूतों के संग खेलने, अपने पेड़ों से बातें करने, गाना गाने। इस लालची संसार में कोई भी रचनात्मक व्यक्ति एकांतजीवी होने के लिए बाध्य है। आप मुझसे यह हक कैसे छीन सकते हैं।

आपके ज्यादा दोस्त नहीं हैं?

एक भी नहीं।

यह तो काफी चालू बात हो गयी।

लोगों से मुझे ऊब होती है। फिल्म के लोग मुझे खासतौर पर बोर करते हैं। मैं पेड़ों से बातें करना पसंद करता हूं।

इसका मतलब आपको प्रकृति पसंद है?

इसीलिए तो मैं खंडवा जाना चाहता हूं। यहां मेरा प्रकृति से सभी संबंध खत्म हो गया है। मैंने अपने बंगले के चारों तरफ नहर खोदने की कोशिश की थी, जिससे मैं उसमें गंडोला चला सकूं। जब मेरे आदमी खुदाई कर रहे थे, तो नगर महापालिका वाले बंदे बैठे रहते थे, देखते थे और ना-ना में अपनी गर्दन हिलाते रहते थे। लेकिन यह काम नहीं आया। एक दिन किसी को एक हाथ का कंकाल मिला – एड़ियां मिलीं। उसके बाद कोई खुदाई करने को तैयार नहीं था। मेरा दूसरा भाई अनूप गंगाजल छिड़कने लगा, मंत्र पढ़ने लगा। उसने सोचा कि यह घर कब्रिस्तान पर बना है। हो सकता हो यह बना हो लेकिन मैंने अपने घर को वेनिस जैसा बनाने का मौका खो दिया।

लोगों ने सोचा होगा कि आप पागल हैं! दरअसल, लोग ऐसा ही सोचते हैं।

कौन कहता है मैं पागल हूं। दुनिया पागल है, मैं नहीं।

आपकी छवि अजीबोगरीब काम करने वाले व्यक्ति की क्यों है?

यह सब तब शुरू हुआ, जब एक लड़की मेरा इंटरव्‍यू लेने आयी। उन दिनों मैं अकेला रहता था। तो उसने कहा : आप जरूर बहुत अकेले होंगे। मैंने कहा नहीं, आओ मैं तुम्हें अपने कुछ दोस्तों से मिलवाता हूं। इसलिए मैं उसे अपने बगीचे में ले गया और अपने कुछ मित्र पेड़ों जनार्दन, रघुनंदन, गंगाधर, जगन्नाथ, बुधुराम, झटपटझटपट से मिलवाया। मैंने कहा, इस निर्दयी संसार में यही मेरे सबसे करीबी दोस्त हैं। उसने जाकर वह घटिया कहानी लिख दी कि मैं पेड़ों को अपनी बांहों में घेरकर शाम गुजारता हूं। आप ही बताइए इसमें गलत क्या है? पेड़ों से दोस्ती करने में गलत क्या है?

कुछ नहीं।

फिर यह इंटीरियर डेकोरेटर आया था। सूटेड-बूटेड, तपती गर्मी में सैविले रो का ऊनी थ्री-पीस सूट पहने हुए … मुझे सौंदर्य, डिजाइन, दृश्य क्षमता इत्यादि के बारे में लेक्चर दे रहा था। करीब आधे घंटे तक उसके अजीब अमेरिकन लहजे वाली अंग्रेजी में उसे सुनने के बाद मैंने उससे कहा कि मुझे अपने सोने वाले कमरे के लिए बहुत साधारण सी चीज चाहिए। कुछ फीट गहरा पानी, जिसमें बड़े सोफे की जगह चारों तरफ छोटी-छोटी नावें तैरें। मैंने कहा, सेंटर टेबल को बीच में अंकुश से बांध देंगे, जिससे उस पर चाय रखी जा सके और हम सब उसके चारों तरफ अपनी-अपनी नाव में बैठकर अपनी चाय पी सकें।

मैंने कहा, लेकिन नाव का संतुलन सही होना चाहिए, नहीं तो हम लोग एक-दूसरे से फुसफुसाते रह जाएंगे और बातचीत करना मुश्किल होगा। वह थोड़ा सावधान दिखने लगा, लेकिन जब मैंने दीवारों की सजावट के बारे में बताना शुरू किया तो उसकी सावधानी गहरे भय में बदल गयी।

मैंने उससे कहा कि मैं कलाकृतियों की जगह जीवित कौओं को दीवार पर टांगना चाहता हूं क्योंकि मुझे प्रकृति बहुत पसंद है। और पंखों की जगह हम ऊपर की दीवार पर पादते हुए बंदर लगा सकते हैं। उसी समय वह अपनी आंखों में विचित्र सा भाव लिये धीरे से खिसक लिया। आखिरी बार मैंने उसे तब देखा था, जब वह बाहर के दरवाजे से ऐसी गति से भाग रहा था कि इलेक्ट्रिक ट्रेन शरमा जाए। तुम ही बताओ, ऐसा लीविंग रूम बनाना क्या पागलपन है? अगर वह प्रचंड गर्मी में ऊनी थ्री पीस सूट पहन सकता है, तो मैं अपनी दीवार पर कौए क्यों नहीं टांग सकता?

आपके विचार काफी मौलिक हैं, लेकिन आपकी फिल्में पिट क्यों रही हैं?

क्योंकि मैंने अपने वितरकों को उनकी अनदेखी करने को कहा है। मैंने उनसे शुरू ही में कह दिया कि फिल्म अधिक से अधिक एक हफ्ता चलेगी। जाहिर है कि वे भाग गये और कभी वापस नहीं आये। आप को ऐसा निर्माता-निर्देशक कहां मिलेगा, जो खुद आपको सावधान करे कि उसकी फिल्म को हाथ मत लगाइए क्योंकि वह खुद भी नहीं समझ सकता कि उसने क्या बनाया है?

फिर आप फिल्म बनाते ही क्यों हैं?

क्योंकि यह भावना मुझे प्रेरित करती है। मुझे लगता है कि मेरे पास कहने के लिए कुछ है और कई बार मेरी फिल्में अच्छा प्रदर्शन भी करती हैं। मुझे अपनी एक फिल्म- 'दूर गगन की छांव में' याद है, अलंकार हॉल में यह मात्र 10 दर्शकों के साथ शुरू हुई थी। मुझे पता है क्योंकि मैं खुद हॉल में था। पहला शो देखने सिर्फ दस लोग आये थे! यह रिलीज भी विचित्र तरीके से हुई थी। मेरे बहनोई के भाई सुबोध मुखर्जी ने अपनी फिल्म अप्रैल-फूल जिसके बारे सभी जानते थे कि वो ब्लॉक-बस्टर होने जा रही है, के लिए अलंकार हॉल को आठ हफ्तों के लिए बुक करवा लिया था।

मेरी फिल्म के बारे में सभी को विश्वास था कि वो बुरी तरह फ्लॉप होने वाली है। तो उन्होंने अपनी बुकिंग में से एक हफ्ता मुझे देने की पेशकश की। उन्होंने बड़े अंदाज से कहा कि, तुम एक हफ्ते ले लो, मैं सात से ही काम चला लूंगा। आखिकार, फिल्म एक हफ्ते से ज्यादा चलने वाली है नहीं।

मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि यह दो दिन भी नहीं चलेगी। जब पहले शो में दस लोग भी नहीं आये तो उन्होंने मुझे दिलासा देते हुए कहा कि परेशान मत हो, कई बार ऐसा होता है। लेकिन परेशान कौन था? फिर, बात फैल गयी। जंगल की आग की तरह। और कुछ ही दिनों में हॉल भरने लगा। यह अलंकार में पूरे आठ हफ्ते तक हाउसफुल चली!

सुबोध मुखर्जी मुझ पर चिल्लाते रहे लेकिन मैं हॉल को हाथ से कैसे जाने देता? आठ हफ्ते बाद जब बुकिंग खत्म हो गयी, तो फिल्म सुपर हॉल में लगी और वहां फिर 21 हफ्तों तक चली! ये मेरी हिट फिल्म का हाल है। कोई इसकी व्याख्या कैसे करेगा? क्या आप इसकी व्याख्या कर सकते हैं? क्या सुबोध मुखर्जी कर सकते हैं, जिनकी अप्रैल-फूल बुरी तरह फ्लॉप हो गयी?

लेकिन आपको, एक निर्देशक के तौर पर पता होना चाहिए था?

निर्देशक कुछ नहीं जानते। मुझे अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर नहीं मिला। सत्येन बोस और बिमल रॉय के अलावा किसी को फिल्म निर्माण का "क ख ग घ" भी नहीं पता था। ऐसे निर्देशकों के साथ आप मुझसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

एसडी नारंग जैसे निर्देशकों को यह भी नहीं पता था कि कैमरा कहां रखें। वे सिगरेट का लंबा अवसादभरा कश लेते, हर किसी से शांत, शांत, शांत रहने को कहते, बेख्याल से कुछ फर्लांग चलते, कुछ बड़बड़ाते और कैमरामैन से जहां वह चाहे वहां कैमरा रखने को कहते थे।

मेरे लिए उनकी खास लाइन थी : कुछ करो। क्या कुछ? अरे, कुछ भी! अत: मैं अपनी उछलकूद करने लगता था। क्या अभिनय का यही तरीका है? क्या एक फिल्म निर्देशित करने का यही तरीका है? और फिर भी नारंग साहब ने कई हिट फिल्में बनायीं!

आपने अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का प्रस्ताव क्यों नहीं रखा?

प्रस्ताव! मैं बेहद डरा हुआ था। सत्यजित रॉय मेरे पास आये थे और वह चाहते थे कि मैं उनकी प्रसिद्ध कामेडी पारस पत्थर में काम करूं और मैं डरकर भाग गया था। बाद में तुलसी चक्रवर्ती ने वो रोल किया। ये बहुत अच्छा रोल था और इन महान निर्देशकों से इतना डरा हुआ था कि मैं भाग गया।

लेकिन आप सत्यजीत रॉय को जानते थे।

निस्‍संदेह, मैं जानता था। पाथेर पांचाली के वक्त जब वह घोर आर्थिक संकट में थे, तब मैंने उन्हें पांच हजार रुपये दिये थे। हालांकि उन्होंने पूरा पैसा चुका दिया, फिर भी मैंने कभी यह नहीं भूलने दिया कि मैंने उनकी क्लासिक फिल्म बनाने में मदद की थी। मैं अभी भी उन्हें इसे लेकर छेड़ता हूं। मैं उधार दिये हुए पैसे कभी नहीं भूलता!

अच्छा, कुछ लोग सोचते हैं कि आप पैसे को लेकर पागल हैं। अन्य लोग आप को ऐसा जोकर कहते हैं, जो अजीबोगरीब होने का दिखावा करता है, लेकिन असल में बहुत ही चालाक है। कुछ और लोग आपको धूर्त और चालबाज आदमी मानते हैं। इनमें से आपका असली रूप कौन सा है?

अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग समय में मैं अलग-अलग रोल निभाता हूं। इस पागल दुनिया में केवल सच्चा समझदार आदमी ही पागल प्रतीत होता है। मुझे देखो, क्या मैं पागल लगता हूं? क्या तुम्हें लगता है कि मैं चालबाज हूं?

मैं कैसे जान सकता हूं?

बिल्कुल जान सकते हो। किसी आदमी को देखकर उसे जाना जा सकता है। तुम इन फिल्मी लोगों को देखो और तुम इन्हें देखते ही जान लोगे कि ये ठग हैं।

मैं ऐसा मानता हूं।

मैं मानता नहीं, मैं यह जानता हूं। तुम उन पर धुर भर भरोसा नहीं कर सकते। मैं इस चूहादौड़ में इतने लंबे समय से हूं कि मैं मुसीबत को मीलों पहले सूंघ सकता हूं। मैंने मुसीबत को उसी दिन सूंघ लिया था, जिस दिन मैं एक पार्श्व गायक बनने की उम्मीद में बांबे आया लेकिन एक्टिंग में फंसा दिया गया था। मुझे तो पीठ दिखाकर भाग जाना चाहिए था।

आप ने ऐसा क्यों नहीं किया?

हालांकि इसके लिए मैं उसी वक्त से पछता रहा हूं। बूम बूम। बूम्प्टी बूम बूम चिकाचिकाचिक चिक चिक याडले ईईई याडले उउउउउ (जब तक चाय नहीं आ जाती याडलिंग करते हैं। कोई लिविंग रूम से उलटे हुए सोफे की ओर से आता है, थोड़ा दुखी दिख रहा है, उसके हाथ में चूहों द्वारा कुतरी हुई कुछ फाइलें हैं, जो वो किशोर को दिखाने के लिए लिये हुए है।)

ये कैसी फाइलें हैं?

मेरा इनकमटैक्स रिकॉर्ड।

चूहों से कुतरी हुई?

हम इनका प्रयोग चूहे मारने वाली दवाइयों के रूप में करते हैं। ये काफी प्रभावी हैं। इन्हें काटने के बाद चूहे आसानी से मर जाते हैं।

आप इनकम टैक्स वालों को क्या दिखाते हैं, जब वो पेपर मांगते हैं?

मरे हुए चूहे।

समझा…

तुम्हें मरे हुए चूहे पसंद हैं?

कुछ खास नहीं।

दुनिया के कुछ हिस्सों में लोग उन्हें खाते हैं।

मुझे भी लगता है।

Haute cuisine… महंगा भी। बहुत पैसे लगते हैं।

हां?

चूहे, अच्छा धंधा हैं। किसी के पास व्यावसायिक बुद्धि हो तो वह उनसे बहुत से पैसे कमा सकता है।

मुझे लगता है कि आप पैसे को लेकर बहुत ज्यादा हुज्जती हैं। मुझे किसी ने बताया कि एक निर्माता ने आपके आधे पैसे दिये थे, तो आप सेट पर आधा सिर और आधी मूंछ छिलवा कर पहुंचे थे। और आपने उससे कहा था कि जब वह बाकी पैसे दे देगा, तभी आप पहले की तरह शूटिंग करेंगे।

वो मुझे हल्के में क्यों लेंगे? ये लोग कभी पैसा नहीं चुकाते, जब तक कि आप उन्हें सबक न सिखाएं। मुझे लगता है कि वह फिल्म मिस मैरी थी और ये बंदे होटल में पांच दिन तक बिना शूंटिग किये मेरा इंतजार करते रहे। अत: मैं ऊब गया और अपने बाल काटने लगा।

पहले मैंने सिर के दाहिने तरफ के कुछ बाल काटे, फिर उसे बराबर करने के लिए बायीं तरफ के कुछ बाल काटे। गलती से मैंने थोड़ा ज्यादा काट दिया। इसलिए फिर से दाहिने तरफ का कुछ बाल काटना पड़ा। फिर से मैंने ज्यादा काट दिया। तो मुझे बायें तरफ का फिर से काटना पड़ा। ये तब तक चलता रहा जब तक कि मेरे सिर पर कोई बाल नहीं बचा और उसी वक्त उन्होंने मुझे सेट पर बुलाया। मैं जब इस हालत में सेट पर पहुंचा, तो सभी चक्कर खा गये।

इस तरह बांबे तक अफवाह पहुंची। उन्होंने कहा था कि मैं बौरा गया हूं। मुझे ये सब नहीं पता था। जब मैं वापस आया तो देखा कि हर कोई मुझे दूर से बधाई दे रहा है और दस फीट की दूरी से बात कर रहा है।

यहां तक कि जो लोग मुझसे गले मिला करते थे, वो भी दूर से हाथ हिला रहे थे। फिर किसी ने थोड़ा झिझकते हुए मुझसे पूछा कि अब मैं कैसा महसूस कर रहा था। मैंने कहा, बढ़िया। मैंने शायद थोड़ा अटपटे ढंग से कहा था। अचानक मैंने देखा कि वो लौट कर भाग रहा है। मुझसे दूर, बहुत दूर।

लेकिन क्या आप सचमुच पैसे को लेकर इतने हुज्जती हैं?

मुझे टैक्स देना होता है।

मुझे पता चला है कि आपको आयकर से जुड़ी समस्याएं भी हैं।

कौन नहीं जानता? मेरा मूल बकाया बहुत ज्यादा नहीं था लेकिन ब्याज बढ़ता गया। खंडवा जाने से पहले बहुत सी चीजें बेचने का मेरा प्लान है और इस पूरे मामले को मैं हमेशा के लिए हल कर दूंगा।

आपने आपातकाल के दौरान संजय गांधी के लिए गाने को मना कर दिया था और कहा जाता है कि इसीलिए आयकर वाले आपके पीछे पड़े। क्या यह सच है?

कौन जाने वो क्यों आये। लेकिन कोई भी मुझसे वो नहीं करा सकता जो मैं नहीं करना चाहता। मैं किसी और की इच्छा या हुकुम से नहीं गाता। लेकिन समाजसेवा के लिए मैं हमेशा ही गाता हूं।

आपके घरेलू जीवन की मुश्किलें क्‍या हैं? इतनी परेशानियां क्यों?

क्योंकि मैं अकेला छोड़े जाना पसंद करता हूं।

आपकी पहली पत्नी रुमा देवी के संग क्या समस्या हुई?

वो बहुत ही प्रतिभाशाली महिला थीं लेकिन हम साथ नही रह सके क्योंकि हम जिंदगी को अलग-अलग नजरिये से देखते थे। वो एक क्वॉयर और कॅरियर बनाना चाहती थी। मैं चाहता था कि कोई मेरे घर की देखभाल करे। दोनों की पटरी कैसे बैठती?

देखो, मैं एक साधारण दिमाग गांव वाले जैसा हूं। मैं औरतों के करियर बनाने वाली बात समझ नहीं पाता। बीवियों को पहले घर संवारना सीखना चाहिए। और आप दोनों काम कैसे कर सकते हैं? करियर और घर दो भिन्न चीजें हैं। इसीलिए हम दोनों अपने-अपने अलग रास्तों पर चल पड़े।

आपकी दूसरी बीवी, मधुबाला?

वह मामला थोड़ा अलग था। उससे शादी करने से पहले ही मैं जानता था कि वो काफी बीमार है। लेकिन कसम तो कसम होती है। अत: मैंने अपनी बात रखी और उसे पत्नी के रूप में अपने घर ले आया, तब भी जब मैं जानता था कि वह हृदय की जन्मजात बीमारी से मर रही है। नौ सालों तक मैंने उसकी सेवा की। मैंने उसे अपनी आंखों के सामने मरते देखा। तुम इसे नहीं समझ सकते जब तक कि तुम इससे खुद न गुजरो। वह बेहद खूबसूरत महिला थी लेकिन उसकी मृत्यु बहुत दर्दनाक थी।

वह फ्रस्ट्रेशन में चिड़चिड़ाती और चिल्लाती थी। इतना चंचल व्यक्ति किस तरह नौ लंबे सालों तक बिस्तर पर पड़ा रह सकता है। और मुझे हर वक्त उसे हंसाना होता था। मुझसे डॉक्टर ने यही कहा था। उसकी आखिरी सांस तक मैं यही करता रहा। मैं उसके साथ हंसता था, उसके साथ रोता था।

आपकी तीसरी शादी? योगिता बाली के साथ?

वह एक मजाक था। मुझे नहीं लगता कि वह शादी के बारे में गंभीर थी। वह बस अपनी मां को लेकर ऑब्सेस्ड थी। वो यहां कभी नहीं रहना चाहती थी।

लेकिन वो इसलिए कि वह कहती हैं कि आप रात भर जागते और पैसे गिनते थे।

क्या तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा कर सकता हूं? क्या तुम्हें लगता है कि मैं पागल हूं? खैर, ये अच्छा हुआ कि हम जल्दी अलग हो गये।

आपकी वर्तमान शादी?

लीना अलग तरह की इंसान है। वह भी उन सभी की तरह अभिने़त्री है लेकिन वह बहुत अलग है। उसने त्रासदी देखी है। उसने दुख का सामना किया है। जब आपके पति को मार दिया जाए, आप बदल जाते हैं। आप जिंदगी को समझने लगते हैं। आप चीजों की क्षणभंगुरता को महसूस करने लगते हैं। अब मैं खुश हूं।

आपकी नयी फिल्म? क्या आप इसमें भी हीरो की भूमिका निभाने जा रहे हैं?

नहीं, नहीं नहीं। मैं केवल निर्माता-निर्देशक हूं। मैं कैमरे के पीछे ही रहूंगा। याद है, मैंने तुम्हें बताया था कि मैं एक्टिंग से कितनी नफरत करता हूं? अधिक से अधिक मैं यही कर सकता हूं एकाध सेकेंड के लिए स्क्रीन पर किसी बूढ़े आदमी या कुछ और बनकर दिखाई दूं।

हिचकॉक की तरह?

हां, मेरे पसंदीदा निर्देशक। मैं दिवाना हूं लेकिन सिर्फ एक चीज का। हॉरर फिल्मों का। मुझे भूत पसंद हैं। वो डरावने मित्रवत लोग होते हैं। अगर तुम्हें उन्हें जानने का मौका मिले तो वास्तव में बहुत ही अच्छे लोग। फिल्मी दुनिया वालों की तरह नहीं। क्या तुम किसी भूत को जानते हो?

बहुत दोस्ताना वाले नहीं।

लेकिन अच्छे, डरावने वाले?

दरअसल नहीं।

लेकिन हमलोग एक दिन ऐसे ही होने वाले हैं। इसकी तरह (एक कंकाल की तरफ इशारा करते हैं जिसे वो सजावट की तरह प्रयोग करते हैं। कंकाल की आंखों से लाल प्रकाश निकलता है) – तुम यह भी नहीं जानते कि यह आदमी है या औरत। लेकिन यह अच्छा है। दोस्ताना भी। देखो, अपनी गायब नाक पर मेरा चश्मा लगा कर ये ज्यादा अच्छा नहीं लगता?

सचमुच, बहुत अच्छा।

तुम एक अच्छे आदमी हो। तुम जिंदगी की असलियत को समझते हो। तुम एक दिन ऐसे ही दिखोगे।

इस इंटरव्यू को सीधे अंग्रेजी में पढ़ना चाहें, तो उसके लिए
ये लिंक है: I screamed, pretended to be crazy: Kishore Kumar in 1985

http://mohallalive.com/2013/05/27/pritish-nandy-s-extraordinary-interview-with-kishore-kumar-in-april-1985/

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