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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, April 15, 2014

आखिर क्यों है बंगाल अपराधियों के लिए जन्नत?क्यों मुठभेड़ को आखिरी विकल्प मानने लगे हैं अफसरान?

आखिर क्यों है बंगाल अपराधियों के लिए जन्नत?क्यों मुठभेड़ को आखिरी विकल्प मानने लगे हैं अफसरान?

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



आखिर क्यों है बंगाल अपराधियों के लिए जन्नत?


क्यों मुठभेड़ को आखिरी विकल्प मानने लगे हैं अफसरान?


क्योंकि बंगाल में  अपराधकर्म  पर कोई अंकुश  नहीं है!अपराधी गिरोह बाकायदा प्रतिष्ठानिक और संस्थागत हैं बंगाल में। हर गैरकानूनी काम का ठेका उन्हें ज्यादातर राजनैतिक दलों से मिलता है!ऊपर से पुलिस के भी हाथ बंधे हुए है।


राजनीतिक संरक्षण की वजह से अपराधी खुलेआम आजाद घूमते हैं।राजनीतिक मंचों पर शिखरस्थ राजनेताओं के साथ अमूमन मौजूद अपराधियों को छूने की भी जुर्रत नहीं कर पाता पुलिस प्रशासन।


आपराधिक गिरोहबंदी बाकायदा राजनीतिक संस्कृति बन गयी है और कानून के रखवालों का हौसला पस्त है।


अपराध को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है डर। अब पुलिस महकमे में इस बात की खास चर्चा है कि बंगाल में एंकाउंटर होता ही नहीं है। कानूनी प्रक्रिया में जहां अपराध पर अंकुश लगाना बेहद पेचीदा है और राजनीतिक हस्तक्षेप से अपाऱाधी आसानी से छूट भी जाते है,वहां मुठभेड़ के अलावा कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं।


बंगाल में राजनीतिक वर्चस्व से आम जनता और उद्योग कारोबार की हालत जो है ,वह है,लेकिन इससे सीधे तौर पर पुलस प्रशासन का हौसला पस्त हो रहा है।कानून व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों को जब आत्मसम्मान और प्रतिष्ठा तिलांजलि देकर आपराधिक तत्वों के साथ घुटने टेकने पड़े,तो कम से कम आईपीएस और आईएएस कैडर के लोगों को फिर मुंबई में गैंगस्टार सफाये की एंकाउंटर पद्धति इस मकड़जाल से निकलने की एकमात्र राह दिखायी देती है।


वैसे बंगाल में एंकाउंटर पद्धति का प्रयोग नहीं हुआ है,ऐसा कहना भी इतिहास से मुंह चुराना होगा।मुंबई में माफिया गिरोह के खिलाफ एंकांउटर शुरु होने से काफी पहले, गुजरात और यूपी के एंकांउटर बूम धूम से भी पहले खालिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ बंगाल के ही सिर्द्धार्थ शंकर राय के निर्देशन में केपीएस गिल ने मुठभेड़ को सर्जिकल पद्धति से अंजाम दिया है।


गौरतलब है कि मौलिक मुठभेड़ संस्कृति भी सिद्धार्थ शंकर राय और उनके तत्कालीन पुलिस मंत्री और इस वक्त मां माटी मानुष सरकार के पंचायतमंत्री सुब्रत मुखर्जी का आविस्कार है,जिसके जरिये बंगाल भर में लोकप्रिय जनविद्रोह नक्सलबाड़ी आंदोलन में घुसपैठ के जरिये पहले गैंग वार के परिदृश्य रचे दिये गये और एक के बाद एक सारे के सारे नक्सली मार गिराये गये।


हाल में इसी मां माटी मानुष की सरकार ने भी परिवर्तन के बाद माओवादी नेता किशनजी को मुठभेड़ में मार गिराने में सफलता अर्जित की।


विडंबना यह है कि राजनीतिक हस्तक्षेप से मुठभेड़ को अपराध से निपटने की सर्वश्रेष्ठ पद्धति मानने वाले पुलिसवाले यह तथ्य सिरे से भूल रहे हैं कि मुठभेड़ संस्कृति भी राजनीतिक वर्चस्व की ही सुनहरी फसल है।


राजनीतिक फायदे के लिए ही हस्तक्षेप के बदले मुठभेड़ के तौर तरीके अपनाती हैं सरकारें और इस महायज्ञ में भवबाधा की स्थिति में इसी यज्ञ में पुर्णाहुति भी अंततः पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की दे दी जाती है।


ऐसा मुंबई में अक्सर होता है।गुजरात और यूपी में होते रहे हैं।बंगाल में तो खूब हुआ है,पंजाब में भी बखूब।कश्मीर में तो रोज हो रहा है और उत्तरपूर्व में रोजमर्रे की जिंदगी है मुठभेड़ संस्कृति।


फिर भी न कहीं अपराधकर्म पर अंकुश लगा है और न दो चार अपराधियों को मुठभेड़ में मार गिरा देने से कानून और व्यवस्था की स्थिति सुधरती है और न राजनीतिक हस्तक्षेप से रोज मर मर कर जीने की अफसरान की तकदीर बदलती है।


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