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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, April 9, 2014

क्या हालात सच में हमारे पक्ष में हैं?क्या हम सच में आजाद हैं?

क्या हालात सच में हमारे पक्ष में हैं?क्या हम सच में आजाद हैं?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



क्या हालात सच में हमारे पक्ष में हैं?


आज हम इस भ्रम  में जी रहे है कि हम आजाद हैं। क्या हम सच में आजाद है? हम कमा तो रहे हैं मगर दूसरों के लिए मजदूर बनके ।मजदूरी की औकात के सिवाय इस मुक्त बाजारु अर्थव्यवस्था में आम आदमी आम औरत के हिस्से में कुछ नहीं है। कांग्रेस और भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में युद्धरत प्रतिपक्ष है।पूरा देश नमोमय बनने को तैयार है और अब भारत उदय के बाद ब्रांड इंडिया की बारी है। जनादेश चाहे कुछ हो,सरकार चाहे किसी की  हो,खूनी आर्थिक एजंडा ही सार्वभौम संकल्पपत्र है जो कारपोरेट राज में सत्ता का पारपत्र है।


हिंदू राष्ट्र की बुनियादी अवधारणा गैरहिंदुओं के लिए नागरिक अधिकारों का निषेध है।गैर हिंदू महज विधर्मी नहीं है। यह समझने वाली बात है। गैरहिंदू में शमिल वे तमाम लोग हैं जो इस वक्त हिंदू राष्ट्र के सिपाहसालार और पैदलसेनाें हैं। ग्रहांतरवासी देवों देवियों  के हाथों बेदखल है देश और पूरी अर्थव्यवस्था उन्हीं के नियंत्रण में है।वे छिनाल पूंजी कालाधन के कारोबारी है और शेयर बाजार में सांढ़ों की दौड़ से जाहिर है कि वित्तीय पूंजी,विदेशी पूंजी और विदेशी निवेशकों के हाथ में हमारा रिमोट कंट्रोल है। दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के प्रति प्रतिबद्ध हैं हमारे चुनकर संसदीय लोकतंत्र चलाने वाले तमाम भावी जनप्रतिनिधि।


विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों को तरजीह,खुदरा कारोबार से लेकर रक्षा क्षेत्र तक में अबाध विदेशी प्रत्यक्ष निवेश,अंधाधुंध विनवेश,ठेका मजदूरी के मार्फत पढ़े लिखे कुशल और दक्ष नागरिक बहुराष्ट्रीय पूंजी और कारपोरेट इंडिया के बंधुआ मजदूरों में तब्दील है तो ब्रांड इंडिया के देश बेचो अभियान के तहत जल जंगल जमीन से बेदखल विस्थापन के शिकार लोग भी तमाम तरह की रंग बिरंगी कारपोरेट जिम्मेदारी और सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के ताम झाम के बावजूद बाजार में अपना वजूद कायम रखने के लिए महज बंधुआ मजदूर हैं।


वोट डालने के अलावा मतदान समय से पहले और बाद भारतीय नागरिकों के हक हूक सिरे से लापता हैं। भारत सरकार न संसद और जनता के प्रति जवाबदेह हैं। नीति निर्धारण कारपोरेट है तोकारपोरेट लाबिइंग से राजकाज। आम जनता का किसी बिंदू पर कोई हस्तक्षेप नहीं है। वोट डालने के बाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया से फारिग नागरिकों के मौलिक अधिकार तक खतरे में हैं।नागरिको के सशक्तीकरण के लिए जो कारपोरेट प्रकल्प असंवैधानिक आधार है,उसके तहत हम अपनी पुतलियां और आंखों की छाप कारपोरेट साम्राज्यवादी तंत्र को खुली निगरानी के लिए सौंप ही चुके हैं।आप को चूं तक करने की इजाजत नहीं है।


कर प्रणाली बदलकर वित्तीय घाटा राजस्व घाटा का सारा बोझ आम लोगों पर डालने की तैयारी है।निजी कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस देने के मार्फत अब पूंजी जुटाने के लिए कारपोरेट इंडिया को पब्लिक इश्यु भी जारी करने की जरुरत नहीं है।जो शेयर बेचे जायेंगे वे सरकारी क्षेत्र के बचे हुए उपक्रम ही होंगे तो खरीददार भी भारतीय जीवन बीमा निगम और स्टेट बैंक आफ इंडिया जैसे संस्थान, जिन्हें तबाह किया जाना है। बीमा, पेंशन,भविष्यनिधि तक बेदखल है और अब जमा पूंजी भी सीधे बाजार में आपकी इजाजत के बिना।ऊपर से प्रत्यक्ष कर संहिता और जीएसटी की तैयारी है।एफडीआई तो खुलेआम है।


इस अर्थ तंत्र में बंधुआ बने आम नागरिकों के हकहकूक मारने के लिए एक तरफ तो संवैधानिक रक्षाकवच तोड़े जा रहे हैं,पांचवीं और छठीं अनुसूचियां लागू नहीं है। प्रकृति औरपर्यावरणपर कुठाराघात है और अंधाधुंध निजीकरण से सरकारी नियुक्तियां खत्म हो जाने की वजह से आरक्षण की कोई प्रासंगिकता ही नहीं है। रोजगार दफ्तरों को कैरियर काउंसिलिंग सेंटर बनाकर आम जनता को किसी भी तरह की नौकरी से वंचित करने का खुला एजंडा है। कैंपस रिक्रूटिंग से हायर और फायर होना है बंधुआ मजदूरों का और नियोक्ता का सारा उत्तरदायित्व सिर से खत्म है।


जो मीडिया कर्मी मोदी सुनामी बनाने के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं, मजीठिया के हश्र को देखकर भी वे होश में नहीं है।वैसे मीडिया में स्थाई नौकरियां अब हैं ही नहीं। वेतनमान लागू होता ही नहीं है।श्रम कानून कहीं लागू है ही नहीं।न किसी कस्म की आजादी है।पेड न्यूज तंत्र में लगे इन बंधुआ मजदूरों की छंटनी भी आम है।नौकरी बनी रही तो कूकूरगति है। अब पूरे देश के अर्थ तंत्र का,उत्पादन इकाइयों का यही हश्र हो ,इसकी हवा और लहर बनाने में मीडिया के लोग जान तक कुर्बानकरने को तैयार हैं।


नवउदारवादी जमाने में किसान और खेत,देहात और जनपदों का सफाया है।विस्थापन और मृत्यु जुलूस रोजमर्रे की जिंदगी है।कल कारखाने कब्रिस्तान बन गये है। शैतानी औद्योगिक  गलियारो और हाईवे बुलेट ट्रेन  नेटवर्क में देहात भारत की सफाये की पूरी तैयारी है औरकहीं से कोई प्रतिवाद प्रतिरोध नहीं है।


फिरभी हम आजाद हैं। आजादी काजश्न मना रहे हैं हम।


क्या हालात सच में हमारे पक्ष में हैं?


आज हम इस भ्रम  में जी रहे है कि हम आजाद हैं। क्या हम सच में आजाद है?


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