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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, April 26, 2014

हरियाणा में हो रहे दलित और स्त्री उत्पीड़न के खि़लाफ़ आवाज़ उठाओ!

हरियाणा में हो रहे दलित और स्त्री उत्पीड़न के खि़लाफ़ आवाज़ उठाओ!


बोल के लब आज़ाद हैं तेरे!

इंसाफ़पसन्द नौजवान साथियो!
अभी इस बात को ज़्यादा समय नहीं हुआ है जब हरियाणा में लगातार एक दर्जन से भी अध्कि बलात्कार और स्त्री उत्पीड़न की घटनाएँ सामने आयी थी। एक बार फिर से मानवता को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। 23 मार्च को घटी यह घटना हिसार के भगाना गाँव की है जहाँ सवर्ण जाति के युवकों ने चार दलित लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया। पाँच अभियुक्त गिरफ्ऱतार हो चुके हैं किन्तु पीडि़त, दोषियों को कड़ी सजा दिलाने तथा अपने पुनर्वास व मुआवजे को लेकर अभी तक संघर्षरत हैं। यह वही भगाना गाँव है जिसके करीब 80 दलित परिवार समाज के ठेकेदारों की मनमानी और बहिष्कार के कारण निर्वासन झेल रहे हैं। दलित उत्पीड़न के पूरे सामाजिक और आर्थिक शोषण-उत्पीड़न में मुख्य भूमिका निभाने वाली खाप पंचायत ही है जो सामन्ती अवशेषों और सड़े मुध्ययुगीन रीति-रिवाजों का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही पूँजीवादी चुनावी पार्टियाँ वोटबैंक बटोरने के लिए खाप पंचायत का इस्तेमाल करती है। तभी कोई भी चुनावी पार्टी खाप पंचायतों से बैर नहीं लेती।
दूसरा दलित उत्पीड़न के मामलों में क़ानून व्यवस्था और पुलिस प्रशासन का रवैया आमतौर पर दोयम दर्जे का ही होता है। उफँची जातियों की खाप पंचायतें और विभिन्न जातीय संगठन दलितों के प्रति लोगों के दिमागों में पैठी भेद-भावपूर्ण सोच को मजबूत करने का ही काम करते हैं, बदले में तमाम दलितवादी संगठन भी अपने चुनावी और संकीर्ण हितों के लिए मुद्दा ढूंढ लेते हैं। दोस्तो! आज यह वक्त की ज़रूरत है कि हम तमाम जातीय भेदों से उफपर उठें क्योंकि तभी हम शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार आदि जैसी अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए लड़ सकते हैं और संगठित होकर ही उन्हें हासिल कर सकते हैं। तमाम चुनावी पार्टियों और जातीय संगठनों के झांसे में आये बिना मेहनतकश आवाम को वर्गीय आधार पर एकजुट होना होगा। समाज से भेद-भाव और जातीय उत्पीड़न के कूड़े को साफ़ कर देना होगा तथा जहाँ कहीं भी इस प्रकार की घटनाएँ नज़र आयें सभी न्यायप्रिय इंसानों को इनका पुरजोर विरोध करना चाहिए।
अब आते हैं स्त्री उत्पीड़न पर। भगाना गाँव की सामूहिक बलात्कार की यह हृदय विदारक घटना पहली घटना नहीं है बल्कि स्त्री विरोधी ऐसी घटनाएँ आए दिन हमारे समाज में घटती रहती हैं। विरोध में देश का संवेदनशील तबका उतर भी जाता है, टीवी-अखबारों में कुछ सुर्खियाँ भी बन जाती हैं किन्तु नासूर की तरह स्त्री उत्पीड़न का रोग हमारे समाज का पीछा छोड़ता नजर नहीं आता। बल्कि इस नासूर की पीव और गन्दगी हर दिन हमारे सामने रिस-रिस कर आती रहती है। अभी तरुण तेजपाल जैसे प्रतिष्ठित पत्रकार के मामले को ज्यादा समय नहीं हुआ है, और पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश पर भी यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था। हमें यह सोचना होगा कि ये स्त्री विरोधी घटनाएँ तमाम विरोध के बावजूद रुकने की बजाय क्यों लगातार बढ़ रही हैं? क्या 16 दिसम्बर की घटना का विरोध कम हुआ था? क्या ये महज एक क़ानूनी मुद्दा है जो कड़ी दण्ड व्यवस्था और जस्टिस वर्मा जैसी कमेटी से हल हो जायेगा? जिस देश में थानों में बलात्कार की घटनाएँ हो जाती हों वहाँ क्या पुलिस के भरोसे सब-कुछ छोड़ा जा सकता है? क्या हमें संसद में बैठे अपने तथाकथित जनप्रतिनिधियों पर भरोसा करना चाहिए जिनमें से बहुतों पर पहले ही बलात्कार और संगीन अपराधिक मामले दर्ज हैं? हमें इस सवाल की पूरी पड़ताल करनी होगी। सरकार, विपक्ष, खाप पंचायतों के अलावा मीडिया भी इन घटनाओं की भट्ठी पर अपनी रोटी सेंकने का ही काम करता है। इन दर्दनाक घटनाओं को मीडिया सनसनीखेज़ तौर पर मसाला लगाकर पेश करता है। नतीजतन, टेलीविज़न देखने वाली आबादी के भीतर ऐसी घटनाएँ नफरत नहीं पैदा करती। ऐसी घटनाएँ भी सनसनीखेज मनोरंजन का मसाला बना दी जाती हैं। और देश के काॅरपोरेट बाज़ारू मीडिया से और कोई उम्मीद की भी नहीं जा सकती, जिसके लिए इंसान की तकलीफ, दुख-दर्द भी बेचा-ख़रीदा जाने वाला माल है।
आज एक तरफ़ जहाँ स्त्री उत्पीड़न के दोषियों का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए व उन्हें सख़्त सजाएँ दिलाने के लिए एकजुट आवाज़ उठानी चाहिए वहीं स्त्री उत्पीड़न की जड़ों तक भी जाया जाना चाहिए। इन घटनाओं का मूल कारण मौजूदा पूँजीवादी सामाजिक-आर्थिक ढांचे में नजर आता है। पूँजीवाद ने स्त्री को एक माल यानी उपभोग की एक वस्तु में तब्दील कर दिया है जिसे कोई भी नोच-खसोट सकता है। मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था ने समाज में अपूर्व सांस्कृतिक-नैतिक पतनशीलता को जन्म दिया है और हर जगह इसी पतनशीलता का आलम है। समाज के पोर-पोर में पैठी पितृसत्ता ने स्त्री उत्पीड़न की मानसिकता को और भी खाद-पानी देने का काम किया है। आम तौर पर मानसिक रूप से बीमार लोगों को ग़रीब घरों की महिलाएँ आसान शिकार के तौर पर नज़र आती हैं। खासकर 90 के दशक में उदारीकरण-निजीकरण की नीतियाँ लागू होने के बाद एक ऐसा नवधनाड्य वर्ग अस्तित्व में आया है जो सिर्फ 'खाओ-पीओ और मौज करो' की पूँजीवादी संस्कृति में लिप्त है। इसे लगता है कि यह पैसे के दम पर कुछ भी ख़रीद सकता है। पुलिस और प्रशासन को तो यह अपनी जेब में ही रखता है। यही कारण है कि 1990 के बाद स्त्री उत्पीड़न की घटनाओं में गुणात्मक तेजी आयी है। यह मुनाफ़ाकेन्द्रित पूँजीवादी व्यवस्था सिर्फ सांस्कृतिक और नैतिक पतनशीलता को ही जन्म दे सकती है जिसके कारण रुग्ण और बीमार मानसिकता के लोग पैदा होते हैं।
जाहिरा तौर लूट, अन्याय और गैर-बराबरी पर टिकी व्यवस्था में कोई कानून या सुधार करेगें ऐसी घटनओं का कोई स्थायी समाधान नहीं किया जा सकता है क्योंकि अमीर-गरीब में बंटे समाज में हमेशा न्याय-कानून अमीर वर्ग की बपौती रहती हैं। इसलिए हमें समझना होगा कि हमारी असली दुश्मन मनावद्रोही पूँजीवादी व्यवस्था है। जिसको ध्वंस किये बिना मज़दूर,गरीब किसान, दलितों, स्त्रियों की मुक्ति सम्भव नहीं है जैसे शहीदेआज़म भगतसिंह ने कहा था ''लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की जरूरत है। गरीब मेहनतकश व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं, इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए। संसार के सभी गरीबों के, चाह वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग,नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताक़त अपने हाथ में लेने का यत्न करो। इन यत्नों में तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी जंज़ीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी।''
हम देश के उन बहादुर, इंसाफ़पसन्द युवाओं और नागरिकों से मुख़ातिब हैं जो कैरियर बनाने की चूहा दौड़ में रीढ़विहीन केंचुए नहीं बने हैं, जिन्होंने अपने ज़मीर का सौदा नहीं किया हैऋ जो न्याय के पक्ष में खड़े होने का माद्दा रखते हैं। साथियो! हमें उठना ही होगा और तमाम तरह के दलित और स्त्री उत्पीड़न का पुरजोर विरोध करना होगा। सड़ी और मध्युगीन सोच को उसकी सही जगह इतिहास के कूड़ेदान में पहुँचा देना होगा।
क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ-

भगतसिंह को याद करेगें! जुल्म नहीं बर्दाश्त करेगें!!

नौजवान भारत सभा  दिशा छात्र संगठन

सम्पर्क- योगेश-9289498250 सनी-9873358124 नवीन-8750045975
नौजवान भारत सभा की ओर से योगेश द्वारा जनहित में जारी। 21 अप्रैल,2014

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