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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, February 13, 2012

Fwd: [initiative-india] Lokshakti Abhiyan announces National Jan Sansad During Budget Session. New Delhi, March 19th - 23rd



---------- Forwarded message ----------
From: NAPM India <napmindia@napm-india.org>
Date: 2012/2/13
Subject: [initiative-india] Lokshakti Abhiyan announces National Jan Sansad During Budget Session. New Delhi, March 19th - 23rd
To: napm india <napmindia@gmail.com>



English release attached

लोकशक्ति अभियान का महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा समाप्त

दिल्ली में बजट सत्र के दौरान जनसंसद मार्च १९ से २३ तक की घोषणा

नागपुर, फरवरी १३ : आज लोकशक्ति अभियान के चौथे चरण की समाप्ति के बाद देश के करीब बारह राज्यों के साथियों ने एक दिन की परिचर्चा आगे की दिशा तय करने के लिए की | बैठक में

मेधा पाटकर, डॉ. सुनीलम, गौतम बंदोपाध्याय, सुनीति एस आर, विलास भोंगाडे, गाब्रिएले डिएट्रिच, मनीष गुप्ता, विमल भाई, भूपिंदर सिंह रावत, गुरवंत सिंह, राकेश रफीक, रवि किरण, सरस्वती कवुला, प्रसाद बागवे, मधुरेश कुमार, अनिल वर्गेस, राज सिंह महेंद्र यादव और अन्य साथियों ने भागीदारी की | इसके पहले जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समनवय ने अन्य कई संगठनों के साथ मिलकर दिसम्बर महीने से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा राज्यों में लोकशक्ति अभियान के तहत एक पूर्ण बदलाव के मसौदे को लेकर स्थानीय संघर्षों से कंधे से कंधे मिलाते हुए चले | आज की बैठक के बाद देश के अन्य राज्यों ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से लगे हुए क्षेत्रों में भी अभियान आगे के दिनों में जायेगा | इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि आगामी संसद के बजट सत्र के दौरान १९ से २३ तारीख तक एक राष्ट्रीय जनसंसद का आयोजन किया जाएगा |

सन्दर्भ

हम बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। लोगों के एक छोटे से हिस्से के लिए यह कभी इतना अच्छा नहीं था। उच्च स्तरीय बुनियादी ढांचे, निजी तौर पर संचालित हवाई अड्डे, अपेक्षाकृत सस्ती हवाई यात्रा, फर्राटेदार कारें, उच्च वेतन एवं 9 फीसदी का विकास दर। किसानों की आत्महत्या, व्यापक स्तर पर विस्थापन, आदिवासियों की जमीनें, जंगलों एवं संसाधनों को हड़पने के लिए पुलिस एवं अर्धसैनिक बलों का प्रयोग और किसी विरोध पर उनकी हत्या, बुनियादी ढांचों के कारण शहरी गरीबों से रोजगार छीनना, हरेक विकास परियोजना में व्यापक घोटाले वास्तव में मीडिया के ध्यान की वजहे नहीं हैं और इस तरह कुछ अन्य कहानियां होनी चाहिए!

आज हमारे यहां 'जीवंत लोकतंत्र', 'निष्पक्ष अदालतो', 'स्वतंत्र मीडिया', 'मजबूत विपक्ष' का विरोधाभास मौजूद है, इसके अलावा सरकार व कंपनियों के गठजोड़ से कलिंगनगर, नियमगिरी या जगतसिंहपुर में, या महुआ और मुंद्रा में, या पोलावरम, सोमपेटा में, या तमाम अन्य जगहों पर, जबरदस्त हिंसा जारी है, या फिर भूमि अधिग्रहण, संसाधन हड़पने या पर्यावरणीय मंजूरियों के मामले में कानूनों का जबरदस्त उल्लंघन हो रहा है। निश्चित तौर पर वहां कथित माओवादियों द्वारा हिंसक प्रतिरोध हो रहा है। हमें सरकारी और गैर-सरकारी पक्षों द्वारा हिंसा और एक दूसरे को जायज ठहराने का का दुखद तमाशा दिखाई देता है। इस बात पर अचम्भा होता है कि क्या इस 'लोकतंत्र' में असल किरदार, अर्थात आदिवासियों, दलितों, किसानों, खेतिहर मजदूरों, फैक्टरी कर्मचारियों, मछुआरों या अन्य मेहनती लोगों के लिए कोई जगह है? सच्चाई तो यह है कि आज की सरकार अति हिंसा के साथ वार्ता की इच्छा का दिखावा करती है।

उन लोगों के लिए लोकतंत्र के सभी स्तंभ विफल रहे हैं, जिन लोगों ने हमारी आजादी के लिए संघर्ष किया एवं संविधान के संस्थापक हैं। वे भूमिहीन किसान, वनवासी एवं मेहनती लोग ही हैं जिन्होंने न सिर्फ अपने जीवन के लिए बल्कि अपने घरों, जमीनों, जंगलों, नदियों एवं समुद्रों की रक्षा के लिए संघर्ष किया है और आज जो लोकतंत्र कायम है उन्हीं लोगों की वजह से है। इस अभूतपूर्व निराशा के बावजूद, कार्यकर्ता, संबंधित नागरिक एवं उनके संगठन बदलाव के लिए संघर्ष कर रहे हैं और वे ही इस बाजारवादी, पश्चिमी नियंत्रण वाले लोकतंत्र के खिलाफ सीना ताने खड़े हैं। इस पृष्ठभूमि में दलदल से बाहर निकलने के लिए हम जमीनी स्तर के ऐसे लोकतंत्र का प्रस्ताव करते हैं जो कि लोगों को प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी का अवसर प्रदान करे और उन्हें सशक्त बनाए। इस तरह का मार्ग जन संसद हो सकता है।

जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समनवय ने अन्य कई संगठनों के साथ मिलकर दिसम्बर महीने से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा राज्यों में लोकशक्ति अभियान के तहत एक पूर्ण बदलाव के मसौदे को लेकर देश के हर कोने से लोग स्थानीय संघर्षों से कंधे से कंधे मिलाते हुए चले | देश के अन्य राज्यों ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से लगे हुए क्षेत्रों में भी अभियान आगे के दिनों में जाएगा इन मसौदों को लेकर |

अवधारणा

देश में चल रहे आंदोलनों ने यह तो जाहिर कर ही दिया है के सन ९० के दशक से हमारे देश के कानून हमारी संसद में कम और पूंजीपति कम्पनियों, देशी और विदेशी वित्त संस्थानों जिसमे विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा ज्यादा बनाये जा रहे हैं | ऐसे में जब जन आंदोलन हमारे देश की संसद और सांसदों को चुनौती देते हैं और यह कहते हैं की वे संविधान की बुनियादी सिद्धांतों से भटक रहे हैं तो हमेशा यह सवाल उठता हैं की आप कौन होते हैं, हम तो चुनाव में चुन कर आये हैं और देश कि संसद सर्वोपरि है |

देश के संसद सर्वोपरि है और देश का संविधान उससे भी ऊपर है और उसकी रक्षा देश के नागरिकों का धर्म है | ऐसे में सवाल उठता है की देश में जन पक्षीय कानून कैसे बनेंगे | देश में वर्षों से संघर्ष कर रहे जन आंदोलनों के पास अपार अनुभव है, एक जन विकास की पूरी परिकल्पना है, तो क्या वे कानून नहीं बना सकते | सत्ता में बैठे लोग चुनौती देते हैं के कानून सड़कों पर नहीं बनते, लेकिन हम बताना चाहते हैं की जन पक्षीय कानून सही मायने में सड़कों पर ही बनते हैं और उसका उदहारण है सूचना का अधिकार कानून, वनाधिकार कानून और कुछ अन्य कानून जो की कड़ी संघर्षों के बाद बने | इन्की परिकल्पना आंदोलन से ही निकली और बाद में संसद की मुहर लगी | इसलिए जरूरत है की जनता के कानून जनता की संसद में बने | जनता के मुद्दे जनता हल करे | सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक मुद्दे जनता की संसद में सुलझाए जाए जिसे जनता संघर्षों के द्वारा सरकार को मजबूर करे की उन्हें जन पक्षीय कानून लाने होंगे | यह जन संसद लोगों की और संघर्षरत आंदोलनों के संसद होगी |

जनादेश एवं जन संसद की प्रक्रिया

जन संसद का जनादेश समस्त स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों का समाधान करना होगा, चाहे वे विकास संबंधित निर्माण परियोजनाएं हों, या स्थानीय नियोजन, क्रियान्वयन या निगरानी की प्रक्रियाएं हों, या परियोजनाओं के निर्णयों में विरोध की जरूरत हो, या भ्रष्टाचार या कुप्रबंधन आदि हों।

जन संसद में संगठन और उनके प्रतिनिधि भागीदारी करके लोगों के सामने 2-3 घंटों में महत्वपूर्ण मुद्दों / चुनौतियों को प्रस्तुत करें। समस्त जुटे लोग (स्थानीय प्रतिनिधि, स्थानीय प्रशासन से विशेष आमंत्रित, चयनित प्रतिनिधि) एक साथ वार्ता, चर्चा करें, समाधान तय करें। जन संसद मुद्दों पर सामूहिक दृष्टिकोण / विचार विकसित करेगी एवं स्थानीय प्रतिनिधियों के लिए भावी कार्यक्रम तय करेगी।

मुख्य मुद्दे

  • जल, जंगल, ज़मीन, और खनिज - प्राकृतिक संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार, विकास नियोजन और विकास की अवधारणा |

  • (श्रम और प्रकृति पर जीने वालों के अधिकार के साथ) असंगठित क्षेत्र के कामगार, शहरी गरीब, गैर बराबरी की खिलाफत, समता की दिशा में प्रस्ताव |

  • चुनावी राजनीति और जनता - चुनावी प्रक्रिया में परिवर्तन |

प्रस्तावित कार्यक्रम

मार्च १९ : दिल्ली में तीन बस्तियों में लोकशक्ति अभियान के मुद्दों पर चर्चा |

मार्च २० – २१ : ऊपर अधोरेखित मुद्दों पर दो दिनों पर जन सांसदों के द्वारा बहस, प्रस्ताव, रणनीति

मार्च २२ – २३ : जन संसद के प्रस्ताव का अनुमोदन और संसद विशाल रैली |

मेधा पाटकर, डॉ. सुनीलम, गौतम बंदोपाध्याय, सुनीति एस आर, विलास भोंगाडे, गाब्रिएले डिएट्रिच, मनीष गुप्ता, विमल भाई, भूपिंदर सिंह रावत, गुरवंत सिंह, राकेश रफीक, मधुरेश कुमार

संपर्क : 9818905316 | 9212587159 napmindia@gmail.com



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National Alliance of People's Movements
National Office: Room No. 29-30, 1st floor, 'A' Wing, Haji Habib Bldg, Naigaon Cross Road, Dadar (E), Mumbai - 400 014;
Ph: 022-24150529

6/6, Jangpura B, Mathura Road, New Delhi 110014
Phone : 011 26241167 / 24354737 Mobile : 09818905316
Web : www.napm-india.org
Twitter : @napmindia




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