Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Sunday, June 17, 2012

वह मखमली आवाज

वह मखमली आवाज


Sunday, 17 June 2012 12:30

कुलदीप कुमार 
जनसत्ता 17 जून, 2012: 'ये गजल तो मैंने उन्हीं को बख्श दी है। आप उन्हीं से सुनिएगा। मैं आपको एक और गजल सुनाता हूं'। 1970 का दशक था और अपनी वामपंथी राजनीति और क्रांतिकारी रूमानियत से सराबोर शायरी के लिए दुनिया भर में मशहूर उर्दू कवि फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं और शिक्षकों के एक बड़े हुजूम के सामने अपना कलाम पढ़ रहे थे। फ़ैज़ का पढ़ने का ढंग बहुत निराला था। वे इतने निर्लिप्त, निस्संग और लापरवाह अंदाज से गजलें और नज्में सुनाते थे कि लगता था कि उनकी इस काम में जरा-सी भी दिलचस्पी नहीं है और चूंकि सुनाने की मजबूरी है, सो सुना रहे हैं। ऐसे में श्रोताओं में से किसी ने उनके पास एक चिट भेज कर फरमाइश कर डाली कि वे मेहदी हसन द्वारा गाई गजल 'गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले, चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले' सुनाएं। ़फ़ैज़ चिट पढ़ कर कुछ सकपकाए और फिर उन्होंने मुस्कराते हुए वह जवाब दिया जो ऊपर उद्धृत है। 
काफी पहले मैंने अशोक कुमार का एक इंटरव्यू टीवी पर देखा था। उसमें उन्होंने कहा था कि देव आनंद की अपार लोकप्रियता और कामयाबी के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी था कि लंबे समय तक उनके गाने किशोर कुमार से ही गवाए गए और किशोर की आवाज ने देव आनंद के अभिनय में चार चांद लगा दिए। ठीक यही बात मेहदी हसन के बारे में कही जा सकती है। आज अगर उर्दू शायरी और उसकी परंपरा से अपरिचित लोग भी फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़', अहमद फराज और हफीज होशियारपुरी की गजलों का आनंद लेते हैं और उन्हें सराहते हैं तो इसका बहुत बड़ा श्रेय मेहदी हसन को जाता है, जिन्होंने अपनी अनूठी गायकी से इन गजलों को आम श्रोता के बीच इस कदर लोकप्रिय बनाया कि कुछ गजलें तो उनके नाम के साथ इस तरह जुड़ गर्इं कि लोग शायर तक को भूल गए। 
यों जब मैंने पहले-पहल मेहदी हसन को सुना तो बहुत अधिक प्रभावित नहीं हुआ। उस समय हम सब पर बेगम अख्तर का भूत सवार था और उनकी गजलों के आगे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। मेहदी हसन की रेशमी आवाज में गजलें सुनते हुए लगता था मानो किसी ने विस्की पीने वाले के सामने रूह आफजा शर्बत रख दिया हो। लेकिन जैसे-जैसे मैं मेहदी हसन को सुनता गया, वैसे-वैसे उनकी असाधारण गायकी का कायल होता गया। हालांकि अब यह कहना क्लिशे हो गया है, फिर भी कहे बिना नहीं रहा जा सकता कि मेहदी हसन ने गजल गायकी के क्षेत्र में क्रांति की और अपनी गायकी का ऐसा लोहा मनवाया कि आज अधिकतर गजल गायक उनकी शैली अपनाने के लिए मजबूर हैं। 'गुलों में रंग भरे...', 'रंजिश ही सही...' और ऐसी ही न जाने कितनी गजलें हैं जो अन्य गायक-गायिकाओं ने भी गाई हैं, लेकिन किसी का भी कंपोजीशन मेहदी हसन की गाई गजलों से अलग नहीं। 
अक्सर कहा जाता है कि मेहदी हसन ने गजल गायकी को शास्त्रीय संगीत के रंग में ढाला। मुझे कभी इस कथन का अर्थ समझ में नहीं आया। लोग भूल जाते हैं कि आफताब-ए-मौसिकी कहे जाने वाले उस्ताद फैयाज खां गजल भी गाते थे। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में शायद ही कोई शास्त्रीय गायिका हो, जिसने गजल न गाई हो- चाहे वे हीराबाई बडोदकर हों या गंगूबाई हंगल। बेगम अख्तर की गजल गायकी का भव्य भवन शास्त्रीय संगीत की नींव पर ही खड़ा है। मेहदी हसन का करिश्मा यह है कि उन्होंने इस शास्त्रीयता को गजल गायकी में इस खूबी के साथ इस्तेमाल किया कि वह आमफहम लोगों के लिए भी ग्राह्य हो सकी। बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि उन्होंने गजल गायकी को शास्त्रीयता की बोझिलता से मुक्त किया। मास्टर मदन और बेगम अख्तर की गजलों को सुनने के बाद मेहदी हसन की गजलें सुन कर इस सचाई का स्पष्ट अहसास होता है। 
गजल का एक अर्थ प्रिय से या प्रिय के बारे में बात करना भी है। अब प्रिय के साथ बातचीत हौले-हौले, आहिस्ता-आहिस्ता और मद्धम-मद्धम अंदाज में ही की जा सकती है। मेहदी हसन ने यही अंदाज अपनाया।


उन्होंने गजल गायकी के तीखे कोणों को तराश कर उन्हें गोलाई दी, अपनी मखमली आवाज में गजल के शब्दों के मर्म को तलाशते हुए उसकी अनेक अर्थ-छवियों के दर्शन किए और कराए, और इस क्रम में गजल को सीधे सुनने वालों के दिलों की गहराइयों में उतार दिया। किस शब्द पर कितना ठहरना है और किस शब्द को कब, किस तरह और कितनी बार दुहराना है ताकि उसके भीतर छिपी विभिन्न अर्थछवियां अपनी पूरी चमक के साथ बाहर छिटक कर आएं, इस कला का उत्कृष्टतम रूप देखना हो तो मेहदी हसन की गाई गजलों को सुनिए। 
उनकी गायकी में किसी भी तरह की क्षिप्र गति, जल्दबाजी, चमत्कार दिखाने की ललक या सस्ती वाहवाही लूटने की कोशिश नजर नहीं आती। वे राजस्थान के थे। उनकी गजलें सुन कर लगता है मानो कोई यात्री लंबे मरुस्थल को धीरे-धीरे डग रखते हुए धैर्य के साथ पार कर रहा है। उन्होंने ऊपर के सप्तक में शायद ही कभी गाया हो। शास्त्रीय संगीत की बेहद उम्दा तालीम उन्हें मिली थी और उनके पास वह सब था जो किसी भी सफल गायक के पास होना चाहिए। लेकिन उन्होंने कभी भी बहुत ज्यादा मुरकी-खटके का इस्तेमाल नहीं किया। जब भी किया, गजल के असर को बढ़ाने के उद्देश्य से किया, न कि अपनी क्षमता दिखाने के लिए। 
मेहदी हसन ने सिर्फ गजलें नहीं गार्इं। अपनी मिट््टी की सुगंध की याद दिलाने वाला राजस्थान का विख्यात मांड 'केसरिया बालम' भी उन्होंने उसी सरल और दिलकश अंदाज में गाया, जिसमें   वे गजलें गाते थे। पूरब का लोकगीत 'दुखवा मैं कासे कहूं मोरी सजनी' उन्होंने इतने दर्द के साथ गाया है कि उसे सुनने वाला शायद ही कोई श्रोता हो, जिसके दिल में टीस न उभरे। ठुमरी गाने में भी मेहदी हसन दक्ष थे। उनकी गाई गारा ठुमरी 'कौन अलबेली नार झमाझम' को भला कौन भूल सकता है। संगीतकला से अपरिचित व्यक्ति भी उनके सुरीलेपन और भव्य सादगी से ओतप्रोत गायकी के असर से अछूता नहीं रह सकता। 
मेहदी हसन पिछले एक दशक से अधिक समय से गंभीर रूप से बीमार थे और सार्वजनिक प्रस्तुतियां देने की हालत में नहीं थे। मंच से इतने लंबे अरसे तक अनुपस्थित रहने का उनकी लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ा। उनके प्रशंसकों की तादाद लगातार बढ़ती रही और यह क्रम आज भी जारी है। जिसने एक बार उनकी गजल सुन ली, वह बार-बार सुने बिना नहीं रहा। 
मेहदी हसन पाकिस्तान के फिल्म जगत की भी एक बड़ी हस्ती थे। उन्होंने अनेक फिल्मों में गाने गाए और अनेक फिल्में केवल उनके गानों के कारण चलीं। यह अकारण नहीं कि लता मंगेशकर जैसी शीर्षस्थ कलाकार को उनकी आवाज 'ईश्वर की आवाज' लगती थी। यहां मेहदी हसन के ठुमरी, लोकगीत और फिल्मी गाने गाने को याद करने का उद्देश्य सिर्फ इस तथ्य को रेखांकित करना है कि मेहदी हसन केवल श्रेष्ठ गजल गायक नहीं थे। उनकी असाधारण प्रतिभा केवल गजल गायन के क्षेत्र में नहीं खिली थी, उसने अपने जौहर अन्य विधाओं में भी दिखाए थे। 
सभी जानते हैं कि कलाओं का कोई देश नहीं होता। उनका अपना ही स्वायत्त संसार और देश होता है। मेहदी हसन भी केवल पाकिस्तान के नहीं थे। वे हर उस व्यक्ति के थे, जिसे गजल और संगीत से प्यार है। न वे केवल राजस्थान के लूणा गांव के थे और न ही पाकिस्तान के कराची शहर के। वे पूरी दुनिया के सिरमौर कलाकारों में से एक थे। उन्होंने कहा भी है कि जितना प्यार उन्हें पाकिस्तान में मिला, उससे कम भारत में नहीं मिला। पिछले वर्ष एक के बाद एक शास्त्रीय संगीतकार हमसे विदा हुए। यह वर्ष गजल गायकों के जाने का लगता है। पहले जगजीत सिंह और अब मेहदी हसन। हम जैसे संगीतप्रेमी तो उन्हें याद करके अपनी श्रद्धांजलि देते ही रहेंगे। मेहदी हसन को सच्ची श्रद्धांजलि तो कोई ऐसा नया गजल गायक ही दे सकता है, जो उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गजल गायकी में फिर से कोई क्रांतिकारी बदलाव लाकर दिखाए। मेहदी हसन की शैली में गाते रहना उनकी परंपरा को आगे बढ़ाना नहीं, उस पर विराम लगाना होगा। और कलाओं में कभी पूर्ण विराम नहीं लगता। उसी तरह, जैसे जीवन में।

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV