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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, April 30, 2013

THE GORKHALAND BACK ON SPOTLIGHT AGAIN

THE GORKHALAND BACK ON SPOTLIGHT AGAIN

Darjeeling back on the spotlight; Subash Ghising on the move and the Gorkhas in the district may clash again !  A popular tourist destination in West Bengal, India  with 10.57 km2 (4.08 sq mi), and  elevation 2,050 m (6,730 ft) Darjeeling's population  was only 1,32,016 in 2011. We copy a Wikipedia post " The movement for a separate state of Gorkhaland gained serious momentum during the 1980s, when a violent agitation was carried out by Gorkha National Liberation Front (GNLF) led by Subhash Ghising. The agitation ultimately led to the establishment of a semiautonomous body in 1988 called the Darjeeling Gorkha Hill Council (DGHC) to govern certain areas of Darjeeling district. However, in 2008, a new party called the Gorkha Janmukti Morcha (GJM) raised the demand for a separate state of Gorkhaland once again.[4] In 2011, GJM signed an agreement with the state and central governments for the formation of Gorkhaland Territorial Administration, a semiautonomous body that replaced the DGHC in the Darjeeling hills." - Editor  ]

गोरखा अस्मिता भी सत्ता की भागेदारी में निष्णात है तो इससेबेहतरीन मौका सुबास बाबू के लिए हो ही नहीं सकता कि वे गुमशुदगीकी गुफा से बाहर निकले!


स्टीवेंस विश्वास
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Image courtesy : Darjeeling Tourism
गोरखा जननेता सुबासघीसिंग पहाडों के नायक रहे हैंऔर अब लंबे अंतराल के बाद वेफिर पहाड की तरफ निकल पड़ेहैं।वे वामसासनकाल में दामादजैसे सममानित रहे हैं। लेकिनइंडियन आइडल प्रशांत तमांगको लेकर पहाड़ अग्निगर्भ होगया और देखते देखते दार्जिलिंगकी मिल्कियत घीसिंग के हाथोंसे छिनकर उनके ही अनुयायीविमल गुरुंग के हाथों में चलीगयी। यकबयक पहाड़ से बेदखलहो गये सुबास घीसिंग।२०९ मेंविदेश दौरे से लौटकर वे फिरपहाड़ में दाखिल नहीं हो सके।तभी वे जलपाईगुड़ी केकालेजपाड़ा के एक किराये के मकान में डेरा डालकर ठहर गये।शुक्रवार को जलपाई गुड़ी छोड़कर फिरपहाड़ निकल पड़े घीसिंग।विमल गुरुंग खुलेाम सुबास गीसिंग को रा का आदमी बता रहे हैं।घासिंग कीसक्रियता से पहाड़ और गोरखालैंड की राजनीति फिर गरमाने का अंदेशा है। दीदी की पहल पर जिन्हेंपहाड़ में मुस्कान के फूल​ खिलते नजर  रहे थेअब उन्हें क्या नजर आयेगाआने वाला वक्त हीबतायेगा।'धीरे चलोकी नीति पर जीएनएलएफ सुप्रीमो सुबास  घीसिंग अपने संगठन को मजबूत कररहे हैं। फरवरी से 23 मार्च तक दार्जिलिंगकर्सियांगकालिंपोंग में मोरचा से हजारों समर्थकों को फिर सेजीएनएलएफ में वापस लाकर घीसिंग ने 700 से भी ज्यादा जीएनएलएफ विलेज कमेटी का गठन कियाहै।

यह 13 अप्रैल 1986 की बात हैजब अलग गोरखालैंड की मांग करने वाले सुबास घीसिंग ने कहा था- "मेरी पहचान गोरखालैंड है।"22 साल बाद जब गोरखालैंड की मांग अपने चरम पर पहुंची और दार्जिलिंग,कर्सियांगमिरिकजाटी और चामुर्ची तक ताबड़तोड़ रैली और विशाल प्रदर्शन होने लगेतब सुबासघीसिंग का कहीं अता-पता नहीं था। पहाड़ से तो घीसिंग का जैसे नामोनिशान मिट गया। पूरे पहाड़ मेंविमल गुरुंग और रोशन गिरि की आवाज की गूंज थी।कभी बेहद आक्रमक नेता रहे गुरुंगने बेहदविनम्रता के साथ कहा "सुभाष घीसिंग ने जनता के साथ धोखा किया। मैं अपने खून की आखरी बूंद तकलड़ूंगा। मैं मार्च 2010 तक अलग गोरखालैंड अलग करके दम लूंग।."अब 2010 की सीमा कब की बीतचुकी। रुरुंग भी सत्ता की राजनीति में तिरोहित होने लगे। पहाड़ में अब अमन चैन कायम है यानीगोरखालैंड की मांग पर आंदोलन नहीं चल रहा है। विवाद है सत्ता में भागेदारी लेकर। जीटीए और लेप्चाविकास परिषद के अंतर्विरोधों में अस्मिता का सवाल गुम हो गया है। गोरखा अस्मिता भी सत्ता कीभागेदारी में निष्णात है तो इससे बेहतरीन मौका सुबास बाबू के लिए हो ही नहीं सकता कि वे गुमशुदगीकी गुफा से बाहर निकले। इसलिए वे फिर पहाड़ी पगडंडियों की टोह लेने निकल पड़े।

इतने अरसे बाद पहाड़ लौटने के बावजूद सीधे सुबासघीसिंग दार्जिंलिंग में अपने घर नहीं जा रहे हैं।फिलहाल जीएनएलएफ सुप्रीमो ने सिलिगुड़ी से ही पार्टी चलाने की मंशा जतायी है।हालंकि घीसिंग ने यहमाना कि ममता के सौजन्य से पहाड़ में सांति लौटी हैलेकिन उन्होंने जीटीए को सिरे से खारिज करदिया।पत्रकारों के मुखातिब घीसिंग ने दावा किया कि विकास तो उनके जमाने में जीजीएचसी केकार्यकाल के दौरान ही हुआ।उनके मुताबिक जीटीए  के माध्यम से  कुछ हो रहा है और  होना संभवहै।

गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा (गोरामुमोके प्रमुख सुभाष घीसिंग अब से सिलीगुड़ी के निकट माटीगाढ़ा केलिचू बागान इलाके में रहेंगे। इतने दिनों तक पहाड़ से जलपाईगुड़ी के कॉलेजपाड़ा में निर्वासित जीवन जीरहे पहाड़ के कद्दावर नेता के स्थान परिवर्तन की राजनीतिक हलकों में खासी चर्चा है। शुक्रवार को इससंबंध में प्रेस से मुखातिब सुभाष घीसिंग ने एक बार फिर जीटीए समझौते को असंवैधानिक करार देतेहुए कहा कि यह मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए वह इस बारे में कोई मंतव्य नहीं करेंगे।उन्होंने पूर्व ही कहा था कि डीजीएचसी निकाय 15 साल तक चलेगा। ऐसा हुआ भी। 2005 में गोरखा हिलकाउंसिल (जीएचसीका प्रस्ताव विधान सभा में पारित हुआ लेकिन वह लागू नहीं हो सका। नाम नहींलेते हुए गोजमुमो पर निशाना साधते हुए कहा कि पहाड़ में 'ब्लैक पावरसत्ता में है। लेकिन जल्द ही वहां'ग्रीन पावरयानी कि गोरामुमो सत्ता में आएगा। ग्रीन पावर के लिए विलेज कमेटी गठित की गई है। गांवोंमें ग्राम प्रमुख बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि वह कुर्सी की राजनीति नहीं करते हैं। जीटीए पर मंतव्यकरते हुए कहा कि पहाड़ की कुर्सी हल्की है। स्थान परिवर्तन के बाबत कहा कि जलपाईगुड़ी शहर सेसांगठनिक काम काज का संचालन करना मुश्किल हो रहा था। इसीलिए उन्होंने माटीगाढ़ा में रहने कानिश्चय किया है।

ज्ञात हो कि पहाड़ से गोजमुमो के सामाजिक बहिष्कार के बाद से सुभाष घीसिंग जलपाईगुड़ी रहकरदलीय संगठन का काम देख रहे थे। फरवरी 2009 से वह वहीं पर रह रहे थे। केवल पिछले विधान सभाचुनाव के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों की मौजूदगी में उन्होंने मिरिक  कई अन्य स्थानों में सभाएं की थीं।40 रोज तक पहाड़ में डेरा जमाने के बाद वे फिर जलपाईगुड़ी वापस  गए थे। उन्होंने बताया किजलपाईगुड़ी को वह कभी नहीं भूल पाएंगे जिसने उन्हें इतना सारा प्यार  स्नेह दिया है। यह शहर काफीशांत है। घीसिंग ने कहा कि हाल में काफी संख्या में गोजमुमो छोड़कर उनके कार्यकर्ता  समर्थकगोरामुमो में शामिल हुए हैं। इससे वह उत्साहित हैं। माटीगाढ़ा जाने के पीछे यह भी एक वजह है जहां सेवह सांगठनिक गतिविधियां सही तरीके से चला सकेंगे।

इस पर तृणमुल कांग्रेस के नेता राजेन मुकिया का कहना है कि मुक्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल परपहाड़ में अमन चैन कायम होने से अब शबी राजनित दलों की गतिविधियां चालू हो गयी हैं।इसी के तहतजीएनएलएफ भी अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश भरसक कर रही है।अब सुबास घीसिंग को भरोसा होगया है कि पहाड़ और मैदानों में सांति लौट आयी है और इसीलिए वे फिर सक्रिय हो रहे हैं।गौरतलब है किजीजीएचसी के जमान में भ्रष्टाचार के आरोपों के दम पर विमलगुरुंग और उनके साथियों ने सुबास घीसिंगको पहाड़ से निर्वासित​ ​ कर रखा था।यहांतक कि अपने सहकर्मी के निधन के वक्त भी वे पहाड़ वापस जा सके।

इसके विपरीत पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने राज्य की मौजूदा सरकार कोदार्जीलिंग के मुद्दे पर आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वह इस मुद्दे को गलत तरीके से निपटा रही हैजिसकेकारण गम्भीर समस्याएं पैदा होंगी। मार्क्सावादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपाकी पोलित ब्यूरो के सदस्यबुद्धदेब ने एक बांग्ला समाचार चैनल के साथ बातचीत में कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्ववाली पश्चिम बंगाल सरकार ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा अपनी मांगें नहीं छोड़ने के बावजूद गोरखालैंडप्रादेशिक प्रशासन (जीटीएसमझौते पर हस्ताक्षर कर दिएजो गलत है। इससे राज्य के लिए समस्याएंपैदा होंगी। बुद्धदेब ने कहा कि गोरखालैंड के मुद्दे के साथ समझौता कर जीजेएम के साथ राज्य सरकारद्वारा बातचीत करना अनुचित है। अंतिम मसौदे में इसका जिक्र है कि समझौते पर हस्ताक्षर जीजेएमद्वारा गोरखालैंड की मांग छोड़े जाने के बगैर किया जा रहा है। यह भारी भूल है।

कालिम्पोंग में जीएनएलएफ चीफ सुभाष घीसिंग के जलपाईगुड़ी से माटीगाड़ा में रहने पहुंचने की सूचनापर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए गोजमुमो अध्यक्ष ने कहा कि एक समय तेजिंग नोर्जे ने माउंट एवरेस्ट परचढ़कर नाम कमाया। मगर गोरामुमो सुप्रीमो सुभाष घीसिंग पहाड़ पर चढ़ेंगे तो नाम नहीं होगा। इसलिएवह जल्दबाजी  करें समय आने पर मैं उन्हें खुद लेकर आऊंगा। यह बातें शनिवार को स्थानीय नावेल्टीस्थित मोटर स्टैंड पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि गोरामुमो सुप्रीमोअपने शासन में जो कार्य नहीं कर सके वह अब इतने वृद्ध होने पर कैसे करेंगे। इसलिए अब वह आरामकरें। उन्होंने कहा कि 22 साल में पहाड़ में बेरोजगार , विकास की जगह सिर्फ गड्डे भरने का काम हुआ।हम 8 माह से जीटीए चला रहे हैं जो अभी बाल्य अवस्था में है। यहां विपक्षी सिर्फ खिंचाई करता है।गोजमुमो अध्यक्ष ने कहा कि कुछ दिन पूर्व सिक्किम भ्रमण पर आये राष्ट्रपति से उन्होंने भेंट कर जीटीएमें केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने की मांग की थी जिसके लिए राष्ट्रपति ने हामी भरी है। केंद्रीयविश्वविद्यालय तो राज्य को मिलता है पर हम इसे जीटीए में लाने की तैयारी कर रहे। उन्होंने कहा किउन्हें हर माह 50,000 का वेतन मिलता है जिसमें 2,500 पार्टी फंड में तथा अन्य राशि रेली में वृद्धाआश्रम बनाने के लिए संचय कर रहे।

उधरविधायक डाहर्क बहादुर क्षेत्री ने कहा कि हम उन्हें गाजे-बाजे के साथ पहाड़ पर लायेंगे। उन्होंने यहबातें स्थानीय नावेल्टी स्थित मोटर स्टैंड पर संपन्न कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहाकि घीसिंग का कहना है कि जीटीए असंवैधानिक है। डा.क्षेत्री ने कहा कि हमने सरकार से वार्ता में पहलेही कह दिया था कि हमारा मूल लक्ष्य गोरखालैंड है एवं जीटीए एक अस्थायी बाडी मात्र है। डा.क्षेत्री ने कहाकि सुभाष घीसिंग पहाड़ पर 30 फीसद जनजाति होने पर छठी अनुसूची लाने के प्रयास में थे। डाक्षेत्री नेसवालिया लहजे में कहा कि समतल में रहकर पहाड़ की राजनीतिरिमोट से पार्टी नही चलती। गोरामुमोसुप्रीमो वृद्ध हो चुके हैं उन्हें अब आराम करना चाहिए।

इसी के मध्य गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की ओर से एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने की तैयारीशुरू हो गई है। चौक बाजार पर गोजमुमो श्रमिक संगठन द्वारा आयोजित मुख्य कार्यक्रम को पार्टी प्रमुखविमल गुरुंग संबोधित करेंगे। इस मौके पर महारैली का आयोजन होगा। जगह-जगह गोजमुमो प्रमुखविमल गुरुंग के पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं। पोस्टर में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को सहयोगका आश्वासन देते गुरुंग दिख रहे हैं।

गोजमुमो श्रमिक संठगन की ओर से साजसज्जा शुरू कर दी गई है। कई जगह तोरण द्वार बनाए जा रहेहैं। पोस्टर और झंडे से शहर पट गया है। गोजमुमो श्रमिक संगठन द्वारा मजदूर दिवस को यादगार बनानेकी तैयारी चल रही है। पार्टी की ओर से लगाए गए पोस्टर में बाल श्रम रोकने का संदेश विमल गुरुंग दे रहेहैं। उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग के उत्थान का संकल्प भी दोहराया है। श्रमिक दिवस को ऐतिहासिकबनाने की तैयारी चल रही है। गोजमुमो कार्यकर्ताओं में गजब का उत्साह देखा जा रहा है।

चिपकाए गए पोस्टर और मजदूर दिवस पर गोजमुमो अध्यक्ष द्वारा दिए संदेश की खिल्ली उड़ाते हुएक्रांतिकारी मार्क्सवादी पार्टी के प्रवक्ता गोविंद क्षेत्री ने कहा कि गोजमुमो को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस केवास्तविक अर्थ पता नहीं है। पोस्टर में बाल श्रमिक का उल्लेख हास्यास्पद है। उन्होंने आरोप लगाया कियहां के चौक बाजार पर क्रामाकपा के कार्यक्रम को रोकने के लिए गोजमुमो कार्यक्रम का आयोजन कररहा है। क्रामाकपा हिल्स में जोन स्तर पर एक मई को कार्यक्रम का आयोजन करेगा। प्रशासनिकअनुमति नहीं मिलने की वजह से पांच मई को यहां के चौक बाजार में पार्टी की ओर से मजदूर दिवसमनाने की जानकारी उन्होंने दी। उन्होंने सुभाष घीसिंग के गोरखालैंड का गठन कभी नहीं होने के बयानपर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह पर्वतीय क्षेत्र का दुर्भाग्य है कि कोई पार्टी जीटीए तोकाई दागोपाप से ही संतुष्ट हो जाता है। एकमत नहीं होने से गोरखालैंड का गठन आजतक नहीं हुआ।गोरखाओं के लिए यह दुर्भाग्य की बात है। राजनीतिक पार्टियों की यही भूल गोरखाओं के लिए अभिशापबन गया है।

गोरखालैंड लिबरेशन फ्रंट (जीएलओसुप्रीमो छत्रे सुब्बा ने शुक्रवार को यहां कहा कि गोरखालैंड के बगैरभारतीय नेपाली गोरखाओं का जीवन अधूरा है। विवेक शून्य राजनीतिज्ञों की वजह से अब तक अलगराज्य की स्थापना नहीं हो पायी।

दार्जिलिंग जिला अदालत में शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई के लिए पहुंचे छत्रे सुब्बा ने कहा किगोरखा जाति में पूर्ण शिक्षित आइएएसपीसीएसचिकित्सक  इंजीनियर रहे हैं। शिक्षित वर्ग की सोचअलग होती है वहीं आंदोलन  राजनीति में पूरे ज्ञान की जरूरत  राजनीतिक विवेकशील होना जरूरी है।गोरखा जाति में आगे का आंदोलन फिर बाद के आंदोलन में राजनीतिक विवेक वाला नेता  होने केकारण कभी दागोपापकभी जीटीए स्वीकारने को विवश होना पड़ा। छत्रे सुब्बा ने कहा कि पूर्व में हुएआंदोलन में 90 फीसद जनता ने साथ दिया। अभी भी 99 फीसद लोगों का समर्थन है। इतने भारीजनसमर्थन से सरकार झुक सकती पर विवेकहीन नेता के कारण अलग गोरखालैंड राज्य नहीं बन पारहा।

गौरतलब हो कि वर्ष 1986 में हुए प्रथम गोरखालैंड आंदोलन में कालिम्पोंग के छत्रे सुब्बा जंगी नेता थे।सुभाष घीसिंग से अनबन के बाद सुब्बा ने जीएलओ गठित किया और जंगी भावना के कारण उनपरहमले का आरोप लगा जिस कारण उन्हें 11 वर्ष तक बिना सुनवाई के जेल में रहने के बाद वह रिहा हुए।गोजमुमो के आंदोलन के समानान्तर छत्रे सुब्बा ने भी आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी मगरअचानक राजनीति से किनारा कर लिया।

छत्रे  सुब्बा ने शुक्रवार को स्पष्ट रूप से कहा उनकी सुभाष घीसिंग से अनबन की वजह दागोपापस्वीकारना थी। मैंने दागोपाप का विरोध किया था और बंगाल सरकार की साजिश के कारण जेल जानापड़ा। जेल से रिहा होने के बाद जरूरी जनसमर्थन चाहिए। गोरखा के लिए मैंने अपना जीवन समर्पितकिया मगर अब मैं निजी जीवन यापन के प्रयास कर रहा।

कर्सियांग में जीटीए सदस्य योगेंद्र राई ने कहा कि आंदोलन से ही गोरखालैंड मिलेगा। इसके लिएसामूहिक होकर प्रयास करने होंगे। यह गोजमुमो के नेतृत्व में ही संभव है। गोजमुमो छोड़कर अन्य दलोंमें जाने वालों को स्वार्थी बताया। इससे पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सभी दलों के कार्यकर्ताओं कागोजमुमो में आना जारी है। इस अवसर पर ग्याल्जेन तमांगरतन गजमेरकरूणा गुरुंग  अन्य थे

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