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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, April 27, 2013

बलात्‍कार के लिए सरकार से ज्‍यादा समाज जिम्‍मेदार है

बलात्‍कार के लिए सरकार से ज्‍यादा समाज जिम्‍मेदार है

26 APRIL 2013 NO COMMENT

उपभोक्तावादी संस्कृति की देन है बलात्कार

♦ ग्लैडसन डुंगडुंग

विगत वर्ष दिल्ली में हुए दमनी बलात्कार कांड के बाद देश में जिस तरह से बलात्कार के खिलाफ उबाल आया था मानो ऐसा लग रहा था कि अब सबकुछ बदल जाएगा और महिलाएं अपने घरों, पड़ोस एवं देश में सुरक्षित महसूस करेंगी। महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने भी कठोर ऑर्डिनेंस बनाया। लेकिन बलात्कार के बाद हत्या करने का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब तो ऐसा लगता है मानो देश की राजधानी दिल्ली से बलात्कार की ट्रेन झारखंड की राजधानी रांची एवं राज्य के अलग-अलग हिस्सों में घूम रही है। दरिंदे छोटी-छोटी बच्चियों को भी अपनी हवस का शिकार बनाने से नहीं हिचक रहे हैं। दूसरी ओर लोग भी अपना गुस्सा पुलिस पर ही उतार रहे हैं। यह सही है कि कुछ मामलों में पुलिस की लापरवाही की वहज से बच्चियों की हत्या तक कर दी गयी, लेकिन सवाल है क्या पुलिस कार्रवाई ही काफी है?

महिलाओं एवं बच्चियों के खिलाफ हो रहे बलात्कार, हत्या एवं अन्य तरह की हिंसा उपभोक्‍तावादी संस्कृति की देन है। वर्तमान समय में बाजार में जिस तरह से महिलाओं को उपभोग की वस्तु के रूप में पेश किया जा रहा है, अश्लील विज्ञापनों की भरमार हैं एवं अश्लील तस्वीरों के साथ शराब खुल्लेआम बेचा जा रहा है, जो सीधे तौर पर महिलाओं के खिलाफ हो रहे हिंसा को बढ़ाने के मुख्य कारण हैं। इस बात को ऐसा भी समझा जा सकता है कि जब कोई भी चीज को 'उपभोग की वस्तु' के रूप में बाजार में पेश किया जाता है, तो उसे हरकोई उपभोग करना चाहता है। इसके लिए जिनके पास पैसा होता है, वे उसे तुरंत खरीद लेते हैं और जिनके पास पैसा नहीं होता है वे उसे या तो चुराते हैं या पैसा चुरा कर उसे खरीदते हैं। कहने का मतलब यह है कि लोग 'उपभोग की वस्तु' को किसी भी तरह से हासिल करना चाहते हैं और महिलाओं के संदर्भ में यह बात लागू होती है, जो अमानवीय, निंदनीय एवं आधुनिक समाज के लिए कलंक है।

भारतीय समाज में महिलाओं को आजतक एक इंसान के रूप में आदमी के बराबर का दर्जा नहीं दिया गया अपितु उसे उपभोग की वस्तु बना दिया गया। इसलिए अधिकांश पुरुष लोग जब भी किसी महिला या लड़की को देखते हैं तो उसका उपभोग करने की फिराक में लगे रहते हैं और जब वे महिलाओं या जवान लड़कियों को अपना शिकार नहीं बना पाते हैं तो निरीह बच्चियों को निशाना बनाते हैं। इस तरह से बलात्कार की घटनाएं बढ़ती चली जाती हैं। बलात्कार महिला हिंसा का सबसे भयावह रूप है, जो महिलाओं से उनके संविधान प्रदत्त आत्म-सम्मान से जीवन जीने का हक छीन लेती है। सरकार का आंकड़ा दर्शाता है कि झारखंड में 2001 से 2010 तक बलात्कार के 7563 मामले दर्ज किये गये हैं, जिसमें से बलात्कार पीड़िता ने 6056 मामलों में आरोपियों की पहचान की हैं। बलात्कार के 6056 मामलों में से 321 मामलों में परिवार के सदस्या आरोपी हैं, 545 मामलों में संबंधी, 2108 मामालों में पड़ोसी एवं 3082 मामलों में अन्य लोग शामिल हैं।

सारणी 1 : बलात्कार मामले में चिन्हित आरोपी

Graph 1

नोट : झा – झारखंड, भा – भारत, संदर्भ : नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो

झारखंड में बलात्कार के आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। इसमें सबसे ज्यादा चकित करने वाली बात यह है कि महिलाएं एवं विशेषकर लड़कियां अपने ही घरों में सुरक्षित नहीं हैं। इसके साथ-साथ संबंधी, पड़ोसी एवं अन्य परिवेश में बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं। राज्य में बलात्कार के 5.3 प्रतिशत मामलों में परिवार के सदस्य शामिल हैं। इसी तरह बलात्कार के 9 प्रतिशत मामलों में पीड़िता के संबंधियों को आरोपी बनाया गया है जबकि बलात्कार के 34.8 मामलों में पीड़िता के पड़ोसियों ने उनके साथ बलात्कार किया। ये आंकड़ें स्पष्‍ट रूप से दर्शाते हैं कि झारखंड में महिला एवं लड़कियों को अन्य लोगों की अपेक्षा अपने ही घर के सदस्य, संबंधी एवं पड़ोसियों से ज्यादा खतरा है। सवाल यह उठता है कि अगर महिलाएं अपने घरों, संबंधियों के घरों एवं पड़ोस में सुरक्षित नहीं हैं तो क्या उनके लिए अलग से दुनिया बनाया जाएगा तब वे सुरक्षित होंगे? यह सवाल सरकार से ज्यादा समाज के मुंह पर लिए तमाचा मारने की तरह है।

सारणी 2 : बलात्कार के मामले चिन्हित आरोपी % में

Graph 2

नोट : झा – झारखंड, भा – भारत, संदर्भ : नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो

बलात्कार के मामलों को उम्र के आधार पर देखा जाए तो यह स्पष्‍ट होता हैं कि कोई भी बच्ची, लड़की एवं महिला सुरक्षित नहीं है। वर्ष 2001 से 2010 तक झारखंड में 7563 महिलाओं को बलात्कार का शिकार होना पड़ा है। इसी तरह पूरे देश में 190170 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुई हैं। वर्ष 2001 से 2010 तक झारखंड में 10 वर्ष से कम की उम्र के 22 बच्चियों के साथ बलात्कार किया गया। इसी तरह 10 से 14 वर्ष के बीच 78 बच्चियों से बलात्कार किया गया, 14 से 18 वर्ष के बीच 328 लड़कियां, 18 से 30 वर्ष के बीच 5638, 30 से 50 वर्ष के बीच 1487 एवं 50 वर्ष से उपर 10 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं।

सारणी 3 : बलात्कार पीड़ितों की संख्या उम्र के आधार पर

Graph 3

नोट : झा – झारखंड, भा – भारत, संदर्भ : नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो

बलात्कार पीड़ितों का विश्लेषण उम्र के आधार पर करने से पता चलता है कि वर्ष 2001 से 2010 तक झारखंड में 10 वर्ष से कम उम्र के बलात्कार पीड़ित 0.2 प्रतिशत, 10 से 14 वर्ष के बीच 1.1 प्रतिशत, 14 से 18 वर्ष के बीच 4.3 प्रतिशत, 18 से 30 वर्ष के बीच 74.5 प्रतिशत, 30 से 50 वर्ष के बीच 19.7 प्रतिशत एवं 50 वर्ष से उपर 0.2 प्रतिशत पीड़ित महिलाएं हैं। इसी तरह देश के स्तर पर देखा जाए तो 10 वर्ष कम उम्र के बलात्कार पीड़ित 2.8 प्रतिशत, 10 से 14 वर्ष के बीच 6.6 प्रतिशत, 14 से 18 वर्ष के बीच 14.7 प्रतिशत, 18 से 30 वर्ष के बीच 58.8 प्रतिशत, 30 से 50 वर्ष के बीच 16.6 प्रतिशत एवं 50 वर्ष से उपर 0.5 प्रतिशत पीड़ित शामिल हैं। वर्ष 2001 से 2010 तक के उपलब्ध आंकडें दर्शाते हैं कि बलात्कार की सबसे ज्यादा शिकार 18 से 30 वर्ष की लड़की एवं महिलाएं होती है।

सारणी 4 : बलात्कार पीड़ित उम्र के आधार पर % में

Graph 4

नोट : झा – झारखंड, भा – भारत, संदर्भ : नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो

झारखंड राज्य एवं पूरे देश में महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा यह दर्शाती है कि समाज महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना ही नही चाहता है। महिलाएं एवं लड़कियां जैसे-जैसे आगे बढ़ रही हैं पुरुष प्रधान समाज उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है इसलिए उनके खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी कर उन्हें पुन: चाहरदिवारी के आंदर ढाकेलने की कोशिश में जुटा हुआ है। महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा उनके साथ महिला होने के नाते भेदभाव, असमानता और निर्णय प्रक्रिया (परिवार से लेकर समाज और राजसत्ता तक) से उन्हें दूर रखने की वजह से आज भी व्याप्त है। हमारा समाज आज भी लड़कों का हर गुनाह माफ करता है और लड़कियों को लड़कों के द्वारा किये गए कुकर्म का भी सजा देता है।

ऐसी स्थिति में जबतक पुरुष प्रधान समाज महिलाओं को उपभोग की वस्तु, परायाधन एवं बोझ समझता रहेगा महिलाओं के प्रति होने वाले हिंसा बढ़ते ही रहेंगे क्योंकि सिर्फ कानून के बल पर महिला हिंसा को रोका नहीं जा सकता है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ी हिंसा के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार उपभोक्तावादी संस्कृति, पुरुषप्रधान समाज और मुनाफा आधारित बाजार है, जो महिलाओं को मात्र उपभोग की वस्तु बनाकर रखना चाहता है। जब महिलाओं के खिलाफ हिंसा समाज की देन है तो इसके लिए सबसे पहले समाज को ही चिंतन एवं पहल करना होगा। कानून के बल पर स्थियां नहीं बदल सकती हैं समाज को ठीक करने में कानून मददगार हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हम उपभोक्तावादी संस्कृति से मुक्ति चाहते हैं? अगर नहीं तो यह घड़ियाल आंसू बहाना बंद कीजिए और तैयार रहिए आपनी बेटी, बहन और पत्नियों के बलात्कार की खबरें पढ़ने के लिए।

(ग्‍लैडसन डुंगडुंग। मानवाधिकार कार्यकर्ता, लेखक। उलगुलान का सौदा नाम की किताब से चर्चा में आये। आईआईएचआर, नयी दिल्‍ली से ह्यूमन राइट्स में पोस्‍ट ग्रैजुएट किया। नेशनल सेंटर फॉर एडवोकेसी स्‍टडीज, पुणे से इंटर्नशिप की। फिलहाल वो झारखंड इंडिजिनस पीपुल्‍स फोरम के संयोजक हैं। उनसे gladsonhractivist@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

http://mohallalive.com/2013/04/26/gladson-dungdung-article-on-issue-of-rape/

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