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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, April 29, 2013

बंगाल में आधार कार्ड संकट

बंगाल में आधार कार्ड संकट


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल में आधार कार्ड बनाने का काम अभी ठीक से शुरु नहीं हुआ है। लेकिन कई राज्यों में वेतन के भुगतान से लेकर बच्चों के दाखिले के लिए ​​भी आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया। राज्यवासियों को इससे अबतक कोई फर्क नहीं पड़ा है। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर परियोजना के तहत स्थानीय निकायों को इसमें बड़ी भूमिका लेनी थी, लेकिन निकायों में बैठे लोगों को मालूम ही नहीं है कि आधार कार्ड क्या बला है और उनकी क्या ​​जिम्मेवरी है।जनगणना के आंकड़े आ चुके पर बायोमेट्रिक पहचान बनाने का काम शुरु ही नहीं हुआ है। निकायों से पूछताछ करने पर टका सा जवाब मिलता है कि अभी कोई सूचना नही है। इस हिसाब से जनगणना का काम भी राज्य में अभी अधूरा पड़ा है। आधार कार्ड से अब राज्य के लोगों को पहली बार वास्ता पड़नेवाला है, जब पहली अक्तूबर से बाजार दर पर रसोई गैसी खरीदनी होगी और आधार कार्ड होगा, तभी उनके बैंक खाते में नकद सब्सिडी ​

​जमा होगी।राज्य सरकार की ओर से जनता के सामने खड़ी हो रही इस मुसीबत को सहूलियत में बदलने के लिए फिलहाल कोई पहल नहीं की जा रही है।


प्रशासनिक पहल कार्ड दिलाने के लिए नहीं हो रही है तो ाधार कार्ड के भेदभाव मूलक नागरिकता मानवाधिकार विरोधी चरितर के खिलाफ भी बंगाल में अभी कोई जागरुकता आयी नहीं है।अति राजनीति सचेतन बंगाल की यह दुर्दशा है कि अब आधार कार्ड संकट से भी निपटना होगा।बंगाल में तो अभी कोलकाता के आसपास के जिलों में शहरी इलाकों में भी लोगों को आधार कार्ड क्या बला है, मालूम ही नहीं है। ऐसे लोगों को कौन बचायेगा?आधार 12 अंकों की एक विशिष्ट पहचान संख्या है जो कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा प्रदान की जाती है । भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण भारत सरकार का एक प्राधिकरण है जो कि सन 2009 में स्थापित हुआ था जो कि सभी निवासियों को आधार संख्या देने का काम करेगा । भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण एक डाटाबेस तैयार करेगा और प्रत्येक निवासी के लिए 12 अंकों की एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करेगा । इस 12 अंकों की अद्वितीय संख्या के आधार पर व्यक्ति की संपूर्ण जानकारी सरकार के पास उपलब्ध रहेगी ।


मालूम हो कि दिसंबर , २०१२ के बाद इस मामले में राज्य सरकार का कोई सुवचन उपलब्ध नही है । तब ओडिशा और त्रिपुरा के बाद पश्चिम बंगाल ने केन्द्र सरकार की लाभार्थियों के बैंक खाते में सीधे नकदी अंतरण योजना का विरोध करते हुए दावा किया था कि इससे वर्तमान जनवितरण प्रणाली में समस्याएं पैदा होंगी और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) बंद हो जाएगा।राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक ने कहा, 'अगर लाभार्थियों को सस्ते अनाज की जगह नकदी उपलब्ध कराई जाती है तो गरीबों की भूख खत्म करने वाली जन वितरण प्रणाली का मौलिक उद्देश्य खत्म हो जाएगा और भारतीय खाद्य निगम बंद हो जाएगा।'उन्होंने कहा कि एफसीआई का उद्देश्य जनता को सब्सिडी वाली दर पर अनाज और दालें उपलब्ध कराना है और इसका उद्देश्य खत्म हो जाएगा क्योंकि लाभार्थी द्वारा नकदी का उपयोग भोजन के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।


लेकिन जनवितरण प्रणाली में आधार लागू होने से पहले रसोई गैस पर लागू होने जा रहा है। राशन तो फिरभी बाजार से खरीद सकते हैं पर बाजार दर पर रसोई गैस खरीदने की नौबत आयी तो गरीबों को छोड़िये, मध्यमवर्ग के मलाईदार लोगों की भी हवा निकल जायेगी।एक अक्टूबर से रसोई गैस पर दी जाने वाली सबसिडी सीधे आपके बैंक खाते में जमा होगी। इसके लिए 'आधार' नंबर का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके जरिए विभिन्न सरकारी योजनाओं का पैसा पहले ही लोगों के खाते में जमा हो रहा है। इस योजना के तहत साल में नौ सिलेंडरों पर मिलने वाली करीब चार हजार रुपए की सबसिडी लोगों के बैंक खाते में जमा होगी। इस योजना का १५ मई से २० जिलों ट्रायल शुरू होगा। देश भर में करीब १४ करोड़ रसोई गैस उपभोक्ता हैं।सूत्रों के मुताबिक बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और तमिलनाडु में सीधे लाभार्थियों के खाते में नकदी जमा करने की योजना [डीबीटी] को अगले चरण में लागू किया जाएगा। दरअसल इन राज्यों को विशिष्ट पहचान संख्या [आधार] कार्ड योजना के बजाय राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर [एनपीआर] योजना के तहत शामिल किया गया है। इन राज्यों के नागरिकों का योजनाबद्ध तरीके से एनपीआर कार्ड बन रहा है। अगले छह महीने में उक्त राज्यों में एनपीआर के पहले चरण के लागू हो जाने के आसार हैं।वैसे गैर आधार कार्ड वाले राज्यों में डीबीटी लागू करने के लिए एक प्रस्ताव प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया है। माना जा रहा है कि पीएमओ शीघ्र ही इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देगा। हो सकता है कि पीएमओ से यह प्रस्ताव कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति को भेजा जाए। यह समिति डीबीटी के बारे में सारे महत्वपूर्ण फैसले कर रही है। वैसे वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने दो दिन पहले यह एलान किया था कि दिसंबर, 2013 तक पूरे देश में डीबीटी योजना लागू कर दी जाएगी।


आधार कार्ड परियोजना (यूआईडीए) के अध्यक्ष नंदन नीलकेणी ने घोषणा की कि देश में आधार कार्ड बनाने की परियोजना में और तेजी लायी जा रही है।उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 तक देश में साठ करोड़ से अधिक लोगों के पास आधार कार्ड होगा, जबकि झारखंड में अगले सौ दिनों के भीतर सभी लोगों के पास आधार कार्ड हो जाएंगे।बाकी साठ करोड़ लोगों को क्या वेतन, भविष्य निधि से वंचित रखा जायेगा? उन्हें सामाजिक योजनाओं से काटकर रखा जायेगा? उनके बच्चों​​ का दाखिला बंद रहेगा? वे बाहर कहीं भी जा नहीं पायेंगे? संपत्ति और सेवाओं के लिए बिना पहचान के होने के कारण क्या उनकी बेदखली ​​होगी? रसोई गैसके लिए उन्हें कोई सब्सिडी नहीं मिलेगी नीलकेणी इस बारे में चुप्पी साधे हुए हैं। देश की जनता दो फाड़ हो रही है, एक​:​ जिनके पास आधार कार्ड होंगे और दो: जिनके पास आधार कार्ड नहीं होंगे। विशेष सैन्य बल अधिनियम के तहत कश्मीर, पूर्वोत्तर और समस्त आदिवासी, शरणार्थी व बस्ती इलाकों में लोगों का क्या हाल होने जा रहा है, इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं है। उन्होंने बताया कि आज देश में प्रति माह दो करोड़ आधार कार्ड जारी किये जा रहे हैं यानी प्रतिदिन लगभग दस लाख नये आधार कार्ड जारी किये जा रहे हैं। आज देश में आधार कार्ड के लिए पैंतीस करोड़ लोगों का पंजीकरण हो चुका है, जिनमें से 31 करोड़ से अधिक लोगों को कार्ड जारी किया जा चुका है।बस! तो इसी आंकड़े के भरोसे सरकार असंवैधानिक तौर पर नागरिक और मानवाधिकारों के हनन में लगी है।


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