Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Tuesday, April 30, 2013

भारतीय सिनेमा के पुरोधा दादा साहेब फालके हैं या तोरणे?

भारतीय सिनेमा के पुरोधा दादा साहेब फालके हैं या तोरणे?

30 APRIL 2013 NO COMMENT

♦ अश्विनी कुमार पंकज

Dada Saheb Torne 1किसी मजदूर को भारत का पहला फिल्म निर्माता होने का श्रेय भला क्यूं दिया जाए?

भारत में सिनेमा के सौ साल का जश्न शुरू हो गया है। इसी के साथ 1970 के दिनों में फिरोज रंगूनवाला द्वारा उठाया गया सवाल फिर से उठ खड़ा हो गया है। सवाल है भारतीय सिनेमा का पुरोधा कौन है? दादासाहब फाल्के या दादासाहब तोर्णे? इस सवाल पर विचार करने से पहले यह जान लेना जरूरी होगा कि दुनिया की सबसे फिल्म किसने बनायी? क्योंकि यहां भी विवाद है। इस विवाद पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है – दुनिया का पहला फिल्ममेकर कौन है, यह इस बात से तय होता है कि आप यूरोपियन हैं या कि अमेरिकन। भारत के संदर्भ में और यहां की सामाजिक-आर्थिक संरचना को ध्यान में रखते हुए इसे यूं कहा जा सकता है कि भारत में पहली फिल्म किसने बनायी। यह इससे तय होता है कि सवाल करनेवाला आर्थिक दृष्टि से कमजोर है या दबंग?

Dada Saheb Torne 2दुनिया के फिल्मी इतिहासकार इस तरह के विवाद से बचने के लिए फिल्म निर्माण से जुड़े सभी प्रारंभिक इतिहास को सामने रख देते हैं। जैसे – पहली मोशन फिल्म किसने बनायी (The Horse In Motion, 1878)। पहली होम मूवी कब बनी (Roundhay Garden Scene, 1888), पहली शॉट आधारित सिनेमा किसने बनायी (Monkeyshines No. 1, 1889-1890)। पहली कॉपीराइटेड फिल्म का निर्माण किसने किया (Fred Ott's Sneeze, 1893-94)। प्रोजेक्शन की गयी पहली फिल्म कौन सी है (Workers Leaving the Lumiere Factory, 1895) और वह पहली फिल्म कौन है, जिसे दर्शकों को दिखाया गया (Berlin Wintergarten Novelty Program, 1895)।

भारत में ऐसा नहीं है। यहां बस एक ही बात बतायी जाती है कि दादासाहेब फाल्के (30 अप्रैल 1870 – 16 फरवरी 1944) ने भारत की पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनायी। फाल्के की यह फिल्म 3 मई 1913 को मुंबई के जिस कोरोनेशन सिनेमेटोग्राफ में प्रदर्शित हुई थी। इसके ठीक एक वर्ष पहले 18 मई 1912 को इसी हॉल में रामचंद्र गोपाळ उर्फ 'दादासाहेब तोरणे' (13 अप्रैल 1890 -19 जनवरी 1960) की फिल्म 'पुंडलिक' दिखायी जा चुकी थी। फर्क यह है कि तोरणे की फिल्म एक नाटक को शूट करके बनायी गयी थी, जबकि फाल्के की फिल्म रीयल लोकेशन पर बनायी गयी थी। दलीलें और भी कई दी जाती हैं राजा हरिश्चंद्र के पक्ष में, पर हकीकत यही है कि तोरणे का योगदान फाल्के से कहीं ज्यादा है। तोरणे ने कुल 20 फीचर फिल्में बनायीं, जिनमें 5 मूक और 15 बोलती हैं। जिनमें से अधिकांश फिल्में सामाजिक मुद्दे पर जोर देती हैं। साक्षरता के प्रचार-प्रसार के लिए तो उन्होंने काकायदा एक डॉक्‍युमेंट्री फिल्म 'अक्षर-आलेख' बना डाली। यही नहीं, तोरणे के प्रयासों और तकनीकी सहायता से ही आर्देशर ईरानी भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' बना सके, जो 14 मार्च 1931 को मैजेस्टिक थिएटर में प्रदर्शित हुई थी।

तो सवाल वाजिब है। जिसने पहली फिल्म बनायी, जिसने सामाजिक मुद्दे को फाल्के की तुलना में ज्यादा तरजीह दी, जिसकी हिंदी/मराठी में बनी फिल्म 'शामसुंदर' (1932) ने सिने इतिहास में पहली बार जुबली मनायी, जिसने पहली बार भारतीय सिने जगत में 'वितरण' के लिए कंपनी खोली, जिसने डबल रोल वाली पहली फिल्म 'अत घटकेचा राजा' (1933) इंट्रोड्यूस की, जिसने 'भक्त प्रहलाद' (1933) में पहली बार ट्रिक फोटोग्राफी से दर्शकों को अचंभे में डाल दिया, जिसने फिल्मी दुनिया को मास्टर विट्ठल, महबूब, आरएस चौधरी, सी रामचंद्र, जयश्री और जुबैदा जैसे सैकड़ों कलाकार, निर्देशक, सिनेमेटोग्राफर, संगीतकार दिये। आखिर उसे फीचर फिल्म न सही भारत की पहली फिल्म बनाने का श्रेय क्यों नहीं दिया जा रहा? वह भी तब, जब फाल्के के मुकाबले फिल्म निर्माण के अन्य क्षेत्रों में तोरणे का योगदान कहीं ज्यादा है।

शायद इसका जवाब यह हो कि तोरणे एक मिल मजदूर थे और उनके अंतिम दिन बेहद गरीबी में बीते। यहां तक कि उन्हें अपना स्टूडियो वगैरह सब बेचना पड़ गया था। जबकि फाल्के आर्थिक रूप से दबंग थे। जर्मनी से फिल्म तकनीक सीख कर आये थे। यानी फॉरेन रिटर्न। शायद यह जवाब आपको पसंद न आए। पर ऐसे भी सोच कर देखिएगा।

(अश्विनी कुमार पंकज। वरिष्‍ठ पत्रकार। झारखंड के विभिन्‍न जनांदोलनों से जुड़ाव। रांची से निकलने वाली संताली पत्रिका जोहार सहिया के संपादक। इंटरनेट पत्रिका अखड़ा की टीम के सदस्‍य। वे रंगमंच पर केंद्रितरंगवार्ता नाम की एक पत्रिका का संपादन भी कर रहे हैं। इन दिनों आलोचना की एक पुस्‍तक आदिवासी सौंदर्यशास्‍त्र लिख रहे हैं। उनसे akpankaj@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

http://mohallalive.com/2013/04/30/who-is-the-first-pioneer-of-indian-cinema/

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV