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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, April 30, 2013

पांच मंत्री , तीन सांसद सांसद, दो बुद्धिजीवी, सीएमओ के तीन कर्मचारियों और पार्टी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई सबसे जरुरी है, वरना सुनामी का मुकाबला करना मुश्किल!

पांच मंत्री , तीन सांसद सांसद, दो बुद्धिजीवी, सीएमओ के तीन कर्मचारियों और पार्टी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई सबसे जरुरी है, वरना सुनामी का मुकाबला करना मुश्किल!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


पांच मंत्री , तीन सांसद सांसद, दो बुद्धिजीवी, सीएमओ के तीन कर्मचारियों और पार्टी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई सबसे जरुरी है, वरना सुनामी का मुकाबला करना मुश्किल!शारदा समूह के गोरखधंधे के सिलसिले में ये नाम सामने आये हैं बतौर अभियुक्त।सुदीप्त और देवयानी से जिरङ और बाद में बाकी कंपनियों की बहुप्रतीक्षित भेंडापोड़ और केंद्राय जांच एजंसियों  की जांच के सिलसिले में और नाम भी जुड़ते चले जायेंगे। सरकार कार्रवाई नहीं करती तो जनता की अदालत में वे दागी बने ही रहेंगे। इसकी एवज में कोई भी आक्रमण या आत्मरक्षा की रणनीति कारगर नहीं होनेवाली। इस मामले को लेकर राजनीति इतनी प्रबल है कि अनिवार्य काम हो नहीं रहे हैं। यह राजनीतिक मामला कतई नहीं है। विशुद्ध वित्तीय प्रबंधन और कानून व व्यवस्था का मामला है। राजनीतिक तरीके से इससे निपटने की कोशिश आत्मघाती हो सकती है और जरुर होगी। १९७८ के कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए थी । नहीं हुई। लंबित विधेयक को कानून बनाकर प्रशासन के हाथ मजबूत करने चाहिए थे। लेकिन इसके बदले पुराने विधेयक को वापस लेकर विधानसभा के विशेष अधिवेशन में एकतरफा तरीके से बिल पास करा लिया गया और अब इसके कानून में बदलने के लिए लंबा इंतजार हैं।विपक्ष की एकदम सुनी नहीं गयी। विशेषज्ञों की चेतावनी नजरअंदाज कर दी गयी। पूरा मामला राजनीतिक बन गया है। जिससे प्रशासनिक तरीके से निपटने के बजाय राजनीतिक तरीके से निपटा जा रहा है। इसके राजनीतिक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।


खास बात तो यह समझ लेनी चाहिए कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राज्य, देश और दुनिया में जो ईमानदार छवि है, उस पर आंच नहीं आये, इसके लिए पलटकर विपक्ष पर वार करेने के बजाये यह बेहद जरुरी है कि दोषियों और जिम्मेवार लोगों के खिलाफ समय रहते वे तुरंत कार्रवाई करें।उनका बचाव वे राजनीतिक तौर पर करती रहेंगी तो उनकी छवि बच पायेगी, इसकी संभावना कम है। आम जनता को न्याय की उम्मीद है। आम जनता चाहती है कि निवेशकों को पैसे वापस मिले और दोषियों के साथ सात इस प्रकरण में जिम्मेवार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें। राजनीतिक व्याकरण की बात करें कि नैतिकता का तकाजा है कि जो जनप्रतिनिधि इस मामले में सीधे तौर पर अभियुक्त हैं, वे सफाई देने से पहले अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री तक देदें, तो यह सत्तादल और मुख्यमंत्री के लिए सबसे अच्छा उपाय विरोधियों को जवाब देने और जनता में साख बनाये रखने का होगा।


न्याय हो, यह जितना जरुरी है, यह दिखना उससे ज्यादा जरुरी है कि न्याय हुआ।सुदीप्त सेन और उसकी खासमखास से जिरह से  लगातार मंत्रियों, सांसदों, सत्तादल  के असरदार नेताओं से लेकर परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवियों के​ ​ नाम चिटफंड फर्जीवाडे़ में शामिल होने के सिलसिले में उजागर हो रहे हैं। दूसरे राज्यों की ओर से भी जांच प्रक्रिया शुरू होने वाली है और पानी हिमालय की गोद में अरुणाचल और मेघालय तक पहुंचेगा। बंगाल सरकार चाहे या न चाहे , शारदा समूह और दूसरी जो कंपनियां बंगाल से बाहर काम करती हैं, उनकी सीबीआई जांच होगी। सेबी, रिजर्व बैंक, ईडी और आयकर विभोग जैसी केंद्रीय एजंसियों की जांच अलग से हो रही है। देवयानी समेत शारदा ​​समूह के कई कर्मचारियों के सरकारी गवाह बन जाने की पूरी संभावना है। देवयानी और ऐसी ही लोगों की पित्जा खातिरदारी से और भी खुलासा होने की उम्मीद है।शारदा समूह के लेनदेन की तकनीक भी मालूम है और लेनदेन का रिकार्ड बरामद होने लगा है। सुदीप्त सीबीआई को ६ अप्रैल को पत्र लिखने से   पहले कंपनी और कारोबार को ट्रस्ट के हवाले करने की जुगत में फेल हो चुके हैं ।पर उनकी कंपनी को दिवालिया घषित कराने की योजना अभी कामयाब हो सकती है। ऐसे हालात में अभियुक्तों को ठोस सबूत के बावजूद बचा पाना एकदम असंभव है।


पहले से ही जमीन विवाद में उलझे परिवर्तन पंथी बुद्धिजीवी विश्व प्रसिद्ध चित्रकार शुभोप्रसन्न अपना बचाव यह कहकर करते हैं कि सुदीप्त के साथ उनकी तस्वीर डिजिटल जालसाजी है। फिर अपने नये चैनल को वे सुदीप्त को बेचने की बात भी मानते हैं। यह चैनल `एखोन समय' शुरु ही नहीं हुआ, इसके चार निदेशकों में शुभोप्रसन्न और उनकी पत्नी, सुदीप्त और देवयानी हैं।


मुख्यमंत्री कार्यालय के तीन कर्मचारी सामने आ गये हैं, जो मुख्यमंत्री के साथ काम करते हुए शारदा समूह के लिए काम करते रहे। इनमें एक दयालबाबू तो कहते हैं कि वे शारदा समूह से वेतन पाते रहे हैं और राज्य सरकार से उन्हें वेतन नहीं, भत्ता मिलता है।


परिवर्तनपंथी नाट्यकर्मी अर्पिता घोष `एखोन समय' के मीडिया निदेशक बतौर शारदा समूह के लिए काम करती रही। अति राजनीतिसचेतन अर्पिता की दलील है कि उन्होंने सासंद कुणाल घोष के कहने पर यह नौकरी कबूल की और सुदीप्त से तो उनकी बाद में मुलाकात हुई।


इसी तरह मदन मित्र कहते हैं कि किसी चिटफंड कंपनी को वे नहीं जानते। अपनी ओर से यह जोड़ना भी नहीं भूलते कि मुख्यमंत्री से सुदीप्त का परिचय उन्होंने नहीं कराया।फिर यह सफाई कि मुख्यमंत्री भी उन्हें नहीं जानतीं। अब तक शारदा को सर्टिफिकेट देने और इस समूह को प्रोत्साहन देने के बारे में, पियाली की रहस्यमय मौत और उसके संरक्षण, उन्हें शारदा समूह में चालीस हजार की नौकरी दिलवाने के संबंध में अपने विरुद्ध आरोपों के बारे में वे खामोशी अख्तियार किये हुए थे। अब वे बता रहे हैं कि उनकी तस्वीर भी जालसाजी से सुदीप्त के साथ नत्थी कर दी गयी। वे भी शुभेंदु की तरह अपने अनुयायियों से तत्काल चिटफंड कंपनियों से पैसा निकालने के लिए कह रहे हैं।


सुदीप्त दावा करते हैं कि​​ सांसद शताब्दी राय शारदा समूह की ब्रांड एंबेसेडर हैं  और एजंट व आम निवेशक तो लगातार यही कहते रहे हैं कि शताब्दी के कारण ही वे इस फर्जीवाड़े के शिकार बने। सुदीप्त के सहायक सोमनाथ दत्त शताब्दी के चुनाव प्रचार अभियान में उनकी गाड़ी में उनके साथ देखे गये, हालांकि शताब्दी ने कम से कम यह नहीं कहा कि उनकी तस्वीर के साथ जालसाजी हुई।


सांसद तापस पाल किसी भी कंपनी के सात पेशेवर काम को वैध बताते हैं। यानी फिल्मस्टार विज्ञापन प्रोमोशन वगैरह का काम सांसद विधायक होने का बावजूद करते रह सकते हैं।


पूर्व रेलमंत्री मुकुल राय के सुपुत्र शुभ्रांशु राय ने `आजाद हिंद' उर्दू  अखबार शारदा समूह से ले लिया। सुदीप्त की फरारी से पहले पत्रकारों की दुनिया में जोरों से चर्चा थी कि सुभ्रांशु नई टीमों के साथ अखबारों और चैनलों को लांच करेंगे।


इसीतरह सांसद सृंजय बोस का नाम सीबीआई को लिखे पत्र में सांसद कुणाल घोष के साथ लिया है  सुदीप्त ने। कुणाल से तो पूछताछ हुई पर एक फुटबाल क्लब और एक अखबार समूह के मालिक सृंजय से तो पूछताछ भी नहीं हुई।


इसी तरह सत्ता दल के अनेक सांसद, विधायक और मंत्री तक के तार फिल्म उद्योग, मीडिया और खेल के मैदान से जुड़े हैं, जिनके नाम शारदा समूह के साथ जुड़े हुए हैं।संगठन के लोगों के नाम भी आ रहे हैं। जैसे कि तृणमूल छात्र परिषद के नेता शंकुदेव ।


इसी सिलसिले में विपक्ष की क्या कहें, सोमेन मित्र जैसे वरिष्ठ तृणमूल लनेता सीबीआई जांच के जिरिये दोषियों को पकड़ने की मांग कर चुके हैं, जो गौरतलब है। मेदिनीपुर जिले में सांसद शुभेंदु अधिकारी ने ने निवेशकों से तुरंत पैसे निकालने की अपील कर दी और लोग ऐसा बहुत मुश्तैदी से कर रहे हैं। इससे बाकी बची कंपनियों का चेन ध्वस्त हो जाने की आशंका है। एक कंपनी शारदा समूह के फंस जाने से मौजूदा संकट हैं, जिसके साढ़े तीन लाख एजंट हैं । तो दूसरी बड़ी कंपनी के विज्ञापन से मालूम हुआ कि उसके बीस लाख फील्ड वर्कर है। ऐसी बड़ी कंपनियां सौ से ज्यादा है।


अभी आसनसोल में छापे मारकर एक तृणमूल पार्षद की कंपनी का फंडाफोड़ किया गया जो स्थानीय स्तर पर काम करती है। ऐसी स्थानीय कंपनियों की संख्या भी सैकड़ों हैं।


एक एक करके इनके पाप का घड़ा फूटने पर राज्य में जो सुनामी आने वाली है , उससे अब सुंदरवन भी नही बचा पायेगा।सभाओं, भाषणों और रैलियों से इस सुनामी का मुकाबला करने की रणनीति सिर से गलत है और राज्य सरकार वक्त जाया करते हुए अपने पतन का रास्ता बनाने लगी है। मालूम हो कि इन्हीं शुभेंदु अधिकारी ने, जिनकी मेदिनीपुर और समूचे जंगलमहल में वाम किले ध्वस्त करने में सबसे बड़ी भूमिका रही है, ने मांग की है कि अविलंब दागी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाये। उद्योग मंत्री पार्थ चट्टोपाध्याय ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके घोषणा की कि कानून  कानून के मुताबिक काम करेगा। पार्टी किसी को नहीं बचायेगी। लेकिन कानून कहां काम कर रहा है,जनता को तनिक यह भी तो बताइये!



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