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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, October 27, 2013

जाति उन्मूलन का विमर्श और महिषासुर वध आज कोई ज़ख़्म‍ इतना नाज़ुक नहीं जितना यह वक़्त है जिसमें हम-तुम सब रिस रहे हैं चुप-चुप। ***शमशेर बहादुर सिंह 25 से लेकर 29 दिसंबर तक पटना में बामसेफ एकीकरण का राष्ट्रीय सम्मेलन

जाति उन्मूलन का विमर्श और महिषासुर वध

आज कोई ज़ख़्म‍ इतना नाज़ुक नहीं जितना यह वक़्त है जिसमें हम-तुम सब रिस रहे हैं चुप-चुप। ***शमशेर बहादुर सिंह


25 से लेकर 29 दिसंबर तक पटना में बामसेफ एकीकरण का राष्ट्रीय सम्मेलन


पलाश विश्वास

आज कोई ज़ख़्म‍ इतना नाज़ुक नहीं जितना यह वक़्त है जिसमें हम-तुम सब रिस रहे हैं चुप-चुप। ***शमशेर बहादुर सिंह

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आज कोई ज़ख़्म‍ इतना नाज़ुक नहीं जितना यह वक़्त है जिसमें हम-तुम सब रिस रहे हैं चुप-चुप। ***शमशेर बहादुर सिंह


मौजूदा परिदृश्य का इतना सटीक विवरण शमशेर के शब्दों में ही संभव है।हमारी पीढ़ी लाचार है और कला कौशल के द्वंद्व फंद में इतनी निष्णात कि हम ऐसे शब्दबंध गढ़ भी नहीं सकते। रिसते जाना और रीतते जाना आज का सामाजिक यथार्थ है।


सबसे पहले आपके लिए यह अहम जानकारी कि बामसेफ एकीकरण केंद्रीय कार्यकारी समिति की शनिवार को मुंबई में हुई बैठक में आगामी 25 से लेकर 29 दिसंबर तक पटना में बामसेफ एकीकरण का राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन तय हुआ है।


खास बात है कि यह आयोजन जागरुकता और सशक्तीकरण मुहिम के प्रतिबद्ध ऐसे  कार्यकर्ताओं का होगा जो अंबेडकरी विचारधारा के मार्फत अंबेडकरी आंदोलन के तहत देश में समता व सामाजिक न्याय आधारित समाज की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है।


खास बात यह है कि इस सम्मेलन में कथित अंबेडकरी संगठनों की तरह निर्लज्ज अश्लील धनवसूली का कोई कार्यक्रम नहीं है बल्कि यह असुर महिषासुर वध की निरंतरता बनाये रखनेवाले कारपोरेट उत्तरआधुनिक मनुस्मृति अश्वमेध अभियान के विरुद्ध प्रतिरोधी जनमत तैयार करने के उद्देश्य को समर्पित है।


इस सम्मेलन में कोई एकतरफा भाषणबाजी या प्रवचन का आयोजन नहीं है। देश के भूगोल के हर हिस्से, उत्पादन प्रणाली के शक्तिपुंज के हर अंग, सभी सामाजिक समुदायों और शक्तियों के प्रतिनिधित्व और भागेदारी का अभूतपूर्व आयोजन है।


भाषण के बजाय इस सम्मेलन में पांचों दिन संवाद होगा। हर सत्र में देश और देशवासियों, संविधान व कानून के राज, समता और सामाजिक न्याय के लिए चुनौती बने हर मुद्दे  पर देश भर से आने वाले प्रतिनिधि न सिर्फ संवाद करेंगे, बल्कि समाधान के उपाय खोजकर निर्दिष्ट कार्यक्रम बनायेंगे जो समयबद्ध तौर पर अमल में लाया जायेगा।


इस सम्मेलन के मार्फत अंबेडकरी आंदोलन में व्यक्तिवादी मसीहावादी तानाशाही को तिलांजलि देकर तृणमूल स्तर से लेकर जिला, राज्य देश के छह क्षेत्रों पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण मध्य व पूर्वोत्तर और राष्ट्रीय स्तर पर लोकतांत्रिक पद्धति के तहत अंबेडकरी आंदोलन के लिए संगठनात्मक ढांचा बनाया जा सकेगा।


मुंबई बैठक में एकीकृत बामसेफ का संविधान फाइनल हो गया है जिसे राष्ट्रीय सम्मेलन में पेश करके पास कराने के बाद अमल में लाया जायेगा। किसी भी स्तर पर कोई पदाधिकारी दो साल से ज्यादा अवधि तक अपने पद पर नही ंरहेगा।सारे फैसलों की प्रक्रिया फतवेबाजी के बजाय तृणमूल स्तर से जनसुनवाई और जनभागेदारी के मार्फत पूरी होगी ,जिसे लागू करेंगी जिला,प्रदेश, क्षेत्रीय व राष्ट्रीय कार्यकारी समितियां।संगठन के किसी भी सामान्य से सामान्य सदस्य या पदाधिकारी को अकारण निकाल बाहर नहीं किया जायेगा और न हाशिये पर बैठाया जायेगा।गंभीर अनियमितता के दोषी नेतृत्व को हर स्तर पूरी सुनवाई के बाद संबंधित स्तर की कार्यकारी समिति के कम से कम दो तिहाई सदस्यों के बहुमत से पद से निकाला जायेगा।सदस्यों की भी सुनावाई किये बिना उनके खिलाफ किसी भी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। कार्रवाई के लिए संबद्ध स्तर की कार्यकारी समिति के दो तिहाई सदस्यों का अनुमोदन अनिवार्य होगा।


किसी भी स्तर पर कोई पदाधिकारी मनोनीत नहीं होगा। हर स्तर पर सारे पदाधिकारी लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित होंगे।


सारी वित्तीय गतिविधियां हर स्तर पर वित्तीय समितियों के मार्फत कार्यकारी समितियों द्वारा पास बजट के मुताबिक होगा।बामसेफ में काम करने के लिए फंडिग की कोई शर्त या बाध्यता नहीं होगी।


न कोई कोषाध्यक्ष होगा और न किसी व्यक्ति या ट्रस्ट के नाम संगठन को कोई खाता होगा।


सभी स्तरों पर कार्यकारी समितियों के अध्यक्ष और सचिव से लेकर कार्यकर्ता बजट के मुताबिक काम करेंगे और हर कोई संगठन को हिसाब दाखिल करने के लिए उत्तरदायी होगा।


अध्यक्ष या सचिव या अन्य अधिाकारी को व्यक्तिगत तौर पर कोई वित्तीय या नीतिगत फैसला करने का हक होगा नहीं।न उन्हें बेहिसाब खर्च करने की इजाजत होगी।


मसविदा संविधान राष्ट्रीय सम्मेलन  में उपलब्ध होगा और इसके सारे अंश देश, संविधान,कानून का राज, नागरिकता, मानवाधिकार,जल जंगल जमीन और आजीविका बचाने के जागरुकता और सशक्तीकरण मुहिम से संबद्ध हैं।संगठन का हर कदम कानून के राज और भारतीय संविधान के प्रावधानों के मुताबिक होगा।


तमाम प्रतिबद्ध अंबेडकरी संगठनों और कार्यकार्ताओं का इस राष्ट्रीय अधिवेशन में स्वागत है।


विवरण के लिए वे बामसेफ एकीकरण  कार्यकारी समिति के अध्यक्ष माननीय एन बी गायकवाड़ जी से उनके मोबाइल फोन नंबर 09819024594 पर संपर्क कर सकते हैं।


जाति विमर्श का घटाटोप है जाति विमर्श आधारित कारपोरेट समय में। अस्मिता और पहचान के द्वीपों में कैद हो गयी हमारी नागरिकता।


हम धर्माध लोग जाति अंध हैं, इसीलिए धर्माध भी हैं।जाति से टकराने की अब तक की सारी परिकल्पनाएं राजनीतिक रही हैं।


डा. भीमराव अंबेडकर ने सामाजिक न्याय और शोषणविहीन समाज के आधार पर जो जाति उन्मूलन की बात कर रहे थे,उसकी बुनियाद लेकिन आर्थिक है।


हमारी समझ से अंबेडकरी जाति उन्मूलन की परिकल्पना और कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो से शुरू वर्ग विहीन शोषणविहीन समाज के लिए क्रांतियात्रा के बुनियादी उद्देश्यों में कोई अंतर्विरोध नहीं है।


हमारी समझ से भारत में समाजवादी,साम्यवादी और यहां तक कि गांधीवादी तरीके से सामाजिक बदलाव का कोई भी प्रयास अंबेडकर विचारधारा को आत्मसात किये बिना असंभव है।


मुश्किल जो है , वह दरअसल भारतीय मानस का जाति सर्वस्व रसायन के सामाजिक यथार्थ की जड़ों में हैं।


हमारी विचारधारा जो भी हो, हम जाति से ऊपर उठकर बात नही कर सकते।


आरक्षण के प्रसंग में सत्ता वर्चस्व वाली जातियों के साथ साथ आरक्षण लाभार्थी जातियों के लिए भी इस जाति दलदल से निकलकर जाति उन्मूलन की अंबेडकरी परिकल्पना की ठोस जमीन पर खड़ा होना मुश्किल है।


विडंबना तो यही है कि  अंबेडकर के बाद अंबेडकरी आंदोलन सामाजिक परिवर्तन का झंडावरदार बनने के बजाय वर्णवर्चस्व के नस्ली भेदभाव की यथास्थिति कायम रखकर आर्थिक बहिस्कार व नस्ली जनसंहार के कारपोरेट परिदृश्य में सीढ़ीदार जाति व्यवस्था के मार्फत सत्ता में भागेदारी के जरिये समता और सामाजिक न्याय हासिल करने की जद्दोजहद में मलाईदार तबकों के निहित स्वार्थ साधने का साधन बन गया है, जो न अंबेडकर विचारधारा है और न अंबेडकरी आंदोलन।


इसी आत्मघाती मृग मरीचिका में बहुजन मूलनिवासी भारतीय कृषि समाज,जिसका चौतरफा सर्वनाश जाति वर्चस्व वाले कारपोरेट राज में हुआ है और आदिवासी, पिछड़ा, शूद्र, अस्पृश्य व अल्पसंख्यक हजारों तबकों में जो खंड खंड है, वे आधुनिक असुरों और महिषासुरों में तब्दील है और कारपोरेट समय में बिना किसी प्रतिरोध अविराम वे जल जंगल जमीन नागरिकता आजीविका नागरिक व मानव अधिकारों से बेदखल होते हुए इस अनंत वधस्थल में रोज तरह तरह के उत्सवों और आयोजनों में मारे जा रहे हैं।


हमारे क्रांतिकारी मित्र मानें या न मानें, अंबेडकरी विचारधारा और आंदोलन का साम्यवादी या समाजवादी विचारधारा से कोई अंतरविरोध नहीं है।


हकीकत तो यह है कि  जैसे अंबेडकरी विचारधारा के लोग जाति उन्मूलन के कार्यक्रम से हटकर धर्मांध राष्ट्रवाद की पैदल सेना में तब्दील हैं, ठीक उसी तरह इस देश में प्रगतिशील साम्यवादी,गांधीवादी व समाजवादी आंदोलन अब तक वर्ण वर्चस्व बनाये रखने के लिए मूलनिवासी बहुजनों को धर्मांध मनुस्मृति राष्ट्रवाद की पैदल सेना बनाता रहा है।


इस प्रक्रिया में कारपोरेट राज कायम करने के लिए दिन ब दिन अभूतपूर्व हिंसा की सृष्टि तेज हो रही है और उसी की आड़ में आर्थिक सुधारों के बहाने लोकतंत्र  और संविधान  की हत्या करके एक के बाद एक जनसंहार की नीतियां लागू की जा रही हैं।


ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारतीय कृषि समाज ही जाति व्यवस्था का शिकार है। सत्तावर्ग जातिव्यवस्था से मुक्त है चूंकि वे वर्ण परिचय से विशुद्ध,सर्वश्रेष्ठ है और जीवन के हर क्षेत्र में उन्हीं का एकाधिकार है।


कृषि संकट का मौजूदा परिदृश्य शासक कारपोरेट तबकों का कारपोरेट धार्मिक कार्यक्रम है।


भारतीय कृषि ही भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद है न कि वाणिज्यिक रंग बिरंगी सेवाएं या शेयर बाजार या विकास दरें या रेटिंग या उन्मुक्त बाजार का यह निरकुंश कालाधन का यह अबाध पूंजी प्रवाह।



ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि औपनिवेशिक व्यवस्था के विरुद्ध साम्राज्यवाद विरोधी, सामंती व्यवस्था विरोधी तमाम आदिवासी विद्रोह और किसान आंदोलनों का मकसद भूमि सुधार और उत्पादन प्रणाली में मेहनतकश आवाम के  हक हकूक, जल जंगल जमीन आजीविका  नागरिक व मानवाधिकार बहाल रखने का रहा है।

बंगाल में मतुआ आंदोलन, संन्यासी विद्रोह, नील विद्रोह से लेकर चंडाल विद्रोह और तेभागा आंदोलन तक का प्रमुख मुद्दा भूमि सुधार था।


केरल मे ंअयंकाली का  आंदोलन  या महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबाफूले, माता सावित्रीबाई फूले का आंदोलन, मुंबई में लोखंडे का मजदूर आंदोलन, तमिलनाडु में पेरियार का आत्मसम्मान आंदोलन, केरल में नारायण गुरु का आंदोलन, देशभर में सूफी संतों का आंदोलन मनुष्यता के अधिकारों का आंदोलन है।


जो मनुष्यों को वानर, राक्षस, दैत्य, दानव, राक्षस, असुर महिषासुर ,शूद्र और अस्पृश्य बानाने और उनके वध की संस्कृति के विरुद्ध है।


इन सारे आंदोलनों के पीछे आर्थिक बुनियादी मुद्दे और जल जंगल जमीन के हक हकूक की बहाली के मुद्दे हैं।


बहुजनों और मूलनिवासी भारतीय कृषिसमाज के सफाये का यह मनुस्मृति शास्त्रीय धार्मिक उत्सवी कारपोरेट अभियान भी विशुद्ध आर्थिक है जिसे न सिर्फ अस्मिता की राजनीति से रोकना संभव है और न सत्ता में भागेदारी के कारपोरेट राजनीति से।उलट इसके इन माध्यमों से कारपोरेट मनुस्मृति व्यवस्था दिनोंदिन निरंकुश होती जा रही है।


जब आप अपने जनप्रतिनिधि मनोनीत अपराधियों और बाहुबलियों को बनाने के लिए बाध्य हैं,तब राजनीतिक स्वतंत्तता की कोई प्रासंगिकता नही रहती।


जब कारपोरेट और मीडिया के मार्फत ईश्वर और अवतार अवतरित होते हैं और बालिग मताधिकार का माखौल बनाकर जनादेश को मैनेज कर लिया जाता है।


जब अल्पमत सरकारें कारपोरेट लाबिंग के मार्फत सर्वदलीय सहमति से देश बेचती हैं और प्रकृति से सामूहिक बलात्कार का आयोजन करती है।


जब संस्थागत निवेशकों की आस्था कानून के राज पर हावी होती है।


जब ओबीसी लालू को जेल भेज दिया जाता है और मनुष्यता के विरुद्ध युद्ध अपराधी,देश की एकता व अखंडता को नीलामी पर चढ़ाने वाले विशुद्ध राष्ट्रद्रोही, कोयला ,तेल, परमाणु ऊर्जा और देश के तमाम संसाधन हजम करने वाले लोग, लाखों करोड़ का घोटाला दशकों से करने वाले छुट्टा सांढ़ बने घूमते हैं।


जब विदेशी रेटिंग संस्थाओं के फतवे, राष्ट्रविरोधी जनविरोधी अर्थशास्त्रियों की आंकड़ेबाजी और शेयर बाजार की उछलकूद से नीतियां बनती बिगड़ती है।


जब सैन्य राष्ट्र अस्पृश्य भूगोल के वाशिंदे देशवासियों के विरुद्ध युद्ध घोषणा करती हो।


जब हर नागरिक की खुफिया निगरानी होती हो।


जब हर नागरिक से अपराधी जैसा सलूक हो।


जब नागरिक फर्जी मुठभेड़ों में निरपराध मारे जाते हैं।


जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अवमानना होती है।


जब समूची राजनीति संदिग्ध और दुश्चरित्र हो।भ्रष्ट हो।


न संविधान बचता है और न कानून का राज और न बचता है लोकतंत्र।बचता है सिर्फ जातिवादी वर्चस्ववाद ।



अब तक जाति उन्मूलन की हर परिकल्पना जाति वर्चस्व बनाये रखने की ही परिकल्पना साबित हुई है,समता और सामाजिक न्याय वर्गविहीन शोषनविहीन समाज निर्माण की परिकल्पना नहीं।


भारतीय कृषि समाज की व्यापक एकता,निनानब्वे फीसद वंचित जनता की सक्रिय हिस्सेदारी के बिना शासकों की देख रेख में जातिव्यवस्था आधारित कारपोरेट जनसंहार संस्कृति की अर्थव्यवस्था का निषेध असंभव है।


हमारा मकसद है कि घृणा अभियानों के विरुद्ध हिंसामुक्त लोकतांत्रिक जनांदोलन,जो किसी के भी प्रति वैमनस्य भाव रखने के बजाय सामाजिक बदलाव के प्रति प्रतिबद्ध हो और इस अर्थव्यवस्था में उत्पादकों के हक हकूक जल जंगल नागरिकता आजीविका नागरिक व मानवाधिकारों की बहाली करता हो।


जो स्त्रियों,बच्चों और मूलनिवासियों की दासता के विरुद्ध हो।


जो भौगोलिक अस्पृश्यता और नस्ली भेदभाव के विरुद्ध हो।


हम न सिर्फ बाबा साहेब के अनुयायी हैं, बल्कि हम भारत के तमाम आदिवासी विद्रोहों और किसान मजदूर आंदोलन के अपने तमाम पुरखों के अनुयायी हैं।सूफी संतों के अनुयायी हैं, जो निरंतर सामाजिक बदलाव, समता व सामाजिक न्याय के हक में आवाज उठाते रहे हैं।


हम तथागत गौतम बुद्ध के समतामूलक समाज की बात कर रहे हैं,इसलिए बामसेफ एकीकरण का यह अभियान हमारे पुरखों की गौरवशाली परंपरा के तहत नये प्रस्थानबिंदु तय करने और नयी यात्रा शुरु करने का कार्यक्रम है।


इस कार्यक्रम में समविचारी सभी व्यक्तियों और संगठनों का खुला स्वागत है।

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