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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, October 27, 2013

वीरेन दा चुप सुनते रहते हैं, महसूस करते रहते हैं... फिर अचानक बताते हैं...


जो शख्स पूरे जीवन चहंकता, खिलखिलाता, हंसता-हंसाता, संबल बंधाता और जनता के आदमी के बतौर कई पीढ़ियों को जीना सिखाता रहा, वह इन दिनों खुद ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां सिवाय संकट, मुश्किल, दर्द, तनहाई और निराशा के कुछ नहीं हैं. फिर भी वे इन बुरे भावों के साये तक को अपने उपर पड़ने नहीं देने की जिद पर अड़े हुए हैं और खूब सारी उम्मीदों के बल पर फिर से उसी अपनी सहज सरल जनता की दुनिया में लौटने को तत्पर हैं जहां खड़े होकर वह जीवन और जनता के गीत लिखा करते, गान गाया करते.

बात हो रही है जाने-माने कवि, पत्रकार, प्रोफेसर वीरेन डंगवाल की. कैंसर से दूसरे राउंड की लड़ाई लड़ रहे वीरेन डंगवाल को अब आवाज की दिक्कत होने लगी है. रेडियोथिरेपी के कारण उनके बोलने में परेशानी हो रही है. आवाज लड़खड़ा रही है. पर खुद वीरेन दा कहते हैं कि सब ठीक हो जाएगा प्यारे.

कीमियोथिरेपी का दौर चलने के बाद वीरेन डंगवाल बरेली चले गए थे. फिर वहां से रेडियोथिरेपी के लिए लौटे. रेडियोथिरेपी का कार्य गुड़गांव के एक अस्पताल में हो रहा है. वे सोमवार से शुक्रवार तक गुड़गांव में रेडियोथिरेपी कराते हैं और शनिवार से रविवार तक दिल्ली के तीमारपुर में अपने पुत्र के यहां आराम करने चले आते हैं. उनसे लगातार संपर्क में रह रहे लोगों का कहना है कि वे ज्यादा अच्छे तब थे जब कैंसर डायग्नोज नहीं हुआ था. कैंसर का इलाज आदमी को जीते जी मार देता है. कीमियोथिरेपी के कारण बाल झड़ने से लेकर कमजोरी तक की स्थिति आई. रेडियोथिरेपी से अब आवाज लड़खड़ाने लगी है. आखिर इन इलाजों का क्या फायदा जिससे अच्छा खासा आदमी बीमार, कमजोर और जर्जर हो जाता है.

यही हाल जाने-माने पत्रकार आलोक तोमर के साथ हुआ था. ज्यों ही उनकी कीमियोथिरेपी शुरू हुई, उनके शरीर में दिक्कतें चालू हो गईं. शरीर फूलने लगा. बाल गिरने लगे. आवाज खत्म होने लगी. शरीर का रेजिस्टेंस पावर धीरे-धीरे कम होने लगा. अब लगता है कि उनके कथित कैंसर का इलाज न हुआ होता तो वो आज भी हम लोगों के बीच होते.

वीरेन डंगवाल कहते हैं कि जो डाक्टर रेडियोथिरेपी कर रहा है, वो उनका बहुत करीबी और परिचित है. उनके कहने, उनके भरोसे पर ही यह सब शुरू हुआ है. इस पर उनको जानने वाले कहते हैं कि ये वीरेन दा दोस्तों पर अटूट भरोसा करते हैं और दोस्तों के लिए ही जीते-मरते हैं, सो उन्हें कभी किसी दोस्त की सलाह को लेकर पछतावा नहीं होगा, यह उनके व्यक्तित्व की विशालता बड़प्पन है. फिलहाल तो वीरेन डंगवाल अपने इलाज के दौरान, रेडियोथिरेपी के दौरान, तरह-तरह की मशीनों की आवाजों के बीच जाने-जाने कौन-कौन-सी कविताएं लिखते बोलते रहते हैं और इन्हीं शब्दों के बल पर, इन्हीं भावों के संबल से आंतरिक मजबूती कायम रखते हुए रोगों मशीनों और तमाम किस्म की थिरेपियों के परे खुद को पालथी मारे बिठाए रखते हैं... पहले सा उन्मुक्त और मस्त बने रहते हैं...

9 अक्टूबर 2013 के दिन, जब रेडियोथिरेपी शुरू हुई, वे कहने लगे- ''आखिर आज रेडियोथिरेपी का खेल भी शुरू हुआ. चेहरे पर एक जाली का मुखौटा कसा हुआ और कानों में अजीब अंतरिक्षिया सूं सांय सांय...''

तभी उनके एक शिष्य ने उन्हें सुनाना शुरू किया, वे आंख मूदे सुनते मुस्कराते रहे, वो ये कि... ''दादा.. मैं अभी टीवी पर स्पेस डाइव शो देख रहा था.. वो जो चैनल हैं न डिस्कवरी हिस्ट्री एनजीसी.. ये सब ऐसा ही कुछ दिखाते रहते हैं... तो इस स्पेस डाइव शो में एक आदमी सबसे ज्यादा उंचाई से छलांग लगाता है... वह आदमी खुद हवाई जहाज में नहीं बल्कि सुपरसोनिक विमान में तब्दील हो जाता है.. उस आदमी की स्पीड हो गई थी एक हजार किलोमीटर प्रति घंटे.. पर वो आदमी जिंदा रहा.... दुर्घटनाग्रस्त जहाजों की तरह टूटा-फूटा नहीं, टुकड़े-टुकड़े नहीं हुआ, घर्षण से आग का शिकार नहीं हुआ, मशीन यानि दिल ने काम करना बंद नहीं किया.. वो सही सलामत जब धरती पर लैंड किया, आखिर कुछ मिनटों के दौरान पैराशूट खोलकर.... तो सबसे पहले दौड़कर उसकी मां ने उसे चूमा... वो ज़िंदा रहा क्योंकि उसको खुद पर यकीन था, उसने ज़िंदा रहने का कई बरसों तक अभ्यास किया... उसने उस उंचाई से कूदने और नीचे आकर खिलखिलाने का मनोबल कई वर्षों से बनाना शुरू किया... उसमें जीतने की ज़िद थी... आप भी जीतेंगे... जि़ंदा रहेंगे... डाइव का दौर आपका जारी है... आप अंतरिक्षिया सूं सांय सांय के दौर से गुजरते हुए धरती की ताजी हवाओं तक फिर पहुंचेंगे और खिलखिलाएंगे... आपके माथे को चूमेंगे आपको चाहने वाले... आमीन...''

वीरेन दा चुप सुनते रहते हैं, महसूस करते रहते हैं... फिर अचानक बताते हैं...

..आगे यहां पढ़ सकते हैं...
http://bhadas4media.com/article-comment/15442-2013-10-27-09-28-47.html

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