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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, October 21, 2013

सांस्कृतिक युद्ध में उतर तो गये असुर बाजार खड़ा तमाशा देखता वध्य महिषासुर,अस्पृश्य भूगोल का आर्थिक मुक्तियुद्ध अभी बाकी है

सांस्कृतिक युद्ध में उतर तो गये असुर

बाजार खड़ा तमाशा देखता वध्य

महिषासुर,अस्पृश्य भूगोल का

आर्थिक मुक्तियुद्ध अभी बाकी है


पलाश विश्वास


सांस्कृतिक युद्ध में उतर तो गये असुर

बाजार खड़ा तमाशा देखता वध्य

महिषासुर,अस्पृश्य भूगोल का

आर्थिक मुक्तियुद्ध अभी बाकी है


इस डिजिटल बायोमेट्रिक

कारपोरेट जायनवादी

उपनिवेश में तमाम असुर

महिषासुर,असुर अस्पृश्य

और आदिवासी,अल्पसंख्यक

महिषासुर शूद्र समाज समूचा

किसी और आकाशगंगा  के

वाशिंदा हैं क्योंकि  यह

आकाशगंगा अब देवलोक है


स्वप्नादेश से खनन होता

इतिहास का, स्वप्नादेश से

सरकारें चल रही हैं

स्वप्नादेश से बन रहे हैं कानून

सारा राजकाज दैवी है

इस विशुद्ध धर्मक्षेत्र मध्ये

विशुद्ध वैदिकी मंत्रोच्चारण से

जारी है चंडीपाठ और

जारी है महाभारत

स्वजनों के नरमेध का

कर्मफल का गीता उपदेश

और नियतिबद्ध यह

रंगभेदी अर्थ व्यवस्था में

बहिस्कृत निनानब्वे फीसद

मजा यह है कि इस बहुजन

भूगोल में अस्पृश्य जनपदों के

वे तमाम लोग भी हैं जो

खुद को भूदेवता मानते हैं

अबभी और अपने अपने

भूखंड को देवलय समझते हैं


इस सर्वव्यापी देवभूमि में

देवों का स्वप्नादेश से

जारी है राजकाज और

स्वर्ण मृग मरीचिका में

चुंधियायी हमारी आंखें

वधस्थल पर गले में

पुष्पहार,वैदिकी मंत्रोच्चारण

में खोज रहे हैं हम मुक्तिमार्ग

धर्म राष्ट्र की धर्मोन्मादी

पैदल सेनाएं हम तमाम

असुरजन, महिषासुर

एक दूसरे के वधोत्सव में

करते जीवनयापन


रंगों का खेल है नस्ली यह

सांप्रतिक सामाजिक यथार्थ

सिर्फ जाति व्यवस्था तक

सीमाबद्ध नहीं है भारत दुर्दशा

सिर्फ मनुस्मृति नहीं है

यह ओपन मार्केटीय

चूंती ट्रिकलिंग इकानामी

बहुत गहरे में है बहुआयामी

रंगों का खेल और इसीलिये

बेहद अनिवार्य है सुरासुर

विमर्श अब,जो अश्वेत नस्ल पर

श्वेत साम्राज्य का शाश्वत

मिथक है सर्वव्यापी और

इसी मिथक के गर्भ में है

क्रयशक्ति वर्चस्व का इतिहास

हवनकुंड में दहक रही है

अश्वेत पृथ्वी यह और हम

सारे असुर, महिषासुर

कारपोरेट कबाब हैं आजकल

जिसमें न हड्डी है कहीं

और न कहीं रक्त मांस



जरा इस सोने की खोज

तमाशा पर भी गौर करें

पुरातत्व विभाग ने फिर

खोजा चूं चूं का मुरब्बा

और

शोभन सरकार न हो गए संघ परिवार हो गया,

जिसके सामने नरेंद्र मोदी दंडवत करते ही जा रहे हैं

सोमवार सुबह उन्होंने ट्वीट कर

उन्नाव के एक गांव में बसे

इस संत के प्रति श्रद्धा जताई

तो शाम तक उनके दूत और

पिछले लोकसभा चुनाव में

कानपुर सीट से बीजेपी के

प्रत्याशी रहे विधायक सतीश महाना

भी संत की शरण में पहुंच गए

उन्होंने आज तक से

बातचीत में कहा कि

संत शोभन सरकार ने

नरेंद्र मोदी को क्षमा

कर दिया है

उनके मुताबिक

मोदी का कुछ दिनों पहले

चेन्नई एयरपोर्ट पर

दिया गया बयान,

किसी संत की

अवमानना नहीं था,

बल्कि केंद्र सरकार की

काले धन पर

नाकामी को लक्ष्य कर था


अब कालाधन का

किस्सा ही असली है

मनुस्मृति मुताबिक

शूद्रों को संपत्ति का

अधिकार नहीं कोई

सागर मंथन से

निकला हलाहल ही

असुरों महिषासुरों

के हिस्से में है

बाकी अमृत

देवताओं का


अस्पृश्य बाबासाहेब

का लिखा संविधान

चूंकि मनुस्मृति के

सारे प्रावधानों का

करता है खंडन और

असुरों महिषासुरों को

मिल गया संबवैदानिक

रक्षा कवच,इसलिए

यह धर्मयुद्ध दरअसल

संविधान वध के लिए है

दुर्गा मंडप में जो

महिषासुर वध है

वह दरअसल गायपट्टी में

यादवों के उत्थान का

जवाब लाजवाब है

और देख लीजिये

कैसे अपने लालू यादव

बना दिये गये महिषासुर

बाकी सारे लोग

छुट्टा सांढ़, जिनपर

सुप्रीम कोर्ट का भी

कोई अंकुश नहीं


बिड़ला के खिलाफ

एफआईआर का क्या

हो गया दर्ज कि

अर्थ व्यवस्था थम गयी

जैसे गार को मारे बिना

विदेशी निवेश आस्था

अर्जित न हो सकी

जैसे देश को बेचे बिना

हो नहीं सकता विकास

और असुरों महिषासुरों को

इस आकाश गंगा से बाहर

किसी और आकाशगंगा में

भेजे बिना विकास असंभव

इसीलिए निरंकुश

बेदखली अभियान


अब मां दुर्गा की सुरक्षा के लिए

असुर महिषासुर वध के लिए

भी महानगरों में तैनात

होने लगे हैं ड्रोन नाटो का

बंगाल में हावड़ा में

राइटर्स के स्थानांतरण

कामरेडों के लिए सबसे

बड़ा मुद्दा है

आपदा प्रबंधन के नाम

अखंड चंडीपाठ

कोई मुद्दा ही नहीं

कोई मुद्दा नहीं

पिलिन के मौके पर

ठप राजकाज और

मां काली के दरबार में

मां दुर्गा के नाम नालिश


नोटों के बंडल पर

सोने लगे हैं कामरेड अब

आसमान के हर चप्पे

पर होने लगे तैनात ड्रोन अब

क्योंकि सुरक्षा घेरा तोड़ने वाली

अग्निकन्या की हवाई सुरक्षा

सबसे ज्यादा जरुरी है

नागरिकों और राष्ट्र की

संप्रभुता कोई मुद्दा नहीं

अमेरिका साम्राज्यवाद

के विरोध के नाम

असुरों महिषासुरों के

वोट बैंक पर काबिज

जिनने राज किये

पक्के पैंतीस साल

जिनने मरीचझांपी में

शरणार्थियों को बना

दिया बाघों का चारा

अब ड्रोन कहीं भी हो

तैनात, आंतरिक सुरक्षा

के मामले में नहीं बोलेंगे

कामरेड क्योंकि अब

असुरों महिषासुरों का

वोटबैंक मां दुर्गा और

मां काली के हवाले है

सत्ता में वापसी के लिए

इसीलिए जितना जरुरी है

सार्वजनिक नमाज

उतना ही जरुरी है

अखंड चंडीपाठ

और उसी तरह

लंकाकांड और

रावण वध के लिए

बेहद जरुरी है

स्वर्ण मृग मरीचिका

कुल मिलाकर , असुरों

और महिषासुरों का

वध जारी है

और खामोश हैं

तमाम मोमबत्तियां


पार्टिसिपेटरी नोट्स (पी-नोट्स) के जरिये भारतीय शेयरों में निवेश सितंबर में 10 माह के उच्च स्तर 1.71 लाख करोड़ रुपये (28 अरब डालर) पर पहुंच गया। विदेशों से उच्च संपदा वाले लोगों (एचएनआई) तथा हेज फंडों द्वारा इस मार्ग के जरिये निवेश को तरजीह दी जाती है।


उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के डोंडिया खेडा गांव में हो रही सोने की खुदाई में हस्तक्षेप से सोमवार को इनकार कर दिया। न्यायालय ने पेशे से वकील मनोहर लाल शर्मा की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हस्तक्षेप से यह कहते हुये इन्कार कर दिया कि वह समय से पहले हस्तक्षेप नहीं कर सकता।


न्यायालय ने हालांकि शर्मा की याचिका खारिज करने की बजाय उसे लंबित रख लिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले में केवल अनुमान के आधार पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती। याचिकाकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय की निगरानी में खुदाई करने तथा खुदाई स्थल पर सेना को तैनात करने का अनुरोध किया था।


योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सोमवार को कहा कि तालाबीरा-दो कोयला खदान हिंडाल्को को आवंटित करने का प्रधानमंत्री का निर्णय 'पूरी तरह सही' था। उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों को जांच मामले में 'शिष्ट रुख' विकसित करने की जरूरत है।


अहलूवालिया ने एक समाचार चैनल के साथ बातचीत में कहा, ''..निर्णय बदलने के जो कारण थे, वह पूरी तरह सही थे। केवल इस तथ्य के आधार पर कि फैसला बदला गया, मीडिया का फोकस इस पर बना हुआ है। नये तथ्यों की पृष्ठभूमि में निर्णय बदलने में कुछ भी गलत नहीं था।''


वह सीबीआई एफआईआर के बारे में शनिवार को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा जारी स्पष्टीकरण पर पूछे गये सवालों का जवाब दे रहे थे। कोयला घोटाला मामले में दर्ज प्राथमिकी में आदित्य बिड़ला समूह के प्रमुख कुमार मंलगम बिड़ला तथा पूर्व कोयला सचिव पी सी पारेख का नाम है।


सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में आरोप लगाया है कि 'सक्षम प्राधिकार' ने हिंडाल्को का समर्थन किया और तालबीरा-2 कोयला खदान सार्वजनिक क्षेत्र की नेवेली लिग्नाइट को देने के पूर्व के निर्णय को बदल दिया।


अहलूवालिया ने कहा कि जांच इस रूप में होनी चाहिए जिससे किसी की साख को नुकसान नहीं हो और व्यक्ति जब तक दोषी साबित नहीं हो जाता, उसे निर्दोष समझा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ''हमें जांच के मामले में 'शिष्ट रूख' अपनाने की जरूरत है।''






जोहार!

हम आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद देते हैं कि आपलोगों ने महिषासुर शहादत दिवस और असुर सम्मान अभियान को देश भर में समर्थन दिया. आज अगर हम असुरों के साथ साथ देश के दूसरे समुदाय भी जैसे कि दलित-पिछड़े लोग भी खुद को असुर मान रहे हैं तो इससे हम बहुत खुश हैं. जो भी इस देश में सताया जा रहा है, लूटा जा रहा है और जिसकी हत्याएं की जा रही है जमीन संसाधन पर कब्जा के लिए, वे चाहे कोई जाति हो सभी असुर हैं. हम झारखंड समेत दिल्ली, पटना, बंगाल, हैदराबाद, उप्र और देश के अन्य हिस्सों में हुए आयोजनों के लिए अपने सभी संगी साथी आयोजकों को बहुत बहुत शुक्रिया कहती हूं.


आपकी ही असुर बहन

सुषमा असुर




पहली बार खजाना खोज रही है एएसआइ

लखनऊ। उन्नाव के डौंडिया खेड़ा के राजा राव रामबख्श सिंह के किल में खजाने की खोज में किया जा रहा उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के लिए भी नया अनुभव है। प्रदेश में ही नहीं देश में भी इससे पहले कभी एएसआइ ने किसी खजाने की तलाश में इस तरह पुरातात्विक उत्खनन नहीं किया है।

एएसआइ केअधीक्षण पुरातत्वविद् रहे सीबी मिश्रा ने बताया कि पुरातात्विक खोदाई हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति, पुरानी बस्तियों के पुरावशेषों की तलाश में की जाती है। डौडिया खेड़ा में तो खोदाई खजाने की तलाश में की जा रही है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रोफेसर डीपी तिवारी कहते हैं कि डौंडिया खेड़ा में इतनी बड़ी मात्रा में सोना होने की बात पर यकीन नहीं है। राजा राव राम बख्श सिंह की रियासत 25 से 30 किमी. में फैली थी। उनकी आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं थी। डॉ. तिवारी को उन्नाव के संचानकोट में करीब तीन वर्ष तक उत्खनन का अनुभव है। इस उत्खनन में तमाम पुरावशेष प्राप्त हुए थे। वह बताते हैं कि यह पता करने के लिए की जमीन के नीचे क्या है, ग्राउंड मेटल डिटेक्टर की मदद ली जाती है। इससे केवल एक मीटर नीचे तक की जानकारी मिलती है। जमीन में इसके नीचे क्या है इसका पता लगाने के लिए ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार (जीपीआर) का प्रयोग किया जाता है। दरअसल यह मिट्टी के भौतिक गुणों जैसे घनत्व, चुंबकीय गुण, रेजिस्टिविटी को रिकॉर्ड करता है जिसके आधार पर ग्राफ तैयार कर यह अनुमान लगाया जाता है कि मिट्टी के नीचे कौन सा तत्व है। इसके बाद कोर एनालिसिस की जाती है। इसमें जमीन के नीचे ड्रिलिंग कर थोड़ा-थोड़ा मैटरीयल निकाल कर उसका विश्लेषण किया जाता है। इससे स्थल विशेष पर नीचे क्या है इसकी सटीक जानकारी मिलती है।


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जोहार.

आप सभी को महिषासुर और रावण की शहादत याद रहे. याद रहे कि समान और सुंदर दुनिया का लडाई खतम नहीं हुआ है. हमारे असुर पुरखा-पूर्वजों ने, बूढ़े-बुढ़ियों ने धरती को इंसानों को रहने लायक बनाया था. कुछ लोगों ने इसे गंदा कर दिया. हमें फिर से दुनिया के आंगन को साफ कर और बढ़िया से लीप-पोतकर सजाना है. सिरजना है.


हम कल रात में ही रांची आ गए थे. सुबह-सुबह वंदना दीदी, विजय दादा, वृंदावन दा और अखड़ा के दूसरे साथियो के साथ पुरूलिया जाना था. महिषासुर शहादत दिवस में रहने के लिए. लेकिन रात से ही बड़ा भारी पानी-आंधी. नहीं जा सके.


आप सभी को अपने पुरखों का साहस देती हूं. हमारे पास अपने असुर पूर्वजों का बस यही चेतना है. महिषासुर और रावण शहादत दिवस पर हूल जोहार!


photo by Vijay Gupta

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झारखंडी भाषा संस्कृति अखड़ा shared a link.
17 hours ago
दांसाई नाच भारत भूमिपुत्रों के दुर्गोत्सव का पक्ष में या आनन्द का नाच कभी भी नहीं है। यह दुर्गोत्सव का विषय में विरोध के लिए नाच या व्रत है। पंचदश शताब्दी के मध्य में राजशाही ताहिरपुर के राजा कंश नारायण खाँ सर्वप्रथम दुर्गापूजा किये थे। "इस शारदीय दुर्गापूजा का उस समय के प्रारम्भिक काल से बहुत काल पूर्व से (प्रचलित रूप में) खेरवाल भूमिपुत्र गोष्ठी दुर्गा देवी के विरोध और काठीनाच के माध्यम से वे उनके देश हारा तथा दुःख दांसाई दाड़ान व्रत पालन करते आ रहे हैं"। ...

पूरा पर्चा पढ़ने के लिए लिंक पर जाएं

http://asurnation.in/asur-collective.php?subaction=showfull&id=1382215458&ucat=3&template=Asura&

सीबीआई की एफआईआर से इकनॉमिक रिवाइवल की छुट्टी

ईटी | Oct 21, 2013, 02.00PM IST


दीपशिखा सिकरवार, विकास धूत, अरुण कुमार

नई दिल्ली।। पिछले हफ्ते सीबीआई ने कोल ब्लॉक एलोकेशन मामले में जो एफआईआर दर्ज की है, उससे देश की इकनॉमी को रिवाइव करने की कोशिशों के बेअसर साबित होने का खतरा पैदा हो गया है। सरकार ने इनवेस्टमेंट का माहौल सुधारने, रुके हुए प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू करवाने और अपने एसेट बेचकर पैसा जुटाने की पहल शुरू की थी। ये काम इकनॉमिक ग्रोथ तेज करने के लिए किए गए थे। हालांकि, सीबीआई की एफआईआर के बाद सरकार में हर लेवल पर डर बढ़ गया है। इससे पॉलिसी पैरालिसिस की आशंका पैदा हो गई है।


दरअसल, सीबीआई ने हिंडाल्को को कोल ब्लॉक एलोकेशन के मामले में फॉर्मर कोल सेक्रेटरी पी सी पारख पर भी मामला दर्ज किया है। इससे ब्यूरोक्रेट्स डरे हुए हैं। कुमार मंगलम बिड़ला के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के मामले में इंडस्ट्री ने सीबीआई की तीखी आलोचना की है। प्रधानमंत्री और राजनेताओं ने भी इस मामले में जांच एजेंसी से नाराजगी जताई है।


एक सरकारी अफसर ने बताया, 'अब रिकवरी की उम्मीद करना बेमानी होगा।' मार्च में खत्म हुए फाइनेंशियल ईयर 2013 में देश की जीडीपी ग्रोथ 5 फीसदी के साथ 10 साल के लोअर लेवल पर पहुंच गई थी। जून क्वार्टर में यह 4.4 फीसदी रही। इसके बाद कई एजेंसियों ने देश के जीडीपी फोरकास्ट में कमी की है। एक अन्य ऑफिशियल ने कहा, 'कोई भी ऐसा फैसला क्यों करना चाहेगा, जिस पर उसके रिटायर होने के 6 साल बाद सवाल उठे। आपसे कभी भी फैसले नहीं लेने के लिए सवाल नहीं पूछे जाते। बहुत कोशिशों के बाद इकनॉमी पटरी पर लौट रही थी, लेकिन इसे धक्का लगा है।'


यूपीए सरकार को दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के कई आरोपों का सामना करना पड़ा है। इसके बाद ब्यूरोक्रेसी ने फैसले लेने में सुस्ती बरती, लिहाजा इनवेस्टमेंट रुक गया। पिछले साल पी चिदंबरम को दोबारा फाइनेंस मिनिस्टर बनाए जाने के बाद से पॉलिसी पैरालिसिस खत्म हुई थी। प्रोजेक्ट्स को फास्ट क्लीयरेंस देने के लिए कैबिनेट कमेटी ऑन इनवेस्टमेंट्स (सीसीआई) बनाई गई थी। हालांकि, सीबीआई की एफआईआर से 250 से ज्यादा प्रोजेक्ट्स के अप्रूवल का काम लटक सकता है। इन प्रोजेक्ट्स में 12.5 लाख करोड़ रुपए का इनवेस्टमेंट होना है। यह इंडिया के जीडीपी का 20 फीसदी है।


विडंबना यह है कि इनमें से एक प्रोजेक्ट हिंडाल्को कोल ब्लॉक से जुड़ा है, जिस मामले में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की है। पिछले दो महीने में कुमार मंगलम बिड़ला इस सिलसिले में उन सीनियर अफसरों से दो बार मिल चुके हैं, जो सीसीआई से जुड़े हुए हैं। इसमें उन्होंने आदित्य बिड़ला ग्रुप के पेंडिंग प्रोजेक्ट्स को तेजी से क्लीयरेंस देने की अपील की थी। माइंस मिनिस्ट्री ने भी हिंडाल्को के 13,200 करोड़ रुपए के आदित्य एल्युमीनियम स्मेल्टर प्रोजेक्ट को क्लीयरेंस देने की मांग की है।


कोयला घोटाला: मंगलम बिड़ला और पारेख पर FIR कर फंसी सीबीआई

टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Oct 21, 2013, 10.06AM IST

नई दिल्ली।। कोयला घोटाले की जांच में सीबीआई अब खुद ही फंसती नजर आ रही है। जहां सीबीआई कोल ब्लॉक तालबीरा-2 को आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी हिंडाल्को को आवंटित करने के फैसलों पर शक कर रही है, वहीं प्रधानमंत्री इसे पूरी तरह से सही मान रहे हैं। प्रधानमंत्री ने हिंडाल्कों को कोल ब्लॉक देने के फैसले को बिल्कुल सही ठहराया है। उन्होंने कहा कि हिडाल्कों को मेरिट के आधार पर कोल ब्लॉक मिला है और इसमें कुछ गलत नहीं हुआ है। दूसरी तरफ सीबीआई ने इस कोल ब्लॉक को हासिल करने के आधार पर ही कुमार मंगलम बिड़ला पर एफआईआर दर्ज की है।


हिंडाल्को के पक्ष में प्रधानमंत्री कार्यालय की जबर्दस्त वकालत के बाद सीबीआई जिस जांच को जमीन पर उतारने जा रही थी, हो सकता है उसे फिर से यू टर्न लेना पड़े। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री द्वारा हिंडाल्को को कोल ब्लॉक देने में अपनी प्रत्यक्ष भूमिका कबूल करने के बाद मामला बेहद हाई प्रोफाइल हो गया है। ऐसे में सीबीआई के लिए पीछे लौटना या उसी तेवर के साथ जांच में जुटे रहना बेहद मुश्किल हो गया है। सीबीआई सूत्रों ने बताया कि आफन-फानन में जांच प्रक्रिया तुरंत बंद नहीं की जाएगी। एफआईआर उन पर दर्ज की गई है जिन पर गलत तरीके से कोल ब्लॉक हासिल करने के आरोप हैं।


सीबीआई के सीनियर सूत्रों ने बताया कि हम इससे जुड़े लोगों से बातचीत कर रहे हैं। इसके बावजूद जांच को बंद करने का आइडिया भी खुला है। जाहिर है पीएमओ के हिंडाल्कों के पक्ष में जबर्दस्त वकालत से सीबीआई के तेवर नरम पड़े हैं। सीबीआई के सीनियर ऑफिशल का कहना है कि एफआईआर तो जांच की एक प्रथमिक प्रक्रिया है। एजेंसी की तरफ से इस मामले में शुरू की गई कई जांच बंद हो रहे हैं। एक सीनियर सीबीआई ऑफिसर ने इस जांच की व्याख्या करते हुए कहा, 'पीएसयू और हिंडाल्को का जॉइंट वेंचर इस कदर बनाया गया है यह प्राइवेट कंपनी के पक्ष में जाता है। यहां कानून का उल्लंघन भी शामिल हे। हालांकि, हम मंगलम बिड़ला और पी. सी. पारेख मामले में कानूनी सलाह के जरिए जानने की कोशिश करेंगे कि क्या इन दोनों के साथ कोई आपराधिक जैसा मामला है। यदि इनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है तो जांच बंद कर दी जाएगी।


लेकिन, इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय जोरदार तरीके से अपने फैसलों पर कायम है। प्रधानमंत्री पूरी तरह से संतुष्ट हैं कि हिंडाल्को को जिन मेरिट के आधार पर कोल ब्लॉक आवंटित किए गए वे पुख्ता थे, जबकि सीबीआई ने ओडिशा के तालबीरा-2 कोल ब्लॉक आवंटन में नियमों की अनदेखी और स्क्रीनिंग कमिटी के फैसले पलटने को लेकर मंगलम बिड़ला और पारेख को अभियुक्त बनाया है। सीबीआई का मानना है कि हिंडाल्कों को कोल ब्लॉक देने से पब्लिक सेक्टर की कंपनी नेयवेली लिग्नाइट को नुकसान पहुंचा है। स्क्रीनिंग कमिटी ने तालबीरा-2 नेयवेली लिग्नाइट को ही देने की सिफारिश की थी। लेकिन, पीएमओ का कहना है कि हिंडाल्को को देने का फैसला और स्क्रीनिंग कमिटी की सिफारिशें पलटने का मन ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के कहने पर बदला गया।





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शाम हो चली थी. टामाक बज रहा था ... गुड्-गुड् ... गुबुड्-गुबुड् की ध्वनि जंगल में लगातार गूंज रही थी. बड़ पेड़ के नीचे अखड़ा में ठसाठस भीड़ हो चली थी. सभी उचक-उचक कर चरका आयो होड़ को देख रहे थे. उसके बाल बिखरे हुए थे. उनलोगों के नथुनों से बिल्कुल अलग किस्म के नथुने थे उस आयो होड़ के. बिल्कुल पतले. तोते की…
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लालू ने चारा खाया, जेल हो गयी, पर प्रधानमंत्री बहुत ईमानदार हैं!

http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%B8/2013/10/20/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%82-%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%B2-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%97%E0%A4%AF#.UmU-ZHCBkQM

पढ़ें: संत शोभन सरकार की ओर से मोदी को चिट्ठी

आईबीएन-7 | Oct 21, 2013 at 03:49pm | Updated Oct 21, 2013 at 04:07pm


उन्नाव। उन्नाव के डौंडिया खेड़ा गांव के किले में 1000 टन सोने की खुदाई के मुद्दे पर साधु शोभन सरकार की तरफ से गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर नाराजगी का इजहार किया गया है। चिट्ठी में कहा गया है कि आखिर किस आधार पर मोदी ने सपने की बात कहकर शोभन सरकार को निशाना बनाया। चिट्ठी में मोदी को अनर्गल प्रलाप कर समय बर्बाद न करने की नसीहत भी दी गई है। चिट्ठी नीचे दी गई हैः-

आदरणीय नरेंद्र भाई,

विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि केंद्र सरकार और श्रीमती सोनिया गांधी पर हमला करने की हड़बड़ी में आपने संत की मर्यादा का भी उल्लंघन कर दिया है। सत्य संकल्प श्री स्वामी शोभन सरकार जी ने जो सपना देखा, वह इस राष्ट्र को विश्व की सबसे शक्तिशाली आर्थिक शक्ति बनाने का है।

उसी सपने की तामीर के लिए स्वामी जी ने भारत सरकार को अमेरिका और ब्रिटेन दोनों देशों के कुल संयुक्त स्वर्ण भंडार से अधिक स्वर्ण उपलब्ध कराने का संकल्प लिया था, जिसके तहत उन्होंने केंद्र सरकार, राज्य सरकार और जिला प्रशासन को पत्र भेजकर अनुरोध किया कि डौंडिया खेड़ा में एक स्थान की जांच जीएसआई से करा ली जाए और अगर जीएसआई जांच में तथ्य प्रमाणित हों तो खनन कार्य करा लिया जाए। यहां तो केवल 1 हजार टन सोने की बात है, शोभन सरकार जी ने तो राष्ट्र को 21 हजार टन स्वर्ण कोष उपलब्ध कराने का संकल्प लिया है। आप जैसे प्रभावशाली नेता से गुजारिश है कि अनर्गल प्रलाप करके समय न व्यर्थ करें।

आपकी सरकार अटलजी के नेतृत्व में अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी है। तब आपकी सरकार काला धन स्विस बैंक से क्यों नहीं ला पाई? मोदी जी एक सवाल और, आपकी पार्टी आपकी ब्रांडिंग करने के लिए जितना धन प्रतिदिन खर्च कर रही है वो काला है या सफेद? क्या आप बताने की कृपा करेंगे? आप मीडिया की नजरों में देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखे जा रहे हैं। आम जनता और देश का संत समाज कुछ बिंदुओं पर आपका नजरिया जानना चाहता है।

मैं आम जनता और संतों के इन सवालों पर आपको सार्वजनिक बिंदुवार चर्चा के लिए सादर आमंत्रित करता हूं। एक लंगोटी, एक अचला और एक मोबाइल मेरी कुल प्रॉपर्टी है। राजनीति में मेरी कोई रुचि नहीं है। लेकिन देश के आम अदने सड़कछाप नागरिक जो कुल वोटरों का लगभग 50 फीसदी होंगे, के सवालों के जवाब आपसे खुले मंच पर पूछना चाहता हूं।



दिल्ली की एक अदालत ने सीबीआई से 2जी स्पेक्ट्रम मामले के एक आरोपी को उस नोट की प्रति उपलब्ध कराने को कहा है जो नोट मुख्य जांच अधिकारी ने मार्च में आयकर विभाग को भेजा था। यह नोट टाटा तथा यूनिटेक के बीच कथित तौर पर 1,700 करोड़ रुपये के लेनदेन से संबंधित है।


अदालत ने निजी कंपनी के निदेशक राजीव अग्रवाल की अपील स्वीकार कर ली है। अग्रवाल 2जी मामले में आरोपी हैं। अदालत ने जांच एजेंसी को मुख्य जांच अधिकारी (आईओ) द्वारा आयकर विभाग को 12 मार्च को भेजे गए नोट की प्रति देने को कहा है।


अग्रवाल ने गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) की रिपौर्ट भी मांगी है। इसमें 2007 में टाटा तथा यूनिटेक समूह के बीच हुए 1,700 करोड़ रुपये के सौदे पर सवाल उठाया गया है। लेकिन अदालत ने कहा कि अभियुक्त को बचाव के चरण में यह दस्तावेज मांगने की अनुमति होगी।


वकील विजय अग्रवाल के माध्यम से दायर आवेदन में हाल की मीडिया खबरों का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि यह पैसा इसलिए था जिससे यूनिटेक समूह की कंपनियां जनवरी, 2008 में दूरसंचार लाइसेंसों के लिए भुगतान कर सकें। यह सौदा संदिग्ध और भूमि सौदे की तरह का था।


उन्होंने यह भी कहा कि प्रियदर्शी ने यह नोट आयकर विभाग को भेजा था जो टाटा रीयल्टी इन्फ्रास्ट्रक्चर लि. तथा यूनिटेक समूह के बीच हुए सौदे के बारे में था। इसमें कहा गया था कि यह यह सौदा एक प्रकार से वित्तीय सांठगाठ का मामला है। सौदा उस समय हुआ जबकि यूनिटेक ने दूरसंचार लाइसेंसों के लिए आवेदन किया था।

खजाना : देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को अब की पहल

खजाना : देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को अब की पहल

लखनऊ। उन्नाव के डौंडियाखेड़ा खजाने की संभावनाओं के बीच राजा राव रामबक्श के किले में खुदाई भले ही अब हो रही हो लेकिन शोभन दरबार में यह पिछले करीब नौ साल से रुक-रुककर खनकता रहा है। बेहद करीबी अनुयायियों को राजा-महाराजा का खजाना बताकर शोभन सरकार ने कभी उसे खुदवाने की पहल नहीं की।

एएसआइ (आर्कियोलॉजिलकल सर्वे आफ इंडिया)और जीएसआइ (जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया) टीम भले कह रही कि उसने अपने सर्वे के बाद किले में गुरुवार से खुदाई शुरू कराई लेकिन मामला तब खुला जब संत शोभन सरकार ने किले में हजार टन सोना होने का दावा कर उसे खोदवाने की चिट्ठी सरकारों को भेजी। उसके बाद जीएसआई एवं एएसआइ टीमों ने सर्वे कर जमीन के अंदर कुछ न कुछ होने की पुष्टि कर एक तरह से संत सरकार के दावे पर मोहर लगा दी। शोभन सरकार स्पष्ट कर चुके हैं कि उन्हें खजाने का कोई सपना नहीं आया था, बल्कि उन्हें तो काफी पहले से पता है कि किले में खजाना है। शोभन सरकार के एक करीबी के अनुसार पहली बार नौ साल पहले मामला सामने आया था।

आखिर अब क्यों खोदवाने की आवश्यकता के सवाल पर वह कहते हैं कि इस समय देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया जाना जरूरी है। ऐसे में उनके गुरु जी ने उन्हें आदेश दिया कि इसे सरकारी खजाने में जमाकर कर दुनिया का ध्यान खींचा जा सके। जब सरकारी खजाने में अकूत संपदा होगी तो दुनिया के देश बेफिक्री के साथ भारत में निवेश कर करेंगे। उससे रुपये का मूल्य बहुत ऊपर आ सकेगा। फिलहाल खोदाई टीम की खुरपी, गैंती, कुदाल पर दुनिया की नजर लगी है कि खुदाई में क्या निकलता है।

साभारः दैनिक जागरण

चार दिन में डेढ़ मीटर की खुदाई, दिखा पिलर

लखनऊ। उन्नाव के डौंडिया खेड़ा के राजा राव रामबक्श के किले में एक हजार टन सोना होने की खबर के बाद से खुदाई चालू है। चौथे दिन तक डेढ़ मीटर की खुदाई की गई, जिसमें पिलर जैसा हिस्सा दिखा। इसके अलावा खपरैल के साथ टूटी चूड़ियां भी मिली हैं। आज 48 सेमी खुदाई की गई।

जीएसआई व एएसआई टीम ने किले के बाहर मैदान से किले की ऊंचाई व गहराई का अनुमान लगाया। तीसरे दिन तक हुई 102 सेमी के आगे की खुदाई आज सुबह आठ बजे शुरू हुई। करीब साढ़े तीन घंटे की खोदाई के बाद एक पिलरनुमा हिस्सा मिला। खुदाई में करीब एक माह से अधिक का समय लगेगा। ऐसे में कौतूहलवश पहुंचने वाली भीड़ बिल्कुल छंट चुकी है। शाम पांच बजे काम बंद होने पर अब तक कुल डेढ़ मीटर खोदाई हो चुकी है। बैरीकेडिंग के साथ किले की कड़ी चौकसी के चलते कोई आसपास तक नहीं पहुंच पा रहा। पुलिस एवं पीएसी की बटालियन किले के चारो ओर मुस्तैद है।

संत शोभन सरकार आज गंगा किनारे अपने आश्रम बक्सर, पहुंचे और भक्तों से मिले। उन्होंने कहा कि चार दिन की खोदाई में दीवार, खपरैल आदि मिलने लगे हैं। करीब 15 फीट खोदाई होने तक इंतजार करना पड़ेगा। उसके बाद होने वाले चमत्कार से हर किसी को सब जवाब मिल जायेंगे।

'सरकार' के आगे सरकार दंडवत

उन्नाव, । डौंडिया खेड़ा के राजा राव रामबक्स के किले में खजाना की कहानी दो सरकारों के इर्द गिर्द घूम रही है। शोभन सरकार के दावे के बाद सूबे व केंद्र की सरकार की नुमाइंदगी करने वाले अधिकारी पगडंडी से किले तक की धूल फांक रहे हैं। पुलिस का पहरा है। अफसर पल-पल पर नजर रखे हैं। मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के रूप में दर्जा राज्यमंत्री सुनील सिंह यादव भी बता गए कि शोभन सरकार के दावे पर प्रदेश सरकार की भी नजर है।

शोभन सरकार के दावे के साथ क्षेत्र के उनके अनुयायी भी शिद्दत से खड़े हैं। वैसे तो लोग उनके हर आदेश को अध्यादेश की तरह मानते हैं, लेकिन किले में हजार टन खजाना होने का सवाल बड़ा होने के कारण तमाम लोग किंतु परंतु कर रहे हैं, लेकिन दावे को झुठला नहीं पा रहे हैं। सरकार के दावे का असर ही है कि प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि किले की ओर दौड़ पड़े हैं। जिलाधिकारी विजय किरण आनंद एवं एसपी सोनिया सिंह एसडीएम के साथ दोपहर में किला पहुंचे। जीएसआई और एएसआई के वरिष्ठ अधिकारियों संग जिला मुख्यालय में बैठकर खुदाई की रणनीति बनाई। विधायक कुलदीप सिंह सेंगर भी किला पहुंचे और उम्मीद जताई की शोभन सरकार का दावा सच निकले। यह शोभन सरकार का मजबूत दावा ही है कि सरकार के इशारे पर पूरी प्रशासनिक मशीनरी व्यवस्था में जी जान से जुटी है।



It is high time India tackled the 'evil' of the caste system
http://www.thenational.ae/thenationalconversation/comment/it-is-high-time-india-tackled-the-evil-of-the-caste-system
India's caste system is attracting international censure. Earlier this month, the European Parliament recognised caste discrimination as a human rights violation, calling it a "global evil" and urging EU institutions to tackle it.
Though the Indian government has not reacted, the words must have been a knife in the heart.
In the past, India has assiduously resisted anything that it perceives as an attempt by foreigners to embarrass the country over the Hindu caste system.
Last December, the European Parliament passed a similar resolution expressing alarm at the human rights abuses against India's "untouchables" (or dalits) as they are known, not to mention the discrimination against dalits in the Indian diaspora.
In the UK, which has a large Asian community, the government decided that something needed to be done about the persistence of the caste system among British Asians. MPs amended the anti-discrimination Equality Act to include caste discrimination as a way of protecting British dalits.
It is time for India to understand that it cannot act as if the caste discrimination that affects the 165 million dalits in India is a purely domestic problem. If it does not learn this, the Indian government is likely to fall under more pressure to end this horror.
Though outlawed since 1950, the contempt expressed by the upper castes continues to singe dalit minds in a million different ways.
Every day, they are made to feel small. Every day they are degraded by being forced to do filthy work or by social exclusion.
Dalits can still be killed for "polluting" high caste wells by drinking from them.
In many villages, they are still forced to live apart from other villagers. From a very tender age, dalit children internalise feelings of inferiority and self-hatred.
Despite progress in many areas and rising economic wealth, the distinctions of caste continue to predominate in India.
It's true that the politician Mayawati blazed a trail by becoming India's first dalit chief minister of a state. In 1997, K R Narayanan was appointed as India's first dalit president. Some dalits have succeeded as entrepreneurs and in some professions.
But these are exceptions to the rule. Virtually every Indian institution is dominated by the high castes.
India's prickly defensiveness on the caste system was also evident in 2009 when the United Nations Human Rights Council declared that discrimination based on caste was a "human-rights abuse". India fought vehemently to stop the resolution.
This reluctance to accept responsibility and to feel shame over the cruelty of the caste system is a feature not only of India's conduct at international forums but also at home. It is deeply dismaying that, despite the abominations which the caste system has inflicted on dalits for thousands of years, no Hindu leader or organisation has ever thought of apologising for it.
Compare this to equivalent situations elsewhere in the world.
Kevin Rudd, the former Australian prime minister, apologised for the treatment of aborigines five years ago.
A year later, the US Senate formally apologised for the "fundamental injustice, cruelty, brutality, and inhumanity of slavery" of African-Americans. White South Africans were able to do some soul-searching when the Truth and Reconciliation Committee was set up in 1996 to help the wounds caused by apartheid to heal. And in 1998, the Vatican apologised for not speaking out against the holocaust.
But upper-caste Hindus? Not a word to indicate a stirring of the conscience or the feeling of any remorse for dehumanising dalits. It would do dalits good to hear an apology but even more, it would do upper-caste Hindus good to recognise the injustice that they and their ancestors committed.
Instead, they live in denial because the hatred of dalits is so deep and instinctive they are not even aware of it.
Some cheerfully claim that caste has been abolished. Then the papers report how the authorities in Jaisalmer in Rajasthan plan to set up crematoriums for different castes. Or that a dalit bridegroom was thrashed senseless by upper caste thugs for the "temerity" of riding on a horse during his wedding procession, a privilege they deem to be fit only for an upper caste man.
If only India could accept international resolutions against caste and use them as a way of spurring itself to greater action to destroy the caste system. But it just isn't big-hearted enough to do that.
Amrit Dhillon is a freelance journalist based in New Delhi

Amalendu Upadhyaya
देश में पिछले दो दशक में सबसे ज्यादा सामूहिक हत्याएँ और बलात्कार कहाँ हुये – गुजरात में

देश में सबसे ज्यादा कुपोषण कहाँ है – गुजरात में

इसलिये डगमगा गया कानपुर में मोदी का आत्मविश्वास

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Ganesh Tiwari
निर्मल बाबा पुदीने की चटनी चटा रहे हैं, आसाराम आराम से घुट्टी पिला रहे हैं, जीते जी मारनेवालों का दावा है कि मुर्दे जिला रहे हैं. क्योंकि हम खा रहे हैं, पी रहे हैं, सुने-सुनाये पर जी रहे हैं. एक बेचारी बुढ़िया जब डायन बता कर मार दी जाती है, उसकी मौत पर च्च.च्च. करते हैं, पर डायन होने पर डाउट नहीं होता! भूत-प्रेत पर यकीन करते हैं, तो डायन पर क्यों नहीं, है न? चक्रवात कभी ईश्वर का प्रकोप हुआ करता था. अब सेटेलाइट से हम उसके आंख, कांख और इरादे भांप लेते हैं. चक्रवात के दुश्चक्र से लाखों की जान बचा ले गये, पर सुने-सुनाये पर यकीन कर सौ मारे गये. दतिया के रतनगढ़ में एक पुल पर. चक्रवात के मामले में प्रशासन दुरुस्त था, पर बच गये तो ऊपरवाले की असीम कृपा थी. पुल पर प्रशासन सुस्त था, पर मर गये तो दोष नीचेवाले का! जो अच्छा हुआ तो बाबाजी की कृपा, जो बुरा हुआ तो दुनिया बुरी!

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चक्रवात के मामले में प्रशासन दुरुस्त था, पर बच गये तो ऊपरवाले की असीम कृपा थी. रतनगढ़ के पुल पर प्रशासन सुस्त था, पर मर गये तो दोष नीचेवाले का! जो अच्छा हुआ तो बाबाजी की कृपा, जो बुरा हुआ तो दुनिया बुरी!

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The Indian Express

Converted to Buddhism for haircut, shave, says Gujarat villager

http://www.indianexpress.com/news/converted-to-buddhism-for-haircut-shave-says-gujarat-villager/1185035/

At Vishal Hadmatiya village in Bhesan taluka, 21 km from Junagadh, a statue of Dr B R Ambedkar greets visitors. It's been a week since all the 60 families in this Dalit neighbourhood 'converted' to Buddhism at an event in Junagadh. The organisers of the event have claimed that a total of 60,000 Dalits converted to Buddhism.

Dahya Vaghela, 65, a respected elder, says he attended the conversion rally for a 'haircut and shave'. "Local barbers refuse to give me a haircut or shave, saying that he will not get any upper caste customers. So I have to travel all the way to Junagadh. We also have a separate temple," he says. Paintings and photographs of Ambedkar adorn the walls of his house.

While Dalit families in the area get water from the same tank as upper caste Hindus, they are not allowed to enter the local Ram temple.

"My children play with upper caste children. But they have to sit separately while eating their lunch. They ask me why they are not allowed to eat with those children," says Dahya's son, Magan, 35, a farm labourer.

"The main issue is of self-pride. The concept of defilement due to physical contact with a Dalit has waned, but mental untouchability still persists. The contempt that an upper-caste Hindu shows towards a Dalit is humiliating. While the situation will not change overnight, embracing Buddhism is an ideological revolution which will bear fruit in future. Maharashtra is witnessing a change six decades after Ambedkar and others led by him embraced Buddhism," says Ravji Vaghela, Dahya's brother who retired as a head postmaster.

"Our descendants can now simply say they are Buddhists when someone asks them about their caste. They would thus be saved of the humiliation attached with the term Dalit," he adds.

In Saurashtra, it is quite common to ask a stranger his caste.

Dalits living in the northern and eastern parts of Junagadh complain that they often face discrimination. Most of them work as agricultural or construction labourers, They say they have to carry their own utensils for eating food or drinking water.

"Why are Dalits made to eat separately at their workplace? If a Dalit opens a hotel, will people from other community eat there? Will they drink tea at a stall run by a Dalit? Why does a barber refuse to shave a Dalit?" asks Jaydev Bapa, an elderly resident of Vijapur village near Junagadh.

"With Independence, Dalits got equality before law but we have not been accorded social equality. Our community members are labourers, so will they go to work or complain to authorities about the injustice? While dogs and crows are worshiped, members of a particular community are not even being treated as human beings. This is the reason why they community has been forced to embrace Buddhism," he says.

"With religious gurus exhorting people to bring back the old culture and traditions, we are afraid that our woes will not end. Hence, we are embracing Buddhism which preaches equality," he adds.

While the upper-caste elders seem unwilling to change, the younger ones show a broader outlook. "The community will have to develop and create a new environment for themselves. Changing religion is hardly going to change things in the village if such a development does not take place," says an upper-caste farmer.

In Nakhda village, 33 km from Veraval town in Gir Somnath district, the situation is a little different. Dalits are not made to eat separately, and are also allowed to attend upper-caste social gatherings. Govind Chavda, a Dalit who was the first to attain a Masters degree in the village, and Vallabh Nagar, a Brahmin head of the village, were instrumental in bringing about the social acceptability of the community about three years back.

"We are very happy with the harmony in the village. But the term Dalit comes with a tag," says Mulu Jadav, 65, a farmer. He admits that he knows nothing about his new religion, Buddhism. "But we have to change this situation," he adds.

"Till a few years ago, I had to carry my own utensils while working on a farm. But this has changed now. I hope things will keep improving," says his daughter-in-law Geeta, 28.

"Practically, there may not be a sea change in people's behaviour. But I am convinced that the future of our children will be different," says Chavda, the man credited with bringing about "equal" status for his community members in the village.

In Kodinar taluka of Gir Somnath district, which boasts of a large population of educated Dalits, around 200 families are reported to have converted to Buddhism.

"The practice of untouchability no longer exists here, but the mentality lingers. However well-educated or well-off a Dalit may be, he is still at the bottom of the caste hierarchy," says Balude Vaghela, a retired school principal.

But the change in religion is unlikely to have any political consequences. "In this part of the district, a candidate matters more than the party he represents. Dalits don't have the numbers to directly influence an Assembly poll, so they generally tend to go with the majority community. The religious conversion, if any, will not affect their political affiliation," says Jetha Solanki, BJP MLA from Kodinar and a Dalit leader.

Meanwhile, Junagadh District Collector has ordered a probe into the October 13 mass conversion, calling it illegal under the Freedom of Religion Act 2008 which bans conversion without permission from the state. "The organisers had only sought permission for a religious conclave, and had said that there would be no mass conversion. But we have received reports that a mass conversion took place. We shall take appropriate action based on the findings of the probe," says Pandey.

He says the administration only received applications from 11 individuals for changing their religion, adding that the rules for individual conversion and mass conversion are different.  


राजा राव राम बक्स सिंह डौडिया खेड़ा रियासत के 24वें राजा

लखनऊ। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार राजा राव राम बक्स सिंह उन्नाव की डौडिया खेड़ा रियासत के 24वें राजा थे। उन्होंने अपने पूर्वजों से छीने गए कई गावों को मिलाया था उस समय यहा करीब 30 गाव थे। जिसमें 12 समृद्ध थे। बैसवारा के प्रख्यात राजा त्रिलोक चंद्र की छठीं पीढ़ी में राव देवराज (देवराय) संग्रामपुर से शासक हुए कहा जाता है कि इन्हीं के नाम पहले देवरिया खेड़ा बाद में डौडिया खेड़ा विख्यात हुआ। देवराज के चौथी पीढ़ी में राव संग्राम सिंह हुए। चाचा हमीर शाह, मधुकर शाह. आलम शाह किशन शाह ने जीत शाह राजा हुए। उन्नाव गजेटियर की मानें तो यह क्षेत्र हमेशा सबसे ज्यादा लगान देने वाला क्षेत्र रहा है। इसमें एक जगह जिक्र है कि डौडिया खेड़ा रियासत से 200 पाउंड लगान जाती थी।


सांस्कृतिक युद्ध में उतरे असुर


महिषासुर का प्रश्न देश के 85 फीसदी पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की पहचान और अस्मिता से जुड़ा हुआ है. अब दलित और आदिवासी अपनी जड़ों की तरफ लौट रहे हैं. वे अब अपने नायकों को इतिहास में तलाश रहे हैं, क्योंकि इतिहास का बहुजन पाठ अभी बाकी है...

अमरेन्द्र यादव

एआईबीएसएफ की ओर से जेएनयू में लगातार तीसरे साल आयोजित किए गए महिषासुर शहादत दिवस में देशभर से लोग शामिल हुए. समारोह शाम 3 बजे से स्कूल ऑफ सोशल साइंस के ऑडोटोरियम में शुरू होकर देर रात तक चलता रहा. धार्मिक परंपराओं से इतर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट फोरम के बैनर तले छात्रों ने असुर राजा महिषासुर का शहादत दिवस मनाया, जिसमें कई साहित्यकारों, समाज सेवकों व पत्रकारों ने हिस्सा लिया.

जेएनयू में आयोजित हुए महिषासुर शहादत दिवस में पधारे बुद्धिजीवी

कार्यक्रम में पटना से शिरकत करने पहुंचे लेखक प्रेम कुमार मणि ने कहा कि पिछड़े वर्ग के लोग इतिहास और मिथकों में अपना नायक ढूंढ रहे हैं. महिषासुर पशुपालक जातियों के राजा थे. बैल पर सवारी करने वाले शिव की तरह ही महिषासुर अनार्यो के प्रतापी राजा थे. वहीं इंडियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदित राज ने कहा कि धर्म का पूंजीवाद से गठजोड़ समाज को विषाक्त कर रहा है.

वक्ता तुलसी राम ने कहा कि हिंदुत्ववादी ताकतें समय-समय पर अपना खोया हुआ वर्चस्व कायम करने के लिए जोर आजमाइश करती हैं; वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया के मुताबिक पिछड़े वर्गों को सांस्कृतिक वर्चस्व के जरिए अपना गुलाम बनाया जा रहा है. इसमें सबसे बड़ी भूमिका भाषा की है.

कार्यक्रम को संबोधित करने वालों में लखनऊ से आए चंद्रजीत यादव, दलित लेखिका अनिता भारती, साहित्य्कार रमणिका गुप्तास, सोशल ब्रेनवाश पत्रिका की संपादिका पल्लवी यादव, बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यरक्ष वामन मेश्राम, शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश कटियार, साहित्यकार हरिलाल दुसाध, हेमलता माहेश्वर, रजनी दिदोसिया के साथ समाजसेवी सुनिल सरदार आदि प्रमुख थे. कार्यक्रम में अतिथियों ने फारवर्ड प्रेस के संपादक प्रमोद रंजन संपादित 'महिषासुर: एक पुर्नपाठ' नामक पुस्तिका का लोकापर्ण किया गया.

बहरहाल, विरोध और स्वीकार से गुजरते हुए इस वर्ष देश में उतर प्रदेश के उन्नाव, कौशाम्बी, आजमगढ, देवरिया, सितापुर, लखनऊ, बस्ती, डारखंड में गिरीडीह, गोंडा रांची, बिहार में मुजफ्फरपुर, पटना के साथ पश्चिम बंगाल के पुरूलिया के अलावा केरल, बंगलुरू, ओडिसा, चेन्नई, मुम्बई, मैसूर के साथ 60 जगहों पर महिषासुर शहादत दिवस मनाया जाना अप्रत्याशित ही है. दरअसल, महिषासुर का प्रश्न देश के 85 फीसदी पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की पहचान से जुड़ा हुआ है. अब दलित और आदिवासी अपनी जड़ों की तरफ लौट रहे हैं. अपने नायकों को इतिहास में तलाश रहे हैं, क्योंकि इतिहास का बहुजन पाठ अभी बाकी है.

गौरतलब है कि वर्ष 2011 के दशहरा के मौके पर ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम ने 'फारवर्ड प्रेस' में प्रकाशित प्रेमकुमार मणि का लेख 'किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन' के माध्यम से जेएनयू छात्र समुदाय के बीच विमर्श के लिए महिषासुर के सच को सामने लाया गया था. दुर्गा ने जिस महिषासुर की हत्या की, वह पिछड़ा वर्ग का न्यायप्रिय और प्रतापी राजा था. आर्यों ने छलपूर्वक इस महाप्रतापी राजा की हत्या दुर्गा नामक कन्या के हाथों करवाई.

जेएनयू में जारी इस पोस्टर को लेकर संघी, सवर्ण छात्रों ने बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम के छात्रों के साथ मारपीट की. इस प्रकरण में जेएनयू प्रशासन ने ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम के अध्यक्ष जितेंद्र यादव को धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में नोटिस जारी किया. लगभग 1 महीने तक चले इस विवाद में अंततः पिछड़े वर्ग के छात्रों की जीत हुई.

देश के बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और राजनेताओं के दबाव में जेएनयू प्रशासन ने एआईबीएसएफ से लिखित रूप में मांफी मांगते हुए कहा कि जितेंद्र यादव के खिलाफ कोई प्रॉक्टोरियल जांच नहीं चल रही है. इस जीत से उत्साहित पिछड़े वर्ग के छात्रों द्वारा 25 अक्टूबर 2011 को जेएनयू परिसर में पहली बार महिषासुर शहादत दिवस मनाया गया.

गौर करने वाली बात ये भी है कि देश के विभिन्न हिस्सों में कई जातियां महिषासुर को अपना नायक मानती हैं. बंगाल के पुरूलिया जिले में महिषासुर की पूजा होती है और मेला लगता है. वहां के लोग महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं. झारखंड में 'असुर' जनजाति के लोग अपने को महिषासुर का वंशज मानते हैं.

कवयित्री सुषमा असुर ने 'फारवर्ड प्रेस' को दिये अपने एक साक्षात्कार में कहा था. 'देखो मैं महिषासुर की वंशज हूं.' झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भी महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं. शिबू सोरेन ने रावण को अपना पूर्वज बताते हुए पुतला दहन से इनकार कर दिया था. मध्य प्रदेश में रहने वाली कुछ जनजातियां महिषासुर को अपना पूर्वज मानती हैं.

2008 में 'यादव शक्ति' पत्रिका ने दावा किया था कि महिषासुर पशुपालक जातियों के नायक थे. पत्रिका की आवरण कथा ही 'यदुवंश शिरोमणि महिषासुर' थी. जेएनयू से पीएचडी कर रहे एआईबीएसफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र यादव सवाल उठाते हैं कि 'नाजी तानाशाह एडोल्फ हिटलर का इतिहास हजारों बेगुनाह यहूदियों के खून से भरा पड़ा है, फिर भी दुनिया के किसी कोने में हिटलर की मौत का जश्न नहीं मनाया जाता है. फिर महिषासुर की हत्या पर हमारे देश में उत्सव क्यों होता है.'

जेएनयू में महिषासुर की शहादत तीन साल से मनाई जा रही है. महिषासुर की शहादत क्यों मनाते हैं. इस सवाल के जवाब में जितेंद्र कहते हैं 'महिषासुर हमारे पूर्वज थे, लेकिन माइथॉल्जी में उनकी तस्वीर गलत तरीके से पेश की गई है. बंग प्रदेश के राजा महिषासुर दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए नायक थे, लेकिन इतिहास लिखने वालों ने उन्हें खलनायक के तौर पर पेश किया है. हम इस प्रोग्राम के जरिए बहुजनों को उनका असली इतिहास बताने की कोशिश कर रहे हैं.'

'व्हाई आई एम नॉट ए हिंदू', 'बुद्धा चैलेंज टू ब्राह्मनिज्म' और 'बफैलो नेशनलिज्म' जैसी किताबों के लेखक कांचा इलैया को जेएनयू के महिषासुर शहादस दिवस समारोह में बतौर मुख्य वक्ता बुलाया गया था, लेकिन वे स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण शामिल नहीं हो पाए. एआईबीएसएफ को भेजे संदेश में उन्होंने कहा कि महिषासुर, रावण, बलि चंद्रा जैसे लोग राक्षस नहीं थे.

दलित चिंतक और लेखक कांचा इलैया मानते हैं कि इतिहास को एक बार फिर से लिखने की कोशिश है महिषासुर का शहादत दिवस मनाया जाना. उन्होंने कहा कि हम लोगों को यह बताना चाहते हैं हमारे देश में राक्षस जैसा कोई जीव नहीं था. हिंदू ब्राह्मण लेखकों ने अपनी कल्पनाओं से उनको राक्षस के रूप में पेश किया है. क्योंकि वे दलित, पिछड़ों और आदिवासियों के नायक थे.

झारखंड के सिहोडीह स्थित बुद्ध ज्ञान मंदिर में भी अशोक विजयादशमी सह महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन किया गया. अखिल भारतीय प्रबुद्ध यादव संगम के सहयोग से आयोजित इस समारोह में वक्ताओं ने भारत की सभ्यता, संस्कृति पर विस्तार से प्रकाश डाला. इस दौरान दामोदर गोप, निर्मल बौद्ध, रूपलाल दास, श्याम सुंदर वर्मा, शिवशंकर गोप, रीतलाल प्रसाद, गौतम कुमार रवि आदि ने विचार व्यक्त किए; अध्यक्षता विक्रमा मांझी ने की.

हिन्दी-अंग्रेजी की मासिक पत्रिका फॉरवर्ड प्रेस ने महिषासुर के संदर्भ को नयी व्याख्या की थी और इस पर एक वैचारिक बहस की शुरुआत की थी. फॉरवर्ड प्रेस की पहल पर ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टू्डेंट फोरम पटना ईकाई, यादव सेना, दलित संघर्ष समिति, जनजाति विकास संघ, अति-पिछडा समन्वेय संघ के साथ अपना बिहार के तत्वंधान में संयुक्त रूप से आयोजित समारोह की शुरुआत मनुस्मृति की कॉपी जलाकर हुई.

इस मौके पर समाजशास्त्री ईश्वरी प्रसाद, पूर्व मंत्री बसावन भगत, विधायक रामानुज प्रसाद व एसएस भास्कर, प्रो रामाशीष सिंह, बुद्धशरण हंस, डॉ राजीव समेत सैकडों लोग इस समारोह में शामिल हुए. इसका आयोजन पटना के दारोगा प्रसाद राय पथ स्थित दारोगा राय ट्रस्ट के सभागार में किया गया था.

(अमरेन्द्र यादव सामाजिक मुद्दों पर लिखने वाले युवा पत्रकार हैं.)

http://www.janjwar.com/society/1-society/4435-sanskritik-yuddha-men-utre-asur-for-janjwar-by-amrendra-yadav


किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन?

ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टू डेंटस फोरम की पुस्तिका 'महिषासुर : एक पुर्नपाठ' का संपादकीय

इस आन्दोलन को जहां किसी भी प्रकार के धार्मिक कर्मकांड से दूर रखना होगा, वहीं मार्क्सवादी प्रविधियां भी इसमें काम न आएंगी. न सिर्फ सिद्धांत के स्तर पर, बल्कि जमीनी स्तर पर भी इस आंदोलन को कर्मकांडियों और मार्क्सवादियों के लिए समान रूप से, अपने दरवाजे कडाई से बंद करने होंगे...

प्रमोद रंजन

महिषासुर के नाम से शुरू हुआ यह आंदोलन क्या है? इसकी आवश्यकता क्या है? इसके निहितार्थ क्या हैं? यह कुछ सवाल हैं, जो बाहर से हमारी तरफ उछाले जाएंगे. लेकिन इसी कडी में एक बेहद महत्वपूर्ण सवाल होगा, जो हमें खुद से पूछना होगा कि हम इस आंदोलन को किस दृष्टिकोण से देखें? यानी, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम एक मिथकीय नायक पर कहां खडे होकर नजर डाल रहे हैं. एक महान सांस्कृतिक युद्ध में छलांग लगाने से पूर्व हमें अपने लांचिंग पैड की जांच ठीक तरह से कर लेनी चाहिए.

हमारे पास ज्योतिबा फूले, डॉ. आम्बेडकर और रामास्वामी पेरियार की तेजस्वी परंपरा है, जिसने आधुनिक काल में मिथकों के वैज्ञानिक अध्ययन की जमीन तैयार की है. महिषासुर को अपना नायक घोषित करने वाले इस आंदोलन को भी खुद को इसी परंपरा से जोडना होगा.

जाहिर है, किसी भी प्रकार के धार्मिक कर्मकांड से तो इसे दूर रखना ही होगा, साथ ही मार्क्सवादी प्रविधियां भी इस आंदोलन में काम न आएंगी. न सिर्फ सिद्धांत के स्तर पर, बल्कि ठोस, जमीनी स्तर पर भी इस आंदोलन को कर्मकांडियों और मार्क्सवादियों के लिए, समान रूप से, अपने दरवाजे कडाई से बंद करने होंगे. आंदोलन जैसे-जैसे गति पकडता जाएगा, ये दोनों ही चोर दरवाजों से इसमें प्रवेश के लिए उत्सुक होंगे.

सांस्कृतिक गुलामी क्रमश: सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक गुलामी को मजबूत करती है. उत्तर भारत में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक गुलामी के विरूद्ध तो संघर्ष हुआ, लेकिन सांस्कृतिक गुलामी अभी भी लगभग अछूती रही है. जो संघर्ष हुए भी, वे प्रायः धर्म सुधार के लिए हुए अथवा उनका दायरा हिंदू धर्म के इर्द-गिर्द ही रहा. हिंदू धर्म की नाभि पर प्रहार करने वाला आंदोलन कोई न हुआ.

महिषासुर आंदोलन की महत्ता इसी में है कि यह हिन्दू धर्म की जीवन-शक्ति पर चोट करने की क्षमता रखता है. इस आंदोलन के मुख्य रूप से दो दावेदार हैं, एक तो हिंदू धर्म के भीतर का सबसे बडा तबका, जिसे हम आज ओबीसी के नाम से जानते हैं, दूसरा दावेदार हिंदू धर्म से बाहर है - आदिवासी.

अगर यह आंदोलन इसी गति से आगे बढता रहा तो हिंदू धर्म को भीतर और बाहर, दोनों ओर से करारी चोट देगा. इस आंदोलन का एक फलीतार्थ यह भी निकलेगा कि हिंदू धर्म द्वारा दमित अन्य सामाजिक समूह भी धर्मग्रंथों के पाठों का विखंडन आरंभ करेंगे और अपने पाठ निर्मित करेंगे. इन नये पाठों की आवाजें जितनी मुखर होंगी, बहुजनों की सांस्कृतिक गुलामी की जंजीरें उतनी ही तेजी से टूटेंगीं.प्रमोद रंजन फॉरवर्ड प्रेस के मैनेजिंग एडिटर हैं.

तो देश के संविधान और कानून से ऊपर हैं बड़े कॉरपोरेट घराने

आपका नुकसान घोटाला और भ्रष्टाचार

अविनाश कुमार चंचल

अविनाश कुमार चंचल, लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

आज तीसरे दिन भी प्रमुख अखबारों के पहले पन्ने पर कुमार मंगलम बिरला और सीबीआई की तरफ से कोयला आवंटन घोटाला में उनपर नामजद एफआईआर की खबर जगह बनाए हुये हैं। हर रोज एक नयी खबर सनसनी बनकर पाठकों के दरवाजे पर फेंके जा रहे हैं। जनता के कई बड़े हुक्मरानों के नाम भी हर रोज इस मामले में सामने आ रहे हैं। कभी सिफारिशी चिट्ठी को लेकर नवीन पटनायक सामने आ जाते हैं तो कभी खुद वजीरे-आलम मनमोहन सिंह कटघरे में खड़े दिखते हैं।

इन अखबारी सुर्खियों के साथ-साथ हमारे देश का शहरी मध्यवर्ग भी उफान मार रहा है। क्या फेसबुक और क्या ट्विटर। हर जगह  कोयला घोटाले को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है। पूरा शहरी मध्यवर्ग कोलगेट जैसे भ्रष्टचार को लेकर गुस्से में है।

तुम्हारा भ्रष्टाचार और हमारा डेवलपमेंट

लेकिन बात इतनी सीधी भी नहीं है। इस पूरे घोटाले से जो तबका सबसे अधिक प्रभावित होगा उसको बहस से दूर कर दिया गया है। इसी कोयले खदानों के आवंटन से लाखों गरीब-आदिवासी परिवारों के घर उजड़ने वाले हैं, इसी कोयले खदानों से उन आदिवासी और जंगलों पर अपनी जीविका के लिये निर्भर लोगों की रोजी-रोटी छीनी जानी है,  इसी कोयले खदान के आवंटन से गांवों और जंगलों में रहने वाला सिंगरौली का वो आदिवासी उजराज खैरवार फैक्ट्रियों में मजदूर हो जायेगा (अगर काम मिला तो) या फिर भीख माँगने को मजबूर होगा।

लेकिन दिक्कत यह है कि भ्रष्टाचार को लेकर जारी मध्यवर्गीय चिन्ताओं में खैरवार जैसे लोगों को शामिल ही नहीं किया गया है जो सबसे ज्यादा कोयले खदानों से या फिर इस कथित भ्रष्टाचार से प्रभावित हुये और होने वाले हैं

मध्यवर्गीय चिन्ताओं-बहसों में बड़े आसानी से इसे विकास का नाम दे दिया जाता है और इससे भी ज्यादा क्रूर शब्द की बात करें तो कई लोग आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन सेविस्थापन को विकास के लिये जायज ठहराते हुये कोलैटेरल डैमेज जैसे जुमले भी उछाल दिया करते हैं।

बात बहुत सीधी सी है- आपका नुकसान घोटाला और भ्रष्टाचार लेकिन दूसरी तरफ उन आदिवासियों का विस्थापन विकास के लिये जरूरी कोलैटेरल डैमेज।

असल मुद्दा घोटाला नहीं आवंटन ही है

चलो मान लेते हैं कि कोयले खदानों का आवंटन बड़े ही निष्पक्ष तरीके से किया जाता है। सरकार को जितने पैसे मिलने चाहिए उतना पैसा भी मिल जाता है लेकिन क्या इन सबसे आदिवासियों के साथ किये जा रहे भ्रष्टाचार को जस्टिफाई किया जा सकता है? क्या निष्पक्ष ढंग से किये गये कोयला खदानों के आवंटन को जंगलों पर निर्भर रहने वाले लोगों के लिये न्याय माना जा सकता है? क्या मध्यवर्गीय चिन्ता से ओत-प्रोत मीडिया कभी इन विस्थापितों की चिन्ताओं को पहले पन्ने की सुर्खियाँ बनाता? या फिर क्या मध्यवर्ग कभी इन विस्थापनों को विकास की जगह भ्रष्टाचार मानेगा?  इन सबका जबाव न में ही है।

शर्मनाक बयान केन्द्रीय मंत्रियों के

सीबीआई की तरफ से कुमार मंगलम बिरला पर की गयी एफआईआर को लेकर जिस तरीके से देश और जनता के हुक्मरान हल्ला मचा रहे हैं वो अपने आप में शर्मनाक है। केन्द्रीय मंत्री आनंद शर्मा सीबीआई की आलोचना सिर्फ इसलिये कर रहे हैं कि बिरला देश के बड़े उद्योगपति हैं और उन पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं होना चाहिए। सिर्फ आनंद शर्मा ही नहींसचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा और मनीष तिवारी जैसे कद्दावर केन्द्रीय नेता भी देश की अर्थव्यवस्था के बहाने सीधा-सीधा संदेश दे रहे हैं कि बड़े कॉरपोरेट घराने देश के संविधान और कानून से ऊपर हैं।

आदिवासी विकास के लिये एक बाधा

अपने जंगल-जमीन बचाने के लिये संघर्ष कर रहे आदिवासियों पर टिप्पणी करते हुये कई बार शहरी मध्यवर्ग को कहते सुनता हूं कि ये लोग देश की अर्थव्यवस्था में बाधा ही हैं। इसी तरह अगर इन संघर्षों में कुछ हिंसा हो जाय तो यही लोग अहिंसा के गीत गाने शुरू कर देते हैं। शायद उस समय कोलैटेरल डैमेट की इनकी थ्योरी गायब हो जाती है।

अगर अब भी सरकार, शहरी मध्यवर्ग, मीडिया उजराज खैरवार जैसे आदिवासियों को न्याय नहीं दे पाएगा, उनके साथ हो रहे भ्रष्टाचार को विकास का नाम देता रहेगा तो फिर इस कॉरपोरेट केन्द्रित व्यवस्था में कोलगेट जैसे घोटाले होते रहेंगे।

देश के विकास के लिए चमत्कारों का भंडाफोड़ जरुरी


विद्या भूषण रावत


उन्नाव जिले का डोंदिया खेड़ा गाँव पिछले एक हफ्ते में देश भर में प्रसिद्द हो गया. बंगाली बाबा शोभन सरकार ने सपना देखा और भारत सरकार में उनके परम शिष्य चरण दास महंत ने देश की प्रतिष्ठित संस्था पुरातत्व विभाग को जांच पर लगा दिया। बाबा ने एक हज़ार टन सोने के सपना देखा और सोचा के देश के आर्थिक हालात बहुत ख़राब हैं इसलिए वोह यह नेक काम कर रहे हैं ताकि देश के खजाने में पैसा आये और उसके हालात सुधरे . वैसे बाबा तो मीडिया की चकाचौंध से दूर रहे लेकिन उनके 'हनुमान' ओमी बाबा बहुत 'पहुंचे' हुए नज़र आ रहे है और उनके अन्दर 'गज़ब' का आत्मविशवास झलक रहा था. जब भी मीडिया से मुखातिब होते ओमी बाबा अपनी चौधराहट झाड़ते और बताते के कैसे दिवाली के बाद रुपैया डॉलर और यूरो और यहाँ तक के पौंड से भी उपर आ जायेगा। मतलब साफ़ था, बाबा को पता था के रुपैये के एक्सचेंज वैल्यू क्या है और वोह इस बात से अच्छी तरह से परिचित थे. उन्होंने आगे कह दिया के अभी तो यह शुरूआत है आगे और भी सोना है जो कानपूर और फतेहपुर में भी छुपा पड़ा है. फतेहपुर में तो कुछ लोग स्वयं ही खुदाई करने चले गए. मैं तो यह भी सोच रहा हूँ के यदि उत्तर प्रदेश के धरती पर इतना सोना गदा हुआ है तो नेता लोगो अब संसद और विधान सभाओं के चुनाव लड़ने के बजाय हर एक किले और खंडहर के अन्दर खुदाई कर रहे होंगे। वैसे भी लोगो में सब्र नहीं है वे सोना देखना चाहते हैं और अगर जल्दी कुछ नहीं निकला तो दो चार लोग पिट जाएँ तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि माहौल ही ऐसे बना दिया गया है .


प्रश्न यह है के क्या सोना निकलेगा और क्या नहीं ? यह प्रश्न अक्सर मुझे टीवी पर पैनल वार्तालाप में पुछा गया. जब प्रस्तुतकरता और पत्रकार बड़े बड़े रामनामी दुपट्टा ओढे इन बाबाओ से हाथ दिखाते फिरते हैं तो उनसे आप बहुत तार्किक होने की उम्मीद तो न कीजिये। इसलिए के पुरातत्व विभाग देश में सोने की खुदाई के लिए नहीं अपितु देश के ऐतिहासिक धरोहरों को जानने और उनको बचने के लिए बना है इसलिए अगर सोना मिल गया तो भी वोह पुरातत्व विभाग की सम्पति हो जाएगा और नेशनल म्यूजियम में रखा जाएगा लेकिन नहीं मिला तो क्या होगा ?

क्या लोग बाबाओं पर विश्वास करना छोड़ देंगे ? ऐसा होना वाला नहीं है क्योंकि लोगो को तो लुटने और पिटने की आदत पड़ चुकी है और वोह तो किस्मत, समय काल पर ही दोष मढेंगे न की बाबा के सपने पर.


बाबा के सपने का विश्लेषण करने के लिए हिंदुत्व के बड़े बड़े मठाधिसो से मेरा पाला पड़ा. किसी ने कहाँ के सुबह का सपना सच होता है तो कोई विश्लेषण करते वक़्त पूरी वैदिक संस्कृति और उसके गुणगान करने लगे. बहुत से राजनैतिक खेल को समझ चुके थे और यह जानते थे के कुछ निकलेगा नहीं और हिंदुत्व और उसके धर्म की फजीहत हो जाएगी अतः अगले दिन से ही उन्होंने रंग बदलने शुरू कर दिए. कहा शुभ मुहूर्त नहीं क्योकि खुदाई ग्रहण के दिन हो रही है इसलिए सम्भावना नहीं लगती, कुछ ने कहाँ के सपने को दुसरो से साझा करने से वो विकृत हो जाते हैं और एक महान हस्ती ने यह तक कहा के क्योंकि बाबा के हिसाब से काम नहीं हो रहा है इसलिए सोना अपनी जगह बदल देगा और इन बातो को वैज्ञानिक दृष्टिकोण में ढलने के जिम्मेवारी संघ समर्थक 'स्वप्न' विशेषज्ञों को सौंपी गयी. सभी ने पूरी मुस्तैदी से बात रखी और साधू के महानता और सामाजिक कार्यों के कसीदे पढ़े. जब मैंने कहाँ के मोदीजी कह रहे हैं के देश का मजाक उड़ रहा है तो मेरे पैनल के एक विशेषज्ञ मोदी के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की तरह बात करने लगे.


सवाल इस बात का है के क्या सरकार हमारे सपनो पर ऐसे बड़े निर्णय ले सकती है और यदि पुरातत्व विभाग का निर्णय पहले से लिया गया है तो क्या उसमे बाबा के सपने को जोड़ना जरुरी था , क्या केंद्रीय मंत्री अपनी मर्ज़ी से कुछ भी कर सकते हैं . लेकिन यहाँ पर हमको भारत के अन्दर पैदा हो रही साम्प्रदायिक राजनीती को समझना होगा जिसमे मोदी अपने को सेक्युलर दखाने का प्रयास कर रहे हैं और कांग्रेस जे जान से ब्राहमणों का आशीर्वाद लेने को आतुर है लेकिन वोह अभी तक मिल नहीं रहा और इन दोनों खेलो में तर्क और मानवता पिट रहा है. अगर सरकार काम नहीं करती तो हिंदुत्व के योद्धा तैयार खड़े थे यह कहने के लिए के हमारी भावनाओं का आदर नहीं होता। इसलिए इस कार्य को सीधे सीधे हम ब्राह्मण तुष्टिकरण की नीति सकते हैं जो कांग्रेस को अभी भी आशीर्वाद देने को तैयार नहीं है.


भारत के संविधान में अनुच्छेद ५१ में साफ लिखा है हम भारत को एक मानववादी नागरिक समाज बनायेगे जहाँ लोगो में तर्क शक्ति का विकास हो और वो वैज्ञानिक चिंतन में यकीं करें न की अन्धविश्वास की गलियों में भटक जाएँ। यह घटना और इसको मीडिया की प्रमुखता यह दर्शाती है के अंधविश्वास को देश के महान संस्कृति बताकर हम ब्राह्मणवादी एकाधिकारवाद को और मज़बूत कर रहे हैं. मीडिया ने इसमें भूमिका निभाई और इसलिए संस्कृति के नाम पर जितने भी बडबोले टीवी चैनलों पर दिखाई दिए वे सभी ब्राह्मण थे. क्या ऐसी स्थितयों में हम संविधान और उसके को बढा सकते हैं.


सोना अगर नहीं मिला तो शोभन सरकार का कुछ नहीं बिगड़ने क्योंकि हमारे देश के लोग बाकी सब बातो में तो सवाल कर लेते हैं लेकिन भाग्य और भगवान को कभी प्रश्न नहीं करते इसलिए सबसे बड़ा खतरा तो पुरातत्व विभाग के लोगो पर है क्योंकि हिंदुत्व के इन कुटिल लोगो के खेल समझने पड़ेंगे और जब इनकी पोल पूरी तरह से खुल जाएगी तो यह वोही बात दोहराएंगे जो इनके ज्ञानवान संत कह रहे हैं. काल, समय, गृह, लगन, दोष आदि के खेल में जनता को उलझाकर यह सारी असफलता का ठीकरा पुरातत्व विभाग के उपर फोड़ देंगे।


इस सारे खेल में जो सबसे अधिक सोचनीय विषय है वो है मीडिया द्वारा इसको इतना बड़ा बनाने का. ऐसे सवालो पर तो मीडिया को वैज्ञानिक चिंतन देना चाहिए लेकिन हमारा मीडिया उस मामले में पूर्णतया जातिवादी है और ब्राह्मणवादी शक्तियों को खुल्करके समर्थन कर रहा है और उसमे बैठे ज्यादातर लोग तंत्र मंत्र के पुरे ढकोसले में फंसे पड़े हैं. मैं तो सिर्फ एक प्रश्न पूछता हूँ के क्या एक राष्ट्र इसलिए महान होता के उसके पास लाखों टन सोना है या उसकी सभ्यता उसे महान बनाती है. क्यां इतना सोना मिलने के बाद हम काम करना बंद कर देंगे ? क्या हमें तब विज्ञान और उसकी आवश्यकता नहीं होगी ? क्या हमारे किसानो को कुछ करने की जरुरत नहीं है .


दूसरी बात और भी महत्वपूर्ण है. हम लोग हमेशा उस चीज की तलाश करते है जो हमारे पास नहीं है और जो है उसको प्राप्त करने के प्रयास भी नहीं करते। हमारे सारे पाखंडी बाबा चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे के शोभन सरकार तो देश के विकास के लिए १०००टन सोना देश को देना चाहते हैं, वो कोई अपने लिए थोडा सोना मांग रहे हैं . मेरी केवल एक ही विनती है, कृपया भारत के विभिन्न मंदिरों में रखे २००० टन सोने को वो सरकार को सौंपे जिसकी कीमत ८४ बिल्लियन डॉलर आंकी गयी है और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने इन मंदिरों को एक पत्र भी भेज था जिसमे उन्हें मंदिरों में रखे गए सोने की जानकारी देने को कहा गया है लेकिन मंदिरों और उसके शक्तिशाली ट्रस्टियों ने सरकार को यह जानकारी देने से मना कर दिया है क्या यह देश के साथ धोखा और गद्दारी नहीं है ? क्या इस देश के मंदिर या मस्जिद या कोई अन्य धर्म स्थल देश के कानून से बड़े हैं ? क्या भारत में मंदिरों और इनके मठाधिशो की सल्तनत चलती रहेगी या देश का कानून भी काम करेगा ? हम सरकार से मांग करते हैं के सभी धर्मस्थलो के पैसे पर पूरा टैक्स लगाए और उनके अन्दर रखी सम्पति का ब्यौरा मांगे।अगर यह दो हज़ार टन सोना हमारे रिज़र्व बैंक में आ जाए तो देश के सकती है और सरकार को हर जगह पुरातत्व विभाग को खड्डे खुदवा कर सोना ढूंढ़वाने के नाम पर अपनी फजीहत नहीं करवानी पडती


भारत को एक महान और विकसित राष्ट्र हम केवल वैज्ञानिक, तर्कवादी और मानववादी चिंतन से बना सकते हैं . उस परम्परा से यह देश महान बनेगा जो बुद्ध ने शुरू की और जिस बार आंबेडकर, फुले, पेरियार और भगत सिंह चले. तर्क और मानववाद की परम्परा। इस देश को कर्मशील बनाना होगा ताकि लोग भुत, प्रेत, चमत्कार को दूर से प्रणाम कर अपने रस्ते पर चलते रहे हैं . याद रहे के चमत्कारों के जरिये ही अब धर्म और उनके धुरंधर अपनी दूकान चला रहे हैं इसलिए चमत्कारों के भंडाफोड़ की आज ज्यादा जरुरत है. आइये आज से ही इस नेक काम को अपने घर से शुरू कर दे ताकि धर्म की इस अंधी कमाई को ख़त्म किया जा सके.


लखनऊ। प्रदेश के उन्नाव की बीघापुर तहसील के डौंडिया खेड़ा में एक हजार टन सोने का खजाना, तो फतेहपुर के आदमपुर में ढाई हजार टन सोने का खजाना। एक ही संत शोभन सरकार ने इन दोनों जगहों पर यह खजाना होने का दावा किया है। क्या इन दोनों स्थानों का आपस में कोई रिश्ता है। खजाने की संभावनाओं को लेकर करीब एक जैसी समानताएं हैं। ऐसे ढेरों सवाल हैं, जो खजाने के तिलिस्म को गहरा करते हैं।

कहने को तो किवदंतियां बहुत हैं,लेकिन इन दोनों स्थानों का इतिहास व भौगोलिक स्थिति में समानताएं इनके रिश्ते को बखूबी जोड़ती हैं। डौंडियाखेड़ा में जिन राजा राव रामबक्स सिंह का खजाना बताया जाता है, उनका आदमपुर भी आना-जाना था। वह ऋषियों की इस तपोस्थली पर आर्शीवाद लेने के लिए आते थे। गंगा किनारे का यह रमणीक स्थल दो सौ वषरें से वीरान पड़ा है। खजाने की चर्चा के बाद आदमपुर के खंडहर बने किले व मंदिर फिर से गुलजार हो गए हैं। कुछ यही नजारा गंगा से करीब डौंडियाखेड़ा का भी है, जहां वीरान पड़ा राव किले का खंडहर है और मंदिर भी।

फांसी के लिए राजा रामबक्स के खिलाफ अभियोग में प्रस्तुत साक्ष्यों के तथ्य यह भी बताते हैं कि कानपुर में राजा राव साहब की एक कोठी व सोने-चांदी की विशाल दुकान थी। राजा ने अधिकांश सामान नाव द्वारा जलमार्ग से मंगवा कर डौंडियाखेड़ा में रख लिया था। अब कयास यह भी लग रहे हैं कि कहीं गंगा के इसी जलमार्ग से सोना फतेहपुर के आदमपुर भी तो नहीं गया था।

मनीषियों की तपोभूमि : उन्नाव जिला मुख्यालय से 65 किमी दूर बीघापुर क्षेत्र में गंगा तट पर बसा बक्सर (डौंडिया खेड़ा) अपने शासक राजा राव राम बक्स सिंह की क्रांति और कुर्बानी के लिए ही नहीं, आध्यात्मिक ऊंचाइयों के लिए भी इतिहास में दर्ज है। जमींदोज हो चुका राव किला परिसर कभी तपस्वियों की कर्मभूमि भी रहा है। कई मनीषियों ने अपने तप बल से जमीन को पवित्र किया है। यह स्थान पौराणिक और ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज है। गंगा तट पर स्थित चंडिका देवी पीठ का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण व देवी भागवत में मिलता है। यहां मेघा ऋषि का आश्रम था। राजा सुरथ, समाधि वैश्य ने यहीं दुर्गा शप्तसती की रचना की। विश्वामित्र ने गायत्री मां से साक्षात्कार किया। महाभारत काल में वक्र ऋषि ने तपस्या की। बलराम, अश्वस्थामा और द्रोणाचार्य का भी यहां आने का उल्लेख है। स्वामी सत्संगानंद, आनंद बोध महाराज बौद्ध कर्म अनुयायी साधाराम, चीनी यात्री फाह्यंान व ह्वेनसांग के भी यहां आने व साधना करने का उल्लेख ग्रंथों में दर्ज है। ह्वेनसांग ने इसे शिव की नगरी के रूप में जिक्र किया है।

इसी डौंडियाखेड़ा के मजरे दुबेन की गढ़ी में एक ऐसे महापुरुष ने जन्म लिया जो संत बर्फानी दादा के रूप में विख्यात हैं। 1792 में जन्मे यह संत 221 वर्ष की उम्र में पहुंच चुके हैं। इनका मुख्य आश्रम अमर कंटक छत्तीसगढ़ है। कहा जाता है कि राजा राव राम बक्स को फांसी के समय जिस तपस्वी ने उन्हें शालिग्राम की बटिया दी थी, वह बर्फानी दादा ही थे। तब उनकी उम्र 36 वर्ष थी। यह बटिया मुख में रखने से राजा की फांसी दो बार असफल रही थी।

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दरियाव सिंह ने छिपाया था आदमपुर में खजाना!

लखनऊ। फतेहपुर के आदमपुर के गंगा तट में गड़ा धन 1857 की गदर के अग्रदूत रहे ठाकुर दरियाव सिंह ने अंग्रेजों को परास्त कर लूटा था। 32 दिनों तक जनपद में स्वतंत्र सत्ता बनाने वाले दरियाव सिंह आदमपुर होकर ही बाबा गयादीन दुबे के साथ खजूर गंाव (रायबरेली) गए थे। यह अकूत संपदा फतेहपुर के राजकोष का है। यह बात उस समय उठी है जब आदमपुर के गड़े धन को रीवा नरेश का बताया गया।

दावा करने वाले समिति के मंत्री राम प्रताप सिंह ने कहा कि यदि इतिहास खंगाला जाय तो स्वत: इस बात की पुष्टि हो जाएगी। 8 जून सन 1857 को दरियाव सिंह और उनके पुत्र सुजान सिंह, निर्मल सिंह आदि ने खागा मे अंग्रेजों से मुकाबला कर खजाना लूटा था। उसके बाद बाबा गयादीन दुबे एवं दरियाव के पुत्र सुजान आदि उक्त खजाने को लेकर खजूर गंाव जा रहे थे तब अंग्रेजों ने इन्हे चारो ओर से घेर था। खजाने को बचाने के लिए उसे आदमपुर गांव में गंगा किनारे एक जंगल में गाड़ दिया गया था। इसके बाद वे अंग्रेजों के चंगुल में फंस गए थे। राम प्रताप सिंह इसका प्रमाण देते हुए बताते हैं कि आदमपुर गांव में गड़े खजाने के ऊपर जिस ईट का प्रयोग हुआ है, वह नौतेरही ईट है जबकि रीवा नरेश निर्माण में पत्थर का प्रयोग करते थे।

तपोस्थली रही ब्रह्माशिला : फतेहपुर आदमपुर अनादिकला में ब्रह्माशिला के नाम से जाना जाता था, जो ऋषियों की तपोस्थली था। राजा रीवां हो या राजा राव रामबक्स सिंह, तमाम राजा यहां ऋषियों का आशीर्वाद लेने आते थे।

अग्निपुराण में उल्लेख है कि सृष्टि को कालजयी बनाने के लिए ब्रह्माजी ने यहा इक्यावन वेदियों का यज्ञ किया था। तब से भागीरथी तट का यह स्थान ऋषियों के लिए आस्था का केंद्र बन गया। पहले कभी गंगा तट के पास ही ब्रह्मानगरी बस्ती थी, जो धीरे-धीरे नष्ट हो गई। ईंट-कंकड़ व पत्थर आज भी इसकी अतीत की गवाही दे रहे हैं।

इतिहास बताता है कि पाच सौ वर्ष पहले रीवा के राजा रघुराज सिंह ने अपने आध्यात्मिक गुरु प्रियादास जी महराज के कहने पर गंगा तट पर आदमपुर में किले का निर्माण कराया था, जहां गुरु से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते थे। किले से सौ मीटर की दूरी पर रामानुज संप्रदाय के संतों का मठ बना हुआ है। पाच सौ वषरें से इसमें इसी संप्रदाय के संत रहते चले आ रहे हैं। सबसे पहले रामानुज संप्रदाय के मुकुंदाचार्य और इस समय 96 वर्षीय रामानुजदास मठ की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। संतों की मानें तो ब्रह्माशिला में तमाम महात्मा ठहरकर तपस्या करते थे। इसी में से दंडी स्वामी एक थे। जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हीं की कृपा से यहा खजाना आया है।



SWASTHYA ADHIKAR MANCH

6, Bijasan Road, Opposite Mahavir Bagh, , INDORE, Madhya Pradesh

email-amulyabhai@gmail.com. Ph No.09425311547/ 0993278855

"No Clinical Trials of 157 NCEs till further order & 5 NCEs after proper mechanisms put in place" - Supreme Court

October 21st, New Delhi : 8th hearing of the writ petition filed by Swasthya Adhikar Manch took place today before the bench of the Supreme Court consisting of Justice R.M Lodha and Justice S.K. Singh. The case was filed in February, 2012 and the last hearing was held on 30th September, 2013.

The Hon'ble Supreme Court raised serious concerns over 162 clinical trials of Global Clinical Trial (GCT) including New Chemical Entities (NCEs) / New Molecule Entities (NMEs) out of which 157 were approved before 31st December 2012 and 5 between January to August 2013. In the Court it was admitted by Ministry of Health & Family Welfare (MOHFW) and representative of Drug controller General of India (DCGI) that 157 clinical trials were approved by DCGI on recommendations of New Drug Advisory Committee (NDAC) and without the approval of Apex and Technical Committee formed after order of Court dated 3rd January 2013. The Hon'ble Supreme Court have ordered GoI to reexamine 157 GCT including NCEs by Apex and Technical Committees. Therefore, now Apex and technical committee will have to evaluate these 157 clinical trials particularly in terms of - assessment of risk vs. benefits for patients, innovations to existing therapeutic options and benefits to medical needs of the country. It is only after the assessment of apex and technical committee that the question of commencement of 157 approval will be considered. In case of remaining 5 clinical trials which have been approved in 2013, the Hon'ble Supreme Court ordered MOHFW to conduct it only after ensuring proper mechanism & procedure to ensure safety of the patients along with audio-visual recording of participants maintaining principle of confidentially and preservation of documentation. The Hon'ble Supreme Court also raised its concern that there is no checks and balance in the frame work where investigators are paid by sponsors and ethics committees are part of hospital with absence of proper mechanism to ensure patients safety.

Mr. Sanjay Parikh Senior Counsel for Swasthya Adhikar Manch argued and highlighted the facts in relation to NCEs/NMEs and asked the government to come out with a position paper on how these NCEs/NMEs will be in public and national interest. The Hon'ble Supreme Court also then inquired that out of 162 trials, how many molecules are patented outside country and benefiting MNCs instead of development of new drug for which learned Additional Solicitor General was unable to respond. Mr. Parikh also pointed out contradictions in data given in affidavit filed by MOHFW dated 26th July 2013 wherein it was stated that only 26 GCT were approved while in current affidavit of 18th October 2013, it is stated that only 5 trials are approved after 3rd January 2013 by the apex and the technical committee.

The petitioner asked the MOHFW to provide details of 162 approved clinical trials- Name of molecule, indication, name of sponsor, protocol, sites, number of subjects, name of investigators and minutes of NDAC, apex and technical committee meetings. The petitioner also raised serious concerns about Ranjit Roy Chaudhry Expert Committee report on issues like conflict of interest etc. The Ranjit Roy Committee also was not able to explain benefits to India by allowing NCEs/NMEs testing within the country.

The petitioners have been raising the issue of how NCEs/NMEs are benefiting MNCs at the cost of human life in India. The next hearing is scheduled on 16th December 2013.

Amulya Nidhi (9425311547), Chinmay Mishra (9893278855) - SAM

N.D. Jayaprakash (9968014630) (jaypdsf@gmail.com) - BGPSSS, Abdul Jabbar  (9406511720) - BGPMUS

for details write to : amulyabhai@gmail.com | Visit - www.unethicalclinicaltrial.org



Memorandum

दिनांक - 21 अक्तूबर 2013


सेवा में,


मुख्य मंत्री,

श्री नितिश कुमार,

बिहार सरकार

पटना, बिहार

द्वारा जिलाधिकारी जिला कैमूर


अपने स्थानीय संगठन कैमूर मुक्ति मोर्चा के तहत वनाधिकार सम्मेलन के उपलक्ष्य में हमारे सम्मेलन द्वारा निम्नलिखित मांगों को पारित किया गया जिसके उपर विशेष ध्यान देकर समाधान करने की कोशिश करें -


1. जिला कैमूर के अधौरा प्रखंड़ एवं जिला सासाराम के रोहताश प्रखंड़ में वनाधिकार कानून 2006 तथा संशोधित नियमावली 2012 को जल्द से जल्द लागू किया जाए।

2. वनाधिकार कानून के तहत ग्राम स्तरीय वनाधिकार कमेटीयों के गठन की अधूरी पड़ी प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा कर व्यक्तिगत एवं सामुदायिक दावों को दायर करने की प्रक्रिया आरम्भ की जाए। इन समितियों के प्रशिक्षण को समय समय पर आयोजित कर वनाश्रित समुदाय को वनों के संवर्धन, संरक्षण एवं सुरक्षा के लिए मुस्तैद किया जाए।

3. कैमूर जिला का अधौरा प्रखंड़ एवं सासाराम का रोहताश प्रखंड़ विकास की दृष्टि से अभी भी काफी पिछड़ा हुआ इलाका है जहां पर सम्पर्क मार्गो, शिक्षा, स्वास्थ, पीने के पानी, सम्पर्क साधनों, मोबाईल टावर आदि की सुविधा न के बराबर है। इन इलाकों के लिए कई सौ करोड़ रूपये का आंवटन भी हो रहा है लेकिन आदिवासी एवं अन्य ग़रीब वर्ग बेहद ही परेशान है। आगामी आम चुनाव के मददेनज़र इस सम्मेलन से घोषणा की गई है कि वोट तभी मिलेगा जब इस इलाके का विकास होगा। पहले दो और फिर लो वाली नीति के तहत संगठन समस्त पार्टीयों के प्रतिनिधियों से जवाबदेहीता मागेगा।

4. यह दोनों प्रखंड़ आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं जिन्हें अलग अलग जिलों में बांट कर आदिवासी क्षेत्र के विकास की प्रक्रिया और भी जटिल बना दिया गया है। इन दोनों प्रखंड़ों का पुनः प्रशासनिक पुर्नगठन कर इन सातों प्रखंड़ को एक में ही सम्मिलित किया जाए।

5. कैमूर के अधौरा व रोहताश प्रखंड़ को पंचायत कानून की पांचवी अनुसूचि में शामिल कर नियमावली बना कर इस क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया जाए।

6. वनाधिकार कानून 2006 व संशोधित नियमावली 2012 के तहत वनक्षेत्र में लघुवनोपज की सहकारी समितियों का गठन कर लघुवनोपज को एकत्रित करने व बेचने के अधिकार समुदाय को सौंपे जाए। सहकारी समितियों के गठन से वनोपज पर माफिया, ठेकेदारों व वननिगम के एकाधिकार को समाप्त किया जा सकेगा व इन संसाधनों की लूट को भी रोका जा सकेगा जो कि अवैध रूप से इन इलाकों में ज़ारी है। वनोपज पर अधिकार मिलने से आदिवासीयों एवं अन्य परम्परागत समुदाय के जीविका का स्रोत अर्जित होगा व उनका विकास होगा। इन लघुवनोपज में तेंदु पत्ता, आवंला, हर्रा, जलौनी लकड़ी, चिरौंजी, शहद आदि लगभग 125 जड़ी बूटीयां शामिल हैं।

7. विदित हो कि आज भी वनों के अंदर वनविभाग की दादागिरी चल रही है व कहीं सेंचुरी का कानून दिखा कहीं आरक्षित वन का प्रावधान दिखा कर क्षेत्र के बुनियादी विकास को बाधित करने में लगा हुआ है। ऐसे कई सम्पर्क मार्ग इस विभाग की असंवैधानिक रोक से अधूरे पड़े हैं जिसके कारण आम जनजीवन बेहद ही प्रभावित हो रहा है। उ0प्र0 बिहार सम्पर्क मार्ग में वनविभाग द्वारा अनावश्यक आपत्ति लगाई गई है जबकि वनाधिकार कानून की धारा 3 उपधारा 2 के तहत वनक्षेत्र में आदिवासीयों के विकास के लिए सम्पर्क मार्ग बनाने हेतू एक हैक्टयर भूमि को इस्तेमाल किया जा सकता है व 75 पेड़ तक काटे जा सकते हैं। इसी तरह कई गांव है जहां पर वनविभाग द्वारा अनावश्यक आपत्ति लगाई जा रही है जैसे बड़वान कलां एवं खुर्द, अधौरा - रोहताश मार्ग, कदहर, गुल्लु-आथन, बड़ाप, धहार, बहाबार, डुमरांव, दुग्गाह आदि।

8. अधौरा प्रखंड़ व रोहताश प्रखंड़ में शिक्षा की स्थिति बेहद ही खराब है कई स्कूल माओवादीयों के हमले में क्षतिग्रस्त है जैसे अधौरा के दुग्गाह व आथन के स्कूल लेकिन अभी तक इनका निर्माण नहीं किया गया है। वहीं गुल्लु जैसे गावं में स्कूल को केवल कागज़ में ही निर्माण कर दिया गया है लेकिन इसकी किसी भी प्रकार की जांच नहीं की जा रही है। शिक्षक स्कूल में नहीं आ रहे है। ऐसे सभी स्कूलों की सूचि बनाई जाए जो कि क्षतिग्रस्त हैं व कागज़ों पर ही बन गए है वहां पर सख्त कार्यवाही की जाए व जल्द निर्माण किया जाए। इस क्षेत्र में डिगरी कालेज खोला जाए व उच्च शिक्षा की समुचित व्यवस्था की जाए।

9. इस क्षेत्र के स्वास्थ के विकास पर भी विशेष ध्यान देेने की जरूरत है। अधौरा प्रखंड़ के एकमात्र जिला रैफरेल अस्पताल जिसकी 30 बैड की क्षमता है को बहाल किया जाए व अर्द्ध सैनिक बलों के कैम्प को खाली करा कर अन्य कोई स्थान दिया जाए। सभी डाक्टरों की वहां तैनाती की जाए व मुफत दवाओं को देने के लिए अस्पताल को जल्द जल्द से चालू किया जाए। सभी पंचायत के स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों को स्थापित किया जाए।

10. वनक्षेत्र में माफियाओं एवं वनविभाग के कर्मचारीयों की मिली भगत से वनों का अवैध कटान ज़ारी है जिसका आरोप स्थानीय वनाश्रित समुदाय पर लगाया जाता है व फर्जी मुकदमें दर्ज किए जाते हैं। इस अवैध कटान को वनाधिकार कानून लागू कर रोका जाए व सभी फर्जी मुकदमों को वापिस लिया जाए एवं आदिवासीयों को सम्मानजनक जीने के अधिकार से नवाज़ा जाए।

11. इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर खोवा बनाने का व्यपार है जिसमें टनों लकड़ी का कटान वनविभाग व दबंग समूह के प्रभावशाली समुदाय के माध्यम से ज़ारी है इसे जांच कर रोका जाए।

12. दूरसंचार के साधनों की यहां पर खस्ता हालत है। इन दोनों क्षेत्र में केवल बीएसएनएल का ही टावर उपलब्ध है जो कि महीने में लगभग 20 दिन खराब रहता है। जिसका मुख्य कारण है डीज़ल की चोरी, केबल की चोरी आदि इस पर ठोस कार्यवाही की आवश्यकता है। यह टावर कई स्थानों पर लगाए जाए केवल अधौरा में लगाने से काम नहीं चलेगा। सूदूर गांव को यह सिग्नल नहीं प्राप्त होते है जिससे कई गांव सम्पर्क से बिल्कुल कट जाते हैं व आपातकालीन स्थिति में किसी भी तरह से सम्पर्क नहीं हो पाता है।

13. जैसा कि विदित है कि आज देश में सबसे ज्यादा ग़रीब वर्ग वनों में बसर कर रहे हैं लेकिन दूसरी और वनों में देश की सबसे कीमती सम्पदा भी है जिसपर कारपोरेट जगत का कब्ज़ा है व उनकी ललचाई नज़र है। यह कम्पीयां दिन ब दिन अपने मुनाफे इन प्राकृतिक सम्पदा का  दोहन कर बना रही हैं लेकिन इन वनों में रहने वालों को उनके प्राकृतिक सम्पदा का हक व सांस्कृतिक विरासत को वंचित किया जा रहा है। जिसकी वजह से यहां पर हथियार बंद कार्यवाहीयों ऐसे स्थिति का फायदा उठा कर जनवादी परिसर को पुनः समाप्त करने के लिए सक्रीय हो सकते हैं। ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो इसलिए हमारे संगठन द्वारा जनवाद तरीके से इस क्षेत्र में जनजागरण किया जा रहा है। एवं जनोन्मुखी कानूनों को लागू करने के लिए राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार से वार्ता की जा रही है। इन मांगों को गम्भीरता से लेकर जनवादी परिसार को बढ़ाया जाए।

14. इस क्षेत्र में विकास की कुंजी वनाधिकार कानून 2006, खाद्य सुरक्षा कानून, रोजगार गांरटी कानून, सामाजिक सुरक्षा कानून, असंगठित क्षेत्र के लिए बने कानून आदि है इन कानूनों को तत्परता से लागू किया जाए।

15. समस्त कैमूर क्षेत्र जिसमें बिहार के अलावा उ0प्र0, झाड़खंड़ का क्षेत्र भी शामिल है को स्वायत परिषद् बनाने के लिए संसद में विधेयक का प्रस्ताव दिया जाए। इस मांग को हमारे संगठन द्वारा उ0प्र0 सरकार व झाड़खंड़ सरकार के साथ भी वार्ता कर उठाया जा रहा है।












धन्यवाद


कमला खरवार    बालकेश्वर खरवार    राजेन्द्र उरांव   सिपाही    महकी उरावं   



    रोमा     शंकर खरवार


All India Union of Forest Working People

222, Vidhayak Awas, Rajinder Nagar, Aish Bagh Road, Lucknow, UP





दिनांक: 21 अक्तूबर 2013


सेवा में,

जिलाधिकारी

जनपद सोनभद्र, उ0प्र0


अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन द्वारा हिन्डालको अस्पताल में डाक्टरों की लापरवाही से आदिवासी बालक मिथिलेश गौण्ड की मुत्यू को लेकर 28 सितम्बर 2013 को हुए रेणूकूट में रोड जाम पर यूनियन के सदस्यों पर किए गए फर्जी मुकदमों के सम्बन्ध में

महोदय,


हमारे संगठन द्वारा 28 व 29 सितम्बर 2013 को शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के 106वें जन्मदिवस पर जनपद के रेणूकूट में वनाधिकार सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसका मकसद जनपद एवं तीनों राज्यों बिहार, उ0प्र0 एवं झाड़खंड़ में वनाधिकार कानून 2006 के सही क्रियान्वन के उपर चर्चा करना था। एवं आगामी आम सभा चुनाव के मददेनज़र अपनी राज्यीय व राष्ट्रीय रणनीति तैयार करना था। यह कार्यक्रम हमारे संविधान में प्राप्त बुनियादी अधिकारों के तहत ही आयोजित किया गया था जिसके लिए एक पर्चा भी तैयार किया गया जिसे प्रशासन को सौंपा गया। इसकी एक प्रति इस पत्र के साथ भी संलग्न है।


28 व 29 सितम्बर 2013 को वनाधिकार सम्मेलन की अनुमति हमें प्राप्त थी, रैली की अनुमति भी प्राप्त थी जो कि शाम 5 बजे तक थी। यह बात बिल्कुल सही है लेकिन वास्तविक परिस्थियां कुछ ऐसी हुई जिसकी वजह से कार्यक्रम में कई फेर बदल करने पड़े जिसके बारे में हम लगातार प्रशासन को सूचित करते रहे।

28 सितम्बर  2013 को सुबह से काफी बार बारिश हुई जिसकी वजह से कार्यक्रम अस्त व्यस्त हो गया। कार्यक्रम 1.00 बजे के बाद ही शुरू हो पाया और रैली निकालने के 3 बजे का कार्यक्रम निर्धारित समय पर नहीं हो पाया। बारिश काफी होने की वजह से मैदान में लोगों के रूकने की स्थिति कतई नहीं थी व प्रशासन से एवं नगर अध्यक्ष से वैक्लिपक व्यवस्था के लिए अनुरोध किया गया। प्रशासन द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन करने में शुरू से काफी मदद की जा रही थी। बारिश को देख सीओ पीपरी एवं नगर अध्यक्ष श्री अनिल सिंह द्वारा यह सुझाव दिया गया कि सब लोग पिपरी स्थित नगर पंचायत के हाल में रात को रूक सकते हैं। कार्यक्रम के दौरान 4 बजे तक बारिश जब थमी तब यह तय हुआ कि तयशुदा रैली के माध्यम से ही लोग नगर पंचायत पिपरी पहुंचगें व यह रैली जनवादी तरीके से निकाली जाएगी। रैली को व्यवस्थित करते करते लगभग 5 बज गये व प्रशासन के सहयोग से ही रैली को निकाला गया जिसमें एसओ पिपरी हमारे साथ जुलूस में सबसे आगे थे व पूरी पुलिस फोर्स भी सहयोगकारी भूमिका में थी। अगर अनुमति का सवाल 5 बजे के बाद था तब पिपरी के सीओ व एसओ ने जुलूस को वहीं क्यों नहीं रोका? व जुलूस का सहयोग क्यों किया? सड़क के एक तरफ से आवागमन का रास्ता खुला था और जुलूस में से किसी ने भी रास्ते को बाधित करने की कोशिश नहीं की। जुलूस 5.20 बजे शाम सीओ आफिस पिपरी के सामने अपना ज्ञापन देने के लिए रूका जो कि हिंड़ालको अस्पताल मे 14 जुलाई 2013 को मिथिलेश गोण की डाक्टरों की लापरवाही से हुई मौत को लेकर था। गौर तलब है कि रेणूकूट में सभी आफिस सड़क पर हैं और रास्ते भी संकरे हैं तथा सार्वजनिक स्थलों पर कम्पनी का कब्ज़ा है। इसलिए हमें आदिवासीयों के कार्यक्रम करने के लिए रेणूकूट में जगह तलाशने में काफी दिक्कत आई चूंकि हमें यहीं बताया जा रहा था कि कहंी भी कार्यक्रम करने के लिए हिंड़ालकों कम्पनी की अनुमति लेना आवश्यक है। लेकिन हमनें इसे नहीं माना और उपजिलाधिकारी दुद्धी से पत्र द्वारा उक्त कार्यक्रम की अनुमति मांगी जो कि हमें मिली। गांधी मैदान की हालत बेहद ही खराब थी उसके लिए भी 28 सितम्बर 2013 को मेरे द्वारा आपको फोन कर मदद मांगी गई व तब आपके माध्यम से पूरे मैदान में बालू गिरवा कर कार्यक्रम करना पड़ा। अगर बालू नहीं गिरवाया जाता तो शायद हमारे पास सड़क पर बैठने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था क्योंकि वहीं एक सूखी जगह थी बाकि किसी जगह पर वहां पर रह रही जनता का अधिकार नहीं है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि सार्वजनिक जगहों की रेणूकूट जैसी औद्योगिक नगरी में बेहद ही उपेक्षा है क्योंकि कम्पनी नहीं चाहती कि उसके उत्पीड़न के खिलाफ कोई भी सार्वजनिक जगह उपलब्ध हो जहां पर आम जनता एकत्रित हो पाए। इसलिए रास्ते को अवरूद्ध करने की किसी भी मंशा को साफ इंकार किया जाता है। शाम को जुलूस में शामिल लोग नगर पंचायत पिपरी जा रहे थे लेकिन संगठित तौर पर अपने मुददे को उठाते हुए अपना ज्ञापन देने के लिए सीओ आफिस के सामने आकर खडा हुआ।


28 सितम्बर 2013 को भगतसिंह के जन्मदिवस व संगठन के दो दिवसीय वनाधिकार पर हो रहे सम्मेलन के दौरान हमारे संगठन द्वारा रेणूकूट सोनभद्र में हिंडालको अस्पताल में 14 जुलाई 2013 को डाक्टरों की लापरवाही से मिथिलेश गोंण की हुई मृत्यु पर लापरवाह डाक्टरों पर मुकदमें दर्ज करने के लिए भी चर्चा की गई। डाक्टरों की लापरवाही एवं मिथिलेश गोंण की मृत्यु का मामला आम आदिवासीयों में काफी गम्भीर विषय बनता जा रहा है जिसके बारे में प्रशासन को लगातार अवगत कराया गया लेकिन दो महीने बीत जाने पर इस मामले में लापरवाह डाक्टरों के उपर प्रशासन द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई। जिसके चलते आदिवासीयों एवं आम जनता में काफी गुस्सा भरा हुआ है। इसलिए 28 सितम्बर को शाम को जब रैली निकली तो इस मामले में लोग अपना गुस्सा ही ज़ाहिर कर रहे थे व सड़क  जाम करने की किसी भी प्रकार की मंशा नहीं थी। शाम 5.30 बजे जब जुलूस फेक्टरी के गेट पर पहुंचा तब वहां पर शिफट खत्म होने के कारण सभी कर्मचारी बाहर निकल रहे थे वहीं पर सीओ पीपरी का दफतर होने की वजह से हमारे संगठन ने उन्हें ज्ञापन लेने के लिए बुलाया। और मांग की कि दोषी डाक्टरों पर मुकदमा दर्ज किया जाए चूंकि इस मामले में कम से कम पीडि़त पक्ष की तरफ से रिपोर्ट तो दर्ज की ही जानी चाहिए जो कि संविधान के अनुरूप है। लेकिन जब पुलिस प्रशासन द्वारा कार्यवाही करने से मना किया गया तो आदिवासीयों एवं आम जनता जो कि स्थानीय तौर पर इस आंदोलन के साथ जुड़ गई थी ने एक ही आवाज़ में इस मामले पर कार्यवाही करने को कहा। वहां आम जनमानस के अंदर हिंडालको अस्पताल को लेकर काफी गुस्सा है जिसकी वजह से आम जनता कार्यवाही करने की मांग पर अड़ी हुई थी। जैसे जैसे समय बीतता गया भीड़ बढ़ती गई। इसके साथ ही हमारी यह भी मांग थी कि डा0 योगेश जैन की रिपोर्ट को या तो स्वीकार किया जाए अन्यथा अस्वीकार किया जाए। इस बीच हमारे संगठन के वरिष्ठ साथीयों अध्यक्षा जारजूम ऐटे जो कि अरूांचल प्रदेश की पूर्व महिला आयोग की अध्यक्ष भी रही है, कार्यकारी अध्यक्ष, एवं पूर्व मंत्री उ0प्र0 सरकार श्री संजय गर्ग, वरिष्ठ साहित्यकार ओमवीर तोमर  द्वारा हस्तक्षेप किया गया और सीओ कार्यालय में जाकर वार्ता की गई जहां पर पुलिस प्रशासन द्वारा लगातार एक ही बात कहीं गई की सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार डाक्टर पर मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता जब तक कोई जांच नहीं हो जाती। इस पर संगठन के पदाधिकारीयों द्वारा इस आदेश की कापी मांगी गई जिस कापी को उपलब्ध कराने में पुलिस प्रशासन ने डेढ़ घंटे लगा दिए व जाम ने और भी विकाराल रूप ले लिया। इस पर सीओ आफिस में हमारे संगठन के साथी श्री संजय गर्ग ने आपसे से भी बात की व उ0प्र0 सरकार के उपपुलिसमहानिदेशक से भी बात कर इस मामले की गंभीरता का उल्लेख किया। तब सीओ व उपजिलाधिकारी ने उच्चतम न्यायालय की एक आदेश को नेट से निकाल कर हमारे साथीयों को दिया गया तो उसमें यह कहीं नहीं लिखा था कि लापरवाह डाक्टरों के उपर मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता बल्कि उसमें स्पष्ट लिखा था कि लापरवाह डाक्टरों की जांच अगर किसी मान्यता प्राप्त चिकित्सक द्वारा की गई हो तो मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। गौर तलब बात यह है कि लापरवाह डाक्टरों की जांच के लिए एक कमेटी स्वयं आपके द्वारा 10 अगस्त 2013 को गठित की गई थी जिसमें डा0 योगेश जैन जो कि एक मान्यता प्राप्त एम0डी बालचिकित्सक हैं द्वारा अपनी रिपोर्ट दी जा चुकी है। उनके बारे में जांच में आने के लिए जिला प्रशासन द्वारा पूरी सहमति थी तभी तो वे छतीसगढ़ से आए। यहां तक कि उनके आने जाने में लगा खर्च अभी तक जिला प्रशासन ने उपलब्ध नहीं कराया है जो कि 9000रू है। लेकिन बाद में इस कमेटी को रिपोर्ट 15 सितम्बर 2013 को आने के बाद 16 सितम्बर 2013 को इस कमेटी को हिंड़ालको कम्पनी के दबाव में आ कर जिला प्रशासन द्वारा भंग कर दिया गया। इस बात को मैंने अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया है जिसे मैंने 16 सितम्बर 2013 को आपको ईमेल द्वारा भेजा था। इस जांच को गठित करने के बाद जिला प्रशासन ने जिम्मेदारी से व्यवहार नहीं किया जब 7 सितम्बर 2013 को जांच का दिन निश्चित हो चुका था तब स्वयं पुलिस अधीक्षक ने 5 सितम्बर को मुझ से अपने आफिस में कहा कि अब यह जांच नहीं हो पाएगी क्योंकि हिंड़ालको की तरफ से इस पर आपत्ति दर्ज की गई। लेकिन इसकी कोई लिखित सूचना हमें नहीें दी गई तब तक डा0 योगेश जैन बिलासपुर छतीसगढ़ से चल चुके थे व उपजिलाधिकारी रामअभिलाष भी अपनी पत्नी का इलाज करा दिल्ली से वापिस आ चुके थे। यह जांच हो जाने के बाद अपनी ही बात से जिला प्रशासन पलटता रहा और कमेटी को भंग कर ऐसी कमेटी को बनाया जो हिंड़ालको कम्पनी को भाती हो, इस कमेटी में कोई भी स्वतंत्र पक्ष के सदस्य नहीं है और न ही कोई उच्च स्तरीय मेडिकल विशेषज्ञ। 28 सितम्बर तक कई जांच कमेटीयां बैठाने के बाद भी प्रशासन अपनी कोई रिपोर्ट नहीं दे पाया यह गुस्से की एक खास वजह थी।


28 सितम्बर 2013 को शाम 5 बजे से लेकर 8 बजे तक जो जाम लगा वह प्रशासन की अक्षमता से लगा न कि आंदोलनकारी लोगों की वजह से। पुलिस प्रशासन के पास आंदोलनकारीयों को जवाब देने के लिए 3 घंटे लगाए जबकि जो निर्णय 3 घंटे बाद लिया गया था वो पहले भी दस मिनट में हो सकता था यानि कि पीडि़त पक्ष का प्रार्थना पत्र स्वीकार कर कार्यवाही करना। हांलाकि पीडि़त पक्ष की तरफ से तीन बार पहले भी शिकायती पत्र दिया जा चुका है। व खुद पीडि़त पक्ष द्वारा 14 जुलाई 2013 को पुलिस अधीक्षक एवं जिलाधिकारी को मौत होने के तुरन्त बाद फोन का सूचित किया गया था व मौके पर पुलिस अधीक्षक भी वहां पहुंचे थे। 29 सितम्बर 2013 को स्वयं उपजिलाधिकारी द्वारा भरी सभा में पीडि़त पक्ष सोकालो गोंण से रेणूकूट स्थित गांधी मैदान में शिकायती पत्र स्वीकार भी किया गया था। इसके बावजूद भी शांति मय जुलूस और प्रर्दशन पर पुलिस प्रशासन द्वारा रोमा, अशोक चैधरी, पंकज मिश्रा पर भ0द0स0 की विभिन्न धाराओं 143,147,341,342,353,283,188,504,506 में आंदोलनकारीयों को निरूद्ध कर लोकतांत्रिक मूल्यों व जनवादी तरीके से उठाई गई मांगों पर कुठाराघात किया गया है। यह अपराधिक मुकदमें हमारे कार्यक्रम खत्म हो जाने के बाद अगले दिन किए गए। यह अपराधिक मुकदमा हमारे उपर दर्ज होगा इसकी सूचना मुझे स्वयं पुलिस अधीक्षक द्वारा 28 सितम्बर की रात का दी गई थी जो कि काफी अटपटा था। इस कार्यवाही से हमें लग रहा है कि जिला प्रशासन कम्पनी के डाक्टरों को बचाने में लगा हुआ है।


यह आंदोलन शांतिपूर्ण था और हमारे लोकतांत्रिक मूंल्यों के अंतर्गत ही था और मुददा हमारे जीवन से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं अस्पताल व आदिवासयों के स्वास्थ सेवाओं को लेकर था। इस पूरे प्रर्दशन में हमारे पास भी विडियो उपलब्ध है जो कि यह दर्शाता है कि किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं की गई और वार्ता के तहत ही मामले को सुलझाने की कोशिश की गई। जब मामला वार्ता के दायरे में है तो इस तरह की अपराधिक कार्यवाही करने का क्या औचित्य है? हमारा संगठन इस क्षेत्र में पिछले 15 वर्षो से कार्य कर रहा है क्या प्रशासन हमारे एक भी ऐसे प्रर्दशन का उदाहरण दे सकती है जहां पर हमने अनुशासनहीनता बरती हो या कानून को तोड़ा हो? लेकिन उल्टा हमारे पास ऐसे सौ उदाहरण है जब हमारी आवाज़ बुलंद करने व कई गंभीर मुददों को उठाने पर हमारे उपर सैंकड़ों फर्जी मुकदमें लादे गए हैं। जिसकी हमारे पास पूरी सूची है।

इससे यह प्रतीत होता है कि हिंड़ालको कम्पनी के अस्पताल में की जा लापरवाही पर जिलाप्रशासन पर्दा डालना चाहते हैं व कम्पनी के दबाव में काम कर रहे हैं व आम जनता के बुनियादी मुददों की अनदेखी कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि यह जाम एक ही दिन में अचानक हो गया इसके पीछे एक पृष्ठभूमि है जब लगातार कई ज्ञापन सौंपे गए, कई प्रतिवेदन किए गए, कई प्रर्दशन किए गए, ऐसे में अगर किसी समस्या का समाधान नहीं होगा तो लोग आखिर क्या करेंगे? यह प्रश्न मेरा जिला प्रशासन एवं प्रदेश सरकार से है। क्या यहां की जिलाप्रशासन इस तरह की झूठी कार्यवाही कर यहां के आदिवासीयों को माओवादीयों की तरफ नहीं ठेल रही है? क्या ऐसी परिस्थिियों का फायदा यहां पर माओवादी नहीं उठा सकते हैं? यह जनपद कई वर्षो से शांत है जहां पर अब माओवादी गतिविधियां नहीं है जिसका एक सबसे बड़ा कारण यहां पर चल रहे जनवादी आंदोलन है जिन्होंने जनवादी तरीके से इस क्षेत्र में आदिवासीयों के बीच काम कर रहे हैं व वहां यहां की आदिवासी जनता जिन्होंने हथियार बंद संगठनों को नकारा है। आज आज़ादी के 66 साल बाद भी अपने बुनियादी अधिकारों को लेकर अगर आज आदिवासी स्वयं आवाज़ उठाने की हिम्मत कर रहे हैं तो उसे कुचलने का प्रयास किया जा रहा है जबकि यह आदिवासी क्षेत्र बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं जो कि अब उन्हें संसद में पारित वनाधिकार कानून 2006 के तहत भी प्राप्त हैं। अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित किये जाने का आरोप ंिहड़ालको जैसी कम्पनी पर भी है जिन्होंने इस वनक्षेत्र में आदिवासीयों की भूमि जो कि वनभूमि थी पर कम्पनी को स्थापित किया जो कि भूमि अभिलेखों में धारा 4 में अंकित थी। रातों रात भूमि के रिकार्डो में हेरा फेरी कर वनभूमि के बदले घोरवाल के भैसवार गांव में कोल आदिवासीयों को आंवटित पटटों को खारिज करवा उस भूमि को वनभूमि में तबदील कर कम्पेनसेटरी फारेस्टरी के नाम पर जमींन की अदला बदली की। जमींन की चोरी, यहां के नागरिकों के अधिकारों की चोरी और अब कोयला मामले में धोखाधड़ी, जालसाज़ी व अपराधिक साजिश का दोषी हिंड़ालकों कम्पनी, इसके मालिक कुमार मंगलम बिड़ला व इसकी मैनेजमेंट सर का ताज है और आम नागरिक व उनके बीच काम करने वाले सामाजिक संगठन दोषी व अपराधी? जबकि संसद द्वारा पारित वनाधिकार कानून 2006 का पालन तक अभी भी सपा सरकार के आने के बाद नहीं किया गया है। विडम्बना यह है कि 18 अक्तूबर 2013 को आनन फानन में ग्राम स्तरीय वनाधिकार समितियों के गठन के आदेश दे दिए गए जबकि इन कमेटीयों का गठन यहां पर पहले कानून की नियमावली के अनुसार ही किया गया था। अब उस पर आगे काम करने की आवश्यकता थी। लेकिन एक और भ्रम की स्थिति अब फैला दी गई है। यह आगे आने वाले दिनों में आदिवासीयों व अन्य परम्परागत समुदायों में काफी असंतोष का विषय बनेगा।


बेहतर तो यह होगा कि जिला प्रशासन हमारे उपर झूठे अपराधिक मुकदमें करने के बजाय अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारे व आदिवासी क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं में ढ़ाचागत परिवर्तन करें। हमारी लड़ाई केवल हिंड़ालको अस्पताल तक व कुछ डाक्टरों तक केन्द्रित नहीं है हमारा मुददा इस क्षेत्र में आदिवासीयों के तमाम स्वास्थ, शिक्षा एवं अन्य सुविधाओं की बेहतरी के लिए है जो कि वनाधिकार कानून 2006 की धारा 3(2) के अनुरूप है व भयानक बिमारीयों जैसे मलेरिया, डेंगू आदि से लड़ने के लिए व्यापक कार्यक्रम बनाने की है। रेणूकूट के इर्द गिर्द 100 कि0मी तक फैले औद्योगिक इलाके में सभी कम्पीयों द्वारा अपने अस्पताल बना कर केवल अपने कर्मचारीयों तक ही सीमित रखा गया है और जिन आदिवासीयों की जमींने ली गई उन्हीें को अच्छी स्वास्थ सुविधाओं से वंचित रखा गया है। हिंड़ालकों कम्पनी के कर्मचारीयों द्वारा भी इस अस्पताल की काफी शिकायतें हैं जो कि इसलिए नहीं बोल पाते चूंकि उन्हें धमकाया जाता है कि उनकी नौकरी छीन ली जाएगी व यहां तक कि आवाज़ उठाने पर उनके गेट पास तक छीन लिए जाते हैं। हमारा संगठन किसी भी पिछड़े क्षेत्र में स्थापित अस्पताल के प्रति एक सम्मानजनक रवैया रखता है व वह सुचारू रूप से चले यह मंशा रखता है। लेकिन उसमें कार्यकर रहे लापरवाह डाक्टरों के उपर सख्त कार्यवाही भी चाहता है। यहीं नहीं इसी तरह से हमारा संगठन अन्य जगहों पर भी स्वास्थ सुविधाओं को लेकर अपने आंदोलन चला रहा है जैसे रार्बटसगंज स्थित सरकारी अस्पताल में एक ग़रीब महिला सोमा गिरी के नवजात शिशु के गुम होने की मांग को लेकर पिछले एक वर्ष से संघर्षरत है व वहीं जनपद से सटे बिहार कैमूर जिला के अधौरा प्रखंड़ में एक मात्र रैफरल अस्पताल में अर्ध सैनिक बलों को स्थांनतरित करने की मांग को लेकर आंदोलनरत है। अगर इन बुनियादी सुविधाओं के आंदोलन करना अपराधिक है तो यह हमारे संविधान का भददा मज़ाक ही साबित होगा।


इस जिले में जघन्य अपराधी घूम रहे हैं जैसे फरवरी 2012 में भयानक खनन हादसे में मारे गए असंख्य लोगों के कातिल जिनमें कई पत्रकार भी हैं, वन माफिया, भूमाफिया, जेपी कम्पनी द्वारा किए गए जमींनों के रिकार्डो में हजारों एकड़ की हेरा फेरी व अवैध तरीके से डाला में पावर हाउस का निर्माण व कई बलात्कारी, लेकिन इन्हें जिलाप्रशासन संरक्षण देने में लगी है व अपने बुनियादी हकों के लिए लड़ रहे लोगों पर अपराधिक मुकदमा दर्ज कर स्वयं ही इस देश के संविधान का अपमान कर रही है।   इन सवालों पर गौर करना होगा व हम जैसे लेागों पर अपराधिक कार्यवाही करने से समस्या का समाधान नहीं होने वाला है बल्कि इससे समस्या और बढ़ने वाली है। यहां पर मैं एक बात की तरफ और ध्यान आकर्षित करना चाहुंगी कि मुजफफरनगर दंगों के पीछे भी जिला प्रशासन की यहीं अकर्मता शामिल है जो कि मामले की नाजुकता पर पिछले एक साल से किसी भी कार्यवाही को करने से नकारते रहे और दोनो सम्प्रदायों में तनावों को बढ़ाने में मदद करते रहे। यहीं वजह रही कि प्रदेश को इतने भयानक दंगों का सामना करना पड़ा।


 इन झूठे मुकदमों पर हमारे संगठन ने यह ऐलान किया है कि इस मामले में कोई भी जमानत नहीं लेगा व जेल भरो आंदोलन कर इन झूठे मुकदमों की वापसी एवं लापरवाह डाक्टरों के खिलाफ मुकदमें दर्ज करने के लिए लम्बा आंदोलन चलाएगा। हम प्रशासन द्वारा बनाई गई किसी भी जांच कमेटी की रिपोर्ट से सहमत नहीं है इसलिए हम लेाग इस मामले की कार्यवाही के लिए राज्य व केन्द्र सरकार व संसद का दरवाज़ा खटखटाएगें। हमारा संगठन इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग करेगा व हिंड़ालको अस्पताल में चल रहे गोरख धंधे को उजागर करने के लिए सीबीआई जांच के लिए केन्द्र सरकार को आवेदन करेगा। जिस तरह हिंड़ालको के मालिक सीबीआई के घेरे में देश के आज़ादी के इतिहास में प्राकृतिक लूट के लिए अपराधी ठहराए गए हैं उसी तरह इनके द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों एवं फैक्टरीयों में आम जनता व मज़दूरों के उत्पीड़न के सवाल पर भी जांच कर इनके उपर अपराधिक मुकदमें दर्ज कराए जाएगें।


अतः रास्ता अवरूद्ध होने का जिम्मेदारी पूर्णतयः प्रशासन की है जो कि स्थिति को संभाल नहीं पाए इसमें हमारे संगठन का कोई दोष नहीं है और न ही हमनें किसी अनुमति का उल्लघंन किया है इसके लिए हम किसी प्रकार से दोषी नहीं हैं। हमारा आपसे विशेष अनुरोध है कि पूरे मामले की न्यायोचित कार्यवाही की जाए व हमारे उपर लादे गए तमाम फर्जी केस वापिस लिए जाए।


पुलिस प्रशासन की कार्यवाही पर हरजीत की शायरी सटीक बैठती है


'' मुनसिफ का सच्च सुनहरी स्याही में खो गया

वैसे वो जानता है खतावार कौन है''



यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव श्री अशोक चैधरी  का जवाब



पुलिस द्वारा आंदोलनकारीयों पर रेणूकूट में रास्ता जाम का मुददा बनाते हुए किए गए अपराधिक मुकदमें का दर्ज होना एक कायरता पूर्ण कार्रवाई दर्शाता है जिसका हमारा संगठन अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन घोर निन्दा करता है। हमें यह खबर अखबारों से प्राप्त हुई, अखबारों में प्रकाशित रिपोर्ट में दो महत्वपूर्ण तथ्य शामिल नहीं हैं। एक जिस माॅग को लेकर प्रदर्शन किया गया था, उसका कोई जि़क्र नहीं है, माॅग एक ही थी कि 14 जूलाई 2013 को आदिवासी बालक मिथिलेश कुमार की रेणूकूट हिन्डालको अस्पताल में यहां के डाक्टरों की लापरवाही से मृत्यू हो गई थी, जिसकी पुष्टी डा0 योगेश जैन की रिपोर्ट में स्पष्ट है, डा0 योगेश जैन जो कि एक वरिष्ठ विशेषज्ञ बाल चिकित्सक हैं और पिछले करीब 15 वर्षों से आदिवासी इलाके में मलेरिया रोग पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। इसे लेकर 28 सितम्बर को अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन ने रेणूकूट में पुलिस क्षेत्राधिकारी के कार्यालय के सामने अपना ज्ञापन देने के लिए प्रर्दशन किया। इस प्रदर्शन में स्थानीय जनता और आदिवासी महिलाओं की मांग एक ही थी कि मिथिलेश की माॅ सोकालो देवी की तहरीर पर दोषी डाक्टरों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाए, जोकि उनका संवैधानिक अधिकार है। इससे पहले भी संगठन द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराने के प्रयास किए गए थे, तब भी पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई, इसलिए ये प्रदर्शन किया गया। पुलिस व प्रशासन हिन्डालको कम्पनी के प्रशासन के दबाव में आकर रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी करते रहे, जिसके कारण स्थानीय जनता और महिलाओं का आक्रोष बढ़ा। इसलिए यह प्रदर्शन स्थानीय पुलिस व प्रशासन की वजह से लम्बा खिंचा। ज्ञातव्य रहे कि इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में आदिवासियों की कोई रिपोर्ट दर्ज ही नहीं की जाती, जिसके कारण यहां के आदिवासियों और स्थानीय जनता में आक्रोष व्याप्त है। तीन घन्टा तक यह प्रदर्शन पुलिस की गल्ती से चला, जिसकी वजह से देरी हुई। यूनियन के प्रतिनिधियों के साथ हुई लम्बी वार्ता के बाद उन्होंने माना कि कानूनी सलाह से बनाई गई रिपोर्ट उपजिलाधिकारी स्वीकार करेंगे। तब धरना टूटा। इस आवेदन को अगले दिन उपजिलाधिकारी महोदय ने यूनियन के सम्मेलन में लोगों के बीच आकर स्वीकार करना पड़ा और एक सप्ताह के अन्दर उचित कार्रवाइ का आश्वासन दिया। गौरतलब है कि आदिवासी महिलाओं द्वारा रेणूकूट में पुलिस क्षेत्राधिकारी के कार्यालय के समक्ष ज्ञापन दिया गया जिसमें भारी संख्या में स्थानीय लोग भी पूरे समर्थन के साथ शामिल हुए, पुलिस क्षेत्राधिकारी का कार्यालय मुख्य मार्ग पर ठीक हिन्डालको कम्पनी के मेनगेट के सामने ही स्थित है और यहां पुलिस का मुख्य काम हिन्डालको कं0 की रक्षा करना ही है, स्वाभाविक रूप से इससे मुख्यमार्ग पर जाम लग गया।



दूसरी बात ये है कि 14 जुलाई 2013 को घटित इस घटना के बाद पिछले ढाई माह में कई बार प्रदर्शन हुए, जिनके दबाव में जिलाधिकारी द्वारा एक जांच समिति बनाई गई, इस जांच समिति में डा0 योगेश जैन भी शामिल थे और उन्होंने 7 सितम्बर 2013 को जांच की। इस जांच के समय उपजिलाधिकारी, पुलिस क्षेत्राधिकारी जैसे सरकारी अधिकारी और हिन्डालको अस्पताल के डाक्टर तो मौजूद रहे। बावज़ूद जिलाधिकारी के कई बार आदेश देने कि रिपोर्ट जल्द से जल्द तैयार की जाए इस बैठक को बुलाने में अनावश्यक देरी की गई। 28 सितम्बर को सोकालो देवी की तरफ से रिपोर्ट दर्ज ना किए जाने का कारण वे बता रहे थे कि इस जांच रिपोर्ट में सरकारी डाक्टरों की रिपोर्ट शामिल नहीं है और वे सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग का हवाला देते रहे। उक्त रूलिंग की कापी उन्होंने यूनियन के वार्ता कर रहे प्रतिनिधिगण को तीन घन्टे बाद उपलब्ध कराई गई। उक्त रूलिंग में भी स्पष्ट है कि विशेषज्ञ डाक्टर की रिपोर्ट के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जा सकती है, लेकिन गिरफतारी व्याख्या के बाद ही की जाएगी। वे इस रूलिंग की सुनी-सुनाई बातों के आधार पर ही तीन घन्टे तक गलत व्याख्या करते रहे कि रिपोर्ट दर्ज नहीं की जा सकती।




यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व मंत्री उ0प्र0 सरकार श्री संजय गर्ग द्वारा लखनऊ में उच्च पुलिस अधिकारियों से वार्ता करने के बाद रूलिंग की कापी उपलब्ध कराई गई, जिसमें स्पष्ट था कि रिपोर्ट हो सकती है, जहां तक गिरफतारी की बात थी वो पूर्ण विवेचना के बाद ही होनी चाहिए। इसी आधार पर अगले दिन उपजिलाधिकारी द्वारा प्रथम सूचना का आवेदन स्वीकार किया गया और उन्होंने ये कहा कि एक सप्ताह के अन्दर-अन्दर सरकारी डाक्टरों की रिपोर्ट लेकर विधिवत एफ.आई.आर दर्ज की जाएगी। यह काम पहले पांच मिनट में भी हो सकता था, जिसमें पुलिस व प्रशासन द्वारा की गई टालमटोल के कारण जनता में आक्रोष और स्थानीय लोगों की संख्या भी बढ़ती चली गई और समय भी बढ़ता रहा, जिसके लिए पूरी तरह से पुलिस व प्रशासन जि़म्मेदार है। जबकि पुलिस की जि़म्मेदारी थी कि रिपोर्ट करें, नाकि इस तरह से बवाल मचा कर उच्च अधिकारियों से वार्ताएं करने के नाम पर समय बरबाद करें।




अफ़सोस यह है कि यह कायरतापूर्ण कार्रवाई पुलिस ने खुन्दक में आकर कार्यक्रम समाप्त हो जाने के एक दिन बाद सभी तरह के आश्वासन देने के बाद की है। इससे हम कतई तौर पर विचलित नहीं हैं, एक बच्चे की अन्यायपूर्ण तरीके से हुई मौत के खिलाफ आवाज़ उठाने की सज़ा के रूप में हमें अगर जेल भी जाना पड़े तो हमें कोई संकोच नहीं होगा, बल्कि हम इसे अपना सौभाग्य समझेंगे। हमारा संगठन आदिवासियों, अन्य वनाश्रितों व वंचित तबकों के संवैधानिक अधिकार और सम्मान की रक्षा के लिए पूरी तरह से वचनबद्ध है। पुलिस द्वारा की गई इस कार्रवाई को लेकर आंदोलन और तेज़ किया जाएगा। संगठन के साथीयों के उपर किए गए झूठे मुकदमों को साबित करने के लिए हमारे पर पूरी विडियो रिर्काडि़ग भी है जहां पर कहीं किसी लोक सेवक पर हमले की नजारा नहीं है भ0द0स0 की 353 लगा कर आंदोलनकारीयों द्वारा इन झूठी कार्यवाहीयों को राज्य व केन्द्र सरकार के सामने पेश किया जाएगा।


रोमा

उपमहासचिव                                             

                                     अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन

प्रतिलिपि:

1. मुख्यमंत्री उ0प्र0 श्री अखिलेश यादव

2. गृहमंत्री उ0प्र0 सरकार, लखनउ

3. मुख्य सचिव, उ0प्र0 शासन

4. पुलिस महानिदेशक उ0प्र0 शासन

5. उपपुलिस महानिदेशक उ0प्र0 शासन

6. आई जी वाराणरी जोन

7. पुलिस अधीक्षक सोनभद्र

8. केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री श्री जयराम रमेश, नई दिल्ली

9. केन्द्रीय आदिवासी मंत्री श्री के0सी देव, नई दिल्ली

10. केन्द्रीय गृह मंत्री, नई दिल्ली

11. उ0प्र0 मानवाधिकार आयोग, लखनउ

12. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली



copy of the pamphlet for 28-29th sept 2013 given below


दुनिया के मज़दूरों एक हो                                                              जल  - जंगल और ज़मीन

एक हो     -   एक हो                                                              हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे

इक देश नहीं इक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे

                                                               -फ़ैज़ अहमद ''फै़ज़''


शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के 106 वे जन्मदिवस के महान अवसर पर

अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन (कैमूरक्षेत्र) का

प्रथम क्षेत्रीय सम्मेलन

दिनांक 28-29 सितम्बर 2013, गाॅधी मैदान रेणूकूट-सोनभद्र उ0प्र0


प्रिय साथियों!

जैसा कि आप जानते हैं कि दिनांक 28 सितम्बर 2013 को देश की ब्रिटिश हुक़ूमत से आज़ादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर देने वाले अमर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का 106वां जन्मदिवस है। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने हंसते-हंसते मौत को इसलिए गले लगा लिया था कि उनका सपना ना सिर्फ़ ब्रिटिश हुक़ूमत से देश को आज़ाद कराने का था, बल्कि कुव्यवस्था की ज़ंजीरों  में बड़ी ताकतों द्वारा जकड़े गये तमाम वंचित तबकों, महिलाओं, दलित-आदिवासियों को भी इस कुव्यवस्था से आज़ाद कराने का भी था। लेकिन 66 वर्ष पूर्व देश अंग्रेजों से आज़ाद तो हुआ लेकिन आज़ादी की लड़ाई में सबसे ज़्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाला देश का वंचित तबका तब भी आज़ादी से महरूम रह गया। खासतौर पर देश के वनक्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी-अन्य वनाश्रित समाज व इस समाज की महिलाओं को और अधिक गुलाम बना लिया गया और अंग्रेजों द्वारा वन-संसाधनों की लूट व लोगों की वनक्षेत्रों से बेदखली के लिए बनाई गई वनविभाग जैसी संस्था और बड़ी-बड़ी कम्पनियों का वनों पर शासन तंत्र मज़बूत करने के लिए नए-नए कानून बनाने शुरू कर दिए गए व पुराने 1927 के काले कानून भारतीय वन अधिनियम को और सख्त कर दिया गया। लेकिन दूसरी तरफ आदिवासी-वनाश्रित समाज के अन्दर लगातार फैलते आक्रोष के कारण इन तबकों ने अपने आंदोलनों को भी तेज़ कर दिया व एक जगह पर इकट्ठा होने लगे। इन्हीं आंदोलनों के दबाव में सरकार को देश के इतिहास में पहली बार आदिवासी-वनाश्रित समाज के जंगल पर हकों को स्थापित करने की मान्यता देने वाला वनाधिकार कानून बनाना पड़ा और जिसे 15 दिसम्बर 2006 को संसद में पारित भी कर दिया गया और 1 जनवरी 2008 से नियमावली बनाकर लागू भी।

लेकिन आज इस कानून को भी पास हुए लगभग 7 वर्ष बीत जाने के बाद भी (केवल कुछ उन जगहों को छोड़कर जहां लोग खुद अपनी सांगठनिक ताक़त से इसे लागू करने के लिए पहल कर रहे हैं व सफलता भी हासिल कर रहे हैं) इस कानून के वास्तविक क्रियान्वयन की प्रक्रिया ना सिर्फ अधर में ही लटकी हुई है, बल्कि वनविभाग व बड़ी कम्पनियों के नुमाईंदों द्वारा वनाश्रित समाज व इस समाज की महिलाओं पर की जाने वाली जु़ल्म-ओ-ज़्यादती की सारी हदों को पार किया जा रहा है व इस कानून को लागू करने के लिए जिम्मेदार पुलिस व प्रशासन इनको मदद करने में जुटे हुए हैं और केन्द्र सरकार सहित प्रदेश सरकारें इस ओर से पूरी तरह से आंख बन्द किए हुए बैठी हैं।

उ0प्र0, बिहार व झारखण्ड में कैमूर घाटी की पहाडि़यों पर बसे हमारे कई जनपदों सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली, कैमूर भभुआ, रोहताश और गढ़वा जो कि इन सभी प्रदेशों के बड़े वनक्षेत्र वाले जनपद है और इनकी आबादी का करीब 80 प्रतिशत हिस्सा आदिवासी-वनाश्रित समाज से है में इसके बावज़ूद इनमें कानून के सरकारी क्रियान्वयन की स्थिति कम-ओ-बेश यही बनी हुई है, लेकिन यहां की वनाश्रित समाज की महिलाओं ने संगठित रूप से इस कानून में मान्यता दिये गए अधिकारों को हासिल करने के लिए पहल की व अपने अधिकारों को हासिल करने में सफलता भी प्राप्त की। लेकिन यहां वनविभाग, बड़ी कम्पनियां और सामंती तबकों ने यहां के आदिवासी-दलित ंअन्य वनाश्रित समाज पर तरह-तरह से हमले करने की कार्रवाईयों को तेज़ कर दिया है। संवैधानिक अधिकार और वनाधिकार कानून में दिए गए 13 विकास कार्यों के अधिकारों में शामिल स्वास्थ सुविधाओं को पाने के अधिकार के बावज़ूद यहां की दुद्धी तहसील में निजि कम्पनी हिन्डालको द्वारा संचालित अस्पताल में हमारे यूनियन की राष्ट्रीय नेतृत्वकारी आदिवासी महिला साथी सोकालो गोण्ड के 13 वर्षीय पुत्र श्रवण कुमार की यहां डाक्टरों द्वारा पूरी तरह से बरती गई लापरवाही के कारण मौत हो गई और यहां के लापरवाही बरतने वाले डाक्टर इस मामले से अभी तक पूरी तरह से पल्ला झाड़ने में जुटे हुए है। हालांकि इस मामले को लेकर अ.भा.व.ज.श्रमजीवी यूनियन के आंदोलनरत होने पर जिला प्रशासन द्वारा एक जांच समिति का गठन किया गया, जिसमें प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी तथा विशेषज्ञ डाक्टरों को शामिल किया गया। इस जांच दल ने दिनांक 9 सितम्बर को रेणूकूट का दौरा करके जांच की है, जिसमें दोषी डाक्टर व डाक्टरों की लापरवाही से मृतक बालक श्रवण कुमार की माता सोकालो गोण्ड के बयान भी दर्ज किए हैं। जल्द ही जांच दल की रिपोर्ट सामने आने पर अगली कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। इसमें भी दोषी हिन्डालको कम्पनी के प्रतिनिधियों ने अपने दामन पर लगे खून के छींटों को धोकर अपने गुनाह से पल्ला झाड़ने की नीयत से जिला प्रशासन द्वारा पूरे नियम कायदों को ध्यान में रखकर बनाई गई समिति की वैद्यता पर ही सवाल खड़े किए गए हैं। गौरतलब है कि सरकार द्वारा रेणूकूट व इसके आसपास के करीब 100 कि0मी0 तक बसे लोगों के स्वास्थ को एक निजि अस्पताल के हवाले कर दिया गया है, जोकि मनमाने ढंग से यहां बसे आदिवासियों व अन्य गरीब तबाकों के लोगों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, जबकि वनाधिकार कानून के आने के बाद सामुदायिक अधिकारों के तहत भी स्वास्थ व शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण ज़रूरतों को पूरा करना अब सरकार की जिम्मेदारी है, जिसे  सरकारों द्वारा पूरी तरह से अनदेखा किया जा रहा है।

साथियों! यह स्थिति जब से उ0प्र0 प्रदेश में नई सरकार आई है पूरे प्रदेश में चल रही है और बिहार व झारखण्ड में तो कानून के क्रियान्वयन की स्थिति इतनी दयनीय बनी हुई कि यहां के अधिकारी खुले तौर पर कहने में गुरेज़ नहीं कर रहे कि ''यहां वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन की ज़रूरत ही नहीं है''। केवल नक्सलवाद का हौवा खड़ा करके करोड़ों रुपये के पैकेज लाकर डकार जाना ही इनका धन्धा बना हुआ है। वनाधिकार कानून का वनविभाग व पुलिस प्रशासन द्वारा खुले आम उलंघन किया जा रहा है। वनाश्रित समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने वाले इस क्रांतिकारी कानून के क्रियान्वयन की प्रक्रिया एकदम ठप कर दी गई है, वनविभाग द्वारा कहीं हत्या करके, कहीं प्रशासन द्वारा गांवों में पीएसी फोर्स आदि लगाकर तो कहीं जापान की जायका कम्पनी द्वारा वृृक्षारोपण के नाम पर लोगों के हाथ से उनके हक़ वाली ज़मीनों को छीनने की कोशिश की जा रही है। जबकि वनाधिकार कानून के आने के बाद वनविभाग जंगल क्षेत्र में ऐसी किसी भी कार्रवाई को अंजाम नहीं दे सकता। कैमूरक्षेत्र में एक लम्बे समय तक आदिवासी-वनाश्रित समाज के अधिकारों के लिए जीवनपर्यन्त लड़ने वाले डा0 विनियन ने कैमूर क्षेत्र में स्वायत्त परिषद बनाने व इस क्षेत्र को पांचवी अनुसूचि में शामिल करने की मांग उठाई थी व संघर्ष किया था, यह महत्वपूर्ण मुद्दे भी वहीं अपनी जगह पर आज भी खड़े हुए हैं। लेकिन दूसरी ओर वनाश्रित समुदायों के लोग भी अपने संघर्षों को तेज़ कर रहे हैं और ये सभी संघर्ष महिलाओं की अगुआई में लड़े जा रहे हैं। जैसा कि आपको विदित होगा कि वनाधिकार कानून में सितम्बर 2012 में कुछ संशोधन भी किए गए हैं। इन संशोधनों में वनाश्रित समाज के जंगल व जंगल की तमाम तरह की लघुवनोपज को अपने परिवहन संसाधनों से बे रोक-टोक लाने, स्वयं इस्तेमाल करने व अपनी सहकारी समितियां-फैडरेशन आदि बनाकर बाज़ार में बेचने के मान्यता दिए गए अधिकारों को और अधिक स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इस अधिकार को पाने के लिए एक और तीसरे दावे को वनसंसाधनों पर अधिकार के दावे के रूप में दिया गया है, जिसे सबसे पहले भरकर अपना दावा ग्राम समितियों के माध्यम से उपखण्डस्तरीय समिति को सौंपना नितांत आवश्यक है। इन सभी कार्यों को करने व अपने संघर्षों की धार को और तेज़ करने के उद्ेश्य से यूनियन द्वारा कई तरह के कार्यक्रम भी तय किए जाने हैं।

जैसा कि आपको यह भी विदित है कि हमने संगठन व संगठन के संघर्षों के बढ़ते हुए स्वरूप को देखते हुए इसी वर्ष दिनांक 3 से 5 जून को पुरी-उड़ीसा में एक सम्मेलन आयोजित करके अपने संगठन राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच  को अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन  के रूप में तब्दील कर दिया है। साथियों यूनियन की सारी ताक़त उसके सदस्यों व सदस्यों की संख्या में होती है। हमने पुरी में सामूहिक रूप से यह भी संकल्प लिया था कि हम इस वर्ष के अन्त तक केवल उ0प्र0 से 50000 की संख्या में सदस्यता बनाएंगे। यूनियन की मज़बूती के लिए यूनियन के सदस्यता अभियान को तेज़ी देने व अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए सरकारों पर दबाव बनाने के उदे्श्य से उ0प्र0 के विभिन्न वनक्षेत्रों और प्रदेश के आस-पास के प्रदेशों उत्तराखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश आदि में यूनियन के सम्मेलन आयोजित करना व अन्त में आने वाले लोक सभा चुनावों से पूर्व ही दिल्ली में एक विशाल प्रदर्शन करने का भी यूनियन द्वारा निर्णय लिया गया है।  जिसमें देशभर के वनक्षेत्रों से कम से कम 50000 की संख्या में आदिवासी वनाश्रित समाज की महिलाएं व लोग तथा वनाधिकार कानून के मुद्दों पर काम करने वाले जनसंगठनों व मददगार मित्र संगठनों के लोग इकट्ठा होकर संसद भवन के सामने प्रदर्शन करेंगे व केन्द्र सरकार से सवाल पूछेंगे कि कानून आने के बाद 7 सालों में दोबार सत्ता पर काबिज रहने के बावजूद आखिरकार वनाधिकार कानून को क्यूं ठंडे बस्ते में डाला गया है और वनविभाग व सरकारों द्वारा वनाश्रित समाज के बीच फैलाए जा रहे आतंक पर क्यूं कोई रोक नहीं लगाई जा रही है?

साथियों! इसी कड़ी में हम दिनांक 28-29 सितम्बर 2013 को देश की आज़ादी व वंचित समाज के लिए मात्र 23 वर्ष की उम्र में शहीद हो जाने वाले जांबाज़ युवा शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के 106वें जन्म दिवस के महान अवसर पर कैमूर क्षेत्र स्थित रेणूकूट जनपद सोनभद्र में अपने यूनियन का प्रथम सम्मेलन आयोजित करने जा रहे हैं। इस सम्मेलन में कैमूर क्षेत्र के जनपद सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली, बिहार अधौरा, रोहताश, झारखण्ड व अन्य वन क्षेत्रों तराई लखीमपुर खीरी, गौण्डा, बहराईच, पीलीभीत, बुन्देलखण्ड चित्रकूट कर्वी, मानिक पुर, बांदा, मध्यप्रदेश रीवा, पश्चिमांचल सहारनपुर, उत्तराखण्ड राजाजी नेशनल पार्क व इनके अलावा देश के कई हिस्सों से वनाश्रित समाज के लोग व वनाधिकार के मुद्दों पर काम करने वाले जनसंगठनों व मददगार संगठनों के नेतृत्वकारी प्रतिनिधिगण व संवेदनशील नागरिक समाज के अन्य बुद्धिजीवी वर्ग के लोग भी बड़ी संख्या में शामिल होंगे। इनमें प्रमुख रूप से अरुणांचल महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष व अ.भा.व.श्र.यूनियन की अध्यक्ष सुश्री जारजूम ऐटे, कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व राज्यमंत्री श्री संजय गर्ग, पूर्व जज श्री मन्नूलाल मरकाम, महासचिव श्री अशोक चैधरी, केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश व झारखण्ड से प्रो0 रामशरण शामिल होंगे। आपसे अपील है कि बड़ी से बड़ी संख्या में इसमें शामिल होकर अपने आदर्श शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जन्मदिवस मनाते हुए अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के कैमूर क्षेत्र के इस पहले सम्मेलन को ऐतिहासिक रूप से सफल बनाने में हिस्सेदारी निभाएं। दोनों दिन के कार्यक्रम रेणूकूट स्थित गाॅधी मैदान में आयोजित किए जाएंगे। दिनांक 28 सितम्बर 2013 को दिन में हम गाॅधी मैदान से रेणूकूट की सड़कों पर एक विशाल रैली निकालेंगे व शाम को 4 बजे यूनियन के सम्मेलन की शुरूआत की जाएगी। 29 सितम्बर को सम्मेलन दिन भर चलेगा व शाम 5 बजे तक समापन किया जाएगा।                                                               

ऐ ख़ाकनशीनों उठ बैठो, वो वक़्त क़रीब आ पहुंचा है

       जब तख़्त गिराए  जाऐंगे, जब ताज  उछाले  जाऐंगे - ''फै़ज़''


अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन ;।प्न्थ्ॅच्द्ध

कैमूर क्षेत्र महिला-मज़दूर किसान संघर्ष समिति, कैमूर मुक्ति मोर्चा

Dear all,

Greetings ! you are cordially invited to various programmes announced by All India Union of Forest Working People (AIUFWP) in the coming month. These are the regional conferences organized by local people to strengthen their union. A very successful regional conference took place in Kaimur region of UP on 28-29th sept 2013 where the participants from various districts from UP, MP, Bihar and Jharkhand (Kaimur region) also participated. Inspired by the programme of UP in Renukut the Bihar and Jharkhand unit of AIUFWP have announced the regional conference in their region. There is overwhelming response from the tribal and other forest dwelling communities to organize such regions around the issues of forest, land rights and leadership of women, dalits and tribal. The focus is also on strengthening the struggle for development rights such as hospital, schools, roads, irrigation and communication system etc.

Pl join us in Bhabhua, district Kaimoor for two days regional conference on Forest rights on 21-22 october 2013



21-22 October 2013 = Two days regional conference of AIUFWP in Bhabhu ( Bihar) near Mugal Sarai. (The pamphlet in hindi is attached below)

YOU ALL ARE CORDIALLY INVITED. PL CONTACT THESE NUMBERS FOR ANY COMMUNICATION

9415233583,

IN SOLIDARITY

ROMA

Dy gen sect

AIUFWP




दुनिया के मज़दूरों एक हो                                                               जल  - जंगल और ज़मीन

एक हो -   एक हो                                                               हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

                               हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे

इक देश नहीं इक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे

                                                            -फ़ैज़ अहमद ''फै़ज़''


अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन (कैमूरक्षेत्र) बिहार का

वनाधिकार पर क्षेत्रीय सम्मेलन

दिनांक 21-22 अक्टूबर 2013, कैमूर भभुआ-बिहार


प्रिय साथियों!

जैसा कि आप जानते हैं कि देश की संसद को आदिवासी वनाश्रित समुदायों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्यायों की बात को स्वीकार करते हुए, देश के इतिहास में पहली बार उनके जंगल पर अधिकारों को मान्यता देने वाला कानून 15 दिसम्बर 2006 को पास करके एक साल बाद  लागू भी कर दिया गया था। चूंकि 66 वर्ष पूर्व देश अंग्रेजों से आज़ाद तो हुआ लेकिन आज़ादी की लड़ाई में सबसे ज़्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाला देश के आदिवासी, अन्य वनाश्रित समुदाय व अपने अधिकारों से वंचित तबके तब भी आज़ादी से महरूम रह गये। खासतौर पर देश के वनक्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी-अन्य वनाश्रित समाज व इस समाज की महिलाओं को और अधिक गुलाम बना लिया गया और अंग्रेजों द्वारा वन-संसाधनों की लूट व लोगों की वनक्षेत्रों से बेदखली के लिए बनाई गई वनविभाग जैसी संस्था और बड़ी-बड़ी कम्पनियों का वनों पर शासन तंत्र मज़बूत करने के लिए नए-नए कानून बनाने शुरू कर दिए गए व पुराने 1927 के काले कानून भारतीय वन अधिनियम को और सख्त कर दिया गया। लेकिन दूसरी तरफ आदिवासी-वनाश्रित समाज के अन्दर लगातार फैलते आक्रोष के कारण इन तबकों ने अपने आंदोलनों को भी तेज़ कर दिया व एक जगह पर इकट्ठा होने लगे। इन्हीं आंदोलनों के दबाव में सरकार को देश के इतिहास में पहली बार आदिवासी-वनाश्रित समाज के जंगल पर हकों को स्थापित करने की मान्यता देने वाला वनाधिकार कानून बनाना पड़ा और जिसे 15 दिसम्बर 2006 को संसद में पारित भी कर दिया गया और 1 जनवरी 2008 से नियमावली बनाकर लागू भी।

लेकिन आज इस कानून को भी पास हुए लगभग 7 वर्ष बीत जाने के बाद भी (केवल कुछ उन जगहों को छोड़कर जहां लोग खुद अपनी सांगठनिक ताक़त से इसे लागू करने के लिए पहल कर रहे हैं व सफलता भी हासिल कर रहे हैं) इस कानून के वास्तविक क्रियान्वयन की प्रक्रिया ना सिर्फ अधर में ही लटकी हुई है, बल्कि वनविभाग व बड़ी कम्पनियों के नुमाईंदों द्वारा वनाश्रित समाज व इस समाज की महिलाओं पर की जाने वाली जु़ल्म-ओ-ज़्यादती की सारी हदों को पार किया जा रहा है व इस कानून को लागू करने के लिए जिम्मेदार पुलिस व प्रशासन इनको मदद करने में जुटे हुए हैं और केन्द्र सरकार सहित प्रदेश सरकारें इस ओर से पूरी तरह से आंख बन्द किए हुए बैठी हैं।

बिहार, झारखण्ड व उ0प्र0 में कैमूर घाटी की पहाडि़यों पर बसे हमारे कई जनपदों कैमूर भभुआ, रोहताश, गढ़वा सोनभद्र, मिर्जापुर और चन्दौली, जो कि इन प्रदेशों के बड़े वनक्षेत्र वाले जनपद है और इनकी आबादी का करीब 80 प्रतिशत हिस्सा आदिवासी-वनाश्रित समाज से है, इसके बावज़ूद इनमें कानून के सरकारी क्रियान्वयन की स्थिति कम-ओ-बेश यही बनी हुई है, लेकिन यहां की वनाश्रित समाज की महिलाओं ने संगठित रूप से इस कानून में मान्यता दिये गए अधिकारों को हासिल करने के लिए पहल की व अपने अधिकारों को हासिल करने में सफलता भी प्राप्त की। लेकिन यहां वनविभाग, बड़ी कम्पनियां और सामंती तबकों ने यहां के आदिवासी-दलित ंअन्य वनाश्रित समाज पर तरह-तरह से हमले करने की कार्रवाईयों को तेज़ कर दिया है। यहां आंदोलन के दबाव में वनाधिकार कानून के तहत कुछ गाॅवों में ग्राम वनाधिकार समितियों का गठन ज़रूर हुआ, लेकिन इससे आगे की प्रक्रिया को चलाने के लिए प्रशासन हाथ पर हाथ रखकर बैठ गया है। संवैधानिक अधिकार और वनाधिकार कानून में दिए गए 13 विकास कार्यों के अधिकारों में शामिल स्वास्थ सुविधाओं को पाने के अधिकार के बावज़ूद जिला कैमूर के अधौरा क्षेत्र में आने वाले आदिवासी बहुल 104 गाॅवों को स्वास्थ सुविधा मुहैया कराने वाले सरकारी अस्पताल को नक्सलवाद पर नियंत्रण करने के नाम पर यहां बैठाई गई केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस का कैम्प बना कर उनके हवाले कर दिया गया है। गांवों तक पहुंचने के लिए सड़कों की और रास्तों की यह स्थिति है कि रास्ते के नाम पर अधिकांशतः बड़े-छोटे पत्थरों से अटे हुए हैं। ग्राम बड़वान तक पहुचने के लिए जो रास्ते हैं उनका यह हाल है कि उन पर पैदल चलकर गाॅव पहुंचना ही मुहाल है। वहीं हाल शिक्षा का है अधिकांश स्कूल या तो माओवादीयों द्वारा ध्वस्त किए जा चुके हैं जिन्हें अभी तक निर्माण नहीं किया गया है और जो बचे हैं वे स्कूल सेना के कब्ज़े में हैं। ऐसे में आदिवासीयों को शिक्षा से वंचित रखने की सोची समझी साजिश की जा रही है।


साथियों! यह स्थिति जब से नई सरकार आई है पूरे प्रदेश में चल रही है और बिहार में तो कानून के क्रियान्वयन की स्थिति इतनी दयनीय बनी हुई कि यहां के अधिकारी खुले तौर पर कहने में गुरेज़ नहीं कर रहे कि ''यहां वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन की ज़रूरत ही नहीं है''। केवल नक्सलवाद का हौवा खड़ा करके करोड़ों रुपये के पैकेज लाकर डकार जाना ही इनका धन्धा बना हुआ है। वनाधिकार कानून का वनविभाग व पुलिस प्रशासन द्वारा खुले आम उलंघन किया जा रहा है। वनाश्रित समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने वाले इस क्रांतिकारी कानून के क्रियान्वयन की प्रक्रिया एकदम ठप कर दी गई है, वनविभाग द्वारा कहीं हत्या करके, कहीं प्रशासन द्वारा गांवों में पीएसी फोर्स, सी.आर.पी.एफ आदि लगाकर तो कहीं जापान की जायका कम्पनी द्वारा वृृक्षारोपण के नाम पर लोगों के हाथ से उनके हक़ वाली ज़मीनों को छीनने की कोशिश की जा रही है। जबकि वनाधिकार कानून के आने के बाद वनविभाग जंगल क्षेत्र में ऐसी किसी भी कार्रवाई को अंजाम नहीं दे सकता। कैमूरक्षेत्र में एक लम्बे समय तक आदिवासी-वनाश्रित समाज के अधिकारों के लिए जीवनपर्यन्त लड़ने वाले डा0 विनियन ने कैमूर क्षेत्र में स्वायत्त परिषद बनाने व इस क्षेत्र को पांचवी अनुसूचि में शामिल करने की मांग उठाई थी व संघर्ष किया था, यह महत्वपूर्ण मुद्दे भी वहीं अपनी जगह पर आज भी खड़े हुए हैं। लेकिन दूसरी ओर वनाश्रित समुदायों के लोग भी अपने संघर्षों को तेज़ कर रहे हैं और ये सभी संघर्ष महिलाओं की अगुआई में लड़े जा रहे हैं। यहां अधौरा ब्लाक के बड़वान गांव की महिलाओं ने तय किया है कि वे अपने गांव तक पहुचने के पथरीले और ऊंचे नीचे पहाड़ी मार्ग को साफ व समतल बनाकर खुद रास्ते का निर्माण करेंगी, इसके लिए उन्हें सरकारी सहायता मिले या नहीं मिले। जैसा कि आपको विदित होगा कि वनाधिकार कानून में सितम्बर 2012 में कुछ संशोधन भी किए गए हैं। इन संशोधनों में वनाश्रित समाज के जंगल व जंगल की तमाम तरह की लघुवनोपज को अपने परिवहन संसाधनों से बे रोक-टोक लाने, स्वयं इस्तेमाल करने व अपनी सहकारी समितियां-फैडरेशन आदि बनाकर बाज़ार में बेचने के मान्यता दिए गए अधिकारों को और अधिक स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। चूंकि यहां कैमूर क्षेत्र के जंगल में महुआ, प्यार(चिरौंजी) आदि जैसी तमाम लघुवनापजों और जड़ी-बूटियों का अकूत भंडार है, जिसमें यहां के लोगों के लिए आजीविका के असीमित स्त्रोत छुपे हुए हैं, जिन्हें आज तक वनविभाग व वनमाफियाओं ने अपनी अन्धी कमाई के लिए इस्तेमाल किया है और कर रहे हैं। इस अधिकार को पाने के लिए वनाधिकार कानून की नियमावली संशोधन-2012 में एक और नए तीसरे दावे को वनसंसाधनों पर अधिकार के दावे के रूप में दिया गया है, जिसे सबसे पहले भरकर अपना दावा ग्राम समितियों के माध्यम से उपखण्डस्तरीय समिति को सौंपना नितांत आवश्यक है। इन सभी कार्यों को करने व अपने संघर्षों की धार को और तेज़ करने के उद्ेश्य से यूनियन द्वारा कई तरह के कार्यक्रम भी तय किए जाने हैं।

जैसा कि आपको यह भी विदित है कि हमने संगठन व संगठन के संघर्षों के बढ़ते हुए स्वरूप को देखते हुए इसी वर्ष दिनांक 3 से 5 जून को पुरी-उड़ीसा में एक सम्मेलन आयोजित करके अपने संगठन राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच  को अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन  के रूप में तब्दील कर दिया है। साथियों यूनियन की सारी ताक़त उसके सदस्यों व सदस्यों की संख्या में होती है। हमने पुरी में सामूहिक रूप से यह भी संकल्प लिया था कि हम इस वर्ष के अन्त तक केवल बिहार से 25000 की संख्या में सदस्यता बनाएंगे। यूनियन की मज़बूती के लिए यूनियन के सदस्यता अभियान को तेज़ी देने व अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए सरकारों पर दबाव बनाने के उदे्श्य से उ0प्र0 के विभिन्न वनक्षेत्रों और प्रदेश के आस-पास के प्रदेशों उत्तराखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश आदि में यूनियन के सम्मेलन आयोजित करना व अन्त में आने वाले लोक सभा चुनावों से पूर्व ही दिल्ली में एक विशाल प्रदर्शन करने का भी यूनियन द्वारा निर्णय लिया गया है।  जिसमें देशभर के वनक्षेत्रों से कम से कम एक लाख की संख्या में आदिवासी वनाश्रित समाज की महिलाएं व लोग तथा वनाधिकार कानून के मुद्दों पर काम करने वाले जनसंगठनों व मददगार मित्र संगठनों के लोग इकट्ठा होकर संसद भवन के सामने प्रदर्शन करेंगे व केन्द्र सरकार से सवाल पूछेंगे कि कानून आने के बाद 7 सालों में दोबार सत्ता पर काबिज रहने के बावजूद आखिरकार वनाधिकार कानून को क्यूं ठंडे बस्ते में डाला गया है और वनविभाग व सरकारों द्वारा वनाश्रित समाज के बीच फैलाए जा रहे आतंक पर क्यूं कोई रोक नहीं लगाई जा रही है?

साथियों! इसी कड़ी में हम दिनांक 21-22 अक्टूबर 2013 को यहां कैमूर के वनक्षेत्र में जीवन पर्यन्त आदिवासी वनाश्रित समुदायों के अधिकारों के लिए व वनाधिकार कानून को लाने के संघर्ष में शामिल डा0 विनियन का स्मरण करते हुए अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन का क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित करने जा रहे हैं। इस सम्मेलन में कैमूर क्षेत्र बिहार  के अधौरा, रोहताश, झारखण्ड गढ़वा उ0प्र0 के जनपद सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली,  व अन्य वन क्षेत्रों तराई लखीमपुर खीरी, गौण्डा, बहराईच, पीलीभीत, बुन्देलखण्ड चित्रकूट कर्वी, मानिक पुर, बांदा, मध्यप्रदेश रीवा, पश्चिमांचल सहारनपुर, उत्तराखण्ड राजाजी नेशनल पार्क व इनके अलावा देश के कई हिस्सों से वनाश्रित समाज के लोग व वनाधिकार के मुद्दों पर काम करने वाले जनसंगठनों व मददगार संगठनों के नेतृत्वकारी प्रतिनिधिगण व संवेदनशील नागरिक समाज के अन्य बुद्धिजीवी वर्ग के लोग भी बड़ी संख्या में शामिल होंगे। आपसे अपील है कि बड़ी से बड़ी संख्या में इसमें शामिल होकर अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के बिहार कैमूरक्षेत्र के इस क्षेत्रीय सम्मेलन को ऐतिहासिक रूप से सफल बनाने में हिस्सेदारी निभाएं। दोनों दिन के कार्यक्रम जिला कैमूर मुख्यालय भभुआ  में आयोजित किए जाएंगे। दिनांक 21 अक्तूबर 2013 को दिन में हम भभुआ की सड़कों पर एक विशाल रैली निकालेंगे व शाम को 4 बजे यूनियन के सम्मेलन की शुरूआत की जाएगी। 22 अक्तूबर को सम्मेलन में कार्यकर्ताओं के लिए वनाधिकार कानून संशोधन-2012 का दावा भरने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।                                                                

ऐ ख़ाकनशीनों उठ बैठो, वो वक़्त क़रीब आ पहुंचा है

   जब  तख़्त गिराए  जाऐंगे, जब ताज  उछाले  जाऐंगे - ''फै़ज़''


कैमूर मुक्ति मोर्चा, कैमूर क्षेत्र महिला-मज़दूर किसान संघर्ष समिति

अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन ;।प्न्थ्ॅच्द्ध


'बनेगी रामभक्तों की सरकार, सेकुलरों को देशनिकाला'

WEDNESDAY, 04 SEPTEMBER 2013 10:11

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विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ नेता और संरक्षक अशोक सिंघल का मानना है कि  राम-जन्मभूमि की हत्या 1528 में ही हो गई था. उसकी पुनर्प्रतिष्ठा जल्दी-से-जल्दी होनी चाहिए. इसी के लिये 25 अगस्त, 2013 से 13 सितम्बर, 2013 तक अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा की जन-जागरण-योजना बनाई गई. भगवान राम टाट में बैठे हैं और हम ठाट से. यह आन्दोलन भगवान राम को तम्बू से हटाकर एक भव्य मन्दिर में विराजमान करने की है. पेश है अशोक सिंघल से बातचीत के मुख्य अंश :

विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ नेता और संरक्षक अशोक सिंघल से राजीव गुप्ता की विशेष बातचीत

मीडिया और राजनीतिक दलों का विश्व हिन्दू परिषद पर यह आरोप है कि उसने आगामी लोकसभा चुनाव-2014 के निमित्त 84 कोसी परिक्रमा के नाम पर वोट-परिक्रमा का आयोजन किया. इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?


विहिप के वरिष्ठ नेता अशोक सिंघल से बातचीत करते राजीव गुप्ता

पंद्रह अगस्त, 1947 के दिन भारत को मात्र राजनीतिक स्वतंत्रता मिली थी. इसको पाने के लिए हमें बहुत संघर्ष करना पडा. 1857 से कहा जा सकता है यह संघर्ष अंग्रेजों के विरुद्ध शुरू हुआ. 1857 से लेकर 1947 तक संघर्ष के पीछे का मंत्र था – वन्देमातरम. जिस प्रकार 90 वर्ष के संघर्ष के बाद हमें राजनीतिक स्वतंत्रता मिली, उसी तरह अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये बहुत बडा आन्दोलन करना पडेगा. इसीलिये लगभग 1950 से यह राम-मन्दिर का आन्दोलन चल रहा है.

60 वर्ष बाद मुकदमे का जो फैसला आया है, उससे यह कह सकते हैं कि राम-मन्दिर का यह आन्दोलन हमारे देश की सांस्कृतिक – आज़ादी का आन्दोलन है. जिस प्रकार आज़ादी के आन्दोलन के पीछे कोई राजनीतिक दल नहीं था जिसके लिये लोग काम कर रहे थे, बल्कि आम जनता चाहती थी कि देश आज़ाद हो, इसलिए वह बिना किसी राजनीतिक दल की सदस्यता लिए सडको पर उतरी थी. उसी प्रकार आज धार्मिक स्वतंत्रता हमारा अधिकार है. हम सबको अपनी सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना चाहिए. जहाँ तक राम-जन्मभूमि का प्रश्न है तो यह कोई राजनीतिक-आन्दोलन नहीं है, बल्कि देश का धार्मिक और सांस्कृतिक आन्दोलन है. महर्षि अरविन्द ने ठीक ही कहा था कि हमें अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिये बहुत संघर्ष और बलिदान देना होगा. आज भी लोग कहते हैं कि विहिप के राम जन्मभूमि-आन्दोलन से बडा उन्होंने अपने जीवन में कोई आन्दोलन नहीं देखा. अभी उससे भी बडा आन्दोलन होने जा रहा है, जो हमें धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से स्वतंत्रता देगा.

राम जन्मभूमि आन्दोलन रामभक्तों का है. हमारी राम-जन्मभूमि की हत्या 1528 में ही हो गई था. उसकी पुनर्प्रतिष्ठा जल्दी-से-जल्दी होनी चाहिए. आज भी भगवान राम टाट में बैठे हैं और हम ठाट से. यह आन्दोलन भगवान राम को तम्बू से हटाकर एक भव्य मन्दिर में विराजमान करने का है. यही बात हमारे पूज्य संतों ने भी कुंभ में कही कि यह काम संसद में कानून बनाकर ही होगा. भारत सरकार इसके लिये प्रतिबद्ध भी है, क्योंकि 14 सितम्बर 1994 को भारत सरकार के महाधिवक्ता दीपंकर गुप्ता ने भारत सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में शपथपूर्वक सरकार की नीति को स्पष्ट करते हुए लिखित में बताया था कि 'यदि महामहिम राष्ट्रपति के प्रश्न का उत्तर सकारात्मक आता है अर्थात ढांचे के नीचे 1528 से पूर्व कोई हिन्दू मन्दिर/भवन था, तो भारत सरकार की कार्यवाही हिन्दू भावनाओं के समर्थन में होगी.'

'14 सितम्बर 1994 को भारत सरकार द्वारा शपथ-पत्र कर लिखित में जवाब देना'..कृपया इस बिन्दु को विस्तार से बतायें?

सात जनवरी 1993 को भारत सरकार ने शांति व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर संसदीय कानून बनाकर ढांचे के चारों ओर की 67 एकड भूमि का अधिग्रहण कर लिया. इसमें राम जन्मभूमि न्यास को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पट्टे पर दी गई 42 एकड भूमि भी थी, जबकि ढांचे वाले स्थान का क्षेत्रफल मात्र 12000 वर्गफीट ही है. अधिग्रहीत समस्त भूमि केवल हिन्दू समाज की है, जिसमें अनेक मन्दिर भी हैं. मुस्लिम समाज की लेशमात्र भूमि भी सरकार ने नहीं ली. सरकार ने अधिग्रहण का उद्देश्य घोषित करते हुए कहा कि इस भूमि में एक मन्दिर व एक मस्जिद तथा यात्रियों की सुविधाओं के स्थान निर्माण करेंगे.

सरकार के इस अधिग्रहण को मुस्लिम समाज ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी साथ ही तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने 1993 में संविधान की धारा 143 ए के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय से एक प्रश्न किया कि 'क्या ढांचे वाले स्थान पर 1528 के पहले कोई हिन्दू मन्दिर था?' कालांतर में न्यायालय ने लंबी सुनवाई के बाद अक्टूबर 1994 में विवादित भूखंड का अधिग्रहण रद्द कर विवादित भूखंड से संबंधित सभी मुकदमों के अंतिम न्यायिक निपटारे के लिए पुनर्जीवित कर दिया तथा शेष भूमि का अधिग्रहण स्वीकार कर लिया. विवादित भूमि के स्वामित्व निपटारा व राष्ट्रपति के प्रश्न का उत्तर का दायित्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय को सौंप दिया. परिणामत: राम जन्मभूमि-क्षेत्र में उत्खनन की प्रक्रिया शुरू हुई. महामहिम जी के प्रश्न पर और अधिक स्पष्टीकरण मांगने पर 14 सितम्बर 1994 को भारत सरकार द्वारा शपथ-पत्र कर लिखित में जवाब दिया गया.

विहिप का अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा के आयोजन का प्रयोजन क्या है?

कुंभ में पूज्य संतों ने कहा कि 480 वर्ष के संघर्ष के पश्चात यह ढांचा गिरा. उसके लिए 76 संघर्ष हुए जिसमें लाखों लोगों ने बलिदान दिया. साथ ही संतों ने यह भी कहा कि 84 कोसी परिक्रमा-क्षेत्र में हम कोई भी बाबरी-प्रतीक नहीं बनने देंगे. इसके लिए हम जन-जागरण करेंगे. इसलिए विहिप ने अयोध्या की यह 84 कोसी परिक्रमा का अभियान लिया और अयोध्या की यह 84 कोसी परिक्रमा हमारा धार्मिक अधिकार भी है.

अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा एक परंपरागत सदियों से चली आ रही परिक्रमा है. 84 कोसी परिक्रमा के लिये विहिप ने संतों के लिए एक योजना बनाई. योजना बनी थी कि हर प्रांत से 200 संत आयेंगे अपने हिस्से की परिक्रमा करेंगे. वहाँ के स्थानीय लोग अलग प्रांत से आए हुए संतों का दर्शन कर सकें, इसके लिए वहाँ की स्थानीय जनता की भागीदारी से ही मात्र दो जगहों पर कार्यक्रम प्रस्तावित थे. बाद में भगवान राम का दर्शन कर संत वापस अपने प्रांत में चले जायेंगे. कुछ ही संत पूरी 84 कोसी परिक्रमा में चलेंगे.

जहाँ तक जानकारी है विहिप ने इससे पहले कभी भी अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा नहीं की. ऐसे में क्या यह मान लिया जाये कि अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा की योजना विहिप ने जल्दबाजी में बनाई?

मैंने 5 अप्रैल 2010 को हरिद्वार-कुंभ में एक चिंता व्यक्त की थी कि राम-जन्मभूमि का विषय पिछले 18 वर्षों से सुप्त पडा है. आज की पीढी इससे परिचित ही नहीं है. इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही हमें आगामी जन-जागरण की योजना बनानी होगी. इसी को ध्यान में रखकर ही 25 अगस्त, 2013 से 13 सितम्बर, 2013 तक अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा की जन-जागरण-योजना बनाई गई. परमात्मा ने अपना काम आज़म खान से करवा लिया. अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा के बारे में देश-दुनिया सबको पता चल गया.

अखिलेश सरकार ने विहिप पर नया परिक्रमा मार्ग बनाने का आरोप लगाया है. इस पर आपकी प्रतिक्रिया?

वर्षा ऋतु के समय सरयू नदी का जलस्तर बढ जाता है और इस समय सरयू का जलस्तर बढा हुआ है. अत: सरयू का जलस्तर बढा जाने के कारण नाव से सरयू नदी पार करना संभव नहीं है. इसको ध्यान में रखते हुए बाराबंकी में टिकैतपुर गांव से लेकर गोंडा तक का हमने एक नया मार्ग बनाया. 17 अगस्त, 2013 को जब एक प्रतिनिधि मंडल मुलायम सिंह यादव से मिलने गया था, तो इस नये मार्ग के विषय पर चंपतराय जी ने अखिलेश यादव से बात भी की थी. इतना ही नहीं, मैंने खुद मुलायम सिंह यादव से कहा था कि इस नए मार्ग में हमारा कोई पडाव नहीं होगा. मुलायम सिंह यादव ने भी हमें यह आश्वासन दिया था कि इस विषय पर वे अधिकारियों से चर्चा करेंगे, मगर परिक्रमा पर रोक लगाने जैसी तो कोई बात मुलायम सिंह यादव ने की ही नहीं थी.

सुनने में आया है कि आपने रामजन्म भूमि के लिये देशभर में जन-जागरण करने को 18 अक्टूबर, 2013 को भी कोई कार्यक्रम तय किया है. उस नए कार्यक्रम के बारे में बतायें?

18 अक्टूबर, 2013 को तो बहुत बडा कार्यक्रम होगा. संघ के सहयोग से लगभग एक लाख गांवों में कार्यक्रम होंगे. संसद के माध्यम से अयोध्या में राम-जन्मभूमि पर भगवान राम का भव्य मन्दिर निर्माण हो तथा अयोध्या के 84 कोसी परिक्रमा-क्षेत्र में बाबरी-प्रतीक नहीं बनने दिया जायेगा, लाखों गांवों के करोडों लोग यह संकल्प लेंगे. एक बडा कार्यक्रम अयोध्या के सरयू के तट पर होगा. इस बडे कार्यक्रम में भी लोग हाथो में जल लेकरसंकल्प करेंगे.

अगर अखिलेश सरकार ने 84 कोसी परिक्रमा की तरह फिर से रोडा अटकाने की कोशिश की तो?

क्या करेंगे मुलायम सिंह? मारेंगे? गोली चलायेंगे? वो जो भी करेंगे, उन्हें उसका परिणाम भोगना पडेगा. संतों को जेल में डालेंगे, उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट देंगे तो संत चुप बैठेंगे क्या? संत फिर ऐसा महाजनजागरण करेंगे, जो अभी तक कभी नहीं हुआ. जन-जागरण भी होगा और आन्दोलन भी. यह भी संभव है कि 18 अक्टूबर के बाद और भी कोई बडा आन्दोलन हो.

चर्चा है कि नरेद्र मोदी को 2014 में प्रधानमंत्री बनाने के लिए ही विहिप ऐसे कार्यक्रम कर रही है, क्योंकि इन कार्यक्रमों से वोटों का धुर्वीकरण होगा, जिसका फायदा बीजेपी को सीधे-सीधे मिलेगा. इस पर आपका मंतव्य?

जिस प्रकार से देश की आज़ादी के लिये इतना बडा आन्दोलन किसी राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि देश को आज़ाद कराने के लिए हुआ था उसी प्रकार देश की धार्मिक-सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिये राम-जन्मभूमि का यह आन्दोलन हो रहा है, न कि किसी राजनीतिक दल के लिए. हाँ इस राम-जन्मभूमि आन्दोलन का जो समर्थन करेगा, उसे यश मिलेगा और जो विरोध करेगा उसे अपयश. बस इतनी सी बात है.

कुछ संतों ने भी विहिप की इस अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा पर प्रश्नचिन्ह खडा किया है. उनका तर्क है भगवान राम ने रावण का वध भी चतुर्मास में नहीं किया था, तो विहिप नई परंपरा क्यों डाल रही है?

कुछ संत ही ऐसा कहते होंगे, पर सभी संत ऐसा नहीं कहते. खासकर अयोध्या में कोई संत चतुर्मास नहीं करता है. हरिद्वार में भी हमें विरले ही संत मिले जो चतुर्मास करते हैं.

कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने 'मैच-फिक्सिंग' कहकर और बसपा ने सपा-विहिप (भाजपा) पर साठगाँठ का आरोप लगाया है?

आज़ादी-आन्दोलन में इतने लोग कुर्बान हो गये. क्या उन देशभक्तों में भी किसी प्रकार की कोई साठगाँठ थी. ऐसे बेहूदा लोगों की बातों पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता.

आपने जन-जागरण के निमित्त अयोध्या की 84 कोसी यात्रा का आयोजन किया, मगर अखिलेश सरकार ने इस यात्रा का दमन करने में कोई कसर नहीं छोडी?

स्वराज आन्दोलन को दमन करने में अंग्रेज सरकार ने भी कोई कसर नहीं छोडी थी. उसी प्रकार धार्मिक-सांस्कृतिक आज़ादी के लिए राम-जन्मभूमि आन्दोलन का जितना दमन किया जायेगा उतना ही राम-जन्मभूमि आन्दोलन विकराल रूप धारण करता जाएगा. जिस प्रकार "अंग्रेजों भारत छोडो" करके अंग्रेजों को भारत से निकाल दिया गया, उसी प्रकार हम भी "क़्विट इंडिया" करके भारत से तथाकथित सेकुलरों का देश में बहिष्कार कर देंगे.

अयोध्या सहित देश में इतने अधिक मन्दिर हैं. परंतु विहिप मथुरा, काशी और अयोध्या के मन्दिर की ही बात क्यों करती है?

बडे–बडे राजे-रजवाडों ने वहाँ बहुत ही कलात्मक ढंग से मन्दिर बनवाए थे. उनका रखरखाव वहाँ के रजवाडों से किया जाता था. आज जब सभी राजे-रजवाडे खत्म हो गए, तो उन मन्दिरों का रखरखाव करने का जिम्मा सत्ता का है. परंतु आज मन्दिरों के पुनरोद्धार की तरफ कोई ध्यान ही नहीं देता. करोडों रूपए आज इन मन्दिरों के पुनरोद्धार में लगेंगे. हमें अब ऐसी सत्ता चाहिए, जो देश के मन्दिरों का पुनरोद्धार करवा सके. किसी सत्ताधारी ने इस गंभीर विषय पर कभी ध्यान ही नहीं दिया.

अयोध्या की इस 84 कोसी परिक्रमा में तुलसीदास के गुरुजी के मन्दिर समेत भगवान राम के ऐसे अनेक मन्दिर आते हैं, जिन्हें कोई जानता ही नहीं है. देश को भगवान राम-कृष्ण-शंकर के बारे में पता चलना ही चाहिए. इस देश में अब रामभक्तों की सरकार बनेगी, सेकुलर इस देश से चला जायेगा.

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-07-00/4284-banegi-rambhkton-kee-sarkar-sekulron-ko-deshnikala-by-rajeev-gupta-for-janjwar


डौंडियाखेड़ा के बहाने डौंडिया लाइव

FRIDAY, 18 OCTOBER 2013 23:16

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आखिर कौन लोग है जिन्होंने पुरातत्व विभाग को डौंडियाखेड़ा में एक बाबा के वचन की सत्यता को परखने के काम पर लगा दिया है ? कहीं ये वही लोग तो नहीं, जिन्होंने इस विभाग को 'बताओ! मंदिर या मस्जिद?' के काम में जुटा दिया था...

रजनीश कुमार

ये सच है कि एक जमाने में पुरातत्वशास्त्रियों और सेधंमारों के बीच का अंतर बहुत अधिक नहीं था. उन्नीसवीं शताब्दी की शुरूआत में पुरातत्वशास्त्री के भेस में घूमने वाले लोगों को कुछ खास चीजों की तलाश थी. बगैर किसी खास योजना के ये उन जगहों पर जाते, जहाँ उन्हें उसके मिलने की आशंका होती या जिसके बारे में उन्होंने स्थानीय लोगों से कुछ सुना होता.

फिर शुरू होता बेतरतीब खुदाई का दौर, जिसमें पूरा ध्यान उन चीजों की तरफ रहता जिनकी तलाश में वे खुदाई कर रहे होते. असंबद्ध या मामूली दिख पड़ने वाली चीजों को यूँ ही फेंक दिया जाता था. मनमाफ़िक चीजें मिलीं तो ठीक वरना आगे कहीं और कूच कर जाते. पीछे छोड़ जाते बुरी तरह से तितर-बितर हो चुका पुरास्थल जिसके स्तर-विन्यास का पता लगा पाना भी कई बार मुश्किल होता.

खुदाई में मिली 'चीजें' या तो तथाकथित खुदाई अभियान के लिए धन देने वाले रईसों के घरों की शोभा बनतीं या तस्करों की मार्फ़त निजी या राष्ट्रीय संग्राहालयों तक पहुँचती. मौका लगने पर ऐसे पुरातत्वशास्त्री अपनी सरकारों के लिए जासूसी भी कर लेते थे. पुरास्थल या उससे प्राप्त चीजों के साथ जुड़ी स्थानीय भावनाओं से उन्हें अधिक लेना-देना नहीं था.

बेशक आज जमाना बदला है. पुरातत्व अब सेंधमारों और कब्र-चोरों के हाथ से निकल कर विज्ञान का दर्जा प्राप्त कर चुका है. आजकल मनमाफिक 'चीजों' की तलाश के लिए नहीं, बल्कि एक शोध-समस्या को सामने रखकर खुदाई अभियानों की योजना बनाई जाती है. मामूली लगने वाली चीज की भी उतनी ही अहमियत होती है जितनी किसी कलात्मक वस्तु या मूल्यवान धातु से बनी चीज की.

स्तर-विन्यास का ध्यान दिया जाता है और प्राप्त चीजों का '3-डी' लेखा-जोखा रखा जाता है. पुरातत्व अब पुरानी वस्तुओं के संग्रह का शग़ल न रहकर मानव इतिहास के विभिन्न चरणों की समग्र तस्वीर प्रस्तुत करने का माध्यम बन चुका है.

लेकिन डौंडियाखेड़ा के घटनाक्रम ने ये साबित कर दिया है कि न सिर्फ वहाँ जमा हुए अनपढ़ तमाशबीन, बल्कि तमाम पढ़े-लिखे लोग भी पुरातत्व को ख़जाना खोजने की कयावद ही समझते हैं. समस्यापरक पुरातत्व इनके लिए कोई मानो है ही नहीं. आखिर कौन लोग है जिन्होंने पुरातत्व विभाग को एक बाबा के वचन की सत्यता को परखने के काम पर लगा दिया है ? कहीं ये वही लोग तो नहीं जिन्होंने इस विभाग को 'बताओ! मंदिर या मस्जिद?' के काम में जुटा दिया था.

इस मामले में नेतानगरी और बाबानगरी के बीच का संबंध कुछ-कुछ खुलने लगा है. चरणदास महंत नाम के एक प्राणी की भूमिका काफ़ी संदिग्ध मानी जा रही है. कौन हैं ये चरणदास महंत? वही जिन्होंने एक बार कहा था कि अगर सोनिया गाँधी मुझे छत्तीसगढ़ के प्रदेश काग्रेस कार्यालय में झाड़ू लगाने के लिए कहें, तो वे ऐसा करेंगे.

जी हाँ, वही चरणदास महंत जो केंद्र में कृषि और खाद्य-प्रसंस्करण राज्यमंत्री हैं. इस इलाके में मंत्रीवर के 22 सितम्बर और फिर 7 अक्तूबर के दौरे से ये सारा खेल शुरू हुआ. इससे पहले शोभन सरकार के सपने के बारे में कोई भी नहीं जानता था. कानपुर के किसी पंडज्जी ने मंत्रीजी को बताया और मंत्रीजी ने फिर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और जिओलॉजिकल सर्वे के लोगों को लपेटे में लिया और यहीं से शुरू हो गया एक नया कार्यक्रम – डौंडिया लाइव!

(रजनीश कुमार जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं.)

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-08-56/81-blog/4434-dondiyakheda-ke-bahane-dondiya-live-for-janjwar-by-rajnish-kumar


रियासत डौंडिया खेड़ा के सोने का दस्तावेजों में नहीं जवाब

लखनऊ। उन्नाव का राजा राव रामबक्स सिंह का किला खजाने को लेकर आज चर्चा के सातवें आसमान पर है। जैसे-जैसे पुरातत्व विभाग की खोदाई की तैयारियां तेज हो रही हैं, क्षेत्रवासियों की उत्सुकता बढ़ती जा रही है। किले में कितना खजाना निकलेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, पर इस सवाल पर कयासों और संभावनाओं का बाजार गर्म है। एक लाख, दो लाख.., नहीं कई लाख टन.., के अंदाज तक पहुंच चुके आकलनों के बीच बुद्धिजीवी भी खजाने के रहस्य को सवालों में मथ रहे हैं.. क्या दो दर्जन गावों की रियासत के पास इतना होगा? इतनी समृद्ध रियासत थी तो अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए एक ताकतवर फौज क्यों नहीं तैयार हो सकी?

ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की टीम ने भी वहां 'कुछ' होने के संकेत तो दिये हैं लेकिन क्या और कितना है, यह जवाब उसके पास भी नहीं। जिलाधिकारी वीके आनंद का कहना है, धरती के गर्भ में जाने के बाद सब पता चलेगा। खुदाई में जो भी निकले लेकिन रियासत में इतना सोना होने के कोई दस्तावेजी सबूत नहीं मिल रहे। रियासत के कई गांव समृद्ध जरूर बताए गए हैं, लेकिन यहां कोई ऐसा कमाई का जरिया नहीं था जिससे यह कहा जाए कि कर के रूप राजा को बहुत प्राप्त हो रहा था। यहां के लोग मूल रूप से खेती करते थे। यह भी उल्लेख नहीं है कि राजा कर के रूप जनता पर बड़ा बोझ लादते थे जिससे खजाने भरे थे।

हालांकि फांसी के लिए राजा के खिलाफ अभियोग में प्रस्तुत साक्ष्यों के हवाले से कुछ तथ्य जरूर प्रकाश में आए हैं। 1857 की क्रांति के पहले से राव राम बक्स सिंह के बिठूर के नाना साहब से घनिष्ठता थी। राजा साहब की कानपुर में एक कोठी व सोने-चांदी की विशाल दुकान थी। राजा राव बक्स सिंह ने अधिकांश सामान नाव द्वारा जलमार्ग से मंगवा कर डौंडियाखेड़ा में रख लिया था। नाना राव की रियासत से बहुत सारा खजाना यहां आया था। मुकदमे के दौरान अंग्रेजों को रियासत में खजाना गड़े होने का भान था। इसके लिए उन्होंने उनके विश्वास पात्र शीतल सिंह को जिन्हें इसके बारे में पता भी था, से पकड़े जाने के बाद काफी पूछा था और नहीं बताने पर फांसी दे दी थी। राजा के खिलाफ चले मुकदमे के एक अभिलेख में लिखा है कि आंगन में नारंगी वृक्ष के नीचे उनके पूर्वजों ने खजाना गाड़ा था। बाद में इस खजाने का क्या हुआ पता नहीं।

यह रियासत बनारस के बाद छोटी काशी के रूप मे जानी जाती थी। डौंडियाखेड़ा, बक्सर, पनई, पनहन शिवालयों और मां गंगा के उत्तर वाहिनी प्रवाह के चलते यह काशी के समतुल्य माना जाता है। इस लिए उस समय यहां के मंदिरों को बहुत दान मिलता था।



डौंडियाखेड़ा। उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिला स्थित डौंडियाखेड़ा गांव में राजा राव रामबख्श सिंह के किले में खजाना दबे होने की उम्मीद खत्म होते देख लोगों की दिलचस्पी कम हो गई है। हजार टन सोने की चमक देखने के लिए पहुंचने वाला लोगों का मजमा अब खुदाई के तीन दिन बीतने पर नदारद है। भीड़ के नाम पर अब केवल सुरक्षाकर्मी और मीडियाकर्मी ही बचे हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा 18 अक्टूबर को राजा राव रामबख्श सिंह के खंडहरनुमा किले की खुदाई करने की खबर सामने आने से लोगों के मन में उत्सुकता बढ़ने लगी थी। किले पर लोगों का जमावड़ा लगने लगा। प्रशासन ने सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी। खुदाई होने के एक दिन पहले से डौंडियाखेड़ा में मेला लग गया। देश-विदेश से मीडियाकर्मी पल-पल की खबर देने के लिए पहुंच गए। आसपास के सैकड़ों लोगों के अलावा पड़ोस के लखनऊ, रायबरेली, फतेहपुर, कानपुर, बांदा, सुल्तानपुर जिलों के लोग भी सोने की चमक देखने पहुंच गए। खंडहर में बाजार सज गया।

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..तो इसलिए यमुना एक्स.-वे पर होते है इतने हादसे

Published on Oct 21, 2013 at 13:32 | Updated Oct 21, 2013 at 14:00

नई दिल्ली। यमुना एक्सप्रेस-वे लगातार हादसों के लिए बदनाम होता जा रहा है। इस सड़क पर हर महीने 50 से 60 हादसे होते हैं। इन हादसों के पीछे तेज रफ्तार और शराब का नशा बड़ी वजह है। लेकिन एक्सप्रेस-वे पर पुलिस की गैरमौजूदगी के चलते लोग ट्रैफिक कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं। जिसके चलते हादसों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

देश की राजधानी दिल्ली को मोहब्बत की निशानी ताजमहल से जोड़ने वाला यमुना एक्सप्रेस-वे अत्याधुनिक तकनीक से बनी 6 लेन की शानदार सड़क है। इस सड़क पर उतरते हैं तो रफ्तार की सुई कहां है किसी की नजर ही नहीं जाती है। नतीजा, देखते ही देखते मौज का सफर मौत के सफर में बदल जाता है।

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कश्मीर सिर्फ भारत-पाकिस्तान का मसला है: शिंदे

Published on Oct 21, 2013 at 13:27

नई दिल्ली। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसले के समाधान में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं हो सकती। शिंदे ने संवाददाताओं से कहा कि कश्मीर के मसले पर भारत का रुख पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से ही स्पष्ट है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच का मसला है और इसको सुलझाने में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं हो सकती।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने संकेत दिया है कि वह अमेरिका से कश्मीर मसले को सुलझाने में मदद का अनुरोध कर सकते हैं। लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि वह कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का ही मसला मानता है जिसे दोनों देशों को आपस में सुलझाना चाहिए।

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गृह मंत्री कल सांबा सेक्टर का दौरा करेंगे

Published on Oct 21, 2013 at 13:07 | Updated Oct 21, 2013 at 13:08

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंद ने सोमवार को कहा कि वह मंगलवार को जम्मू कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के सांबा सेक्टर का दौरा करेंगे। यहां पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया था। शिंदे ने कहा कि मैं 22 अक्टूबर को स्थिति का जायजा लेने के लिए सांबा सेक्टर जा रहा हूं। सांबा सेक्टर से हाल में संघर्ष विराम के उल्लंघन की कई घटनाएं सामने आई हैं।

गृह मंत्री ने यह भी कहा कि घुसपैठ की कोशिश को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। शिंदे ने कहा कि हमें घुसपैठ की कई कोशिशों की सूचना मिली है, लेकिन जिस तरह भारत सरकार आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठा रही है, वह देश के काफी अंदर नहीं आ सकते। उन्होंने कहा कि यहां कुछ स्थान हैं, जहां से वे घुसपैठ करते हैं, ऐसे इलाकों में हमारी चौंकियां नजर रख रही हैं। इधर, रविवार रात को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की 13 चौंकियों पर पाकिस्तान की तरफ से गोलीबारी की गई थी।

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नारायण साईं को पहचान नहीं पाया पुजारी!

Published on Oct 21, 2013 at 12:58 | Updated Oct 21, 2013 at 16:08

नई दिल्ली। सूरत में दर्ज हुए बलात्कार के केस के बाद से फरार चल रहे आसाराम के बेटे नारायण साईं को मध्य प्रदेश के शिवनी शहर में देखा गया है। साईं अपने तीन साथियों के साथ शिवनी के बंजारी माता मंदिर की धर्मशाला में एक रात के लिए ठहरा था। ये दावा किया है मंदिर के पुजारी ने।

नारायण साईं को शनिवार रात को मध्य प्रदेश के शिवनी शहर में देखा गया था। शिवनी के छपारा के बंजारी माता के मंदिर की धर्मशाला के पुजारी अनिल का दावा है कि शनिवार रात नारायण साईं ने अपने तीन साथियों के साथ रात बिताई और रविवार की सुबह इनोवा गाड़ी से निकल गया। मंदिर के पुजारी अनिल के मुताबिक नारायण के दाढ़ी और सिर के बाल मुंड़े हुए थे। इसलिए उन्होंने नारायण साईं को देर से पहचाना।

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आसाराम की खबरों पर रोक से SC का इनकार

Published on Oct 21, 2013 at 12:44 | Updated Oct 21, 2013 at 14:04

नई दिल्ली। यौन शोषण और रेप के केस में फंसे आसाराम को सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली। आसाराम ने कोर्ट में कथित मीडिया ट्रायल के खिलाफ अर्जी दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम से जुड़ी खबरों पर रोक से इनकार करते हुए मीडिया को सावधानी से खबर चलाने और पुराने गाइडलाइन के मुताबिक काम करने की सलाह दी।

सुनवाई के बाद आसाराम के वकीलों ने बताया कि आज सुप्रीम कोर्ट में हम लोगों ने मीडिया ट्रायल के खिलाफ याचिका दायर की थी। कोर्ट ने कहा हि गाइडलाइन को फॉलो करना होगा। हमें कोर्ट ने छूट दी है कि अगर मीडिया फॉलो नहीं करता है तो हम कोर्ट में शिकायत के लिए स्वतंत्र हैं। हमने कुछ उदाहरण भी दिए थे कि कैसे आधाररहित बयान मीडिया दिखाता है।

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पाकिस्तान को सख्त जवाब दे केंद्र सरकार:उमर

Published on Oct 21, 2013 at 12:34

नई दिल्ली। एलओसी पर पाकिस्तान की तरफ से लगातार फायरिंग जारी है। जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने इसका कड़ा विरोध करते हुए भारत सरकार से पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की है। साथ ही बातों के अलावा कुछ और रास्ते तलाशने की भी बात कही। उमर ने कहा कि आतंकवादियों की कोशिश रहती है कि हमारा हौसला टूटे, इसीलिए इस साल पैरामिलिटरी और पुलिस के जवानों को निशाना बनाया गया।

उमर ने कहा कि हम बड़ी से बड़ी कुर्बानी देकर भी इस मंसूबे को सफल नहीं होने देंगे। मैं लोगों को यकीन दिलाना चाहूंगा कि हर कदम उठाया जाएगा। साथ ही हम चाहते हैं कि इस मसले को पाकिस्तान के साथ सख्त तरीके से उठाएं। हम फिर सिर्फ बातों से जवाब नहीं देंगे, हमें और रास्ते अपनाने होंगे।

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कश्मीर में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता मंजूर नहीं: शिंदे

Published on Oct 21, 2013 at 12:21 | Updated Oct 21, 2013 at 12:22

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सोमवार को कश्मीर मामले में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से इंकार किया है। शिंदे का यह बयान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के रविवार को दिए गए उस वक्तव्य के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिकी हस्तक्षेप कश्मीर मसले का समाधान कर सकता है।

गृहमंत्री ने सोमवार को कहा कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मसला है, तीसरा देश इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। हमारा यह रुख जवाहर लाल नेहरू के समय से रहा है। नवाज शरीफ अमेरिका के तीन दिवसीय आधिकारिक दौरे पर हैं, जहां वह राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात करेंगे।

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साईं के चेलों ने दी DCP को मारने की धमकी

Published on Oct 21, 2013 at 10:23 | Updated Oct 21, 2013 at 13:35

नई दिल्ली। यौन शोषण के आरोप में आसाराम के बेटे नारायण साईं पर एक के बाद एक आरोपों का पुलिंदा खुलता चला जा रहा है। नारायण साईं के साधकों ने बलात्कार मामले की तफ्तीश में जुटी सूरत की डीसीपी शोभा भूतड़ा को जान से मारने की धमकी दी है। डीसीपी शोभा ने उमरा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है कि 16 और 18 अक्टूबर की रात कुछ लोगों ने उसे फोन करके धमकी दी कि अगर वो नारायण साईं के खिलाफ कोई कार्रवाई करेंगी तो वो उन्हें जान से मार देंगे। उच्च अधिकारियों से बात करने के बाद डीसीपी ने ये रिपोर्द दर्ज कराई।

गौरतलब है कि डीसीपी शोभा भूतड़ा की निगरानी में आसाराम के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। सूरत की डीसीपी पूरे केस की जांच पड़ताल कर रहीं है। डीसीपी ने आसाराम समर्थकों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी है। पुलिस इस मामले की जांच में जुट गई है।

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दिल्ली में भूंकप के हल्के झटके, नुकसान नहीं

Published on Oct 21, 2013 at 09:29

नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली समेत अन्य उत्तर भारतीय क्षेत्र आज तड़के भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के अनुसार रिक्टर पैमाने इस भूकंप की तीव्रता 5.4 मापी गई। भूकंप में हल्के झटके राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर के कारगिल, लेह सहित चीन के होतान और पाकिस्तान के इस्लामाबाद तक महसूस किए गए।

भूकंप से भारत में किसी तरह के जानमाल की नुकसान की खबर नहीं है। भूकंप का अधिक केंद्र जम्मू-कश्मीर सीमावर्ती क्षेत्र थांग में था।

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