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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, November 27, 2013

पहले लड़की से, अब साहस से बलात्‍कार कर रहे हैं


♦ अरुधंती रॉय

पहले लड़की से, अब साहस से बलात्‍कार कर रहे हैं

तरुण तेजपाल के कुकृत्‍यों पर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधती रॉय ने अपनी चुप्‍पी तोड़ी है। उन्‍होंने एक बयान जारी किया, जिसका हिंदी अनुवाद युवा लेखक, संस्‍कृति-विश्‍लेषक रेयाज़-उल-हक ने अपने ब्‍लॉग हाशिया पर किया है। रेयाज़ पहले तहलका में थे, पर उन्‍होंने थोड़े दिनों बाद ही तहलका से खुद को अलग कर लिया और स्‍वतंत्र रूप से लिखने-पढ़ने का काम करने लगे : मॉडरेटर

रुण तेजपाल उस इंडिया इंक प्रकाशन घराने के पार्टनरों में से एक थे, जिसने शुरू में मेरे उपन्यास "गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स" को छापा था। मुझसे पत्रकारों ने हालिया घटनाओं पर मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही है। मैं मीडिया के शोर-शराबे से भरे सर्कस के कारण कुछ कहने से हिचकती रही हूं। एक ऐसे इंसान पर हमला करना गैरमुनासिब लगा, जो ढलान पर है, खास कर जब यह साफ साफ लग रहा था कि वह आसानी से नहीं छूटेगा और उसने जो किया है, उसकी सजा उसकी राह में खड़ी है। लेकिन अब मुझे इसका उतना भरोसा नहीं है। अब वकील मैदान में आ खड़े हुए हैं और बड़े राजनीतिक पहिये घूमने लगे हैं। अब मेरा चुप रहना बेकार ही होगा, और इसके बेतुके मतलब निकाले जाएंगे।

तरुण कई बरसों से मेरे एक दोस्त थे। मेरे साथ वे हमेशा उदार और मददगार रहे थे। मैं तहलका की भी प्रशंसक रही हूं, लेकिन मुद्दों के आधार पर। मेरे लिए तहलका के सुनहरे पल वे थे, जब इसने आशीष खेतान द्वारा गुजरात 2002 जनसंहार के कुछ गुनहगारों पर किया गया स्टिंग ऑपरेशन और अजित साही की सिमी के ट्रायलों पर की गयी रिपोर्टिंग को प्रकाशित किया। हालांकि तरुण और मैं अलग अलग दुनियाओं में रहते हैं और हमारे नजरिये (राजनीति भी और साहित्यिक भी) भी हमें एक साथ नहीं लाते और जिससे हम और दूर चले गये। अब जो हुआ है, उसने मुझे कोई झटका नहीं दिया, लेकिन इसने मेरा दिल तोड़ दिया है।

तरुण के खिलाफ सबूत यह साफ करते हैं कि उन्होंने 'थिंकफेस्ट' के दौरान अपनी एक युवा सहकर्मी पर गंभीर यौन हमला किया। 'थिंकफेस्ट' उनके द्वारा गोवा में कराया जाने वाला 'साहित्यिक' उत्सव है। थिंकफेस्ट को खनन कॉरपोरेशनों की स्पॉन्सरशिप हासिल है, जिनमें से कइयों के खिलाफ भारी पैमाने पर बुरी कारगुजारियों के आरोप हैं। विडंबना यह है कि देश के दूसरे हिस्सों में 'थिंकफेस्ट' के प्रायोजक एक ऐसा माहौल बना रहे हैं, जिसमें अनगिनत आदिवासी औरतों का बलात्कार हो रहा है, उनकी हत्याएं हो रही हैं और हजारों लोग जेलों में डाले जा रहे हैं या मार दिये जा रहे हैं। अनेक वकीलों का कहना है कि नये कानून के मुताबिक तरुण का यौन हमला बलात्कार के बराबर है।

तरुण ने खुद अपने ईमेलों में और उस महिला को भेजे गये टेक्स्ट मैसेजों में, जिनके खिलाफ उन्होंने जुर्म किया है, अपने अपराध को कबूल किया है। फिर बॉस होने की अपनी अबाध ताकत का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने उससे पूरे गुरूर से माफी मांगी, और खुद अपने लिए सजा का एलान कर दिया – अपनी 'बखिया उधेड़ने' के लिए छह महीने की छुट्टी की घोषणा – यह एक ऐसा काम है, जिसे केवल धोखा देने वाला ही कहा जा सकता है। अब जब यह पुलिस का मामला बन गया है, तब अमीर वकीलों की सलाह पर, जिनकी सेवाएं सिर्फ अमीर ही उठा सकते हैं, तरुण वह करने लगे हैं, जो बलात्कार के अधिकतर आरोपी मर्द करते हैं – उस औरत को बदनाम करना, जिसे उन्होंने शिकार बनाया है और उसे झूठा कहना।

अपमानजनक तरीके से यह कहा जा रहा है कि तरुण को राजनीतिक वजहों से 'फंसाया' जा रहा है – शायद दक्षिणपंथी हिंदुत्व ब्रिगेड द्वारा। तो अब एक नौजवान महिला, जिसे उन्होंने हाल ही में काम देने लायक समझा था, अब सिर्फ एक बदचलन ही नहीं है बल्कि फासीवादियों की एजेंट हो गयी? यह एक और बलात्कार है – उन मूल्यों और राजनीति का बलात्कार जिनके लिए खड़े होने का दावा तहलका करता है। यह उन लोगों की तौहीन भी है, जो वहां काम कर रहे हैं और जिन्होंने अतीत में इसको सहारा दिया था। यह राजनीतिक और निजी, ईमानदारियों की आखिरी निशानों को भी खत्म करना है। मुक्त, निष्पक्ष, निर्भीक। तहलका खुद को यह बताता है। तो साहस अब कहां है?

(अरुंधती रॉय। विचारक। उपन्‍यासकार। मानवाधिकार कार्यकर्ता। गॉड ऑफ स्‍मॉल थिंग्‍स के लिए बुकर पुरस्‍कार मिला। उनसे perhaps@vsnl.net पर संपर्क किया जा सकता है।)

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