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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, November 22, 2013

इस बार कत्ल हुआ और खून भी न बहा

इस बार कत्ल हुआ और खून भी न बहा


आनन्द स्वरूप वर्मा / नरेश ज्ञवाली

नेपाल में संविधान सभा चुनाव काठमांडो, 21 नवम्बर। नेपाल में, जहाँ राजतन्त्र का विस्थापन कर गणतन्त्र स्थापित हुये महज 5 वर्ष हुये हैं, दो बार संविधान सभा का चुनाव सम्पन्न हो चुका है। पहले संविधान सभा चुनाव की तुलना में मतदाताओं का प्रतिशत ज्यादा होने के आँकड़ों के बीच नेपाल मेंअघोषित सैन्य 'कू' (तख्‍़तापलट) कर दिया गया है। इस बात को लेकर नेपाल में शान्ति प्रक्रिया में शामिल मुख्य पार्टी तथा हाल में पहली पार्टी के रूप में स्थापित एकीकृत नेकपा (माओवादी) ने अपने को चुनावी प्रक्रिया से अलग कर लिया है और इस पूरी प्रक्रिया की निष्पक्ष छानबीन की माँग की है।

21 नवम्बर बृहस्पतिवार की सुबह 3 बजे एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मतगणना में शामिल देश भर के अपने नेता-कार्यकर्ताओं को माओवादी पार्टी ने चुनावी प्रक्रिया से अलग होने को कहा है। पार्टी के प्रवक्ता अग्नि सापकोटा द्धारा जारी विज्ञप्ति में चुनाव में 'गम्भीर किस्म की धांधली' होने की बातों पर जोर देते हुये समग्र मतगणना प्रक्रिया को बीच में ही रोकने के लिये इलेक्शन कमीशन को कहा है। विज्ञप्ति जारी करने से पहले सुबह 2 बजकर 30 मिनट पर माओवादी के अध्यक्ष प्रचण्ड के निवास में पदाधिकारियों की बैठक हुयी थी।

19 तारीख को चुनाव शान्तिपूर्ण ढँग से होने तक बात ठीक-ठाक थी लेकिन मतदान के बाद मुल्क भर से संकलन की गयी सारी की सारी मतपेटिकाओं को सेना के बैरक में ले जाया गया। मतपेटिकाओं को सेना के बैरक में 12 घण्टों से अधिक समय तक रखा गया, जिसके बाद दूसरे दिन (20 नवम्बर) को ही मतपेटिकाओं को खोल कर मतगणना शुरू हुयी। इस बार के संविधान सभा के चुनाव से पहले मतदान के दिन से ही मतगणना का काम शुरू हो जाता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।

माओवादी हेडक्वार्टर में देश भर की रिपोर्ट जमा होते-होते रात के 12 बज चुके थे जिसमें अधिकांश जिलों से माओवादी की कम्प्लेन आनी शुरू हो गयी थी। माओवादियों का मानना है कि इस पूरी प्रक्रिया में नेपाली सेना के साथ अंतरराष्‍ट्रीय शक्तियों की संलग्नता है। उन्‍हें यह भी आशंका है कि सेना की बैरक में ही मतपेटिकाओं और मतपत्रों के साथ छेड़छाड़ की गयी है। माओवादी वह पार्टी है जिसके नेतृत्व में दस वर्ष तक नेपाल में हथियारबंद जनयुद्ध हुआ तथा जिसने शान्तिपूर्ण राजनीति में प्रवेश कर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाया। यहाँ यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि माओवादी पार्टी ने ही नेपाल में सबसे ज्यादा संविधान सभा के चुनाव की माँग की थी और इसके खिलाफ अनेक शक्ति केन्द्रों ने माओवादियों के खिलाफ संसदीय दलों को मजबूत करने के लिये समय–समय पर अपनी सक्रियता भी दिखाई है।

आनंद स्वरूप वर्मा, लेखक वरिष्ठ पत्रकार व विदेश नीति के एक्सपर्ट हैं। समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक हैं।

चुनाव सम्पन्न होने तक विभिन्न स्तर पर यह आकलन किया जा रहा था कि माओवादी पहली पार्टी के रूप में उभर कर सामने आयेगी, यद्यपि माओवादियों के प्रति जनता का रुख 2008 के संविधान सभा की तुलना में काफी घट चुका था। परिवर्तन के पक्ष में जनता ने माओवादियों को पहले संविधान सभा में भारी मतों के साथ समर्थन दिया तथा उनके एजेण्डा के पक्ष में अपने को खड़ा किया। चुनावी प्रक्रिया में बडे पैमाने पर धांधली अथवा यह कहें कि राज्य के अंगों की संलग्नता द्धारा षडयन्त्रपूर्ण रूप से समूची मतदान प्रक्रिया में माओवादियों को तीसरी तथा चौथी पार्टी के रूप में खड़ा किया गया है, जिसका अनुमान किसी ने नहीं लगाया था। इस पूरी प्रक्रिया को बिना समझे यह कहना आम लोगों के लिये मुश्किल है कि 'हाँ यहाँ राज्य के स्तर पर धाँधली को सर्वसंम्मत चुनावी जामा पहनाया गया है'।

माओवादियों के आलोचित होने पर भी वे अन्य संसदवादी दलों की तुलना में राजनीतिक एजेण्डा, आर्थिक मॉडल, सरकार संचालन के विषय में ज्यादा जनता के करीब दिखाई दिये तथा शान्ति प्रक्रिया को सम्पन्न करने का श्रेय भी उनको ही मिला। हाँयह बात और है कि सभी राजनीतिक दलों द्धारा अपनाये गये रवैये को जनता सहजता से पचा नहीं पा रही थीजिसमें माओवादी भी एक थे। लेकिन 19 नवम्बर के दिन हुये दूसरे संविधान सभा के चुनाव के बाद की स्थिति में माओवादियों को नहीं के बराबर सीटें मिलने की सम्भावना है,  हालाँकि अभी तक चुनावी मतगणना पूरी नहीं हुयी है। अभी के नतीजों से पता चलता है कि वही ताकतें उभर कर आ रही हैं जो राजतन्त्र को पसन्द करती हैं और नेपाल के 'हिन्दू राष्ट्रकी हैसियत समाप्त होने से चिन्तित हैं। क्या भारत में नरेन्द्र मोदी का उभार और नेपाल में कमल थापा की राप्रपा (राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी) का उभार एक संयोग मात्र है?

लम्बे समय से जारी राजनीतिक गतिरोध का अन्त करते हुये सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नेतृत्व में बनायी गयी गैर राजनीतिक सरकार को चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, जिसके तहत निर्धारित 19 नवम्बर के दिन संविधान सभा का चुनाव होना था। चुनाव शान्तिपूर्ण और भयरहित वातावरण में ही सम्पन्न हुआ लेकिन सरकारी आँकड़ों के बावजूद चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने वाले मतदाताओं की भागीदारी पिछले संविधान सभा से कम थी। यहाँ यह उल्लेख करना उचित होगा कि चुनाव के विरोध में एकीकृत माओवादी से अलग हो कर बना मोहन वैद्य के नेतृत्व वाला नेकपा–माओवादी चीफ जस्टिस के नेतृत्व की गैर राजनीतिक सरकार के खिलाफ था और चुनावी प्रक्रिया से बाहर था। राजनीतिक दलों के बीच हुये बार–बार की बहस तथा वार्ताओं के जरिए वह एक सूत्री माँग को पूरा कराने के साथ ही चुनाव में आने को तैयार था, जिसमें मुख्य रूप से इस बात पर जोर दिया गया था कि शक्ति पृथकीकरण के सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुये चीफ जस्टिस को अपने उस पद से इस्तीफा देना होगा।

इस पूरी प्रक्रिया में चीफ जस्टिस खिलराज रेग्मी के आगमन के साथ ही भारतीय खुफिया एजेन्सी 'रॉके साथ अन्य अंतरराष्‍ट्रीय ताकतों के हाथ होने की आशंका है। इस पूरी घटना के बाद माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड ने पत्रकार सम्मेलन कर मतगणना को रोकने को कहा है। प्रचण्ड ने कहा– 'मैं आज गम्भीरतापूर्वक सभी राजनीतिक दलों को तथा निर्वाचन आयोग को मतगणना रोक कर समग्र प्रक्रिया की छानबीन कराने के लिये आग्रह करता हूँ।'

अतीत में भी नेपाल कई हादसों से गुजरा है। इस बार कत्ल भी हुआ और खून भी नहीं बहा। इन तमाम त्रासद घटनाओं के बीच एक सुखद स्थिति यह नजर आ रही है कि एक बार फिर प्रचण्ड और किरण के कैडरों के बीच बिखरी ताकतों को एकजुट करने की ललक तेज हो गयी है और तीव्रता के साथ यह अहसास पैदा हो गया है कि प्रतिगामी ताकतों की सैन्य शक्ति का मुकाबला करने के लिये हमें भी खुद को तैयार करना है।

(जनपथ)

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