Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Thursday, June 23, 2016

जगत मिथ्या,अहम् ब्रह्मास्मि! मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से राजा दुर्योधन की तरह विश्वविजेता बनने के फिराक में कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली है।ब्रेक्सिट संकट निमित्तमात्र है। आत्मध्वंस से पहले,इतिहास बदलनेसे पहले इतिहास के सबक दोबारा देख लें अब ब्रिटिश नागरिकों को अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाये रखने और यूरोप व अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं से नाभि नाल स

जगत मिथ्या,अहम् ब्रह्मास्मि!

मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से राजा दुर्योधन की तरह विश्वविजेता बनने के फिराक में कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली है।ब्रेक्सिट संकट निमित्तमात्र है।

आत्मध्वंस से पहले,इतिहास बदलनेसे पहले इतिहास के सबक दोबारा देख लें

अब ब्रिटिश नागरिकों को अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाये रखने और यूरोप व अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं से नाभि नाल संबंध तोड़ने का फैसला करना है तो नई दिल्ली में पसीने छूट रहे हैं और भारत के तमाम अर्थशास्त्री और मीडिया दिग्गज सर खपा रहे हैं कि पौंड का अवमूल्यन हुआ तो भारत को पूंजी घरानों का होना है,शेयर बाजार का क्या बनना है और आयात निर्यात के खेल फर्रूखाबादी क्या रंग बदलता है।यह है भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती।


इस जनमत संग्रह का मुद्रा एवं शेयर बाजार पर तो असर होगा ही, उन देसी कंपनियों पर भी फर्क पड़ सकता है, जिनका यूरोप में भारी निवेश है। इनमें टाटा स्टील और टाटा मोटर्स और सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा यूरोप से हासिल करती हैं।


भारतीय सत्ता वर्ग की नींद हराम हो गयी है।आम जनता के रोजमर्रे की जिंदगी की तकलीफों,समस्याओं की वजह से नहीं,बल्कि भारतीय पूंजी के विश्वबाजार में मुनाफावसूली पर अंकुश लगने के खौफ की वजह से क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में  बने रहने पर जनमत संग्रह शुरु हो चुका है।

यह सीधे तौर पर अमेरिकी हितों की चिंता है क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संग से अलग होने पर सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को है और भारतीय सत्ता वर्ग हाय तौबा इसलिए मचाये हुए हैं कि अमेरिकी और इजरायली हितों से उनके नाभि नाल  के संबंध बन गये हैं और भारत माता की जय जयकार करते हुए हिंदुत्व की दुहाई देकर यह राष्ट्रद्रोही सत्तावर्ग भारत,भारत के प्राकृतिक संसाधन,भारतीय  उत्पादन प्रणाली,भारतीय श्रम,भारतीय बाजार,तमाम सेवाएं और बुनियादी जरुरतें,शिक्षा,चकित्सा.ऊर्जा परमाणु ऊर्जा,बैंकिंग से लेकर रेलवे और उड़ान,बीमा से लेकर हवा पानी,नागरिकता,नागरिक अधिकार,मानव अधिकार सबकुछ अबाध विदेशी पूंजी के हवाले करता जा रहा है और उसी अबाध पूंजी पर मंडराते संकट के गहराते बादल से इन सबकी नींद हराम है।

चूंकि संसाधनों और सेवाओं की नालामी है राजकाज है,वही राजधर्म है तो मुनाफावसूली के भविष्य को लेकर सत्तावर्ग की नींद हराम है।   

पलाश विश्वास



ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन का हिस्सा बना रहेगा या नहीं, इस सवाल पर आज ब्रिटेन में जनमत संग्रह होने जा रहा है। चूंकि

संसाधनों और सेवाओं की नालामी है राजकाज है,वही राजधर्म है तो मुनाफावसूली के भविष्य को लेकर सत्तावर्ग की नींद हराम है।


दरअसल इस जनमत संग्रह का मुद्रा एवं शेयर बाजार पर तो असर होगा ही, उन देसी कंपनियों पर भी फर्क पड़ सकता है, जिनका यूरोप में भारी निवेश है। इनमें टाटा स्टील और टाटा मोटर्स और सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा यूरोप से हासिल करती हैं।



कहा जा रहा है कि आज का दिन पूरी दुनिया के लिए एतिहासिक है क्योंकि आज होने वाली वोटिंग से ये फैसला हो जाएगा कि क्या यूरोपीयन यूनियन में ब्रिटेन बना रहेगा या फिर अलविदा कह देगा। ब्रेक्सिट पर घमासान मचा हुआ है। जो लोग यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के निकलने यानी ब्रेक्सिट की वकालत कर रहे हैं वो इसे अपने ही देश पर फिर से हक जमाने की लड़ाई मान रहे हैं।


खबरों के मुताबिक बिग बुल के नाम से मशहूर रेयर एंटरप्राइजेज के राकेश झुनझुनवाला का मानना है कि अगर ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन से बाहर जाता है तो यूरोपियन यूनियन बिखर जाएगा। वहीं डब्ल्यू एल रॉस एंड कंपनी के विल्बर रॉस का कहना है कि यूरोपियन यूनियन से अगर ब्रिटेन बाहर होगा तो ये यूके और यूरोपियन इकोनॉमी के लिए बेहद खराब होगा।


ब्रेक्सिट पर रिजर्व बैंक की भी नजर बनी हुई है। आरबीई गवर्नर रघुराम राजन के मुताबिक अगर ब्रेक्सिट  के चलते बाजार में लिक्विडिटी की दिक्कत आती है तो उसे दूर किया जाएगा।


वर्जिन ग्रुप के फाउंडर रिचर्ड ब्रैनसन के मुताबिक ब्रेक्सिट के चलते ग्लोबल इकोनॉमी की ग्रोथ पर असर पड़ेगा। ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने का साइड इफेक्ट दिखेगा।



इतिहास में कोई ऐसा शासक हुआ नहीं है जिसने इतिहास से सबक सीखा है।सारे के सारे शासकों ने हमेशा अपना इतिहास बनाने के लिए सारी ताकत झोंक दी।इसी में उनका उत्थान और इसीमें फिर उनका अनिवार्य पतन।आखिर इतिहास उन्हींका होता है।रोजमर्रे की जिंदगी में मरती खपती जनता को कोई इतिहास कहीं दर्ज नहीं होता जैसे आम जनता के रोजनामचे का कोई अखबार नहीं होता।यह काम साहित्य और संस्कृति का कार्यभार है और आज तमाम माध्यम और विधायें कारपोरेट महोत्सव है औरबाजार भी कारपोरेट शिकंजे में हैं।इस महातिलिस्म में इकलौता विक्लप आत्म ध्वंस का है जिसे हम तेजी से अपनाते जा रहे हैं।


हमारे लिए रामायण और महाभारत कोई पवित्र धर्म ग्रंथ नहीं हैं बल्कि कालजयी महाकाव्य हैं जैसे यूनान के इलियड और ओडेशी।


इन चारों विश्वप्रसिद्ध महाकाव्यों में मिथकों की घनघटा है तो ल पल दैवी चमत्कार और अलंघ्य नियति के चमत्कार हैं।चारों महाकाव्यों में दैवी शक्तियों के मुकाबले मनुष्यता की अतुलनीय जीजिविषा है जहां ट्राय,सोने की लंका और कुरुक्षेत्र के दृश्य एकाकार हैं।सत्ता संघर्ष की अंतिम परिणति इन चारों महाकाव्यों में आत्मध्वंस की चकाचौंध है,जो आज मुकम्मल मुक्ता बाजार है।


भारतीय सत्ता वर्ग की नींद हराम हो गयी है।आम जनता के रोजमर्रे की जिंदगी की तकलीफों,समस्याओं की वजह से नहीं,बल्कि भारतीय पूंजी के विश्वबाजार में मुनाफावसूली पर अंकुश लगने के खौफ की वजह से क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में  बने रहने पर जनमत संग्रह शुरु हो चुका है।


इस जनमत संग्रह के नतीजे शुक्रवार तक आ जायेंगे।उसे हम किसी भी स्तर पर प्रभावित नहीं कर सकते लेकिन अब तय है कि इससे हम प्रभावित जरुर होगें क्योंकि इसके नतीजे के मुताबिक मुनाफावसूली का सिलसिला बनाये रखने के लिए नरसंहारी अश्वमेध अभियान और भयानक ,और निर्मम होना तय है और हम गुलाम प्रजाजन अपनी नियति से लड़ने का दुस्साहस नहीं कर सकते।


जिन्होंने यूरोपीय यूनियन में ब्रिटेन के बने रहने का परचम थाम रखा है वो मानते हैं कि ये ब्रिटेन को बचाने का सबसे बड़ा मौका है। ब्रेक्सिट पर आज यानी 23 जून को भारतीय समय के अनुसार 11:30 बजे सुबह से रात 2:30 बजे के बीच वोटिंग होगी। जिसके नतीजे शुक्रवार (24 जून) को भारतीय समयानुसार 11:30 बजे सुबह आएंगे।


लंदन से लेकर दिल्ली तक की नजर इस अहम दिन पर बनी हुई है। फैसला चाहे जो भी हो इससे निपटने के लिए मोदी सरकार ने पहले से ही कमर कस ली है। ब्रेक्सिट पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल अहम बैठक ली है। इस बैठक में ब्रेक्सिट से होने वाले असर पर चर्चा की गई। इस बैठक में वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा, पीएम के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्रा, अरविंद सुब्रमणियन, शक्तिकांता दास भी शामिल थे।



ज्यादा दिन नहीं हुए महान यूनानी सभ्यता के उत्तराधिकारियों ने यूनान के इतिहास को जमींदोज करते हुए आत्मध्वंस की परिक्रमा अबाध पूंजी और मुक्तबाजार के तिलिस्म में संपूर्ण निजीकरण और संपूर्ण विनिवेश के रास्ते पूरी कर ली.फिर उनने अपने महाकाव्यों के किस देवता या किस देवी के नाम भव्यमंदिर कहां बनाया,एथेंसे से ऐसी कोई खबर नहीं है लेकिन महान यूनानियों की फटेहाल जिंदगी और उनकी दिलवालिया अर्थव्यवस्था जगजाहिर है।


मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से राजा दुर्योधन की तरह विश्वविजेता बनने के फिराक में कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली है।ब्रेक्सिट संकट निमित्तमात्र है।


बेहतर होता कि वे और भव्य राम मंदिर के उनके तमाम पुरोहित मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पुष्पक विमान से रेशम पत खी भी परिक्रमा करे लेते तो उन्हें शायद उस इतिहास के सबक से परहेज नहीं होता कि जिस सनातन भारतीय सभ्यता की बात वे करते अघाते नहीं हैं,वहां को कोई सिंधु घाटी की विश्वविजेता वाणिज्यिक नगर सभ्यता भी थी और यूरोप में सभ्यता की रोशनी पहुंचने से पहले, अमेरिका का आविस्कार होने से पहले माया और इंंका सभ्यताओं के जमाने में जब मिस्र,मेसोपोटामिया,यूनान,रोम और चीन की सभ्यताओं के मुकाबले हमारे पूर्वजों ने विश्व बंधुत्व के विविध बहुल तौर तरीके अपनाते हुए व्यापार और कारोबार, उद्यम में अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता,अपनी सभ्यता और संस्कृति के मूल्य पर कोई समझौता किये बिना रेशम पथ के जरिये पूरी दुनिया जीत ली थी और किसी पर हमला भी नही किया था यूरोप और अमेरिका की तरह।न प्रकृति से कोई छेड़छा़ड़ की थी उनने।

गौरतलब है कि इस ब्रिटेन ने बायोमैट्रिक पहचान पत्र के सवाल पर सरकार गिरा दी थी और भारतीय आधार कार्ड परियोजना लागू होने से पहले नाटो की नागरिकों की निगरानी की इस आत्मध्वंसी प्रणाली को खारिज कर दी थी।


अब ब्रिटिश नागरिकों को अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाये रखने और यूरोप व अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं से नाभि नाल संबंध तोड़ने का फैसला करना है तो नई दिल्ली में पसीने छूट रहे हैं और भारत के तमाम अर्थशास्त्री और मीडिया दिग्गज सर खपा रहे हैं कि पौंड का अवमूल्यन हुआ तो भारत को पूंजी घरानों का होना है,शेयर बाजार का क्या बनना है और आयात निर्यात के खेल फर्रूखाबादी क्या रंग बदलता है।यह है भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती।



बहरहाल यूरोपीय संघ में बने रहने या निकलने के मसले पर ब्रिटेन में मतदान तो गुरुवार को होगा, लेकिन भारत में मुद्रा और शेयर बाजार के साथ-साथ कंपनियों की सांसें अभी से अटकी हैं।


हालांकि  मतदान पूर्व अनुमानों में यही बताया जा रहा है कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने के समर्थकों तथा उसके विरोधियों के बीच टक्कर कांटे की है। मतदान इसलिए हो रहा है क्योंकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने पिछले साल अपने चुनावी घोषणापत्र में जनमत संग्रह का वायदा किया था। डीबीएस बैंंक, इंडिया में कार्यकारी निदेशक और ट्रेजरी प्रमुख अरविंद नारायण कहते हैं, 'यह अभूतपूर्व घटना होगी, जिसका असर लागत, श्रम और पूंजी पर होगा। अगर ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर जाने का फैसला करता है तो निवेशक भारत जैसे तेजी से उभर रहे बाजारों से अपनी रकम निकालकर अमेरिका और जापान जैसे सुरक्षित बाजारों में लगाएंगे। इससे भारत को भी कुछ समय के लिए झटका लग सकता है।' वैसे असर अभी से दिख रहा है क्योंकि रुपया आज डॉलर के मुकाबले 17 पैसे गिरकर 67.49 पर बंद हुआ। बॉन्ड पर प्राप्ति कल जितनी ही बनी रही।



इन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था,उत्पादन प्रणाली ,भारत लोक गणराज्य या भारतीय जन गण की कोई चिंता नहीं है और तमाम बुद्धि भ्रष्ट रघुपति राजन की विदाई से घड़ा घड़ा आंसू बहा रहे हैं।


यह वैसा ही है कि कल्कि महाराज की नरसंहार संस्कृति से अघाकर हम मनमोहनी स्वर्गवास के लिए इतरा जाये।

जहर पीने के बजाये फांसी लगा लें।

नतीजा वही अमोघ मृत्यु है।


राजन ने पूंजी के हितों के मुताबिक ब्याज दरों में फेर बदल के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था को मुक्तबाजार के हिसाब से आटोमेशन में डालने के अलावा कृषि संकट,मुद्रास्फीति या उत्पादन की बुनियादी समस्याओं को सुलझाने के लिए कुछ किया हो तो समझा दें।राजन भी मनमोहन के तरण चिन्ह पर चल रहे थे।


इसी बीच संघ परिवार के बाहुबलि राजन के महिमामंडन का कैरम खेल जारी रखे हुए हैं जो बहुत बड़ाफर्जीवाड़ा है।मसलनरघुराम राजन के रेक्सिट के बाद सुब्रमणियन स्वामी के निशाने पर एक और वरिष्ठ सरकारी अफसर और प्रसिद्ध इकॉनोमिक एक्सपर्ट हैं।


डॉ स्वामी की नाराजगी अब मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम से है और स्वामी ने इनके इस्तीफे की भी मांग कर डाली है। रघुराम राजन की ही तरह अरविंद सुब्रमणियम का सबसे बड़ा गुनाह, स्वामी के मुताबिक यही है कि वो अमेरिका के फायनेंशियल सिस्टम में काम कर चुके हैं। लेकिन इस अटैक के बाद अब सवाल पूछा जा रहा है कि स्वामी का असली निशाना कौन है।जाहिर है कि संघ परिवार जाहिर है कि वित्तीय प्रबंधन भी मुंबई और नई दिल्ल से सीधे नागपुर स्थानांतरित करना चाहता है जहां से राजकाज रिमोट कंट्रोल से चलता है।


रघुराम राजन के बाद सुब्रमणियन स्वामी के एके-27 के पहले शिकार बने हैं मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन। ठीक राजन की तरह स्वामी ने अरविंद सुब्रमणियन की निष्ठा पर सवाल उठाए हैं। अरविंद सुब्रमणियन पर बयानबाजी के बाद विपक्षी दलों और जानकारों ने स्वामी पर सवाल उठाए हैं। उधर सरकार ने इस बार स्वामी के बयान से किनारा करने में थोड़ी भी देर नहीं की। लगे हाथ वित्त मंत्री ने ये सफाई भी दे दी कि वो राजन पर स्वामी की बयानबाजी से इत्तेफाक नहीं रखते थे। सवाल उठ रहा है कि क्या स्वामी के निशाने पर खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली हैं।



बहरहाल इस स्वदेशी  नौटंकी की देशभक्ति की भावभूमि में सट यह है कि भारत में वित्तीय प्रबंधन का मतलब है येन तेन प्रकारेण कालेधन को सफेद बनाकर बेलगाम मुनाफावसूली,आम जनता पर कर्ज और करों का सारा बोझ,रियायतें और योजनाएं,सुविधाएं और प्रोत्साहन सबकुछ अबाध पूंजी के वास्ते और सारा घाटा आम जनता के मत्थे।मुक्तबाजार में नकदी का प्रवाह बनाये रखना ही सर्वोच्च प्राथमिकता है तो इसका एकमात्र तरीका जल जंगल जमीन से भारतीय नागरिकों की अनंत बेदखली है।जो सलवा जुड़ुम है


आज ब्रिटेन के 4.65 करोड़ लोग वोटिंग के जरिए अपनी राय रखेंगे। यूरोपीय संघ के पक्ष और विपक्ष में वोटिंग हो रही है।


जाहिर है कि भारत समेत दुनियाभर के देशों की निगाहें इस जनमत संग्रह के फैसले पर टिकी हैं, जिसके नतीजे शुक्रवार को घोषित किए जाएंगे। यूरोपियन यूनियन को लेकर पूरा ब्रिटेन दो पक्षों में बंटा हुआ है। इस मुद्दे को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चा जारी है क्योंकि इसका अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों और विनिमय दरों पर गहरा और दूरगामी असर होना है।


गौरतलब है कि करीब दो सौ साल तक हम इसी महान बरतानिया के खिलाफ आजादी का जंग लड़ते रहे हैं और हमारे पुरखों ने वह जंग जीत ली तो हमने बरतानिया का दामन छोड़कर फटाक से रूस,अमेरिका और इजराइल के गुलाम बनते चले गये तो अब मुक्तबाजार का विकल्प चुनकर हम मुकम्मल अमेरिकी उपनिवेश हैं।


अब भी भारतीय संसदीय प्रणाली,जनप्रतिनिधित्व,कानून का राज,न्यायपालिका से लेकर मीडिया तक ब्रिटिस हुकूमत की विरासत के अलावा कुछ नहीं है और हमने अपनी आजादी सिर्फ नरमेधी राजसूय की रस्म अदायगी तक सीमाबद्ध रखी है और आजाद जमींदारों,राजा रजवाड़ों के मातहत हम अब भी वही गुलाम प्रजाजन हैं।


दरअसल जो फिक्र है,वह भारत के हित के बारे में नहीं और न ही भारताय उद्योग और कारोबार के हित हैं ये।


यह सीधे तौर पर अमेरिकी हितों की चिंता है क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संग से अलग होने पर सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को है और भारतीय सत्ता वर्ग हाय तौबा इसलिए मचाये हुए हैं कि अमेरिकी और इजरायली हितों से उनके नाभि नाल  के संबंध बन गये हैं और भारत माता की जय जयकार करते हुए हिंदुत्व की दुहाई देकर यह राष्ट्रद्रोही सत्तावर्ग भारत,भारत के प्राकृतिक संसाधन,भारतीय  उत्पादन प्रणाली,भारतीय श्रम,भारतीय बाजार,तमाम सेवाएं और बुनियादी जरुरतें,शिक्षा,चकित्सा.ऊर्जा परमाणु ऊर्जा,बैंकिंग से लेकर रेलवे और उड़ान,बीमा से लेकर हवा पानी,नागरिकता,नागरिक अधिकार,मानव अधिकार सबकुछ अबाध विदेशी पूंजी के हवाले करता जा रहा है और उसी अबाध पूंजी पर मंडराते संकट के गहराते बादल से इन सबकी नींद हराम है।   


संसाधनों और सेवाओं की नालामी है राजकाज है ।मसलन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज बड़े पैमाने पर स्पेक्ट्रम नीलामी योजना को मंजूरी दे दी है।टेलिकॉम सेक्रेटरी जे एस दीपक की अध्यक्षता वाले इंटर-मिनिस्टीरियल पैनल द्वारा मंजूर नियम के मुताबिक 700 मेगाहट्र्ज बैंड में स्पेक्ट्रम खरीदने की इच्छुक कंपनी को मिनिमम 57,425 करोड़ रुपए कीमत पर पैन इंडिया बेसिस पर 5 मेगाहट्र्ज का एक ब्लॉक लेने की जरूरत होगी। इस बैंड में ही अकेले 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की बिड मिलने के आसार हैं।माना जा रहा है कि स्पेक्ट्रम नीलामी प्लान को मंजूरी मिलने से मोबाइल कंपनियों के पास स्पेक्ट्रम की कमी नहीं रहेग। इससे वे मोबाइल पर बिना किसी रुकावट के अच्छी स्पीड के साथ इंटरनेट सर्विस दे सकेंगी। ऐसे में मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम को भी बढ़ावा मिलेगा।

एकीकरण के जरिये 4-5 बड़े सरकारी बैंक बनाने का इरादा

इसी बीचखबर है कि सरकार का इरादा सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंकों के बीच एकीकरण के जरिये 4-5 बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बनाने का है। इस प्रक्रिया की शुरुआत चालू वित्त वर्ष में एसबीआई में उसके सहयोगी बैंकों के विलय से होगी।


वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि सरकार आईडीबीआई बैंक में भी अपनी हिस्सेदारी 80 से घटाकर 60 प्रतिशत पर लाना चाहती है। यदि हिस्सेदारी बिक्री क्यूआईपी के जरिये होती है, तो सरकार की हिस्सेदारी कम होगी। अधिकारी ने कहा, 'वित्त मंत्रालय का मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण के बाद कुल 4-5 बड़े बैंक होंगे। शुरुआत में एसबीआई और उसके सहयोगी बैंकों का विलय होगा। अन्य बैंकों पर फैसला समय के साथ किया जाएगा।' अधिकारी ने कहा कि एसबीआई का उसके सहयोगी बैंकों के साथ विलय इस वित्त वर्ष के अंत तक होगा। पिछले सप्ताह केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एसबीआई और सहयोगी बैंकों के विलय को मंजूरी दी है।


अधिकारी ने कहा कि एकीकरण की प्रक्रिया से पहले ट्रेड यूनियनों के साथ सहमति बनाई जाएगी। देश के बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक और बैंक आफ इंडिया शामिल हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में कहा था कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण की रूपरेखा जारी करेगी। इन बैंकों को चालू वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ रुपये का निवेश मिलने की उम्मीद है।


सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्गठन के लिए 'इंद्रधनुष' योजना की घोषणा की है जिसके तहत चार साल में इन बैंकों में 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी डाली जाएगी। वहीं इन बैंकों को वैश्विक जोखिम नियम बासेल तीन के लिए पूंजी की जरूरत को पूरा करने को बाजारों से 1.1 लाख करोड़ रुपये जुटाने पड़ेंगे। रूपरेखा के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पिछले वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ रुपये की पूंजी मिली है। इस वित्त वर्ष में भी इतनी की राशि डाली जाएगी। योजना के तहत 2017-18 और 2018-19 में इन बैंकों को 10,000-10,000 करोड़ रुपये का निवेश मिलेगा। सरकार ने यह भी कहा है कि जरूरत होने पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को और पूंजी दी जा सकती है।




माना जा रहा है कि यह स्पेक्ट्रम नीलामी सितंबर में होगी। मेगा स्पेक्ट्रम ऑक्शन प्लान को मंजूरी मिलने से सरकारी खजाने को 5.66 लाख करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है, जो टेलीकॉम इंडस्ट्री को होने वाले राजस्व की तुलना में दोगुना है।


गौरतलब है कि इसमें 11,485 करोड़ रुपये के प्राइस पर सबसे ज्यादा महंगे 700 मेगाहर्ट्ज बैंड को बेचा जाएगा। इस बैंड में मोबाइल सर्विसेज डिलिवरी की लागत 2100 मेगाहर्ट्ज बैंड की तुलना में 70 फीसदी कम है, जिसे 3जी सर्विसेज देने में इस्तेमाल किया जाता है।

बहरहाल सरकार को इस नीलामी से 5.66 लाख करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। यह टेलिकॉम इंडस्ट्री के 2014-15 के कुल रेवेन्यु 2.54 लाख करोड़ के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है।


कैबिनेट मीटिंग के बाद अरुण जेटली और रविशंकर प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रैंस में इस मामले की जानकारी दी।

एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि स्पेक्ट्रम नीलामी प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया है. सरकार को 2300 मेगाहर्टज स्पेक्ट्रम नीलामी से कम से कम 64,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।

इसके अलावा दूरसंचार क्षेत्र में विभिन्न शुल्कों तथा सेवाओं से 98,995 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे।

नीलामी के लिए मुख्य दस्तावेज, आवेदन आमंत्रित करने का नोटिस संभवत: एक जुलाई को जारी किया जाएगा।इसके बाद 6 जुलाई को बोली पूर्व सम्मेलन होगा। बोलियां एक सितंबर से लगनी शुरू होने की उम्मीद है। हालांकि, योजना की आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई है।


टेलीकॉम सेक्रेटरी जे एस दीपक की अध्यक्षता वाली इंटर मिनिस्ट्रियल कमेटी द्वारा मंजूर नियमों के तहत नीलामी में 700 मेगाहर्टज का प्रीमियम बैंड भी शामिल रहेगा। इस बैंड के लिए आरक्षित मूल्य 11,485 करोड़ रुपये प्रति मेगाहर्टज रखा गया है। इस बैंड में सेवा प्रदान करने की लागत अनुमानत: 2100 मेगाहर्टज बैंड की तुलना में 70 प्रतिशत कम है, जिसका इस्तेमाल 3जी सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जाता है। यदि कोई कंपनी 700 मेगाहर्टज बैंड में स्पेक्ट्रम खरीदने की इच्छुक है, तो उसे अखिल भारतीय स्तर पर पांच मेगाहर्टज के ब्‍लॉक के लिए कम से कम 57,425 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इस बैंड में अकेले 4 लाख करोड़ रुपये की बोलियां आकर्षित करने की क्षमता है।

पैनल द्वारा मंजूर रूल्स के मुताबिक 700 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम खरीदने की इच्छुक कंपनी को मिनिमम 57,425 करोड़ रुपये कीमत पर पूरे देश के लिए 5 मेगाहर्ट्ज का एक ब्लॉक लेने की जरूरत होगी। इस बैंड में ही अकेले 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बिड मिलने के आसार हैं।


दावा  है कि स्पेक्ट्रम ऑक्शन प्लान को मंजूरी मिलने से मोबाइल कंपनियों के पास स्पेक्ट्रम की कमी नहीं रहेगी और वो मोबाइल पर बिना किसी रुकावट के अच्छी स्पीड वाली इंटरनेट सर्विस दे पाएंगी।

अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव: विश्व बैंक

खबरों के मुताबिक ब्रिटेन यूरोपीय संघ में रहेगा या नहीं रहेगा, इस मुद्दे पर होने वाले जनमत संग्रह से दो दिन पूर्व ब्रिटेन में अनिश्चितता, मतभेद और तनाव का माहौल है। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर होने से संबंधित अटकलबाजी के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है और इससे संबंधित घटनाक्रमों पर लोगों की नजर टिकी हुई है। यह बात विश्व बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कही।


विश्व बैंक के डेवलपमेंट प्रोस्पेक्ट्स ग्रुप के निदेशक ऐहान कोस ने कहा, "यह स्पष्ट है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता पैदा करने वाले कई कारकों में ब्रेक्सिट की चर्चा भी एक है।"


भारत के बारे में नहीं कहा

कोस ने हालांकि ब्रेक्सिट के भारत पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि इस घटना पर विश्व बैंक नजर बनाए हुए है, लेकिन इसके परिणाम के बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहता है। ब्रेक्सिट जनमत संग्रह 23 जून को है।


विश्व बैंक ने इस महीने के शुरू में अर्धवार्षिक वैश्विक आर्थिक संभावना (जीईपी) की रिपोर्ट में जनमत संग्रह को वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के लिए प्रमुख जोखिमों में से एक बताया गया है।


ब्रिटेन का यूरोपीय संघ के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 15 फीसदी से अधिक योगदान है, वित्तीय सेवा गतिविधियों में 25 फीसदी और शेयर बाजार पूंजीकरण में 30 फीसदी योगदान है।



--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV