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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, June 19, 2016

Dalit Adivasi Dunia आदिवासी महायोद्धा विरप्पन-गोंड!ओबीसी, अनुसूचित जाति व जनजाति के लोग ही क्यों बागी बनते हैं?

Dalit Adivasi Dunia

आदिवासी महायोद्धा विरप्पन-गोंड


ओबीसी, अनुसूचित जाति व जनजाति के लोग ही क्यों बागी बनते हैं। मनुवादी व्राह्मण व मनुवादी बनिये क्यों नहीं !
मुफलिस और अन्याय से पीडित जुल्म की हद पार होने पर ही सामन्ती व शासन-प्रशासन से विद्रोह कर, बागी बनते हैं। इस व्यथा का कोई अंत नही है । सुल्ताना-डाकू, ,बिरसा-मुन्डा, पुतलीबाई, फूलनदेवी, विरप्पन आदि मनुवादी व्यवस्था से पीडित पहले व आखरी व्यक्ति नहीं हैं।
आदिवासियों का शोषण, हत्या, बलात्कार, अपहरण व माँ बाप पर मनुवादी अत्याचारों से परेशान होकर विरप्पन ने मात्र दस वर्ष की उम्र में अपने डाकैत चाचा शिवा-गोंड के साथ जंगलों में चले गये थे। दस वर्ष की उम्र में भाले की नोक पर एक हाथी को घायल कर दिया और हाथी को जंगल में भागने पर मजबूर कर दिया। 
आदिवासी विरप्पन को वहाँ के आदिवासी भगवान मानते थे। क्योंकि मनुवादी व्यवस्था व मनुवादियों के द्वारा उस क्षेत्र के आदिवासीगण उनके अत्याचार, बलात्कार, हत्या , शोषण व जर-जोरु-जमीन पर कब्जे से पीडित थे। फोरेस्टर जब चाहे आदिवासी युवतियों को जबरण उठाकर बलात्कार करते थे और हत्या करने में भी कोई संकोच नहीं करते थे। फरियाद करने वालों पर झूठे इल्जाम लगाकर जेल भेज देते थे। अनेकों आदिवासी झूठे एनकाउंटरों में मारे जाते थे। इस बर्बरता को किसी ने नहीं रोका । क्योंकि शासन-प्रशासन, कोर्ट-कचहरी, मीडिया आदि पर मनुवादियों का कब्जा था। 
विरप्पन-गोंड ने 17वर्ष की उम्र में जंगलों में अपनी हकूमत कायम कर वहाँ के आसपास के मनुवादी शासन-प्रशासन में भय पैदा कर दिया। श्रीनिवासन ब्राह्मण ने विरप्पन की बहन को प्यार के झांसे में गर्भवती बना कर शादी से इन्कार कर दिया तो विरप्पन-गोंडर ने श्रीनिवासन की हत्या व टुकडे-टुकडे कर मछलियों को खिला दिया। विरप्पन-गोंडर के प्रभाव के कारण वहाँ के आदिवासियों को अत्याचार, बलात्कार, हत्या व शोषण से मुक्ति मिल गयी और उन्हे मजदूरी का पूरा पैसा मिलने लगा था। उस समय आदिवासियों में खुशी की लहर छा गयी थी।
फिल्म अभिनेता व्राह्मण राजकुमार का अपहरण करने के बाद विरप्पन-गोंडर ने सरकार के सामने राज्य की दस प्रमुख समस्याएँ रखीं और मांगे पूरा करने का अल्टीमेटम सरकार को दे दिया। 
मांगे निम्नलिखित थीं:-
०१ कावेरी पानी का विवाद जबतक हल नहीं होता तबतक कर्नाटक सरकार तमिलनाडु के लिये प्रतिमाह 250TMC पानी दे।
०२ सन 1991 में भडके कावेरी-पानी विवाद में जो तमिल परिवार पुलिस फायरिंग में मार दिये गये थे, उनके परिवारों को उचित मुआवजा दिया जावे।
०३ स्पेशल टास्क फोर्स की ज्यादतियों की जांच करने वाले सदाशिव-आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ज्यादतियों से पीडित आदिवासियों को प्रति व्यक्ति 10 से 15 लाख रुपए का मुआवजा दिया जावे!
०४ टाडा-कानून के तहत बन्द 51 आदिवासी कैदियों को फौरन रिहा किया जावे । क्योंकि पुलिस ने अपनी नाकामी की वजह से निर्दोष लोगों को टाडा के तहत जबरण बंद किया गया है।
०५ पुलिस ज्यादतियों में मारे गये 9 अनुसूचित व जनजाति के लोगों को उचित मुआवजा दिया जावे।
०६ नीलगीरि की पहाडियों पर चायपत्ती तौडने वाले मजदूरों को प्रति एक किलाग्राम पत्ती पर १५ रुपए दिये जावें।
०७ तमिल कवि और समाज सुधारक थिरुवेल्लुर की प्रतीमा बंगलौर में लगाई जावे।
०८ तमिल-नेशनल-लिब्रेशन आर्मी के तमिलनाडु जेल में बंद पांच लोगों को रिहा किया जावे।
०९ कर्नाटक सरकार तमिल भाषा को अतिरिक्त राजभाषा का दर्जा दे
१० मजदूरों की मजदूरी बढाई जावे।
( आज का सुरेख भारत नवम्बर २०००p-2-10)
आदिवासी विरप्पन-गोंडर को पकडने के लिये सरकार ने स्पेशल टास्क फोर्स बनाई । मगर १५० बेकसूर अनुसूचित व जनजाति के लोगों के हत्यारे रणवीर सेना व उसके मुखिया पर मनुवादी सरकार व मीडिया ने कभी-भी हायतौबा नहीं मचाई । जबकि विरप्पन-गोंडर ने किसी आदिवासी व अनुसूचित जाति के लोगों की हत्या नहीं की, बल्कि उनकी हत्या की जो मनुवादी व्राह्मण व बनिये उन्हें पकडने व मारने आये थे और उन मनुवादी को सबक सिखाया जो अत्याचारी व बलात्कारी थे। 
(दलित वायस १६-३० नवम्बर २००२)
अम्बेडकर मिशन पत्रिका के मुताबिक विरप्पन-गोंडर एक वीर मूलनिवासी योद्धा था और आदिवासी व आम जनमानस में राबिन-हुड के नाम से बहुत लोकप्रिय था। महानारी फूलनदेवी ने बाईस. ठाकुर मनुवादियों की हत्या कर अपने बलात्कार का बदला लिया और वहीं विरप्पन-गोंडर ने आदिवासी समुदाय की बेहतर सुरक्षा, सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा प्रदान की । जबकि भारतीय मनुवादी मीडिया ने उन्हें दस्यू-सुन्दरी व चन्दन तस्कर आदि घोषित कर वंचित-समाज के मुंह पर करारा तमाचा जड दिया था।
जिस सादगी से विरप्पन-गोंडर की विधवा पत्नी व दो मासूम लडकियां फटेहाल जिन्दगी जी रही हैं, उन्हें देखकर क्या आप यकीन करेंगे कि उसने करोडों रुपए कमाए होंगे। यही स्थिति आदिवासी महा क्रांतिकारी बिरसा-मुन्डा के परिवार की है। मगर अधिकांश वंचित-समाज के लोग या तो उन्हें जानते नहीं हैं और ना ही कभी उन्हें जानने व समझने की कोशिश की है।
तमिलनाडु के धर्मपुरी स्थित अस्पताल में विरप्पन की लाश को देखने आये ग्रामीणों ने एसटीएफ से विरप्पन की हत्या किये जाने पर बेहद आक्रोश जताया। ६२ साल के के वेंकटम्माल को लगता है कि उसने अपना बेटा खो दिया है( नवभारत टाईम्स २० अक्टूबर २००४)
पुलिस ने विरप्पन के रिश्तेदारों को धमकी देते हुए, उसी रात को चारों लाशों को जलाने की कोशिश की, प्रशासन तीन लाशें जलाने में कामयाब हो गये, मगर मानवाधिकार संस्थाओं के पदाधिकारियों व विरप्पन की पत्नी मुथुलक्ष्मी भाई मदैयन व आदिवासियों के विरोध के कारण विरप्पन की लाश को दफनाया गया था। मगर पुलिस प्रशासन ने आखिरी संस्कार करने की अनुमति विरप्पन के परिवार को नहीं दी। मय्यत के रिश्तेदारों व डाक्टरों से हासिल जानकारी के मुताबिक पुलिस के अधिकारियों द्वारा विरप्पन के हाथपैर कुचले गये थे तथा मनुस्मृति के अनुसार उसका लिंग काटा गया था। विरप्पन की हथेलियां जलाई हुई पायी गयीं। उनके कुल्हे की हड्डी चूर-चूर पाई गयी थी, गर्दन पर सुईयां चुभोने के गहरे निशान थे। मगर रिश्तेदार यह बात किसी को भी उजागर नहीं कर पाए । क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं जयललिता सरकार एसटीएफ के हाथों उनका एनकाउंटर करवा कर उन्हें, विरप्पन का साथी घोषित न कर दे।
दीगर सूत्रों से इकट्ठा की गयी जानकारी के मुताबिक विरप्पन को उनके मुखबिर हुए साथियों ने विरप्पन को बेहोशी की दवा दी और विरप्पन को गिरफ्तार कर बुरी तरह से यातनाएँ देकर मारा गया। एनकाउंटर की झूठी कहानी गढी गयी। बैंगलोर की प्रेस कान्फ्रेंस में एसटीएफ प्रमुख विजयकुमार ने खुलेआम धमकाते हुए कहा कि "हम सच्चाई की खोज करने वाली टीमों से निपटना अच्छी तरह से जानते हैं" ब्राह्मणवादी अखबार दिनारमाला में झूठे नामों से धमकियां दी गयी कि अगर किसी ने विरप्पन की हत्या की सच्चाई की खोज करना जारी रखा तो, उन्हें गिरफ्तार होना पडेगा। मरने वालों के रिश्तेदारों को धमकियां दी गयी कि वे सच्चाई की खोज करने वाली टीमों को कुछ नहीं बताएं।
हाईकोर्ट में मुकदमा दर्ज करने के बाद ही रिश्तेदारों को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बहुत मुश्किल के बाद मिल पाई थी। एम्बुलेंस व सबूतों का मौका-मुआयना करने नहीं दिया गया और मानवाधिकार आयोग की प्रार्थना ठुकरा दी गयी।
एसटीएफ ने पूरे जंगल को ही यातना शिवर में बदल दिया गया था। एडवोकेट तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता मान-बालामुरुगन ने अपनी किताब "सोलागार-डोड्डी " में क्रूर यातनाओं की तस्वीरें छापी हैं और बताया है कि एसटीएफ किसी भी आदिवासी को पकडकर और क्रूर यातनाएं देकर मार डालती है तथा आदिवासियों को एनकाउंटर में मरा हुआ घोषित कर देती है। यातनायें देने का विवरण बहुत डरावना है , जिसमें युवतियों से बलात्कार, अंगभंग करना, योनि अत्याचार, हत्या, विभिन्न यातनाएं आदि शामिल हैं। तमिलनाडु सरकार ने सदाशिव-आयोग की जांच बन्द कर दी । क्योंकि शासन-प्रशासन पर मनुवादी व्यवस्था कायम है और हकीकत उजागर नहीं करना चाहती थी ।
उपरोक्त हालात कश्मीर से कन्याकुमारी और असम, पूर्वी व पश्चिमी आदिवासी व अनुसूचित जातियों के लोगों के साथ आज भी जारी हैं। मनुवादी व्यवस्था आज शहरों व नगरों में विभिन्न संस्थाएँ, संगठन, संघ व सेना बनाकर आतंकवादी कार्यवाही कर रही है । क्योंकि किसी न किसी रुप में शासन-प्रशासन, कानून, मीडिया व सेना में मनुवादियों का वर्चस्व है और अधिकांश वंचित-समाज के लोग, मनुवादियों की बन्दरसेना, अंधभक्त, विभीषण व वोटबैंक बनी हुई है। 
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर में अधिकांश दलित-समाज व आदिवासी लोग हैं जो मनुवाद से पीडित होकर मुसलमान बन गये हैं और पूर्वी, पश्चिम, दक्षिणी व उत्तरी भारत में आदिवासियों को आतंकवादी, उग्रवादी, नक्सलवादी, माओवादी के नाम पर मारा जा रहा है और समस्त भारत में जनजाति व अनुसूचित जातियों के लोगों का सामाजिक, धार्मिक, मानसिक, आर्थिक व शैक्षणिक रुप से शोषण, हत्या, बलात्कार व मानसिक रुप से प्रताडित किया जा रहा हैं
क्या आप शहर में आकर सुरक्षित हों गये हैं! यह आपका भ्रम मात्र हैं क्योंकि यहाँ भी किसी न किसी रुप में आपका व आपके बच्चों का सामाजिक, धार्मिक व मानसिक शोषण हो रहा है और आप प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से मनुवादी व्राह्मणों के बाडीगार्ड, बन्दरसेना व वोटबैंक द्वारा सहयोग कर रहे हैं
त्रि-इब्लिसी शोषण-व्यूह-विध्वंस से साभार
कथावाचक 
बाबा-राजहंस
जय-भीम जय-मीम जय-मूलनिवासी
#Hansraj Dhanka


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