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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, April 10, 2013

इस्लामी राष्ट्रवाद और हिन्दू साम्राज्यवाद का विजय अभियान और नरसंहार संस्कृति का शंखनाद

इस्लामी राष्ट्रवाद और हिन्दू साम्राज्यवाद का विजय अभियान और नरसंहार संस्कृति का शंखनाद


इस्लामी राष्ट्रवाद और हिन्दू साम्राज्यवाद का विजय अभियान और नरसंहार संस्कृति का शंखनाद

सुनियोजित तरीके से बहुजन आन्दोलन पर संघ परिवार का कब्जा हो गया है

सत्ता दखल की खूनी लड़ाई में आज बंगाल और बांग्लादेश एकाकार है

पलाश विश्वास

http://hastakshep.com/?p=31361

हम अपने धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक मित्रों को लगातार यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि हिन्दू साम्राज्यवाद और कॉरपोरेट साम्राज्यवाद दोनों जायनवादी हैं और एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। व्यर्थ के वाद-विवाद में हम वक्त जाया कर रहे हैं और आर्थिक सुधारों के बहाने नरसंहार संस्कृति का अश्वमेध अभियान हिन्दुत्व के पताका तले बिना प्रतिरोध लगातार तेज होता जा रहा है। सत्ता दखल की खूनी लड़ाई में आज बंगाल और बांग्लादेश एकाकार है। वहाँ बांग्लादेशी इस्लामी राष्ट्रवाद तो इस पार नस्लवादी ब्राह्मणवाद। वर्चस्ववादी सत्ता हिन्दू साम्राज्यवाद की मनुस्मृति व्यवस्था का मुख्याधार है। देश अब मुक्त बाजार में तब्दील है। हर दिशा में संविधान, नागरिक और मानवाधिकार के खुल्ला उल्लंघन के तहत जल-जंगल-जमीन-आजीविका और नागरिकता से बेदखली तेज हो रही है। ग्लोबल हिन्दुत्व के सहारे वैश्विक व्यवस्था का यही एजेण्डा हैजो भारतीय जनता का मुख्य संकट है। नये सिरे से राममन्दिर अभियान मुक्त बाजार के जनक मनमोहन सिंह के भारतीय राजनीति में अवतरण की पृष्ठभूमि का स्मरण करा रही हैसिखों के जनसंहार, भोपाल गैस

पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं। आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना।

त्रासदी, बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार भारत के मुक्त बाजार में बदलने के अनिवार्य परिदृश्य हैं। तसलीमा नसरीन ने अपने उपन्यास लज्जा में बाबरी विध्वंस के बाद बांग्लादेश में भड़की हिंसा का खुला विवरण दिया है। बांग्लादेश में धर्मनिरपेश्क्षता और लोकतन्त्र के लिये लेखकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवी लगातार शहादतें देते रहे हैं। इस वक्त भी बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता और लोकतन्त्र की लड़ाई जीवन मरण का प्रश्न है। लेकिन सत्ता की राजनीति ने वहाँ इस्लामी राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करते हुये अल्पसंख्यकों को अपना निशाना बनाया हुआ है दो सौ साल से निरन्तर जारी ब्राह्मणवाद की वैदिकी संस्कृति और नस्लवादी जाति व्यवस्था को खारिज करने वाले मतुआ आन्दोलन का बारुनि उत्सव उनके ताण्डव से बन्द हो गया है। इस बार दुर्गा पूजा भी असम्भव है। भारत में हिन्दू साम्राज्यवादियों के राम मन्दिर आन्दोलन का मतलब है कि अब भी बांग्लादेश में रह गये एक करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं के सामने  सम्मान के साथ जीवित रहने के लिये भारत आने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचेगाजैसा कि बाबरी विध्वंस के बाद लज्जा के नायक ने किया था। इस बार 1971 से भी बड़ा संकट सामने है। हिन्दुत्व की राह पर चल रही भारत सरकार के अपने आर्थिक सुधारों के एजेण्डे की वजह से इसकी कोई परवाह नहीं है क्योंकि यह सरकार अपने अस्तित्व व नीति निर्धारण और राज काज के लिये पूरी तरह संघ परिवार पर निर्भर है।

दूसरी तरफ, संघ परिवार को हिन्दू राष्ट्र के लिये बांग्लादेश या अन्यत्र रह रहे हिन्दुओं की बलि चढ़ाने में कोई हिचक नहीं है। विभाजन पीड़ित हिन्दू शरणार्थियों के देश निकाले और आदिवासियों की बेदखलीबस्ती में बहुमंजिली प्रोमोटर राज के लिये बायोमेट्रिक नागरिकता का गैरकानूनी असंवैधानिक आयोजन भी धर्माधिकारी प्रणव मुखर्जी और रामरथी लाल कृष्ष्ण आडवाणी का साझा उद्यम है। इस दिशा में बंगाल में मोदी संस्कृति का संक्रमण सबसे खतरनाक है। यह दुर्भाग्यजनक है कि ममता बनर्जी जैसी क्षत्रप को इस खतरे का जरा सा अंदेशा नहीं है तो दूसरी तरफ घोषित धर्मनिरपेक्ष सिपाहसालार मुलायम सिंह भी संघियों की भाषा बोल रहे हैं। सुनियोजित तरीके से बहुजन आन्दोलन पर संघ परिवार का कब्जा हो गया है। भारतीय बहुजन समाज अब हिन्दू साम्राज्यवाद की पैदल सेना के अलावा और कुछ नहीं है। यह समय जाति विमर्श का नहीं हैबल्कि किसान आन्दोलन और प्रतिरोध संघर्ष की निरन्तरता बनाये रखने की अनिवार्यता का है। भूमि सुधार के किसान आन्दोलन आदिवासी विद्रोह के समन्वय से जो ब्राह्मणवाद विरोधी नस्लवादी जाति वर्चस्व वाले हिन्दुत्व विरोधी मतुआ आन्दोलन का इतिहास है, बंगाल उसे भूल गया है और बाकी भारत को इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं है। हरिचांद ठाकुर की दो सौवीं जयंती पर हम इस विरासत को पुनर्जीवित कर सकते थे, पर हमने यह मौका खोया है। अब बांग्लादेश के फरीदपुर के ओड़ाकांदी में जो बारुणी उत्सव बन्द हुआ, वह पूरे दक्षिण एशिया में आ रही महासुनामी का अशनि संकेत है। यह इस्लामी राष्ट्रवाद और हिन्दू साम्राज्यवाद का विजय अभियान है और नरसंहार संस्कृति का शंखनाद है। नये सिरे से राममन्दिर आन्दोलन भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में उग्रतम धर्मांध कॉरपोरेट राष्ट्रवाद का विजय उत्सव है। बहुजन समाज को इसके प्रतिरोध में पहल करना चाहिये, पर उसका आन्दोलन तो अब संघी हो गया और वह नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्रित्व के लिये यज्ञ महायज्ञ में शामिल है। यह विडम्बना ही है कि बहुजन समाज अंबेडकर जयंती तो जोर शोर से मनाने की तैयारी कर रहा है और ब्राह्मणों व ब्राह्मणवाद के खिलाफ विचार नहीं तो गालियों का अकूत भण्डार उसके पास गोला बारुद के आतंक से ज्यादा हैलेकिन हिन्दू साम्राज्यवाद के प्रतिरोध का उसका भी कोई कार्यक्रम नहीं है, जैसे कि कॉरपोरेट साम्राज्यवाद के समर्थन में सबसे आगे हैं बहुजन समाज के नेतृवृंद। हिन्दुत्व के झंडावरदारों से निवेदन है कि वे अपने नेताओं से पूछे कि दुनिय़ाभर के कट्टरपंतियों को भारत के बाहर रहने वाले हिन्दुओं के सफाये के लिये उकसाने के कार्यक्रम से ही क्या हिन्दू हित सधेगा।

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