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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, April 9, 2013

पूरा देश हिन्दुत्व की जय-जयकार करने के मोड में है!

पूरा देश हिन्दुत्व की जय-जयकार करने के मोड में है!


पलाश विश्वास

 विकीलिक्स खुलासे में संजय सोनिया का नाम आया है और इससे बेपरवाह वित्तमन्त्री बेदखली अभियान को तेज करने की जुगत में हैं। भारतीय लोकतन्त्र को इन दोनों मुद्दों से कुछ लेना देना नहीं है। पूरा देश हिन्दुत्व की जय-जयकार करने के मोड में है। अयोध्या बाबरी विध्वंस, भोपाल गैस त्रासदी, सिख नरसंहार और गुजरात नरसंहार से इस देश में राजनीति की मुख्यधारा बतौर धर्मराष्ट्रवाद और अर्थव्यवस्था को मुक्त बाजार में तब्दील करने का बायोमेट्रिक अभियान जारी है। भ्रष्टाचार के नये खुलासे से अन्ततः राम मन्दिर अभियान ही तेज होना है। संविधान लागू करने के लिये कोई अभियान असम्भव है क्योंकि जो धर्मराष्ट्रवाद की राजनीति से बाहर हैं वे या तो संविधान में कोई आस्था नहीं रखते या फिर जाति अस्मिताक्षेत्रीयतावाद और सत्ता में भागेदारी की भूलभूलैय्या में भटक रहे हैं। राजनीतिक तौर पर कोई संयुक्त मोर्चा तो बनने से रहा, जनता का संयुक्त मोर्चा भी ख्याली पुलाव है क्योंकि शोषित, उत्पीड़ित, नस्ली भेदभाव और अस्पृश्यता अलगाव की शिकार बहुसंख्य जनता इसी हिन्दुत्व का पिछले दो दशकों से पैदल सेना बनी हुयी है, जिसके दरम्यान देश को कॉरपोरेट साम्राज्यवाद का उपनिवेश मुक्त बाजार में तब्दील हो गया है। अब क्या कीजिये जब  चिड़िया चुग गयी खेत! पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी से जुड़े विकिलीक्स के खुलासे के महज एक दिन बाद ही विकिलीक्स का एक और केबल सामने आया है। इस नये केबल में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी और संजय गाँधी का नाम भी शामिल है। इस खुलासे में बताया गया है कि कैसे दो कम्पनियाँ विमानन कारोबार में दाखिल होने के लिये उनको अपने बोर्ड में शामिल करना चाहती थीं। ये दो कम्पनियाँ थीं- मारुति हैवी व्हीकल्स और मारुति टेक्निकल सर्विसेज। भारत स्थित अमेरिकी दूतावास और अमेरिकी विदेश विभाग के बीच हुये संदेशों के आदान-प्रदान से पता चलता है कि ये दोनों कम्पनियाँ अमेरिकी राजनयिक सम्पर्कों की मदद से दो अग्रणी विमानन निर्माता कम्पनियों के अलावा विमानन पुर्जे बनानी वाली एक कम्पनी से जुड़ना चाहती थीं।

पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं। आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना।

देश में लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिवाद, समाजवाद, गाँधीवाद, क्रान्ति वाद-विवाद, अंबेडकर विचारधारा के पताका तले विभाजित जनता के सामने धर्म राष्ट्रवाद के विकल्प बतौर उग्रतम धर्मराष्ट्रवाद का विकल्प गले लगाकर आत्महत्या करने के सिवाय़ कोई दूसरा रास्ता नहीं है। एक तरफ वैश्विक जायनवादी व्यवस्था और बाजार की सम्मिलित वाहिनी राहुल गाँधी और नरेन्द्र मोदी की ब्राण्डिंग में लगी है और उसे थ्रीडी आयाम देने में लगा है टीआरपी का खेल, तो दूसरी तरफ हिन्दुत्व के अवकाशप्राप्त लौहमानव उग्रतम धर्मराष्ट्रवाद के तहत पूरे देश को फिर कुरुक्षेत्र का धर्मक्षेत्र बनाने पर आमादा हैं।हिन्दुत्व के पहरुओं को इतना भी होश नहीं कि उनके पाञ्चजन्य की शंखनाद से दुनिया भर में जहाँ भी हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, उनकी शामत आने वाली है। विभाजन पीड़ित शरणार्थियों के साथ कांग्रेस और संघ परिवार ने क्या सलूक किया, वह इतिहास अभी अतीत नहीं बना है। इस पर तुर्रा यह कि देश भर में रैली और महारैली आयोजित कर कभी ओबीसी की गिनती के महासंग्राम की घोषणा, तो कभी बहुजन मुक्ति के उद्घोष करने वाले लोग भी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री बनाने के लिये यज्ञ और महायज्ञ कर रहे हैं।

फिर जाति विमर्श का नया खेल भी शुरु हो गया, जो संयुक्त मोर्चा की फौरी जरुरत को सिरे से खारिज करते हुये, देश की जनता के मौजूदा संकट को नजरअंदाज करते हुये, हिन्दुत्व की खुली चुनौती के मुकाबले सिद्धान्तों ओर अवधारणाओं के तहत इस देश की बहुजन आन्दोलन की विरासत को सिरे से खारिज करने में लगा है। इसके नतीजतन वामपंथी आन्दोलन की उपलब्धियों को भी खारिज करने में लगे हैं लोग। सारी मेधा और सारी ताक इसमें लगी है। जबकि हिन्दुत्व का विजय रथ सब कुछ रौंदता हुआ महासुनामी की तरह महाविपर्यय में तब्दील होता जा रहा है, और इसके मुकाबले के लिये कहीं कोई सकारात्मक विमर्श नहीं चल रहा है। जिन्हें हम प्रतिबद्द, ईमानदार, पढ़े लिखे और अति मेधा संपन्न समझते हैं, वे आत्मघाती खेल के आईपीएल में निष्णात हैं। दर्शन और सिद्धान्तों पर तो आदिकाल से बहसें होती रही हैं, अनन्तकाल तक होती रहेंगी। इतिहास के अन्त की घोषणा हो चुकी है और विचारधाराओं के अन्त का भी ऐलान हो गया है। पर इतिहास तो धाराप्रवाह है ही और विचारधाराओं के नाम पर आज भी हम मारकाट मचाये हुये हैं। देश काल परिस्थिति के मुताबिक युद्धभूमि में न हम आत्मरक्षा के बारे में सोच रहे हैं और न प्रतिरोध के हथियार हमारे पास हैं। लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष देश में हमारे पास जो हथियार हैं, उन्हें तो हम तुच्छ साबित करने में तुले हुये हैं।एक दूसरे पर घातक हमला करने से बेहतर तो यही होता कि देशद्रोही मनुष्यताविरोधी ताकतों के विरुद्द गोलबंदी करके मारे जाने के लिये चुने गये व्यापक जनसमुदाय के पक्ष में हम एक साथ मजबूती से खड़े होते।

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