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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, April 8, 2013

अब का कीजिये जब चिड़िया चुग गयी खेत!

अब का कीजिये जब  चिड़िया चुग गयी खेत!


पलाश विश्वास


विकीलिक्स खुलासे में संजय सोनिया का नाम आया है और इससे बेपरवाह वित्तमंत्री बेदखली अभियान को तेज करने की जुगत में हैं। भारतीय लोकतंत्र को इन दोनों मुद्दों से कुछ लेना देना नहीं है। पूरा देश हिंदुत्व की जय जयकार करने के मोड में है। अयोध्या बाबरी विध्वंस, भोपाल ​​गैस त्रासदी, सिख नरसंहार और गुजरात नरसंहार से िइस देश में राजनीति की मख्यधारा बतौर धर्मराष्ट्रवाद और अर्थव्यवस्था को मुक्त बाजार में तब्दील करने का बायोमेट्रिक अभियान जारी है।भ्रष्टाचार के नये खुलासे से अंततः राम मंदिर अभियान ही तेज होना है। संविधान लागू ​​करने के लिए कोई अभियान असंभव है। क्योंकि जो धर्मराष्ट्रवाद की राजनीति से बाहर हैं वे या तो संविधान में कोई आस्था नहीं रखते या फिर जाति अस्मिता , क्षेत्रीयतावाद और सत्ता में भागेदारी की भूलभूलैय्या में भटक रहे हैं। राजनीतिक तौर पर कोई संयुक्त मोर्चा तो बनने से रहा,​​ जनता का संयुक्त मोर्चा भी ख्याली पुलाव है क्योंकि शोषित, उत्पीड़ित, नस्ली भेदभाव और अस्पृश्यता अलगाव की शिकार बहुसंख्य ​​जनता इसी हिंदुत्व का पिछले दो दशकों से पैदल सेना हबनी हुई है, जिसके दरम्यान देश को कारपोरेट साम्राज्यवाद का उपनिवेश मुक्त बाजार में तब्दी ल हो गया है। अब का कीजिये जब  चिड़िया चुग गयी खेत!पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से जुड़े विकिलीक्स के खुलासे के महज एक दिन बाद ही विकिलीक्स का एक और केबल सामने आया है। इस नए केबल में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और संजय गांधी का नाम भी शामिल है। इस खुलासे में बताया गया है कि कैसे दो कंपनियां विमानन कारोबार में दाखिल होने के लिए उनको अपने बोर्ड में शामिल करना चाहती थीं। ये दो कंपनियां थीं-मारुति हैवी व्हीकल्स और मारुति टेक्निकल सर्विसेज।भारत स्थित अमेरिकी दूतावास और अमेरिकी विदेश विभाग के बीच हुए संदेशों के आदान-प्रदान से पता चलता है कि ये दोनों कंपनियां अमेरिकी राजनयिक संपर्कों की मदद से दो अग्रणी विमानन निर्माता कंपनियों के अलावा विमानन पुर्जे बनानी वाली एक कंपनी से जुडऩा चाहती थीं।जबकि देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिवाद, समाजवाद, गांधीवाद, क्रांतिवादविवाद, अंबेडकरविचारधारा केपताका तले विभाजित​​ जनता के सामने धर्मरष्ट्रवाद के विकल्प बतौर उग्रतम धर्मराष्ट्रवाद का विकल्प गले लगाकर आत्महत्या करने के सिवाय़ कोई दूसरा ​​रास्ता नहीं है। एकतरफ वैश्विक जायनवादी व्यवस्था और बाजार की सम्मिलित वाहिनी राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की ब्रांडिग में लगी है​ ​ और उसे थ्रीडी आयाम देने में लगा है टीआरपी का खेल, तो दूसरी तरफ हिंदुत्व के अवकाशप्राप्त लौहमानव उग्रतम धर्मराष्ट्रवाद के तहत पूरे देश को पिर कुरुक्षेत्र का धर्मक्षेत्र बनाने में आमादा है। हिंदुत्व के पहरुओं को इतना भी होश नहीं की उनके पांच्यजन्य की शंखनाद से दुनियाभर में जहां भी हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उनकी शामत आने वाली है। विभाजनपीड़ित शरणार्थियों के साथ कांग्रेस और संघ परिवार नेक्या सलूक किया, वह ​

​इतिहास अभी अतीत नहीं बना है। इसपर तुर्रा यह कि देशभर में रैली और महारैली आयोजित कर कभी ओबीसी की गिनती के महासंग्राम ​​की घोषणा, तो कभी बहुजनमुक्ति के उद्घोष करनेवाले लोग भी नरेंद्र मोदी को प्ऱधानमंत्री बनाने के लिए यज्ञ और महायज्ञ कर रहे हैं।


फिर जाति विमर्श का नया खेल भी शुरु हो गया, जो संयुक्त मोर्चा की फौरी जरुरत को सिरे सेखारिज करते हुए, देश की जनता के मौजूदा संकट को नजरअंदाज करते हुए, हिंदुत्व की खुली चुनौती के मुकाबले सिद्धांतों ओर अवधारणाओं के तहत इस देश की बहुजन आंदोलन की विरासत​ ​ को सिरे से खारिज करने में लगा है। इसके नतीजतन वामपंथी आंदोलन की उपलब्धियों को भी खारिज करने में लगे हैं लोग। सारी मेधा और सारी ताक इसमें लगी है। जबकि हिंदुत्व का विजय रथ सबकुछ रौंदता हुआ महासुनामी की तरह महाविपर्यय में तब्दील होता जा रहा है, और इसके मुकाबले के लिए कहीं कोई सकारात्मक विमर्श नहीं चल रहा है।जिन्हें हम प्रतिबद्द, ईमानदार, पढ़े लिखे और अति मेधासंपन्न समझते हैं , वे आत्मगाती खेल के आईपीएल में निष्णात हैं। दर्शन और सिद्धांतों पर तो आदिकाल से बहसें होती रही हैं, अनंतकाल तक होती रहेंगी। इतिहास के अंत की घोषमा हो चुकी है और विचारधाराओं के अंत का भी ऐलान हो गया है। पर इतिहास तो धाराप्रवाह है ही और विचारधाराओं के नाम पर आज भी हम ​​मारकाट मचाये हुए हैं। देश काल परिस्थिति के मुताबिक युद्धभूमि में न हम आत्मरक्षा के बारे में सोच रहे हैं और न प्रतिरोध के हथियार​​ हमारे पास हैं। लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश में हमारे पास जो हथियार हैं, उन्हें तो हम तुच्छ साबित करने में तुले हुए हैं।एक दूसरे पर घातक हमला करने से बेहतर तो यही होता कि देशद्रोही मनुष्यताविरोधी ताकतों के विरुद्द गोलबंदी करके मारे जाने के लिए ​​चुने गये व्यापक जनसमुदाय के पक्ष में हम एकसाथ मजबूती से खड़े होते। दुमका में हुए सरनाधर्म की महारैली की खबर हमने दी है और आपको बताया कि इस देश के असली मूलनिवासी आदिवासी जल जंगल जमीन आजीविका , नागरिक मानवाधिकारों के लिे संविधान बचाओ आंदोलन का फैसला कर चुके हैं। हमने क्या इस पर गंभीरता से सोचा है?


इसी के मध्य संविधान की धारा ३९ बी, धारा ३९ सी, मौलिक अधिकारों, पांचवीं और छठीं अनुसूचियों, वनाधिकार कानून, खनन ​​अधिनियम, भुमि अधिग्रहण कानून, पर्यावरण कानून,समुद्रतट सुरक्षा कानून, स्थानीय निकायों के अधिकार और आम जनता के नागरिक व मानवाधिकारों के कत्लेआम के लिए लरकारी गैरसरकारी सलवाजुड़ुम तेज करने का खुला ऐलान कर दिया वित्तमंत्री ने जो विदेशी निवेशकों​​ की आस्था अर्जित करने के लिए देस बेचना की मुहिम चला रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोप से ग्रसित है संसदीय प्रणाली तो अब संवैधानिक​​ रक्षाकवच के चलते पवित्र राष्ट्रपति भवन की पवित्रता बनाये रखने के लिए घोटालों की न जांच होनी है और न किसी मुकदमे में न्याय की​​ उम्मीद है। इसलिए आजादी के बाद से अब तक हुए खुलासे और अखबारी सुर्खियों और हालिया चैनली बहसें में लोकतंत्र का भविष्य ​​खोजना  व्यर्थ है।आर्थिक मोर्चे पर जारी अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अटकी परियोजनाओं को गति देने पर बैंकों और उद्यमियों के साथ बैठक की। उन्होंने उद्योग जगत को परियोजनाओं की राह मे आ रही अड़चन को दूर करने के लिए हर संभव कदम उठाने का भरोसा दिया।दूसरी तरफ,बिज़नेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के अनुसार दिसंबर,1976 में अमेरिकी दूतावास ने एक गोपनीय संदेश भेजा था, जिसमें मारुति हैवी व्हीकल्स और मारुति टेक्निकल सर्विसेज को मारुति समूह का हिस्सा बताया गया था। इस मामले में मारुति से संपर्क किया गया लेकिन खबर लिखे जाने तक उसकी प्रतिक्रिया नहीं मिली। एक संदेश में कहा गया कि मारुति हैवी व्हीकल्स के प्रबंध निदेशक के एल जालान ने अमेरिकी दूतावास से मदद मांगी थी। केबल में जालान के हवाले से कहा गया है कि मारुति हैवी व्हीकल्स लिमिटेड के मालिक संजय गांधी (प्रधानमंत्री के बेटे), सोनिया गांधी (संजय की भाभी) और जे के जालान थे। केबल के अनुसार चार दिन बाद जालान ने दूसरी बार अमेरिकी दूतावास से संपर्क किया।


राजनीतिक अस्थिरता की आशंका से विदेशी निवेशकों की आस्था डगमगाने लगी है।उसीअनास्था की बदौलत शेयर बाजार में मातम छाया​​ हुआ हैं।देश के शेयर बाजारों में सप्ताह के पहले कारोबारी दिन मामूली गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 12.45 अंकों की गिरावट के साथ 18,437.78 पर और निफ्टी 10.30 अंकों की गिरावट के साथ 5,542.95 पर बंद हुआ। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 5.57 अंकों की तेजी के साथ 18,455.80 पर खुला और 12.45 अंकों यानी 0.07 फीसदी की गिरावट के साथ 18,437.78 पर बंद हुआ। दिन के कारोबार में सेंसेक्स ने 18,504.48 के ऊपरी और 18,402.93 के निचले स्तर को छुआ।


निवेशकों  रेटिंग संस्स्थाओं की आस्था लौटाने और कालाधन की अर्थव्यवस्था बहाल रखने के लिए नायाब तरीका निकाला है देश के ​​वित्तमंत्री ने। भारत को बेचन से ही काम नहीं चल रहा। अब भारत को तहस नहस करना  ही मकसद।


चिदंबरम ने कहा, 'बैठक का मकसद अटकी परियोजनाओं की पहचान करना था। हमने 215 परियोजनाओं की पहचान की है जो किसी न किसी वजह से रुकी पड़ी हंै। हमने अन्य 126 परियोजनाओं की भी पहचान की है जो नई हैं और उन्हें बैंकों ने ऋण तो मंजूर किया गया है लेकिन अब तक काम शुरू नहीं हो पाया है।Ó


इस बैठक में एडीएजी समूह के अनिल अंबानी, एस्सार के प्रशंात रुइया, एचसीसी के अजित गुलाबचंद और टाटा संस के मधु कन्नन भी शामिल थे। साथ ही वित्त मंत्रालय के बैकिंग एवं वित्तीय सेवा विभाग के सचिव राजीव टकरू भी मौजूद थे। बैंकरों में भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन प्रतीप चौधरी के अलावा, अन्य सार्वजनिक बैंकों के प्रमुखों ने भी शिकरत की।


चिदंबरम ने कहा, 'हम बैंकों और उद्योगपतियों के साथ बैठक कर रहे हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि परियोजना विशेष क्यों अटकी हुई हैं। इसके बाद अड़चनों को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।Ó यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जबकि सरकार का आकलन है कि 2012-13 में आर्थिक वृद्धि 5 फीसदी के करीब रहेगी जो एक दशक में वार्षिक वृद्धि का न्यूनतम स्तर है। कई विश्लेषकों का कहना है कि अटकी परियोजनाओं और निवेश में कमी से वृद्धि दर प्रभावित हो रही है।


आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने कहा, 'चिदंबरम ने योजनाओं में अड़चन की बारीकियों पर बात की। वह बेहद चिंतित थे और बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि अटकी परियोजनाओं को पूरा किया जाना चाहिए।Ó  बिड़ला ने कहा, 'उन्होंने अपने हाथ से ये चीजें नोट कीं और मुझे पूरा भरोसा है कि वह आवश्यक पहल की जाएगी।Ó उन्होंने यह भी कहा कि चिदंबरम इन परियोजनाओं के जल्द शुरू किए जाने के पक्ष में हैं।


ऐसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत ने कहा कि वित्त मंत्री ने आश्वस्त किया है कि वह समस्या के समाधान के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।धूत ने कहा, 'वित्त मंत्री द्वारा हर किसी से व्यक्तिगत तौर पर बात करने का पहला और बहुत अच्छा कदम है। उन्होंने सभी चीजें नोट की और बड़े धैर्य से हमारी बात सुनी। उन्होंने कहा कि वह हरसंभव प्रयास करेंगे।Ó


गैमन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के प्रबंध निदेशक के के मोहंती ने कहा कि भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी के कारण उनकी कंपनी की कई परियोजनाएं पूरी नहीं हो पा रही हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि चीजें आगे बढ़ेंगी। मोहंती ने कहा, 'मैंने वित्त मंत्री से कहा कि हमें पिछले साल 6 परियोजनाएं आवंटित की गई थी, जो छह महीने पहले शुरू हो जानी चाहिए थी। लेकिन ऋण का प्रबंध हो जाने के बावजूद ये परियोजनाएं 18 महीने बाद भी शुरू नहीं हो पाई हैं।Ó उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी समेत कई वजहों से ये परियोजनाएं अटकी हैं।


सीएमआईई की मार्च रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि पूंजीगत खर्च के तौर पर हो रहा निवेश एक दशक के निचले स्तर पर आ गया है। चार तिमाही के दौरान नए निवेश का औसत 24 अरब डॉलर रहा है, जो साल दर साल के हिसाब से 57 फीसीद कम और तिमाही दर तिमाही के आधार पर 31 फीसदी नीचे है।


विकास की खातिर


उद्योग जगत को परियोजनाओं की अड़चनें दूर करने का दिलाया भरोसा

215 अटकीं परियोजनाओं की हुई पहचान

उद्योग जगत ने कहा-भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी नहीं मिलने से हो रही है समस्या

कई परियोजनाओं के लिए ऋण आवंटित लेकिन शुरू नहीं हो पाया काम



कैसे हुई शुरुआत

केबल द्वारा किए गए खुलासे में सामने आया है कि भारत में जालान सेसना के एजेंट के तौर पर काम कर रहे थे। 27 अगस्त 1976 को हुई बातचीत में कहा गया, 'भारत सरकार के साथ कुछ समस्याएं सुलझाने में नाकाम रहने के कारण एजेंट दो विमानों की बिक्री नहीं कर पाया।Ó हालांकि उसने बातचीत में यह नहीं बताया कि ये दिक्कतें क्या थीं।


8 सितंबर को विदेश मंत्रालय ने नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास को बताया, 'पाइपर एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन जनवरी 1977 में होने वाली अगली यात्रा के दौरान वितरक की संपूर्ण जरूरतों के बारे में विस्तार से चर्चा करना चाहेगीÓ और 'इस यात्रा में पाइपर एयरक्राफ्ट के संयंत्र की संभावना पर भी विचार किया जा सकता है।Ó इसी तरह सेसना से भी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कंपनी के प्रतिनिधि की मारुति के साथ बैठक कराने में मदद की।

नवंबर में सौदे पर हस्ताक्षर किए गए। अमेरिकी विदेश मंत्रालय से आए केबल संख्या 1976स्टेट288509-बी में कहा गया है, 'पाइपर एयरक्राफ्ट ने यूएसडॉक को बताया कि 23 नवंबर को मारुति टेक्निकल सर्विसेज के साथ वितरक करार हो गया है और उसकी हस्ताक्षरित प्रति भारतीय कंपनी को भेजी जा रही है।Ó


नहीं भर पाई उड़ान

7 दिसंबर 1976 के केबल के अनुसार एक महीने बाद मारुति को और ज्यादा रकम चाहिए थी और जालान ने अमेरिकी दूतावास से कहा कि 'उसका संपर्क कॉलिंस रेडियो कंपनी (अब रॉकवेल कॉलिंस) के साथ कराया जाए क्योंकि मारुति उसके ऐवियॉनिक उपकरणों की शृंखला का प्रतिनिधित्व करना चाहती थी।मगर सौदा नहीं हुआ और इसी के साथ विमानन कारोबार में कदम रखने का मारुति का सपना भी परवान नहीं चढ़ सका।


इमरजेंसी में CIA-फ्रांस से मदद लेने को तैयार थे फर्नांडीज


'द' हिंदू में छपी खबर के अनुसार विकीलीक्स ने एक और खुलासा किया है। ये खुलासा एनडीए में रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडीज से जुड़ा हुआ है। खबर के मुताबिक आपातकाल के दौरान 1975 में जॉर्ज फर्नांडीज सीआईए और फ्रांसीसी सरकार से आर्थिक मदद लेने के लिए तैयार थे। आपातकाल के दौरान जॉर्ज फर्नांडीज भूमिगत होकर सरकार के खिलाफ गतिवधियां चला रहे थे।खबर के मुताबिक जॉर्ज फर्नांडीज जो खुद को अमेरिकी साम्राज्यवाद का विरोधी बताते थे। नवंबर 1975 में कहा था कि वो सरकार के खिलाफ गतिविधियां चलाने के लिए सीआईए से भी धन और मदद लेने के लिए तैयार थे। अखबार के मुताबिक जॉर्ज फर्नांडीज 1 नवंबर 1975 को फ्रांसीसी नेता के साथ मीटिंग में कहा था कि वो इमरजेंसी का विरोध करने लिए सरकारी प्रतिष्ठानों को ध्वस्त करना चाहते हैं। इसलिए वो उनकी मदद चाहते हैं।


जॉर्ज फर्नांडीज ने सबसे पहले फ्रांसीसी सरकार से मदद मांगी, लेकिन फ्रांसीसी सरकार के इनकार के बाद उन्होंने फ्रांसीसी नेता टरलैक से पूछा कि क्या वो सीआईओ के कुछ संपर्क बता सकते हैं, लेकिन फ्रांसीसी नेता सीआईए संपर्क की जानकारी से इनकार कर दिया था।


हिंदू अखबार के मुताबिक वीकीलिक्स ने खुलासा किया है कि 28 नवंबर, 1975 को एक केबल नई दिल्ली में मौजूद अमेरिकी दूतावास से वाशिंगटन भेजा गया। इस केबल में कहा गया था कि 8 नवंबर को कोई मिस गीता ने अमेरिकी लेबर काउंसर से आग्राह किया है कि क्या वो जॉर्ज फर्नांडीज की अमेरिकी राजदूत से मुलाकात करवा सकते हैं। विकिलीक्स के मुताबिक फ्रांसीसी नेता टरलैक से मुलाकात के दौरान जॉर्ज ने दावा किया था कि उनके पास करीब 300 लोग हैं जो देश में विध्वंसक गतिविधियां करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। जार्ज फर्नांडिज उस वक्त ऑल इंडिया रेलवेमैन्स फेडेरेशन के अध्यक्ष थे और इमरजेंसी की घोषणा के साथ ही वो भूमिगत हो गए थे। हालांकि विकिलीक्स के खुलासे का ये कहना है कि उसे ऐसा कोई केबल नहीं मिला जिससे पता चलता हो कि अमेरिका ने जॉर्ज फर्नेडीज की मदद की। लेकिन कई केबल से पता चलता है कि अमेरिका ने जार्ज के आग्राह पर काफी रुचि दिखाई थी और इस पर अंदरखाने बहस भी हुई थी।


भड़काऊ भाषण में केंद्र और चुनाव आयोग को SC का नोटिस


सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक और धार्मिक नेताओं को नफरत फैलाने वाला भाषण देने से रोकने के लिए दिशा निर्देश जारी करने संबंधी एक जनहित याचिका पर केद्र सरकार, निर्वाचन आयोग, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया। मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने याचिकाकर्ता प्रवासी भलाई संगठन के वकील की दलीलें सुनने के बाद इन सभी को नोटिस जारी करके जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बासवा पाटिल ने दलील दी कि अपने व्यक्तिगत फायदों के लिए राजनेता और धार्मिक नेता नफरत फैलाने वाला भाषण देते हैं। इससे सांप्रदायिक सौहार्द समाप्त होता है और समाज विभाजन के कगार पर पहुंच जाता है। इतना ही नहीं अगर इनकी गिरफ्तारी हो भी जाती है तब भी ये लोग इससे सबक नहीं लेते और जमानत पर रिहा होने के बाद फिर से पुराने ढर्रे पर चल पड़ते हैं।


पाटिल ने दलील दी कि सरकार को नफरत फैलाने वाले संबोधन पर रोक लगाने और इस तरह की हरकत करने वालों के साथ सख्ती से पेश आने के उपाय करने चाहिए। उनकी इन दलीलों को सुनकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, निर्वाचन आयोग, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब तलब किया।


राहुल की 'कलावती' के जवाब में अब मोदी की 'जसु बेन'

फिक्की महिला विंग में गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने खुलकर ना सही अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर चुटकी ले ही ली। मोदी ने गुजरात की महिला जसु बेन का जिक्र करते हुए कलावती का भी जिक्र कर दिया। मोदी ने बताया कि किस तरह जसु बेन ने पिज्जा हट को टक्कर दी।


मोदी बताया कि जसु बेन ने किस तरह पिज्जा हट के पास ही अपनी पिज्जा की दुकान लगाई और लोगों को अपनी दुकान की तरफ खींचा। उन्होंने कहा कि जसु बेन का पिज्जा, पिज्जा हट पर भारी पड़ गया था।


मोदी ने अपने खास अंदाज में जसुबेन के जरिए बहुत कुछ कहा। मोदी ने कहा अब मीडिया के लोग जसुबेन को ढूंढ़ने वहां जाएंगे, देखेंगे कि कहीं ये जसुबेन भी कहीं कलावती जैसा तो नहीं है। लेकिन मैं बता दूं कि जसुबेन का 5 साल पहले ही निधन हो चुका है। उन्होंने आखिरी सांस पुणे में ली। लेकिन उस अकेली महिला ने अपने परिश्रम से सब कुछ हासिल किया, उन्हें गए 5 साल हो गए लेकिन उनके बाद भी उनका पिज्जा बहुत बड़ा मार्केट कब्जा किए हुए है। अब उनके बेटे दुकान चलाते हैं। मोदी के इन बातों पर हॉल में जमकर ठहाके लगे।


इससे पहले अहमदाबाद में भी मोदी राहुल को अपरोक्ष रूप से निशाने पर ले चुके हैं। बीजेपी स्थापना दिवस के मौके पर मोदी ने कहा था कि देश मधुमक्खी का छत्ता नहीं है बल्कि मां है। उनके इस बयान पर कांग्रेस-बीजेपी में जमकर घमासान भी मचा और खूब बयानबाजी हुई। गौरतलब है कि राहुल ने सीआईआई के कांफ्रेंस में मधुमक्खी के छत्ते का उदाहरण देते हुए मिल जुलकर काम करने की बात कही थी।



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