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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, April 23, 2013

देशभर में आर्थिक जो अराजकता फैली है, जो नस्ली भेदभाव है, कानून का राज और संविधान जो लागू नहीं हुआ, उसीके नतीजतन आर्थिक अपराधों, राजनीति और फ्री सेक्स के काकटेल में निष्णात हो गया निनानब्वे फीसद आम जनता का वर्तमान और भविष्य!

देशभर में आर्थिक जो अराजकता फैली है, जो नस्ली भेदभाव है, कानून का राज और संविधान जो लागू नहीं हुआ, उसीके नतीजतन आर्थिक अपराधों, राजनीति और फ्री सेक्स के काकटेल में निष्णात हो गया निनानब्वे फीसद  आम जनता का वर्तमान और भविष्य!


पलाश विश्वास


चिटफंड के कारोबार और फर्जीवाड़े के लिए मीडिया और ममतादीदी, दोनों जनता की लालच को जिम्मेदार ठहराते हैं। सेबी, रिजर्व बैंक, वित्त प्रबंधन को विदेशी निवेशकों के हितों और उनकी आस्था का कदम दर कदम ख्याल रहता है। वहा कोई चूक नहीं होती। पर मंझौले और चोटे निवेशकों का तो कोई माईबाप नहीं है। अल्पबचत स्कीमों में ब्याजदरे घटते घटते इतना कम हो गया है, कि वहां निवेश करने के बजाय गैरसरकारी कंपनियों में निवेश करने के अलावा लोगों के पास विकल्प और क्या हैं बीमा को शेयर बाजार से जोड़कर प्रीमियम तक वापस होने का रास्ता बंद हो गया है, भविष्यनिधि का ब्याज घटते घटते किसी भी दिन आधे से कम हो जयेगा। डकघरों से राष्ट्रीय बचतपत्रों का ब्याज दर घटा दिया गया। किसान विकास पत्र की ऐसी तैसी कर दी गयी। बैंकिंग भी अब कारपोरेट हवाले कर दी गयी। तो आम जनता कहां निवेश करें ताकि वे भी सत्तावर्ग की तरह पैसा बना सकें। फिर मुक्त बाजार की ​​अर्थ व्यवस्था में गार का क्या हश्र हुआ, हम जानते हैं। किसी भी तरह का नियमन किसी भी आर्थिक कारोबारी क्षेत्र में नहीं है। किसी भी तरह की निगरानी नहीं है। अबाध पूंजी प्रवाह रुक जायेगा। वित्तीय घाटा और भुगतान संतुलन बढ़ता चला जायेगा। विकास दर घटती चली जायेगी। ऐसी कारपोरेट दलीलों के मार्फत देशभर में आर्थिक जो अराजकता फैली है, जो नस्ली भेदभाव है, कानून का राज और संविधान जो लागू नहीं हुआ, उसीके नतीजतन आर्थिक अपराधों, राजनीति और फ्री सेक्स के काकटेल में निष्णात हो गया निनानब्वे फीसद  आम जनता का वर्तमान और भविष्य!यह न तो किसी सुदीप्त सेन या किसी राज्य यानी बंगाल तक सीमाबद्ध मामला है।बाज़ार नियामक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह चिटफंड कम्पनियों के लिए एक अलग नियामक बनाने हेतु कानून तैयार करे। ताकि निवेशकों को ठगी से बचाया जा सके।गौरतलब है कि चिटफंड कंपनियां छोटे निवेशकों को अलग-अलग ऑफरों के तहत 15 महीने में रकम दोगुनी और 25 साल में 34 गुनी रकम करने तक का वायदा कर सब्जबाग दिखाती हैं।  


बंगाल में इसवक्त सबसे बड़ी खबर है कि पश्चिम बंगाल की शायद सबसे बड़ी वित्तीय धोखाधड़ी की साजिश रचने वाले सुदीप्त सेन को आज कश्मीर में गिरफ्तार कर लिया गया। वहां की पुलिस ने सुदीप्त और उसकी कंपनी के दो अधिकारियों को हिरासत में लिया।इस बीच सेबी ने शारदा समूह को शेयर बाजार में निषिद्ध कर दिया है।बाजार नियामक सेबी ने निवेशकों को फ्रॉड से बचाने के लिए आरबीआइ, एसएफआइओ, प्रवर्तन निदेशालय और पुलिस की मदद लेने का निर्णय लिया है। निवेशकों से पैसे ऐंठने की विभिन्न फर्जी स्कीमें पूरे देश में चल रही हैं।तो अब तक सेबी ने क्या किया है, इस पर तो गौर होना चाहिेए न!सेबी के कदम से अगर निवेश में फर्जीवाड़ा रुक सकता है, तो पहले सेबी ने कोई  कदम क्यों नहीं उठाये।रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के उल्लंघन पर रिजर्व बैंक ने अब तक क्या कार्रवाई की इसकी भी तफतीश की जानी चाहिए। फिर जो आयकर विभाग चुनिंदा मामलों में राजनीति असर में अतिसक्रयता दिखाता है, बेहिसाब संपत्ति और आय में अनियमितताओं की जांच के लिए देशभर में उसका शक्तिशाली नेटवर्क है। बंगाल में भी है, तो आयकर अफसरान क्या कान में तेल डालकर और आंखों में पट्टी बांधकर घोड़ा बेचकर सोये थे? ममता बनर्जी ने बंगाल भर में चिटपंड को लेकर उठे बवंडर के राजलीतिक नतीजे के ​​अंदेशे से तुरत फुरत सुदीप्त सेन को गिरफ्तार करवा लिया। लेकिन  चिटफंड गोरखधंधे से जुड़े अपने दल के मंत्रियों, सांसदों,विधायकों,पालिका​​ प्रधानों की हिफाजत में पूरी तरह मुश्तैद है।इसी सिलसिले में फिर देश के प्रधान धर्माधिकारी और लंबे समय तक आर्थिक सुधारों के सर्वोच्च  सिपाहसालार की भूमिका की भी चर्चा बहुत आवश्यक है, जिनका कि हर घोटाले में नाम आना रिवाज हो गया है और संवैधानिक रक्षाकवच के चलते इस कारपोरेट महामसीहा के खिलाफ न जांच हो सकती है और न उनपर कोई  मुकदमा चल सकता है। कारपोरेट राज के लिे काम करते हमारे आदरणीय जनप्रतिनिधि उनके खिलाफ महाभियोग लाने की सोच बी नहीं सकते क्योंकि वे जिस कारपोरेट जगत के समर्थन से राष्ट्रपति बने, उसी कारपोरेट चंदे से सबकी, राजनीतिक अराजनीतिक राजनीति चलती है।खास बात तो यह है कि चिटफंड कंपनी के गठन की अनुमति राज्य सरकार नहीं देती है। कॉरपोरेट मंत्रालय के अधीन रजिस्ट्रेशन ऑफ कंपनी ऑफिस से इसकी अनुमति दी जाती है।वाम मोरचा शासन के दौरान पहलीबार २००३ में चिटफंड कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए एक विधेयक लाया गया था।२००३ से लेकर २००८ तक पूरे पांच साल से ज्यादा वक्त लगा इस विधेयक पर केंद्र की सहमति के लिए।केंद्र की सहमति और सुझावों के समावेश के बाद २००८ में विधेयक विधानसभा में पारित हुआ था और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए विचाराधीन था। केंद्र सरकार के सुझाव पर सजा के मामले में आजीवन कारावास जैसे विषय को इसमें जोड़ा गया था।विधेयक में बाकायदा  धारा पांच के तहत प्रावधान है कि अनियमितता बरतने वाली कंपनी और उसके मालिक की संपत्ति जब्त करके निवेसकों को उनका पैसा लौटायी जाये। वाम मोरचा शासन के दौरान कई बार इस विधेयक पर हस्ताक्षर की अपील की गयी थी।ममता बनर्जी पहले तो इसी विधेयक की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति से अपील करती रही और बाद में विधेयक को नाकाफी बताते हुए अध्यादेश लाने​​ का राग अलाप रही हैं।जब यह विधेयक पहलीबार पास हुआ , उसवक्त केंद्र में भाजपा की सरकार में दीदी मंत्री थीं। बाद में प्रणव वित्तमंत्री से लेकर राष्ट्रपति बने। प्रणव मुखर्जी की जानकारी में बंगाल की चिटफंड कंपनियों का गोरखधंधा नहीं है, ऐसा कोई कैसे मान ले , जबकि वे देश का वित्तीय प्रबंधन के साथ साथ कांग्रेस की ओर से बंगाल की राजनीति भी संभाल रहे थे। दीदी ने संघपरिवार के राज में केंद्रीय मंत्री बाहैसियत कुछ नहीं किया तो दादा ने वित्तमंत्री और फिर राष्ट्रपित के नाते इस विधेयक को मंजूरी देने के मामले में कोईहरकत की। ऐसा क्यों?


पश्चिम बंगाल में लोगों का पैसा लेकर भागी शारदा ग्रुप की चिटफंड कंपनी के प्रमोटर सुदीप्त सेन को मंगलवार को जम्मू एवं कश्मीर के सोनमर्ग से उसके दो सहयोगियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि उन्हें एक होटल से गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार लोगों में कंपनी के निदेशक देवयानी मुखोपाध्याय और अरविंद सिंह चौहान भी शामिल हैं।उन्हें बुधवार को अदालत में पेश किया जाएगा और फिर ट्रांजिट रिमांड पर कोलकाता ले जाया जाएगा । एक स्कॉर्पियो वाहन जब्त किया गया है जिस पर पश्चिम बंगाल का पंजीकरण नम्बर है ।सूत्रों ने कहा कि पहले वे रांची गए और फिर विभिन्न राज्यों के रास्ते पिछले दो दिनों में सोनमर्ग पहुंचे । उन्होंने कहा कि चूंकि उनके वाहन पर पश्चिम बंगाल का पंजीकरण नंबर था इसलिए संदेह के आधार पर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया और पश्चिम बंगाल पुलिस को सूचना दी गई ।इस बीच ग्रुप की चिटफंड कंपनी के एजेंट तापसी सिंघा और उनके पति श्रीनंदन सिंघा ने नींद की गोलियां खाकर खुदकुशी की कोशिश की। इन दोनों के ऊपर करीब साढ़े 5 लाख की देनदारी है। बताया जा रहा है कि लोग दोनों पर पैसे को लेकर दबाव बना रहे थे। जिससे परेशान होकर इन्होंने खुदकुशी की कोशिश की। इससे पहले भी दो लोगों ने खुदकुशी की थी। गौरतलब है कि चिटफंड कंपनियों की ठगी के खिलाफ पश्चिम बंगाल में जनता का गुस्सा भड़क उठा है।लाखों निवेशक सड़कों पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं और उनका आरोप है कि उनसे 30 हजार करोड़ रूपये की ठगी की गई । कम्पनी के सैकड़ों एजेंट की भी नौकरी चली गई । लोगों का पैसा लेकर भागी इस चिटफंड कंपनी के एजेंट खासतौर पर लोगों के निशाने पर हैं। इसी के साथ ममता सरकार के खिलाफ भी गुस्सा बढ़ रहा है जिसके शारदा ग्रुप से अच्छे रिश्ते रहे हैं।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने ममता बनर्जी ने भी सेन की गिरफ्तारी की पुष्टि की । मुख्यमंत्री ने पहले ही सेन की गिरफ्तारी के आदेश दिए थे और संकेत दिए थे कि वह कहीं उत्तर भारत में हैं ।ममता ने कहा कि उनके पहचान की पुष्टि हो गई है और गिरफ्तारी का पूरा श्रेय पुलिस को जाता है । पुलिस सूत्रों ने कहा कि तीनों 12 अप्रैल को कोलकाता के साल्ट लेक स्थित सेन के आवास से स्कॉर्पियो में निकले थे ।


जिस मंत्री की महिला मित्र पियाली मुखर्जी की मौत को लेकर दोहरे सुदीप्त प्रकरण से पहले अखबारों के पेज रंगी न हो रहे थे, उनका नाम शारदा के एजंट और ग्राहक खुलकर ले रहे हैं। कांग्रेस उन्हें गिरफ्तार करने और सीबीआई जांच की मांग कर रही है। जो दस अखबार और टीवी चैनल इस शारदा समूह से संचालित थे, उसके सीईओ कुणाल घोष की गिरफ्तारी की भी मांग जोरदार ढंग से उठ रही है। पर दीदी ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया है और उनके खिलाफ बिना कोई कार्रवाई किये वे घोषणा कर रही हैं कि अब वे किसी पत्रकार को संसद में नहीं भेजेंगी। बस, हो गयी जवाबदेही। इन अखबारों को राज्य के प्रमुख अखबारों को हाशिये पर रखकर सरकारी पुस्तकालयों में अनिवार्य पाठ्य बी दीदी ने बनाया था। इनमें से कुछ का विमोचन बी धीदी के ही करकमलों से हुआ। आज जब आम जनता मांग कर रही है कि चूंकि सत्ता दल के शीर्षस्थ लोगों को शारदा के समारोह में देखकर ही उन्होंने निवेश किया तो मुावजे की भी व्यवस्था वह करें, तो दीदी टके सा जवाब दे देती हैं कि लोगों को सबकुछ समझकर निवेश करना चाहिए। अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब जहरीली शराब पीनेवालों के परिजनों को दीदी मुावजा बांट सकती हैं, तो सरकार और सत्तादल के प्रोत्साहन से बंगाल​​ में फैले चिटफंड के कारोबार से क्षतिग्रस्त लोगों को मुावजा भी राज्य सरकार दें, तब दीदी कहती हैं कि जो हुआ सो हुआ!अब सुदीप्त सेन और उनकी कंपनी की बलि चढ़ाकर दीदी राजधर्म निभाने के बहाने अपने विरोधियों का मुंह बंद कराने में लगी है। जबकि हकीकत है कि इस शारदा ग्रुप में वकील बतौर बहुचर्चित मंत्री की बांधवी और तृणमूल छात्र परिषद की नेता पियाली मुखर्जी माहवर चालीस हजार का वेतन मरने से पहले तक लेती रही हैं, जिन्हें मंत्री ने अलग अलग ठिकानों पर अपने परिजनों के घनघोर विरोध के बीच ठहराया हुआ था।राजारहाट के जिस फ्लैट में उनकी​​ लाश मिली, उसका किराया ही चालीस हजार प्रतिमाह था। वे बेशकीमती गाड़ी में चलती थी , जो उनकी नहीं है। उनका जीवनयापन फाइवस्टार​​ था और उनके फ्लैट में तमाम बड़े तृणमूल नेता हाजिकर होते थे। पुलिस न तो यह बता सकी कि उनकी हतया हुई या उन्होंने आत्महत्या की और न ही उनके आय के स्रोतों के बारे में कुछ मालूम हो चला है।चिटफंड गोरखधंदा से जुडा़ है मंत्री का नाम और वर्दमान की एक सामान्य गृहवधू को कोलकाता लाकर हाईकोर्ट के वरिष्ठ से वरिष्ट वकीलों के मुकाबले जिसे खड़ा किया गया, वह भी इसी चिटफंड की वकील थीं, जिनसे लालबाजार के एक अफसर के​ ​ मधुर संबंध थे जो आखरी वक्त पियाली के साथ उनके फ्लैट में थे।यही नहीं, जिस देवयानी मुखोपाध्याय को पुलिस ने कश्मीर में सुदीप्त के साथ गिरफ्तार किया, वह भी पांच साल पहले भी शारदा समूह में मामूली रिसेप्शनिस्ट थीं, जो शारदा समूह की सीईओ बन गयी। उनका जीवन यापन भी पांच सितारा है। कोलकाता के आभिजात इलाकों में उनके भी  कई कई फ्लैट हैं।  जाहिर है कि मामला सिर्फ राजनीति और आर्थिक अपराध का नहीं है, चिटफंड तो बेहद सेक्सी निकला। यह सबकुछ दीदी की इजाजत के बिना कैसे चल सकता है?


सबसे खास बात तो वह है, जिसपर बहस ही नहीं हो रही है, जो बंगाल की राजनीति से बाहर सर्वभारतीय है और दीदी की राजनीति और उनके अधिकारक्षेत्र के बाहर की चीज है। वह है, देश का वित्तीय प्रबंधन। ऐसा पहली बार हो रहा हो , ऐसा भी नहीं है। संचयिनी बंद होने के बाद तमाम कंपनियों का चिटफंट कारोबार में इतना उत्थान हुआ कि उनका ग्लोबल नेटवर्क है। अब जब सेबी किन्हीं कारण वश उनमें से किसी खासमखास पर शिकंजा कसता है तो लाखों करोड़ के कारोबार के सर्वेसर्वा अदालत में हलफनामा दायर कर देते हैं कि उनके पास तो महज पांच करोड़ रुपये ही हैं।इस उत्थान कहानी के पीचे बी एक सेक्सी कथा है, जो देशभर में चर्चित रही है और अब लोग उसे भूल गये हैं। किसी के स्विस बैंक खाते का तमाम पैसा किसी की दिनदहाड़े हत्या के बाद किसी और के पास चले जाने की कथा। जिसकी हत्या हुई, उसकी पत्नी को इस साजिश में शामिल बताया गया। वह बेदाग बच ही नहीं निकली, सहअभियुक्त से विवाह के बाद वे सम्मनित जनप्रतिनिधि भी हैं। चूंकि बारतीय न्यायप्रणाली ने उन्हें बरी कर दिया है , इसलिए उनका नामोल्लेख करना उचित नहीं है।


पश्चिम बंगाल में शारदा समूह द्वारा कथित तौर पर धोखाधड़ी से चलाई जा रही निवेश योजना के खिलाफ जनाक्रोश के बीच भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने इस कंपनी धन जुटाने की गतिविधियों की जांच शुरू कर दी है।एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पूंजी बाजार नियामक इस बात की जांच कर रहा है कि जनता से धन जुटाने के दौरान क्या सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) नियमन का उल्लंघन किया गया। सूत्रों ने बताया कि सेबी ने ताजा दौर की यह जांच उसे कुछ शिकायतें मिलने के बाद शुरू की है। नियामक समूह द्वारा बिना आवश्यक मंजूरी के भारी मात्रा में धन जुटाने के मामले की जांच कर रहा है। सीआईएस कारोबार का नियमन सेबी द्वारा किया जाता है और इस मार्ग से किसी इकाई द्वारा धन जुटाने के लिए नियामक की मंजूरी जरूरी होती है।इस तरह की योजनाओं में आम निवेशकों से धन जुटाया जाता है और इसे पहले से तय निवेश में लगाया जाता है। सीआईएस का विनियमन तो सेबी के हाथ में है पर चिटफंड फर्में उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आतीं। चिटफंड व्यवसाय में गड़बडी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार राज्य सरकारों के पास है।


बंगाल के पूर्व वित्तमंत्री असीम दासगुप्त ने चिटफंड कंपनी शारदा समूह के मालिक को शीघ्र गिरफ्तार करने की मांग करते हुए कहा कि चिटफंट के मालिक की गिरफ्तारी में विलंब चिंता की बात है। रविवार को प्रदेश माकपा कार्यालय अलीमुद्दीन स्ट्रीट में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि चिटफंड कंपनी की स्थायी व अस्थायी संपत्ति को तत्काल जब्त किया जाये।उसके मालिक की तत्काल गिरफ्तारी की जाये।अब सुदीप्त सेन की गिरप्तारी तो होगयी लेकिन क्या मुक्त बाजदार अर्थव्यवस्था में सत्ता वर्ग को एतरफा कुछ भी करने की आजादी और बहिष्कृत जनता के शिकार होते रहने कीकथा, देश व्यापी आर्तिक अराजकता और वर्चस्ववादी कालेधन की व्यवस्था में कोई परिवर्तन होने की उम्मीद है?हमारे वामपंथी मित्रों के पास ऐसे हालात और नजारे बदलने की क्या परियोजना है?दासगुप्त ने मांग की कि कंपनी का आय-व्यय का हिसाब सार्वजनिक किया जाये। कंपनी ने किस राजनीतिक दल को कितनी राशि दी है और किस राजनीतिक पार्टी के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इसके साथ ही श्री दासगुप्ता ने पार्टी (तृणमूल कांग्रेस) के साथ सारधा समूह की घनिष्ठता पर सवाल उठाते हुए कहा कि चिटफंड कंपनी ने किस उद्देश्य से समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू किया था।यह लोगों को बताया जाये।मीडीया तो बिकाऊ है ही। कोलकाता फुटबाल  औपर आईपीएल पर भी चिटफंड प्रायोजकों का वर्चस्व है। शारदा समूह कोलकाता के दुर्गोत्सव और क्लबों के सबसे बड़े प्रायोजकों में हैं। तो जांच कहां कहां नहीं होनी चाहिए और कहां कहां होनी चाहिए?उन्होंने कहा कि इस कंपनी सहित चार कंपनियों के संबंध में तत्कालीन वाम मोरचा सरकार के वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने सेबी को पत्र लिखा था।इनके आय-व्यय की जांच की बात कही गयी थी। उन्होंने कहा कि वाम मोरचा शासन के दौरान चिटफंड कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए एक विधेयक लाया गया था। विधेयक विधानसभा में पारित हुआ था और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए विचाराधीन था। केंद्र सरकार के सुझाव पर सजा के मामले में आजीवन कारावास जैसे विषय को इसमें जोड़ा गया था। वाम मोरचा शासन के दौरान कई बार चिटफंड निरोधक विधेयक पर हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति से अपील की गयी थी।उन्होंने सवाल किया कि वर्तमान सरकार ने इस विधेयक पर राष्ट्रपति के  हस्ताक्षर को लेकर क्या किया? चिटफंड से जुड़े कानून को शक्तिशाली क्यों नहीं बनाया गया? अब ऐसी परिस्थिति में दीदी का गुस्सा संकट से निपटने में कितना मददगार होता है, यह भी देखना होगा। वैसे राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और विख्यात साहित्यकार नजरुल इस्लाम ने, जो हमेशा सत्ता से पंगा लेने और बहिष्कृत हो जाने के लिए विवादास्पद है, काफी पहले राज्य सरकार को आगाह कर दिया था कि चिटफंड से राज्य में व्यापक पैमाने पर आम लोगों का सर्वनाश होने जा रहा है।जाहिर है कि ऐसा कत्तई नहीं है कि इतना सब कुछ अचानक से एक दिन में हो गया। साल 2007-08 से ही राज्य में कुकुरमुत्ते की तरह उग आईं ये चिटफंड कंपनियां गरीब निवेशकों से हजारों करोड़ रुपये इकट्ठा कर चुकी हैं, लेकिन इन कंपनियों की ओर से दी जाने वाली लुभावने स्कीम पर रोक लगाने की दिशा में कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई।शारदा ग्रुप की धोखाधड़ी से करीब 2.5 लाख एजेंट प्रभावित है। इन एजेंटों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ तो इनमें से कई लोगों का वह पैसा फंस गया है जो इन्होंने शारदा ग्रुप में निवेश किए थे और दूसरी तरफ उन्हें आम निवेशकों का गुस्सा भी झेलना पड़ रहा है।


क्रमशः तेज हो रहे जनाक्रोश पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीखी ​​प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे नाटकबाजी ही नहीं बताया बल्कि आत्महत्या और गुमशुदगी का विकल्प चुनने को मजबूर लोगों को उन्होंने नसीहत दी है कि ऐसी कंपनी में निवशे करते हुए उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए। मालूम हो कि पहले राज्य सरकार ने शारदा कर्णधार सुदीप्त सेनगुप्त की गिरफ्तारी की संभावना से साफ इंकार करते हुए चिटफंड को केंद्र सरकार की मंजूरी का हलवाला देते हुए गेंद सेबी और रिजर्व बैंक के पाले में डाल दी ​​थी। पर इस मामले में सत्तादल के सांसदों, मंत्रियों, विधायकों और नगरप्रधानों के लिप्त होने के आरोप तेज होते न होते दीदी राजधर्म निभाने​ ​ लगी और इस सिलसिले में सुदीप्त सेन की गिरफ्तारी के लिए लुकआउट नोटिस जारी कर दिया गया है। संकट से निपटने के लिए राष्ट्रपति भवन में  लंबित विधेयक को मंजूरी देने के लिए कल तक अपील करती मुख्यमंत्री अब चिटफंड कंपनियों की संपत्ति जब्त करने के लिए अध्यादेश जारी करने का विकल्प आजमाना चाहती है। पर कानूनी पेचदगियों के चलते यह उपाय कितना कारगर होगा , अभी से कहा नहीं जा सकता।


पूंजी बाजार नियामक सेबी ने देश में विशेषकर पूर्वी क्षेत्र में अनियमित रूप से फैल रहे चिटफंड कारोबार पर चिंता व्यक्त करते हुए लोगों को निवेश पर उंचे प्रतिफल के वायदों की लालच के प्रति सावधान किया है। बाजार नियामक ने आज कहा कि वह ऐसी सूचीबद्ध कंपनियों पर भी कार्रवाई करेगा जो निर्धारित समय सीमा के भीतर न्यूनतम 25 प्रतिशत सार्वजनिक भागीदारी के नियम का अनुपालन नहीं करेंगी।


भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अध्यक्ष यूके सिन्हा ने आज यहां कहा ''कुछ चिटफंड कंपनियां तो इस तरह के वादे कर रही हैं जिनके तहत कोई भी वैध तरीके से व्यावसायिक गतिविधियां करते हुये वादे के अनुरुप रिटर्न नहीं दे सकता।'' सिन्हा ने यहां भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा ''हमने इनमें से कुछ कंपनियों के खिलाफ कारवाई शुरु की है, जांच चल रही है। कुछ मामलों में अंतरिम आदेश भी दिये गये हैं, लेकिन फिर ये कंपनियां न्यायालय भी पहुंच जातीं हैं।'' सिन्हा ने कहा कि कई लोग इन चिटफंड कंपनियों की योजनाओं में निवेश कर रहे हैं जो कि जोखिम भरा है। ''ये कंपनियां कानून में व्याप्त खामियों का फायदा उठा रही हैं।'' उन्होंने कहा ''हमने सरकार से आग्रह किया है कि उसे नये कानून के साथ आगे आना चाहिये जिसमें इन कंपनियों के लिये एक नियामक की व्यवस्था हो।'' सिन्हा से जब सहारा के मुद्दे पर सवाल किया गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। कंपनियों में न्यनूतम 25 प्रतिशत सार्वजनिक हिस्सेदारी के नियम का अनुपालन किये जाने के मुद्दे पर सेबी अध्यक्ष ने कहा कि अनुपालन में असफल रहने वाली कंपनियों के खिलाफ कड़ी कारवाई की जायेगी।


सिन्हा ने कहा ''सेबी सूचीबद्ध कंपनियों में न्यूनतम 25 प्रतिशत सार्वजनिक हिस्सेदारी पर लगातार जोर दे रहा है। देश में सार्वजनिक क्षेत्र से इत्तर करीब 200 कंपनियां हैं जो कि दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रही हैं।'' उन्होंने कहा कि इन 200 में से 37 कंपनियों के शेयरों में सौदों को निलंबित किया गया है जबकि 51 कंपनियों ऐसी हैं जो कि दिशानिर्देशों को पूरा करने के लिये कोई उपाय नहीं कर रहीं हैं। इस दिशानिर्देश के अनुपालन की समय सीमा जून 2013 है।


गौरतलब है किो चिटफंड कंपनी शारदा समूह के निवेशकों के हजारों करोड़ डकार कर फरार होने के बाद हरकत में आयी राज्य सरकार ने सोमवार को चिटफंड कंपनियों पर लगाम के लिए सख्त कदम उठाने का एलान किया। सरकार ने पूर्व न्यायाधीश श्यामल सेन की अध्यक्षता में आयोग का गठन और राज्य के पुलिस महानिदेशक नापराजित मुखर्जी के नेतृत्व में विशेष जांच दल (एसआइटी) बनाने की घोषणा की है।सोमवार को राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग में एक उच्चस्तरीय बैठक के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जमाकर्ताओं से चिटफंड कंपनियों की धोखाधड़ी के लिए केंद्र और राज्य की पूर्व वाम मोरचा सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है।मुख्यमंत्री ने कहा कि पुलिस ने निवेशकों के रुपये लेकर भागने वाली कंपनी की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी है। पुलिस महानिदेशक के नेतृत्व में विशेष जांच दल का गठन किया गया है। कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट के तहत पूर्व न्यायाधीश श्यामल सेन के नेतृत्व में चार सदस्यीय आयोग का गठन करने का निर्णय लिया गया है। इस आयोग में आर्थिक पृष्ठभूमि के अधिकारी, अवकाश प्राप्त आइपीएस अधिकारी, कॉरपोरेट जगत के विशिष्ट व्यक्ति व अन्य शामिल रहेंगे। यह आयोग एसटीएफ व सीआइडी की भी मदद ले सकेगा।


उन्होंने बताया कि इस आयोग के पास शिकायत दर्ज करायी जा सकती है। आयोग पता करेगा कि चिटफंड कंपनियों ने किन -किन लोगों को ठगा है। किस तरह से लोगों की रकम लौटायी जा सकती है। आयोग को कागजात जब्त करने व अन्य अधिकार भी दिये गये हैं। ममता ने कहा कि चिटफंड को लेकर पूर्व की वाम मोरचा सरकार ने कानून बनाया था, लेकिन राष्ट्रपति ने उसमें संशोधन के लिए कहा था, पर उसमें संशोधन के बिना ही राज्य सरकार ने नया कानून बना दिया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिख कर यह विधेयक लौटाने की मांग की है।वह चाहती है कि 24 घंटे के अंदर केंद्र सरकार उसे लौटा दे। राज्य सरकार ने नये कानून का प्रारूप तैयार कर लिया है। विधेयक लौटने के बाद अपेक्षाकृत मजबूत कानून बनाया जायेगा तथा अध्यादेश भी लागू किया जा सकता है।उन्होंने कहा कि चूंकि यह विधेयक केंद्र सरकार के पास विचाराधीन है, इस कारण राज्य सरकार नया कानून नहीं बना सकती है। बनर्जी ने कहा कि राज्य सरकार चिटफंड कंपनियों को अनुमति नहीं देती है। अनुमति देने का काम सेबी व केंद्र सरकार की अन्य एजेंसियां करती हैं। इस कारण राज्य सरकार को मालूम नहीं रहता है कि किस कंपनी को अनुमति दी गयी है और किस कंपनी को अनुमति नहीं दी गयी है। पोइला बैशाख को सेबी का पत्र मिलने पर एक कंपनी के संबंध में हमें जानकारी मिली। इसके साथ ही तारा न्यूज की ओर से विधाननगर थाने में उस कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज की गयी थी। उस समय जानकारी मिली. जानकारी मिलने के साथ ही हमने कार्रवाई शुरू कर दी है।


पश्चिम बंगाल के सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग में पुलिस अधिकारियों ने बताया, 'हमने सुदीप्त सेन, देवयानी मुखर्जी और अरविंद सिंह चौहान को हिरासत में लिया है। उनकी शिनाख्त की जा रही है। हमारी टीम कश्मीर गई है और कल तक उन्हें यहां लाया जाएगा।' मुखर्जी को सेन की खासमखास माना जाता है और कुछ समय पहले तक वह शारदा की कई कंपनियों के निदेशक मंडल में थीं।शारदा समूह के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सेन की गिरफ्तारी के बावजूद रकम जमा करने वालों और एजेंटों के बीच घबराहट बरकरार है। कंपनी की एक 28 वर्षीया एजेंट ने मुर्शिदाबाद जिले के जंगीपुर में आज नींद की गोलियां खाकर खुदकुशी करने की कोशिश की। इस बीच राज्य भर में आज शारदा के कुछ एजेंटों के घरों पर निवेशकों ने हमले किए और वहां से लूटमार कर भाग निकले।शारदा के तमाम गड़े मुर्दे भी अब उखडऩे लगे हैं। समूह ने कुछ समय पहले ग्लोबल मोटर्स का कारखाना खरीदा था, जिसे 2011 में बंद कर दिया गया। लेकिन समूह ने 150 कर्मचारियों को हुगली के इस कारखाने में नौकरी पर बनाए रखा ताकि जब भी एजेंट वहां पहुंचें, उन्हें लगे काम पूरे जोर पर चल रहा है।


इधर शारदा की आफत जब लोगों को पता चली तो सामूहिक निवेश योजना चलाने वाली दूसरी कंपनियों के निवेशक भी बौखला गए। ऐसी ही कंपनी रोजवैली ने एजेंटों और निवेशकों को भरोसा दिलाया कि रकम सुरक्षित है, लेकिन पूर्वी मेदिनीपुर के तामलुक और वर्धमान जिले के रानीगंज में उसके दफ्तरों में खूब तोडफ़ोड़ की गई। हालांकि कंपनी के चेयरमैन गौतम कुंडू ने कहा, 'दफ्तरों पर हमले जमाकर्ताओं या एजेंटों ने नहीं बल्कि असामाजिक तत्वों ने किए थे।


हमारी कंपनी के पास नकदी की कोई किल्लत नहीं है।Ó कुंडू ने साफ किया कि उनकी कंपनी सामूहिक निवेश योजनाएं नहीं चलाती है। हालांकि सेबी ने गैर कानूनी तरीके से डिबेंचर जारी करने के आरोप में रोज वैली पर जुर्माना लगाया था, लेकिन कुंडू ने कहा कि मामला अदालत में है। रोज वैली ने विज्ञापन निकालकर कहा कि उसकी तुलना विवाद में पड़े दूसरे समूहों के साथ नहीं करनी चाहिए। एमपीएस ने भी विज्ञापन जारी कर कहा है कि कंपनी अदालत के आदेश के मुताबिक योजनाएं चलाती थीं।


'हासिल होगी 8 फीसदी की विकास दर'   

सी रंगराजन, चेयरमैन, पीएमईएसी

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के चेयरमैन सी रंगराजन का मानना है कि निवेश की मौजूदा दर 35.8 फीसदी के जरिए 7.5 से 8 फीसदी की विकास दर हासिल हो सकती है। इंदीवजल धस्माना के साथ बातचीत के मुख्य अंश:


साल 2012-13 के लिए आर्थिक विकास दर क्या रहेगी?

4.1 फीसदी आईसीओआर के साथ निवेश की मौजूदा दर से 8 फीसदी की विकास दर हासिल हो सकती है। पूंजी का पूरा इस्तेमाल नहीं होने के चलते विकास में गिरावट आई है। अगर ईंधन की कमी के चलते बिजली परियोजनाएं अटकती हैं तो इसका मतलब हुआ कि पूंजी का पूरा इस्तेमाल नहीं किया गया। इसी वजह से आईसीओआर बढ़ा है।


क्या इससे यह जाहिर होता है कि साल 2013-14 में भी बिना इस्तेमाल के ही पूंजी पड़ी रहेगी?

अगर आईसीओआर में इजाफा हुआ है तो इसे धीरे-धीरे नीचे लाना होगा। अगर अटकी परियोजनाओं को मंजूरी मिलती है तो एक साल में इसके पूरे परिणाम नहीं मिलेंगे। इसमें वक्त लगेगा।


क्या विकास की दर 12वीं योजना के लिए आयोग के अनुमान से काफी कम रहेगी?

12वीं योजना के आखिरी तीन सालों में 8-9 फीसदी की विकास दर हासिल हो सकती है। ऐसे में पूरे पांच साल का औसत 8 फीसदी के आसपास हो सकता है। आखिरी साल में विकास दर थोड़ी और ऊपर हो सकती है और यह 9 फीसदी हो सकती है।


आपने 2012-13 के लिए चालू खाते का घाटा जीडीपी का 5.1 फीसदी और 2013-14 के लिए 4.7 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। यह 2.5 फीसदी से काफी ज्यादा है। सीएडी की यह दर कब हासिल होगी?

कुछ वर्ष इंतजार कीजिए। वित्तीय समावेशी योजना की तरह राजकोषीय घाटा भी पांच सालों में नीचे लाया जाएगा। इसी तरह सीएडी को भी एक तय समय में नीचे लाया जाएगा।


आपने कहा था कि मौजूदा वित्त वर्ष में थोक मूल्य पर आधारित महंगाई की दर पिछले वित्त वर्ष के 7.3 फीसदी के मुकाबले घटकर औसतन 6 फीसदी पर आ जाएगी?

फिलहाल साल 2013-14 के लिए हम महंगाई को औसतन 6 फीसदी पर देख रहे हैं। इसका अनुमान लगाना कठिन है। सहज स्तर 4-5 फीसदी है। हमारी कोशिश इसे 5 फीसदी पर लाने की होनी चाहिए।


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