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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, June 2, 2013

कोलइंडिया और कोयलांचल को लेकर दो साल में राज्य सरकार का रवैया वाम मोर्चे से कतई अलग नहीं दिखा!

कोलइंडिया और कोयलांचल को लेकर दो साल में राज्य सरकार का रवैया वाम मोर्चे से कतई अलग नहीं दिखा!


सीसीआई में कोलइंडिया की शिकायत की गयी है राज्य सरकार की ओर से  और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने  कोयला की कीमतें बढ़ाने की कोल इंडिया की कार्रवाई की आलोचना की है।




एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


शानदार वित्तीय नतीजों से कोल इंडिया ने शेयर बाजार में धमल मचाया, लेकिन इस कंपनी की परवाह नहीं किसी को!सीसीआई में कोलइंडिया की शिकायत की गयी है राज्य सरकार की ओर से  और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने  कोयला की कीमतें बढ़ाने की कोल इंडिया की कार्रवाई की आलोचना की है।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोयले की कीमतें बढ़ाने के सीआईएल के फैसले की आलोचना की है।बनर्जी ने एक सोशल नेटवर्किंग साइट पर लिखा, 'कोल इंडिया ने एक बार फिर निम्न गुणवत्ता वाले कोयले की कीमतें औसतन 10 प्रतिशत बढ़ा दी है। यह  दुर्भाग्यपूर्ण है।'पश्चिम बंगाल बिजली विकास निगम (डब्ल्यूबीपीडीसीएल) ने कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के खिलाफ भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) में अपील दायर की है।इस बारे में राज्य बिजली विभाग में मुख्य सचिव और राज्य सरकार नियंत्रित डब्ल्यूबीपीडीसीएल में निदेशक मलय डे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'सीआईएल के मनमाने रवैये के खिलाफ हमने सीसीआई में एक याचिका दायर की है।'


बंगाल सरकार को कोयलांचल की कभी परवाह रही हो , इसका आजतक प्रमाण नहीं मिला है। वाम जमाने में जो होता रहा है, आज बी चलन वही है। बल्कि मां माटी मानुष की सरकार बनने के बाद उसकी जमीन और उद्योग नीतियों के चलते परियोजनाओं को कार्यान्वित करने में कोलइंडिया को तकलीफें हो रही है। भूमिगत कोयला को आग से बचाने की योजना को बंगाल सरकार का कोई सहयोग राष्ट्रीयकरण के बाद से अब तक नहीं मिला तो कानून और व्यवस्था से निपटने में मदद भी नहीं मिली। अब तो माओवादी सक्रियता भी कोल इंडिया के लिए सरदर्द का सबब बना हुआ है।माफिया तत्वं की राजनीति और सत्ता में गहरी पैठ होने की वजह से कोल इंडिया के खानों में रोजमर्रे का कामकाज चलाना भी मुश्किल है। इसके अलावा कोयलांचल में विकास और रोजगार के साधन न होने से तस्करी और अवैध खनन से निजात पाने की कोई योजना काम नहीं कर रही है। यह सबकुछ केंद्र नहीं, राज्य सरकार की सदिच्छा पर निर्भर है, जिसके लक्षण दीदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद द साल गुजर जाने के बावजूद आजतक नहीं मिले हैं।



अत्यंत पिछड़े और आदिवासी बहुल इन इलाकों की सुधि लेते हुए अब तक किसी राज्य सरकार ने कोल इंडिया के विनिवेश का विरोध नहीं किया है। जबकि इन राज्य सरकारों से जुड़े राजनीतिक दल कोयला घटालों पर सबसे ज्यादा शोर मचा रहे हैं। इसका मतलब क्या है?कोयला मंत्रालय ने कोल इंडिया केविनिवेश का विरोध किया है और कोयला मंत्रालय ने कहा है कि फिलहाल कोल इंडिया के विनिवेश पर कोई फैसला नहीं किया गया है। मंत्रालय का कहना है कि इस मामले में अभी सिर्फ चर्चा शुरू की गई है। कोयला मंत्रालय का कहना है कि बिजली इकाइयों पर 9,000 करोड़ रुपये के बकाये जैसे विवादों को सुलझने तक कंपनी की शेयर बिक्री नहीं की जानी चाहिए। इससे क्या होता है? कोयला मंत्रालय कोई स्वायत्त इकाई तो है नहीं। होता तो कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम कैसे आता?बहरहाल,विनिवेश के खिलाफ कोल इंडिया के कर्मचारियों ने दी बेमियादी हड़ताल की धमकी!समझा जाता है कि यूनियनों के प्रबल विरोध के कारण कोलइंडिया का विनिवेश का कार्यक्रम फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है।इस जबर्दस्त अभूतपूर्व प्रतिरोध ने सरकार को कोल इंडिया में 20,000 करोड़ रुपए की इस साल की सबसे बड़ी स्टेक सेल को ठंडे बस्ते में डालने पर मजबूर कर दिया है।विनिवेश की योजना फिलहाल टल गयी है और प्रतिरोध के मद्देनजर वित्त मंत्रालय ने भी रणनीति बदल दी है और अब बायबैक की संभावना वाली कंपनियों में डिसइन्वेस्टमेंट के लिए पहले ओएफएस और इसके बाद शेयर बायबैक होगा।कोल इंडिया ने शानदार वित्तीय नतीजों की घोषणा कर ज्यादातर विश्लेषकों को चौंका दिया है। इसका शुद्घ लाभ सालाना आधार पर 35 फीसदी बढ़ कर 5,414 करोड़ रुपये रहा जो विश्लेषकों के 5-6 फीसदी की वृद्घि के अनुमान से काफी अधिक है। इसका असर कंपनी के शेयर पर भी दिखा और उसमें मंगलवार के कारोबार में 3 फीसदी की बढ़त हुर्ई। अहम बात यह है कि 323 रुपये की मौजूदा कीमत पर भी ज्यादातर विश्लेषक इस शेयर में अच्छा दम बता रहे हैं।इससे वित्त मंत्रालय के शेयर बायबैक कार्क्रम पर अमल करने का मौका बना  है।



पश्चिम बंगाल सरकार की बिजली उत्पादन इकाई डब्ल्यूपीडीसीएल ने कोलकाता स्थित आर पी संजीव गोयनका समूह की बिजली कंपनी सीईएससी को याचिका में शामिल होने के लिए पत्र लिखा था।जब इस बारे में सीईएससी के चेयरमैन संजीव गोयनका ने कहा, 'कोल इंडिया की नीतियों से हमें कुछ दिक्कतें हैं। लेकिन एक कंपनी के तौर पर हम किसी तरह के विवाद से बचना चाहते हैं।' हालांकि डब्ल्यूबीपीडीसीएल ने कुछ दिन पहले सीसीआई में अपील की थी।


इससे पहले महाराष्ट्र राज्य बिजली उत्पादन कंपनी (महाजेनको) ने भी सीआईएल के खिलाफ सीआईएल का दरवाजा खटखटाया था। डब्ल्यूबीपीडीसीएल ने अपनी याचिका में मुख्य तौर पर कहा कि ईंधन खरीद समझौते में खरीदार को सीआईएल के निम्र गुणवत्ता वाले कोयले की आपूर्ति से बचाने के लिए प्रावधान नहीं हैं।


इस बारे में बंगाल सरकार के एक अधिकारी ने कहा, 'समझौते में कई ऐसी बातें हैं, जो खरीदार के हित के खिलाफ जाती है। सीआईएल एक निश्चित गुणवत्ता वाले कोयले की आपूर्ति की गारंटी नहीं देती है। इसके साथ ही परिवहन के दौरान नुकसान के कारण हमें कोयले की निश्चित मात्रा प्राप्त नहीं होती है।'


आय में वृद्घि के लिहाज से कोल इंडिया के लिए प्रमुख समस्या उत्पादन और कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर है। लेकिन इस चुनौती से निपटने में न केंद्र और न राज्य करकार और न यूनियनों से कोई सहयोग कोलइंडिया को मिलने जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि कंपनी के पास वित्त वर्ष 2013 के अंत में 11.5 अरब डॉलर (63,000 करोड़ रुपये से अधिक) के नकदी बैलेंस था। इसे देखते हुए हमें उम्मीद है कि कोल इंडिया अगले दो वर्षों में अपने लाभांश भुगतान में इजाफा करेगी।कंपनी को मुनाफे में यह मजबूती कम लागत की वजह से मिली है जिससे परिचालन मुनाफे में बड़ा सुधार दिखा है। तिमाही के दौरान परिचालन मुनाफा 60.7 फीसदी बढ़ कर 6,120 करोड़ रुपये पर रहा जो विश्लेषकों के अनुमान की तुलना में अधिक है। खर्च 50 फीसदी घट कर लगभग 900 करोड़ रुपये रह जाने और कर्मचारी लागत (पिछले साल पारिश्रमिक संबंधी समझौते की वजह से लागत में वृद्घि हुई थी) में कमी से कुल खर्च 11 फीसदी तक घटा है जिससे परिचालन मार्जिन सुधर कर 30.7 फीसदी पर रहा जो एक साल की समान अवधि में 19.6 फीसदी था। एक तथ्य यह भी है कि तिमाही के दौरान कंपनी का उत्पादन 0.9 फीसदी तक गिर कर 14.3 करोड़ टन रहा जबकि कोयला उठाव लगभग 6 फीसदी बढ़ कर 13 करोड़ टन पर रहा। इस वजह से कोल इंडिया को ऊंची बिक्री पर लागत में कमी दर्ज करने में मदद मिली है। हालांकि ये एकबारगी जैसे लाभ हैं और इसलिए मार्च 2013 की तिमाही में ऊंचा मार्जिन बरकरार नहीं रह सकता है। अगले दो वर्षों के दौरान कंपनी वित्त वर्ष 2013 की तरह लगभग 27-28 फीसदी का परिचालन मुनाफा मार्जिन दर्ज कर सकती है।


लेकिन इसके लिए उत्पादन अबाधित होना बेहद जरुरी है। यह भी जरुरी है कि यूनियनें फिलहाल हड़ताल न करें। दोनों ही असंभव स्थितियां हैं।



शेयर बाजार के ताजा रुझान से अब केंद्रीय वित्त मंत्रालय की इस योजना को अमल में लाने का वक्त आ गया है। कोयला मंत्रालय ने अब कोई विरोध नहीं जताया है और न ही यूनियनों में हलचल है। जैसा कि चलन है कि यूनियनें पिछले दो दशकों के दरम्यान हर बार हड़ताल के जरिये आर्थिक सुधारों और  खासतौर पर सरकारी उपक्रमों और कंपनियों के विनिवेश का विरोद करती है, लेकिन बाद में वेतन,भत्तों और पदोन्नति पर समझौता कर लेती है। इसलिए देर सवेर कोल इंडिया का बाजा बजाने के लिए हड़ताल तो होगी ही, लेकिन इससे कोल इंडिया को बचाने का कोई रास्ता निकालने में यूनियनों की कोई दिलचस्पी है नहीं। इसीतरह कोयला घोटाला राजनीतिक मुद्दा है और सत्ता की राजनीति में इसे खूब जोर शोर से उठाया जा रहा है। जबकि जिन राज्यों में कोयला खानें हैं, उनमें से ज्यादातर में गैरयूपीए सरकारे हैं। मसलन बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीशा और झारखंड में। सिर्फ महाराष्ट्र और असम में कांग्रेस की सरकारें हैं।



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