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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, November 1, 2013

१९८४ के हत्यारों को फांसी दो , और साथ में गुजरात के कसाई को भी 'एकता की मूर्ति' हेतु जमीन अधिग्रहण,सच यह भी है जान लीजिये प्रख्‍यात साहित्‍यकार और हमारे प्रिय मित्र ओम प्रकाश वाल्‍मीकि जी इन दिनों काफी अस्‍वस्‍थ है। आईए हम सभी उनके शीघ्र स्‍वस्‍थ होने की कामना करते हैं। Market says Happy Diwali; sensex scales fresh lifetime peak

१९८४ के हत्यारों को फांसी दो , और साथ में गुजरात के कसाई को भी
'एकता की मूर्ति' हेतु जमीन अधिग्रहण,सच यह भी है जान लीजिये

प्रख्‍यात साहित्‍यकार और हमारे प्रिय मित्र ओम प्रकाश वाल्‍मीकि जी इन दिनों काफी अस्‍वस्‍थ है। आईए हम सभी उनके शीघ्र स्‍वस्‍थ होने की कामना करते हैं।

Market says Happy Diwali; sensex scales fresh lifetime peak


पलाश विश्वास

जो दिल्ली में ३१ अक्तूबर १९८४ को इंदिरा गाँधी के मरने के बाद दंगा चला वो अब तक का सबसे वीभत्स सामूहिक हत्याकांड था।गुजरातदंगों की तरह।सिखविरोधी दंगों  और गुजरात नरसंहार के जिम्मेदार तमाम राजनेता मानवता विरोधी युद्धअपराधी हैं।


१९८४ के हत्यारों को फांसी दो , और साथ में गुजरात के कसाई को भी।


धनतेरस पर पूजन एवं खरीददारी के शुभ मुहूर्त के लिए जब सारा देश अपनी अपनी आस्था के मुताबिक पुरोहितों और ज्योतिषियों की शरण में है,जनसंहार की संस्कृति के रंग खिल रहे हैं इंद्रधनुषी।


मोदी के कारपोरेट विकल्प को स्थापित करने में बाजार कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है।मीडिया के रातदिन सातों दिन अविराम मिथ्या अभियान के अलावा शेयर बाजार की अर्थव्यवस्था पलक पांवड़े बिछाये मोदी के स्वागत को तैयार।


रंग बिरंगे और विभिन्न आस्थाओं के ठेकेदार,बहुजनों के मसीहा संप्रदाय भी मोदी के पक्ष में फतवा जारी करने लगे हैं।


यह समझने वाली बात है कि अल्पमत कारपोरेटगुलाम सरकारों के इस समय में पार्टियों के राष्ट्रविरोधी संविधानविरोधी जनविरोधी लोकतंत्रविरोध गठजोड़ का चेहरा जो बी बनता हो,वह दरअसल मुखौटा है और मुखौटे की आड़ में धर्मोन्मादी कारपोरेट युद्धक इंतजाम जनविध्वंस के लिए लामबंद।


इसी बीच,मुजफ्परनगर में दंगे की आंच भी सुलग ही रही है,जो भयंकर अशनिसंकेत है।राष्ट्र की कोख में पनपती सांप्रदायिकता नासूर परमाणु बम से ज्यादा कतरनाक है ौर मुलाहिजा फरमाये किमुजफ्फरनगर के बुढाना क्षेत्र में भडकी ताजा हिंसा के मामले में पुलिस ने आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। 15 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जिले के तनावग्रस्त इलाके में अर्द्धसैनिक बल गश्त लगा रहे हैं। जिले के बुढाना गांव में बुधवार रात भडकी ताजा सांप्रदायिक हिंसा में तीन लोग मारे गए। इससे पहले इसी जिले में पिछले महीने हुए सांप्रदायिक दंगों में 62 लोगों की मौत हुई थी। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इस संबंध में आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया और पूरे जिले की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है।


चंद्रमुखी हो या पारो

कोई फर्क नहीं पड़ता यारो

जनता का खून पीने वालों को

पीने का बहाना चाहिए


जाहिर है,जनता का जब दिवाला निकल रहा है,तब सबसे धनी गृहवधु के पचासवें जनमदिन पर सितारों का मेला लगा है और जन्मदिन की गिफ्ट की जानकारी सबसे बड़ी खबर है।इसी माहौल में सेंसेक्स में फूटे पटाखे, टूटा साल 2008 का रिकॉर्ड।


विदेशी निवेशकों द्वारा चुनिंदा शेयरों की खरीद बढ़ाये जाने से बंबई शेयर बाजार का सूचकांक शुक्रवार को 129 अंकों की बढ़ोतरी के साथ सर्वकालिक उच्चस्तर 21,293.88 अंक पर पहुंच गया।


बंबई शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक बीएससी-30 में पिछले तीन कारोबारी सत्रों के दौरान 594.24 अंकों की बढ़ोतरी दर्ज की गयी थी, जो आज के शुरुआती कारोबार में 129.36 अंक अथवा 0.61 फीसदी के और सुधार के साथ 21,293.88 अंक पर पहुंच गया।


इससे पहले 10 जनवरी 2008 को सूचकांक ने 21,206.77 अंक का स्तर छुआ था। इसी प्रकार नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी-50 भी 33.45 अंक अथवा 0.53 फीसदी की तेजी के साथ 6,332.60 अंक पर पहुंच गया।


बाजार विश्लेषकों ने बताया कि विदेशी निवेशकों की ओर से बैंकिंग, वाहन, धातु और रीएल्टी क्षेत्र के शेयरों की खरीद बढ़ाये जाने के कारण बाजार में तेजी आई।


वहीं, अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर की मजबूती से अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय (फॉरेक्स) बाजार में शुरुआती कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 37 पैसे कमजोर होकर 61.87 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया।


आयातकों की ओर से डॉलर मांग बढ़ने के कारण भी रुपये की धारणा प्रभावित हुयी। फॉरेक्स बाजार में कल के कारोबारी सत्र के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 27 पैसे कमजोर होकर 61.50 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था, जो आज के शुरुआती कारोबार में 37 पैसे और कमजोर होकर 61.87 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया।


बंबई शेयर बाजार का सूचकांक भी आज के शुरुआती कारोबार में 129.36 अंक अथवा 0.61 फीसदी की तेजी के साथ सर्वकालिक उच्चस्तर 21,293.88 अंक पर पहुंच गया।


Market says Happy Diwali; sensex scales fresh lifetime peak

Rupee weakens to 61.8750 a dollar on thin volume ahead of Diwali

Since January, the rupee has weakened 11.11% and is the third major loser in Asia after the Indonesian rupiah and the Japanese yen.


The BSE Sensex surged to a record high of 21,293.88 on Friday as blue chips rallied on the back of strong foreign buying, marking a remarkable turnaround from two months earlier when the rupee fell to record lows.


Jobs on the line as India's gold sector suffers under govt curbs

About 300,000 to 400,000 artisans from Zaveri Bazaar, India's biggest bullion market, have already moved back to their villages due to a lack of work.


मित्रों, महुआ चैनल में छंटनी के खिलाफ घेराव की अभूतपूर्व पहल के लिए यशवंत भाई को धन्यवाद।हम हमेशा मानते रहे हैं कि लिखने बोलने के महान रचनात्मक कर्म से ज्यादा बड़ा और जरुरी काम वंचितों,असहाय लोगों के हक में असमता,अन्याय.अत्याचार और शोषण के विरुद्ध उनके साथ खड़े होने का कलेजा।तमाम विवादों में उलझे होने और बेलगाम मद्यपान के बावजूद हमारे युवा तुर्क यह जरुरी काम कर रहे हैं,इसकी मुझे बहुत खुशी है।


मेरा अपराध यह है कि में साधनहीन हूं और इच्छानुसार कहीं भी निकल नहीं सकता।दिल्ली में सारे मित्रों के साथ खड़ा मैं हो नहीं सकता और कोलकाता में फिलहाल अभिषेक और यशवंत या अनंदस्वरुप वर्मा जैसे लोग नहीं हैं।इसलिए कोलकाता में राजनीति व्यतिरेक कोई नागरिक पहल असंभव है,जिसे मैं संभव करने की स्थिति में हूं नहीं।


राजीव नयन बहुगुणा से हमारी मुलाकात नैनीताल में तब हुई थी जब वे पटना नवभारत टाइम्स में थे और नैनीताल समाचार में लिखते भी थे। वे भारतीय पर्यावरण आंदोलन के अग्रदूत सुंदरलाल बहुगुणाजी के सुपुत्र हैं।जो सर्वोदयी और गांधीवादी हैं।विशुद्ध शाकाहारी हैं और नशा के खिलाफ भी हैं।ऐसे पिता के पुत्र होकर भी राजीव दाज्यू जैसे पीने पिलाने की बात बेधड़क लिखते पोस्टाते हैं,उससे पता चलता है कि उनमें और जो हो कोई पाखंड हैं ही नहीं।


आज जो उन्होंने पोस्ट किया, एक पंक्ति की यह पोस्ट बेहद प्रासंगिक है और कारपोरेट राज के सर्वव्यापी परिवेश में जब तमाम महान लोग जोधपुर के किले में भारत की सबसे धनी गृहिणी के जन्मदिन में शरीक होने गये हैं,और कारपोरेट प्रधानमंत्रित्व के लिए मुस्लिम वोटों के ठोकेदार भी संघम शरणम गच्छामि कहने लगे हैं,कोई इतनी साफ तरीके से यह मांग उठाये, तो हमें निसंदेह उस मांग को बुलंद करते रहने में कोताही नहीं करनी चाहिए।


हम मानते हैं कि भारत में हिंदुत्व आंदोलन का प्रस्थानबिंदु राममंदिर आंदोलन नहीं,बल्कि 1984 में सिखों का नरसंहार है। वहीं भारत में खुले बाजार की नींव है। यह सिखों का मामला नही है।धर्म का मामला भी नहीं।यह सरासर खेती में अत्यंत दक्ष एक भूगोल में खुले बाजार का अश्वमेध है।धर्मोन्माद और कारपोरेट राज की जायनवादी वैश्विक व्यवस्था एक दूसरे के पूरक हैं। जनता के विरुद्ध युद्धघोषणा का सिलसिला वहीं से प्रारंभ हुआ,जिसे आज निर्लज्ज आर्थिक सुधार कहा जाता है।


बाबरी विध्वंस आपरेशन ब्लू स्टार की तार्किक परिणति है।गोधरा से लेकर गुजरात के नरसंहार, देश विदेश में दंगे, मध्यबिहार में निजी सेनाओं के कत्लेआम,दंडकारण्य में आदिवासियों का संहार और देशभपर में आदिवासियों की बेदखली,कश्मीर और मणिपुर में मानवाधिकार हनन का सारा कारोबार इसी वैश्विक जायनवादी शैतानी बंदोबस्त के हिस्से हैं।


जनता को एक के बाद कारपोरेट विकल्प चुनने के लिए बाध्य करते हुए जो कारपोरेट जनादेश गढ़ा जा रहा है,उसके खिलाफ यह मांग खुलकर उठाने की जरुरत है कि


१९८४ के हत्यारों को फांसी दो , और साथ में गुजरात के कसाई को भी।

गीतकार व राज्यसभा सांसद जावेद अख्तर का मानना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी का दामन न सिर्फ सांप्रदायिक दंगे से दागदार है बल्कि वे लोकतांत्रिक भी नहीं हैं।


पटना आए गीतकार ने गुरुवार को एक स्कूल के कार्यक्रम में कहा कि गुजरात दंगों के कारण नरेंद्र मोदी लोकतंत्रीय नहीं रह गए। राज्यसभा सांसद ने आरोप लगाया कि मोदी गुजरात के मंत्रियों के साथ चपरासी की तरह व्यवहार करते हैं। ऐसे में वे देश कैसे चलाएंगे। उन्होंने कहा कि गुजरात में मोदी के तीसरी बार सत्ता में आने की चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन वे अपने प्रदेश में लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर नहीं करते। मोदी की तरक्की लोकतंत्र के लिए चुनौती है।


मोदी को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाए जाने के बाद भाजपा से नाता तोड़ने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए जावेद ने कहा कि इस प्रदेश में आए सकारात्मक विकास को देखते हुए यहां की जनता और भी बदलाव चाह रही है।


एक मजा यह भी देखिये कि आतंकवाद के विरुद्ध पंजाब में राष्ट्र के सेनानायक पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल ने गोदरा दंगों के मामले में नरेंद्र मौदी को क्लीन चिट दे दी है।पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल का कहना है कि नरेंद्र मोदी को गोधरा दंगों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि कानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटना पुलिस नेतृत्व का काम है।


गिल ने नी दिल्ली में  संवाददाताओं से कहा कि कानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटना पुलिस नेतृत्व का काम है, न कि राजनीतिक नेतृत्व का। संवाददाताओं ने गिल से पूछा था कि गोधरा दंगों के निपटने में मोदी की भूमिका को वह किस तरह देखते हैं।


साल 2002 में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सुरक्षा सलाहकार रह चुके गिल कल अपनी जीवनी केपीएस गिल: द पैरामाउंट कॉप के विमोचन के मौके पर बोल रहे थे। पुस्तक में गिल ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री हिंसा खत्म करने के प्रति गंभीर थे। उन्होंने दूसरे दलों पर मोदी को बदनाम करने का आरोप लगाया है।


उन्होंने कहा कि मैं इस बात को मानता हूं कि सभी राजनीतिक दलों के मोदी विरोधी और भाजपा विरोधी लोग इस घटना (गुजरात में 2002 को हुए दंगों) का फायदा उठा रहे हैं और किसी न किसी तरह मोदी को बदनाम करने की हर कोशिश कर रहे हैं।


गिल ने आरोप लगाया कि गोधरा में जो कुछ हुआ उसके बाद पुलिसकर्मी और प्रशासन सांप्रदायिक बन गए थे और उन्हीं दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री बने मोदी की सरकारी मशीनरी पर यथोचित पकड़ नहीं थी।


संवाददाताओं से गिल ने कहा कि राज्य के सुरक्षा सलाहकार का प्रभार लेने के बाद उन्होंने ऐसी हर जगह का दौरा किया था जहां हिंसा हुई थी और उच्च से लेकर निचले स्तर तक के पुलिसकर्मियों ने किसी  भी तरह के दिशा-निर्देश मिलने की बात से इंकार किया था।


उन्होंने यह भी कहा कि दंगों के दौरान हुईं 5-6 घटनाओं में कई लोग मरे थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि उनके परिवार के कुछ सदस्यों को उनकी टिप्पणियां पसंद नहीं आईं। गिल ने संवाददाताओं को बताया कि उनके परिवार के सदस्य अखबार पढ़ते थे जबकि वह घटनाक्रम से अवगत थे।


गिल को मई 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का सुरक्षा सलाहकार बनाया गया था ताकि राज्य में सांप्रदायिक हिंसा पर रोक के लिए कारगर कदम उठाए जा सकें।


सितम्बर में औद्योगिक सूचकांक एक वर्ष के शिखर पर


मजा यह भी देख लीजिये कि औद्योगिक उत्पादन मोदी की बनायी जा रही हवा केमुताबिक सेनसेक्स के साथ ताल से ताल मिलाते हुए शून्य से, सतह से ऊपर उठकर आंकड़ों में कैसे कुलांचे मार रहा है।बिजली, कोयला और सीमेंट क्षेत्र में दहाई अंक की बढ़ोतरी के फलस्वरूप देश के सकल औद्योगिक उत्पादन में 37.9० प्रतिशत का भारांक रखने वाले आठ प्रमुख उद्योगों की वृद्धि दर एक साल के उच्च स्तर आठ प्रतिशत पर पहुंच गई।


इसीके साथ  उच्चतम न्यायालय ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन के पद पर यू के सिन्हा की नियुक्ति को शुक्रवार को वैध करार दिया। न्यायालय ने कहा कि सरकार ने उनकी नियुक्ति ईमानदारी से की है और इसमें कानूनी प्रक्रिया का पूरा पालन किया गया। न्यायमूर्ति एस एस निज्जर और न्यायमूर्ति पी सी घोष ने सिन्हा की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। न्यायालय ने कहा कि यह याचिका कई दृष्टि से विचार करने योग्य नहीं थी, बावजूद इसके न्यायालय ने इस पर सुनवाई का निर्णय इसलिए किया, क्योंकि इसमें एक बहुत ही उच्चपद पर नियुक्ति को चुनौती दी गयी थी।


वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की तरफ से आज जारी आंकड़ो में यह जानकारी दी गई है। इस वर्ष अगस्त में वृद्धि 3.7 प्रतिशत रही थी, जबकि पिछले साल यह 8.3 प्रतिशत थी। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 3.6 प्रतिशत वृद्धि रही है जबकि पिछले साल यह 6.6 प्रतिशत थी।


आंकड़ों के अनुसार कोयला क्षेत्र ने सितम्बर13 में 12.5 प्रतिशत की बढ़त हासिल की। हालांकि यह पिछले के 22.2 प्रतिशत की तुलना में काफी कम है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही यह वृद्धि 2.3 प्रतिशत रही है। कच्चा तेल उद्योग ०.6 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ा जो। गत वर्ष यह 1.8 नकारात्मक थी। पहली छमाही में बढ़ोतरी 1.3 प्रतिशत रही है।


प्राकृतिक गैस उत्पादन की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा।


`१९८४ के सिख विरोधी हिंसा को `नरसंहार` का नाम दें`


स्रोत: Agencies      तारीख: 12/20/2012 3:56:00 PM

वाशिंगटन, दिसंबर २०: वर्ष १९८४ में सिखों के खिलाफ हुई संगठित हिंसा को `नरसंहार` नाम देने के लिए अमेरिका में ४६,००० हजार हस्ताक्षर ओबामा प्रशासन को सौंपे गए हैं।

इनमें से २९,००० ऑनलाइन हस्ताक्षर हैं। मानवाधिकार अधिकार समूह `सिख्स फॉर जस्टिस` (एसएफज) ने कहा कि सिख नरसंहार याचिका के समर्थन में एक फरवरी को कैपिटल हिल की ओर प्रस्थान करेंगे।


समूह की ओर से जारी बयान में उम्मीद जताई गई है कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय का लोकतांत्रिक, मानवाधिकार तथा श्रम ब्यूरो सिख नरसंहार याचिका को गम्भीरता से लेगा, जो अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार उल्लंघन तथा मानवता के खिलाफ अपराधों से निपटता है।

एसएफजे ने सहायक विदेश मंत्री माइकल पोजनर को सौंपी अपनी याचिका के समर्थन में `१९८४, हां यह नरसंहार है` रिपोर्ट भी पेश की।


करीब ३०० पृष्ठों की रिपोर्ट में इस बात के सबूत पेश किए गए हैं कि नवंबर १९८४ के दौरान भारत के जिन १९ राज्यों में कांग्रेस सत्ता में थी, वहां सिख बड़ी संख्या में मारे गए और कांग्रेस नेताओं ने सिख समुदाय के खिलाफ संगठित हिंसा भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नवम्बर १९८४ का नरसंहार – गुनाहगारों को सजा मिले ताकि सांप्रदायिक हिंसा पर रोक लगे एवं भविष्य सुरक्षित हो

Posted Tue, 2012-10-23 12:58 by admin

प्रति,

प्रधानमंत्री

डॉ. मनमोहन सिंह

७, रेसकोर्स रोड, नई दिल्ली

महोदय,

विषय: नवम्बर १९८४ का नरसंहार – गुनाहगारों को सजा मिले ताकि सांप्रदायिक हिंसा पर रोक लगे एवं भविष्य सुरक्षित हो

१९८४ में जो सिख्खों का नरसंहार हुआ उससे अपने देश के धर्मनिरपेक्षता तथा जनतंत्र एवं कानून के राज पर सवाल उठे है. हम बेहद दुःख तथा गुस्से की भावना से आपको, सरकार का मुखिया होने के नाते, यह आवेदन लिख रहे है. उस हत्याकांड को २८ वर्ष पूरे हुए है, फिर भी आज तक उस हत्याकांड के मुख्य आयोजकों पर मुक़द्दमा चलाकर उन्हें सजा होना तो दूर, बल्कि उन्हें आरोपियों के रूप में पहचाना भी नहीं गया है. क्या हम आम लोगों का, हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों पर कोई नियंत्रण है, जब वे लोगों कि रक्षा करने के उनके राज धर्म का खुलेआम उल्लंघन करते हैं? क्या सरकारी कर्मचारियों पर हमारा कोई नियंत्रण है, जब जिस पुलिस पर हमारी सुरक्षा कि जिम्मेदारी है, वही मुँह मोड़ ले और उल्टा खूनियों तथा बलात्कारियों की रखवाली करे? क्या अपने देश की कानून व न्यायव्यवस्था पर हमारा कोई नियंत्रण है, जिसने लगातार हमें न्याय देने से इन्कार किया है और सत्ताधारी राजनितिक पार्टी के राजनितिक हित के मुताबिक अपने आप को ढाला है?

काफी सोचने के बाद हम इस नतीजे पर पहुँचे है कि १९८४ में ७००० से ज्यादा सिख्खों की हत्या करने वाले गुनाहगारों को अगर सजा दी जाती, और उससे उचित सबक सीखे जाते, तो २००२ के गुजरात के दंगे न होते, ओडिशा में ईसाईयों की हत्या नहीं होती, और हाल ही में असम में जो हत्याकांड हुआ, वह नहीं होता. मगर सजा दिलाना तो दूर, वास्तव में १९८४ के हत्याकांड के प्रमुख आयोजकों को मिनिस्टर बनाया गया, एवं उस हत्याकांड में सक्रीय योगदान देने वाले और बाद के गत २८ वर्षों में न्याय के रास्ते में रोढा खड़ा करने वाले पुलिस तथा प्रशासन के उच्चाधिकारियों को सम्मान तथा पदोन्नती से पुरस्कृत किया गया. २००५ में नानावटी रिपोर्ट देखकर आपने शर्म से अपना सिर झुकाया था और यह आश्वासन दिया था कि आरोपियों के खिलाफ कड़े कदम उठाये जायेंगे. तबसे ७ वर्ष बीत गए मगर आरोपियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई हमें दिखाई नहीं देती. इसीलिए, इस आवेदन पर अपने दस्तख़त करने वाले, हम, आपसे माँग करते है की –

1. बेकसूर नागरिकों की हत्या के लिए जिम्मेदार गुनाहगारों को सजा सुनिश्चित हो. उसके लिए यह आवश्यक है कि उन सभी पुलिस फाईलों को फिर से खोला जाये एवं पुनः जाँच पड़ताल की जाये, जिन फाईलों को पुलिस ने बंद कर दिया है. और उन सभी मुकद्दमों को फिर से चलाया जाये जिनमें गलत तरीके से पुलिस खोजबीन की वजह से आरोपियों को रिहा कर दिया गया है, या इस बहाने से कि प्रत्यक्षदर्शी पेश नहीं किये गये.

2. एक विशेष जाँच टीम, जिसमें दिल्ली पुलिस के दायरे के बाहर के अधिकारी हों, इन सभी मुकद्दमों की फिर से जाँच पड़ताल करे और इस जाँच की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय करे.

3. मुक़द्दमों को विशेष शीघ्रपथ न्यायालय में चलाया जाये और एक विशेष पथक द्वारा सर्वोच्च न्यायालय उसकी कार्यवाईयों पर निगरानी रखे.

4. जाँच पड़ताल का दायरा बढाया जाये ताकि दूसरे सभी राज्यों में भी जाँच की जाये जिनमें नवंबर १९८४ में सिख्खों का कत्लेआम किया गया था.

5. सांप्रदायिक तथा फिरकापरस्त हिंसा के साथ निपटने के लिये एक नया कानून तुरंत बनाया जाये. मानवी इतिहास में सबसे बड़े सांप्रदायिक हत्याकांड के साथ अपने देश के बँटवारे के ६५ वर्ष बाद, १९८४ में सिख्खों के हत्याकांड के २८ वर्ष बाद, और आपकी ही सरकार द्वारा ८ वर्ष पहले इस तरह के कानून बनाने की जरूरत मानने के बावजूद, इस दिशा में कुछ नहीं होना दुःख की बात है. इस तरह के हत्याकांड की भविष्य में रोकथाम में आपकी सरकार की रुची, कितनी खरी है, इसपर सवाल उठ रहा है.

6. गुनाहगारों को सजा दिलाने के संघर्ष में लगे लोगों ने, जिनमें कई ज्ञानी विधिद्न्य भी शामिल है, उन्होंने कानूनों के कुछ मसौदे तैयार किये हैं. वे माँग उठा रहे हैं कि कानून में आलाकमान की जिम्मेदारी को भी शामिल किया जाये. नागरिकों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सत्तासीन तथा अधिकारियों को गुनह्गार करार दिया जाय और जबाबदेह माना जाय, अगर वे नागरिकों की सुरक्षा करने में नाकामयाब होते हों.

हमारी माँगे अपने पूरे देश के सभी न्यायप्रिय लोगों के जमीर को दर्शाती हैं. हमारी यह अपेक्षा है की, इस देश का प्रधानमंत्री होने के नाते, आप खुद का राजधर्म निभाने के लिए वे सारे कदम उठाएं जिनकी हम माँग कर रहे हैं, ताकि नवंबर १९८४ जैसी दुखद घटनाएँ फिर अपने देश में कभी न हों.

इस आवेदन पर दस्तखत करनेवालों की सूची

1. जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर

2. टी. एस. संकरन, निवृत्त आई. ए. एस. अधिकारी

3. जस्टिस होस्बेट सुरेश

4. फली नरीमन

5. जस्टिस अजित सिंह बैंस

6. कॉमरेड लाल सिंह, हिन्दुस्थान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के महासचिव

7. कुलदीप नय्यर

8. जस्टिस राजिंदर सच्चर

9. एस राघवन, अध्यक्ष, लोक राज संगठन

10. शांती भूषण, पूर्व कानून मंत्री

11. शोनाली बोस, फिल्म निर्माता

12. मधू किश्वर, मानुषी

13. प्रशांत भूषण, वरिष्ट एडवोकेट, सर्वोच्च न्यायालय

14. तीस्ता सेतल्वाड, सामाजिक कार्यकर्ता

15. प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, दिल्ली विश्वविद्यालय समाज शास्त्र विभाग की प्रमुख

16. गीता आर., "अमु" फिल्म की सहनिर्माता

17. शिनानंद कणवी, संपादक, ग़दर जारी है

18. राजविंदर सिंह बैंस, वरिष्ट एडवोकेट, चंदिगढ

19. सुचरिता, सचिव, पुरोगामी महिला संगठन

20. ए. मैथ्यू, सचिव, कामगार एकता चलवल, महाराष्ट्र

21. डॉ. संजीवनी जैन, प्रोफेसर, वझे कॉलेज, मुंबई

22. प्रोफेसर बी. अनंतनारायण, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सायन्स, बंगलुरु

23. प्रकाश राव, प्रवक्ता, हिन्दुस्थान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी

24. बिरजू नायक, दिल्ली सचिव, लोक राज संगठन

दिल्ली १९८४

इन दिनों नानावती रिपोर्ट के बाद १९८४ में दिल्ली में हुई घटनाओं के घाव फिर से खुल गये हैं. मैं उन दिनों इटली से अपनी पत्नी और कुछ महीने के बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रहा था.


जहाँ हम रहते थे वहां ६ सिख परिवार थे, एक मुस्लिम और एक ईसाई, बाकी के घर हिंदु थे. जब शहर से दंगों के समाचार आये, हम सब लड़कों ने मीटिंग की और रक्षा दल बनाया, बाहर से आने वाले दंगा करने वालों को रोकने के लिए. हांलाकि छतों से शहर में उठते जलते मकानों के धूँए दिख रहे थे, पर सचमुच क्या हुआ यह तो हमें पहले पहल मालूम नहीं हुआ. वे सब समाचार तो कुछ दिन बाद ही मिले.


आज प्रस्तुत है अर्चना वर्मा की कविता "दिल्ली ८४" के कुछ अंश, उनके कविता संग्रह "लौटा है विजेता" से (१९९३). अगर पूरी कविता पढ़ना चाहें तो यहां क्लिक कीजिये.


दिल्ली ८४

दिन दहाड़े

बाहर कहीं गुम हो गया

सड़कों पर

जंगल दौड़ने

लगा.


उसके घर में

आज चूल्हा नहीं जला

चूल्हे में आज

घर

जल रहा था.


ऐन दरवाजे पर

मुहल्ले के पेट में

चाकू घोंप कर

भाग

गया था कोई.

रंगीन पानी में नहाई पड़ी थीं

गुड़ीमुड़ी गलियाँ, खुली हुई

अँतड़ियाँ.

http://jonakehsake.blogspot.in/2005/08/blog-post_21.html



Yashwant Singh
लोग फेसबुक पर बड़ी बड़ी बातें करते हैं... लेकिन मौके पर नहीं पहुंचते..
सवा सौ मीडियाकर्मी बेमियादी हड़ताल पर हैं, क्या हम आप आज सुबह 12 बजे फिल्म सिटी में महुआ न्यूज के आफिस के सामने नहीं पहुंच सकते?
Yashwant Singh
मत करना नौटंकी कि लड़ने वाले दिख नहीं रहे... पिछले 48 घंटे से वो बच्चे अपने मां पिता पत्नी बच्चे परिवार गांव जिला सब छोड़कर एक लुटेरे किस्म के मीडिया मालिक के आफिस में बैठे हुए हैं... वो लड़ रहे हैं... वो आंदोलन के अहिंसक फार्म को अपनाए हुए हैं.. उन्हें पता है कि उनके समर्थन में कोई नहीं आएगा क्योंकि वो एक मीडिया हाउस और उसके हरामखोर मालिक के खिलाफ लड़ रहे हैं.. पर आप तो आ सकते हैं क्योंकि आप कहते हैं कि हम ऐसे हालात, आंदोलनों, स्थितियों को खुलकर सपोर्ट करते हैं...
आज दिन में बारह बजे...
महुआ मीडिया प्रा. लि.

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1984 PROTEST, SPECIAL PLAY, CANDLE LIGHT VIGIL AT JANTAR MANTAR DATE- 1st NOVEMBER, FRIDAY, TIME 5 P.M. (SPL. SAJJAN KUMAR AND JAGDEESH TYTLER'S EFFIGY'S) Share this message with maximum and join us.

गुजरात: 'एकता की मूर्ति' हेतु जमीन अधिग्रहण का विरोध

गुजरात में नर्मदा (सरदार सरोवर बांध) बांधस्थल के नजदीक प्रस्तावित सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची 'एकता की मूर्ति' को इसके आसपास के 70 गांवों के आदिवासियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। गत 2 अक्टूबर को करीब 2000 आदिवासी, आदिवासी बहुल नर्मदा जिले के नांडोड तालुका के इंद्रवर्ण गांव के नजदीक इकट्ठा हुए और उन्होंने इस क्षेत्र में पर्यटन के उद्देश्य से भूमि अधिग्रहित किए जाने के सरकारी प्रस्ताव का विरोध किया।

केवड़िया क्षेत्र विकास प्राधिकरण (काडा) जिसका सन् 2005 में इस क्षेत्र में पर्यटन अधोसंरचना विकास हेतु गठन किया गया था, ने इस वर्ष के शुरू में 54 गांवों की पंचायतों से इस संबंध में सहमति मांगी थी। इनमें से 29 गांव संरक्षित वन क्षेत्र में आते हैं। काडा विरोध मंच जो कि नरेंद्र मोदी के सपनो की परियोजना का विरोध कर रहे लखी भाई का कहना है कि, ''काडा ने ग्रामीणों से कहा है कि वे उसके साथ अपनी भूमि की हिस्सेदारी करें। काडा ने यह भी कहा है कि यदि उन्होंने (ग्रामीणों) समय पर उत्तर नहीं दिया तो इसे उनकी सहमति मान लिया जाएगा और उनकी भूमि ले ली जाएगी। अधिकांश ग्राम पंचायतों ने 'इंकार' कर दिया है और उनका कहना है कि वे बजाए नगर नियोजन के अपनी ग्राम पंचायतों के प्रावधानों के अंतर्गत ही विकास करेंगे।''

काडा की योजना है कि वह इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नगर नियोजन योजना के अंतर्गत ही विकास करे जिससे कि वह होटल, केंपिंग ग्राउंड, ट्रेकिंग स्थल, रिसोर्ट, वाटर पार्क, गोल्फ कोर्स आदि निर्मित कर सकें। प्रस्तावित 'एकता की मूर्ति' की वजह से पर्यटन में विस्तार की संभावनाओं को देखते हुए काडा ताबड़तोड़ कार्य करना चाह रहा है। मूर्ति का निर्माण बांध से नीचे की ओर करीब 3.2 किलोमीटर की दूरी पर साधु टेकरी पर होगा। उम्मीद है कि इसका कार्य सन् 2014 की शुरुआत में प्रारंभ होगा और यह 4 वर्षों में पूरा हो जाएगा। लेकिन काडा को आदिवासी गांवों से विरोध का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वे अपनी भूमि नहीं देना चाहते। केवड़िया गांव निवासी विक्रम ताड़वी का कहना है कि, ''सरकार को जमीन देना कोई अच्छा विचार नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने अब तक उन 16 गांवों के किसानों को मुआवजा नहीं दिया है जिनकी जमीनें नर्मदा बांध की वजह से डूब में आ गई थीं। ग्रामीणों को तो अभी तक पूर्व में हुई हानि का ही मुआवजा नहीं मिला है और सरकार विकास के लिए और जमीन चाहती है? हमारा विचार है कि हमें हमारी भूमि का ठीक मुआवजा नहीं मिला। यदि एक बार हमसे हमारी जमीन ले ली तो हम आजीविका कैसे चलाएंगे।''

विरोध कर रहे आदिवासियों ने 'जान देंगे-जमीन नहीं' 'जमीन रोटलो आपे छे', 'आमरो गांव -आमरो राज' और 'विकास जोइये छे ना कि विनाश' जैसे नारे लगाए और काड़ा का विरोध किया। ( साभार: इंडियन एक्सप्रेस)

। सरदार वल्लभभाई पटेल की 137वीं जयंती के मौके पर उनकी एक मूर्ति की नींव डाली गई। यह मूर्ति जिसे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का नाम दिया गया है, दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। अगर आपके मन में अमेरिका के स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी आ रहा है, तो हम आपको बता दें कि पटेल की यह प्रतिमा उसकी पांच गुनी ऊंची होगी। प्रतिमा की ऊंचाई 182 (597 फुट)मीटर होगी। पटेल की यह प्रतिमा गुजरात में बहने वाली नर्मदा नदी के बीच स्थित एक टापू पर बनायी जाएगी, जिसमें करीब 2063 करोड़ रुपए का खर्च आयेगा। इस प्रस्तावित मूर्ति का निर्माण अगले चार वर्ष में पूरा हो जायेगा। इस मूर्ति के निर्माण में लोहे और कॉन्क्रीट सीमेंट का इस्तेमाल किया जायेगा और ऊपर से कांस्य की कोटिंग की जायेगी। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट है और उन्होंने इस मूर्ति के लिये देश भर से लोहा इकठ्ठा करने की बात कही है। इस मूर्ति के लिये लोहे को गांव-गांव से एकत्र किया जायेगा। एक गांव से लोहे का एक टुकड़ा इकठ्ठा किया जा रहा है, जिसका भार एक किलो से ज्यादा नहीं होगा, ताकि यह मूर्ति किसानों के खून पसीने की याद दिलाये और देश भर के किसानों के एक होने का प्रतीक बने। देश भर से जितना लोहा इकठ्ठा होगा, उसे पिघला कर मूर्ति में लगाया जायेगा। जिन किसानों के लोहे के टुकड़े लगाने लायक नहीं होंगे, उन्हें मूर्ति के चारों ओर बनाये जाने वाले परिसर में लगा दिया जायेगा। अगर कम पड़ा तो स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया से लोहा लिया जायेगा। इस मूर्ति के साथ-साथ सरदार सरोवर निगम परियोजना के अंतर्गत उसी क्षेत्र में करीब 400 फुट ऊंचा एक डेक बनाया जायेगा, जहां पर एक साथ 200 लोग खड़े होकर इस मनोरम दृश्य का लुत्फ उठा सकेंगे। उस डेक से सत्पुड़ा और विंध्याचल के पहाड़ों का भी नजारा देखने को मिलेगा। हम आपको बता दें कि भारत में अब तक की सबसे ऊंची मूर्ति भगवान बजरंग बली की विजयवाड़ा आंध्र प्रदेश में है। उसकी ऊंचाई 41 मीटर यानी 135 फुट है। इस मूर्ति का निर्माण 2003 में किया गया था।


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Xavier Dias
A Sad day for the real Jharkhandi people
29 years ago (on the day Indira Gandhi was also murdered) here in the forest of Bandgaon Singhbhum Jharkand one of our comrades Lal Singh Munda (Adivasi of the Munda tribe) was gunned down by non Adivasi Bajrang (Hindu right wing) activist. The killers were also a group of land sharks. In the midst of Bandgaon the Munda community had their ancestral sacred graves and sacred grove. Bajrang wanted to build a temple for Hanuman (Monkey god) there and Lal Singh Munda being the Chieftain of the village protested. His wife Josephine Hamsay was carrying their fourth child.

Lal Singh Munda was a Jharkhand Mukti Morcha JMM activist and it was during the good times of this political organisation when they were leading the 'Jamin wapas andoland' (we are taking our forest land back movement)
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जनज्वार डॉटकॉम
मुजफ्फरनगर दंगों में किसानों के नुकसान की ओर सपा सरकार बिल्कुल गम्भीर नहीं है और उपद्रवी लगातार किसानों का नुकसान कर रहे हैं. प्रत्येक किसान को पांच-पांच लाख का मुआवजा दिया जाना चाहिए...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4479-azam-khan-ko-turant-barkhast-kare-sp-by-sanjeev-chaudhary-for-janjwar

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Yashwant Singh
आज दिन में बारह बजे....
Sanjay यशवंत भाई, आज दिन में 12 बजे महुआ टीवी स्टूडियो पर होने वाला कार्यक्रम निम्न लिंक से लाइव प्रसारण देखा जा सकेगा. इसे अपनी फेसबुक वाल और भड़ास पर प्रकाशित कर दीजिये ताकि अधिक से अधिक मित्र इस आन्दोलन के साक्षी बन सकें.. http://mediadarbar.com/mahua-tv-protest/



Ram Puniyani
The claim that the Somnath reconstruction was done as per the decision of the Nehru cabinet. is a total lie. Since the public memory is too short anything propagated repeatedly starts sounding like being true, Contrary to what is being propagated a little peep into the recent history will show us that Indian Government had nothing to do with the reconstruction of Somnath temple. The lie that Nehru Government had reconstructed or supported Somnath reconstruction is a distortion of the fact that two ministers of Nehru cabinet were involved in the reconstruction in their personal capacity. As such when the idea of reconstructing temple at Somnath was mooted by Sardar Patel, Gandhi who was alive at that time opined that Hindus are themselves capable to build the temple and they don't need Government money or assistance for reconstruction neither should Government give money for such a construction.

With the death of Sardar Patel, K.M.Munshi and N.V...See More


(PAKISTAN OR PARTITION OF INDIA, Page 358), 1940http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ambedkar/ambedkar_partition/index.html

"Hindutva is nothing but the desire of Brahmins to restore Brahmanism"

Ambedkar knew that India is not Hindustan and wanted to prevent any such claim... as is now being claimed that Hindutva is the same as 'Indian' and 'cultural nationalism'. 'Cultural Nationalism' is FACISM, borrowed from the NAZIS by the propagator of Hindutva. http://www.lrb.co.uk/v34/n14/perry-anderson/why-partition

पटना धमाके का गुजरात कनेक्शन...

पटना धमाके की तफ्तीश में एक नया मोड़ सामने आया है. दैनिक अखबार 'हिन्दुस्तान' के मुताबिक गांधी मैदान में मंगलवार को तफ्तीश के दौरान जो तीन जिन्दा बम बरामद किए थे, उनमें से एक जिस पॉलिथिन में पाया गया, उस पर गुजरात का पता है. अब तफ्तीश का एक एंगल यह भी है कि आतंकियों के पास यह पॉलिथीन आया कहां से? क्या आतंकियों ने इस पॉलिथान को गांधी मैदान में कहीं से पाया या उनमें से कोई गुजरात से ही इस साज़िश को अंजाम देने में लगा था? यानी एनआईए व बिहार पुलिस अब इस बात का भी पता लगाएगी कि कहीं इस धमाके में गुजरात कनेक्शन तो नहीं... http://beyondheadlines.in/?p=19239

पटना धमाके का गुजरात कनेक्शन | Beyond Headlines : An attempt to 'report a cause aright'

beyondheadlines.in

पटना धमाके का गुजरात कनेक्शनPosted by: admin October 31, 2013in India, LeadLeave a commentBeyondHeadlines News Deskपटना धमाके की तफ्तीश में एक नया मोड़ सामने आया है. दैनिक अखबार 'हिन्दुस्तान' के मुताबिक गांधी मैदान में मंगलवार


Yashwant Singh
आज दिन में बारह बजे.. किसी वामपंथी का ये आयोजन नहीं है और ना ही किसी दक्षिणपंथी का... ये अघोरपंथियों का जमावड़ा हैं... आएंगे तो आनंद आएगा.. ना आएंगे तो भी आपकी जय जय...
http://www.bhadas4media.com/print/15529-2013-10-31-08-03-49.html
Harnot Sr Harnot
प्रख्‍यात साहित्‍यकार और हमारे प्रिय मित्र ओम प्रकाश वाल्‍मीकि जी इन दिनों काफी अस्‍वस्‍थ है। आईए हम सभी उनके शीघ्र स्‍वस्‍थ होने की कामना करते हैं।

Abhishek Srivastava
अमेरिका के सीरिया, इराक या अफगानिस्‍तान पर हमले खिलाफ प्रदर्शन करना अच्‍छा और आसान है, लेकिन अपने मोहल्‍ले में पार्क पर हो रहे कब्‍जे के खिलाफ बोलना हमें असहज करता है। पड़ोसी के बच्‍चे को इंकलाबी पाठ पढ़ाना सबसे मज़ेदार होता है, ज़रा अपने घर के बच्‍चे पर इंकलाब आज़मा कर देखिए, घरवाले तबियत हरी कर देंगे।

दरअसल, हमारे आसपास छोटे-छोटे शोषण के किस्‍से हमारी वैचारिकता को सूट नहीं करते या फिर हम उन पर संदेह करते हैं जबकि होना यह चाहिए कि दूरी के हिसाब से विश्‍वसनीयता तय हो। यह हमारे विरोध की सीमा भी है और शोषण का मज़ाक भी।

लाखों बच्‍चे लाखों रुपये फूंककर पत्रकार बन रहे हैं हर साल और मीडिया के चिटफंडधारी मालिकान उन्‍हें हर साल भिखारी बनाए दे रहे हैं। एक चैनल है खबर भारती, जिसमें कुछ महीने नौकरी कर के मैंने मालिकान के नज़रिये को करीबी से महसूस किया है। एक चैनल है न्‍यूज़ 24, जहां पत्रकारों को भिखारियों की तरह कम्‍बल बांटे गए हैं दिवाली बोनस के नाम पर। एक अख़बार है दैनिक भास्‍कर, जो सस्‍ती रजाई बांटता है। इन पर हमारी नज़र नहीं जाती। हम अंबानियों के चैनल का विरोध करते हैं जबकि देखते-देखते वहां से छांटे गए लोग दोबारा दीवाली मनाने के काबिल हो जाते हैं। सारा विरोध फुस्‍स...।

महुआ चैनल के सवा सौ कर्मचारियों को रजाई-कम्‍बल का बोनस तो दूर, तीन महीने की तनख्‍वाह भी मयस्‍सर नहीं। आप मिठाई खाएं, धनतेरस पर बरतन खरीदें, तो एक बार ज़रूर सोचें उनके बारे में, जो दो दिन से न्‍यूज़रूम में धरना दिए बैठे हैं। कुछ ज्‍यादा करना चाहते हैं तो कुछ देर बाद आज 12 बजे फिल्‍म सिटी पहुंचें। भाईYashwant Singh अच्‍छा काम कर रहे हैं सबको जुटाकर, आप भी इस पुण्‍य काम में आचमन करें। समय निकालें। छोटी-छोटी लड़ाइयां ही बड़े जंग की ज़मीन तैयार करेंगी।

स्‍थान: महुआ चैनल, फिल्‍म सिटी, नोएडा
समय: 12 बजे
दिन: आज, अब से डेढ़ घंटे बाद

Yashwant Singh
मैं कभी नहीं चाहता कि मुझे ऐसा काम करना पड़े जिसके लिए मुझे कई लोगों को आवाज देना पड़े... अपनी आरामतलब दुनिया से परे कहीं जाना पड़े... पर आदत से मजबूर हूं... जब लगता है कि सवा सौ लड़के एक मीडिया हाउस को कब्जा करके अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं तो मैं शांत, आराम से कैसे बैठ सकता हूं... मेरी औकात ज्यादा नहीं है लेकिन एक मनुष्य के बतौर अपनी सीमाओं संवेदनाओं से परे हर उस पल को जीना देखना सपोर्ट करना चाहूंगा जहां मेरी जरूरत है... क्या मैं सिर्फ यशवंत हैं या आप सभी लोग... मैंने अभी तक तय नहीं किया है कि वहां पहुंचने वाले सैकड़ों लोगों में किसको कहूंगा कि आप अध्यक्षता कर लो और किसको कहूंगा कि संचालन करें.. ये करना भी नहीं चाहिए क्योंकि न तो मैं वामपंथी हूं और ना दक्षिणपंथी.... अपन अघोरपंथी रहे थे और रहेंगे... अक्सर लगता है कि मैं पूरा औघड़पंथी संप्रदाय का आदमी हूं जहां पांच म यानि मत्स्य मदिरा मांस मैथुन मुद्रा के लिए जीते हैं... पर आजकल की जो मेरी हालत है, उसमें ये पांच म भी मुझे लुभाते नहीं... ज़िंदगी यही है... जो मान लेते हो और उसके अपना लेते हो तो वो घटिया और छोटे लोगों की चीज लगने लगती है.. फिर भी, अगर हम आंख नाक कान दिल दिमाग को खुल कर रखते हैं तो जरूर ये करना चाहिए जहां बिलकुल हम जैसे ही लोग बड़ी संख्या में अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हों, जहां उन्हें कोई उम्मीद नहीं कि इस लड़ाई के बाद उनकी मंजिल क्या होगी... हम आज दिन में बारह बजे न सिर्फ जाएंगे बल्कि मनुष्यता, ब्रह्मांड, यूनिवर्स, गाड पार्टिकल, आत्मा, परमात्मा के हित में गुन गाएंगे....
देखते हैं कौन जिंदा लोग आते हैं, वरना मुर्दों की फौज तो यहां पड़ी ही हुई है...
Yashwant Singh
हे ...... जी,

कल दोपहर बारह बजे आप को और आपके गिरोह (जिस भी धंधे, ग्रुप से जुड़े हों, उसके एक-दो साथियों) को महुआ न्यूज (नोएडा फिल्म सिटी) आना है. वहां सवा सौ कर्मी आफिस कब्जाएं हैं.. उनके समर्थन में हम लोग कुछ बातें करेंगे. चाय पियेंगे.

कृपया उपरोक्त 'हे' और 'जी' के बीच की डाट डाट डाट में अपना नाम खुद भर लें और इस न्योते को कुबूल करें.. ...See More

Uttam Sengupta
The Prime Minister, says Modi, demeaned Sardar Patel by confining him as a Congress leader ! And Modi elevated Nehru by restricting him as a Congress leader ? This man is so stupid that he does not even realise what he is saying.
  1. सौ साल के आंकड़ों का सग्रहालय

  2. लोकतेज-23-10-2013साझा करें

  3. १९६७ के तहत ३१ अक्टूबर १९८४ की तिथि के रूप में पुर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत्यु को दर्ज किया गया है। इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी का जन्म रजिस्ट्रेशन संख्या १०३ के तहत १४ दिसंबर १९४६ के रूप में दर्ज है। एनडीएमसी के स्वास्थ्य विभाग ...

  4. *
  5. Sahara Samay

  6. दादी, पापा की तरह मुझे भी मार देंगे : राहुल गांधी

  7. लोकतेज-23-10-2013

  8. वे मेरी दादी की देखभाल करते थे। एक का नाम सतवंत िंसह और दूसरे का बेअंत िंसह। उन्होंने मुझे बैडिंमटन खेलना सिखाया। हमारे बीच काफी अच्छी दोस्ती थे। उनमें मेरा भरोसा था। एक दिन १९८४ में बेअंत िंसह ने मेरे पास आया और मुझसे दो-तीन सवाल पूछे ...

  9. *
  10. जिस दिन इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी

  11. विस्फोट-30-10-2013

  12. ३१ अक्टूबर १९८४, नई दिल्ली. सुबह साढ़े नौ बजे के आस पास मित्र राम चन्द्र सिंह का फोन आया कि इंदिरा गांधी को उनके घर में ही किसी ने गोली मार दी है. इलाज के लिए आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज में ले जाई गयी हैं. उस वक्त ...

  13. *
  14. चुनावी सर्वेक्षण की चकल्लस

  15. विस्फोट-22-10-2013

  16. १९८४ में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में ३८ दलों ने हिस्सा लिया था। राजीव गांधी जब १९८९ में विश्वनाथ प्रताप सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे तब दलों की संख्या ११७ हो चुकी थी। १९८४ के बाद किसी भी एक दल को न बहुमत मिला, ...

  17. कुस्ती हाच अंतिम श्वास...

  18. maharashtra times-26-10-2013

  19. सतपालला चितपट केल्यानंतर ज्यांची कोल्हापूरकरांनी हत्तीवरून मिरवणूक काढली होती , त्या हरिश्चंद्र बिराजदार यांना चितपट करण्याची किमया केली होती. वडार यांची अखेरची कुस्ती १९८४ मध्ये बाळू पाटील यांच्याबरोबर झाली होती ...

  20. लक्ष्मण वडार यांचे निधन

  21. maharashtra times-26-10-2013

  22. १९७३ मध्ये अकोला येथे झालेल्या महाराष्ट्र केसरीमध्ये त्यांनी नगरच्या रघुनाथ पवार यांना चितपट करत डब्बल केसरी होण्याचा मान मिळवला. त्यांनी अखेरची कुस्ती १९८४ मध्ये बाळू पाटील व गुलाब बर्डे यांच्याबरोबर खेळले होते.

  23. ३५ वर्षांपासून पसार कैद्यांचा शोध सुरू

  24. maharashtra times-18-10-2013

  25. दुसरा कैदी राजेंद्र कुमार ९ नोव्हेंबर १९८४ रोजी जेलमधून पॅरोलवर सुटला आहे. राजेंद्र कुमारला हाणामारीच्या गुन्ह्यात दोन वर्षांची शिक्षा लागली होती. ही शिक्षा भोगत असताना तो पॅरोलवर सुटल्यानंतर पसार असून, आजपर्यंत ...

  26. लक्ष्मण वडार यांच्यावर केर्ले येथे अंत्यसंस्कार

  27. maharashtra times-26-10-2013

  28. आपल्या कुस्तीजीवनातील अखेरची कुस्ती ते १९८४ मध्ये बाळू पाटील व गुलाब बर्डे यांच्याबरोबर खेळले. १९८४ मध्ये त्यांची महापालिकेच्या मल्लांना प्रशिक्षण देण्यासाठी प्रशिक्षक म्हणून निवड झाली होती. लक्ष्मण वडार यांच्या ...

  29. गव्हर्मेन्ट क्वॉर्टर्सची दुरवस्था

  30. maharashtra times-23-10-2013

  31. ... असा प्रश्न येथील रहिवाशांना पडला आहे . सिडकोने १९८४ ला कळंबोली सेक्टर ४ येथे तळमजला व पहिला माळा अशा २२ इमारती बांधल्या . या कॉलनीमध्ये सध्या ८० कुटुंबे राहतात . बरीचशी कुटुंबे २० ते २६ वर्षांपासून या कॉलनीत राहत आहेत .

  32. RECOGNIZE "SIKH GENOCIDE" - 30000+ KILLED ... - We the People

  33. https://petitions.whitehouse.gov/petition/...sikh-genocide...genocide/Py4...

  34. इस साइट के robots.txt के कारण इस परिणाम का विवरण उपलब्ध नहीं है – अधि‍क जानें.

  35. Petition to be submitted to United Nations for intervention in 1984 ...

  36. articles.timesofindia.indiatimes.com/.../...

  37. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

  38. 17-10-2013 - JALANDHAR: On the occasion of 29th anniversary of 1984 anti-Sikh riots in Delhi, a petition signed by around a million Sikhs throughout world, ...

  39. SIKH GENOCIDE PETITION form - Causes

  40. https://www.causes.com/actions/1691662-sikh-genocide-petition-form

  41. 10-10-2012 - A petition which will be presented to the United Nations in the month of November by AISSF and Sikhs for Justice (SFJ), a human rights ...

  42. Please Sign Petition On 1984 Sikh Genocide - WHAT'S ...

  43. www.sikhsangat.com/index.php?/...peti...

  44. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

  45. 29-05-2013 - Please Sign Petition On 1984 Sikh Genocide - posted in WHATS HAPPENING?: Please sign this Petition 1984 YES IT'S GENOCIDE The 1984 ...

  46. Sikh Genocide Petition Form - aissf

  47. www.aissf.in/petition%20form.aspx

  48. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

  49. Sikh Genocide Petition Form · Enquiry Commision Work · Articles · Download Punjabi Fonts · Punjabi Alphabets · HOME · Golden ... Sikh Genocide Petition Form ...

  50. Petition to President Obama "Recognize Sikh Genocide" | Facebook

  51. https://www.facebook.com/events/171536169651665/

  52. Sign the "Genocide Petition" addressed to President Obama. http://wh.gov/XZj1. NOVEMBER 1984 "GENOCIDE – NOT ANTI-SIKH RIOTS" 25000 SIGNATURES ...

  53. Sikh groups seek UN intervention for 1984 Sikh Genocide victims ...

  54. www.sikhsiyasat.net/.../sikh-groups-see...

  55. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

  56. 18-10-2013 - The Sikh Genocide Petition will be handed to Navi Pillay, UN Human Rights Chief by a delegation of Sikh NGO's All India Sikh Students ...

  57. Sikh Youth Show: 1984 Sikh Genocide Petition - YouTube► 45:41► 45:41

  58. www.youtube.com/watch?v=dj6MMEKhC-k

  59. 23-10-2013 - Sikh Channel Videos द्वारा अपलोड किया गया

  60. A Sikh Youth Show special regarding the 1984 Sikh Genocide Petition to be submitted to the United Nations ...

  61. 1984 Sikh Genocide UN Petition - YouTube► 1:53► 1:53

  62. www.youtube.com/watch?v=1Zn4tbci0so

  63. 03-10-2013 - November 1984 Sikh Genocide द्वारा अपलोड किया गया

  64. Please Support and Sign the Sikh Genocide Petition. http://www.1984yesitsgenocide.org http://www ...

  65. 234,000 परिणामों में से 2 पृष्‍ठ (0.54 सेकंड)

    खोज परिणाम

    1. 1984 Violence Against Sikhs - Genocide Petition Tabled Before ...

    2. www.panthic.org/articles/5480

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    4. 20-12-2012 - With more than 46000 signatures (29,000 online and 17000 on paper), theSikh Genocide Petition is the first ever petition submitted to the US ...

    5. Sikhs to Submit Petition to UN on '84 Sikh Genocide | 1984 Anti-Sikh ...► 1:22► 1:22

    6. www.youtube.com/watch?v=nIDo7PeMlWk

    7. 6 दिन पहले - Dayandnightnews Chd द्वारा अपलोड किया गया

    8. Website: http://www.dayandnightnews.com/ Facebook: https://www.facebook.com/dayandnightnewss Twitter ...

    9. 1984 Sikh Genocide, Sign the petition - delivered to UN in Geneva ...► 1:54► 1:54

    10. www.youtube.com/watch?v=aO7_qQjc9qM

    11. 24-10-2013 - Sikh Helpline द्वारा अपलोड किया गया

    12. For those who can do a simple action for the Sikh Panth, please support the petition for the 1984 Sikhs for ...

    13. Akal Takhat directs Sikh Groups to file 1984 Genocide Petition with UN

    14. www.sikhnet.com/.../akal-takhat-directs...

    15. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

    16. 23-10-2013 - Amritsar (October 21, 2103): On the 29th year of 1984 genocidal attacks onSikh community, Sri Akal Takhat Sahib Jathedar Giani Gurbachan ...

    17. Petition to President Obama to recognize "SIKH GENOCIDE"

    18. www.sikhsforjustice.org/?.../petition...si...

    19. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

    20. The intentional and deliberate nature of the attacks on Sikh lives, properties and places of worship during November 1984 makes them crime of GENOCIDE as ...

    21. Sikh Genocide Petition Qualifies For Obama Administration Response

    22. newsblaze.com/.../topstory.htm...

    23. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

    24. Alan Gray द्वारा - 1,225 Google+ मंडलियों में

    25. 07-12-2012 - A petition with more than 25000 signatures demanding recognition of November 1984 Sikh Genocide will go before Obama administration on ...

    26. Sikh genocide petition has no place in Canada | National Post

    27. fullcomment.nationalpost.com/.../sikh-...

    28. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

    29. 10-06-2010 - Liberal leader Michael Ignatieff isn't backing fellow Liberal MPs Andrew Kania and Sukh Dhaliwal, who read a petition in the House of ...

    30. 1984 Sikh Genocide Memorial: Siali withdraws petition challenging ...

    31. www.yespunjab.com/sikh/.../32694-19...

    32. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

    33. 23-10-2013 - 1984 Sikh Genocide Memorial: Siali withdraws petition challenging the authority of Akal Takht.

    34. Petition | 1984 Yes It's Genocide | Change.org

    35. https://www.change.org/petitions/1984-yes-it-s-genocide

    36. I just signed the following petition addressed to: United Nations. ---------------- Investigate the 1984 Sikh Genocide During the first week of November 1984, the ...

    37. Sikh genocide petition news updates on Hindustantimes.com

    38. www.hindustantimes.com/.../search.asp...

    39. इस पृष्ठ का अनुवाद करें

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    *

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    1984 anti-Sikh riots

    From Wikipedia, the free encyclopedia
    1984 anti-Sikh riots
    Sikh man being surrounded and beaten
    A Sikh man being surrounded and beaten by a mob
    Date31 October 1984 − 3 November 1984
    TargetSikhs
    Deaths8,000 (3,000 in Delhi)[1]

    The 1984 anti-Sikhs riots or the 1984 Sikh Massacre were a series of pogroms[2][3][4][5]directed against Sikhs in India, by anti-Sikh mobs, in response to the assassination of Indira Gandhi by her Sikh bodyguards. There were more than 8,000[6] deaths, including 3,000 in Delhi.[4] The Central Bureau of Investigation, the main Indian investigating agency, is of the opinion that the acts of violence were organized with the support from the then Delhi police officials and the central government headed by Indira Gandhi's son, Rajiv Gandhi.[7] Rajiv Gandhi was sworn in as Prime Minister after his mother's death and, when asked about the riots, said "when a big tree falls, the earth shakes".[8]

    During the Indian Emergency imposed by Indira Gandhi in the 1970s, thousands of Sikhs campaigning for autonomous government were imprisoned. The sporadic violence continued as a result of an armed Sikh separatist group which was designated as a terrorist entity by the Indian government. In June 1984, during Operation Blue Star, Indira Gandhi ordered the Indian Army to attack the Golden Temple and eliminate any insurgents, as it had been occupied by Sikh separatists who were stockpiling weapons.Later operations by Indian paramilitary forces were initiated to clear the separatists from the countryside of Punjab state.[9]

    The violence in Delhi was triggered by the assassination of Indira Gandhi, India's prime minister, on 31 October 1984, by two of her Sikhbodyguards in response to her actions authorising the military operation. The Indian government reported 2,700 deaths in the ensuing chaos. In the aftermath of the riots, the Indian government reported 20,000 had fled the city, however the People's Union for Civil Liberties reported "at least" 1,000 displaced persons.[10] The most affected regions were the Sikh neighbourhoods in Delhi. Human rights organisations and newspapers across India believe the massacre was organised.[4][7][11] The collusion of political officials in the massacres and the Judiciary's failure to penalise the killers alienated normal Sikhs and increased support for the Khalistan movement.[12] The Akal Takht, the governing religious body of Sikhism, considers the killings to be a genocide.[13]

    In 2011, Human Rights Watch reported the Government of India had "yet to prosecute those responsible for the mass killings".[14] The2011 WikiLeaks cable leaks revealed that the United States was convinced about the complicity of the Indian government ruled by theIndian National Congress in the riots, and termed it as "opportunism" and "hatred" of the Congress government against Sikhs.[15][16]Also in 2011, a new set of mass graves were discovered in Haryana, and Human Rights Watch reported that "Widespread anti-Sikh attacks in Haryana were part of broader revenge attacks" in India.[17]

    Background[edit]

    In 1973 Akali Dal and other Sikh groups introduced the Anandpur Sahib Resolution, which demanded special status for Punjab andSikhs. In the late 1970s and early 1980s, security in Punjab started deteriorating due to State level and religious politics, leading to the sacking of the Punjab government in 1983.[18][19]

    A section of Sikhs turned to militancy in Punjab; some Sikh militant groups aimed to create an independent state called Khalistanthrough acts of violence directed at members of the Indian government, army or forces. Others demanded an autonomous state within India, based on the Anandpur Sahib Resolution. A large numbers of Sikhs condemned the actions of the militants.[20]

    By 1983, the situation in Punjab had become highly volatile. In October 1983, some Sikh militants stopped a bus and shot six Hindu bus passengers. On the same day, another group of extremists killed two officials on a train.[21]:174 The Congress(I)-led Central Government dismissed its own Punjab's government, declaring a state of emergency, and imposed the President's Rule in the state. During the five months preceding Operation Blue Star, from 1 January 1984 to 3 June 1984, 298 people had been killed in various violent incidents across Punjab. In five days preceding the Operation, 48 people had been killed in the violence.[21]:175

    Characteristics of violence[edit]

    After the assassination of Indira Gandhi on 31 October 1984, by two of her Sikh bodyguards, anti-Sikh riots erupted on 1 November 1984, and continued in some areas for days, killing more than 3,000 Sikhs.[4] Sultanpuri, Mangolpuri, Trilokpuri, and other Trans-Yamuna areas of Delhi were the worst affected. Mobs carried iron rods, knives, clubs, and combustible material, including kerosene. The mobs swarmed into Sikh neighbourhoods, arbitrarily killing any Sikh men or women they could find. Their shops and houses were ransacked and burned. In other incidents, armed mobs stopped buses and trains, in and around Delhi, pulling out Sikh passengers to be lynched or doused with kerosene and burnt alive.

    Such wide-scale violence cannot take place without police help. Delhi Police, whose paramount duty was to upkeep law and order situation and protect innocent lives, gave full help to rioters who were in fact working under able guidance of sycophant leaders like Jagdish Tytler and H K L Bhagat. It is a known fact that many jails, sub-jails and lock-ups were opened for three days and prisoners, for the most part hardened criminals, were provided fullest provisions, means and instruction to "teach the Sikhs a lesson". But it will be wrong to say that Delhi Police did nothing, for it took full and keen action against Sikhs who tried to defend themselves. The Sikhs who opened fire to save their lives and property had to spend months dragging heels in courts after-wards.

    -Jagmohan Singh Khurmi, The Tribune

    These "riots" are alternately referred to as pogroms[2][3][4][22] or massacres.[23][24]

    Meetings and distribution of weapons[edit]

    On 31 October, the crowd around the All India Institute of Medical Sciences, began shouting for revenge with slogans such as "Blood for blood!" and turned into an unruly mob. At 17:20, President Zail Singh arrived at the hospital and the mob outside stoned his car. The mob began assaulting Sikhs by stopping cars and buses to pull Sikhs out of them and burn their turbans.[25] The violence on 31 October was restricted to the area around the AIIMS and did result in many Sikh deaths.[25] People in other parts of Delhi reported their neighbourhoods were peaceful.

    Throughout the night of 31 October and morning of 1 November, Congress leaders met with local supporters to distribute money and weapons. Congress party MP Sajjan Kumar and Trade Union leader Lalit Maken handed out 100 rupee notes and bottles of liquor to assailants.[25] On the morning of 1 November, Sajjan Kumar was seen holding rallies in, at least, the following Delhi neighbourhoods; in Palam Colony from 06:30 to 07:00, in Kiran Gardens from 08:00 to 08:30, and in Sultanpuri from around 08:30 to 09:00.[25] In Kiran Gardens at 8:00 AM, Sajjan Kumar was seen distributing iron rods from a parked truck to a group of 120 people and instructing them to "attack Sikhs, kill them, and loot and burn their properties".[25] At an undefined time in the morning of 1 November, Sajjan Kumar led a mob of people along the Palam Railway main road to the Mangolpuri neighbourhood where the crowd answered his calls with chants of "Kill the Sardars" and "Indira Gandhi is our mother and these people have killed her".[26] In Sultanpuri, Moti Singh, a Sikh who had served in the Congress party for 20 years heard Sajjan Kumar give the following speech:

    Whoever kills the sons of the snakes, I will reward them. Whoever kills Roshan Singh and Bagh Singh will get 5,000 rupees each and 1,000 rupees each for killing any other Sikhs. You can collect these prizes on November 3 from my personal assistant Jai Chand Jamadar.[note 1]

    The CBI recently told to the court that during the riot Sajjan Kumar had said that "not a single Sikh should survive".[7][28] It also said that Delhi police kept its "eyes closed" during the riot as it was pre-planned.[7]

    In the neighbourhood of Shakarpur, Congress (I) leader Shyam Tyagi's home was used as a meeting place for an undefined number of people.[27] H. K. L. Bhagat, the Minister of Information and Broadcasting distributed money to Boop Tyagi, Shyam Tyagi's brother, and ordered him to "Keep these two thousand rupees for liquor and do as I have told you.... You need not worry at all. I will look after everything."[27]

    During the night of 31 October, Balwan Khokhar, a local Congress (I) party leader who was later implicated in the ensuing massacre, held a meeting at the Ration Shop of Pandit Harkesh in the Palam Colony.[27] At 08:30 on 1 November, Shankar Lal Sharma, an active Congress party supporter, held a meeting at his shop where he formed a mob and had the people swear to kill Sikhs.[27]

    The chief weapon used by the mobs, kerosene was supplied by a group of Congress Party leaders who owned filling stations.[29] In Sultanpuri, Brahmanand Gupta, the president of the A-4 block Congress Party distributed oil while Congress Party MP Sajjan Kumar "instructed the crowd to kill Sikhs, and to loot and burn their properties" as he had in other meetings throughout New Delhi.[29] In much the same way, meetings were held in places like Cooperative Colony in Bokaro where P.K. Tripathi, president of the local Congress Party and owner of a gas station in Nara More, provided kerosene to mobs.[29] Aseem Shrivastava, a Masters student at the Delhi School of Economics described the organised nature of the mobs in an affidavit submitted to the Misra Commission:

    The attack on Sikhs and their property in our locality appeared to be an extremely organized affair...There were also some young men on motorcycles, who were instructing the mobs and supplying them with kerosene oil from time to time. On more than a few occasions we saw auto-rickshaw arriving with several tins of kerosene oil and other inflammable material such as jute-sacks.[30]

    A senior official at the Ministry of Home Affairs informed journalist Ivan Fera, that an arson investigation of several businesses burned in the riots had uncovered an unnamed combustible chemical "whose provision required large-scale coordination".[31] Eyewitness reports confirmed the use of a combustible chemical besides kerosene.[31] The Delhi Sikh Gurdwara Management Committee later identified 70 affidavits which cited the use of a highly flammable chemical in its written arguments before the Misra Commission.[29]

    Use of voter lists by the Congress Party[edit]

    On 31 October, Congress party officials provided assailants with voter lists, school registration forms, and ration lists.[32] The lists were used to find the location of Sikh homes and business, an otherwise impossible task because they were located in unmarked and diverse neighbourhoods. On the night of 31 October, the night before the massacres began, assailants used the lists to mark the houses of Sikhs with letter "S".[32] In addition, because most of the mobs were illiterate, Congress Party officials provided help in reading the lists and leading the mobs to Sikh homes and businesses in the other neighbourhoods.[29] By using the lists the mobs were able to pinpoint the locations of Sikhs they otherwise would have missed.[29]

    In some cases, the mobs returned to locations where they knew Sikhs were hiding after consulting their lists. One man, Amar Singh, escaped the initial attack on his house by having a Hindu neighbour drag him into his neighbour's house and declare him dead. However, a group of 18 assailants later came looking for his body, and when his neighbour replied that others had already taken away the body an assailant showed him a list and replied, "Look, Amar Singh's name has not been struck off from the list so his dead body has not been taken away."[29] Sikh men not in their homes were easily identified by their distinctive turban and beard while Sikh women were identified by their dress.

    Timeline of events[edit]

    First day (31 October)[edit]

    • 09:20: Indira Gandhi is shot by two of her Sikh security guards at her residence, No. 1 Safdarjung Road, and rushed to All India Institute of Medical Sciences (AIIMS).
    • 10:50: Indira Gandhi dies.[33][34]
    • 11:00: All India Radio listeners learn that the two security guards who shot Indira Gandhi were Sikhs.
    • 16:00: Rajiv Gandhi returns from West Bengal and reaches AIIMS. Stray incidents of attacks in and around that area.
    • 17:30: The motorcade of President Zail Singh, who is returning from a foreign visit, is stoned as it approaches AIIMS.
    evening and night
    • Organized and well equipped gangs of ruffians set out in different directions from AIIMS.
    • The violence, including violence towards Sikhs and destruction of Sikh properties, spreads.
    • Rajiv Gandhi is sworn in as the Prime Minister.
    • Senior advocate and BJP leader Ram Jethmalani, meets Home Minister P.V. Narasimha Rao and urges him to take immediate steps to protect Sikhs from further attacks.
    • Delhi's Lt. Governor, P.G. Gavai and Police Commissioner, S.C. Tandon, visits some of the affected areas.

    Second day (1 November)[edit]

    • The first killing of a Sikh occurs in East Delhi.
    • 09:00: Armed mobs take over the streets of Delhi and launch a massacre.
    Among the first targets were Gurdwaras, the holy temples of Sikhs

    The worst affected areas are low income colonies like Trilokpuri, Shahdara, Geeta Colony, Mongolpuri, Sultanpuri and Palam Colony. The few areas where the local police stations take prompt measures against mobs see hardly any killings or major violence. Farsh Bazar and Karol Bagh are two such examples.

    Third day (2 November)[edit]

    Curfew is announced throughout Delhi, but is not enforced. The Army deployed throughout Delhi too but ineffective because the police did not co-operate with soldiers (who are not allowed to open fire without the consent of senior police officers and executive magistrates).

    Mobs continue to rampage.

    Fourth day (3 November)[edit]

    Violence continues. By late evening, the national Army and local police units work together to subdue the violence. After law enforcement intervention, violence is comparatively mild and sporadic.In Delhi the dead bodies of the victims of riots were taken to All India Institute of Medical Sciences New Delhi and Civil Hospital Mortuary Tis hazari, Delhi.[35]

    Aftermath[edit]

    The Delhi High Court, while pronouncing its verdict on a riots-related case in 2009, stated:[36]

    "Though we boast of being the world's largest democracy and the Delhi being its national capital, the sheer mention of the incidents of 1984 anti-Sikh riots in general and the role played by Delhi Police and state machinery in particular makes our heads hang in shame in the eyes of the world polity. "

    There are allegations that the government destroyed evidence and shielded the guilty. Asian Age, an Indian daily newspaper, ran a front-page story calling the government actions "the mother of all cover-ups."[37][38]

    From 31 October 1984 to 10 November 1984, human rights groups People's Union for Democratic Rights and the People's Union for Civil Liberties conducted an inquiry into the riots by interviewing victims, police officers, neighbours of the victims, army personnel and political leaders. In their joint report, entitled Who Are The Guilty?, they concluded:

    The attacks on members of the Sikh Community in Delhi and its suburbs during the period, far from being a spontaneous expression of "madness" and of popular "grief and anger" at Mrs. Gandhi's assassination as made out to be by the authorities, were the outcome of a well organised plan marked by acts of both deliberate commissions and omissions by important politicians of the Congress (I) at the top and by authorities in the administration.[10]

    Eyewitness accounts obtained by Time magazine state the Delhi Police looked on as "rioters murdered and raped, having gotten access to voter records that allowed them to mark Sikh homes with large Xs, and large mobs being bused in to large Sikh settlements".[39] Time reported the riots only led to minor arrests and that no major politician or police officer had been convicted and quotes Ensaaf,[40] a human rights organisation, as saying the government worked to destroy evidence of involvement by refusing to record First Information Reports.[39]

    Human Rights Watch report published in 1991 on violence between Sikh separatists and the Government of India traces part of the problem back to the government response to the violence:

    Despite numerous credible eye-witness accounts that identified many of those involved in the violence, including police and politicians, in the months following the killings, the government sought no prosecutions or indictments of any persons, including officials, accused in any case of murder, rape or arson.[41]

    There are allegations that the violence was led and often perpetrated by Indian National Congress activists and sympathizers during the riot. The government, then led by the Congress, was widely criticised for doing very little at the time, possibly acting as a conspirator. Voting lists were used to identify Sikh families.[11]

    A few days following the massacre, many surviving Sikh youth in Delhi had retaliated in either joining or creating Sikh militant groups. This lead to series of more violence in the Punjab, where several assassinations of senior Congress party members took place. TheKhalistan Commando Force and Khalistan Liberation Force took responsibility of the targeted hits in retaliation. An underground network had also been established between the victims of the genocide and Sikh extremists.

    On 31 July 1985, Harjinder Singh JindaSukhdev Singh Sukha and Ranjit Singh Gill of Khalistan Commando Force assassinated Lalit Maken (Member – Parliament of India and a leader of Congress (I)) to take revenge for the 1984 anti-Sikh riots. In a 31-page booklet titled Who Are The Guilty, the People's Union for Civil Liberties (PUCL) listed 227 people who led the mobs, Lalit Maken's name was third on the list.[42]

    Harjinder Singh Jinda and Sukhdev Singh Sukha also assassinated Congress (I) leader Arjan Dass because of his involvement in the 1984 anti-Sikh riots. Arjan Dass's name appeared in various affidavits submitted by Sikh victims to the Nanavati Commission which was headed by Justice G.T. Nanavati, retired Judge of the Supreme Court of India.[43]

    Convictions[edit]

    In Delhi, 442 of the rioters were convicted by the courts. 49 of these were sentenced to the life imprisonment, and another three to imprisonment of more than 10 years. 6 Delhi Police officers were punished for lapses during the riots.[44] In April 2013, the Supreme Court of India dismissed the appeal of three convicts who had challenged the High Court's decision to award them life sentence.[45]

    In April 2013, the Karkardooma district court in Delhi convicted five people – Balwan Khokkar (former councillor), Mahender Yadav (former MLA), Kishan Khokkar, Girdhari Lal and Captain Bhagmal – for inciting a mob against the Sikhs in the Delhi Cantonment area. It acquitted the Congress leader Sajjan Kumar in the same case, leading to protests.[46]

    Investigations[edit]

    Numerous commissions have been set up to investigate the riots. The most recent commission on the pogroms, headed by Justice G.T. Nanavati, submitted its 185-page report to the Home Minister, Shivraj Patil on 9 February 2005 and the report was tabled in Parliament on 8 August 2005.

    Ten commissions and committees have so far enquired into the riots. The commissions below are listed in the order they were formed. Many of the primary accused were acquitted or never charge-sheeted.

    Marwah Commission[edit]

    This commission was appointed in November 1984. Ved Marwah, Additional Commissioner of Police, was assigned the job of enquiring into the role of the police during the carnage of November 1984. Many of the accused officers of Delhi Police went to Delhi High Court. As Ved Marwah completed his inquiry towards the middle of 1985, he was abruptly directed by the Home Ministry not to proceed further.[47] Complete records of the Marwah Commission were taken over by the government and were later transferred to the Misra Commission. However, the most important part of the record, namely the handwritten notes of Mr Marwah, which contained important information, were not transferred to the Misra Commission.

    Misra Commission[edit]

    Misra commission was appointed in May 1985. Justice Rangnath Misra, was a sitting judge of the Supreme Court of India. Justice Misra submitted his report in August 1986 and the report was made public six months thereafter in February 1987. In his report, Justice Misra stated that it was not part of his terms of reference to identify any person and recommended the formation of three committees.

    The commission and its report was criticised by People's Union for Civil Liberties and Human Rights Watch as biased. A Human Rights Watch report recording the Misra Commission noted:

    It recommended no criminal prosecution of any individual, and it cleared all high-level officials of directing the pogroms. In its findings, the commission did acknowledge that many of the victims testifying before it had received threats from local police. While the commission noted that there had been "widespread lapses" on the part of the police, it concluded that "the allegations before the commission about the conduct of the police are more of indifference and negligence during the riots than of any wrongful overt act."[41]

    People's Union for Civil Liberties criticised the Misra commission for keeping information on the accused secret while revealing the names and addresses of victims of violence.[48]

    Kapur Mittal Committee[edit]

    Kapur Mittal Committee was appointed in February 1987 on the recommendation of the Misra Commission to enquire into the role of the police, which the Marwah Commission had almost completed in 1985 itself, when the government asked that committee to wind up and not proceed further.

    After almost two years, this committee was appointed for the same purpose. This committee consisted of Justice Dalip Kapur and Mrs Kusum Mittal, retired Secretary of Uttar Pradesh. It submitted its report in 1990. Seventy-two police officers were identified for their connivance or gross negligence. The committee recommended forthwith dismissal of 30 police officers out of 72. However, till date, not a single police officer has been awarded any kind of punishment.

    Jain Banerjee Committee[edit]

    This committee was recommended by the Misra Commission for recommending registration of cases. It consisted of Justice M.L. Jain, former Judge of the Delhi High Court and Mr A.K. Banerjee, retired Inspector General of Police.

    The Misra Commission held in its report that a large number of cases had not been registered and wherever the victims named political leaders or police officers, cases were not registered against them. This committee recommended registration of cases against MrSajjan Kumar in August 1987, but no case was registered.

    In November 1987, press reports criticised the government for not registering cases despite the recommendation of the committee. In December 1987, one of the co-accused along with Sajjan Kumar, namely Mr Brahmanand Gupta filed a writ petition in the Delhi High Court and obtained a stay against this committee. The government did not oppose the stay. The Citizen's Justice Committee filed an application for vacating the stay. Ultimately, the writ petition was decided in August 1989 and the high court quashed the appointment of this committee. An appeal was filed by the Citizens Justice Committee in the Supreme Court of India.

    Potti Rosha Committee[edit]

    Potti Rosha Committee was appointed in March 1990, by the V.P. Singh government, as a successor to the Jain Banerjee Committee. In August 1990, Potti-Rosha issued recommendations for filing cases based on affidavits victims of the violence had submitted. There was one against Sajjan Kumar. A CBI team went to Kumar's home to file the charges. His supporters locked them up and threatened them harm if they persisted in their designs on their leader. As a result of this intimidation, when Potti-Rosha's term expired in September 1990, Potti and Rosha decided to disband their inquiry.

    Jain Aggarwal Committee[edit]

    The committee was appointed in December 1990 as a successor to the Potti Rosha Committee. It consisted of Justice J.D. Jain, retired Judge of the Delhi High Court and Mr D.K. Aggarwal, retired DGP of Uttar Pradesh. This committee recommended registration of cases against H.K.L. BhagatSajjan KumarDharamdas Shastri and Jagdish Tytler.

    The Committee also suggested setting up of two – three Special Investigating Teams in the Delhi Police under a Deputy Commissioner of Police and the overall supervision by the Additional Commissioner of Police, In-charge – CID and also to review the work-load of the three Special Courts set up to deal with October – November 1984 riots cases exclusively so that these cases could be taken up on day-to-day basis.

    The question of appointment of Special Prosecutors to deal with October – November 1984 riots cases exclusively was also discussed. This committee was wound up in August 1993. However, the cases recommended by this committee were not even registered by the police.

    Ahuja Committee[edit]

    Ahuja Committee was the third committee recommended by the Misra Commission to ascertain the total number of killings in Delhi. This committee submitted its report in August 1987 and gave a figure of 2,733 as the number of Sikhs killed in Delhi alone.

    Dhillon Committee[edit]

    The Dhillon Committee, headed by Mr Gurdial Singh Dhillon was appointed in 1985 to recommend measures for the rehabilitation of the victims. This committee submitted its report by the end of 1985. One of its major recommendations was that the business establishments, which had insurance cover, but whose insurance claims were not settled by insurance companies on the technical ground that riot was not covered under insurance, should be paid compensation under the directions of the government. This committee recommended that since all insurance companies were nationalised, they be directed to pay the claims. However, the government did not accept this recommendation and as a result insurance claims were rejected by all insurance companies throughout the country.

    Narula Committee[edit]

    Narula Committee was appointed in December 1993 by the Madan Lal Khurana led BJP government in Delhi. One of the recommendations of the Narula Committee was to convince the Central Government to grant sanction in this matter.

    Mr. Khurana took up the matter with the Central Government and in the middle of 1994, the Central Government decided that the matter did not fall within its purview and sent the case to the Lt. Governor of Delhi. It took two years for the Narasimha Rao Government to decide that it did not fall within Centre's purview.

    Narasimha Rao Government further delayed the case. This committee submitted its report in January 1994 and recommended the registration of cases against H.K.L. Bhagat and Sajjan Kumar. Ultimately, despite the delay by the Central government, the CBI was able to file the charge sheet in December 1994.

    The Nanavati Commission[edit]

    The Nanavati Commission was established in 2000 after some dissatisfaction was expressed with previous reports.[49] The Nanavati Commission was appointed by a unanimous resolution passed in the Rajya Sabha. This commission was headed by Justice G.T. Nanavati, retired Judge of the Supreme Court of India. The commission submitted its report in February 2004. The commission reported that recorded accounts from victims and witnesses "indicate that local Congress leaders and workers had either incited or helped the mobs in attacking the Sikhs".[49] Its report also found evidence against Jagdish Tytler "to the effect that very probably he had a hand in organising attacks on Sikhs".[49] It also recommended that Sajjan Kumar's involvement in the rioting required a closer look. The commission's report also cleared Rajiv Gandhi and other high ranking Congress (I) party members of any involvement in organising riots against Sikhs. It did find, however, that the Delhi Police fired about 392 rounds of bullets, arrested approximately 372 persons, and "remained passive and did not provide protection to the people" throughout the rioting.[49][50]

    Role of Jagdish Tytler[edit]

    Jagdish Tytler in 2010

    India's Central Bureau of Investigation (CBI) closed all cases against Jagdish Tytler in November 2007 for his alleged criminal conspiracy to engineer riots against Sikhs in the aftermath of Indira Gandhi's assassination on 31 October 1984. CBI submitted a report to the Delhi court which stated that no evidence or witness was found to corroborate the allegations against Tytler of leading murderous mobs during 1984 Re-probe Tytler's role: Court.[51] It was also alleged in the court that then member of Indian Parliament Jagdish Tytler was complaining to his supporters about relatively "small" number of Sikhs killed in his parliamentary constituency Delhi Sadar, which in his opinion had undermined his position in the ruling Indian National Congress party of India.[52]

    However in December 2007, a certain witness, Jasbir Singh, who is living in California, appeared on several private television news channels in India, and stated he was never contacted by Central Bureau of Investigation. India's main opposition party Bharatiya Janata Party (BJP) demanded an explanation from the minister in-charge of CBI in Indian Parliament. However, Minister of State for Personnel Suresh Pachouri, who is in-charge of department of CBI, and was present in the parliament session, refused to make a statement.[53]

    On 18 December 2007, Additional Chief Metropolitan Magistrate of Delhi court, Sanjeev Jain, who had earlier dismissed the case after CBI submitted a misleading report in his court, ordered India's Central Bureau of Investigation to reopen cases relating to 1984 anti-Sikh riots against Jagdish Tytler.[54]

    In December 2008, a two-member CBI team was sent to New York to record the statements of two eyewitnesses, Jasbir Singh and Surinder Singh. The two witnesses have stated that they saw Jagdish Tytler lead a mob during the riot, but did not want to come to India as they feared for their security.[55] They also blamed the CBI for not conducting a fair trial and accused it of protecting Tytler.

    However, in March 2009, CBI gave a clean chit to Tytler, amidst protests from Sikhs and the opposition parties.[56]

    On 7 April 2009, a Sikh reporter with Dainik JagranJarnail Singh hurled his shoe at home minister P Chidambaram in protest against the clean chit given to Tytler and Sajjan Kumar. He was however let off as the home minister did not want the police to pursue the case, in lieu of the upcoming Lok Sabha (general) elections.[57]

    On 9 April 2009, over 500 protesters from various Sikh organisations from all over the country gathered outside the court which was scheduled to hear CBI's plea of closing the case against Congress leader Jagdish Tytler in the 1984 anti-Sikh riotscase. Later in the day, Tytler announced his decision to pull out of the Lok Sabha elections, saying he does not want to cause embarrassment to his party. This has forced the Congress party to cut the Tytler and Sajjan Kumar Lok Sabha tickets.[58] On 10 April 2013, Delhi court ordered the Central Bureau of Investigation (CBI) to reopen the 1984 anti-Sikh riots case against Congress leader Jagdish Tytler.Court ordered CBI to further probe killing of 3 persons in a 1984 anti-Sikh riots case in which Jagdish Tytler was given clean chit.[59]

    Civil case in New York[edit]

    Kamal Nath in 2008

    On 14 March 2011, an American-based NGO, Sikhs for Justice, filed a civil suit in the United States District Court for the Southern District of New York accusing the Indian government of complicity in the riots. The court issued a summons to the Indian Congress Party and Kamal Nath.[60] [61] [62] The court complaint was dismissed in March 2012 by Judge Robert Sweet of the US District Court Southern District of New York, against Nath, who stated that the court lacked jurisdiction in the case.[63] The 22-page order granted Nath's motion to dismiss the claim, and the judge also noted that 'Sikhs for Justice' failed to "serve the summons and its complaints to Nath in an appropriate and desired manner."[64] On September 3, 2013 a Federal Court in New York issued summons to Sonia Gandhi for her alleged role in protecting the culprits of the 1984 Anti Sikh Riots. [65]

    Alleged Role of Amitabh Bachchan[edit]

    Bollywood actor Amitabh Bachchan was accused by certain members of the Sikh community of instigating attacks[66] He is alleged to have made polemic remarks saying "Khoon ka Badla Khoon se lenge" ("Blood for Blood").[66][67][68][69] Responding to the allegations, Mr Bachchan is said to pleading his innocence to the Akal Takht.[70][71][72]

    Impact and legacy[edit]

    "It seemed easy for [former Prime Minister] Rajiv Gandhi to say, 'When a giant tree falls, the earth below shakes.' Our trees fell and we can still feel the tremors." -Victim whose husband was burned alive during the riots[73]

    The attack on the Sikh community in India is remembered annually in the United Kingdom with a remembrance march through London bringing together thousands of Sikhs from all over the UK. The Sikh riots are cited as a reason to support creation of a Sikh homeland in India, often calledKhalistan.[74][75]

    Many ordinary Indians of different religious dispositions made significant efforts to hide and help Sikh families during the rioting.[76]Recently on 15 July 2010 the Sikh high clergy (Jathedar) declared the events following the death of Indira Gandhi to be a Sikh "Genocide" replacing the widely used term "Anti-Sikh riots" used by the Indian government, media and other writers.[77] The decision came soon after a similar motion was raised in the Canadian Parliament by a Sikh MP.

    In popular culture[edit]

    The Delhi riots have been the core subject of several films and novels.

    • 2005 English film Amu, by Shonali Bose and starring Konkona Sen Sharma and Brinda Karat, is based on Shonali Bose's own novel of the same name. The film portrays story of a girl, orphaned during the riots, reconciling with her adoption years later. The film which won the National Film Award for Best Feature Film in English was censored in India and was released on DVD without the cuts.
    • 2004 Hindi film Kaya Taran (Chrysalis), directed by Shashi Kumar and starring Seema Biswas, is based on the Malayalam short story "When Big Tree Falls" by N.S. Madhavan. The film revolves around a Sikh woman and her young son who have taken shelter in a nunnery in Meerut during the 1984 anti-Sikh riots.
    • 2003 Bollywood film Hawayein, directed by Ammtoje Mann, is based on the aftermath of Indira Gandhi's assassination, the 1984 anti-Sikh riots and the subsequent victimisation of the people in Punjab in the years that followed.
    • Khushwant Singh's novel "Tragedy of Punjab: Operation Bluestar & After" focuses on the events surrounding the riots.
    • Jarnail Singh's non fiction book 'I Accuse' describes various incidents that took place during the riots.
    • Chapter 2 of Mohit Sharma's Graphic Novel '84 Tears' is a poetic account of a Sikh girl before committing suicide whose family is killed by anti-Sikh mob.
    • Uma Chakravarthi and Nandita Hakser, "The Delhi Riots: Three Days in the Life of a Nation" contains interviews with the victims of November 1984 riots in Delhi.
    • In the novel about Khan Noonien SinghThe Eugenics Wars: The Rise and Fall of Khan Noonien Singh a Sikh character from theStar Trek series and films, there is a reference to the anti-Sikh pogroms.
    • H.S Phoolka, along with human rights activist and journalist Manoj Mitta, has written the first account of the 1984 Anti-Sikh massacre in the form of a book titled "When a Tree Shook Delhi".

    See also[edit]

    Notes[edit]

    1. Jump up^ On November 2, Moti Singh witnessed two policemen, one an SHO and another a constable, both of whom who had attended Sajjan Kumar's meeting the previous day, shoot and kill Roshan Singh (his son) and kill his grandchildren when they ran to help their father.[27]

    References[edit]

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    Further reading[edit]

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    • Cynthia Keppley Mahmood. A Sea Of Orange: Writings on the Sikhs and India. Xlibris Corporation, ISBN 978-1-4010-2857-2
    • Ram Narayan Kumar et al. Reduced to Ashes: The Insurgency and Human Rights in Punjab. South Asia Forum for Human Rights, 2003. Report[dead link]
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    • Anurag Singh. Giani Kirpal Singh's Eye-Witness Account of Operation Bluestar. 1999.
    • Patwant Singh. The Sikhs. New York: Knopf, 2000.
    • Harnik Deol. Religion and Nationalism in India: The Case of the Punjab. London: Routledge, 2000
    • Mark Tully. Amritsar: Mrs Gandhi's Last Battle. ISBN 978-0-224-02328-3.
    • Ranbir Singh Sandhu. Struggle for Justice: Speeches and Conversations of Sant Jarnail Singh Bhindranwale. Ohio: SERF, 1999.
    • Iqbal Singh. Punjab Under Siege: A Critical Analysis. New York: Allen, McMillan and Enderson, 1986.
    • Paul Brass. Language, Religion and Politics in North India. Cambridge: Cambridge University Press, 1974.
    • PUCL report "Who Are The GuiltyLink to report.
    • Manoj Mitta & H.S. Phoolka. When a Tree Shook Delhi (Roli Books, 2007), ISBN 978-81-7436-598-9.
    • Jarnail Singh, 'I Accuse...' (Penguin Books India, 2009), ISBN 978-0-670-08394-7
    • Jyoti Grewal, 'Betrayed by the state: the anti-Sikh pogrom of 1984' (Penguin Books India, 2007), ISBN 978-0-14-306303-2

    External links[edit]


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