भूत के भविष्य में वर्तमान की नियति!
पलाश विश्वास
भारतीय सिनेमाप्रेमियों के लिए फिल्म निर्देशक बतौर सत्यजीत राय कोई अनजाना नाम नहीं है।दुनियाभर के फिल्मप्रेमी उन्हें पथेर पांचाली और चारुलता के सौजन्य से पहचानते हैं। पर बंगाल में सत्यजीत राय की लोकप्रियता इन फिल्मों के लिए उतनी नहीं, जितनी कि उनकी बच्चों के लिए बनायी गयी फिल्मों और बच्चों के लिए ही लिखे गये उनके साहित्य के लिए है। वे संदेश नाम से बच्चों की एक लोकप्रिय पत्रिका का प्रकाशन भी करते रहे हैं। यहीं नहीं, उनके पिता सुकुमार राय और दादा उपेंद्रकिशोर शिशु साहित्य के मामले में आज भी अग्रणी हैं। दरअसल सत्यजीत राय की फिल्म गुपी गाइन बाघा बाइन उनके दादा जी की ही एक कहानी पर आधारित है।
बंगाल से बाहर शरणार्थियों की दुनिया में सत्यजीत राय अजनबी नाम जरूर रहा है। पर हम लोग बचपन से सुकुमार राय और उपेंद्रकिशोर के पाठक रहे हैं। सत्यजीत को तो हमने सबसे पहले सोनार केल्ला की हिंदी में प्रकाशत स्क्रिप्ट के जरिये जीआईसी नैनीताल के दिनों में जाना। जब धनबाद आकर हम नियमित बांग्ला फिल्में देख रहे थे। बड़े पर्दे पर सत्यजीत की पुरानी फिल्में गायब थी। हमने सबसे पहले गुपी बाघा सीरिज की हीरक राजार देशे देखी धनबाद के रेलवे क्लब में। मेरठ पहुंचकर टीवी खरीदी तो टीवी पर फिर देखना शुरू हुआ सत्यजीत, मृणाल और ऋत्विक की फिल्मों का।
राय परिवार का बखान करना इसलिए जरूरी है कि बाकी भारत के मुकाबले बंगाल भूतों का आतंक के बजाय मनोरंजन का पर्याय बनने के पीछे शायद इस परिवार का सबसे बड़ा योगदान है।सर्व भारतीय परिप्रेक्ष्य में आज जो आतंक, अनिश्चितता और अतीत गौरव का भूतहा माहौल है, उसके नजरिये से तनिक भूत चर्चा होने में मुझे कोई बुराई नहीं दिखती। ताजा संदर्भ अभी अभी रिलीज हुई भारतभर में धूम मचाती बांग्ला फिल्म भूतेर भविष्यत् है, जिसमें पहलीबार प्रचंड स्वच्छंद बुद्धिमत्ता जिसे अंग्रेजी में शायद विट कहा जा सकता है, को निर्मल आनंद और हास्य का औजार बनाया गया है।
अस्सी के दशक की शुरुआत में मृणाल सेन ने स्मिता पाटिल और श्रीला मजूमदार को लेकर एक वृत्त चित्रात्मक फिल्म बनायी थी आकालेर संधाने। दुर्भिक्ष पर फिल्म बनाने चक्कर में जहां यूनिट दुष्काल के दुर्दांत चक्कर में फंस जाती है। वह अत्यंत गंभीर फिल्म रही है और मृणाल दा की बेहतरीन फिल्मों से एक। ताजा बांग्ला फिल्म भूतेर भविष्यत् भी एक फिल्म यूनिट की कथा है। जिसे आउटडोर शूटिंग के दौरान भूतों के मुखातिब होना पड़ता है।हालीवूड बालीवूड की भूत परंपराओं के विपरीत न इसमें बदले की कहानी है, न डर और आतंक का माहौल है, न रहस्यपूर्ण मौतों या हत्याओं का सिलसिला और न झाड़ फूंक और ओझा।या पिर जादुई तिलस्मी संसार। यह फिल्म तरह तरह के भूतों और उनके नखरों और उनकी आपबीती से यथार्थ का सामना करती है।
विभाजन की त्रासदी के बाद अहो स्वतंत्रता के माहौल में पले बढ़े हम लोगों के लिए बचपन और कैशोर्य संक्रमणकाल तो था ही, उससे ज्यादा हमने मोहभंग के दंश को ज्यादा झेला, महसूस किया। शायद इसलिए साठ और सत्तर दशक की युवा पीढ़ियों को अतीत की उतनी ज्यादा परवाह नहीं थी, जितनी की वर्तमान की। तब भारत महाशक्ति बनने की दौड़ में कहीं नहीं था। १९६२,६५ और ७१ के तीन तीन युद्ध, खाद्य आंदोलन, नक्सल आंदोलन और सर्व भारतीय तौर पर उसको लीलता हुआ जेपी का संपूर्ण क्रांति का आंदोलन, फिर आपातकाल! हम लोग तो वर्तमान के चक्रब्यूह में ही ऐसे उलझे थे कि हमारे संदर्भ और प्रसंग में अतीत और भविष्य का जैसे कोई वजूद ही न रहो हो।
हमारे लिए भूत का सचमुच मतलब था बीता हुआ अतीत। हमारे चारों तरफ तब बंगाल और पंजाब दोनों तरफ से आये अधेड़ और स्त्री पुरूष चेहरों की एक बेइंतहा भीड़ थी, जो सचमुच लहूलुहान थे। जख्मी थे बुरीतरह और उनके घाव अश्वत्थामा की तरह हमेशा रिसते हुए नजर आते थे। कबंधों से भी वास्ता पड़ता था। बल्कि यह कहे कि कबंधों के जुलूस में ही हमारी परवरिश हुई क्योकि हमारे लोगों की तब कोई पहचान बनी नहीं थी। आज भी हम कबंधों के जुलूस में ही हैं आजादी के साठ साल पूरे हो जाने के बावजूद। तब हमारी नागरिकता को लेकर कोई सवाल नहीं उठता था। आज उठ रहे हैं। नोआखाली के दंगापीड़ित शरणार्थियों तक को विदेशी घुसपैठिया बताकर देश निकाला की सजा मिल रही है।हमने कटे हुए दरख्तों को जड़ों को टटोलते हुए देखा है। दरख्तों की जिस्म से लीसा की शक्ल में खून की नदियां बहते हुए देखा है। जब हमारे लोग अपने बीते हुए अतीत की बात करते थे, तब सामने दीख रहा पानी का रंग अकस्मात बदल जाता था और यकीनन उस रंग में कोई इंद्रधनुष या श्वेत पद्म खिलने का मौसम नहीं होता था। तब भूत का मतलब लहू का एक ठाठें मारता समुंदर था और जज्बात का रेगिस्तानी बवंडर, जिसमें फंसकर हम शूतूरमुर्ग की तरह गरदन छिपाकर अपनी जान बचाने की मिन्नत तो कर ही नहीं सकते थे।हर रोज हमें उस भूत से वास्ता पड़ता था।
हजारी गायन के वृद्ध पिता अमूमन सीमापार छूटे अपने दूसरे पुत्र को खत लिखवाने के लिए हमारे पास ही आते थे। तब तक हम बांग्ला में लिखना सीख गये थे। ओड़ाकांदी ठाकुरबाड़ी की कन्या, हमारी ताई की मां, यानी हमारी नानी बसंतीपुर के हमारे घर ६४ के दंगों के बाद पहुंची थीं। वे थोड़ी पढ़ी लिखी थी पर आंखों से कम देखती थीं। पाकिस्तान से ढेरों खत आते थे उनके। ऐसे तमाम खतों में रिश्तों की अनोखी सुगंध के अलावा दर्द का खालिस पैमाना भी हुआ करता था। बसंतीपुर और शरणार्थी उपनिवेश के तराईभर के सैकड़ों बंगाली सिख गांवों में अतीत खेत खलिहान, घर आंगन, दरख्त, जंगल, नदी, सड़क और दूर तक फैली शिवालिक की चोटियों तक में चस्पां था। रास्ते पर चलते हुए न जाने अतीत के किस टुकड़े से न जाने कहां ठोकर लग जाये, कोई ठिकाना न था। तब भूत हमारा यथार्थ बोध था। और भूत का भविष्य ही हमारा वर्तमान।
रात बिरात इस गांव से उस गांव आना जाना लगा रहता था। हमारे चाचाजी डाक्टर थे और गरमी के मौसम में खेती का तमाम काम हम उनके साथ रात में ही करते थे पेट्रोमैक्स जलाकर। खेतों के बीच दर्जनों पीपल और वट खड़े होते थे, जिनसे प्रेतनियों के पेशाब कर देने के किस्से प्रचलित थे। खेतों और रास्तों के आसपास श्मशान भूमि। रास्तों पर पुल और पुल के नीचे बहती नदियां, भूतो के तमाम डेरों पर हमारा धावा चलता था। बल्कि मैं, मेरा चचेरा भाई सुभाष और बसंतीपुर में हमारे तमाम जिगरी दोस्त टेक्का, विवेक, कृष्ण वगैरह भूत पकड़ने और उनके अचार बनाने की कला पर वर्षों तक बाकायदा शोध करते रहे। भूतों से न डरनेवालों को डराकर या डरनेवालों की आंखें खोलकर भूतों का तिलिस्म तोड़ना हमारा प्रिय खेल रहा है, जिसे हम नैनीताल और धनबाद में खूब खेलते रहे हैं और हमारे तमाम पुराने रूम पार्टनर या मेस के साथी जानते हैं।
विडंबना यह है कि हम इस वक्त भूतों के तिलिस्म में बुरी तरह कैद है। इतिहास का भूत बाबरी मस्जिद तोड़कर शांत नहीं हुआ, हिंदू राष्ट्र बनवाकर, म्लेच्छों को देशनिकाला देकर ही उसे चैन मिलेगी।आतंकवाद और उग्रवाद का भूत जो बाजार के विस्तार में अभूतपूर्व सहयोग देते हुए कारपोरेट लाबिइंग का बेहतरीन हथियार बन गया है। खुला बाजार का भूत जल जंगल जमीन, आजीविका और प्राण से भी निनानब्वे फीसद जनता को बेदखल करने की मुहिम में लगा है।अंध राष्ट्रवाद का भूत हमें अमेरिका और इजराइल का पिछलग्गू बनाने से बाज नहीं आ रहा।महाशक्ति भूत हमें अपने पड़ोसियों के साथ हमेशा छायायुद्ध निष्णात कर रहा है, रक्षा घोटालों के जरिये काला धन की अर्थ व्यवस्था मजबूत कर रहा है। आर्थिक सुधारों का भूत,जो संसद संविधान और गणतंत्र की दिन दहाड़े हत्याएं कर रहा है और हम तमाशबीन दर्शक हैं। विचारधाराओं का भूत जो जाति तोड़ने के बजाय जाति को मजबूत कर रहा है, राजनीति को कारपोरेट बना रहा है और सर्वहारा का सत्यानाश करते हुए परिवर्तन और क्रांति का अलाप कर रहा है।उत्तर आधुनिकता का भूत जो हम सूचना का मुरीद बनाकर ज्ञान की खोज से दूर ले जा रहा है और कृत्तिम यथार्थ के टाइम मशीन में डाल रहा है।बच्चों को रोबोट. एटीएम और मशीन बना रहा है और स्त्रियों को सिर्फ जिस्म!हमारी मातृभाषा हमसे छिनी जा रही है। हमारे लोकगीत और लोक संगीत का पैकेज बन रहा है। आदिवासियों का कत्लेआम हो रहा है।मीडिया और साहित्य को पोर्नोग्राफी में बदल रहा है। संस्कृति, समाज घर परिवार तोड़ रहा है और हमें जड़ों से काट रहा है। इन सबमें सबसे खतरनाक हैं आइकन भूत और मसीहा भूत, जिनकी हैसियत बिना परिश्रम , बिना परीक्षा और बिना संघर्ष के बन जाती है और जो मीडिया के जरिये जनता को चूतिया बनते हुए भूतों का रक्तबीज दसों दिशाओं में छिड़ककर बाजार के हिसाब से सबकुछ तय कर रहे हैं। इन भूतों के तिलिस्म को तोड़ने के लिए लगता है कि मुझे फिर बसंतीपुर में डेरा डालकर अपने पुराने साथियों के साथ भूतों पर शोध करना पड़ेगा।
फिलहाल आपको मौका लगें तो कम से कम दिल्ली, बंगलूर या मुंबई में और बंगाल या झारखंड में अनीक दत्त निर्देशित बांग्ला फिल्म भूतेर भविष्यत् अवश्य देख लें। बंगालियों को तो यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए, परिवर्तन राज के भूतहा यथार्थ से मुखातिब होने के लिए। कहानी मजेदार हैं।अभी खुलासा कर देंगे तो फिल्म देखने का मजा किरकिरा हो जायेगा। तमाम पात्रों का चयन और अभिनय संतुलित है। संगीत सुहावना है, डरावना नहीं। और बच्चों को तो भूतों से मिलकर बहुत मजा आयेगा। हो सकता है कि आपको अपने आस पास के भूतों को पहचानने, समझने और उनसे निजात पाने के तौर तरीके भी सूझने लगे!
Total Pageviews
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
Unique
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
My Blog List
Hits
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg
Tweeter
issuesonline_worldwide
Visit Us
Traffic
Blog Archive
-
▼
2012
(5851)
-
▼
April
(829)
- देखना होगा कि ऐसे कटघरे कहाँ-कहाँ हैं?
- शेखर जोशी की अद्भुत प्रेम कहानी कोसी का घटवार
- टू जी स्पेक्ट्रम की नीलामी सरकार के लिए गले की फां...
- Fwd: Hindimedia सिनेमा में साम्राज्यवाद विरोध का क...
- Fwd: [initiative-india] On this May Day / इस मजदूर...
- Fwd: Prabhat Ranjan shared a link: "वरिष्ठ पत्रकार...
- Aadhaar card fraud exposes registration process er...
- IMPORTANT REPORT: 16,000 people still living in 83...
- Madhu Limaye's 90th birthday celebrations & book r...
- EWS Admissions - Unaided Minority Schools exempted...
- Report of Convention Against Bathani Tola Aquittal...
- MUSLIM VISION- 37 Muslim specific Rural developmen...
- উচেছদ- প্রতিবাদে আবার সরব নোনাডাঙা
- উত্তপ্ত নোনাডাঙা, লাঠিচার্জ পুলিসের
- রবীন্দ্রনাথের `চার-অধ্যায়` আজকের গল্প জানালেন পরিচালক
- রাষ্ট্রপতি পদে সমর্থন নয় প্রণব-আনসারিকে, ঘোষণা বিজ...
- जश्न की सूरत और सीरत
- साइबर अपराध से निपटने के लिए क्षमता बढ़ाने की जरूरत...
- राहुल ने कार्यकर्ताओं को निराशा से उठकर लोकसभा चुन...
- .अब सचिन, ऐश्वर्या के बाद ‘अखिलेश आम’ की बारी
- बेटी की हत्या के मामले में सलाखों के पीछे पहुंची न...
- ये भी मादरे हिंद की बेटी हैं...
- आईला ! नो राजनीति
- भूतेर भविष्यत् देखी क्या !
- मिलावट की गारंटी देते दुकानदार
- मजदूर वर्ग की नयी एकजुटता के लिए पहल करो !!
- अन्ना हजारे का मनोविज्ञान ——- एक ‘खारिज’ बूढ़े की त...
- आज फासिज्म की पराजय और जनता की विजय का महादिवस है -
- सब तो ठीक है, पर आप खुद क्या कर रहे हैं चेनॉय सेठ?
- हरिश्चंद्र की भूमिका मेरे रचनात्मक जीवन की उपलब्...
- प्लीज प्लीज … विकी डोनर अब तक नहीं देखी तो देख आइए!
- भूत के भविष्य में वर्तमान की नियति!
- Fwd: हस्तक्षेप.कॉम बोफोर्स दलाली कांड सच्चाई है और...
- शाह आलम बनें अमिताभ और रेखा बन जाये समरु बेगम!
- Fwd: 5 मई को लॉन्च होगा हिमाचल दस्तक, एनसीआर से एक...
- ppeal to raise NIBBUSS issues in the Houses of Par...
- 1 lakh seek justice for Manipur youth
- Mamata’s best day in office - Crackdown on trio wh...
- संकट यह विकराल है, कहां बैठे डबराल हैं! [ #Anantar ]
- हाशिया खींचना ठीक नहीं
- प्रेमचंद: अपने अपने राम
- असल दोषी कौन
- खेल नहीं तमाशा
- ‘एक रैंक एक पेंशन’ सिद्धांत पर सहमत है केंद्र
- राष्ट्रपति चुनाव को लेकर करूणानिधि से मिले एंटनी, ...
- हमने उन्हें जासूस समझा था… लेखक : अरुण कुकसाल :: अ...
- शराब को इस नजरिये से भी देखिये लेखक : शंम्भू राणा ...
- हमने तो ढोर डंगरों से अंग्रेजी सीखी! (09:21:05 PM)...
- स्टिंग, सीडी, साज़िश, सज़ा और सियासत
- शिक्षा अधिकार कानून के समझ मुश्किल भरी चुनौतियां
- अधिकारियों ने समाज कल्याण विभाग के १४१६ लाख रुपयो...
- सिनेमा में साम्राज्यवाद विरोध का कारपोरेट तात्पर्य!
- अपने रचे हुए को अपने भीतर जीते भी थे विद्यासागर नौ...
- ‘टाइम’ से नहीं लगाया जा सकता राजनेता की लोकप्रियता...
- सैंया भये कोतवाल
- बोफोर्स दलाली कांड सच्चाई है और बंगारू घूसकांड निर...
- ‘भारत माता रोती जाती निकल हजारों कोस गया’
- सिनेमा में साम्राज्यवाद विरोध का कारपोरेट तात्पर्य!
- Fwd: Prabhat Ranjan shared a link: "आज 'जनसत्ता' क...
- Fwd: वे जो कलक्टर नहीं बन सके
- Fwd: [Dalit Diary] http://www.dailypioneer.com/sun...
- वाशिंगटन से फिर सुधार मुहिम तेज करने के संकेत,अब द...
- Fwd: हस्तक्षेप.कॉम ये भी तो मादरे हिंद की बेटी है!
- Fwd: Prabhat Ranjan updated his status: "'शेखर: एक...
- Fwd: [Young india] Police lathi-charged and lobbed...
- Fwd: [11 मई 2012 को प्रोन्नति एवं ठेकेदारी में आरक...
- NAPM Demands Withdrawal of vindictive cases agains...
- High Court Bench restrains police from arresting l...
- The Spectre Of Fascism By Rohini Hensman
- MAHARASHTRA RTI RULES AMENDMENT passed by Assembly...
- More than one involved in Aadhaar scam: Cops
- Bill extends time limit for quota to SC/ST, OBCs i...
- Minister’s job at Writers’: Tell ‘what kind of wom...
- NGOs for clause exemption - Meghalaya groups conti...
- Fwd: UPDATE - harassment of one tribal man & his m...
- Bangaru Laxman sentenced to 4 years in jail for ac...
- बंगारू लक्ष्मण को चार साल की जेल
- रुश्दी की किताबों को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने ...
- भ्रष्टाचार से कौन डरता है
- रामदेव ने किया आंदोलन के तीसरे चरण का ऐलान
- पदोन्नति में आरक्षण नहीं: सुप्रीम कोर्ट
- पेट्रोलियम पदार्थों के दाम तर्कसंगत बनाने की जरुरत...
- डीएम की रिहाई के लिये मध्यस्थ पहुंचे जंगल
- फेसबुक का तोड़ भी आया इंटरनेट पर
- बाहरी दबाव का खेल, भाजपा कांग्रेस का मेल! आपकी बात...
- आतंकवाद के नाम हौव्वा खड़ा करके मुस्लिमों को बदना...
- सचिन को मोहरा बनाकर मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती...
- काश मैं बैठक की रिकॉर्डिंग कर लेता तो पूरा देश टीम...
- इस गांव की बेटियां बिकने के लिए मुंबई भेज दी जाती हैं
- अलेकेपन और धर्म का दंश : मेघा उर्फ महजबीं की दर्दन...
- Fwd: Prabhat Ranjan shared a link: "मूलतः डॉक्टर र...
- Fwd: Inauguration of Bhagwan Parshuram Community C...
- What if Parliamentary Panels report that castigate...
- Fwd: हस्तक्षेप.कॉम भारत विभाजन के अपराधी
- गार के दांत तोड़ने की पूरी तैयारी!
- Fwd: Hindimedia
- Fwd: Today's Exclusives - Pratibha Patil gives up ...
- ‘Biometrics are not as perfect as some politicians...
- Case under SC/ST Act against Amity staff-
- Dalit body wants sops for sweepers
-
▼
April
(829)
No comments:
Post a Comment