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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, April 30, 2012

हरिश्‍चंद्र की भूमिका मेरे रचनात्‍मक जीवन की उपलब्धि है

http://mohallalive.com/2012/04/30/an-interview-with-mukesh-tiwari-about-upanishad-ganga/

 आमुखबात मुलाक़ातसिनेमा

हरिश्‍चंद्र की भूमिका मेरे रचनात्‍मक जीवन की उपलब्धि है

30 APRIL 2012 ONE COMMENT

सैकड़ों साल बाद भी उपनिषद गंगा जैसा धारावाहिक जीवित रहेगा

उपनिषद गंगा के बारे में टैम की रिपोर्ट है कि इसे 20 से 25 साल के युवा खूब देख रहे हैं। इससे पता चलता है कि हमारी सांस्‍कृतिक विरासत को समझने में युवाओं की दिलचस्‍पी है। अगले रविवार को उपनिषद गंगा में हरिश्‍चंद्र की कहानी दिखायी जाएगी। हरिश्‍चंद्र का किरदार मशहूर अभिनेता मुकेश तिवारी ने निभाया है। उपनिषद गंगा में काम करने से जुड़े अनुभवों को उन्‍होंने मोहल्‍ला लाइव के साथ शेयर किया। हम उसे यहां पेश कर रहे हैं : मॉडरेटर

◻ .उपनिषद गंगा को आप किस नजरिये से देखते हैं?

 .मैंने इसे कभी एक धारावाहिक के रूप में कभी नहीं देखा। इसे मैं एक ऐसे दस्तावेज के रूप में देखता हूं, जिसको सहज रूप से लोगों तक पहुंचाना चाहिए। इसमें जो कथाएं हैं, वे एक साकार जीवन दर्शन देती हैं। यह मुझे बहुत दिलचस्प लगा। यह हमारा दायित्‍व है कि हम अपनी सांस्‍कृतिक विरासत को रचनात्‍मक तरीके से लोगों के सामने पेश करें। एक अभिनेता के रूप में अपना कर्तव्‍य समझता हूं कि हमारी संस्कृति और सभ्यता रचनात्मक रूप से प्रदर्शित हो सके।

◻ .हिंदी सिनेमा और धारावाहिकों में काम करने वाले अभिनेता क्या इतनी गंभीरता से विषयों को चुनते हैं?

 .यह मेरा नजरिया है। कोई इसे कॉस्‍ट्यूम ड्रामा के रूप में भी देख सकता है। कई बातों को आने वाली पीढ़ी देखने योग्य भी नहीं समझती। आज के समय में हरिश्‍चंद्र जैसे किरदार को लेकर लोग हैरान हो जाएंगे कि ऐसा आदमी तो संभव ही नहीं है। दरअसल सांस्‍कृतिक चक्र चलता रहता है, चीजें घूमती रहती हैं – नयी पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी… सिनेमा, स्‍टारडम, कलाकार… यह उधेड़बुन चलती रहती है, जो काफी हद तक व्यक्तिगत है। मुझे लगा कि यह मेरे लिए एक अवसर है। मैं कई ऐसे काम करता हूं, जिसके लिए मन तैयार नहीं रहता। खास कर जब आपका रुझान मार्क्‍सवादी है। लेकिन मैं करता हूं, क्‍योंकि यही मेरी रोजी-रोटी है। आज के दौर में सिनेमा-सीरियल को फर्क करके देखना, चुनना, करना बेहद मुश्किल है। थोड़ी कोशिश जरूर करता हूं। उपनिषद गंगा में मुझे लगा कि मैं अपनी विरासत को समझ पाऊंगा और अपने अभिनेता को थोड़ा और विस्‍तार दे पाऊंगा। और हरिश्‍चंद्र जैसी भूमिका किसी अभिनेता को जीवन में एक बार ही मिलता है और वह भी डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी जैसे निर्देशकों के साथ। तो मैंने इसे चुनौती के तौर पर लिया। डॉ साहब की फिल्‍म मोहल्‍ला अस्‍सी में भी मैंने इसी नजरिये के साथ काम किया है। क्‍योंकि मैं ये जानना चाहूंगा कि क्‍या रचा-बसा है हमारे गांवों में, आसपास के अंचल में, उनकी मानसिक संरचनाओं में। तो ये मेरे लिए एक एक्‍सरसाइज के तौर पर है। और एक अभिनेता के लिए यह बहुत जरूरी भी है।

◻ .जैसा कि आपने बताया कि आप वामपंथी रूझान के हैं। तो अपने पूरे ओरिएंटेशन को उपनिषद गंगा के कंटेंट के साथ आप कैसे जस्‍टीफाई करते हैं?

 .डॉ साहब इन कृतियों को तटस्‍थ भाव से देखते हैं, हालांकि उन्‍हें वामपंथी नहीं कहा जा सकता। उनकी जमीन दक्षिणपंथी ही है। लेकिन उनकी राजनीतिक पक्षधरता और उनके सृजन में बड़ा फासला है। अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के नेता रहे, लेकिन उनकी कविता में अलग तरह की संवेदना है। राजनीति में उनका काम जैसा भी हो, लेकिन कविता में वे एक स्‍वतंत्र रचनात्‍मक व्‍यक्तित्‍व नजर आते हैं। यही बात डॉक्‍टर साहब के साथ ही है। किसी राजनीतिक विचारधारा का मोहताज होना या उसका फॉलोअर होना एक अलग बात है, लेकिन इसे वे अपनी कृतियों पर नहीं थोपते। मैं अपने ओरिएंटेशन के लिहाज से उनकी कृति को इसलिए भी जस्‍टीफाई कर पाता हूं। हालांकि उपनिषद में अनेक धाराएं हैं। उपनिषद तब की चीज है, जब इन विचारधाराओं का भी जन्‍म नहीं हुआ था। चाहे वामपंथ हो या दक्षिणपंथ। उपनिषद में एक जीवन धारा है, जो हर समय के लिए और हर समाज के लिए जरूरी है।

◻ .पौराणिक धारावाहिकों की शुरुआत 90 के दशक के शुरू से होती है। रामायण, महाभारत, चाणक्‍य आदि… आप उस वक्‍त एनएसडी से ट्रेनिंग ले रहे थे। बाद में पौराणिक धारावाहिकों की एक बाढ़ ही आ गयी। उपनिषद गंगा को इस पूरे सिलसिले में आप किस रूप में देखते हैं।

 .90 के दशक में रामायण और महाभारत जैसी बड़ी कहानियों पर काम हुआ। हमारे सांस्‍कृतिक महाकाव्‍यों के कमर्शियलाइजेशन का वो दौर था, जो बेहद लोकप्रिय हुआ। उनको कमर्शियलाइज्‍ड करना जरूरी था, वरना वो लोगों तक नहीं पहुंचता। उसके बाद एक लंबा अंतराल आया, जिसमें कई प्रकार के परिवर्तन आये। ऑडिएंस बदली है, दर्शक परिवर्तित हुए हैं। ज्‍यादातर दर्शक अभी भी सास-बहू से चिपके हुए हैं। लेकिन जो उपनिषद है, जो शास्‍त्र हैं, चाणक्‍य-महाभारत है या रामायण है, ये कभी भी कभी भी विलुप्‍त नहीं होने वाला है। यह हिंदुस्‍तान के प्रत्‍येक नागरिक की रक्‍त शिराओं में बह रहा है। इसको कोई झुठला नहीं सकता। इसके साथ जुड़ना धार्मिक हो जाना नहीं बल्कि सांस्कृतिक विरासत का स्मरण करना होगा बल्कि इसे सही तरह से पेश किया जाए तो सराहा भी जाएगा।

◻ .उपनिषद गंगा में आपने दो बहुत ही महत्‍वपूर्ण किरदार निभाये हैं, हरिश्‍चंद्र और भर्तृहरि। आमतौर पर अभिनेता अपने समय के जीवित और परिचित चरित्रों में अपने नाटकीय किरदार को तलाशते हैं और फिर उनके साथ को खुद को रीलेट करने की कोशिश करते हैं। लेकिन ये दोनों ही किरदार हमारे समय के नहीं है – फिर आपने खुद को हरिश्‍चंद्र या भर्तृहरि में कैसे ढाला?

 .मेरा द्वंद्व यही था। को-रीलेट करना तो मुश्किल था। लेकिन जैसा कि स्‍टानिस्‍लावस्‍की लिखते हैं कि अगर आपको मंच पर मर्डर करना है, तो जरूरी नहीं कि आपने सचमुच में मर्डर किया हो, तभी मंच पर हत्‍यारे को सही सही उतार पाएंगे। हरिश्‍चंद्र जैसा कैरेक्‍टर जीने को मिलता है, तो आप अपने देखे हुए ईमानदार लोगों को याद करते हैं। और यह भी कि कैसे वो लतियाये जाते हैं हमारे समाज में, किस तरह से उनकी दुर्दशा होती है। लेकिन वो व्‍यक्तिगत तौर पर नहीं टूटते हैं। फौरी तौर पर वे जरूर असफल हो जाते हैं। लेकिन परीक्षा की घड़ी तो हर व्‍यक्ति के सामने है। हर व्‍यक्ति के अंदर एक हरिश्‍चंद्र है। पूरी सच्‍चाई से वो जीना चाहता है, लेकिन परिस्थितियां उसे तोड़ती हैं। आसान तरीके से जीने का लालच उसे समझौतापरस्‍ती की ओर ले जाता है। हरिश्‍चंद्र इसलिए नायक हो जाते हैं, क्‍यों वो व्‍यक्ति टूटा नहीं उन परिस्थितियों से। मैंने इसे एक चुनौती के रुप में लिया। मैं हरिश्‍चंद्र को एक आम व्यक्ति की दृष्टि से देखना चाहता था। एक राजा, जो कि सब कुछ त्‍याग चुका है। तो उसके अंदर क्‍या घटित हो रहा है, यह मेरे लिए महत्‍वपूर्ण था। मैंने ये सोचा ही नहीं कि उस समय के हाव-भाव क्‍या होंगे या उस समय दरअसल क्‍या हुआ होगा। मेरी कोशिश ये थी कि यथार्थ के साथ एक व्यक्ति के सच कैसे प्रस्‍तुत किया जाए।

◻ .उपनिषद गंगा के दौरान डॉ चंद्रप्रकाश दिवेदी और उनकी टीम के बारे में आपका क्या नजरिया बना?

 .पूरे शूट के दौरान डॉ साहब किसा भी समझौते के लिए तैयार नहीं थे। हरिश्‍चंद्र की शूटिंग हमने आठ दिन की। एक एपिसोड के लिए आठ दिन की शूटिंग बड़ी बात थी, क्‍योंकि टीवी के बजट के हिसाब से ये थोड़ा अजीब है। लेकिन मेरी नजर में यह एक एतिहासिक दस्तावेज है और यहां बाकी कोई चीज महत्‍व नहीं रखती। इससे डॉक्‍टर साहब आने वाले सौ साल, दौ सौ साल बाद याद किये जाएंगे, सारे अभिनेता याद किये जाएंगे और चिन्‍मय ग्रुप याद किया जाएगा, जिसने इस धारावाहिक की कल्‍पना की, उसे संभव बनाया।

◻ .यानी बहुत सारे लोगों के त्याग की कीमत पर यह कृति सामने आ रही है?

 .यह कहने में कोई संकोच नहीं है। इससे मेरे अंदर के अभिनेता को भी खुशी मिली। यह मेरे लिए एक उपलब्धि है कि मैंने हरिश्‍चंद्र जैसे किरदार को निभाया, जिससे मैं अपनी कार्यशैली में बहुत परिवर्तन भी महसूस कर रहा हूं।

मुकेश तिवारी बॉलीवुड के मशहूर चरित्र अभिनेता हैं। वे मध्‍यप्रदेश के सागर जिले की पैदाईश हैं और राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यालय से होते हुए मायानगरी पहुंचे। चाइना गेट में जगीरा के रोल से उनके फिल्‍मी करियर की शुरुआत हुई। गोलमाल सीरीज की फिल्‍मों में भी उनका काम काफी सराहा जा रहा है। उनसे mukesh.tiwari@yahoo.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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