Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Sunday, April 29, 2012

असल दोषी कौन

असल दोषी कौन


Sunday, 29 April 2012 11:17

तवलीन सिंह 
जनसत्ता 29 अप्रैल, 2012: बोफर्स पर जो हल्ला भारतीय जनता पार्टी ने संसद में पिछले सप्ताह किया, बेमतलब था। बिल्कुल बेमतलब। इसलिए कि भाजपा के सारे बड़े नेता अच्छी तरह जानते हैं कि ओत्तावियो क्वात्रोकी को पकड़ने का वक्त तब था, जब दिल्ली में उनकी सरकार थी। भाजपा के सारे बड़े नेता यह भी अच्छी तरह जानते होंगे कि अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में इस व्यक्ति को वापस लाने की कोशिशें क्यों इतनी बेकार थीं। अब इन पुरानी बातों में उलझने की जरूरत नहीं है, लेकिन इस देश के लिए बोफर्स अब भी महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
और वह इसलिए कि 'क्रोनी कैपिटलिज्म' (याराना पूंजीवाद) का यह अब भी सबसे अजीबोगरीब उदाहरण है। माना कि ए. राजा ने अपने कुछ यार-दोस्तों को स्पेक्ट्रम बांट कर अपना भी कुछ भला जरूर किया होगा, लेकिन कम से कम भारत सरकार को बंदूकें बेच कर किसी विदेशी नागरिक का तो भला नहीं किया। वह भी ऐसा विदेशी नागरिक, जो आज तक बता नहीं पाया है कि उसके स्विस बैंक खाते में बोफर्स द्वारा दिए गए रिश्वत के पैसे पहुंचे किस वास्ते।
याराना पूंजीवाद का मतलब है पूंजीवाद की वह प्रथा, जिसके द्वारा सरकारी अधिकारी या जाने-माने राजनेता अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके अपने दोस्तों को मालामाल बनाते हैं और ऐसा करने से अपने आपको भी। चीन और रूस जैसे पूर्व-मार्क्सवादी देशों में इस किस्म का पूंजीवाद ही देखने को मिलता है और लाइसेंस राज के जमाने में अपने भारत महान में भी इस किस्म का पूंजीवाद खूब दिखता था, बोफर्स के जमाने में।
आज के भारत में वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोग और अण्णा हजारे के मुरीद हल्ला मचाते फिरते हैं कि इस देश में इस तरह का पूंजीवाद आर्थिक सुधारों के बाद ही शुरू हुआ। लेकिन यह भूल जाते हैं कि बोफर्स सौदा तो उस समय हुआ जब देश में लाइसेंस राज का नियंत्रण पूरी तरह कायम था। समाजवादी आर्थिक नीतियों के नाम पर राजनेताओं और अधिकारियों ने अर्थव्यवस्था पर ऐसा कब्जा कर रखा था कि निजी उद्योग उनकी इजाजत के बिना चल ही नहीं सकते थे। ऐसे हाल में जाहिर है कि वही उद्योगपति सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच सकते थे, जिनकी राजनीति की ऊंची बैठकों में दोस्त थे। 
लाइसेंस राज जब से हटा है, निजी उद्योगपति अपने बलबूते पर अक्सर अपना पैसा बनाते हैं, लेकिन अब भी अर्थव्यवस्था के कई नियंत्रण सरकार के हाथों में हैं। आज भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां सिर्फ भारत सरकार का अधिकार है, जैसे सेना के लिए हथियार-विमान की खरीददारी के मामले में। इन सौदों में क्या होता है हम जैसे आम लोगों को नहीं मालूम, क्योंकि सौदे परदों के पीछे होते हैं। लेकिन अब ये परदे थोड़े-बहुत हटाए जा सकते हैं।

उस पुराने समाजवादी भारत में तो किसी की हिम्मत नहीं होती थी कुछ कहने की। सो खूब पैसा बनाया आला अधिकारियों, राजनेताओं ने और अक्सर यह पैसा विदेशों में ही छुपा कर रखा जाता था ताकि बच्चों की पढ़ाई के लिए काम आ सके। आपने कभी सोचा है कि सरकारी तनख्वाह पर कैसे भेज पाते हैं अपने बाबू और नेता लोग अपने बच्चों को विदेशी कॉलेजों में? सोचा नहीं, तो सोचिए।
अगर सोच रहे हैं तो इसके बारे में भी सोचिए कि अपने राजनेताओं के सुपुत्र-सुपुत्रियां किस तरह इतने अमीर हो जाते हैंं? मेरा तो मानना है कि अगर इनके कारोबार की जांच की जाए तो कई ऐसे राज सामने आ जाएंगे कि देश हैरान रह जाएगा। लेकिन जांच करने वाले कहां रहे, जब उच्च स्तर की जांच करने वाली संस्थाओं की मिट््टी पलीद कर दी है स्वीडन के पूर्व पुलिस अधीक्षक स्टेन लिंडस्ट्रोम ने? पिछले सप्ताह खुलकर कह दिया उन्होंने कि जो अधिकारी भेजे गए थे स्वीडन बोफर्स सौदे की जांच करने, उन्होंने इतनी लापरवाही दिखाई वहां पहुंचने के बाद कि उनसे भी नहीं मिले, जो स्वीडिश पुलिस अधिकारी इस जांच के बारे में जानते थे। 
अगर आज भी हम बोफर्स सौदे को लेकर किसी को दंडित करना चाहते हैं तो क्वात्रोकी को भूल कर उन अधिकारियों के बारे में पता लगाना चाहिए जो उस वक्त स्वीडन गए थे। क्या नाम था उनका? कहां हैं अब? और वे कौन थे, जिन्होंने क्वात्रोकी को आधी रात को भागने दिया भारत से? कम से कम इन लोगों को अगर सजा होती हैं तो कुछ तो तसल्ली होगी, बोफर्स के मामले में।
रही बात क्वात्रोकी की, तो दाद देनी पड़ेगी उसे और याराना पूंजीवाद के उस जमाने को, जिसमें उनके लिए पैसा बनाना इतना आसान था, जिनके दोस्त शक्तिशाली राजनेता थे। क्वात्रोकी भारत आया था एक मामूली-सा मुलाजिम बन कर- स्नैमप्रोगेट््टी नाम की इतालवी कंपनी के लिए। और जब भागा आधी रात को, चोरों की तरह दिल्ली से 1992 में, तो इतना अमीर बन चुका था कि उसे दुबारा नौकरी करने की जरूरत ही नहीं कभी पड़ी। ऊपर से मनमोहन सिंह की मेहरबानियां इतनी कि सबूत न होने के आधार पर 2009 में उसे बाइज्जत बरी कर दिया गया।

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV