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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, April 28, 2012

सचिन को मोहरा बनाकर मुद्दों से ध्‍यान भटकाना चाहती है कांग्रेस

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[LARGE][LINK=/index.php/yeduniya/1254-2012-04-28-11-20-58]सचिन को मोहरा बनाकर मुद्दों से ध्‍यान भटकाना चाहती है कांग्रेस   [/LINK] [/LARGE]
Written by सिद्धार्थ शंकर गौतम Category: [LINK=/index.php/yeduniya]सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार[/LINK] Published on 28 April 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=8220ed02ea7e6bb007d61eb0e5b8b4e61bdf305b][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/yeduniya/1254-2012-04-28-11-20-58?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी से मुलाक़ात के बाद जिस तरह से अचानक क्रिकेट की दुनिया के भगवान सचिन तेंदुलकर को उच्च सदन भेजने बाबत राष्ट्रपति ने अधिसूचना जारी की और सचिन ने भी इस पर अपनी मूक सहमति दी; उससे राजनीति का सियासी पारा गर्मा गया है। अब सचिन भी सांसद पद पर आरूढ़ हो उच्च सदन की शोभा बढ़ाएंगे। यह वही उच्च सदन है जहां धनाड्य वर्ग के अरबपति अपने हितों की पूर्ति हेतु जोड़-तोड़ कर यहाँ की कुर्सियां तोड़ते नज़र आते हैं। कहते हैं कि राज्य सभा में सांसद पद की बोली तक लगाई जाती है और येन-केन प्रकरेण राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी को यहाँ का सदस्य मनोनीत करवाने की जुट भिड़ाते नज़र आते हैं। हालांकि सचिन का चयन इस आधार पर तो कतई नहीं हुआ है।

राज्यसभा में सांसद के १२ पद ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों के लिए आरक्षित होते हैं जिन्होंने कला, संस्कृति, विज्ञान जैसे क्षेत्रों में अद्वितीय प्रतिभा का प्रदर्शन कर देश का मान बढ़ाया हो। इनका मनोनयन राष्ट्रपति स्वविवेक के निर्णय पर कर सकते हैं और किसी राजनीतिक दल की सिफारिश पर भी। सचिन का मनोनयन इसी विशेष व्यवस्था के अंतर्गत हुआ है। किन्तु दुर्भाग्य यह कि उनके नाम की सिफारिश कांग्रेस पार्टी की ओर से की गई। यदि राष्ट्रपति स्वविवेक के आधार पर उन्हें राज्यसभा हेतु मनोनीत करतीं तो यह सचिन के साथ भी न्यायपूर्ण होता किन्तु एक राजनीतिक पार्टी विशेष के दूत के रूप में सचिन का राज्यसभा मनोनयन चौंकाता है। सचिन तो राज्यसभा भेजने का फैसला चाहे जिसका हो किन्तु इस फैसले से सचिन के विरोधियों में उतरोत्तर बढ़ोत्तरी हो रही है। कहीं ऐसा न हो कि राजनीति की पथरीली राहों पर चलते हुए सचिन भी अमिताभ बच्चन की तरह राजनीति से तौबा कर लें, किन्तु हो सकता है तब तक बात संभालना उनके बस में न हो।

एक जुझारू खिलाड़ी होने के नाते सचिन निश्चित रूप से सभी वर्ग की पसंद हैं और उनके नाम के आगे क्रिकेट की दुनिया छोटी पड़ने लगी है। आज यही सचिन आम आदमी के निशाने पर आ गए हैं। सचिन को गाहे-बगाहे संन्यास की सलाह देने वाले भी सचिन के इस फैसले से तारतम्य नहीं बैठा पा रहे हैं। फिर राजनीतिक दल तो हैं ही सचिन के नाम को लेकर राजनीति करने के लिए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि ऐसे वक़्त में जब सचिन अपने करियर को लेकर संतुष्ट हो और अभी उनमें काफी क्रिकट बचा हो, तब सियासी पिच पर बैटिंग करने की ऐसी कौन सी हड़बड़ी है, जिसने सचिन को पार्टी विशेष के द्वार तक पहुंचा दिया? शिवसेना सदस्य संजय राउत के इस तर्क में दम तो लगता है कि अब कांग्रेस सचिन के नाम को भुनाना चाहती है ताकि राजनीतिक मुद्दों से जनता, मीडिया और तमाम विरोधी राजनीतिक दलों का ध्यान भटकाया जा सके। कांग्रेस का सचिन को राज्यसभा भेजना उनके प्रति आदर दर्शाने का माध्यम हो सकता है, किन्तु यदि उनकी छवि के सहारे स्वयं की छवि को उजला करने की कोशिश है तो यह गलत परिपाटी की शुरुआत है।

यह सभी जानते हैं कि सचिन सियासी तौर पर परिपक्व नहीं हैं और अपने खेल के प्रति समर्पित होने की वजह से उनका संसद की कार्रवाई में रोज़-रोज़ हिस्सा लेना भी संभव नहीं है। इसी तरह राज्यसभा के बारे में जो धारणा बनी है कि यहाँ व्यक्ति विशेष लाभ हेतु प्रवेश पाता है और यह सदन नेताओं के रिटायरमेंट की राह प्रशस्त करता है, सही साबित होती है। सचिन के नाम को जिस तरह से कांग्रेस ने सियासी अखाड़े में उतारा है उससे नुकसान दोनों को है। एक की उजली छवि बिगड़ रही है तो दूसरी ओर बिगड़ी छवि और अधिक दागदार होती जा रही है। सचिन को राज्यसभा भेजने के कांग्रेसी फैसले से यह बात भी सही साबित होती है कि कांग्रेस में सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ होने की भूख है, जिसके लिए वह किसी के भी नाम को सहारे की भांति इस्तेमाल कर सकती है।

इस पूरे प्रकरण में सचिन की छवि के साथ अन्याय हुआ है, जिसका कारण काफी हद तक वे भी रहे हैं। सचिन को राज्यसभा जाने की सलाह को ही सिरे से खारिज कर देना चाहिए था। यदि सचिन जनता के बीच से चुनकर आते तो उनके प्रति सम्मान का भाव दोगुना बढ़ जाता लेकिन पिछले दरवाजे से और सिफारिश से राज्यसभा आने के सचिन के फैसले की मूक सहमति को दबाव तो कतई नहीं कहा जा सकता। जिस तरह से विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवी उनके फैसले के प्रति नकारात्मक तथ्य पेश कर रहे हैं; उससे सचिन की आगे की राह और भी कठिन नज़र आती है। यदि सदन में उपस्थित होकर भी सचिन ने विभिन्न मुद्दों के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई तो उनके मनोनयन को लेकर बयानबाजी बढ़ना तय है। खैर सचिन को आगे कर कांग्रेस ने अपना सियासी बचाव करने का खूब अच्छा प्रबंध किया है। इससे एक बात तो तय है कि कांग्रेस अपने वजूद को प्रासंगिक रखने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है। वहीं सचिन के लिए कांग्रेस की ओर से यह एक ऐसा तोहफा है जिसमें काँटों की मात्रा अधिक है।

[B]लेखक सिद्धार्थ शंकर गौतम ग्‍वालियर से प्रकाशित स्‍वदेश में भोपाल ब्‍यूरो में विशेष संवाददाता हैं.[/B]

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