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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, April 1, 2012

उपभोक्ता वायदा बाजार में हर्षद मेहता जैसा घोटाला होने की सुगबुगाहट, ज्यादा हो हल्ला मचने से पहले सरकार इस मामले को निपटाने की फिराक में!

उपभोक्ता वायदा बाजार में हर्षद मेहता जैसा घोटाला होने की सुगबुगाहट, ज्यादा हो हल्ला मचने से पहले सरकार इस मामले को निपटाने की फिराक में!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

पेट्रोल की कीमतों और ईंधन संकट को लेकर ही नहीं,उपभोक्ता बाजार से भी आने वाले दिनों में आम लोगों और सरकार दोनों को खासी परेशानी हो सकती है।कमोडिटी बाजार में सट्टेबाजी से न सिर्फ कारोबार चौपट हो रहा है, कीमतें तेजी से बढ़ जाने से मंहगाई भी बेलगाम हुई जाती है। इसमें घोटाले की गुंजाइश भी ज्यादा है, जिसका सीधा असर आम आदमी पर होना है । पर वायदा कारोबार की तकनीकी बारीकियों से अनजान लोगों के लिए​ ​ ऐसे गड़बड़झाले की खबर लगना मुश्किल होता है। पर इस बार पर्दाफाश करने का जिम्मा उठाया है एसोचैम ने। ज्यादा हो हल्ला मचने से पहले सरकार इस मामले को निपटाने की फिराक में है।सरकार और वायदा बाजार आयोग के बाद अब उपभोक्ता वायदा बाजार में लगातार आ रही बेलगाम तेजी ने इंडस्ट्री बॉडी एसोचैम की भी नींद उड़ा दी है। एसोचैम को कमोडिटी बाजार में हर्षद मेहता जैसा घोटाला होने की सुगबुगाहट आने लगी है। एसोचैम ने कमोडिटी एक्सचेंज  एनसीडीईएक्स में ट्रेडर्स की मिलीभगत पर सवाल उठाए हैं और सरकार से इस मामले की जांच कराने को कहा है।एसोचौम ने सरकार से इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है। एसोचैम का कहना कि कुछ सटोरियों ने मिलकर एनसीडीईएक्स पर कब्जा कर लिया है। वहीं इस मिलीभगत के चलते कमोडिटी बाजार में कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।कमोडिटी बाजार में हो रही बेलगाम गड़बड़ियों पर मचे घमासान के बाद अब उपभोक्ता मंत्रालय भी जाग गया है। उपभोक्ता मामलों के मंत्री के वी थॉमस ने अपने विभाग के सचिव को कमोडिटी बाजार में हो रही गड़बड़ियों की जांच कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।कंज्यूमर अफेयर्स मंत्रालय ने एफएमसी को सख्त हिदायत दी है कि वो कमोडिटी एक्सचेंज के कामकाज पर गहराई से नजर रखे। साथ ही जरूरत पड़ने पर कड़े से कड़े कदम उठाए।खाद्य मुद्रास्फीति घटकर इकाई अंक में आ गई है, ऐसे में उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय संसद के चालू बजट सत्र में वायदा अनुबंध नियमन अधिनियम में संशोधन के लिए नए सिरे से प्रयास कर रहा है। विभाग के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि ये संशोधन अवकाश के बाद इसी सत्र में पारित हो जाएंगे।

तेल की बढ़ती कीमतों, दलहन और सोने-चांदी के भावों में हो रही उठापटक के कारण लोगों का रुझान वायदा कारोबार की तरफ बढ़ने लगा है।किसानों के साथ साथ व्यापारी वर्ग से जुड़े लोगों का कहना है कि अचानक फसलों के भाव में उतार चढ़ाव का कारण वायदा बाजार है।चूंकि मांग और आपूर्ति के कारक यहां कीमतों के लिए नियामक का कार्य करते हैं, इसलिए वायदा कारोबार के जरिए जिंस उत्पादक अपने भावी घाटे (कीमतों में भावी कमी की आशंका के मद्देनजर) के विरुद्द हेजिंग कर सकता है। फ्यूचर ट्रेडिंग पूरी तरह से हेजिंग का साधन ही है। इस तरह, कीमतों में नाटकीय वृद्धि और कमी के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले कमोडिटी एक्सचेंज, भारतीय अर्थव्यवस्था में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उत्पादकों को उनके उत्पादन का समुचित मूल्य दिलाते हैं। सरकार बैंकों, म्युचुअल फंडों और दूसरी वित्तीय संस्थाओं को भी कमोडिटी कारोबार में हिस्‍सा लेने की अनुमति दे सकती है। यहां एक बात कहना आवश्यक है कि कमोडिटी बाजार सिर्फ बड़े टर्नओवर वाले कारोबारियों और पूंजी के खिलाड़ियों को फायदा पहुंचाते हैं, सामान्य छोटे उत्पादक अपनी सीमाओं के चलते इस बाजार के प्रत्यक्ष लाभों से वंचित ही रह जाते हैं। दुबई के कर्ज संकट का केंद्र भले ही रियल एस्टेट रहा हो, लेकिन भारत में कमोडिटी कारोबार में इसके झटके आने वाले कुछ महीनों तक महसूस किए जाते रहेंगे। भारतीय कंपनियों के लिए दो वजहों से दुबई महत्वपूर्ण हो गया है। पहली बात यह है कि दुबई मोती, सोना और हीरे से लेकर चाय, कपास, बासमती और चीनी जैसी अधिकांश कमोडिटी का कारोबारी केंद्र है। अधिकांश कारोबारी इस शहर को माल को एक जगह से लाकर दूसरी जगह भेजने के लिए इस्तेमाल करते हैं और वहां के स्थानीय बैंकों को आमतौर पर छह महीने के शॉर्ट टर्म कारोबार के लिए महाजन की तरह इस्तेमाल किया जाता है।   

गुरूवार को एसोचैम के द्वारा कमोडिटी बाजार पर सट्टेबाजी के आरोपों के कमोडिटी वायदा बाजार में दिन भर घमासान मचा रहा। वहीं अब एनसीडीईएक्स ने कमोडिटी बाजार में हो रहे बेलगाम उतार-चढ़ाव पर रोक लगाने के लिए चना, सरसों, आलू पर विशेष कैश मार्जिन लगा दिया है।एनसीडीईएक्स ने चने पर 10 फीसदी का विशेष कैश मार्जिन लगाया है। जिसके बाद अब चने पर कुल कैश मार्जिन बढ़कर 15 फीसदी हो गया है। इसी तरह सरसों पर भी 10 फीसदी का स्पेशल कैश मार्जिन लगाया गया है।आलू के अप्रैल वायदा के खरीद सौदों पर 20 फीसदी और मई वायदा के खरीद सौदों पर 25 फीसदी का स्पेशल कैश मार्जिन लगाया गया है। जिसके बाद अब आलू के अप्रैल वायदा पर कुल 25 फीसदी और मई वायदा पर 30 फीसदी का कैश मार्जिन देना होगा।

कंज्यूमर अफेयर्स मंत्रालय ने एफएमसी को सख्त हिदायत दी है कि वो कमोडिटी एक्सचेंज के कामकाज पर गहराई से नजर रखे। साथ ही जरूरत पड़ने पर कड़े से कड़े कदम उठाए।गौरतलब है कि इंडस्ट्री चैंबर ने ग्वार गम, हल्की, काली मिर्च की कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव के पीछे सटोरियों का हाथ होने की आशंका जताई है। वहीं चीनी, दाल जैसी आवश्यक कमोडिटी भी सट्टेबाजों की भेट चढ़ने का आरोप एसोचैम लगाया है। वायदा बाजार आयोग के सख्त रुख के बाद बुधवार को सरसों और चने की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। आगे भी इनकी कीमतों में गिरावट आ सकती है। हाजिर कारोबारियों ने सरसों और चने के वायदा कारोबार पर भी रोक लगाने की मांग की है। एफएमसी ने एक्सचेंजों से अक्टूबर 2010 से अब तक के सरसों, चना समेत अन्य तेजी से बढऩे वाली जिंसों के आंकड़े मांगे हैं।

के वी थॉमस का कहना है कि उन्हें कमोडिटी बाजार में गड़बड़ियों की कई शिकायतें मिली हैं। वहीं जांच की रिपोर्ट आने पर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।थॉमस के मुताबिक वायदा बाजार आयोग में समय-समय पर सुधार किए जाते रहे हैं, वहीं आगे भी जरूरत के मबजूत कानून बनाए जाएंगे। ताकि कमोडिटी बाजार में हो रही हेराफेरी पर लगाम लगाई जा सके।

वहीं कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स ने एसोचैम के आरोपों का जवाब देते हुए कहा है कि वह सिर्फ एक प्लेटफॉर्म है और यहां कीमतें मांग और आपूर्ति के हिसाब से तय होती हैं।

मालूम हो कि जिंस वायदा बाजार में सुधार की खातिर वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने स्वचालित कारोबार (अल्गोरिद्म ट्रेडिंग) के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की योजना बनाई है। इस समय दिशानिर्देश के अभाव में आयोग ने किसी कारोबारी को ऐसा करने से नहीं रोका है। इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में कुछ थोक सौदे उस कंप्यूटर के जरिए स्वत: ही हो जाते हैं, जिनमें अल्गो सॉफ्टवेयर लगा होता है। इस सॉफ्टवेयर का जुड़ाव समाचार एजेंसी से होता है, जो विभिन्न स्रोतों से ऑनलाइन सूचना हासिल कर सेकंड से भी कम समय में खुद ही सौदे कर लेता है। जबकि वैयक्तिक कारोबारी सूचना का विश्लेषण करने के बाद किसी खास कारोबार के बारे में फैसला लेता है। फिलहाल आम कारोबारी सूचना के आधार पर कारोबार का फैसला लेता है, लेकिन तब तक कीमतों में फेरबदल हो चुका होता है। ऐसे में सॉफ्टवेयर से कारोबारियों के खास वर्ग को ही लाभ मिलता है। स्पष्ट तौर पर तेजी से और स्वत: कारोबार के लिए अल्गो ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर से लैस कंप्यूटर एक्सचेंज के सर्वर के काफी नजदीक होते हैं।एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग का इस्तेमाल संस्थागत कारोबारियों द्वारा किया जाता है और वे बाजार के असर व जोखिम के प्रबंधन की खातिर बड़े सौदे को छोटे-छोटे सौदों में बांट देते हैं। बिकवाल कारोबारी मसलन मार्केट मेकर्स और कुछ हेज फंड बाजार को नकदी मुहैया कराते हैं। ऐसे में वे स्वचालित कारोबार के जरिए ही सौदे करते हैं। एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग का इस्तेमाल मार्केट मेकिंग, आर्बिट्रेज या शुद्ध रूप से सटोरिया गतिविधियों समेत किसी भी निवेश रणनीति के लिए किया जा सकता है। एल्गोरिद्मिक व्यवस्था में निवेश का फैसला और इसका क्रियान्वयन किसी भी चरण में किया जा सकता है या इसका संचालन पूरी तरह से स्वचालित तकनीक से किया जा सकता है।एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग का खास वर्ग उच्च बारंबारता वाला कारोबार है, जिसमें कंप्यूटर उस वक्त उपलब्ध सूचना के आधार पर ऑर्डर देने का फैसला करता है। जबकि कारोबारी पहले सूचना को पढ़कर उसका विश्लेषण करता है और उसके बाद ऑर्डर देता है। इतने में एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग के जरिए सौदा पूरा हो चुका होता है। मौजूदा समय में कई कारोबारी शेयर बाजार में तेजी से सौदे करने के लिए इस व्यवस्था का उपयोग करते हैं। ऐसे कारोबार सिर्फ बड़े सौदे के लिए ही मुमकिन हैं।

चना, सरसों और दूसरी कमोडिटी के साथ अब सोयाबीन वायदा में भी गड़बड़ी की आशंका जताई गई है।सोया सेक्टर में काम करने वाली संस्था सोयाबीन प्रोसेसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसओपीए-सोपा) ने वायदा कारोबार पर बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए केंद्रीय खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्री के वी थॉमस से सोया वायदा की जांच की मांग की है।सोपा के मुताबिक वायदा कारोबार से किसानों को कोई फायदा ही नहीं हो रहा है, केवल कुछ सटोरिए दाम बढ़ाकर पैसे बना रहे हैं।

वायदा बाजार में चना और सरसों की कीमतों में तेजी को रोकने के लिए वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) सख्त हो गया है। आयोग ने नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) को चना और सरसों के मौजूदा सभी लांग साइड (खरीद) सौदों पर 10 फीसदी का अतिरिक्त मार्जिन लगाने का निर्देश दिया है जो 31 मार्च से प्रभावी होगा।

एनसीडीईएक्स सप्ताह भर में चना के वायदा अनुबंधों पर पहले ही दो बार में पांच-पांच फीसदी का अतिरिक्त मार्जिन लगा चुका है। जिसका असर वायदा बाजार में इसकी कीमतों पर भी देखा गया। आयोग की सख्ती के परिणामस्वरूप ही एनसीडीईएक्स पर सप्ताह भर में चना की कीमतों में 10.5 फीसदी की गिरावट आई है। 22 मार्च को मई महीने के वायदा अनुबंध में चना का भाव बढ़कर 4,019 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था जबकि शुक्रवार को इसका भाव घटकर नीचे में 3,597 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार करते देखा गया।

अतिरिक्त मार्जिन का असर शुक्रवार को सरसों के वायदा कारोबार पर भी देखा गया। मई महीने के वायदा अनुबंध में सरसों की कीमतों में 2.8 फीसदी की गिरावट आकर भाव 3,789 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार करते देखा गया। हाजिर बाजार में भी चने की कीमतों में पिछले सात दिनों में करीब 11.5 फीसदी की गिरावट आई है।

23 मार्च को दिल्ली मंडी में चना का भाव बढ़कर 3,900 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था जबकि शुक्रवार को भाव 3,450 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। सरसों का भाव इस दौरान 3,940 रुपये से घटकर 3,840 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। चना के थोक कारोबारी समीर भार्गव ने बताया कि मार्च क्लोजिंग के कारण चना और सरसों की खरीद कम हो रही है। साथ ही आगामी दिनों में आवक भी बढऩे की संभावना है।

एनसीडीईएक्स पर मई महीने के वायदा अनुबंध में पिछले तीन महीनों में चने की कीमतों में 23.2 फीसदी और सरसों की कीमतों में 20 फीसदी की तेजी आई थी। मई महीने के वायदा अनुबंध में चने का भाव बढ़कर 24 मार्च को 3,920 रुपये प्रति क्विंटल हो गया जबकि दो जनवरी को इसका भाव 3,181 रुपये प्रति क्विंटल था।

इसी तरह से सरसों का भाव मई महीन के वायदा अनुबंध में इस दौरान 3,362 रुपये से बढ़कर 4,019 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था। जिसके बाद उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने इसकी कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए एफएमसी को निर्देश दिया था।

चालू विपणन सीजन के लिए केंद्र सरकार ने चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,800 रुपये और सरसों का एमएसपी 2,500 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में चने का उत्पादन 76.6 लाख टन होने का अनुमान है जो पिछले साल के 82.2 लाख टन से थोड़ा कम है।

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