विनिवेश का लक्ष्य होगा पूराः चमकेंगी निजी बिजली कंपनियां कोल इंडिया की बलि से!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
विनिवेश का लक्ष्य होगा पूरा!राष्ट्रपति की दखल और पीएसओ के पहल से आर्थिक सुधारों की गाड़ी अब फिर पटरी पर चल पड़ी है। प्रणव मुखर्जी के बजट का मारा आम आदमी जहां आबकारी शुल्क और सेवा कर के मारे बेतहाशा मंहगाई से बेतरह परेशान है और पानी तक मांगने की हालत में नहीं है, वहीं गार तक में ढिलाई से सुधारों के नये मौसम में बाजार में वसंत बगरो है। चमकेंगी निजी बिजली कंपनियां कोल इंडिया की बलि से! कोयला क्षेत्र की दिग्गज कंपनी कोल इंडिया को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के निर्देशों के बाद एफएसए पर हस्ताक्षर करना ही होगा। हालांकि कोल इंडिया पर यह करार जबरदस्ती लादा गया है, क्योंकि कंपनी ने शुरू से ही इस करार पर अपनी असहमति जताई थी। वहीं अब कोल इंडिया अगले 2-3 दिनों के भीतर एफएसए पर हस्ताक्षर कर सकती है।विनिवेश के जरिए पैसे जुटाना सरकार को चुनौतियों में इस वक्त सबसे ऊपर है। पिछले साल विनिवेश की गाड़ी को लगे जोरदार झटके के बाद सरकार इस साल ज्यादा व्यवहारिक दिख रही है। लेकिन क्या इस साल 30,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य भी सरकार हासिल कर पाएगी, बाजार को इसी बात की फिक्र है। इसके अलावा एसयूयूटीआई, नीलामी की प्रक्रिया में बदलाव, ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनपर बाजार सफाई चाहता है।उधर दिल्ली की तरफ सेना की टुकड़ियां बढ़ने से हड़कंप मचा हुआ है। पर इस नये बवाल से घोटालों की आंधी से बाजार को निजात मिलने की उम्मीद है। आज से आईपीएल चालू है और कारपोरेय लाबिइंग का सुहाना सफर कोल इंडिया वध के साथ फिर शुरू हो गया है!
बिजली कंपनियों के साथ करार करने की खबर से कोल इंडिया के शेयर 2 फीसदी गिरे हैं।हालांकि, पावर शेयरों में 0.5 फीसदी की तेजी नजर आ रही है। टाटा पावर 2.5 फीसदी चढ़ा है। मारुति सुजुकी, एनटीपीसी, सिप्ला 1-0.5 फीसदी मजबूत हैं। गेल इंडिया 3 फीसदी टूटा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में गिरावट की वजह से घरेलू बाजारों ने भी कमजोरी के साथ शुरुआत की है। सेंसेक्स 44 अंक गिरकर 17553 और निफ्टी 30 अंक गिरकर 5329 पर खुले। शुरुआती कारोबार में बाजार ने नीचे का रुख किया है।कैपिटल गुड्स, रियल्टी, मेटल, बैंक, पीएसयू, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स शेयरों में 1-0.5 फीसदी की कमजोरी है। ऑयल एंड गैस, एफएमसीजी, तकनीकी, आईटी, हेल्थकेयर शेयर 0.4-0.2 फीसदी गिरे हैं। ऑटो शेयर भी फिसले हैं।कोल इंडिया के एफएसए करने से सबसे ज्यादा फायदा अदानी पावर अदानी पावर को मिल सकता है। अदानी पावर के अलावा रिलायंस पावर, टाटा पावर, जेएसडब्ल्यू एनर्जी को भी फायदा हो सकता है। लेकिन जेपी पावर और लैंको इंफ्रा को ज्यादा फायदा होने की उम्मीद नहीं है।कोल इंडिया का शेयर 320 रुपये तक नीचे जा सकता है। मांग पूरी करने के लिए कोल इंडिया को उत्पादन बढ़ाना होगा।फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट पर कोल इंडिया के लिए सरकार ने राष्ट्रपति का निर्देश जारी किया है।राष्ट्रपति निर्देश के बाद अब कोल इंडिया को एफएसए करना ही होगा। कंपनी के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन के क्लॉज 37 के तहत निर्देश जारी किया गया है। एक सरकारी कंपनी के सामने ग्राहक कतार लगाये खड़े हैं कि हम आपसे 20 साल का समझौता करना चाहते हैं, प्रधानमंत्री कार्यालय तक को निर्देश देना पड़ रहा है कि कोल इंडिया यह समझौता कर ले, लेकिन कोल इंडिया इसके लिए तैयार नहीं दिख रही है। अब मजबूरी में इसे ये समझौते करने पड़ेंगे, वह अलग बात है। आखिर कोल इंडिया की हिचक क्या है? यह हिचक उसके सामने कतार लगाये खड़े ग्राहकों के उतावलेपन से समझी जा सकती है।
सेनाध्यक्ष उम्र विवाद के दौरान दिल्ली की ओर सेना की टुकड़ी के आने की खबर को लेकर जहां देश भर में चर्चा जोरों पर हैं। वहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस खबर का खंडन किया है। पीएम के मुताबिक सेना की गरिमा को कम नहीं किया जाए। उन्होंने कहा कि मामले को तूल देना गलत है। सेना बहुत अहम संस्थान है। इसका सम्मान होना चाहिए।दूसरी तरफ आर्मी ने इस मामले पर बयान जारी कर कहा है कि आर्मी स्टैंडर्ड ऑपरेशन के तहत रुटीन ट्रेनिंग की जांच के लिए ऐसी गतिविधियां करती है। आमतौर पर सभी आर्मी यूनिट समय समय पर ऐसी गतिविधियां करती हैं। एक बार जब ऐसी गतिविधियों की जांच हो जाती है तो उसके बाद टुकड़ी को वापस बुला लिया जाता है। इस मामले में भी आर्मी को वापस बुलाया गया था।आर्मी के मुताबिक खराब मौसम में या फिर कोहरे में हम लोगों को आर्मी मूवमेंट की जांच करते रहनी पड़ती है।वहीं रक्षा मंत्री एके एंटनी ने इस खबर को बकवास बताया। उन्होंने कहा कि जान देने वाली सेना पर सवाल उठाना सरासर गलत है। उन्होंने कहा कि उन्हें देश की तीनों सेना पर गर्व है। साथ में उन्होंने ये भी अनुरोध किया कि ऐसी बातें कर देश की सेना का मनोबल नीचा न किया जाए। ऐसी बातों से सेना की गरिमा पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि टुकड़ी का मूवमेंट नॉर्मल था।इस बीच परमाणु पनडुब्बी आईएनएस चक्र भारतीय नौसेना में शामिल हो गई है। आईएनएस चक्र के बुधवार को समुद्र में उतरने के साथ ही भारतीय नौसेना दुनिया की उन चुनिंदा सेनाओं में शामिल हो गई, जो परमाणु पनडुब्बियों के सहारे सागर की गहराइयों में दबदबा रखती हैं। इस मौके पर रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी भी मौजूद थे। पनडुब्बी को देश को समर्पित करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि आईएनएस चक्र देश की सुरक्षा और संप्रभुता सुनिश्चित करेगी।दूसरी तरफ मुंबई में सीबीआई आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले में गिरफ्तार दो पूर्व आईएएस अधिकारियों रामानंद तिवारी और जयराज पाठक को बुधवार को एक विशेष अदालत के समक्ष पेश करेगी। रामानंद महाराष्ट्र के सूचना आयुक्त और नगर विकास विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव रह चुके हैं। जबकि, जयराज मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त सहित कई महत्वपूर्ण पद संभाल चुके हैं।कारगिल शहीदों की विधवाओं के नाम पर तमाम तरह की सहूलियतें लेकर दक्षिण मुंबई में खड़ी की गई आदर्श सोसाइटी की इमारत में इन दोनों पूर्व नौकरशाहों की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जा रही है। मामले की जांच कर रही सीबीआई ने मंगलवार को पहले इन दोनों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया, बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जयराज को पिछले सप्ताह ही महाराष्ट्र सरकार आदर्श मामले में आरोपी एक अन्य आइएएस अधिकारी प्रदीप व्यास के साथ निलंबित कर चुकी है। सीबीआई ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी में जयराज पर आरोप लगाया है कि उन्होंने मुंबई मनपा का आयुक्त रहते सोसाइटी की इमारत की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति दी थी। उल्लेखनीय है कि शुरू में छह मंजिली इमारत प्रस्तावित थी, लेकिन बाद में अधिकारियों की मिली भगत से 31 मंजिली इमारत खड़ी कर दी गई।
जब बिजली उपकरण बनाने वाली भारतीय कंपनियाँ चाहती हैं कि सरकार आयातित उपकरणों पर ज्यादा आयात शुल्क (इंपोर्ट ड्यूटी) लगाये तो यही बिजली उत्पादक कंपनियाँ इसका विरोध करती हैं। वहाँ वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा की बात करती हैं। लेकिन कोयला खरीदते समय वे नहीं कहतीं कि कोल इंडिया वैश्विक दाम ले, क्योंकि दूसरे देशों में कोयले की कीमतें ज्यादा हैं। वे न केवल कोल इंडिया से सस्ता कोयला चाहती हैं, बल्कि उसे मजबूर भी करना चाहती हैं कि वह उनकी जरूरत का 80% कोयला दे। नवभारत टाइम्स के मुताबिक सरकार ने कोल इंडिया को निजी बिजली उत्पादकों के साथ लॉन्ग टर्म फ्यूल सप्लाई की गारंटी देने पर मजबूर करने वाली प्रेज़िडेंशल डिक्री जारी की है। उसने स्वतंत्र निदेशकों को क्लीन बोल्ड करने के लिए विशेष अथॉरिटी का इस्तेमाल किया, जो प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से पड़ रहे दबाव के आगे झुक नहीं रहे थे। इन निदेशकों को कहना था कि इस तरह के समझौते से कंपनी को नुकसान पहुंचेगा। रतन टाटा और अनिल अंबानी जैसे शीर्ष उद्योगपतियों के दबाव में आए सरकार के इस निर्देश के मुताबिक अगर कोल इंडिया की सप्लाई वादे के 80 फीसदी से कम रहती है, तो उसे पेनल्टी देनी होगी। लेकिन सरकारी कंपनी के लिए राहत की बात यह है कि पेनाल्टी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स करेगा।
कोयला मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ' हम गतिरोध दूर करने के लिए यही कर सकते थे। हमें कोल इंडिया के निवेशकों और कंपनी के बारे में भी सोचना है। कोल इंडिया पीएमओ के आदेश पर अमल करेगी। ' इस डिक्री से पावर कंपनियों को बंद पड़े प्लांट चलाने, बिजली बेचने और फाइनैंस हासिल करने में मदद मिलेगी। इससे 28,000 मेगावाट की कुल कपैसिटी वाले बंद पड़े थर्मल प्लांट को भी सहायता होगी, जो पिछले साल दिसंबर से बनाए जा रहे हैं। इसके अलावा, अगले तीन के दौरान 22,000 मेगावाट क्षमता वाले प्लांट भी बनने हैं। इससे बिजली उत्पादकों को तो राहत मिली, लेकिन स्वतंत्र निदेशकों और द चिल्ड्रंस इन्वेस्टमेंट (टीसीआई) फंड जैसे अल्पमत शेयरधारकों के लिए यह झटका है, जिन्होंने इस कदम का कड़ा विरोध करते हुए कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी।
टीसीआई का कहना है कि कोल इंडिया को सरकार के प्रेज़िडेंशल डायरेक्टिव ने कंपनी बोर्ड के खिलाफ उसके मामले को और मजबूत बनाया है। टीसीआई के पार्टनर ऑस्कर वेल्धुईजेन ने कहा, ' डिक्री ने हमारे लिए कुछ नहीं बदला है, बल्कि हमारे पक्ष को और मजबूती मिली है, क्योंकि यह दिखाता है कि सरकार ने कितने गलत तरीके से इस मामले में दखल दिया है। ' कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा, ' हमने प्रेज़िडेंशल डायरेक्टिव लगाया है, जिसके बाद अगले दो दिन में सीआईएल से पावर कंपनियों के साथ फ्यूल सप्लाई अग्रीमेंट पर दस्तखत की उम्मीद की जाती है। ' कोल इंडिया का बोर्ड पीएमओ के निर्देश पर आम सहमति नहीं बना सका था, जिसके बाद दखल देते हुए मंत्रालय ने उसे एफएसए पर दस्तखत करने के लिए कहा। भले इसके लिए इम्पोर्ट करने की ही जरूरत क्यों न पड़े। कोयला मंत्रालय के एक आला अफसर ने बताया कि कंपनी को पेनल्टी पर फैसला करने की छूट पीएमओ के आदेश का उल्लंघन नहीं होगा और यह बात 'उच्चतम स्तर' तक बता दी गई है।
निजी कोयला ब्लॉकों के आवंटन में अपनी स्थिति स्पष्ट किए जाने को लेकर सरकार पहले से ही दबाव का सामना कर रही है और ऐसे में बिजली मंत्रालय ने बिजली की बिक्री प्रतिस्पर्धी बोलियों के जरिए नहीं करने वाले बिजली कंपनियों को आवंटित कोयला ब्लॉकों का लाइसेंस रद्द करने की अनुशंसा की है। कोयला मंत्रालय को लिखे पत्र में इस कठोर कदम की अनुशंसा की वजह बताते हुए बिजली मंत्रालय ने कहा है कि कम कीमत का लाभ अंतिम उपभोक्ताओं तक पहुंच नहीं पा रहा है। बिजली मंत्रालय ने कहा है कि कोयला मंत्रालय को इस संबंध में सभी कंपनियों को निर्देश देना चाहिए और यदि कंपनियां ऐसा नहीं करती हैं तो उनका आवंटन रद्द किया जा सकता है। इसके अलावा इसमें आवंटन के लिए प्रतिस्पर्धी बोली के जरिए आपूर्ति करने की शर्त को लागू करने की भी अनुशंसा की गई है। इसके दायरे में स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादकों को पहले से आवंटित कोयला ब्लॉकों को भी लाने की बात कही गई है। कम दर पर बिजली आपूर्ति करने के लिए कम कीमत पर कोयले ब्लॉक का आवंटन किया जाता है ताकि ग्राहकों को इसका फायदा मिल सके और इस आधार पर बड़ी संख्या में कोयला ब्लॉकों को आईपीपी और निजी बिजली कंपनियों को आवंटित किया जाता है।
शुल्क नीति के मुताबिक बिजली की सभी वितरण कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बोलियों के जरिए विद्युत खरीद समझौता करना होता है और इस प्रक्रिया में वह कंपनियां भी भाग लेती हैं जिन्हें कोयला ब्लॉकों का आवंटन किया गया है। ऊर्जा मंत्रालय ने कहा कि वे केवल उन्हीं परियोजनाओं की अनुशंसा करेंगे जो कि प्रतिस्पर्धी बोली दिशानिर्देशों के तहत परियोजना लगा रहे हैं।
विनिवेश के जरिए पैसे जुटाना सरकार को चुनौतियों में इस वक्त सबसे ऊपर है। पिछले साल विनिवेश की गाड़ी को लगे जोरदार झटके के बाद सरकार इस साल ज्यादा व्यवहारिक दिख रही है। लेकिन क्या इस साल 30,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य भी सरकार हासिल कर पाएगी, बाजार को इसी बात की फिक्र है। इसके अलावा एसयूयूटीआई, नीलामी की प्रक्रिया में बदलाव, ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनपर बाजार सफाई चाहता है।
सरकार इन चुनौतियों का सामना कैसे करेगी इस पर विनिवेश सचिव हलीम खान का कहना है कि विनिवेश का सफल होना बाजार के माहौल और किस दाम पर विनिवेश होता है उस पर निर्भर होगा। वित्त वर्ष 2013 में विनिवेश के जरिए 30,000 करोड़ रुपये की पूंजी जुटाने का पूरा भरोसा है। वहीं वित्त वर्ष 2013 में सरकारी कंपनियों के आईपीओ में पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले बढ़ोतरी होगी।
हलीम खान के मुताबिक 30,000 करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य वित्तीय घाटे के आंकड़े को ध्यान में रखते हुए किया गया है। 30,000 करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य में हिंदुस्तान जिंक और बाल्को को शामिल किया गया है, इसपर अभी कुछ कहना मुश्किल है।
हलीम खान ने बताया कि ओएनजीसी ऑक्शन की प्रक्रिया में गलती की वजह दोनों एक्सचेंजों पर बोली लगवाना था। दोनों एक्सचेंजों द्वारा एक ही समय पर बोली के आंकड़े दिखाने में तालमेल नहीं होने से भी दिक्कत हुई। एक ही समय पर बोली के आंकड़े नहीं मिलने के कारण आखिरी समय पर पैसा डालने वाले निवेशकों में असमंजस पैदा हो गया।
हलीम खान का मानना है कि ऑक्शन की प्रक्रिया में बोली लगाने की समय सीमा पूरे दिन के मुकाबले 3 घंटे होनी चाहिए। ऑक्शन की प्रक्रिया के जरिए हिस्सा बेचना एक बेहतर और कम लागत का जरिया है। सरकार की वित्त वर्ष 2013 में आरआईएनएल और एचएएल की आईपीओ लाने की तैयारी है।
एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूर्स के डायरेक्टर जनलर अशोक कुमार खुराना के मुताबिक कोयले की आपूर्ति के लिए सरकार के द्वारा उठाए गए कदमों का उर्जा क्षेत्र स्वागत करता है। वहीं एफएसए पर सहमति के बाद पावर सेक्टर की चरमराई हालात में सुधार होगा। पिछले 3 साल से उर्जा कंपनियां कोयले की किल्लत से जूझ रही हैं। ऐसें में एफएसए को कोल इंडिया की ओर से मंजूरी मिलने से राहत के संकेत मिले हैं। साथ ही उम्मीद है कि अगले 7-8 दिनों के भीतर कोल इंडिया एफएसए पर हस्ताक्षर कर देगी।
अशोक कुमार खुराना के अनुसार साल 2009 से उर्जा कंपनियां केवल 3.5-4 करोड़ टन प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) पर चल रही हैं, जबकि कंपनियों को 7-7.5 करोड़ टन पीएलएफ की जरूरत है। वहीं अब उम्मीद है कि पर्याप्त मात्रा में कोयला मिलने से मंद पड़ चुके उर्जा संयंत्रों में फिर से रफ्तार आ जाएगी। साथ ही उर्जा कंपनियां देश में बिजली की जरूरतों को पूरा करने में अहम योगदान दे पाएंगी।
अशोक खुराना का कहना है कि सरकार ने कोल इंडिया को 80 फीसदी फ्यूल आपूर्ति का निर्देश दिया है, वहीं इसकी पूर्ति नहीं करने पर जुर्माने का प्रावधान भी रखा है। ऐसे में उम्मीद है कि कोल इंडिया सरकार के निर्देशों पर खरी उतरेगी।
गौरतलब है कि अमेरिका ने ब्रिक्स देशों जैसे ब्राजील, रुस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका द्वारा अफगानिस्तान के भविष्य और वैश्विक आर्थिक सुधार के मोर्चे पर जताई गई प्रतिबद्धता का भी स्वागत किया है।ईरान से तेल आयात के मुद्दे पर ब्रिक्स देशों के साथ किसी प्रकार के मतभेद से इंकार करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका विभिन्न सरकारों के साथ गहराई से परामर्श कर रहा है।ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई पर ब्रिक्स देशों के दृष्टिकोण के बारे में टोनर ने कहा कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि इस संबंध में निर्णय नहीं लिया गया है और राजनयिक समाधान के लिए अभी काफी समय है।
भारत द्वारा आर्थिक सुधार की कोशिशें जारी रखने के बावजूद एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी निर्यातकों को शुल्क और गैर-शुल्क बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इससे अमेरिकी उत्पादों का भारत निर्यात प्रभावित हो रहा है।
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि [यूएसटीआर] ने अपनी रिपोर्ट 'विदेशी व्यापार बाधाओं पर राष्ट्रीय व्यापार अनुमान रिपोर्ट 2012' में कहा है कि अमेरिका सक्रिय तौर पर भारत से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय अवसरों को खोलने की मांग कर रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत की सीमा शुल्क और फीस संरचना जटिल है। साथ ही शुद्ध प्रभावी सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और भारत में आयात पर लगाए जाने वाले दूसरे करों तथा शुल्कों की दरों निर्धारण में पारदर्शिता का अभाव है।'
अमेरिका का भारत के साथ वस्तु व्यापार घाटा 2011 में 14.5 अरब डालर रहा जो कि 2010 के मुकाबले 4.3 अरब डालर अधिक है। अमेरिका ने 2011 के दौरान भारत को 21.6 अरब डालर के सामानों का निर्यात किया जो कि 2010 के मुकाबले 12.4 प्रतिशत अधिक है। इस अवधि में अमेरिका ने भारत से 36.2 अरब डालर का आयात किया जो कि 2010 के मुकाबले 22.5 प्रतिशत अधिक है।
अमेरिकी वस्तुओं के निर्यात के लिहाज से भारत को 17वां बड़ा गंतव्य बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका ने भारत को 10.3 अरब डालर [सैन्य और सरकारी निर्यात को छोड़कर] का निर्यात किया जबकि भारत से 13.7 अरब डालर का आयात किया।
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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
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