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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, June 23, 2012

भटक जाना एक आंदोलन का !

http://journalistcommunity.com/index.php?option=com_content&view=article&id=1630:2012-06-23-03-56-15&catid=34:articles&Itemid=54

मेघनाद देसाई

जय प्रकाश नारायण अलग तरह के नायक थे. उनकी विचारधारा उन्हें मार्क्सवाद एवं समाजवाद से गांधीवाद की ओर ले गई. उनके जीवन भर की योजना थी, गांधी के भूदान, श्रमदान एवं ग्रामदान जैसे विषयों पर संरचनात्मक काम करना. मुझे इस बात पर संदेह है कि वह बहुत अधिक संरचनात्मक काम कर पाए, लेकिन जिस काम में उन्हें महारथ हासिल थी, वह था आंदोलन का नेतृत्व करना. 1942 में उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलन किया और उसके बाद 1974 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध आंदोलन का नेतृत्व किया. उनके द्वारा किए गए दोनों आंदोलन प्रभावी साबित हुए. इंदिरा गांधी के विरुद्ध किए गए आंदोलन में पहले तो विद्यार्थियों को इकट्ठा किया गया और बाद में उसकी पहुंच आम लोगों तक हो गई. उन्होंने आम लोगों के माध्यम से इंदिरा गांधी पर अंकुश लगाया. हालांकि वह आपातकाल खत्म करने में सफल नहीं हुए, लेकिन उसके बाद के चुनाव में जो असर दिखा, वह उन्हीं की सफलता थी. इंदिरा गांधी की पार्टी चुनाव हार गई और जनता पार्टी की सरकार बनी, लेकिन एक बार फिर वह इस मायने में असफल रहे कि जनता पार्टी की सरकार उनके रचनात्मक कार्य करने में असफल रही. उनके उत्तराधिकारी के रूप में मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, रामविलास पासवान एवं नीतीश कुमार आदि अभी भी राजनीति कर रहे हैं.

अन्ना हजारे ने पिछले साल आंदोलन शुरू किया. उन्होंने जेपी का अनुसरण किया है. वह गांधीवादी हैं, उनका रचनात्मक काम सराहनीय है, दिखावा रहित है. पिछले वर्ष अप्रैल में उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो आंदोलन किया, उसे का़फी जन समर्थन मिला. यूपीए सरकार ने जो रवैया अपनाया, उससे अगस्त 2011 में उनके आंदोलन को फायदा हुआ और जन समर्थन बढ़ा. उनका आंदोलन समाचारों में बना रहा, उन्हें वैश्विक प्रसिद्धि मिली, लोगों को उनमें उम्मीद की एक किरण दिखाई दी और संसद ने भी उनकी मांगों का सम्मान किया. अन्ना हजारे के आंदोलन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन मेरे हिसाब से उन्होंने कुछ ग़लत फैसले भी किए. उन्हें एक भ्रष्टाचार विरोधी दल का गठन करना चाहिए था, राज्य स्तर के चुनाव में भाग लेना चाहिए था. साथ ही कम से कम 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए एक आधार तैयार करना चाहिए था, ताकि राजनीति में सुधार किया जा सके, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. आंदोलन अपनी गति से चलता रहा और जिन प्रत्याशियों को भ्रष्ट माना गया, उनके विरुद्ध प्रचार किया गया. यही कारण है कि चुनाव में आंदोलन का बहुत कम प्रभाव देखने को मिला.

ए राजा ने अपने दोस्तों की सहायता की या नहीं, यह एक अलग सवाल है, लेकिन यह तो सत्य है कि मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 900 मिलियन हो गई है. कम दाम पर लोगों को सुविधा देने का यह सबसे अच्छा तरीक़ा कहा जा सकता है. एक पुल बनाया जाता है तो उसके बाद उसका रखरखाव कम खर्च में संभव हो जाता है. उपभोक्ताओं को कम दाम में सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए, बनिस्पत कि उन्हें ज़्यादा देने के लिए कहा जाए.

कुछ अर्थों में आंदोलन ने अपना यश खोना शुरू कर दिया है. स्पष्ट तौर पर उसके नेताओं के बीच एकता का अभाव दिखाई दे रहा है. उनके अपने-अपने एजेंडे हैं. यूं तो इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सारे लोग ईमानदार व्यक्ति हैं, लेकिन उनका आंदोलन उतना प्रभावी नहीं रहा है. केवल समाचारों में बने रहने के लिए किए गए काम को आंदोलन नहीं कहा जा सकता है. अभी हाल में प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट के 14 मंत्रियों पर जो आरोप लगाए गए हैं, उन्हें ताज़ा उदाहरण माना जा सकता है. अन्ना हजारे खुद इस बात से अनजान हैं कि उनके नाम पर क्या किया जा रहा है. ऐसा ही कुछ जस्टिस हेगड़े के साथ है. यह तय नहीं हो पा रहा है कि आखिर कार भ्रष्टाचार कहां है. सीएजी की सभी रिपोर्टों को भ्रष्टाचार उजागर करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है. यह हमेशा उपयोगी नहीं होगा. उदाहरण के तौर पर 2-जी मामले को लिया जा सकता है. यह दिखाई पड़ता है कि एनडीए ने सही फैसला किया कि स्पैक्ट्रम का आवंटन पहले आओ-पहले पाओ की नीति के आधार पर किया जाए, ताकि इस नीति के ज़रिए उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाया जा सके, उन्हें सस्ती दर पर मोबाइल मिलेंगे. उसका उद्देश्य मोबाइल का इस्तेमाल बढ़ाना था. इस मामले में यह नीति तो सफल रही.

ए राजा ने अपने दोस्तों की सहायता की या नहीं, यह एक अलग सवाल है, लेकिन यह तो सत्य है कि मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 900 मिलियन हो गई है. कम दाम पर लोगों को सुविधा देने का यह सबसे अच्छा तरीक़ा कहा जा सकता है. एक पुल बनाया जाता है तो उसके बाद उसका रखरखाव कम खर्च में संभव हो जाता है. उपभोक्ताओं को कम दाम में सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए, बनिस्पत कि उन्हें ज़्यादा देने के लिए कहा जाए. धन के नुक़सान की तुलना लोगों को दी जानी वाली सुविधाओं से नहीं की जा सकती. यूपीए में किसी के पास भी यह तर्क नहीं था. हमें यह बताया गया कि 2-जी में 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ. जिन्होंने लाइसेंस पाए, उन्होंने लाभ कमाया और उनके शेयरों के दाम बढ़े. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने वह प्रोडक्ट बेचा, जिसकी बाज़ार में का़फी मांग थी. क्या उन कंपनियों ने लोगों से ज़्यादा पैसा लिया, ताकि मोबाइल एक वर्ग विशेष तक सीमित रहे? अगर मोबाइल का उपयोग अत्यधिक महंगा होता तो उसे ताक़त का वास्तविक दुरुपयोग और साथ ही वास्तविक भ्रष्टाचार कहा जा सकता था. अन्ना जी, लोगों की चिंता कीजिए, न कि कैबिनेट की.

 

meghnaddesai@chauthiduniya.com

(Courtesy:ChauthiDuniya)

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