भारतीय स्टेट बैंक के लिए खतरे की घंटी
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए खतरे की घंटी बजने लगी है। निजी कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस अभी मिला नहीं है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और खास तौर पर एसबीआई के विनिवेश की तैयारी पूरी होने लगी है। विनिवेश लक्ष्य में सबसे लाभदायक सार्वजनिक प्रतिष्ठानों का पहले विनिवेश करने की नीति रही है। एसबीआई और एलआईसी साख और नेटवर्क की मजबूती के साथ सबसे लाभदायक सरकारी संस्थाएं हैं। मंदी की मार से भारतीय अर्थ व्यवस्था को संभालने में भी इन दोनों संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । पर शेयर बाजार के खेल में खुल्लमखुल्ला इन दोनों संस्थाओं को दांव पर लगाया गया है, जैसा कि ओएनजीसी की हिस्सेदारी बेचते वक्त उजागर हो गया।जिस तरह लाभदायक सरकारी संस्था एअर इंडिया को जबरन बीमार बनाकर उसके विनिवेश का खेल चल रहा है, एसबीआई और एलआईसी के मामाले में भी वही किस्सा दोहराया जा रहा है। एसबीआई लगता है, सबसे पहले इस खेल का शिकार बनने वाला है और देश भर में सक्रिय बैंककर्मियों की रंग बिरंगी ट्रेड यूनियनों को इस साजिश से कोई खास तकलीफ नहीं है।राष्ट्रीयकृत बैंक लाभ कमा रहे हैं और बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि पश्चिमी देशों में अनेक बैंक बंद हो चुके हैं या दिवालिया घोषित हो चुके हैं। यूनियने अब भी वेतन और बोनस की लड़ाई तक सीमाबद्ध है। निजी कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस देने से पहले एसबीआई की सफाये की ऱणनीति को अंजाम दिया जा रहा है।बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पहले बैंकों में जमा राशि के 87 प्रतिशत का उपयोग सिर्फ पूंजीपति करते थे, अब फिर वही स्थिति होने वाली है। पूंजी पर सत्तावर्ग के एक फीसद लोगों का वर्चस्व कायम करने के लिए यह खतरनाक खेल खेला जा रहा है। इस मुद्दे पर जनता को आगाह करने और इसके विरुद्ध जनांदोलन खड़ा करने की दिशा में सारी ट्रे़ यूनियने निष्क्रिय ही नहीं है , बल्कि सरकारी साजिश को गुपचुप अंजाम देने में सहयोग कर रही हैं।एसबीआई और एलआईसी की विनिवेश की योजना देश के निनानब्वे फीसद जनता के आर्थिक भविष्य को असुरक्षित बना देने का खेल है।
निजी क्षेत्र का एचडीएफसी बैंक बाजार पूंजीकरण के लिहाज से आज सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को पछाड़कर देश का सबसे मूल्यवान बैंक बन गया।स्टेट बैंक आफ इंडिया (State bank of India / SBI) भारत का सबसे बड़ी एवं सबसे पुरानी बैंक एवं वित्तीय संस्था है। इसका ... भारतीय स्टेट बैंक का प्रादुर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी के पहले दशक में 2 जून 1806 को बैंक ऑफ कलकत्ता की स्थापना के साथ हुआ।इसे अनुसूचित बैंक भी कहते हैं।भारत सरकार ने वर्ष 1955 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का अधिग्रहण कर इसका नामकरण भारतीय स्टेट बैंक के तौर पर किया। दस हज़ार शाखाओं और 8500 एटीएम के नेटवर्क वाला भारतीय स्टेट बैंक सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों में सबसे बड़ा बैंक है। बाजार पूंजीकरण के मामले में टीसीएस ने एक बार फिर ओएनजीसी को पछाड़ दिया और शीर्ष पर पहुंच गई। आज बाजार में एचडीएफसी बैंक का शेयर तीन प्रतिशत से अधिक मजबूत हुआ जबकि एसबीआई का शेयर दबाव के चलते 3.77 प्रतिशत टूटकर बंद हुआ।बीएसई आंकड़ों के अनुसार, एचडीएफसी बैंक का बाजार पूंजीकरण 1,37,554 करोड़ रुपये हो गया और यह छठी सबसे मूल्यवान कंपनी बन गई। एसबीआई का बाजार पूंजीकरण 1,30,263 करोड़ रुपये रहा और यह सातवें नंबर पर है। बाजार पूंजीकरण के लिहाज से आज 2,39,906 करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण के साथ टीसीएस पहले नंबर पर रही। ओएनजीसी का बाजार पूंजीकरण 2,37,329 करोड़ रुपए रहा। इस महीने बाजार पूंजीकरण के लिहाज से शीर्ष स्थान पर पहुंचने वाली कंपनी में तीन बार बदलाव हुआ। पहले ओएनजीसी शीर्ष पर रही, फिर टीसीएस ने उसे पीछे छोड़ दिया और एक बार फिर टाटा समूह की कंपनी टीसीएस ने शीर्ष स्थान को प्राप्त किया।निजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड बाजार पूंजीकरण के लिहाज से आज तीसरे स्थान पर रही। इसके बाद कोल इंडिया और फिर आईटीसी का स्थान रहा। सेंसेक्स में शामिल दस शीर्ष कंपनियों में एनटीपीसी आठवें स्थान और साफ्टवेयर क्षेत्र की इनफोसिस नौवें स्थान पर रही। भारती एयरटेल 1,16,584 करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण के साथ दसवें स्थान पर रही।
देश के शेयर बाजारों में लगातार तीसरे सप्ताह गिरावट दर्ज की गई। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स आलोच्य अवधि में 1.86 फीसदी या 319.25 अंकों की गिरावट के साथ 16839.19 पर बंद हुआ। सेंसेक्स पिछले शुक्रवार को भी गिरावट के साथ 17158.44 पर बंद हुआ था। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक निफ्टी आलोच्य अवधि में 2.02 फीसदी या 105.25 अंकों की गिरावट के साथ 5099.85 पर बंद हुआ।
1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फलस्वरूप देश में आर्थिक आजादी का नया दौर शुरू हुआ। पूर्व में जहाँ बैंकों की पूँजी का पूरा लाभ पूँजीपति व इजारेदार उठाते थे, अब समाज के प्रत्येक वर्ग को अपना काम-धंधा शुरू करने के लिए बैंकों से ऋण मिलना सुगम हो गया। परिणामस्वरूप पानवाले, रिक्शे, ताँगेवाले, रेढ़ी चलाकर धंधा करने वाले, हस्तशिल्प कारीगर तथा विभिन्ना प्रकार के निम्न वर्गों को राष्ट्रीयकृत बैंकों से अपना रोजगार शुरू करने के लिए रियायती दरों पर ऋण मिलना प्रारंभ हो गया।
इंदिरा गांधी ने अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का अहम फ़ैसला किया था।उन्होंने 19 जुलाई, 1969 को 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. इन बैंकों पर अधिकतर बड़े औद्योगिक घरानों का कब्ज़ा था। इसके बाद राष्ट्रीयकरण का दूसरा दौर 1980 में हुआ जिसके तहत सात और बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया. अब भारत में 27 बैंक राष्ट्रीयकृत हैं।
इसके पहले तक केवल एक बैंक- भारतीय स्टेट बैंक राष्ट्रीयकृत था। इसका राष्ट्रीयकरण 1955 में कर दिया गया था और 1958 में इसके सहयोगी बैंकों को भी राष्ट्रीयकृत कर दिया गया।चूंकि मोरारजी भाई बैंकों के राष्ट्रीयकरण के विरोधी थे इसलिए उनके वित्तमंत्री रहते राष्ट्रीयकरण का निर्णय लिया जाना कठिन था इसलिए एक सोची-समझी रणनीति के अनुसार श्रीमती गांधी ने मोरारजी भाई से वित्त मंत्रालय वापिस ले लिया। जैसी की अपेक्षा थी मोरारजी भाई ने इसे अपना अपमान समझा और आवेश में आकर स्वयं त्यागपत्र दे दिया। इस बीच राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर कांग्रेस के भीतर काफी गहमागहमी प्रारंभ हो गई। कांग्रेस कार्यकारिणी में मात्र एक के बहुमत से संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया गया। इस निर्णय को श्रीमती गांधी को पद से हटाने की दिशा में उठाया गया पहला कदम माना गया। पार्टी में अपना बहुमत सिध्द करने के लिए उन्होंने व्ही.व्ही. गिरि को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया वहीं दूसरी ओर उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया। अपने इस निर्णय को अमली जामा पहनाने के लिए उन्होंने अधिकारियों को चौबीस घंटे में राष्ट्रीयकरण की पूरी योजना तैयार करने का आदेश दिया कि किसी भी स्थिति में यह बात लीक नहीं होनी चाहिए कि शीघ्र ही बैंकों का राष्ट्रीयकरण होना वाला है। जब तैयारी पूरी हो गई तो 19 जुलाई 1969 को अध्यादेश जारी कर देश के 14 प्राइवेट बैंकों को सीधे सरकार के नियंत्रण में ले लिया गया।
अध्यादेश 19 जुलाई 1969 को जारी किया गया, उसके ठीक दो दिन बाद संसद का सत्र चालू होने वाला था। नियमानुसार अध्यादेश को तुरंत ही विधेयक के रूप में दिया जाना चाहिए। इस तरह सत्र प्रारंभ होते ही अध्यादेश का स्थान लेने वाले विधेयक संसद में पेश किया गया। विधेयक पेश होते ही लोकसभा दो भागों में विभाजित हो गई। एक ओर विधेयक के समर्थक थे और दूसरी ओर उसके विरोधी। इंदिरा समर्थक कांग्रेस सदस्यों के अतिरिक्त कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट सदस्यों ने राष्ट्रीयकरण का गर्मजोशी से स्वागत किया। विरोध प्रमुख रूप से जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के सदस्यों ने किया। बाद में जनसंघ भारतीय जनता पार्टी में परिवर्तित हो गई और स्वतंत्र पार्टी का तो अस्तित्व ही समाप्त हो गया। राष्ट्रीयकरण का औचित्य ठहराते हुए श्रीमती गांधी ने एक जोरदार भाषण दिया। उन्होंने इसे देश के गरीबों के हित में आवश्यक बताया। इंदिरा जी का कहना था कि बैंकों में आम आदमी अपनी गाढ़ी कमाई जमा करता है, परंतु उसका उपयोग चंद लोग ही करते हैं। इस कानून के द्वारा सरकार इस असंतुलन को दूर करना चाहती है। लोकसभा में यह बताया गया कि बैंकों में जमा राशि के 87 प्रतिशत का उपयोग सिर्फ पूंजीपति करते हैं। किसान को, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, 1953 में सिर्फ 19 करोड़ रुपए की सहायता दी गई जो 1965 को आते-आते लगभग शून्य हो गई। यह भी बताया गया कि विभिन्न बैंकों के जो 77 डायरेक्टर्स हैं वे ही विभिन्न कंपनियों में 188 पद हथियाए हुए हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण से इंदिरा गांधी की लोकप्रियता में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई थी। राष्ट्रपति के चुनाव में उनके विरोधियों ने संजीव रेड्डी को खड़ा किया था वहीं इंदिरा जी ने व्ही. व्ही. गिरि को अपना उम्मीदवार बनाया था। चुनाव में गिरि विजयी रहे।
विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रीयकरण के बाद भारत के बैंकिंग क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है।हालांकि भारत में अब विदेशी और निजी क्षेत्र के बैंक सक्रिय हैं। लेकिन एक अनुमान के अनुसार बैंकों की सेवाएँ लेनेवाले लगभग 90 फ़ीसदी लोग अब भी सरकारी क्षेत्र के बैंकों की ही सेवाएँ लेते हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद सेवा क्षेत्र में काफी प्रगति आयी है। कर्मियों को भी बेहतर सुविधाएं मिली हैं। बैंक में ग्राहक सेवा क्षेत्र में भी काफी विकास हुआ है। बैंक निजी हाथों में था तब कर्मियों को सुविधा नहीं मिल रही थी। राष्ट्रीयकरण के बाद ट्रेड यूनियन एग्रीमेंट के तहत बैंक में दस से पांच बजे तक काम हो रहा है जबकि निजी बैंकों में सुबह 8 से रात 8 तक काम लिया जा रहा है।
इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल के दौरान एक अन्य अहम आर्थिक फ़ैसले में प्रिवी पर्स या राजे रजवाड़ों को दी जाने वाली 'पेंशन' समाप्त कर दी थी।इसके पहले तक लगभग 400 राजघरानों को 1947 के बाद से ही प्रिवी पर्स के रूप में सरकार की ओर से एक धनराशि दी जाती थी।पूरे देश में आर्थिक विकास या आर्थिक आजादी का दौर वास्तव में 1969 से प्रारंभ हुआ, जब संसद ने राजाओं-नवाबों के प्रिवीयर्स एवं विशेषाधिकार की समाप्ति और बैंकों के राष्ट्रीयकरण का विधेयक पारित किया।
गौरतलब है कि वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने बुधवार को 11 भारतीय वित्तीय संस्थानों की 'बीबीबी-' लांग टर्म (एलटी) फॉरेन करेंसी (एफसी) इशुअर डिफॉल्ट रेटिंग (आईडीआर) के भावी परिदृश्य में संशोधन कर इसे स्थिर से नकारात्मक कर दिया। इन वित्तीय संस्थानों में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), आईसीआईसीआई बैंक और पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) जैसे प्रतिष्ठित संस्थान शामिल हैं।फिच द्वारा रेटिंग के भावी परिदृश्य में की गई इस कटौती का निवेशकों की संवेदना पर और नकारात्मक असर होगा। एजेंसी ने हालांकि रेटिंग को बरकरार रखा। एजेंसी के इस कदम से इन संस्थानों के लिए विदेशों से ऋण हासिल करना पहले से अधिक महंगा हो जाएगा।रेटिंग एजेंसी द्वारा जारी बयान के मुताबिक संशोधन से प्रभावित होने वाले संस्थानों में हैं: भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ बड़ौदा (न्यूजीलैंड) लिमिटेड, कैनरा बैंक, आईडीबीआई बैंक लिमिटेड, आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड, एक्सिस बैंक, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ इंडिया, हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड और इंफ्रास्ट्रर डेवलपमेंट फाइनेंस कंपनी लिमिटेड।रेटिंग एजेंसी ने 18 जून को भारत के एलटी फॉरेन एंड लोकल करेंसी आईडीआर के भावी परिदृश्य में संशोधन कर इसे स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया था। प्रमुख वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने पिछले कुछ महीनों में आर्थिक विकास दर घटने और सुधार की कमी के कारण भारत के परिदृश्य में कटौती की है।इस साल अप्रैल में स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने भारत के परिदृश्य को स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया था। मूडीज ने पिछले महीने भारत और देश के प्रमुख वित्तीय संस्थानों की रेटिंग को 'सी-' से घटाकर 'डी+' कर दिया।फिच के मुताबिक हालांकि देश के बिगड़ते आर्थिक और वित्तीय परिदृश्य, सुस्त आर्थिक सुधार और महंगाई के दबाव के कारण इन संस्थानों पर और भी दबाव पड़ रहा है, लेकिन एजेंसी ने बैंकों के पास ग्राहकों की समुचित जमा राशि को लेकर राहत जताई।
दूसरी ओर देश के नंबर वन बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा लांच किए गए ओवरसीज बांड इश्यू को निवेशकों का शानदार रेस्पांस हासिल हुआ है। डॉलर की अधिकता वाले इस बांड इश्यू के जरिए एसबीआई ने 1.25 अरब डॉलर यानी तकरीबन 7,000 करोड़ रुपये की पूंजी जुटाई है। एसबीआई के इस बांड इश्यू को मिले शानदार रेस्पांस से अन्य बैंकों व वित्तीय संस्थानों के लिए इस तरह के बांड इश्यू लाने की राह और आसान हो गई है।
एसबीआई के मैनेजिंग डायरेक्टर एवं ग्रुप एक्जीक्यूटिव (इंटरनेशनल बैंकिंग) हेमंत कांट्रेक्टर ने बताया कि हमने बांड बिक्री का काम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इसके तहत ट्रेजरी से ऊपर 3.75 फीसदी की दर पर 1.25 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई है।उन्होंने बताया कि इस बांड इश्यू को निवेशकों का बहुत अच्छा रेस्पांस मिला। बांड इश्यू में 350 से ज्यादा निवेशकों ने भाग लिया। इन बांड को बैंक जल्द ही सिंगापुर एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराएगा।
इश्यू का प्रबंधन संभाल रहे एक अग्रणी बैंक के प्रवक्ता ने बताया कि चुनौतीपूर्ण आर्थिक माहौल के बावजूद एसबीआई के इश्यू को निवेशकों का बहुत अच्छा रेस्पांस हासिल हुआ। उन्होंने बताया कि यह इश्यू 5.2 गुना सब्सक्राइब हुआ और कुल मिलाकर 6.8 अरब डॉलर के निवेश के लिए आवेदन हासिल हुए।
एसबीआई ने इस इश्यू के लिए ड्यूश बैंक, बैंक ऑफ अमेरिका-मैरिल लिंच, बार्कलेज कैपिटल, जेपी मॉर्गन, यूबीएस और सिटीग्रुप को मुख्य बैंकर नियुक्त किया था। ट्रेजरीज से ऊपर 3.75 फीसदी के रेट के हिसाब से देखें तो यह पांच साल की अवधि वाले बांड के सबसे कम रेट में से रहा है। हालांकि, एसबीआई ने इसके लिए ट्रेजरीज से ऊपर चार फीसदी तक का सांकेतिक कूपन रेट दिया था।
एसबीआई का यह सफल ओवरसीज बांड इश्यू अन्य बैंकों व वित्तीय संस्थानों को इस तरह के बांड इश्यू लाने के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा। आईसीआईसीआई बैंक व इंडियन ओवरसीज बैंक इसी तरह के बांड इश्यू जारी करने की तैयारी करने के लिए एसबीआई के इश्यू को मिलने वाले रेस्पांस का ही इंतजार कर रहे थे। बांबे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर एसबीआई के शेयर का भाव 2.58 फीसदी की गिरावट के साथ2,017 रुपये पर बंद हुआ।
भारत में बैंकिंग का इतिहास काफी प्राचीन है। भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम बैंकिंग कंपनी अवध कॉमर्शियल बैंक (1881) थी। 1940 के दशक में 588 बैंकों की असफलता के कारण कड़े नियमों की जरूरत महसूस की गई। फलस्वरूप बैंकिंग कंपनी अधिनियम फरवरी 1949 में पारित हुआ, जो बाद में बैंकिंग नियमन अधिनियम के नाम से संशोधित हुआ।
19 जुलाई, 1969 को 14 प्रमुख बैंकों (जिनमें जमा राशि 50 करोड़ रु. से अधिक थी) का राष्ट्रीयकरण किया गया। बाद में अप्रैल 1980 में 6 और बैंकों का भी राष्टरीयकरण किया गया। राष्टरीयकरण के बाद के तीन दशकों में देश में बैंकिंग प्रणाली का असाधारण गति से विस्तार हुआ- भौगोलिक लिहाज से भी और वित्तीय विस्तार की दृष्टिï से भी। 14 अगस्त, 1991 को एक उच्च-स्तरीय समिति वित्तीय प्रणाली के ढांचे, संगठन, कामकाज और प्रक्रियाओं के सभी पहलुओं की जाँच करने के लिए नियुक्त की गई। एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में बनी इस समिति की सिफारिशों के आधार पर 1992-93 में बैंकिंग प्रणाली में व्यापक सुधार किए गए।
हाल में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किये गये एक स्ट्रेस टेस्ट के अनुसार भारतीय बैंकिंग प्रणाली किसी भी तरह के आर्थिक संकट और ऊँची नॉन-परफॉर्र्मिंग परिसंपत्तियों के झटकों को सहन करने में पूरी तरह से सक्षम है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास सोने का दुनिया में 10वां सबसे बड़ा भंडार है। नवंबर 2009 में रिजर्व बैंक ने 6.7 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 200 मीट्रिक टन सोने की खरीद की थी। इस खरीद से उसके विदेशी मुद्रा कोष में गोल्ड होल्डिंग्स की हिस्सेदारी बढ़ गई है। पहले गोल्ड होल्डिंग्स की हिस्सेदारी इसमें 4 प्रतिशत थी जो अब बढ़कर 6 प्रतिशत हो गई है।
यूनाईटेड किंगडम स्थित ब्रांड फाइनेंस द्वारा किये गये वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग अध्ययन के अनुसार 20 भारतीय बैंकों को ब्रांड फाइनेंस ग्लोबल बैंकिंग 500 की सूची में शामिल किया गया है। वस्तुत: स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भारत की ऐसी पहली बैंक बन गई है जिसे दुनिया की पचास बैंकों की सूची में स्थान मिला है। इसे पचास बैंकों के मध्य 36वां स्थान मिला है। 2009 में जहां स्टेट बैंक की ब्रांड वैल्यू 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर थी वहीं यह 2010 में 4.6 अरब डॉलर हो गई है। आईसीआईसीआई बैंक को दुनिया की 100 श्रेष्ठ बैंकों की सूची में स्थान मिला है। इसकी ब्रांड वैल्यू 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर है।
बैंकों का वित्तीय प्रदर्शन
भारत की अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की 2008-09 की बैलेंस शीट यह दर्शाती हैं कि इनकी वित्तीय स्थित काफी संतोषजनक है। लेकिन ये बैंकें भी ग्लोबल आर्थिक संकट से पूरी तरह से अछूती नहीं रही थीं।
मार्च 2009 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कांसॉलीडेटेट बैलेंस शीट यह दर्शाती हैं कि इनकी वृद्धि दर 21.2 प्रतिशत रही। जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में वृद्धि दर 25.0 प्रतिशत रही थी। सार्वजनिक क्षेत्रों की बैंकों में जहां वृद्धि दर सकारात्मक रही वहीं निजी व विदेशी बैंकों ने नकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की। ग्लोबल आर्थिक संकट के दौरान अधिकांश लोगों ने अपने पैसे को सार्वजनिक क्षेत्रों की बैंकों में जमा करना मुनासिब समझा। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की डिपॉजिट और क्रेडिट के विषय में रिजर्व बैंक की तिमाही आंकड़ों के संबंध में जारी रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल आर्थिक संकट के दौरान राष्ट्रीयकृत बैंकों, विदेशी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के डिपॉजिट क्रमश: 17.8 प्रतिशत, 5.6 प्रतिशत और 3.0 प्रतिशत रहे।
जहां तक सकल बैंक क्रेडिट का सवाल है, राष्ट्रीयकृत बैंकों ने देश में बैंकों द्वारा बांटे गये ऋण का 50.5 प्रतिशत बांटा। इसमें भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 23.7 प्रतिशत ऋण बांटा। विदेशी बैंकों व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने क्रमश: 5.5 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत ऋण ही बांटे।
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की देश में कुल 34,709 शाखाएं हैं।
पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequate Ratio)
भारतीय बैंकिंग प्रणाली ने ग्लोबल आर्थिक संकट का डटकर मुकाबला किया है। यह उसके सुधरे हुए पूंजी पर्याप्तता अनुपात से जाहिर होता है। मार्च 2009 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात में 13.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जबकि भारतीय रिजर्व बैंक के आदेशों के अनुसार इसे कम-से-कम 9.0 प्रतिशत होना अनिवार्य है।
भारत में अनुसूचित बैंकों की सूची
इलाहाबाद बैंक- देश की सबसे पुरानी सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक
आंध्र बैंक
बैंक ऑफ बड़ौदा
बैंक ऑफ इंडिया
बैंक ऑफ मदुरा
बैंक ऑफ महाराष्ट्र
बैंक ऑफ पंजाब
बैंक्यू नेशनाले डि पेरिस-इंडिया- अग्रणी ग्लोबल बैंक जो कार्पोरेट व विदेशी संस्थागत निवेशकों को सेवा प्रदान करती है
केनरा बैंक
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया- यह एक वाणिज्यिक बैंक है जो क्रेडिट, डिपॉजिट और इंटरनेशनल बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराती है
सेंचुरियन बैंक लिमिटेड
सेंचुरियन बैंक
सिफर सिक्योरिटीज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड- यह एक इन्वेस्टमेंट बैंक है जो प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपीटल के द्वारा फंड इकठ्ठा करती है
सिटी बैंक- यह एक ग्लोबल कन्ज्यूमर बैंक है
कार्पोरेशन बैंक
कॉस्मोस बैंक- मल्टीस्टेट सिड्यूल्ड कोऑपरेटिव की सेवाएं प्रदान करती है
देना बैंक
डेवलपमेंट क्रेडिट बैंक
एक्जिम बैंक अथवा एक्पोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ इंडिया
फेडरेल बैंक लिमिटेड
गार्जियन सहकार बैंक नियामिता- समाज के कमजोर वर्र्गों को वित्तीय सेवा व लोन प्रदान करने वाली कोऑपरेटिव बैंक
ग्लोबल ट्रस्ट बैंक- प्राइवेट बैंकिंग फर्म
एचडीएफसी बैंक लिमिटेड- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक जो नेट बैंकिंग और कंज्यूमर लोन के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्रिय है
हरियाणा स्टेट कोऑपरेटिव एपेक्स बैंक लिमिटेड
आईसीआईसीआई बैंक (द इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इन्वेस्टमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड ऑफ इंडिया
आईडीबीआई बैंक- आईडीबीआई और सिडबी द्वारा प्रोमोट की जाने वाली प्राइवेट सेक्टर बैंक
इंडियन बैंक
इंडियन ओवरसीज बैंक
इंडसइंड बैंक लिमिटेड- प्रमुख प्राइवेट सेक्टर बैंकिंग कंपनी
इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया- औ ोगिक और वित्तीय वृद्धि को प्रोमोट करने वाली बैंक
इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड (आईआईबीआई)
जम्मू-कश्मीर बैंक
जम्मू-कश्मीर बैंक लिमिटेड- निजी क्षेत्र की बैंक
कल्याण बैंक
कपोल कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड
लक्ष्मी विलास बैंक
मांडवी कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड- कोऑपरेटिव सेक्टर का बैंकिंग संगठन
नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलरमेंट- कृषि क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने वाली बैंक
नेशनल हाउसिंग बैंक- गृह वित्त संस्थानों को प्रोमोट करने वाली बैंक
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स- मर्र्चेंट बैंकिंग, अनिवासी भारतीयों को सेवा देने वाली और रूरल बैंकिंग के क्षेत्र में सक्रिय राष्ट्रीयकृत बैंक
पंजाब नेशनल बैंक
पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक प्राइवेट लिमिटेड
पंजाब एंड सिंध बैंक
रत्नाकर बैंक लिमिटेड- नेट बैंकिंग और लॉकर सुविधा देने वाली बैंक
सारस्वत कोऑपेरटिव बैंक लिमिटेड- कार लोन देने वाली अनुसूचित बैंक
एसबीआई कैपीटल मार्केट्स लिमिटेड
स्माल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया- लघु उ ोगों को ऋण देने वाला बैंक
स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
स्टेट बैंक ऑफ इंदौर
स्टेट बैंक ऑफ मैसूर
स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र
स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर
सिंडीकेट बैंक
यूनाईटेड कॉमर्शियल बैंक
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया
यूनाईटेड बैंक ऑफ इंडिया
विजया बैंक
निजी बैंक
वर्ष 1993 में बैंकिंग प्रणाली में अधिक उत्पादकता और कुशलता लाने के लिए भारतीय बैंकिंग प्रणाली में निजी क्षेत्र को नए बैंक खोलने की अनुमति दी गई। इन बैंकों को अन्य बातों के साथ निम्नलिखित न्यूनतम शर्तों को पूरा करना था-
(i) यह बैंक एक पब्लिक लि. कंपनी के रूप में पंजीकृत हो; (ii) न्यूनतम प्रदत्त पूँजी 100 करोड़ रु. हो, बाद में इसे बढ़ाकर 200 करोड़ कर दिया गया; (iii) इसके शेयर स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हों; (iv) बैंक का कामकाज, हिसाब-किताब या लेखा तथा अन्य नीतियाँ भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण मानकों के अनुरूप हों।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक
प्रथम राष्ट्रीयकरण- 19 जुलाई, 1969 को 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया-
बैंक ऑफ इंडिया
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
बैंक ऑफ बड़ौदा
बैंक ऑफ महाराष्ट्र
पँजाब नेशनल बैंक
इंडियन बैंक
इंडियन ओवरसीज़ बैंक
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
केनरा बैंक
सिंडीकेट बैंक
यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक
इलाहाबाद बैंक
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया
देना बैंक
द्वितीय राष्टरीयकरण- 15 अप्रैल, 1980 को 6 अन्य बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया-
आंध्र बैंक
कॉर्पोरेशन बैंक
न्यू बैंक ऑफ इंडिया
ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स
पँजाब एंड सिंध बैंक
विजया बैंक
अक्टूबर 1993 में न्यू बैंक ऑफ इंडिया का विलय पँजाब नेशनल बैंक में कर दिया गया। वर्तमान में देश में 19 राष्ट्रीयकृत बैंक हैं।
स्टॉक मार्केट
भारतीय स्टॉक मार्केट में कुल 22 स्टॉक एक्सचेंज हैं। इनमें से बांबे स्टॉक एक्सचेंज, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और ओवर द काउंटर स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के अनुसार देश में 13 अगस्त 2009 तक कुल 1680 पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशक थे। इस अवधि तक इन निवेशकों ने कुल 65.5 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था।
ब्लूमरैंग द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार 31 दिसंबर 2009 तक भारतीय स्टॉक मार्केट का कुल बाजार पूंजीकरण विश्व के कुल बाजार पूंजीकरण का 2.8 प्रतिशत था। वर्ष 2009 के दौरान कुल 4.18 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के 21 आईपीओ बाजार में उतारे गये जबकि इसकी तुलना में 2008 में कुल 3.62 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के 36 आईपीओ जारी किये गये।
बांबे स्टॉक एक्सचेंज
बांबे स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना 1875 में की गई थी। यह एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है। अधिसूचित कंपनियों के लिहाज से बीएसई विश्व का पहले नंबर का स्टॉक एक्सचेंज है। इसमें कुल 5,500 कंपनियां अधिसूचित हैं। 31 दिसंबर 2007 तक इसका कुल बाजार पूंजीकरण 1.79 खरब अमेरिकी डॉलर था। बीएसई का सूचकांक सेंसेक्स 30 कंपनियों के शेयरों से निर्धारित होता है। इसमें सीमेंट, दूरसंचार, रियल इस्टेट, बैंकिंग, आईटी, निर्माण, आटोमोबाइल, ऑयल, फार्मास्युटिकल्स, ऊर्जा और स्टील क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां शामिल हैं। सेंसेक्स में शामिल प्रमुख कंपनियां हैं- इंफोसिस टेक्नोलॉजीस, रिलायंस, टाटा स्टील, टाटा पावर, टाटा मोटर्स। एक्सचेंज में कुल 22 सूचकांक हैं जिसमें 12 सेक्टर शामिल हैं।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज
प्रतिदिन के टर्नओवर के लिहाज से नेशनल स्टॉक एक्सचेंज देश का सबसे बड़ा सिक्योरिटी एक्सचेंज है। 19 मई, 2009 को एनएसई का कुल टर्नओवर 8.33 अरब रु. था। 1992 से ही एनएसई में एक एडवांस्ड आटोमेटेड इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम है जिसे देश के 1486 जगहों से एक्सेस किया जा सकता है। जून 1994 से एनएसई ने थोक ऋण बाजार सेगमेंट में अपना ऑपरेशन शुरू कर दिया था। नवंबर 1994 से इक्विटी सेगमेंट की शुरूआत हो गई जबकि डेरीवेटिव्स सेगमेंट की शुरूआत जून 2000 से हो गई। निफ्टी एक्सचेंज में 20 बैंक और बीमा कंपनियां शामिल हैं।
निफ्टी सूचकांक का निर्धारण 21 उ ोगों की 50 कंपनियों द्वारा होता है। इसमें सीमेंट, दूरसंचार, फार्मास्युटिकल्स, बैंकिंग, आटोमोबाइल, निर्माण, अल्युमिनियम, तेल खोज, गैस व वित्त क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। प्रमुख कंपनियों में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स, भारती एयरटेल, केर्न इंडिया, गेल, हीरो होंडा मोटर्स, हिंदुस्तान यूनीलीवर, हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कार्पोरेशन और इंफोसिस टेक्नोलॉजीस शामिल हैं।
ओवर द काउंटर एक्सचेंज
1990 में स्थापित ओवर द काउंटर एक्सचेंज ऑफ इंडिया देश का एकमात्र ऐसा एक्सचेंज है जो पिछले तीन साल से कार्यरत लघु व मध्यम श्रेणी की कंपनियों को कैपीटल मार्केट से पैसे उठाने में मदद देता है।
भारतीय प्रतिभूति व विनिमय बोर्ड
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना 12 अप्रैल 1992 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत की गई। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। एनएसई प्रतिभूति बाजार में परिवर्तन के लिए एजेंडा तय करने में लगा हुआ है। पिछले पांच वर्र्षों में सेबी के प्रयासों की वजह से देश के 363 शहरों के निवेशक बाजार से ऑनलाइन जुड़े हैं। साथ ही बाजार में पूर्ण पारदर्शिता, वित्तीय लेन-देन के निपटारे की गारंटी, वैज्ञानिक तरीके से डिजाइन और व्यावसायिक तौर से प्रबंधित संकेतकों का प्रचलन और देश भर में डिमैट का प्रचलन संभव हो सका है।
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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
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