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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, July 25, 2012

Fwd: [New post] पत्र : इस आक्रमण की निंदा करें



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From: Samyantar <donotreply@wordpress.com>
Date: 2012/7/25
Subject: [New post] पत्र : इस आक्रमण की निंदा करें
To: palashbiswaskl@gmail.com


New post on Samyantar

पत्र : इस आक्रमण की निंदा करें

by समयांतर डैस्क

bharat-jhujhunwala-attackedआज 'झुनझुनवाला और उनके परिवार पर आक्रमण' का स्तब्ध करनेवाला समाचार पढ़ा। इस को पढ़कर मैं स्तब्ध हूं। यह उत्तराखंड के लिए अच्छा संकेत नहीं है। मैं अपने सभी मित्रों की ओर से इस आक्रमण की भत्र्सना करता हूं। मैं इन लोगों का पूरी तरह विरोध करता हूं जो यह सब ठेकेदारों के लिए कर रहे हैं। श्री भरत झुनझुनवाला, श्री राजेन्द्र सिंह, प्रो. जीडी अग्रवाल से सब अपना अमूल्य समय समाज को दे रहे हैं और चाहते हैं कि मां गंगा तथा अन्य नदियों की स्वाभाविक धारा बनी रहे। उत्तराखंड का भविष्य बड़े बांधों से नहीं है, यह नदियों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से है। एक बार मैं फिर से किराये के लोगों द्वारा बुद्धिजीवी लोगों पर किए गए आक्रमण की निंदा करता हूं। पूरा उत्तराखंड झुनझुनवाला और उनके मित्रों के साथ है। मैं सभी लोगों से आग्रह करता हूं कि वे डा. झुरझुनवाला का समर्थन करें और हमारे प्राकृतिक संसाधनों को बचाएं।

- शमशेर सिंह बिष्ट, उत्तराखंड लोक वाहिनी, अल्मोड़ा

सच्चाई मालूम नहीं है पर...

'दिल्ली मेल' स्तंभ में 'शीतयुद्ध के पुराने हथियार...' (समयांतर, जून अंक) शीर्षक दरबारी लाल में की विस्तृत और जटिल टिप्पणी पढ़ी। इसमें जनसत्ता में चली उस बहस का जवाब दिया गया है जिसमें हिंदू सांप्रदायिक संगठनों से प्रगतिशील लेखकों के पुरस्कृत/सम्मानित होने का मुद्दा उठाया गया है। इस तरह की बहस अक्सर वैचारिक या सैद्धांतिक न होकर व्यक्तिगत आग्रहों से परिचालित रहती है, जिसकी झलक दिल्ली मेल में भी साफ देखी जा सकती है। दरबारी लाल मंगलेश डबराल के बचाव में इतना आगे बढ़ गए कि वे संघ परिवार के अघोषित प्रवक्ता राकेश सिन्हा का बचाव करते नजर आए। इस संबंध में उनका तर्क बहुत ही रोचक है। वे लिखते हैं, ''...आदित्यनाथ का साहित्य या पत्रकारिता से कोई संबंध नहीं है। ... उनका अकादमिक जगत से भी कोई संबंध नहीं है। यहां उनके और राकेश सिन्हा के बीच के अंतर को समझा जा सकता है। राकेश सिन्हा दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के अध्यापक और लेखक हैं। यह ठीक है कि उन्होंने हेडगेवार पर किताब लिखी है इस पर भी वह है तो लेखक ही। '' क्या मजेदार ठोस तर्क है। राजनीतिक सांप्रदायिकता अस्वीकार्य और अकादमिक सांप्रदायिकता स्वीकार्य। राकेश सिन्हा जब अपनी पुस्तकों, लेखों और गोष्ठियों में हिंदू राष्ट्र की वकालत करते हैं और माक्र्सवादियों को राष्ट्रद्रोही बताते हैं तो वह क्षम्य है और अद्वैतनाथ वही बात मंच या लोकसभा में कहते हैं तो अक्षम्य है। राकेश सिन्हा जब टीवी चैनलों की चर्चाओं में मोदी के नरसंहार को सही बताते हैं और भोपाल में विद्यार्थी परिषद के गुंडों द्वारा प्रोफेसर सभरवाल की हत्या को जस्टीफाई करते हैं तो वे कौन सी अकादमिक प्रतिभा का परिचय देते हैं? यह वही राकेश सिन्हा हैं जिनकी डॉ. हेडगेवार की जीवनी की अंग्रेजी पांडुलिपि पर प्रकाशन विभाग द्वारा आपत्ति किए जाने पर उन्होंने आपत्ति करने वाले अधिकारी को संघ विरोधी बताकर तत्कालीन एनडीए सरकार में अपने संबंधों के बल पर दूर-दराज के इलाके में ट्रांसफर करा दिया था। मुझे इस सारी बहस की सच्चाई के बारे में मालूम नहीं क्योंकि मैंने जनसत्ता में छपी लेख शृंखला नहीं पढ़ी लेकिन दरबारी लाल से अनुरोध है कि वे समयांतर को अपनी घोषित पहचान के अनुरूप 'विचार और संस्कृति का मासिक' ही बना रहने दें और इसे व्यक्तिगत कुंठाओं और विद्वेषों का युद्ध क्षेत्र न बनने दें। पुनर्प्रकाशित समयांतर के पहले अंक से इसका नियमित पाठक होने के नाते मुझे ऐसी अपेक्षा करने का हक तो है ही।

- सुभाष सेतिया, दिल्ली

सटीक आवरण

imageमुखपृष्ठ (जून)पर छपा आर.के.लक्ष्मण का कार्टून भारत की वर्तमान स्थिति में भी कितना सटीक बैठता है और सामयिक भी है ही। वैसे भी कलाकार एक भविष्य-दृष्टा तो होता ही है। समयांतर में आवरण से आवरण तक पठनीय सामग्री होती है,एक नये,मौलिक आयाम के साथ।

- शेख सईद, तुर्कु, फिनलैंड

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