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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, April 24, 2013

कहां सो गये हैं बंगाल के बुद्धिजीवी?

कहां सो गये हैं बंगाल के बुद्धिजीवी?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


आर्थिक अराजकता, राजनीति और सेक्स के अद्भुत काकटेल में सराबोर है पूरा बंगाल। राज्यभर में राजनीतिक संरक्षण से सौ से अधिक चिटफंड कंपनियों ने आम जनता की जमा पूंजी लूट ली है। शारदा समूह के फर्जीवाड़े के भंडाफोड़ से गढ़े मुर्दा सारे के सारे जिंदा होने लगे हैं। सड़कों पर अब कबंधों का जुलूस निकलने वाला है। कैंपस युद्ध और चुनावी राजनीति में निष्णात बंगाल में इस कांड के खिलाफ महातांडव मचा है। शारदा कर्णधार सुदीप्त सेन ​​ और उनकी खासमखास कंपनी की  सीईओ देवयानी मुखोपाध्याय की गिरफ्तारी हो चुकी है। मंत्री घनिष्ठ पियाली  की मौत का मामला भी चिटफंड से जुड़ गया है। बंगाल से बाहर पूरे देश में इस पर हंगामा है। अब तक सोया सेबी जाग गया है। पर अति राजनीतिसचेतन, समाज प्रतिबद्ध बंगाल की सिविल सोसाइटी का अता पता नहीं है।अति मुखर जुबानी योद्धाओं के होश फाख्ते हो गये हैं। बोलती बंद हो गयी है। काटो तो खून नहीं, हालत ऐसी है। आखिर क्यों?


परिवर्तन आंधी के दौरान सिविल सोसाइटी का चेहरा बने १६ लाख की पगार वाले शारदा मीडिया समूह के सीईओ कुणाल घोष सत्तादल के ​सांसद हैं, और आम जनता उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रही है। परिवर्तनपंथी विश्वविख्यात चित्रकार शुभप्रसन्न का नाम वाम जमाने में भी रियल्टी मामले में विवाद में रहा है।उनके खेमा बदल के पीछे बल्कि यही कारण बताया जाता रहा है।नंदीग्राम प्रकरण में पहले वे खामोश थे, पर जमीन विवाद में फंसते ही ममता ब्रिगेड में शामिल हो गये।


अब शारदा समूह के एजंट और दूसरे लोग सुदीप्त सेन के साथ उनकी तस्वीर लेकर सड़कों पर उतर कर दावा कर रहे हैं कि सत्तादल के राजनेताओं के अलावा बंगाल में विभिन्न क्षेत्रों के आइकनों के शारदा से सीधे संबंध होने के कारण ही वे इस दुष्चक्र में फंसकर दिवालिया हो गये हैं।

शुभप्रसन्न डिजिटल तकनीकी जालसाजी बता रहे हैं इस तस्वीर को।


बाकी लोग जिनके दामन पाक साफ हैं, पक्ष विपक्ष के तमाम बुद्धिजीवी, सिविल सोसाइटी के  रथी महारथी जो खुद को सुशील समाज बताते हैं और आम जनता को भेड़ों की जमात मानते हैं, वे कहां किस कोने में सो​ ​ रहे हैं?


मामला सिर्फ कुमाल घोष, या पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की ऐसी तैसी करने वाले समाचारप्तर समूहों के सांसद कर्णधारों या शुभप्रसन्न का नहीं ​​है। काजल की कोठरी में हर चेहरा रंगीन है। सुदीप्त सेनगुप्त ने खुद फरार होने से पहले भारी तैयारिया माल समेचने और कानून को धता बताने के ​​लिए की।


समूह की फाइवस्टार मंत्रीघनिष्ठ वकील पियाली की बेमौत मौत हुई। फिर खासमखास देवयानी ने भूमिगत तैयरिया कीं।


फरार होने से पहले सुदीप्त ने सेबी, सीबीआई और सत्तादल के सुप्रीमो को तीन चिट्ठियां या लिखीं, जो एटम बम से कम नहीं हैं। इन चिट्ठियों में राजनेताओं, सांसदों, मंत्रियों और सम्मानित आइकनों का कच्चा चिट्ठा है, ऐसा सूत्रों का दावा है।


राजनेताओं में हड़कंप मचा हुआ है तो आइकन वर्चस्व वाले सिविल सोसाइटी की हालत तो पतली है। मनोरंजन और खेल के तमाम कार्यक्रम,आयोजन, पुरस्कार, सेवासंबंधी कार्यक्रम सीधे चिटफंड के फंड से जुड़ते हैं। आइकनों के सम्मान के पीछ कोई न कोई चिटफंड है। सत्तादल से संबंध होने की वजह से तरह तरह की सुविधाओं का उपभोग करने वाले बुद्धिजीवियों की हवाई क्रांति की हवा इसीलिए ​निकली है।


अब बात खुलेगी तो दूर तलक जायेगी, तृणमूल वाम जमाना एकाकार हो जायेगा। कोलकातिया बड़ा क्लब हो या आईपीएल, दुर्गापूजा ​​हो या कोई क्लब, प्रोमोटर सिंडिकेट हो या फिल्म , टीवी सीरियल या फिर मीडिया, हर कहीं चिटफंड का निरंकुश दबदबा है ।


इसी वजह से लोग शुतुरमर्ग में तब्दील तूफान गजर जाने की उम्मीद से हैं।​

​​

​वैसे भी राजनीतिक संरक्षण की वजह से सड़कों पर उमड़ रहे लोगों के जोश ठंडा पड़ते न पड़ते मामला रफा दफा हो जाने के पूरे आसार है। अतीत ​​में बी ऐसा ही हुआ। संचयिता बंद हुई तो एक मालिक की हत्या हो गयी तो दूसरा दिवालिया हो गया। आम लोगों को ठेंगा भी नहीं मिला। सत्ता ने जांच का आश्वासन दिया है। पूरी कार्रवाई तब शुरु हुई , जबकि शारदा समूह ने आहिस्ते आहिस्ते सारा कारोबार समेट लिया। नकदी स्थानांतरित कर दी।


सत्ता संरक्षण की वजह से ही गिरफ्तारी तब हुई, जब बचाव का चाक चौबंद इंतजाम हो गया। चुंकि सुदीप्त फंसेंगे तो कठघरे में नजर आयेंगे पक्ष विपक्ष के तमाम रथी महारथी।​


जाहिर है कि मामला हद से ज्यादा खुला तो न सिर्फ फंसेंगे  मंत्री से लेकर संतरी तक,बल्कि सुनामी से बेनकाब हो जाएंगी ईमानदारी , सादगी और प्रतिबद्दता की तमाम छवियां! इसलिए कार्रवाई उतनी ही होनी है, जितनी राजनीतिक समीकरण साधने के लिए अनिवार्य हैं। आंदोलन भी उसी शर्त के मुताबिक है। कोई अपनी गर्दन तो फंसाने से रहा! अति बुद्धिसंपन्न सुशील समाज को यह राजनीतिक सामाजिक सच बाकी लोगों से बेहतर मालूम है। इसलिए बिना पंगा लिये तमाम पवित्र लोग बुरा वक्त गुजर जाने के इंतजार में हैं।




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