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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, June 23, 2012

कांग्रेस के लिए भटक रहे हैं माओवादी

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कांग्रेस के लिए भटक रहे हैं माओवादी

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कांग्रेस के लिए भटक रहे हैं माओवादी

देश के नौ राज्यों में अपनी नक्सलवादी हरकतों से सरकार को परेशान करने वाला सीपीआई माओवादी संगठन जुलाई या अगस्त में अपनी 10वीं कांग्रेस को अंजाम देने की तैयारी में जुट गया है। बैठक को सफल करने के लिए हार्डकोर 10सदस्यीय माओवादियों की एक टीम बैठक स्थल की तलाश में कई जगहों का दौरा करती फिर रही है। बताते हैं कि इस बार नक्सली 10वीं कांग्रेस को सफल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ और मध्य प्रदेश के बालाघाट रेंज को अपना सभास्थल बनाने की तैयारी में है।

गृहमंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, पिछले कुछ दिनों से अबूझमाड़ के इलाकों में कुछ नए चेहरों की उपस्थिति की जानकारी मिल रही है। राज्य प्रशासन चौकस होकर इस मसले को देख रही है। नक्सलियों की संभावित बैठक को देखते हुए अबूझमाड़ इलाके में व्यापक स्तर पर सेनाओं की तैनाती कर दी गई है और एक-एक आदमी पर नजर रखी जा रही है। यह बात और है कि नक्सलियों की सक्रियता और उसकी 10वीं कांग्रेस की संभावित बैठक के बारे में गृहमंत्रालय को तो जानकारी मिल गई है और सरकार की ओर से नक्सलियों की इस बैठक को विफल करने के लिए तमाम तरह की रणनीति बनाई जा रही है, लेकिन इसकी संभावना कम ही दिख रही है कि सरकारी तंत्र नक्सलियों की इस अहम बैठक को रोक पाएंगे।

एक अन्य सूत्र के मुताबिक, माओवादी नेता अबूझमाड़ के अलावा बालाघाट के इलाके में भी सभा स्थल की तैयारी कर सकते हैं। नक्सलियों की सोच है कि अबूझमाड़ के बारे में सरकारी तंत्र काफी चौकस और सजग है, इसलिए ऐन वक्त पर सभास्थल को भी बदला जा सकता है। लेकिन बस्तर के एक पुलिस अधिकारी कहते हैं कि 'नक्सली हर पांच साल पर अपने कांग्रेस की बैठक तो करते ही हैं। हर बैठक से पहले पुलिस तंत्र सक्रिय होता है लेकिन वे अपना मकसद पूरा कर लेते हैं। इस बार नक्सली बैठक कहां करेंगे, किसी को पता नहीं है। वे सरकारी तंत्र की आंखों में धूल झोंकने के लिए कुछ इलाकों के नाम उछालते हैं, ताकि पुलिस तंत्र की पूरी निगाह उन्हीं इलाकों पर रहे।

उल्लेखनीय है कि माओवादी हर पांच साल पर अपने कांग्रेस की बैठक करते हैं। इस बैठक में संगठन से जुड़े तमाम बड़े नेताओं के साथ ही पार्टी की सेंट्रल कमेटी के सदस्य, पोलित ब्यूरो सदस्य, राज्य कमेटी सदस्य, जोनल प्रमुख से लेकर जिला स्तर के प्रमुख और गुरिल्ला वार करने वाले संगठन सीएमसी से जुड़े खतरनाक लड़ाकाओं की उपस्थिति होती है। इस बैठक में अगले पांच साल की पूरी रणनीति  माओवादी तय करते हैं। अपना आधार क्षेत्र बढ़ाने से लेकर नए इलाकों में अपनी गतिविधियां बढ़ाने पर खास मैप तैयार करते हैं। इसके अलावा माओवादी कांग्रेस की बैठक में संगठन के लिए बजट की रूपरेखा रखी जाती है और पिछले पांच साल में जमा और खर्च हुए धन की पूरी जानकारी संगठन के सामने रखी जाती है।

इस बैठक में कमेटी के जिन सदस्यों की भूमिका संतोषप्रद नहीं होती, उनके क्रियाकलापों में भी फेरबदल किया जाता है। सूत्रों के मुताबिक, इस बार की बैठक में सबसे ज्यादा बहस संगठन को ज्यादा मजबूत करने पर होने की संभावना जताई जा रही है। कहा जा रहा है कि पिछले कुछ सालों में जिस तरह से माओवादियों के कई बड़े नेता मारे गए हैं और फिर पकड़े गए हैं, उस पर व्यापक रूप से समीक्षा होने की संभावना है। चंदा और उगाही के जरिए आने वाले धन पर भी गंभीर चर्चा हो सकती है। इसके कारण भी हैं।

पिछले कुछ सालों में उगाही की रकम तो बढ़ती जा रही है, लेकिन कई नक्सली नेता इसका ठीक से हिसाब नहीं दे पा रहे हैं। इसके अलावा, जिन जोनल प्रमुख और एरिया कमांडरों के हाथ में फंड खर्च करने से लेकर उसे जमा करने की जिम्मेदारी होती है, अचानक  उसकी मौत होने या फिर पकड़े जाने के बाद उसके फंड की जानकारी  संगठन को नहीं मिल पाती। सूत्र मान रहे हैं कि ऐसी स्थिति की वजह से ही संगठन का बड़ा फंड गायब हो जाता है। इस 10वी कांग्रेस की बैठक में बहस का यह एक अहम मुद्दा हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि माओवादियों ने पिछले 2007 में 9वीं कांग्रेस की बैठक को अंजाम को बिहार के जमुई मूंगेर जिले के भीमबांध के जंगलों में दिया था, लेकिन बैठक से पहले झारखंड और उड़ीसा में  9वीं कांग्रेस की बैठक करने की जानकारी प्रसारित कराई गई थी। बैठक को असफल करने के लिए सरकारी तंत्र उड़ीसा और झारखंड के जंगलों में खाक छान रहे थे और नक्सली आराम से तीन दिनों तक भीमबांध के जंगलों में अपनी रणनीति बना रहे थे। बाद में जब उस बैठक की तस्वीर मीडिया के सामने आई, तो सरकारी तंत्र शर्मसार हो कर रह गया। इसलिए यह कहना अभी मुश्किल है कि माओवादी इस बैठक को कहां अंजाम देंगे। इतना तय है कि जुलाई से लेकर अगस्त के महीने में नक्सली अपनी इस बैठक को अंजाम देने जा रहे हैं।

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