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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, June 23, 2012

कोख काटने का गोरखधंधा

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कोख काटने का गोरखधंधा

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कोख काटने का गोरखधंधा
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ड्रग ट्रायल के लिए कुख्यात मध्यप्रदेश इन दिनों एक नया धंधा खूब फल फूल रहा है। मध्यप्रदेश में 20-25 हजार कमाने के चक्कर में कैंसर का भय दिखाकर किसी भी महिला का गर्भाशय निकाल लिया जा रहा है। डॉक्टर 20-40 साल की युवतियों पर भी रहम नहीं कर रहे हैं। इंश्योरंस कंपनियों के सरकारी एंप्लॉइज के हेल्थ रिकॉर्डस के अनुसार, 25 से 35 साल की तकरीबन 540 महिलाओं में से 100 ऐसी महिलाएं जिनकी उम्र 20 से 30 साल के बीच है, अपना यूटरस यानी गर्भाशय निकलवा चुकी हैं।

मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर में अनियमित मासिक धर्म का इलाज कराने पहुंची 24 साल की आभा का गर्भाशय एक प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने जरूरी ना होने के बावजूद ऑपरेशन करके निकाल दिया। मीना के गर्भाशय के पास छोटी सी गांठ थी। इलाज करने वाले डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि इसकी वजह से कैंसर होने का खतरा है। एक निजी संस्थान में कार्यरत आभा को डॉक्टरों ने कैंसर का ऐसा भय दिखा दिया की अविवाहित होने के बावजुद उसने गर्भाशय निकालने की सहमति दे दी। जब इस बात की खबर आभा के मंगेत्तर विकास मलिक को लगी तो उसने आभा की रिपोर्ट को एक अन्य डॉक्टर से दिखाया तो उक्त डॉक्टर का कहना है कि जिस समस्या के इलाज के लिए आभा डॉक्टरों के पास गई थीं, उसके लिए गर्भाशय हटाने की कोई जरूरत ही नहीं थी। हालांकि ऑपरेशन करने वाले अस्पताल के डॉक्टर आभा के मामले को गंभीर बता रहे हैं। वहीं कुछ डॉक्टरों के अनुसार,सच यह है कि कई महिलाओं के गर्भाशय से जुड़ी समस्या के इलाज के लिए केवल सही दवा की जरूरत होती है, न कि ऑपरेशन कर यूटरस निकलवाने की।

मध्य प्रदेश के निजी अस्पतालों में महिलाओं के शरीर से गर्भाशय निकालने का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है। पूरे राज्य में निजी अस्पतालों में हर साल गर्भाशय निकालने के लिए हजारों सर्जरी की जा रही हैं। सबसे यादा चौंकाने की बात यह है कि सर्जरी कराने वाली 80 फीसदी महिलाओं की उम्र 20-40 के बीच है। ऑपरेशन के कारण महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन और ऑस्टियोपोरेसिस की परेशानियां सामने आ रही हैं। शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी कई पीडि़त महिलाएं हैं जो डॉक्टरों के चंगुल में फंसकर अपनी बच्चादानी निकलवा चुकी हैं। जबकि वैज्ञानिक सत्य यह है कि मात्र 6 से 7 प्रतिशत केसों में ही बच्चादानी का कैंसर होता है, जिन्हें निकलवाने की आवश्यकता होती है। रतलाम की रमा की शादी 15 वर्ष में हो गई थी। उसके दो बच्चे भी हैं। स्वास्थ्य समस्याओं के बाद निजी डाक्टरों ने उसे गर्भाशय निकालने की सलाह दी। रमा कहती है कि सरकारी डॉक्टरों ने जब कोई इलाज नहीं बताया तो वह प्राइवेट डॉक्टरों के पास गई। ऑपरेशन के लिए 20 हजार का खर्चा बताया गया जिसके लिए उसे लोन लेना पड़ा।  रमा अभी 20 साल की ही है और उसे मेनोपॉज भी हो गया है। रमा जैसी कहानी बैतूल की रहने वाली रागनी की भी है। उसे भी डॉक्टरों ने गर्भाशय निकालने की सलाह देते हुए कहा कि यदि ऑपरेशन नहीं होगा तो वह मर जाएगी। रमा और रागनी की तरह राज्य में हजारों महिलाएं ऐसी हैं जिनकी सर्जरी कर गर्भाशय निकाले जा चुके हैं।

बच्चादानी निकालने का घिनौना खेल पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से चल रहा है। जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही हर माह लगभग आधा सैकड़ा से अधिक ऐसे मरीज पहुंच रहे हैं, जिनको किसी न किसी निजी डॉक्टर ने बच्चादानी निकलवाने की सलाह दी थी। मेडिकल अस्पताल में पीडि़त महिलाओं की जांच के बाद उन्हें दवाओं से ही ठीक कर दिया गया। कुछ निजी अस्पताल संचालक एजेंट के जरिए इस घिनौने खेल को खेल रहे हैं।
एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिकल कॉलेज जबलपुर डॉ.कविता एन सिंह कहती हैं कि जनरल सर्जन बच्चादानी का आपरेशन कर रहे हैं। ये स्त्री रोग विशेषज्ञों से सलाह मशविरा नहीं करते हैं। जब केस बिगड़ जाता है तब वे इसे विशेषज्ञों के पास रैफर कर देते हैं। इस प्रकार के जनरल सर्जन मरीजों को भ्रमित करके बच्चादानी का आपरेशन कर रहे हैं। मेडिकल अस्पताल में एक माह में लगभग आधा सैकड़ा से अधिक केस इस प्रकार के आ रहे हैं, जिनको जनरल सर्जन द्वारा बच्चादानी निकालने की सलाह दी जाती है। जबकि हकीकत यह है के 100 केस में से 7 केस में ही बच्चादानी निकालने की आवश्यकता होती है।

शिपुरवा ग्राम, जिला सीधी निवासी शांति पटेल (45 वर्ष) को पेट दर्द की शिकायत थी। शांति के परिजन ने उसका इलाज सीधी के एक डॉक्टर से कराया। उसने सोनोग्राफी कराने पर बच्चादानी में गांठ बताई। उसका आपरेशन किया, लेकिन आपरेशन के बाद परिजन को पेट से निकाली गई गांठ नहीं बताई। शांति को पेट दर्द के साथ रक्तस्राव की शिकायत हुई। शांति के पति रामकृष्ण ने उसी डॉक्टर से शांति की जांच कराई। जांच के बाद डॉक्टर ने शांति की बच्चादानी निकालने कहा। यह सुनकर वह घबरा गई। उसने मेडिकल अस्पताल के स्त्री रोग विभाग में जांच कराई। जहां स्त्री रोग विशेषज्ञ ने जांच के बाद उसकी बच्चादानी में छाला बताया। स्त्री रोग विशेषज्ञ शांति को बताया कि बच्चादानी निकलवाने की आवश्यकता नहीं है। यह दवाओं से ही ठीक हो जाएगा। शांति की दवाएं चालू हैं और उसे आराम है।

सीधी निवासी मुलियाबाई को पांच साल पहले पेट फूलने की शिकायत थी। उसका इलाज सीधी के एक डॉक्टर ने किया। उसने मुलियाबाई की बच्चादानी में ट्यूमर बताया और उसे बच्चादानी निकलवाने की सलाह दी। मुलिया बाई ने रीवा मेडिकल अस्पताल में जांच कराई वहां से उसे नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल अस्पताल रैफर कर दिया। मेडिकल अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रूपलेखा चौहान ने जांच के बाद उसे कैंसर अस्पताल भेजा। मुलियाबाई को ब्लड कैंसर पाया गया। इलाज के बाद उसका ब्लड कैंसर ठीक हो गया। उसकी बच्चादानी निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ी।

हरदुआ निवासी बिट्टीबाई श्रीपाल (30 वर्ष) को अनियमित मासिक धर्म की शिकायत होने पर किसी डॉक्टर ने सलाह दी कि उसकी बच्चादानी निकलवानी पड़ेगी। उसने जब अन्य डॉक्टर से जांच कराई तो पता चला कि उसका रोग दवाओं से ही ठीक हो जाएगा। बच्चादानी निकलवाने की जरूरत नहीं पड़ी। सिहोर की कांति बाई कहती हैं कि जब   मैं अपने गर्भाशय में होने वाले दर्द की शिकायत लेकर भोपाल के एक निजी अस्पताल में गई तो डॉक्टर की इस बात को सुनकर मेरे होश, उड़ गए कि आपकी बच्चादानी में संक्रमण है, इसे निकालना पड़ेगा। यदि नहीं निकलवाया तो कैंसर हो जाएगा। आपरेशन के नाम से डर कर जब मैंने दोबारा विशेषज्ञ से जांच कराई तो पता चला कि  बच्चादानी ठीक है, उसे निकलवाने की आवश्यकता नहीं है।

स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. आशा जैन कहती हैं कि ओवियन सिस्ट सामान्य है। ओवरी में हर माह अंडे बनते हैं। अंडा बनने के लिए सिस्ट बनता है जो सिम्पल सिस्ट होता है। इसके फूटने से ही अंडा बनता है। यदि सिस्ट ठोस हो या उसके अंदर ठोस मटेरियल नजर आता है तब उसे आगे जांच के लिए भेजने की जरूरत होती है। सबसे पहले कैंसर का पता लगाने के लिए खून की जांच करवायी जानी चाहिए। यदि उसमें कैंसर के लक्षण नजर आएं तभी सर्जरी की जा सकती है। इसी तरह जब तक सिस्ट 5 सेमी से छोटे रहते हैं तब तक वह नार्मल रहता है। 10-12 सेमी के सिस्ट होने पर ही सर्जरी की जाती है। उसके पहले भी बायोप्सी जरूरी है।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल अस्पताल में वर्ष 2009-11 के बीच केस स्टडी की गई। इसमें बच्चादानी में समस्या से पीडि़त 802 महिलाओं का काल्पोस्कोप व पेप्समेयर से परीक्षण कर रिपोर्ट बनाई गई। इन महिलाओं को गर्भाशय ग्रीवा कैंसर का डर था। स्त्री रोग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कविता एन सिंह ने कहा कि इन महिलाओं की जांच के बाद यह पाया गया कि 802 पीडि़त महिलाओं में से केवल 23 महिलाओं (2.86 प्रतिशत) को गर्भाशय ग्रीवा कैंसर पाया गया। इसके अलावा 35 महिलाओं (4.36 प्रतिशत) में संभावना व्यक्त की गई। इस प्रकार कुल 7 से 8 प्रतिशत महिलाएं ही कैंसर से पीडि़त पाईं गईं। शेष महिलाओं को सामान्य बीमारी पाई गई।

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