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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, April 21, 2013

लटक गया चार पालिकाओं का चुनाव

लटक गया चार पालिकाओं का चुनाव


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

​हाबड़ा,डालखोला,दुबराजपुर , बालुरघाट और गुसकरा नगरपालिकाओं के वार्डों के पुनर्विन्यास की सूचना चुनाव आयोग को दी थी राज्य ​​सरकार ने।लेकिन  गुसकरा को छोड़कर बाकी चार पालिकाओं में पुनर्विन्यास का काम अधूरा है।इन पालिकाओं का कार्यकाल पूरा होने को है। लेकिन अधूरे पुनर्विन्यास की वजह से चारों पालिकाओं में चुनाव असंभव है। पहले से ही पंचायत चुनाव का मामला राज्य सरकार की ओर से दो दो बार अधिसूचना जारी होने के बावजूद कितने चरणों में चुनाव हो और मतदान के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बल की तैनाती के मुद्दे पर अदालती​​ विवाद में फंस गया है। पंचायतों और पालिकाओं के उपचुनाव भी नहीं हो रहे हैं।जाहिर है कि इन स्थानीय निकायों का कार्यभार अब प्रशासनिक अधिकारिों के हवाले किये जाने की प्रबल संभावना है। जबकि केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने पहले से चेतावनी जारी कर दी है कि चुनाव समय पर नहीं हुए और निर्वाचित निकाय न हो तो सामाजिक योजनाओं के लिए केंद्र से मिलने वाला अनुदान नियमानुसार रोक दिया गाय। जाहिर है कि​​ यह समस्या अब आम आदमी के हित अहित से ज्यादा जुड़ा हुआ है। राजनीतिक समीकरण के बजाय प्रशासनिक गुत्थियों में उलझ गयी​​ है लोगों की किस्मत।इन पालिकाओं में इलाका पुनर्विन्यास के तहत सीटों का आरक्षण भी ने सिरे से तय होना है।


मालूम हो कि तीस जून तक राज्य की तेरह पालिकाओं का कार्यकाल खत्म हो रहा है। लेकिन इन चार पालिकाओं में इलाका पुनरविन्यास में कम से कम छह महीने लगने हैं।


जीटीए को लेकर विवाद के नये आयाम खुलने लगे

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​  


जीटीए को लेकर विवाद के नये आयाम खुलने लगे हैं।गोरखा जन मुक्ति मोर्चा से राज्य सरकार के संबंध जीटीए समझौते के समय की तरह उतने मधुर नहीं हैं अब। यह तो सारे लोग समझते हैं। राज्य सरकार पिछले छह महीने से पूर्णकालिक जीटीए सचिव की नियुक्ति नहीं कर पायी है प्रशासनिक और​ ​ सरकारी तालमेल के अभाव में हालत यह है कि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से बाकायदा पूछ ही लिया कि वह जीटीए सचिव की नियुक्ति कब​ ​ करेगी।समझौते के मुताबिक छह महीने में ही जीटीए के मुख्य सचिव की नियुक्ति होनी थी। पर राज्य सरकार ऐसा नहीं कर सकी। पहाड़ में खिली मुस्कान इस बीच लेकिन मुरझाने लगी है।दार्जिलिंग के जिलाधिकारी सौमित्र मोहन ही मुख्य सचिव का कामकाज तदर्थ रुप सेसंबाल रहे हैं, जिसपर विमल गुरुंग का मूड लगातार बिगड़ता जा रहा है। इससे नयी क्या उलझनें सुरु होंगी , इसका अंदाजा किसी को नहीं है।हालंकि राज्य सरकार ने हाईकोर्ट को सूचित किया है कि अगली सुनवाई के दरम्यान तीन नामों का पैनल वह अदालत में पेश कर देगी। इसपर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा क्या रुख अख्तियार करता है, देखना अभी बाकी है।


उद्योग जगत की उम्मीदें धूमिल​

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

​​

​राज्य सरकार के कार्यकाल के  दो साल पूरे होने को है। वाम सासन के अवसान के दो दो साल बीत जाने के बवजूद राज्य में औद्योगिक और कारोबारी माहौल लेकिन बदला नहीं है। पहले लालझंडा लेकर यूनियनें तांडव मचाती थीं। अब झंडे और चेहरे बदल गये हैं, लेकिन तांडव का सिलसिला थमा नहीं है। इस सिलसिले में हल्दिया का उदाहरण सामने है। राज्य में राजनीतिक संरक्षण में प्रोमोटर सिंडिकेट के दबदबे के कारण कहीं भी निर्माण उन्हें पत्र पुष्पम के साथ सतुष्ट किये बिना असंभव है। इस पर तुर्रा यह कि राज्य सरकार ने अपनी उद्योग नीति को अभी अंतिम रुप नहीं दिया है। जमीन अधिग्रहण की हालत जस की तस है। जो जमीन अधिग्रहित है, उस पर भी नया उद्योग शुरु नहीं हो पा रहाहै। नया निवेश हो नही रहा है। जो पुराने निवेशक फंसे हुे हैं, वे भागने का रास्ता तलाश रहे हैं।इस पर तुर्रा यह कि चिटफंड मामले में सत्तादल के बड़े बड़े नाम हैं। इससे सरकार की विश्वसनीयता बाजार में नीलाम होती दिख रही है।न उद्योग मंत्री पार्थ चट्टोपाध्याय और न ही वित्तमंत्री अमित मित्र यह बताने की हालत में हैं कि कब ये हालात बदलेंगे। हालांकि दोनों सार्वजनिक तौर पर राज्य में कारोबार और निवेश का माहौल इंद्रधनुषी बताने में कोताही नहीं कर रहे हैं। पर उद्योग जगत को निवेशका रिट्न से मतलब है, ख्याली पुलाव खाने के लिए वे कतई कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। राज्य में राजनीतिक हिंसा और तनाव के माहौल से कारोबार के लिए कोई अनुकूल स्थिति नहीं बन पा रही है।


उद्योग नीति , भूमिनीति और भूमि बैंक के बारे में सरकारी वायदे और दावे  सुनते सुनते कान पक गये हैं। लोग अघा गये है। परिवर्तन से​​ खुश उद्योग जगत के लिए हात मलते रहने के सिवाय फिलहाल कोई चारा नहीं है।पार्थ चट्टोपाध्याय और सौगत राट क सार्वजनिक विवाद से भी उद्योग जगत हताश है। जब नीति निर्धारकों में ही सहमति नहीं बन पा रही ​

​है तो आकिर लाल फीताशाही से क्या कुछ उम्मीद पालें।


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