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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, April 23, 2013

बांग्लादेशी हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं हिन्दुत्व के ठेकेदारों को…

बांग्लादेशी हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं हिन्दुत्व के ठेकेदारों को…


विकास का हिन्दुत्व मॉडल पर क्या कॉरपोरेट वर्चस्व नहीं है..

भारत का राजनय, मुक्त बाजार,हिन्दुत्व और धर्मनिरपेक्षता!…

 जब हमें बांग्लादेश या नेपाल या भूटान के हितों का ख्याल नहीं रखना है तो हम क्यों अपेक्षा करते हैं कि चीन हमारे हितों का ख्याल रखेगा!…

http://hastakshep.com/?p=31694


 पलाश विश्वास

अब विश्वबैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के दिशा निर्देशों से मुक्त बाजार भारत की राजनय तय होता है। भारत चीन सीमा विवाद और जल संसाधन के बंटवारे पर पड़ोसी देशों से द्विपक्षीय वार्ता तो होती नहीं है पर व्हाइट हाउस और पेंटागन से विदेश नीति तय होती है। ईरान में भूकम्प के बाद चीन में मची भूकम्पीय तबाही से ब्रह्मपुत्र के उत्स पर परमाणु धमाके से पहाड़ तोड़कर बाँध बनाने के उपक्रम पर भारत ऐतराज करने की हालत में भी नहीं है क्योंकि भारत चीन जल समझौता जैसी कोई चीज नहीं है। हिमालयी क्षेत्र में उत्तराखंड, हिमाचल, बंगाल का पहाड़ी क्षेत्र, सिक्किम भूगर्भीय दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील है। कुमायूँ गढ़वाल में भूकम्प के  इतिहास की निरन्तरता बनी हुयी है। भूस्खलन तो रोजमर्रे का जीवन है। पर भारत सरकार को न तो हिमालय की चिंता है और न जल संसाधनों की सुरक्षा की और न ही वहाँ रहने वाली आम जनता के जानमाल की। हिमालय के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और हिमालयी जनता का अमानवीय दमन ही राजकाज है।

जब अपने देश में पर्यावरण कानून, समुद्री तट सुरक्षा कानून , वनाधिकार कानून, सम्विधान की पाँचवी और छठीं अनुसूचियों, धारा 39 बी, 39 सी, स्थानीय निकायों की स्वायत्तता, मौलिक अधिकारों, नागरिक और मानव अधिकारों की धज्जियाँ उड़ाकर विकास के नाम पर मूलनिवासी बहुजनों को कॉरपोरेट हित में निजी कम्पनियों के लाभ के लिये नित नये कानून पास करके संशोधन करके जल जंगल जमीन से बेदखल किया जा रहा हो, सेज और परमाणु संयंत्र की बहार हो, बड़े बाँध और ऊर्जा प्रदेश बन रहे हैं, जनान्दोलनों का सैनिक राष्ट्र निरँकुश दमन कर रहा हो, तो भारतीय विदेश नीति को बांग्लादेश में जनप्रतिरोध की क्या परवाह होगी? जब हमें बांग्लादेश

palashji, Palash Vishwas, पलाश विश्वास

पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं। आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना।

या नेपाल या भूटान के हितों का ख्याल नहीं रखना है तो हम क्यों अपेक्षा करते हैं कि चीन हमारे हितों का ख्याल रखेगा!

भारत में हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्रवाद का उन्माद बड़े ही वैज्ञानिक और बाजार प्रबन्धन के बतौर राजनीतिक विकल्प और विकास के वैकल्पिक चमत्कारिक मॉडल के रूप में नये सिरे से पेश किया जा रहा है। भारत की अल्पमत सरकार बाबरी विध्वंससिख नरसंहारगुजरात नरसंहार और भोपाल गैस त्रासदी के युद्ध अपराधियों को सजा दिलाने के बजाय केन्द्र में साझे तौर पर दुधारी दो दलीय सत्ता में न सिर्फ उनके साझीदार है, बल्कि हिन्दू राष्ट्र के ध्वजावाहकों के साथ मिलीभगत के तहत विदेशी निवेश,विनिवेश, अबाध पूँजी प्रवाह, विकासदर, वित्तीय घाटा, निवेशकों की आस्था, बुनियादी ढाँचा के नारों के साथ नागरिकता संशोधन कानून पास करके आधार कार्ड परियोजना के तहत देश की आधी आबादी के नागरिक मानवाधिकार संवैधानिक रक्षाकवच को निलम्बित करके जनसंहार अभियान चला रही है। खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश का पुरजोर विरोध करने वाले संघ परिवार को विमानन क्षेत्र से लेकर रक्षा क्षेत्र तक में विदेशी पूँजी के अबाध वर्चस्व से कोई आपत्ति नहीं है। रेलवे और राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं को बलात्कार विरोधी स्त्री उत्पीड़नविरोधी कानून के प्रावधानों में जैसे पुलिस और सेना को, सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून , आतंकवाद निरोधक आईन को छूट दी गयी, उसी तरह की छूट देकर जनहित में पुनर्वास और मुआवजा के दिलफरेब वायदों के साथ बिना भूमि सुधार लागू किये भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून पास कराने की तैयारी है तो पेंशन और भविष्यनिधि तक को बाजार के हवाले करने के लिये,पूरे बैंकिंग सेक्टर को कॉरपोरेट के हवाले करके जीवन बीम निगम के साथ साथ भारतीय स्टेट बैंक के विध्वंस के जरिये आम जनता की जमा पूँजी पर डाका डालने की तैयारी है। कालेधन की यह अर्थव्यवस्था चिटफण्ड में तब्दील है और कोयले की कोठरी में सत्तावर्ग के सभी चेहरे काले हैं।

ऐेसे में नेपाल हो या बांग्लादेशकहीं भी धर्मनिरपेक्षता व लोकतन्त्र की लड़ाई हिन्दुत्व के लिये बेहद खतरनाक है।

मसलन नेपाल में राजतन्त्र के अवसान के बाद भारत की हिन्दुत्ववादी राजनय के एकमात्र एजेण्डा वहाँ राजतन्त्र की बहाली है। इस वक्त नेपाल में बड़े जोर शोर से प्रचार अभियान चल रहा है कि भारत में नरेन्द्र मोदी के अमेरिकी समर्थन से प्रधानमन्त्री बन जाने से भारत हिन्दू राष्ट्र बन जायेगा और इसीके साथ नेपाल में एकबार फिर राजतन्त्र की स्थापना हो जायेगी। फिर शांति और संपन्नता का युग वापस आ जायेगा। जाहिर है कि भारत का हिन्दुत्ववादी सत्तावर्ग उसी तरह लोकतन्त्र के विरुद्ध है जैसे कि जायनवादी कॉरपोरेट साम्राज्यवाद। भारतीय सत्तावर्ग कम से कम अपने अड़ोस पड़ोस मे लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता बर्दाश्त कर ही नहीं सकता और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिये हर कार्रवाई करता है। वरना क्या कारण है कि पाकिस्तान से अभी-अभी आनेवाले हिन्दुओं को नागरिकता दिलाने की मुहिम तो जोरों पर होती हैवहीं विभाजन पीड़ित हिन्दू शरणार्थियों की नागरिकता छीने जाने परउनके विरुद्ध देशव्यापी देशनिकाले अभियान के खिलाफ कोई हिन्दू आवाज नहीं उठाता। बांग्लादेश, पाकिस्तान और बाकी दुनिया में बाबरी विध्वंस के बाद क्या हुआ, सबको मालूम है, लेकिन इस वक्त बांग्लादेश में लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता के जीवन मरण संग्राम के वक्त उनका समर्थन करने के बजाय संघ परिवार की ओर से सुनियोजित तरीके से रामजन्मभूमि आन्दोलन ने सिरे से जारी किया जाता है। यहीं नहीं, संघ परिवार की ओर से पेश प्रधानमन्त्रित्व के दो मुख्य दावेदारों में से एक बाबरी विध्वंस तो दूसरा गुजरात नरसंहार मामले में मुख्य अभियुक्त है। इस पर मजा यह कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का झंडा उठाये लोगों को गुजरात नरसंहार का अभियुक्त तो साम्प्रदायिक लगता हैलेकिन बाबरी विध्वंस का अभियुक्त नहीं। वैसे ही जैसे सिखों को हिन्दू मानने वाले संघ परिवार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में न सिर्फ काँग्रेस का साथ दिया,बल्कि सिखों के जनसंहार के वक्त भी काँग्रेस का साथ देते हुये वह हिन्दू हितों का राग अलापता रहा और बाद में अकाली दल के साथ पंजाब में सत्ता का साझेदार हो गया।दंगापीड़ित सिखों को न्याय दिलाने का कोई आन्दोलन न संघ परिवार ने छेड़ा और न अकाली सत्ता की राजनीति की इसमें कोई दिलचस्पी रही।

पिछले दिनों राजधानी नयी दिल्ली में बांग्लादेश के  धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक शाहबाग आन्दोलन के समर्थन में देश भर के शरणार्थियों ने निखिल भारत शरणार्थी समन्वय समिति के आह्वान पर धरना दिया और प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम में हिन्दुत्व का कोई सिपाहसालार नजर नहीं आया और न अराजनीति और राजनीति का कोई मसीहा। जबकि बांग्लादेश में अब भी एक करोड़ हिन्दू हैं। रोज हिन्दुओं पर हमले हो रहे हैं, पर अयोध्या के रथी महारथियो को रोज बांग्लादेश में ध्वस्त किये जा रहे असंख्य हिन्दू धर्मस्थलों, रोज हमले के शिकार होते हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं है। बुनियादी सवाल तो यह है कि क्या उन्हें भारतीय हिन्दुओं की कोई परवाह है? हिन्दुत्व के नाम पर जो बहुसंख्य मूलनिवासी बहुजन संघपरिवार की पैदल सेना हैंसमता और सामाजिक न्यायसमान अवसरों और आर्थिक सम्पन्नता के उनके अधिकारों की चिंता हैउसके प्रति समर्थन हैदेवभूमि और पवित्र तीर्थ स्थलों,चारो धामोंपवित्र नदियों पर कॉरपोरेट कब्जा के खिलाफ वे कब बोले? वास्तव में वे रामरथी नहीं, बल्कि जनसंहार और बेदखली के शिकार इस अनन्त वधस्थल पर जारी अश्वमेध अभियान के ही वे रथी महाऱथी हैं। बहुसंख्य आम जनता के हक हकूक के खिलाफ आर्थिक सुधारों का हिन्दुत्व राष्ट्रवादियों ने कब विरोध कियाबताइये! विकास का हिन्दुत्व मॉडल पर क्या कॉरपोरेट वर्चस्व नहीं है और क्या इस मॉडल की कॉरपोरेट मार्केटिंग नहीं हो रही है,जिसे विश्व व्यवस्था और कॉरपोरेट साम्राज्यवाद का बिना शर्त समर्थन हासिल है?

इस कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में पूर्वी बंगाल के स्वतन्त्रता सेनानियों की मार्मिक याद दिलाते हुये शरणार्थी नेता सुबोध विश्वास ने सवाल खड़े किये कि पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों पर बहस हो सकती है तो क्यों नहीं पूर्वी बंगाल के विभाजन पीड़ित शरणार्थियों को लेकर कोई सुगबुगाहट है। इस आयोजन का कॉरपोरेट मीडिया में क्या कवरेज हुआ, हमें नहीं मालूम। सभी कोलकातिया अखबारों के दफ्तर नई दिल्ली में मौजूद हैं और इस कार्यक्रम में करीब-करीब सभी राज्यों से प्रतिनिथधि मौजूद थेजो बोले भी,पर कोलकाता में किसी को कानोंकान खबर नहीं है। हम अपनी ओर से अंग्रेजी और हिन्दी को छोड़ बांग्ला में भारत में शरणार्थियों का हालत और बांग्लादेश के ताजा से ताजा अपडेट दे रहे हैं, पर यहाँ के नागरिक समाज में कोई प्रतिक्रिया , कोई सूचना नहीं है। आम जनता तो सूचना ब्लैक आउट के शिकार हैं ही। बहरहाल शाहबाग आन्दोलन के प्रति समर्थन जताया जा रहा है, वहाँ अल्पसंख्यक उत्पीड़न रोकने के लिये आवाज उठाये बिना। उधर जमायते है तो इधर भी जमायत है और इसी के साथ वोट बैंक हैं। राजनीति के कारोबारी जाहिर है कि मुँह नहीं खोलने वाले। लेकिन अराजनीति वाले कहाँ हैं? उनकी हालत तो एक मशहूर पत्रकार नारीवादी धर्मनिरपेक्ष आइकन की जैसी हो गयी है जो गुजरात के नरसंहार के विरुद्ध निरन्तर लड़ने वाले लोगों के विरुद्ध नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश का आरोप लगा रही हैं या फिर बहुजन आन्दोलन के उन मसीहाओं की तरह जो मोदी के प्रधानमन्त्रित्व के लिये यज्ञ महायज्ञ में सामाजिक बदलाव और आजादी के आन्दोलन को निष्णात करने में लगे हुये हैं। जिस वैकल्पक मीडिया के लिये हमने और हमारे अग्रज साथियों ने पूरा जीवन लगा दियावहाँ भी हिन्दुत्व का वर्चस्व है। `हस्तक्षेप' को छोड़कर सोशल मीडिया में हर कहीं इस मामले में चुप्पी है।

बांग्लादेश में ब्राह्मणवाद विरोधी दो सौ साल पुराना मतुआ आन्दोलन का दो सौ साल से निरन्तर चला आ रहा बारुणि उत्सव बंद हो गया है और मौजूदा हालात में न वहाँ इस साल कोई तीज त्योहार और न ही दुर्गापूजा मनाने की हालत में हैं एक करोड़ हिन्दू। इस तरह हमले जारी रहे तो वे तसलीमा के लज्जा उपन्यास के नायक की तरह एक न एकदिन भारत आने को मजबूर हो जायेंगे। जिस शरणार्थी समस्या के कारण भारतीय सेना को बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में दखल देना पड़ा, वह फिर मुँह बाएं खड़ी है। क्या भारतीय राजनय के लिये यह चिंता की बात नहीं है और हिन्दुत्व के ध्वजावाहकों के लिये लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता के स्वयंभू रथि महारथियों के लिये!

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