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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, April 6, 2013

सांस्कृतिक संहार के विरुद्ध ‘भाषा कर रही है दावा’ ♦ सविता मुंडा

सांस्कृतिक संहार के विरुद्ध 'भाषा कर रही है दावा'

♦ सविता मुंडा

ब्बे के दौर में रांची रंगमंच जब बहुत सक्रिय था और रांची के साथ-साथ बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद, हजारीबाग, कोडरमा आदि जिलों में कई नाट्य समूह लगातार नाटकों का मंचन कर रहे थे, तब भी हिंदी रंगमंच पर आदिवासी अभिव्यक्ति गायब थी। और अब, जब रांची रंगमंच पर इक्का-दुक्का नाट्य समूह ही सक्रिय है, तब भी यह सवाल बना हुआ है। ऐसे में 3 मार्च को 'भाषा कर रही है दावा' का परफॉरमेंस रांची रंगमंच पर आदिवासी कथ्य, कलाकार और कृति का झारखंड व देश के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक नयी दावेदारी रखता है। रांची विश्वविद्यालय के शहीद स्मृति केंद्रीय पुस्तकालय सभागार में झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की नाट्य इकाई उलगुलान की यह प्रस्तुति झारखंड के हिंदी रंगमंच में एक उल्लेखनीय परिघटना है।

इस प्रस्तुति की सबसे बड़ी उपलब्धि है आदिवासी अभिनेता अनुराग लुगुन। अनुराग ने अपने बेजोड़ अभिनय से, दैहिक गतियों और भावों से कविता के शब्द और उसकी ध्वनियों को बखूबी संप्रेषित किया। संभव है कविता के भाव और विचार पाठकों को एक अलग स्वाद देते परंतु डंडा, गुलेल, ढेलकोशी और नगाड़ा जैसे ठेठ आदिवासी उपकरणों के सहारे रचे गये दृश्यों ने जो आवेग संचारित किया, वह सिर्फ परफॉरमेंस ही कर सकती है। 'अनुवाद की सत्ता से मत अनावृत करो/ हमारी अस्मिता/ हमारी पहचान' जैसी पंक्तियों पर जो भाव 'करेया' पहने अनुराग की देह और नगाड़े की ध्वनियों ने व्यक्त किया, उसका प्रभाव दर्शक और रांची रंगमंच लंबे समय तक महसूस करते रहेंगे। इसी तरह 'एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा/ राष्ट्रीय भाषा को/ सेनापति की तरह/ निर्देशित कर रही थी/… फौजियों से घिरा हुआ था/ जंगलों के बीच कोई कबीला/ जवान होती भाषा के साथ' एक ओर जहां भारत के आदिवासी इलाकों में पूंजीवादी सत्ता-सरकार के सहयोग से चल रहे दमन और आतंक की भयावहता को सामने रख रही थी, तो वहीं दूसरी ओर 'भाषा कर रही है दावा/ भाषा करती रहेगी दावा/ बिना गले के/ बगैर किसी शब्द के/ ध्वनियों की अनुपस्थिति में भी' से जनता के अदम्य प्रतिरोध को भी पूरी तल्खी और साहस के साथ उद्घोषित कर रही थी।

Anurag Lugun

कवि और निर्देशक अश्विनी कुमार पंकज कहते हैं, 'यह कविता और प्रस्तुति भारत की समूची देशज-आदिवासी जनता द्वारा आंतरिक औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध किए जा रहे संघर्ष का कोरस है। कविता भाषा, ध्वनियों और संगीत के जरिये लयबद्ध प्रतिरोध को ऐतिहासिक चेतना के साथ अभिव्यक्त करती है।' अभिनेता अनुराग लुगुन से जब परफॉरमेंस पर बात हुई, तो उन्होंने स्वीकार किया, 'इस परफॉरमेंस ने मेरे भीतर के कलाकार और अपने उत्पीड़ित आदिवासी समाज की मौजूदा स्थिति और संघर्ष को पहचानने की समझ दी है। मैं अपने प्रदर्शन को लेकर बेहद डरा हुआ था क्योंकि इसके पहले मुझे कभी भी प्रमुख भूमिका नहीं मिली थी। कविता जैसी अमूर्त विधा से भी मैं अनजान था। यह मेरा पहला सोलो है और इसे बेहतर बनाने के लिए मैंने भरपूर मेहनत की। इस प्रक्रिया में काफी कुछ सीखा।'

निस्‍संदेह कोई भी नयी रचना, नया प्रयोग जोखिम उठाता है। प्रयोग की उपलब्धियां जहां ध्यान खींचती हैं, वहीं उसकी कमियां अगले प्रदर्शन से पहले अतिरिक्त मेहनत की मांग करती है। देशज-आदिवासी कला शैली और सौंदर्यबोध का आकर्षण रचने के बावजूद 'भाषा कर रही है दावा' कई जगहों पर 'अनिरंतरता' से बाधित थी। आभास होता था कि कुछ सायास गढ़ा जा रहा है। आंगिक रचनाओं में दुहराव भी दिखे, जिससे कहीं-कहीं एकरसता महसूस हुई। लेकिन संगीत रचना, गतिमान छवियां, भाषा का लयात्मक प्रवाह और अनुराग के प्रभावी अभिनय ने कमियों को हावी नहीं होने दिया। फिर भी इन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। परफॉरमेंस का सेट डिजाइन विषय-प्रस्तुति के अनुकूल थी और सांस्कृतिक-आर्थिक लूट व आरोपण को उकेर रहे थे। प्रभावी ध्वनि व्यवस्था और साज-सज्जा के लिए समीर मिंज, विश्वनाथ प्रसाद, कृष्ण सिंह मुंडा, विजय गुप्ता व निरल टोप्पनो को जरूर बधाई दी जानी चाहिए। निर्देशक अश्विनी पंकज की यह प्रस्तुति उनकी रचनात्मक क्षमता, परिकल्पना और देशज-आदिवासी सौंदर्यबोध की सशक्त बानगी है, जिसे दो दशक बाद झारखंड की नयी और पुरानी पीढ़ी ने सहभागी हो कर देखा।

(सविता मुंडा। मुंडारी एवं पंचपरगनिया भाषा की नवोदित लेखिका। जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विश्वविद्यालय, रांची की शोध छात्रा।)

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