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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Thursday, April 4, 2013

कल बस्तर से एक सूचना मिली थी कि सुरक्षा बलों ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए हैं और ग्रामीणों को नक्सली घोषित कर उन पर ज़ुल्म किये हैं . आज टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार पढ़ा उसमे लिखा है कि सरकारी सुरक्षा बलों ने नक्सलवादियों पर हमला किया जिसमे सात ' नक्सलवादी ' मारे गये .

कल बस्तर से एक सूचना मिली थी कि सुरक्षा बलों ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए हैं और ग्रामीणों को 

नक्सली घोषित कर उन पर ज़ुल्म किये हैं . 

आज टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार पढ़ा उसमे लिखा है कि सरकारी सुरक्षा बलों ने नक्सलवादियों पर हमला 

किया जिसमे सात ' नक्सलवादी ' मारे गये . 

कल बस्तर से एक सूचना मिली थी कि सुरक्षा बलों ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए हैं और ग्रामीणों को नक्सली घोषित कर उन पर ज़ुल्म किये हैं . 

आज टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार पढ़ा उसमे लिखा है कि सरकारी सुरक्षा बलों ने नक्सलवादियों पर हमला किया जिसमे सात ' नक्सलवादी ' मारे गये . 

खबर में ये भी लिखा है कि नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर अंधाधुंध फायरिंग करी . जवाब में सुरक्षा बलों ने फायरिंग करी जिसमे नक्सलवादी मारे गये .

आश्चर्य कि बात है कि नक्सलियों की अंधाधुंध फायरिंग में सुरक्षा बल के एक भी सिपाही को खरोंच तक नहीं आयी , लेकिन सरकारी सुरक्षा बलों की गोली से सात नक्सली मर गये .

एक बार इसी तरह से सिंगारम गाँव में पुलिस ने उन्नीस ग्रामीणों को मार दिया था जिनमे चार लड़कियां थीं जिनके साथ बलात्कार करके चाकू घोंप कर मारा गया था .

तब भी पुलिस ने दावा किया था कि मारे गये लोग नक्सली थे और उन्होंने पुलिस पर हमला किया था और जवाबी कार्यवाही में नक्सली मारे गये थे .

जबकि सच्चाई यह थी कि इन सभी को पुलिस ने घरों से खींच खींच कर निकाला, फिर लड़कियों को एक तरफ ले जाकर बारी बारी बलात्कार किया फिर लड़कियों को चाकू मार दिया और लड़कों को गोली से उड़ा दिया . 

हमने हाई कोर्ट में सरकार से पूछा कि उन आपने कितनी गोली चलाई ? पुलिस ने बताया पच्चीस गोलियाँ . हमने पूछा आपकी पच्चीसों की पच्चीसों गोलियाँ नक्सलियों को लग गयीं . एक भी गोली ना किसी पेड़ में धंसी ना हवा में इधर उधर गई . और उसमे उन्नीस नक्सली मर भी गये . और हमने पूछा कि नक्सलियों ने कितनी गोलियाँ चलें थीं ? तो पुलिस ने बताया कि नक्सलियों ने दो घंटे तक अंधाधुंध फायरिंग करी थी . हमने पूछा कि आपमें से किसी को गोली लगी क्या ? पुलिस ने बताया कि नहीं नक्सलियों की कोई गोली किसी भी पुलिस वाले को नहीं लगी . 

हमने पूछा कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद से आज तक नक्सलियों से मिले हुए सारे हथियार दिखाइए . जो हथियार पुलिस ने दिखाए वह जंग लगे हुए सड़े हुए मात्र सात सड़ी हुई बंदूकें दिखाई . ये सैंकडों साल पुराने हथियार थे जिनसे गोली चलाना बिल्कुल सम्भव ही नहीं है . कई बंदूकों की नली पूरी तरह से सड़ चुकी थी और उनमे बड़े बड़े छेद थे .

पुलिस हर बार आदिवासियों को मार कर इन्ही बंदूकों को अदालत में दिखा देती है .

हमने पूछा कि आपने इनके मरने के बाद इनका पोस्ट मार्टम क्यों नहीं करवाया ? तो पुलिस ने कोर्ट में कहा कि लाशें तो नक्सली उठा कर ले गये थे . हमने कोर्ट को बताया कि साहब मरने वाले उसी गाँव के निर्दोष लड़के लड़कियां थे और पुलिस वाले उन्हें मार कर चले गये थे . उसके बाद गाँव वालों ने गाँव में ही सबको दफनाया है . 

कोर्ट ने सारी लाशें खोदने का हुक्म दिया . तेईस दिन के बाद पोस्ट मार्टम हुआ . मामला अभी भी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में लटका हुआ है .

इस घटना को कोर्ट में ले जाने के छह महीने बाद सरकार ने हमारे आश्रम को बुलडोजर चला कर तोड़ दिया . बाद में इस घटना के उत्तरदायी पुलिस अधीक्षक ने आत्म हत्या कर ली . 

लेकिन आदिवासियों को न्याय नहीं मिला .
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  • Himanshu Kumar जांच चल रही है . एस पी साहब का लेपटाप और पिस्तौल भी गायब है
  • साधन नवीन सरकार ने शोषकों की सुरक्षा के लिए इस तरह की जाल बिछा दी कि उस जाल को तोड़ने का मतलब देशद्रोही ,या पुलिस ,सेना की गोली और अत्याचार ,न्याय भी जल्दी नहीं मिलता या मिलता नहीं ....बहुत बड़ी समस्या हैं फिर भी कोई रास्ता निकलना ही पड़ेगा |
  • Krishnakant Pandey आज देश की प्रशाशनिक व्यवस्था इतनी धूमील हो गयी है जीसका कोई जवाब नर्ही।इस तरह नक्सली और उग्रवाद की आड़ मे जा रही बेगुनार्हो की जान को बचाने के लीए कूछ तरीका तो नीकलना ही चाहीये।
  • Rafi Malek It is universal action of establishment. For the protection of rights and benefits of capitalist and MNCs our "Netaji" and bureaucrats immediately mingle to clean the way for them and act as agents of these people. The gape between poor and rich, marginalized and main course community is increasing. Recent Rajkot incident is a perfect example of this.
  • Palash Biswas Yehi samajik yatharth hai jo bhugol ke khilaf itihaas ki ladaai hai. Algaew aur segregation ki niv par kaise loktantra, civic and humna rights ki baat karte hain hum? adivasio ko maovadi banaane ke is corporate khel ke Khilaf yeh desh napunksak kahmoshi mein dubaa hua hai. Apno par aanch nahi aa rahi. Hum adivasio ko is desh kaa hissa maante hi nahee hain.

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