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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, April 6, 2013

दंगों के दाग से 'केसरिया' होते मुलायम

दंगों के दाग से 'केसरिया' होते मुलायम


आम चुनावों में 40 सांसदों के जीत की जमीन बनाती सपा

दिल्ली की कुर्सी के लिए तोल-मोल के लिए कम से कम 40 सांसदों की जरूरत है, लेकिन स्थितियां बदली हुई हैं. सपा को भाजपा से अधिक खतरा कांग्रेस से है. जब बात लोकसभा चुनाव की होती है तो सपा के मुस्लिम वोट का झुकाव स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस की ओर होता है...

आशीष वशिष्ठ


सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव पिछले कई दिनों से ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं, जिससे आभास हो रहा है कि वह भाजपा की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते और खटास भरे रिश्तों को सुधारने की कवायद में लगे हैं. संसद में पूरे देश के सामने सुषमा स्वराज को वो पूरे विपक्ष का नेता बताकर सहयोग मांगते हैं, तो लखनऊ में वो आडवाणी की शान में कसीदे पढ़ते और उन्हें ईमानदार नेता का सर्टिफिकेट देते नजर आते हैं. कट्टर हिंदूवादी छवि वाले आडवाणी की तारीफ करना और भाजपा से रिश्ते सुधारने की कवायद में लगे नेताजी की बयानबाजी खुद उनकी पार्टी नेताओं को पसंद नहीं आ रही है, बावजूद इसके नेताजी बयानबाजी से बाज आने की बजाय खुद को हिंदूवादी नेता साबित करने में लगे हैं.

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आखिरकर ऐसी क्या मजबूरी है कि विधानसभा चुनाव से पूर्व कल्याण सिंह के मसले पर प्रदेश के मुसलमानों से माफी मांगने वाले नेताजी एकाएक आडवाणी और भाजपा की तारीफ करने लगे हैं. क्या उन्हें अपना मुस्लिम वोट बैंक दरकता दिखाई दे रहा है या फिर उन्हें ऐसा लग रहा है कि केवल मुस्लिम वोटों के सहारे उनका पीएम बनने का ख्वाब बस ख्वाब ही रह जाएगा. क्या मुलायम को जमीनी हकीकत पता चल चुकी है कि हिंदू वोटरों की मदद के बिना उनका 40 सीट जीतने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा और वो इसी मंसूबे को पूरा करने के लिए सोची-समझी रणनीति के तहत हिंदू वोटरों को लुभाने के लिए भाजपा के प्रति 'मुलायम' हुए जा रहे हैं.

लाख तोहमतों व हायतौबा के बाद भी डीएसपी हत्याकांड में राजा भैया का गिरफ्तार न होना, तमाम सुबूतों के बावजूद वरुण गांधी का भड़काऊ भाषण के मामले से बरी होना, एक साल के कार्यकाल में 27 दंगे होना और उनमें हिंदू संगठनों की सक्रियता और सहभागिता दाल में बहुत कुछ काला है, की ओर इशारा करती है. सवाल यह भी है कि क्या मुलायम और सपा के एजेण्डे में मुसलमानों की लिए वो जगह नहीं बची है जो विधानसभा चुनाव के वक्त थी. लाख टेक का सवाल है कि आखिरकर नेताजी हिंदूवादी छवि और चेहरा चाहते क्यों हैं?

मुस्लिम वोटरों के मूड के बारे में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप उपाध्याय कहते हैं, 'असल में विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों की पसंद जहां सपा और बसपा होती है तो वहीं लोकसभा चुनाव में वो कांग्रेस की ओर ही देखते हैं.' आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस ने परफार्मेंस सुधारते हुए सांसदों की संख्या 9 से 22 तक पहुंचा दी. वहीं सपा 35 से खिसक कर 21 सीटों पर पहुंच गयी. पिछले चुनाव में मुसलमान नेताजी से बाबरी मस्जिद गिराने के गुनाहगार कल्याण सिंह से हाथ मिलाने से नाराज थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. प्रदेश में सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है, फिर चुनाव के मुहाने पर खड़े नेताजी हिंदूवादी दल से पींगे क्यों बढ़ा रहे हैं. उनका यह कदम आत्मघाती भी हो सकता है.

विधानसभा चुनाव में 403 में से 68 मुस्लिम विधायक जीत दर्ज करा पाये. वहीं अखिलेश के 57 मंत्रियों के मंत्रीमंडल में 13 मंत्री भी मुसलमान हैं, लेकिन नेताजी का ध्यान हिंदू वोटरों का साधने में लगा है. 1996 में 16, 1998 में 20, 1999 में 26, 2004 में 35 सपा सांसद उत्तर प्रदेश से चुने गये. इनमें क्रमशः मुस्लिम सांसदों की संख्या 4, 3, 2, 7 है. 2009 में सपा के 21 सांसद निर्वाचित हुए, लेकिन एक भी मुस्लिम सांसद सपा के कोटे से संसद नहीं पहुंच पाया. वर्तमान में प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सांसदों में से 7 मुस्लिम है जिनमें से 3 कांग्रेस और 4 बसपा के हैं. सपा के सर्वाधिक 35 सांसद 2004 के आम चुनाव में चुने गये थे, लेकिन इस बार इम्तिहान और कड़ा है.

दिल्ली की कुर्सी के लिए तोल-मोल के लिए कम से कम 40 सांसदों की जरूरत है, लेकिन स्थितियां बदली हुई हैं. सपा को भाजपा से अधिक खतरा कांग्रेस से है. जब बात लोकसभा चुनाव की होती है तो सपा के मुस्लिम वोट का झुकाव स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस की ओर होता है. मुस्लिम भी सपा की सियासत को समझ रहे हैं. पीस हिंद सोशल सोसायटी, कोसीकलां के मौलाना मोहम्मद ताहिर सिंगारवी कहते हैं कि, 'आरएसएस और बजरंग दल तो केवल एजेण्डा ही बनाते हैं, लेकिन मुलायम उसे लागू करके दिखाते हैं. कोसीकलां में हुये दंगे में हिंदूवादी संगठनों की भूमिका किसी से छिपी नहीं है, सरकार की भूमिका संदिग्ध है. आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं और मुख्यमंत्री विधान परिषद में आरोपियों को पाक-साफ बता रहे हैं. असल में सरकार की नीयत में खोट है.'

प्रतापगढ़ के अस्थान, गाजियाबाद के मंसूरी फैजाबाद समेत दो दर्जन से अधिक स्थानों पर हुए दंगों में कहीं न कहीं हिंदूवादी संगठनों की भूमिका सामने आई है. एपवा नेता ताहिरा हसन के अनुसार, 'आडवाणी की तारीफ से मुलायम की विचारधारा झलकती है. प्रदेश में हो रहे दंगों से वोटों का धुव्रीकरण और बीजेपी को फायदा हो रहा है.' भाजपा भी नेताजी की रणनीति में बराबर की भागीदार है. टांडा अम्बेडकर नगर में हिन्दू युवा वाहिनी के जिलाध्यक्ष रामबाबू गुप्ता के हत्या के बाद भाजपा ने पूरी घटना को सांप्रदायिक रंग देने की पूरी कोशिश की. जेलों में बंद बेगुनाह मुस्लिम युवकों की रिहाई के मुलायम के बयान पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी कहते हैं, 'मुलायम सिंह के बयान को अगर दूसरे अंदाज में कहा जाये तो उसका अर्थ है कि बहुसंख्यक हिन्दू वर्ग के बेगुनाहों को जेल में रहना होगा. सपा की सरकार को वोट देने वाले बहुसंख्यक वर्ग के लोग मुलायम सिंह के इस बयान के बाद अपनों को ठगा महसूस कर रहे हैं.'

प्रदेश में पिछले एक वर्ष के दौरान हुए दंगों में सरकार से ज्यादा भाजपा इस बात पर जोर दे रही है कि दंगों में हिंदू संगठनों का बेवजह नाम उछाला जा रहा है. हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न हो रहा है. असल में भाजपा हिंदू संगठनों के उत्पीड़न और अत्याचार की आड़ में अपने हिन्दूवादी एजेण्डे को धीरे-धीरे सुलगा रही है. सरकार का मौन भाजपा के एजेण्डे का हवा-पानी दे रहा है, असल में इसमें सपा-भाजपा दोनों को फायदा दिख रहा है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्य नसीम इक्तेदार कहती हैं 'मुलायम सिंह दोगली नीति चल रहे हैं, जिस आडवाणी के हाथ खून से रंगे हैं उसकी तारीफ कर आखिरकर मुलायम क्या साबित करना चाहते हैं.'

फिलवक्त सपा के पास सवा दौ से अधिक विधायक हैं. विधानसभा चुनाव में उसे 29.12 फीसद वोट मिले हैं. लेकिन इस रिकार्ड और प्रदर्शन के बलबूते नेताजी को आम चुनावों में सफलता मिलती दिख नहीं रही है. असल में नेताजी को पार्टी की कमजोरियां और जमीनी हालात से बावस्ता हैं. विधानसभा चुनाव में 1 से लेकर 2000 मतों के अंतर से जीतने वाले 41 विधायकों में से 21 सपा के ही हैं. बेहड़ी के सपा विधायक अतुर्रहमान, पट्टी के राम सिंह और बालामऊ के अनिल वर्मा क्रमशः 18, 156 और 173 मतों के अंतर से ही जीते हैं. वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का 9 से 22 के दोहरी संख्या पर पहुंचना भी नेताजी का अच्छे से याद है.

वो अलग बात है कि कल्याण सपा से आउट हो चुके हैं, नेताजी मुसलमानों से माफी मांग चुके हैं, आजम खां की पार्टी में वापसी हो चुकी है, अखिलेश मंत्रिमंडल में दर्जन भर मुस्लिम मंत्री हैं. अगर इन सबसे से लोकसभा चुनाव की बाजी जीती जा सकती तो नेताजी मुस्लिम वोटरों के दर पर माथा रगड़ते, न कि बाबरी मस्जिद के गुनाहगार आडवाणी की तारीफ करते. प्रदेश में 18 फीसद मुस्लिम वोटर के अलावा सवर्ण, दलित, पिछड़े और अन्य वोटरों का जो 82 फीसद है उसकी सहायता के बिना नेताजी का सपना पूरा होने वाला नहीं है. हिंदू वोटरों विशेषकर ब्राहाम्ण, ठाकुर वोटरों को आकर्षित करने और उनकी गोलबंदी के लिए नेताजी बयानबाजी में जुटे हुए हैं.

मुलायम को मालूम है कि अगर इस बार वो प्रधानमंत्री नहीं बन पाये, तो दूसरा मौका शायद ही उन्हें मिले. इसलिए वो कांग्रेस पर लगातार हमलावर होते जा रहे हैं. मुलायम ने होली के दिन सैफई में कहा कि हम दिल्ली में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाएंगे. 2014 के आम चुनाव में न तो कांग्रेस की सरकार बनेगी न ही बीजेपी की. जानकारों की मानें तो यह मुलायम सिहं का पैंतरा नजदीक आते आम चुनाव के मद्देनजर है.

फिलहाल भले ही केंद्र में कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में वो कांग्रेस के खिलाफ ही चुनाव लड़ेंगे. सपा और भाजपा को राजनीतिक तौर पर कोई बड़ा खतरा एक दूसरे से नहीं है. भाजपा के हिंदूवादी एजेण्डे को ऑक्सीजन देने के अलावा मुलायम खुद का हिंदूवादी चेहरा निखारने और संवारने में जुटे हैं. अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि जनता मियां मुलायम के हिंदूवादी चेहरे को कितना पसंद करती है.

ashish.vashishth@janjwar.com

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/3884-dangon-ke-daag-men-kesariya-hote-mulaayam-by-ashish-for-janjwar

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